ब्लॉगजगत के ताऊजी से सदा प्रभावित रहे अतः पहली बार स्वयं ताऊ बनने पर अपने भतीजे से भेंट का मन बनाया गया। उत्तर भारत की धुंधकारी ठंड अपने सौन्दर्य की शीतलहरी बिखेरने में मगन थी, दिल्ली के दो सदनों की राजनैतिक गरमाहट भी संवादों और विवादों की बर्फ पिघलाने में निष्फल रही, कई ब्लॉगरों के चाय, कम्बल, अलाव आदि के चित्र भी मानसिक ऊर्जा देने में अक्षम रहे। गृहतन्त्र की स्वस्थ परम्पराओं का अनुसरण करते हुये हमने भी उत्तर भारत की संभावित यात्रा का प्रस्ताव भोजन की मेज पर रखा, उपरिलिखित तथ्यों के प्रकाश में हमारा प्रस्ताव औंधे मुँह गिर गया, वह भी ध्वनिमत से। संस्कारी परम्पराओं का निर्वाह करते हुये, उठ खड़े हुये अवरोध के बारे में जब हमने अपने पिताजी को बताया तो उन्होने भी अपने पौत्र और पौत्री की बौद्धिक आयु हमसे अधिक घोषित कर दी, कहा कि इतनी ठंड में आने की कोई आवश्यकता नहीं है। श्रीमतीजी सदा ही बहुमत के साथ मिलकर मन्त्री बनी रहती हैं, तो हम भी निरुपाय और निष्प्रभावी हो ब्लॉग का सहारा लेकर परमहंसीय अभिनय में लग गये।
बच्चों की छुट्टियाँ श्रीमतीजी के हाथ में तुरुप का इक्का होती हैं, आपका हारना निश्चय है। लहरों की तरह उछाले जाते, उसके पहले ही हमने गोवा चलने का प्रस्ताव जड़ दिया। सब हक्के बक्के, संभवतः विवाह के १४वें वर्ष में सब पतियों के ज्ञानचक्षु खुल जाते हों। लहरों के साथ खेलने के लिये भला कौन सहमत न होगा, गोवा-गमन को हमारा निस्वार्थ उपहार मान हमें स्नेहिल दृष्टि में नहला दिया गया, यह बात अलग थी कि हमने भी वहाँ पर अपने एक बालसखा से मिलने की योजना बना ली थी, वह भी बिछड़ने के २५ वर्ष के बाद।
सागर के साथ संस्कृति को जोड़ते हुये, हम लोग हम्पी होते हुये गोवा पहुँचे। हम्पी संस्कृति के ढेरों अध्याय समेटे है और विवरण के पृथक प्रयास का अधिकारी है। गोवा में लहरों का उन्माद उछाह हमारी प्रतीक्षा में था, लहरों के साथ खेलते रहने की थकान, उसके बाद महीन रेत पर निढाल होकर घंटों लेटे रहना, नीचे से मन्द मन्द सेंकते हुये रेतकण और ऊपर से सूरज की किरणों से आपकी त्वचा पर सूख जाते नमककण, प्रकृति अपने गुनगुने स्पर्श से आपको अभिभूत कर जाती है। बच्चे कभी शरीर पर तो कभी पास में रेत के महल और डायनासौर बनाते रहे, जब कभी आँख खुलती तो बस यही लगता कि कैसे यह गरमाहट और निश्चिन्तता उत्तरभारत और विशेषकर दिल्ली पहुँचा दी जाये।
पिछली यात्राओं में चर्च आदि देखे होने के कारण हमने गोवा और उसके बीचों पर निरुद्देश्य घूमने का निश्चय किया। हमें तो लग रहा था कि हम आदर्श पर्यटक के गुण सीख चुके हैं अतः हमारे द्वारा उठाये आनन्द का अनुभव अधिकतम होगा, पर इस यात्रा में भी कुछ सीखना शेष था, वह भी अपने पुत्र पृथु से।
यद्यपि हम छुट्टी पर थे पर फिर भी कार्य का मानसिक भार कहीं न कहीं लद कर साथ में आ गया था। बच्चों को छुट्टी में पढ़ने के लिये कहना एक खुला विद्रोह आमन्त्रित करने जैसा है, पर हम लोगों के लिये छुट्टी में भी अपने कार्यस्थल से जुड़ाव स्वाभाविक सा लगता है। लगता है कि हम सब किसी न किसी जनम में एटलस रहे होंगे और पृथ्वी के अपने ऊपर टिके होने की याद हमें रह रहकर आती है। या ऐसा हो कि हम पतंगनुमा मानवों को कोई डोर आसमान पर टाँगे रहती है और उस डोर के नहीं रहने पर हमारी अवस्था एक कटी पतंग जैसी हो जाती है, समझ में नहीं आता हो कि हम गिरेंगे कहाँ पर।
जिन दिनों हम गोवा में थे एयरटेल की सेवायें पश्चिम भारत में ध्वस्त थीं। नेटवर्क की अनुपस्थिति हमें हमारे नियन्त्रण कक्ष से बहुत दूर रखे थी। अपने आईफोन पर ही हम अपने मंडल के स्वास्थ्य की जानकारी लेते रहते हैं और समय पड़ने पर समुचित निर्देश दे देते हैं। यदि और समय मिलता है तो उसी से ही ब्लॉग पर टिप्पणियाँ करने का कार्य भी करते रहते हैं। न कार्य, न ब्लॉग, बार बार हमारा ध्यान मोबाइल पर, हमारी स्थिति कटी पतंग सी, मन के भाव चेहरे पर पूर्णरूप से व्यक्त थे।
पृथु को वे भाव सहज समझ में आ गये। वह बोल उठे “नेटवर्क तो आ नहीं आ रहा है तो आपका ध्यान कहाँ है पापाजी।“ वह एक वाक्य ही पर्याप्त था, मोबाइल जेब में गया और पूरा ध्यान छुट्टी पर, बच्चों पर, गोवा पर और सबके सम्मिलित आनन्द पर।
बच्चों की छुट्टियाँ श्रीमतीजी के हाथ में तुरुप का इक्का होती हैं, आपका हारना निश्चय है। लहरों की तरह उछाले जाते, उसके पहले ही हमने गोवा चलने का प्रस्ताव जड़ दिया। सब हक्के बक्के, संभवतः विवाह के १४वें वर्ष में सब पतियों के ज्ञानचक्षु खुल जाते हों। लहरों के साथ खेलने के लिये भला कौन सहमत न होगा, गोवा-गमन को हमारा निस्वार्थ उपहार मान हमें स्नेहिल दृष्टि में नहला दिया गया, यह बात अलग थी कि हमने भी वहाँ पर अपने एक बालसखा से मिलने की योजना बना ली थी, वह भी बिछड़ने के २५ वर्ष के बाद।
पिछली यात्राओं में चर्च आदि देखे होने के कारण हमने गोवा और उसके बीचों पर निरुद्देश्य घूमने का निश्चय किया। हमें तो लग रहा था कि हम आदर्श पर्यटक के गुण सीख चुके हैं अतः हमारे द्वारा उठाये आनन्द का अनुभव अधिकतम होगा, पर इस यात्रा में भी कुछ सीखना शेष था, वह भी अपने पुत्र पृथु से।
यद्यपि हम छुट्टी पर थे पर फिर भी कार्य का मानसिक भार कहीं न कहीं लद कर साथ में आ गया था। बच्चों को छुट्टी में पढ़ने के लिये कहना एक खुला विद्रोह आमन्त्रित करने जैसा है, पर हम लोगों के लिये छुट्टी में भी अपने कार्यस्थल से जुड़ाव स्वाभाविक सा लगता है। लगता है कि हम सब किसी न किसी जनम में एटलस रहे होंगे और पृथ्वी के अपने ऊपर टिके होने की याद हमें रह रहकर आती है। या ऐसा हो कि हम पतंगनुमा मानवों को कोई डोर आसमान पर टाँगे रहती है और उस डोर के नहीं रहने पर हमारी अवस्था एक कटी पतंग जैसी हो जाती है, समझ में नहीं आता हो कि हम गिरेंगे कहाँ पर।
पृथु को वे भाव सहज समझ में आ गये। वह बोल उठे “नेटवर्क तो आ नहीं आ रहा है तो आपका ध्यान कहाँ है पापाजी।“ वह एक वाक्य ही पर्याप्त था, मोबाइल जेब में गया और पूरा ध्यान छुट्टी पर, बच्चों पर, गोवा पर और सबके सम्मिलित आनन्द पर।
मोबाइल, अक्सर ध्यान को मोबाइल रखता है.
ReplyDeleteगोवा मुबारक! नया वर्ष मुबारक!
ReplyDeleteहमारा ध्यान कहीं भी हो पर बच्चों का ध्यान हमेशा हम पर होता है.......
ReplyDeleteसही कहा ध्यान कहा है पापा जी
ReplyDelete......नववर्ष आप के लिए मंगलमय हो
अग्रिम बधाइयाँ....!
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
happy holidays .... duniya apni aulad se hi niruttar hui hai
ReplyDeleteअच्छा ही रहा कि मोबाइल का नेटवर्क गया .... नए वर्ष की शुभकामनायें
ReplyDeleteबहोत अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढकर ।
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
"ध्यान कहाँ था" का समुचित उत्तर नहीं दिया आपने, खैर गोवा में ध्यान बाँट ही जाता है अक्सर..
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाएं.....
बहोत अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढकर ।
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
आप तो घूम लिए,हम बैठे ही रह गए.....ब्लॉगिंग के सहारे !
ReplyDeleteअच्छा हुआ नेटवर्क ध्वस्त रहा ,कम से कम छुट्टियाँ तो चैन गुजरी होंगी|
ReplyDeleteनव वर्ष की पूर्व संध्या पर हार्दिक शुभकामनाएँ
भारतीय काम के समय आनन्द की सोचता है और आनन्द के समय काम की।
ReplyDelete"टिप्स हिंदी" में ब्लॉग की तरफ से आपको नए साल के आगमन पर शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteटिप्स हिंदी में
Wow Goa. Hope you are having a gala time out there with family!! Your son looks super cute!!
ReplyDeleteGod bless and a very Happy New Year!
वैसे ताऊ बनने पर लोग सीरियस हो जाते है :) खैर, बधाई आपको !
ReplyDeleteहर कैबिनेट में फिट होने वाले लोग हर घर में भी होते हैं! :)
ReplyDeleteबच्चा बड़ा होनहार है, नेटवर्क प्रकरण होनहार विरबान के चिकने पत्तों की तरह है.
सबसे बढ़िया है मोबाइल को सालेंट पर रख छोड़ना...फिर दिन में एक आध बार देख लेना अगर बहुत ज़रूरी हो तो.
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteनूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ मेरे ब्लॉग "meri kavitayen " पर आप सस्नेह/ सादर आमंत्रित हैं.
रोचक विवरण ....बच्चे भी सही राह दिखाते हैं कभी ...!!
ReplyDeleteगोवा के मनोरम तट का आनंद लीजिये . नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाये.
ReplyDeleteगोवा में ध्यानाकर्षण के लिए विभिन्न साधन उपलब्ध है इसलिए दृश्य इन्द्री पर संयम तो कम से डगमगा ही जाता है..मगर बात यही तक रहे तो अच्छा है....
ReplyDeleteहिन्दू नव वर्ष की अग्रिम बधाइयाँ...
बहुत सुन्दर. हम्पी के बारे में आपके लेख का इंतज़ार रहेगा. सीप की रंगोली बड़ी प्यारी लगी. कटी हुई पतंग की स्थिति सौभाग्य से ही मिलती है. काश वह आईफोन भी न रहता.
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा पापाजी का ध्यान भटकना नहीं चाहिए ... नववर्ष की अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
ReplyDeleteयह बात भी उनकी ठीक है .जब छुट्टियाँ मनाने गये हैं उन के साथ तो मन से भी उन्हीं के साथ रहना उचित है !
ReplyDeleteनव-वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनायें, पूरे परिवार सहित ,आपको !
यह बात भी उनकी ठीक है .जब छुट्टियाँ मनाने गये हैं उन के साथ तो मन से भी उन्हीं के साथ रहना उचित है !
ReplyDeleteनव-वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनायें, पूरे परिवार सहित ,आपको !
बढ़िया पोस्ट है ,रिश्तों को सहेजने का सरल सुगम उपाय बताया है आपकी पोस्ट ने|
ReplyDeleteBache vo sab jan lete hain vo ham chupana chaahte hain ... Gova ka Anand lijiye ...
ReplyDeleteAapko aur pariwar mein sabhi ko nav varsh ki hardik shubh kamnayen ....
सही तो कहा बेटे ने…………:)))……आगत विगत का फ़ेर छोडें
ReplyDeleteनव वर्ष का स्वागत कर लें
फिर पुराने ढर्रे पर ज़िन्दगी चल ले
चलो कुछ देर भरम मे जी लें
सबको कुछ दुआयें दे दें
सबकी कुछ दुआयें ले लें
2011 को विदाई दे दें
2012 का स्वागत कर लें
कुछ पल तो वर्तमान मे जी लें
कुछ रस्म अदायगी हम भी कर लें
एक शाम 2012 के नाम कर दें
आओ नववर्ष का स्वागत कर लें
छुट्टीयां तो बच्चे ही माना सकते हैं.. वैसे आपका नेटवर्क से बाहर होना भी अचा रहा.
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनायें
संभवतः विवाह के १४वें वर्ष में सब पतियों के ज्ञानचक्षु खुल जाते हों।
ReplyDeleteविचारणीय बात..
मोबाइल को जेब मने ही रखिये और छुट्टियों का आनंद लीजिए.
नव वर्ष यूँ ही आनंददायक रहे.
अन्तरंग प्रसंग की बेहतरीन झांकी .हमारी लिस्ट में भी गोवा और बनारस देखना बाकी है .वरना कहाँ कहाँ न घूमे हैं हम .नव वर्ष मुबारक हो मय परिवार .ताऊ बनने पर बधाई .
ReplyDelete@हम छुट्टी पर थे पर फिर भी कार्य का मानसिक भार कहीं न कहीं लद कर साथ में आ गया था।
ReplyDeleteसर मानसिक भार छुट्टियों में मान्य नहीं होता, आप कैसे ले गए.
बहुत बढ़िया....नववर्ष आगमन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteइस मौसम में गोवा का आनंद अप्रतिम है..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
ReplyDeleteWell written...
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति...नववर्ष की शुभकामनायें!!!!
ReplyDeleteरोचक पोस्ट।
ReplyDeleteनव वर्ष की अनंत शुभकामनाएं।
सही है...ऐसे समय भी निकलना आवश्यक है...जब न मोबाईल हो..न कम्प्यूटर....बस...जहाँ हैं वहीं के हम हैं..
ReplyDeleteनव वर्ष पर आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें।
-समीर लाल
पृथु...नाम तो बड़ा ही सुन्दर है!
ReplyDelete.........
परिवार के साथ छुट्टियों का आनंद लिजीयेगा..नए साल की अग्रिम शुभकामनाएँ.
ताऊ बनने पर आपको बधाई..
ReplyDeleteशुभकामनाएं!!
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDelete... तभी तो कहा जाता है कि दो कश्तियों में एक साथ पैर नहीं रखना चाहिए॥ अब छुट्टी मनाना है तो बस छुट्टी मनाइये और काम को कुट्टी कहिए :) नववर्ष की शुभकामनाएं॥
ReplyDeleteप्रवीण जी आपका यात्रा-वृतान्त पढना शुरु किया तो अन्त तक रोचकता के साथ पढा । पृथु की बात सुन कर मुझे याद आया कि जब हम पास होते और माँ कोई किताब पढतीं थी तो हमें बहुत बुरा लगता था । इसी तरह मेरे बच्चों को भी । आपको सपरिवार नववर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
ReplyDeleteअच्छा किया जो मोबाइल जेब में रख लिया। एके साधे सब सधै।
ReplyDeleteआशा है, बच्चों को कोई शिकायत नहीं रही होगी।
छुट्टियों का आनंद लीजिये. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteसारी चिंताएँ एक तरफ़ और परिवार के साथ छुट्टियाँ एक तरफ़ :)
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाएँ।
परिवार के साथ होने पर परिवार के साथ आनंद लेना ही श्रेयस्कर है - हमारे भतीजे सरकार के पापाजी!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteआपको व आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !!!
ReplyDeleteआपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाएँ.....
ReplyDeleteबच्चों की सुननी ही पड़ेगी.
ReplyDelete'नव वर्ष' आपको सपरिवार मंगलमय हो ,
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteपृथु को वे भाव सहज समझ में आ गये। वह बोल उठे “नेटवर्क तो आ नहीं आ रहा है तो आपका ध्यान कहाँ है पापाजी।“ वह एक वाक्य ही पर्याप्त था, मोबाइल जेब में गया और पूरा ध्यान छुट्टी पर, बच्चों पर, गोवा पर और सबके सम्मिलित आनन्द पर।
ReplyDeleteदेखा बच्चे कितने ज़बर्जस्त प्रेक्षक और दृष्टा होतें हैं .नव वर्ष मुबारक हो सपरिवार आपको .
पृथु भी ब्लॉगर होगा..ब्लॉगर नहीं तो फेसबुकिया कमालर होगा। खोजना पड़ेगा। पहली बार लेखन से ज्यादा पिता-पुत्र की तश्वीर पर मुग्ध हुआ हूँ।
ReplyDeleteसभी खुशियों के लिए बधाई। नववर्ष के लिए शुभकामनायें।
नववर्ष मंगलमय रहे।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति|
ReplyDeleteआपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ|
Praveen Ji aapko aur aapke parivaar ko naye varsh kii dheron shubhkaamnaein. Nice article.
ReplyDeleteENJOY GOA SIR..
ReplyDeleteकभी कभी बिना नेटवर्क के रहना भी ठीक ही होता है ...
ReplyDeleteनव वर्ष की बहुत शुभकामनायें !
गोवा वाकई बेहद खूबसूरत है... सपने में आता है अपुन ने अभी तक प्रत्यक्ष नहीं देखा... आज फिर आपकी पोस्ट पढ़ कर याद आ गया....
ReplyDeleteब्लॉग जगत मेँ एक समाचार पत्र जैसा भी संचालित हो गया है....
ReplyDeletehttp://indiadarpan.blogspot.com
छुट्टियाँ सार्थक कर आये
ReplyDeleteनया वर्ष मुबारक हो
बहुत अच्छी रचना .. नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को नए वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं !
ReplyDeleteयही है काम के प्रति निष्ठा और नैष्ठिक कर्म ,काम काम और काम हर जगह काम यहाँ दोनों तरह के मुलाजिम हैं कामकाजी और काम पाजी .
ReplyDeleteबढ़िया आलेख, हम भी ध्यान रखेंगे...
ReplyDeleteमोबाईल बंद ही रहे तो छुट्टियों का आनंद है :)
ReplyDeletevaah maja aa gaya goa ki sair ka vivran sunkar praveen ji aapki lekhni me koi jaadu sa hai jo bina kisi pause ke padhne par majboor karta hai.pic bhi bahut sundar hai bachchon ki ret me kalakari bhi sarahniye hai.kuch vyastta ke karan blog par der se pahunchi.aap goa ki yatra ke aur chitra bhi post me dikhaaiye.humari bhi purani yaaden taja ho jaayengi.
ReplyDeleteगोवा में अक्सर ध्यान अंतरध्यान हो जाता है
ReplyDeleteनए साल की हार्दिक शुभकामनाएं!
हम भी अब यही कहतें हैं जी भाई साहब -पलट तेरा ध्यान ध्यान है -अगली पोस्ट कहाँ है ?
ReplyDeleteनववर्ष आप के लिए मंगलमय हो...
ReplyDeleteतो गोवा में मनाया नव वर्ष । हमारी शुभ कामनाएं । एयर टेल की सेवाएं सचमुच ही बंद थीं पश्चिम भारत में ङम बी भुक्तभोगी रहे ।
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनायें!
ReplyDeleteपृथु.........ये नाम तो हमारे भतीजे का भी है :) ....बच्चे पापा के साथ छुट्टियों की कल्पना कर के ही खुश हो जाते हैं और पापा मोबाइल ,कम्प्यूटर और समाचारपत्र की पकड़ से बाहर हो जाएँ .... तब तो उनके लिए लाटरी लग जाती है .... वर्ष में कम-से-कम दो-तीन बार तो पृथु की ये लाटरी लग ही जाया करे यही दुआ है ...:)
ReplyDeleteApke blog follow karta hoon thanks to Manish Krishna, commenting for the first time after seeing your photo. You haven't change in last 15-16 years..Prathu is also looking like your. Happy new year.
ReplyDeleteIts Kids who teach/remind us to live in the moment.
ReplyDeleteIt was really nice having them over and my studio room still echos their chatter and their paintings are on my studio wall to inspire me :-) Thank you again. Hope to see you all again.
होता है-होता है अक्सर ई फोन जिनके पास हो उनके साथ तो ऐसा होना बहुत ही आम बात है :)
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