आशा नहीं पिरोना आता, धैर्य नहीं तब खोना आता,
नहीं कहीं कुछ पीड़ा होती, यदि घर जाकर सोना आता,
मन को कितना ही समझाया, प्रचलित हर सिद्धान्त बताया,
सागर में डूबे उतराते, मूढ़ों का दृष्टान्त दिखाया,
औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा,
घर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा,
अधिकारों की होड़ मची थी, जी लेने की दौड़ लगी थी,
भाँग चढ़ाये नाच रहे सब, ढोलक परदे फोड़ बजी थी,
आँखें भूखी, धन का सपना, चमचम सिक्कों की संरचना,
सुख पाने थे कितने, फिर भी, अनुपातों से पहले थकना,
सबके अपने महल बड़े हैं, चौड़ा सीना तान खड़े हैं,
सुनो सभी की, सबकी मानो, मुकुटों में भगवान मढ़े हैं,
जिनको कल तक अंधा देखा, जिनको कल तक नंगा देखा,
आज उन्हीं की स्तुति गा लो, उनके हाथों झण्डा देखा,
सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
जिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
आँसू बहते, खून बह रहा, समय बड़ा गतिपूर्ण बह रहा,
आज शान्ति के शब्द न बोलो, आज समय का शून्य बह रहा,
आज नहीं यदि कह पायेगा, मन स्थिर न रह पायेगा,
जीवन बहुत झुलस जायेंगे, यदि लावा न बह पायेगा,
मन का कहना कहाँ रुका है, मदमत बहना कहाँ रुका है,
हम हैं मोम, पिघल जायेंगे, जलकर ढहना कहाँ रुका है?
नहीं कहीं कुछ पीड़ा होती, यदि घर जाकर सोना आता,
मन को कितना ही समझाया, प्रचलित हर सिद्धान्त बताया,
सागर में डूबे उतराते, मूढ़ों का दृष्टान्त दिखाया,
औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा,
घर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा,
अधिकारों की होड़ मची थी, जी लेने की दौड़ लगी थी,
भाँग चढ़ाये नाच रहे सब, ढोलक परदे फोड़ बजी थी,
आँखें भूखी, धन का सपना, चमचम सिक्कों की संरचना,
सुख पाने थे कितने, फिर भी, अनुपातों से पहले थकना,
सबके अपने महल बड़े हैं, चौड़ा सीना तान खड़े हैं,
सुनो सभी की, सबकी मानो, मुकुटों में भगवान मढ़े हैं,
जिनको कल तक अंधा देखा, जिनको कल तक नंगा देखा,
आज उन्हीं की स्तुति गा लो, उनके हाथों झण्डा देखा,
सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
जिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
आँसू बहते, खून बह रहा, समय बड़ा गतिपूर्ण बह रहा,
आज शान्ति के शब्द न बोलो, आज समय का शून्य बह रहा,
आज नहीं यदि कह पायेगा, मन स्थिर न रह पायेगा,
जीवन बहुत झुलस जायेंगे, यदि लावा न बह पायेगा,
मन का कहना कहाँ रुका है, मदमत बहना कहाँ रुका है,
हम हैं मोम, पिघल जायेंगे, जलकर ढहना कहाँ रुका है?
जलेंगे तभी तो ढलेंगे !
ReplyDeleteआशाओं को जीवित रखना,जीवन में संचार रहेगा,
ReplyDeleteकुछ जग की ,कुछ मन की करना,जीवन सदाबहार रहेगा !!
शुभकामनाएँ !
मन का कहना कहाँ रुका है'
ReplyDeleteरूकना भी तो नहीं चाहिए ...
''एक पुरुष, भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह''
ReplyDeleteयदि घर जाकर सोना आता ...
ReplyDeleteया बेचैन होना नहीं आता ...
या दिमाग ही नहीं होता
या दिल ही नहीं होता ...
हर संवेदनशील व्यक्ति आजकल इसी वेदना से जूझ रहा है !
बहोत अच्छी रचना प्रवीण जी
ReplyDeleteनया हिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
Bahut sundar, gujre vakt kaa bhee adbhut varnan kiyaa hai !
ReplyDeleteऔरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा, घर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा
ReplyDeleteसर जी यही सच्चाई हैं
यही तो संसार की नियति है
ReplyDeleteऔरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा, घर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा,
ReplyDeleteयथार्थ को कहती पंक्तियाँ
सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है, जिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
सच और केवल सच ..
लग रहा है की सबके मन के भावों को इस रचना में समाहित कर लिया है ..
जीवन का सुन्दर चित्रण है इस कविता में... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteमन का कहना कहाँ रुका है,
ReplyDeleteमदमत बहना कहाँ रुका है,
हम हैं मोम, पिघल जायेंगे,
जलकर ढहना कहाँ रुका है?
mann ki nirantarta kaha ruki hai
वाह ! सुंदर रचना बेहतरीन प्रस्तुति !
ReplyDeleteजलकर ढहना कहाँ रुका है
ReplyDeleteयही शाश्वत सत्य है।
समय को शून्य पूरी गुबार लिए बहता है और बहा भी देता है ..
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली रचना !
ReplyDeleteआँसू बहते, खून बह रहा,
ReplyDeleteसमय बड़ा गतिपूर्ण बह रहा,
आज शान्ति के शब्द न बोलो,
आज समय का शून्य बह रहा,
गहन ..गंभीर रचना ...!!
आप शब्दों के शिल्पकार हैं हम जानते थे ई बात पहिले से ही , आप बार बार जना देते हैं हो ।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति
sateek marm par chot karti prastuti.
ReplyDeleteआपकी रचना में भाषा का ऐसा रूप मिलता है कि वह हृदयगम्य हो गई है।
ReplyDeleteबहुत ही ऊंचे पाए की रचना है यह बोध कथा सी जीवन को दृष्टा भाव से निहारती तौलती विश्लेषित करती सभी पात्रों को खंगालती समूचे परिवेश को ...
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम ... ।
ReplyDeleteआपके गीतों के तो प्रवाह में ही खो जाते हैं हम.
ReplyDeleteजीवन की परतों को मोहक रचना में पिरोया है ...
ReplyDeleteनव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
मन का कहना कहाँ रुका है,
ReplyDeleteमदमत बहना कहाँ रुका है,
हम हैं मोम, पिघल जायेंगे,
जलकर ढहना कहाँ रुका है?
प्रभावशाली रचना !
is sansar ki yeh hi niyati hai ..............
ReplyDeleteजिंदगी का फलसफा आपकी कविताओं में स्पष्ट नजर आता है.
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29 -12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... जल कर ढहना कहाँ रुका है ?
@ "औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा,
ReplyDeleteघर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा "
इन दोनों पाटों में पिसकर,जीवन का अर्थ समझ लेना
स्नेह,प्यार,ममता खोजे, बस यही कहानी जीवन की !
शुभकामनायें आपको !
जीवन भी है, दर्शन भी है
ReplyDeleteऔर समय का दर्पण भी है.
वाह ,कविता का सृजन काल भी यदि दें तो अच्छा रहेगा यद्यपि ऐसी कवितायें दिक्काल से निरपेक्ष कालजई होती हैं !
ReplyDeleteसत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
ReplyDeleteजिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
बहुत खूब सर!
सादर
सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
ReplyDeleteजिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
वाह क्या सच्चाई कही है...बहुत सुन्दर रचना|
बहुत उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteआज की हलचल में शामिल आपकी इस रचना ने दिल में भी हलचल मचा दी...
ReplyDeleteबहुत खूब...
सादर.
वाह !
ReplyDeleteसरस एवं सुन्दर.
ReplyDeleteA very realistic creation --Badhaii.
ReplyDeleteA very realistic creation --Badhaii.
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई बयां कर दी आपने
ReplyDeleteअपनों के आश्वासन भी मिल जायं तो बहुत बड़ी बात है अपनापन तो न जाने कहाँ खो दया
आज कीई इस भागदौड मे बहुत सुन्दर रचना
आभार
बहुत ही सुन्दर रचना.... वाह! वाह!
ReplyDeleteसादर बधाई...
औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा.......
ReplyDelete'आज नहीं यदि कह पायेगा, मन स्थिर न रह पायेगा,
ReplyDeleteजीवन बहुत झुलस जायेंगे, यदि लावा न बह पायेगा,'
- आवाज़ उठाना बहुत ज़रूरी है .
आशा नहीं पिरोना आता, धैर्य नहीं तब खोना आता,
ReplyDeleteनहीं कहीं कुछ पीड़ा होती, यदि घर जाकर सोना आता,
मन को कितना ही समझाया, प्रचलित हर सिद्धान्त बताया,
सागर में डूबे उतराते, मूढ़ों का दृष्टान्त दिखाया,
Gazab! Waise to har pankti gazab kee hai!
Naya saal bahut mubarak ho!
औरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा,
ReplyDeleteघर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा
यथार्थ कहती पंक्तियाँ
वर्तमान सामाजिक परिदृश्य का बेबाक चित्रण.
ReplyDeleteवर्षांत में एक और उत्तम रचना!!
ReplyDeleteप्रवीण भाई इस छंदबद्ध और उत्तम कोटि की काव्यात्मक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ
ReplyDeleteजीवन का सच्चा चित्रण दिखलाती रचना ...
ReplyDeleteसत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
ReplyDeleteजिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
sateek vyang.
सत्य वचन! सुन्दर कविता
ReplyDeleteसबके अपने महल बड़े हैं, चौड़ा सीना तान खड़े हैं,
ReplyDeleteसुनो सभी की, सबकी मानो, मुकुटों में भगवान मढ़े हैं,
ABSOLUTELY CORRECT WORDS,
NICE ONE
follow me on:
http://rhythmvyom.blogspot.com/
नव-वर्ष की शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteकुछ पंक्तियॉं तो बहुत ही प्रभावी हैं। अच्छी लगी कविता।
ReplyDeleteऔरों का अपनापन देखा, अपनों का आश्वासन देखा,
ReplyDeleteघर समाज के चक्कर नित ही, कोल्हू पिरते जीवन देखा, हम हैं मोम पिघल जायेंगें ,जलकर गलना कहाँ रुका है .यही जीवन चक्र है .मोम से फिर बनों मोमबत्ती फिर जलो पिघलो ढलो
बहोत अच्छी रचना कि है आपने प्रवीण जी ।
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
आँसू बहते, खून बह रहा, समय बड़ा गतिपूर्ण बह रहा,
ReplyDeleteआज शान्ति के शब्द न बोलो, आज समय का शून्य बह रहा,
सुंदर प्रस्तुति
vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....
बहुत सुंदर प्रस्तुती बेहतरीन रचना,.....
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाए..
नई पोस्ट --"काव्यान्जलि"--"नये साल की खुशी मनाएं"--click करे...
"मन को कितना ही समझाया, प्रचलित हर सिद्धान्त बताया,
ReplyDeleteसागर में डूबे उतराते, मूढ़ों का दृष्टान्त दिखाया,"
"मन का कहना कहाँ रुका है, मदमत बहना कहाँ रुका है,
हम हैं मोम, पिघल जायेंगे, जलकर ढहना कहाँ रुका है?"
sanvedanseelta ki parakashtha.....
khoobsoorat....!!
एक एक बात बहुत ही गुंढ अर्थ लिए हुए.... सुंदर प्रस्तुति. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर आनंदमय प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteप्रवीण जी, आपसे ब्लॉग जगत में परिचय होना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है.बहुत कुछ सीखा और जाना है आपसे.इस माने में वर्ष
२०११ मेरे लिए बहुत शुभ और अच्छा रहा.आपके सुवचन सदा ही बहुत प्रेरक होते हैं.
मैं दुआ और कामना करता हूँ की आनेवाला नववर्ष आपके हमारे जीवन
में नित खुशहाली और मंगलकारी सन्देश लेकर आये.
नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
उत्तम संदेश देती उम्दा रचना...
ReplyDeleteसत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
ReplyDeleteजिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
...........
हम हैं मोम, पिघल जायेंगे, जलकर ढहना कहाँ रुका है?
-
सत्य कथन है.
बहुत अच्छी लगी यह कविता.
छन्दहीन होते समय में जीवन-छन्द जगाती छान्दस कविता . प्रेरक कविता .
ReplyDeleteaapki is kavita ne nishabd kar diya.kya bhaav kya shabd sanyogen hai....laajabaab,bejod.
ReplyDeleteआज नहीं यदि कह पायेगा, मन स्थिर न रह पायेगा,
ReplyDeleteजीवन बहुत झुलस जायेंगे, यदि लावा न बह पायेगा,
......नमन !!!
सत्य वही जो कोलाहल है, शक्तियुक्त अब संचालक है,
ReplyDeleteजिसने धन के तोते पाले, वह भविष्य है, वह पालक है,
यही सत्य है और इसके आगे सत्य का कोई भी अस्तित्व नहीं है क्योकि आज वही सत्य है जो जितनी शक्ति से साथ बोलने की क्षमता रखता हो . मूल्यों की परिभाषाएं ऐसे ही बदलती रहेंगी.
बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteपिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
ReplyDeleteकई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (7) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
VERY
ReplyDeleteपरम सत्य कहा ;
ReplyDeleteयथार्य कहा जी
परम सत्य कहा जी ;
ReplyDeleteयथार्थ कहा है