बाज लगभग ७० वर्ष जीता है, पर अपने जीवन के ४०वें वर्ष में आते आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है। उस अवस्था में उसके शरीर के तीन प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं। पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है और शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं। चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन निकालने में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है। पंख भारी हो जाते हैं और सीने से चिपकने के कारण पूरे खुल नहीं पाते हैं, उड़ानें सीमित कर देते हैं। भोजन ढूढ़ना, भोजन पकड़ना और भोजन खाना, तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं। उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं, या तो देह त्याग दे, या अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे, या स्वयं को पुनर्स्थापित करे, आकाश के निर्द्वन्द्व एकाधिपति के रूप में।
जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं, तीसरा अत्यन्त पीड़ादायी और लम्बा। बाज पीड़ा चुनता है और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है। वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है, अपना घोंसला बनाता है, एकान्त में और तब प्रारम्भ करता है पूरी प्रक्रिया। सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार मार कर तोड़ देता है, अपनी चोंच तोड़ने से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं पक्षीराज के लिये। तब वह प्रतीक्षा करता है चोंच के पुनः उग आने की। उसके बाद वह अपने पंजे उसी प्रकार तोड़ देता है और प्रतीक्षा करता है पंजों के पुनः उग आने की। नये चोंच और पंजे आने के बाद वह अपने भारी पंखों को एक एक कर नोंच कर निकालता है और प्रतीक्षा करता पंखों के पुनः उग आने की।
१५० दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा और तब कहीं जाकर उसे मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान, पहले जैसी नयी। इस पुनर्स्थापना के बाद वह ३० साल और जीता है, ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ।
प्रकृति हमें सिखाने बैठी है, बूढ़े बाज की युवा उड़ान में जिजीविषा के समर्थ स्वप्न दिखायी दे जाते हैं।
पंजे पकड़ के प्रतीक हैं, चोंच सक्रियता की द्योतक है और पंख कल्पना को स्थापित करते हैं। इच्छा परिस्थितियों पर नियन्त्रण बनाये रखने की, सक्रियता स्वयं के अस्तित्व की गरिमा बनाये रखने की, कल्पना जीवन में कुछ नयापन बनाये रखने की। इच्छा, सक्रियता और कल्पना, तीनों के तीनों निर्बल पड़ने लगते हैं, हममें भी, चालीस तक आते आते। हमारा व्यक्तित्व ही ढीला पड़ने लगता है, अर्धजीवन में ही जीवन समाप्तप्राय लगने लगता है, उत्साह, आकांक्षा, ऊर्जा अधोगामी हो जाते हैं।
हमारे पास भी कई विकल्प होते हैं, कुछ सरल और त्वरित, कुछ पीड़ादायी। हमें भी अपने जीवन के विवशता भरे अतिलचीलेपन को त्याग कर नियन्त्रण दिखाना होगा, बाज के पंजों की तरह। हमें भी आलस्य उत्पन्न करने वाली वक्र मानसिकता को त्याग कर ऊर्जस्वित सक्रियता दिखानी होगी, बाज की चोंच की तरह। हमें भी भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरनी होंगी, बाज के पंखों की तरह।
१५० दिन न सही, तो एक माह ही बिताया जाये, स्वयं को पुनर्स्थापित करने में। जो शरीर और मन से चिपका हुआ है, उसे तोड़ने और नोंचने में पीड़ा तो होगी ही, बाज की तरह।
बूढ़े बाज तब उड़ानें भरने को तैयार होंगे, इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी, अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी।
(कुछ पाठकों ने बाज के जीवन की इस घटना पर संशय व्यक्त किया है। मैंने यह एक जगह पर पढ़ा था, इसकी तथ्यात्मक सत्यता या असत्यता प्रमाणित नहीं की जा सकती है। यदि यह कहानी भी हो तब भी सत्य से अधिक प्रभावी है। जीवन नवीन ऊर्जा की स्तुति करता है, नवीनता के लिये प्रयास और पीड़ा दोनो ही लगते हैं)
१५० दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा और तब कहीं जाकर उसे मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान, पहले जैसी नयी। इस पुनर्स्थापना के बाद वह ३० साल और जीता है, ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ।
प्रकृति हमें सिखाने बैठी है, बूढ़े बाज की युवा उड़ान में जिजीविषा के समर्थ स्वप्न दिखायी दे जाते हैं।
हमारे पास भी कई विकल्प होते हैं, कुछ सरल और त्वरित, कुछ पीड़ादायी। हमें भी अपने जीवन के विवशता भरे अतिलचीलेपन को त्याग कर नियन्त्रण दिखाना होगा, बाज के पंजों की तरह। हमें भी आलस्य उत्पन्न करने वाली वक्र मानसिकता को त्याग कर ऊर्जस्वित सक्रियता दिखानी होगी, बाज की चोंच की तरह। हमें भी भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरनी होंगी, बाज के पंखों की तरह।
१५० दिन न सही, तो एक माह ही बिताया जाये, स्वयं को पुनर्स्थापित करने में। जो शरीर और मन से चिपका हुआ है, उसे तोड़ने और नोंचने में पीड़ा तो होगी ही, बाज की तरह।
बूढ़े बाज तब उड़ानें भरने को तैयार होंगे, इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी, अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी।
(कुछ पाठकों ने बाज के जीवन की इस घटना पर संशय व्यक्त किया है। मैंने यह एक जगह पर पढ़ा था, इसकी तथ्यात्मक सत्यता या असत्यता प्रमाणित नहीं की जा सकती है। यदि यह कहानी भी हो तब भी सत्य से अधिक प्रभावी है। जीवन नवीन ऊर्जा की स्तुति करता है, नवीनता के लिये प्रयास और पीड़ा दोनो ही लगते हैं)
बाज पीड़ा चुनता है और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है।
ReplyDeleteअत्यंत ज्ञानवर्धक और चेतना व स्फूर्ति प्रदान करता ...बहुत बढ़िया आलेख ...!!बहुत लोगों के मन को नया उत्साह देगा ऐसा मेरा विश्वास है ...आज आपकी ये पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की है ...कृपया अपने विचारों से अवगत कराईयेगा ...!!abhar.
प्रेरणास्पद!
ReplyDeleteबाज के बारे में बेहद मह्त्वपूर्ण जानकारी मिली, उम्र की, सबसे बेहद बाद दर्दनाक महीने झेल कर फ़िर से कुछ वर्ष सब कुछ नया-नया कुदरत भी कमाल है।
ReplyDeleteआज तो दत्तात्रेय की याद आ गयी जिन्होंने २४ पशु पक्षियों को अपना गुरु मान लिया था .....बाज के सहारे जीवन के शैथिल्य को मिटाने और आकांक्षाओं के पुनर्जीवन का आह्वान करती पोस्ट!
ReplyDeleteअपनी असीमित ऊर्जा को पहचानना और उसे संरक्षित रखना बड़ा जीवन-कौशल है.बाज के बहाने हम उससे यह सीख ले सकते हैं.जिजीविषा किसी में भी कमाल का परिवर्तन ला सकती है.
ReplyDeleteउखाड़ कर रोपे गए पौधे अधिक मजबूत होते हैं.
ReplyDeleteकाश आदमी के पास उसके शरीर को भी बाज की तरह शरीर को नया करने की क्षमता होती..
ReplyDeleteupay hai par sadhana karna parega .swami vivekanadjaisa and gautam budhh jaisa
Deleteश्रीमान जितनी क्षमता इंसान मैं है उतनी किसी और मैं नही पर अपने अंदर के व्यक्तित्व को पहचानो
Deleteबहुत कुछ बताया ...
ReplyDeleteप्रेरणास्पद लेख
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पोस्ट. मुझे इस पोस्ट की ही जरुरत थी . धन्यवाद प्रवीण भाई
ReplyDeleteआपकी पोस्ट हृदयम पर लगा रहा हूँ प्रवीण जी
ReplyDeletehttps://www.facebook.com/groups/vijaysappatti/
बाज़ के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी दी आपने ... बहुत अच्छा लगा ..आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. मैं सोच रहा हूँ अब मुझे क्या शिक्षा लेनी चाहिए.
ReplyDeletebahut prabhaav shali prernadayak post.manav 50yrs ki umra ke baad shareer to naya nahi bana sakta kintu apne vradhdh vicharon me sudhaar jaroor kar sakta hai.tabhin use khushi bhi haasil hogi.baaj ke vishay me itni jaankari pahli baar mili.aabhar.
ReplyDeleteकहानी प्रेरणास्पद है, लेकिन शायद यह केवल एक कहानी है, सत्य नहीं।
ReplyDeleteबेहतरीन आलेख।
ReplyDeleteसादर
सही बात है, संतुलित परिवर्तन की गुंजाईश तो रखनी ही चाहिए जीवन में ! वैसे बुरा न माने तो बाज और गरूड दो अलग पक्षी है आपने इनके बीच ' या " शब्द इस्तेमाल किया है !
ReplyDeleteआपकी हर पोस्ट कितनी Inspirational होती है!!
ReplyDeleteकाश कि सभी बाज से प्रेरणा लेते और खुद को निखारने की कोशिश शुरू करें ।
ReplyDeleteइंसान बद्क़िस्मत है.
ReplyDeleteउसके सींग तो क्या, पूंछ तक नहीं उगती... एक वक्त गुजर जाने के बाद
क्या सचमुच हर बाज पक्षी ऐसा करता है? न भी करता हो तो भी आपके आलेख की कीमत घट नहीं जाती इच्छा, सक्रियता और कल्पना मनुष्य को अंतिम श्वास तक अर्थपूर्ण जीने के लिये आवश्यक है, बहुत बहुत बधाई व आभार इस सुंदर रचना के लिये...
ReplyDelete'भय बिन होय न प्रीत गुसांई' - रामायण सिखलाती है
ReplyDeleteराम-धनुष के बल पर ही तो सीता लंका से आती है
जब सिंहों की राजसभा में गीदड़ गाने लगते हैं
तो हाथी के मुँह के गन्ने चूहे खाने लगते हैं
केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को
अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है
और कला की नगरी मुंबई लोहू में सन जाती है
राजमहल के सारे दर्पण मैले-मैले लगते हैं
इनके ख़ूनी पंजे दरबारों तक फैले लगते हैं
इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है
पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है
पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में
चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में
ऊधम सिंह अब भी जीवित है ये समझाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||
ज्ञानवर्धक रचना
ReplyDeleteऊर्जा की स्तुति के लिए हर उपमा शिरोधार्य है .
ReplyDeleteसर्वथा नवीन है यह मेरे लिए...पर अथाह प्रेरणा मिली...शब्द /जीवन अंतरस्थल तक पहुंचा...
ReplyDeleteशब्दों में तो आभार नहीं व्यक्त कर सकती आपका...
साधुवाद !!!!
बहुत प्रेरक आलेख !
ReplyDeleteअंतिम क्षण तक सक्रिय और ऊर्जस्वित बने रहने की कोशिश तो मनुष्य कर ही सकता है .
इच्छा-शक्ति की ऊँची उड़ान ....
ReplyDeleteसार्थक आलेख |
ऊर्जा व स्फूर्ति दायक जीवन कौशल की प्रेरणा देते आलेख के लिये आभार।
ReplyDeleteबेहद सारगर्भित और प्रेरणादायी कथा/ सत्य जो भी हो.नई उर्जा को संचारित करती है यह पोस्ट आपकी.
ReplyDeleteअदभुद...अदभुद...
ReplyDeleteप्रतीकात्मक रूप से बड़ी गहरी बात कह गयी आपकी रचना...
बधाई.
सरकारी नौकरी वाले लोगों की ज़िन्दगी में यह सिच्युएशन आजकल साठवें वर्ष में आता है जब उसे चोंच, पंख और पंजे झाड़-उतारकर फिर एक नई ज़िन्दगी जीने की योजना बनानी पड़ती है, बनानी चाहिए।
ReplyDeleteसुन्दर, प्रेरणा दायक लेख.
ReplyDeleteप्रकृति हमें सिखाने बैठी है, बूढ़े बाज की युवा उड़ान में जिजीविषा के समर्थ स्वप्न दिखायी दे जाते हैं।
ReplyDeleteअगर यह कथा भी है तब ही प्रेरक और बोध कथा से कहीं आगे है .सकारात्मक ऊर्जा से भरी तन और मन दोनों को ऊर्जस्विता से भर्ती पोस्ट .
bahot achhe
ReplyDeleteबाज अपने जीवन में ऐसा करता है या नहीं यह तो पता नहीं। हमारी चोंच तो इस्तेमाल के पहले ही टूट चुकी थी और पंजों पर नाखून उगने ही नहीं दिए। फिर भी आजीविका चलती है और बेहतर।
ReplyDeleteकाला हंस नहीं देखा। इसका मतलब यह नहीं काला हंस नहीं होता।
ReplyDeleteबहुत प्रेरक...एक नयी उर्जा और चेतना प्रस्फुटित करता जीवन्त आलेख...आभार
ReplyDeleteबाज़ या फीनिक्स...अद्भुत!!
ReplyDeleteफिर एक और ज्ञानवर्धक प्रेरक आलेख। .आभार....
ReplyDeleteहाय! हम तो बूढे बाज़ भये :(
ReplyDeleteजानकारी पू्र्ण,अद्भुत पोस्ट।
ReplyDeleteतथ्य न सही, कहानी ही सही। है प्रेरक और प्रोत्साहित करनेवाली। मुझे तो यह व्यक्तिगत से आगे बढ कर अतिरिक्त रूप से उपयोगी होगी - अभिकर्ताओं को व्याख्यान देने में बडी सहायक होगी।
ReplyDeleteविशेष धन्यवाद।
बाज के प्रतीक से जीवन का अत्यंत सार्थक मूलमंत्र बता दिया ........
ReplyDeleteप्रेरक बाज।
ReplyDeleteबाज के बारे में रोचक जानकारी देने के लिए,....बहुत२ आभार,..काश,...इंसान भी ऐसा कर पाता,.....बेहतरीन पोस्ट
ReplyDelete"काव्यान्जलि"--नई पोस्ट--"बेटी और पेड़"--click
भले ही यह कहानी हो ..लेकिन उर्जावान और प्रेरणादायक है .. और यदि सच है तो एक नयी जानकारी मिली ... आभार
ReplyDeletebaj ki kahani me ak mahatvpoorn upyogi sandesh hai... abhar pandey ji mere blog pr apka amantran hai .
ReplyDeletebaj ki kahani me ak mahatvpoorn upyogi sandesh hai... abhar pandey ji mere blog pr apka amantran hai .
ReplyDeleteयहाँ से हमेशा ही कुछ सीख कर जाती हूँ!
ReplyDeleteसुख का जन्म पीड़ा की कोख से होता है.बाज़ के बहाने जीवन को लय-ताल में रखने की प्रेरणा.
ReplyDeleteprernaa mili. mai bhee baaz kee us umr me aa chukaa hoon jisme mujhe change over karanaa hee chaahiye
ReplyDeleteBahut sundar kahani...achhi prerana deti hai.
ReplyDeleteआप सभी को क्रिसमस की बधाई ...हो सकता है सेंटा उपहार लेकर आपके घर भी पहुँच जाये, सो तैयार रहिएगा !!
क्षमा कीजिये, मैने संशय नहीं व्यक्त किया। मैं पॉज़िटिव हूँ कि बाज़ और गरुड़ के जीवन में ऐसा कुछ नहीं होता है। यह भी चेन ईमेल द्वारा फैलाये गये झूठों में से एक है। हाँ, इसमें कोई शक़ नहीं कि सन्देश प्रेरक है।
ReplyDeleteबाज़ जाने किस तरह हमको ये समझाता रहा ,
ReplyDeleteक्यों परिंदों के दिलों से उसका डर जाता रहा .जबसे राजनीति में बाज़ की घुसपैंठ हुई है असली बाज़ सकते में हैं .एक तरफ उसकी जिजीविषा और दूसरी तरफ राजनीति के बाज़ की बाजीगरी जाल साजी .किसका अनुसरण किया जाए .
अगर ये सत्य घटना है तो निश्चित ही प्राकृति की बहुत बड़ी दें है ये बाज़ ... जो न सिर्फ जीवन की प्रेरणा देता है ... सही निर्णय की क्षमता भी ...
ReplyDeleteप्रेरक लेख। सच है जीवन के संघर्ष में गतिशील व सफल रहने हेतु हमें स्वयं को निरंतर पुनर्स्थापित करते रहने,नये संकल्प,नये कौशल व नवउर्जा की आवश्यकता रहती है।
ReplyDeleteप्रकृति हमें सिखाने बैठी है, बूढ़े बाज की युवा उड़ान में जिजीविषा के समर्थ स्वप्न दिखायी दे जाते हैं।
ReplyDeletesatya kathan aadami ke saath kuch aaisa hi hota hai...
jai baba banaras...
बड़ा दिन मुबारक नव वर्ष की पूर्व वेला भी .शुक्रिया आपका उत्साह वर्धन के लिए .
ReplyDeleteबहुत प्रेरणादायी....एक नव उर्जा का संचार तो मात्र पठन से हो गया....कुछ प्रयोग करने होंगे...
ReplyDeleteनिश्चित ही बेहतरी की तरफ ले जायेगा यह बाज सूत्र!!!
आपका बहुत आभार!!
ज्ञानवर्धक...
ReplyDeleteयह पोस्ट दिनभर दिमाग से चिपकी रही। दुबारा चला आया बाज सूत्र लेने।
ReplyDeleteनई ऊर्जा प्रदान करता सारगर्भित आलेख
ReplyDeleteआभार
मुर्दे में भी जान देने वाली पोस्ट...
ReplyDeleteएक बैल भी होता है...जैसे जैसे बूढ़ा होता जाता है, चारा ज़्यादा मांगता है, और काम के नाम पर ना में मुंडी हिलाता रहता है...
जय हिंद...
ज्ञानवर्धक एवं विचारणीय।
ReplyDeleteजीवन में सब कुछ कभी भी खत्म नहीं होता है .खत्म होती है जिजीविषा ,जीवन संघर्ष चुका और जीवन गया .मैंने कॉफ़ी पहले कहीं पढ़ा था रशिया में कई ऐसे इलाके हैं जहां सौ सवा सौ ढेढ़ सौ साला लोग मज़े से रहतें हैं .एक मर्तबा फिर इनकी मुक्तावली उगने बढ़ने लगती है केश राशि भी .बाज़ इसे सायास प्रयत्न पूर्वक हासिल करता है लेकिन अपने शिकारी स्वभाव के साथ समझौता नहीं करता .ताज़ा शिकार करके खाता है .आपका हरेक लेख बारहा पढने से ताल्लुक रखता है .निबंधात्मक होता है .बधाई नूतन वर्ष की .
ReplyDeleteयदि वैज्ञानिक न भी हो तो भी प्रेरक है और संदेहास्पद तो बिलकुल नहीं
ReplyDeleteएक सबक देती हुई पोस्ट ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
kai karnovash aabhasee jagat se tatsthata rahee aaj aapke sabhee choote aalekh pad dale aisaa laga jaise hava ka tazaa jhonka man aangan mahaka gaya ho.
ReplyDeleteaabhar .mac book ke sath I pad bhee ho to sone me suhaga .
aapke lateset lekh to badiya seekh de gaya......
Aabhar .
पुनर्विस्थापन बेहद पीड़ादायक होता है |आपकी पोस्ट जिजीविषा को आली\ओकीत करती है
ReplyDeleteकथा- भाषा- प्रस्तुतीकरण और निष्कर्ष सभी बेहद प्रेरणाप्रद और प्रभावशाली हैं प्रवीण जी शत शत अभिननदन बल्कि सही कहूँ तो शत शत अभिवादन स्वीकर करें -- पक्षियों को भी द्विज कहते हैं फिर जन्म लेने वाले - मनुष्य भी दैवी सम्पदा को प्राप्त है -चाहे तो गैरज़रूरी का मोह तयाग कर जीवन की दिशा और अनुभूति के आयाम बदल सकता है - इसके भी उदाहरण हैं -- सिद्धार्थ एक ही शरीर में बुद्ध हुये और वर्धमान एक ही शरीर में महावीर - कालिदास की चेतना का भी गुणधर्म बदल गया था और तुलसी और वाल्मीकि ने भी अपने जीवन में त्याज्य को त्याग कर ईश्वरीय अनुभूतियाँ प्राप्त की थी -- बहुत ही सुन्दर आलेख और बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण !!
ReplyDeleteप्रेरक बाज सूत्र ! आज इस पोस्ट का अंश हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान में आया।
ReplyDeleteकम उम्र में बहुत अनुभव की बातें. सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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चालीस पार का बाज बूढ़ा हो जाता है... जवानी पाने के लिये जो करे वह उसकी मर्जी... हमें क्या... :)
अपन तो चालीस पार होने पर ही अब जवानी की ओर बढ़ रहे हैं...उस से पहले तो बचपना चल रहा था अपना... :)
...
आपका बाज तो फिर बाजी मार ले गया....
ReplyDeleteबिल्कुल नयी जानकारी है मेरे लिए, पर बहुत प्रेरणा मिली। ये पोस्ट तो सहेज कर रखने वाली है।
ReplyDeleteप्रेरणास्पद पोस्ट!
ReplyDeletepata hi nahi tha sir ki baaz aisa karta hai....ye to ekdam nai baat hai mere lie....
ReplyDeleteयानि चिंता की बात नजदीक आ रही है....... बिन पीड़ा के प्राप्ति कहाँ. बाज के माध्यम से अच्छा सन्देश.
ReplyDeleteइस बार भी लीक से हटकर बातें बतिया गए आप
ReplyDeletetruly inspirational Praveen ji...I really like such articles.
ReplyDeleteबाज के बारे में बहुत ही विस्तृत जानकारी दे डाली आपने जो किसी को नहीं थी। प्रेरणा देती पोस्ट
ReplyDeleteamazing ...good one..
ReplyDeletelearned a lot about new things...
wish u a happy new year.
apni zindagi men halaton ka samna karne ki himmat deta hai ye post..
ReplyDeletebahut prerak aur oorjadayak kahani hai...........
ReplyDeleteबेहतरीन प्रेरणादाई आलेख ..... रोचक जानकारी .....
ReplyDeleteरोचक जानकारी
ReplyDeleteरोचक जानकारी
ReplyDeleteमैंने ये कहानी तब पड़ी जब हालात बड़े बाज से हो गये थे l यदि यह कहानी भी हो तब भी सत्य से अधिक प्रभावी है। जीवन नवीन ऊर्जा की स्तुति करता है, नवीनता के लिये प्रयास और पीड़ा दोनो ही लगते हैं l
ReplyDeleteइस कहानी का नायक ' बाज़ ' बिलकुल ठीक चुना गया , किसी और पंछी में ये सामर्थ्य कहाँ !
ReplyDeleteबेहतरीन प्रेरणादाई आलेख .. रोचक जानकारी
ReplyDeleteबेहतरीन प्रेरणादाई आलेख .. शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteAdeline