कितना बड़ा आश्चर्य है कि जहाँ एक ओर मन को सदा ही नयापन सुहाता है वहीं दूसरी ओर वह किसी के बारे में पुरानी धारणाओं को इतना दृढ़ कर लेता है कि उसमें कुछ नया देखने के लिये शेष बचता ही नहीं। मन ऊबने लगता है पर पुरानी धारणायें नहीं त्यागता, पति पत्नी घंटों चुपचाप बैठे रहते हैं पर कोई नया शब्द नहीं बोलते हैं, किसी की बात में कुछ नयापन ढूढ़ने के स्थान पर उसके बारे में वक्र टिप्पणी तैयार करने लगता है मन। पुराना छोड़ नहीं पाता और नये के लिये तरसता रहता है मन।
प्रकृति के पास मन के लिये पर्याप्त आहार है। प्रकृति में नित नया घटता ही रहता है, पेड़ों में नित कोपलें फूटती हैं, पुष्प खिलते हैं, फल रसपूर्ण हो रंग बदलते हैं। मानव मन में भी सृजनात्मकता गतिमान होती है, नये विचार कौंधते है। बच्चों का खिलखिलाना, चिडियों का चहकना, झमझम बारिश का बरसना, सूरज का लालिमामय हो सहसा उगना और अस्त हो जाना, सब हमारे आस पास हो रहे नयेपन के सुन्दर संकेत हैं। भविष्य का अनिश्चय अपने आप में ही एक नयापन है हम सबके लिये। जब सब ओर सब कुछ हर पल बदल रहा है तो ऊब कैसी और किससे।
क्या पहले से ही इतना भर लिया है हमने कि नये के लिये कोई स्थान ही नहीं? क्या पहले से भरा हुआ इतना सड़ने लगा है कि उसमें नकारात्मकता व ऊब की गंध आने लगी है? पूर्वाग्रहों का ग्रहण हमारे जीवन उत्सव पर काली छाया डालकर तो नहीं बैठा है? क्या पहले से ही व्यस्त हमारी इन्द्रियों में भविष्य की संभावनायें अस्तप्राय हैं।
कहने को तो प्रेमभरी एक दृष्टि ही सक्षम होती श्रंगार का संवाद ढोने में। किसी के सर पर धीरे से फिराया गया हाथ जीवन भर का सहारा बताने में समर्थ होता। आँख बन्द करते हुये सर हिला देना आश्वासन के सारे अध्याय कह जाता। शब्दों से हमने उन भावों का गाढ़ापन कम कर दिया है। विश्वास को दृढ़ मानने के लिये शब्दों में उसे व्यक्त करने की परम्परा हमारी असहजता का आधार है। सुबह शाम अपने प्रेम की शाब्दिक अभिव्यक्ति की आदत बना चुके युगल भावों और शब्दों पर बराबर का अविश्वास किये बैठे हैं।
उत्साह से किसी कार्य में लगना और शीघ्र ही उससे ऊब जाना आधुनिकता की नियति बन गयी है। यदि तुलना की जाये तो पेट भरे हुये व्यक्ति को नया व्यंजन अच्छा तो लगता है पर वह उससे शीघ्र ही ऊब जाता है। स्वाद के लिये भूख लगनी आवश्यक है। नयापन हर क्षण में विद्यमान है पर उसे पूरा सहेज पाने के लिये जो भूख हो उसका प्रकटीकरण उस कार्य में हमारे शत प्रतिशत जुड़ाव से हो।
एक प्रयोग करें। व्यवहार की सारी कृत्रिमता रात भर ओढ़ी हुयी चादर के साथ ही बिस्तर पर छोड़कर उठें, अपने पूरे पूर्वाग्रह स्नान करते समय बहा दें, सुबह से शाम तक प्रयासपूर्वक भावों को व्यक्त करने के लिये शब्दों से अधिकतम बचें, अपने हर कार्य, हर संवाद, हर स्पर्श पर शत प्रतिशत ध्यान दें। हो सकता है कि ऊर्जा थोड़ी अधिक लगे, आप वो न लगें जो आप हैं, अन्य आप पर भृकुटियाँ ताने, संभव है हँसें भी, हो सकता है कि आपको बहुत अटपटा भी लगे, असहज भी लगे, पर दिन को विशेष मानकर यह निभा डालिये।
रात को सोते समय आपको पुनः आश्चर्य होगा, पर इस बार आश्चर्य का विषय भिन्न होगा। तब आपके लगेगा कि एक दिन भर में कितना कुछ नया है, मन के बन्द कपाट हमें वंचित कर देते हैं वह सब पाने से। इस जीवन के लिये प्रकृति कितने दृश्य समेटे बैठी है, हम ही थेथर की तरह आँख बन्द किये बैठे हैं। जीवन का व्यर्थ किया समय आये न आये पर हर व्यक्ति, हर संबंध में नयापन और रोचकता से भरा दिखेगा भविष्य। घर के कंकड़ गिनने से ध्यान हटेगा तब बाहर बिखरे माणिकों पर दृष्टि पड़ेगी।
बस आप हर क्षण को अपना शत प्रतिशत देने की ठान तो लें।
क्या पहले से ही इतना भर लिया है हमने कि नये के लिये कोई स्थान ही नहीं? क्या पहले से भरा हुआ इतना सड़ने लगा है कि उसमें नकारात्मकता व ऊब की गंध आने लगी है? पूर्वाग्रहों का ग्रहण हमारे जीवन उत्सव पर काली छाया डालकर तो नहीं बैठा है? क्या पहले से ही व्यस्त हमारी इन्द्रियों में भविष्य की संभावनायें अस्तप्राय हैं।
कहने को तो प्रेमभरी एक दृष्टि ही सक्षम होती श्रंगार का संवाद ढोने में। किसी के सर पर धीरे से फिराया गया हाथ जीवन भर का सहारा बताने में समर्थ होता। आँख बन्द करते हुये सर हिला देना आश्वासन के सारे अध्याय कह जाता। शब्दों से हमने उन भावों का गाढ़ापन कम कर दिया है। विश्वास को दृढ़ मानने के लिये शब्दों में उसे व्यक्त करने की परम्परा हमारी असहजता का आधार है। सुबह शाम अपने प्रेम की शाब्दिक अभिव्यक्ति की आदत बना चुके युगल भावों और शब्दों पर बराबर का अविश्वास किये बैठे हैं।
उत्साह से किसी कार्य में लगना और शीघ्र ही उससे ऊब जाना आधुनिकता की नियति बन गयी है। यदि तुलना की जाये तो पेट भरे हुये व्यक्ति को नया व्यंजन अच्छा तो लगता है पर वह उससे शीघ्र ही ऊब जाता है। स्वाद के लिये भूख लगनी आवश्यक है। नयापन हर क्षण में विद्यमान है पर उसे पूरा सहेज पाने के लिये जो भूख हो उसका प्रकटीकरण उस कार्य में हमारे शत प्रतिशत जुड़ाव से हो।
बस आप हर क्षण को अपना शत प्रतिशत देने की ठान तो लें।
जेन बौद्ध क्षणवाद के चाय की चुस्की की तरह...
ReplyDeleteप्रकृति का नयापन हमसे अलग है.वह समानधर्मा तब होता है जब हम 'नया-वस्त्र' धारण करते हैं.
ReplyDeleteहमारा पुरानापन अनुभव के अर्थ में जहाँ हमें सीख देता है,वहीँ परंपरा और विकास के सन्दर्भ में जड़ता. इसलिए पुराने और नये दोनों का अलग महत्व है !
घर के कंकड़ गिनने से ध्यान हटेगा तब बाहर बिखरे माणिकों पर दृष्टि पड़ेगी।
ReplyDeleteसच है नया कुछ जीने समझने के लिए पहले मन को खाली करना आवश्यक है ..... अच्छा जीवन सूत्र लिए है पोस्ट......
हमने अपने आप को बहुत ही नकली बना लिया है। और अब खुद को खुद के भीतर से खुद का असली खोजना बेहद मुश्किल होता जा रहा है।
ReplyDeleteबस आप हर क्षण को अपना शत प्रतिशत देने की ठान तो लें।
ReplyDeleteसार्थक आलेख ....मन पर बहुत कुछ निर्भर करता है ...सकारात्मकता हर पल जीवन को बहुत कुछ नया देती है .पुराना तो ज़रूरी है क्योंकि उसी के आधार पर नए की रचना होती है ......बस मन ठान तो ले .....
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय ।
ReplyDelete'पुराना छोड़ नहीं पाता और नये के लिये तरसता रहता है मन।'
ReplyDeleteइस सूक्ति से वाक्य ने आलेख के अर्थ स्पष्ट कर दिए...!
आपका कोटि कोटि आभार... सुबह सुबह ऐसा ही कुछ पढ़ना चाहते थे... ऐसे ही कुछ जीने की चाह लिए उठे... अब मन प्रसन्न है!
जीवन हर पल नया है... उसे लेने का तरीका सही बताया आपने
ReplyDeleteमनुष्य का जीवन-मृगमरीचिका है,जो है वह कम है,जो नहीं है,वहां सपने हैं.रामायण-महाभारत भी इसी मृगमरीचिका का ही एक रूप है.
ReplyDeleteआपने सही कहा-बस आज हर क्षण को अपना शत प्रतिशत देने की ठान लें.
बचपन में नयापन ही ललचाता है क्योंकि उस समय पुराना कुछ नहीं होता और बुढ़ापे में पुराना ही सुकून देता है क्योंकि पुराना बहुत ज्यादा होता है।
ReplyDeleteअच्छा विचार पुंज है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है आपने ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteप्रकृति और हममें बस इस पूर्वाग्रही प्रवृत्ति का ही अंतर है ........
ReplyDeleteनिराशा जीवन के लिए दीमक की तरह है और धीरे धीरे इस से जीवन में मोह कम
ReplyDeleteहोने लगता है . जैसे भी वो निराशा के आवरण को जीवन पे हावी नहीं होने देना चाहिए.
एक सकारात्मक लेख.
मैंने हमेशा महसूस किया है और आज शत-प्रतिशत प्रमाणिकता से कह सकता हूँ की आपका चिंतन आपके ब्लॉग-नाम से शत-प्रतिशत साम्य रखता है............................. हर पोस्ट में परीपाटित दार्शनिक वितंडतावाद से इतर, मानवीय दौर्बल्य तजकर झंझावातों से टकराने के सूत्र यहाँ मिलतें है, चाहे आप उन्हें शब्द दें या ना दें ................ मैं प्रवीण पाण्डेय को जानता नहीं हूँ, पर जितना समझ सका हूँ उसका शत-प्रतिशत सार है ------
ReplyDeleteन दैन्यं न पलायनम्
एक प्रयोग करें। व्यवहार की सारी कृत्रिमता रात भर ओढ़ी हुयी चादर के साथ ही बिस्तर पर छोड़कर उठें, अपने पूरे पूर्वाग्रह स्नान करते समय बहा दें, सुबह से शाम तक प्रयासपूर्वक भावों को व्यक्त करने के लिये शब्दों से अधिकतम बचें, अपने हर कार्य, हर संवाद, हर स्पर्श पर शत प्रतिशत ध्यान दें। हो सकता है कि ऊर्जा थोड़ी अधिक लगे, आप वो न लगें जो आप हैं, अन्य आप पर भृकुटियाँ ताने, संभव है हँसें भी, हो सकता है कि आपको बहुत अटपटा भी लगे, असहज भी लगे, पर दिन को विशेष मानकर यह निभा डालिये....
ReplyDeletetough task but I will try for sure...
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N surf naya pan ... Safalta Bhi tabhi haath Aati hai jab kaary mein 100 pratishat diya jaay ....
ReplyDeleteकृत्रिमता का परित्याग कर नवीनता का सन्देश!!
ReplyDeleteसच है जीवन में नया कुछ करने व सीखने के लिए बहुत कुछ है.. उसके लिए एकाग्रता बहुत जरूरी है.बेहतरीन प्रस्तुति ।....
ReplyDeletepurana jahan khada ho jaata hai vahan se naya shuru hota hai jeevan chakra esa hota hai ki naya chakra lagakar bhi purane ke paas aakar thahrta hai kyunki uska apna mahatv hai.bhir bhi jeevan ko naye arth dene ke liye gatiman banaaye rakhne ke liye naye tatthyon ko bhi apnan jaroori hai.
ReplyDeletebahut umdaa aalekh humesha ki tarah...kuch na kuch naya...
पुराना छोड़ नहीं पाता और नये के लिये तरसता रहता है मन. क्या बात है-- सुन्दर विचारणीय सूत्र.
ReplyDeleteप्रवीण जी फुर्सत मिले तो कभी एक नज़र इधर भी, पीछे पीछे हम भी हैं लडखडाते से -
'kewaljoshib.blogspot.com'
बिल्कुल सही कहा,
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
संदेश उपयोगी है,पर अपनाना मुश्किल भी।
ReplyDeleteजीवन में नयापन लाने के लिए सार्थक सन्देश दिया है ..पर मन पीछे ही दौड़ता है ..
ReplyDeleteसर बहुत कुछ आधुनिक दर्शन में व्याप्त है !एक कहावत है - needy hurry and endless worry . gold will glitter day / night.
ReplyDeleteबस आप हर क्षण को अपना शत प्रतिशत देने की ठान तो लें……………सटीक और सार्थक सोच्।
ReplyDeleteशत-प्रतिशत ...
ReplyDeleteजे.कृष्णमूर्ति भी यही कहते हैं ‘फ़र्गेट पास्ट एक्स्पीरियंसेस’ तभी आपको नयापन दिखेगा। किसी सुंदर दृश्य को देखने में पहली बात जितना आनंद आता है उसे दुबारा देखने में नहीं आता!
ReplyDeleteघर के कंकड़ गिनने से ध्यान हटेगा तब बाहर बिखरे माणिकों पर दृष्टि पड़ेगी।
ReplyDelete-अध्यात्मिक मोड में चल रहे हैं आपके साथ. :)
प्रयास उचित सुझाया किन्तु इसके लिए भी अभ्यास करना होगा...
जय हो महाराज की!!
नए को अपनाना ही पड़ेगा. नया पुराने को अपने आप हटा देता है.
ReplyDeleteमौन में बड़ी शक्ति है. लेकिन इस शक्ति को काबू करना बड़ा मुश्किल.
तजुर्बा करने में कोई बुराई नहीं, कुछ न कुछ अच्छा ही मिलेगा.
आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपकी प्रतिक्रियायों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteपहले हर क्षण में शत-प्रतिशत लेना तो सीख लें , तो देना भी हो जाएगा .
ReplyDeleteसुंदर , सारगर्भित आलेख.
ReplyDeleteपुराना छोड़ नहीं पाता और नये के लिये तरसता रहता है मन...
ReplyDeleteगहन आलेख।
यह प्रयत्न करके देखते हैं ....
ReplyDeleteआभार आपका !
Life indeed is celebration.
ReplyDelete' मन के बन्द कपाट हमें वंचित कर देते हैं वह सब पाने से। इस जीवन के लिये प्रकृति कितने दृश्य समेटे बैठी है, हम ही थेथर की तरह आँख बन्द किये बैठे हैं।'
ReplyDelete- सचमुच पूर्वाग्रह-रहित दृष्टि ही हर पल नवीनता दिखा कर मन में पुलक भर सकती है .
पते की बात कही है आपने
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....बेहद सटीक..
ReplyDelete"मन के बन्द कपाट हमें वंचित कर देते हैं वह सब पाने से। "
सोचती हूँ ,आपकी सलाह मान ली जाये...
कल सुबह का इन्तेजार है...
पहले हम खुद को तो अच्छी तरह जान समझ लें ,नहीं तो ऐसे प्रयोग परीक्षण खुद पर ही भारी पड़ सकते हैं ? कोअहम कोअहम :)
ReplyDeleteविचलित करने वाली मानसिक परिस्थितियों से गुजरते इसे पढना बहुत सुकून दे रहा है !
ReplyDeleteइंन्स्पायर करने वाला लेख !
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग पर भी आ के देखो प्रवीण जी !
http://hindiduniyablog.blogspot.com/
एक बार फ़िर से धन्यवाद इंस्पायर करने वाला लेख लिखने के लिये
आज का विषय भी नया है और चिंतन भी. नयापन नयी उर्जा अवश्य देता है.
ReplyDeletebehaad khoobsurat baat kahi hai aapne.
ReplyDeleteकृत निश्चयः
ReplyDeleteरात को सोते समय आपको पुनः आश्चर्य होगा, पर इस बार आश्चर्य का विषय भिन्न होगा। तब आपके लगेगा कि एक दिन भर में कितना कुछ नया है, मन के बन्द कपाट हमें वंचित कर देते हैं वह सब पाने से। इस जीवन के लिये प्रकृति कितने दृश्य समेटे बैठी है, हम ही थेथर की तरह आँख बन्द किये बैठे हैं। जीवन का व्यर्थ किया समय आये न आये पर हर व्यक्ति, हर संबंध में नयापन और रोचकता से भरा दिखेगा भविष्य। घर के कंकड़ गिनने से ध्यान हटेगा तब बाहर बिखरे माणिकों पर दृष्टि पड़ेगी।
बहुत खूब निसी बासर यही तो विडंबना है जीवन की .पुराने विचारों से चिपके रहने का ओबसेशन .
बस आप हर क्षण को अपना शत प्रतिशत देने की ठान तो लें
ReplyDeletesums the mantra
‘फ़र्गेट पास्ट एक्स्पीरियंसेस’ तभी आपको नयापन दिखेगा। ---
ReplyDelete---यदि पास्ट को फ़ोर्गेट कर देगे तो कैसे पता चलेगा कि नया..नया है...
---पास्ट के अनुभव ही किसी भी नये विचार, वस्तु को नया समझकर उसे और अधिक कुशल ,हितकारी एवं कल्याकारी बनाने के लिये प्रयास करते हैं ...यही विकास है...पुरा व नूतन का समन्वय....
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ReplyDelete.
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सही है !
अपने सारे पूर्वाग्रहों से मुक्त हो देखें दुनिया को, तो हर किसी में कुछ नया, कुछ अनुकरणीय, कुछ सकारात्मक दिखेगा सभी को...
अच्छी सीख...
...
Very meaningful post Praveen Ji. Please write more such articles.
ReplyDeleteशत-प्रतिशत सत्य.
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDelete''प्रकृति के यौवन का शृंगार
ReplyDeleteकरेंगे कभी न बासी फूल'' [कामायनी].
दृढ़ता , सजगता ही जीवन की कुंजी है
ReplyDeleteबौद्ध सिद्धांत व सह वैज्ञानिक तथ्य भी लगता है कि हर नये पल के साथ हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व ही नवीन हो जाता है,यह परिवर्तन शास्वत है व परमाणु स्तर पर विरंतर हो रहा है। इसीलिये यदि कुछ सत्य हो तो मात्र वर्तमान क्षण।
ReplyDeleteकिसी के सर पर धीरे से फिराया गया हाथ जीवन भर का सहारा बताने में समर्थ होता। आँख बन्द करते हुये सर हिला देना आश्वासन के सारे अध्याय कह जाता।
ReplyDelete....हरेक पंक्ति एक सूत्र वाक्य..सकारात्मक सोच लिये बहुत प्रेरक प्रस्तुति...
जबकि सच यह है व्यक्ति नित बदलता रहता है जो कल था वह आज नहीं है व्यतीत फिर व्यतीत है वर्तमान नहीं है भले मूल स्वभाव न बदलता हो फिर भी उठ बैठ के भाव में तो बदल आता ही है दिखता भी है पर हम अपने सांचे लिए घूमते हैं सारी दिक्कत यह है .उसी में डालके देखते हैं व्यक्ति को .हमारा अपना तंग नजरिया हमें यथार्थ से काटे रहता है .यहाँ इमेजिज़ बन जाती हैं .ऊपर से कहा यह भी जाता है इमेजिज़ डाई हार्ड .
ReplyDeleteFully agree with u on this..
ReplyDeletewe always shout Bring change, or life is string of changes... but we averse the change most. Even the slight change in schedule .....
and then we're motivated to defend the status quo...
intriguing post... and a fantastic read as ever !!
सुदर रचना बधाई .
ReplyDeleteजीवन में नई और अच्छी चीजे जुड़ती जानी चाहिए और पुराना और अच्छा निरंतर रहना चाहिए लेकिन जीवन की दृष्टि हमेशा नई होनी चाहिए. बहुत अच्छी पोस्ट. काश इसे सरे नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति पढ़ और आत्मसात कर सके.
ReplyDeletesach hai sir.purana kachra saaf karna hi padega ab tabhi nai baton ke lie jagah banegi.....padhkar alag anubhav hua
ReplyDeleteak behatar chintan ....abhar.
ReplyDeleteकेवल प्रकृति ही ही नित नूतन होती है क्योंकि वह अविराम, गतिशील है। हमारा ठहराव ही बासीपन या सडांध बन कर सामने आता है।
ReplyDeleteनया वर्ष आने ही वाला है ऐसे में आपने इस पोस्ट के म्ध्यम से बहुत ही सार्थक संदेश दिया है परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है लेकिन इस नए परिवर्तन को अपनाने के लिए पूराने अवसादों को भुलाना या हटाना ही पड़ेगा...
ReplyDelete▬● अच्छा लगा आपकी पोस्ट को देखकर... साथ ही यह ब्लॉग देखकर भी अच्छा लगा... काफी मेहनत है इसमें...
ReplyDeleteनव वर्ष की पूर्व संध्या पर आपके लिए सपरिवार शुभकामनायें...
मेरे ब्लॉग्स की तरफ भी आयें तो मुझे बेहद खुशी होगी...
[1] Gaane Anjaane | A Music Library (Bhoole Din, Bisri Yaaden..)
[2] Meri Lekhani, Mere Vichar..
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