विश्व ने सदा ही अन्वेषकों को बड़ा मान दिया है, कुछ ने लुप्त प्रजातियाँ ढूढ़ निकाली, कुछ ने लुप्त सभ्यतायें, कुछ ने जीवाणुओं को तो कुछ ने पूरे के पूरे महाद्वीपों को ढूढ़ निकाला। आस्ट्रेलिया और अमेरिका न खोजे जाते तो विश्व का इतिहास और भूगोल, दोनों ही बदले हुये होते। जो भी ब्रह्माण्ड में बिखरा पड़ा है, उस बारे में हमारी उत्सुकता की प्यास बुझाने का कार्य करते हैं अन्वेषक। ज्ञान का विश्व इतना विशाल है कि कोई एक अन्वेषक कुछ विषयों से परे आपको संतुष्ट नहीं कर सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो ज्ञान-संतुष्टि के बाजार में माँग बहुत अधिक है, माँग पूरी करने वाले बहुत कम।
इस क्षेत्र में एक नया व्यापारी उभरा है, गूगल। यदि आपका बाजार व्यवस्था और व्यापारियों से विरोध है तो आप उसे कॉमरेड भी कह सकते हैं, पर उसका कार्य सारे ज्ञान का संग्रहण और व्यापार करना ही है और इस तथ्य पर हम सबकी सहमति निश्चयात्मक ही होगी। जैसे मोबाइल का नाम लेते ही आपके मन में नोकिया या एप्पल का नाम उभरता है उसी तरह ज्ञान का संदर्भ आते ही लोग गूगलाने लगते हैं।
तो क्या गूगल के पहले ज्ञान नहीं था? बिल्कुल था, पर थोड़े भिन्न स्वरूप में। पुस्तकों में था, बुजुर्गों के अनुभवों में था, गुरुजनों की मेधा में था, संस्कृति की परम्पराओं में था, हमारे संस्कारों में था, था ऐसे ही थोड़ा बिखरा हुआ सा। हमारे प्रश्न या तो तथ्यात्मक होते थे या निर्णयात्मक होते थे, उत्तर कहीं न कहीं मिल ही जाते थे, श्रम भले ही थोड़ा अधिक लग जाये। प्रश्न जितना गहराते थे, उत्तर उतने ही गम्भीर होते जाते थे। पीड़ा की निर्बल घड़ियों में हमारे ज्ञान के पारम्परिक स्रोत हमारे बिखरे अस्तित्व को एक स्थायी संबल दे जाते थे।
आज विदेशी महाव्यापारियों के आगमन से और उनके द्वारा खुदरा क्षेत्र पर होने वाले संभावित आक्रमण से आधा देश व्यथित है। पर ज्ञान के क्षेत्र में गूगल के द्वारा हमारे पारम्परिक ज्ञानस्रोतों के संभावित शतप्रतिशत अधिग्रहण से हम तनिक भी संशकित नहीं दिख रहे हैं। ज्ञान के क्षेत्र में सबका अधिकार है और सारी जानकारी किसी पर निर्भर हुये बिना मिलनी भी चाहिये। देखा जाये तो गूगल बौद्धिक स्वतन्त्रता का प्रतीक बनकर उतरा है, ठीक उसी तरह जिस तरह वालमार्ट आर्थिक लोकतन्त्र के राग आलाप रहा है।
गूगल का गणित जो भी हो पर गूगल के द्वारा गणित का गहन प्रयोग ही उसे वर्तमान स्थान पर ले आया है। ज्ञान के हर शब्द को गणितीय विधि से विश्लेषण कर उन्हें आगामी खोजों के लिये सहेज कर रखना ही गूगल की कार्यशैली है। किसी भी शब्द को खोज में डालते ही लाखों लिंक छिटक कर सामने आ जाते हैं, जिसमें हम अधिकतम पहले दस ही उपयोग में ला पाते हैं। कई मित्रों ने इस बात की सलाह दी कि किस तरह से खोज-शब्द डालने से निष्कर्ष सर्वाधिक प्रभावी होते हैं। कई बार यह सलाह काम आयी तो कई बार दसवें पन्ने तक पढ़ने का धैर्य। पहले कुछ निष्कर्षों में उनकी कम्पनी का नाम आ जाये, इसके लिये कम्पनियों में कुछ भी करने की होड़ लगी रहती है। गूगल किस लिंक को किस आधार पर वरीयता देता है, यह घोर गणितीय शोध का विषय है और यही उसका धारदार हथियार।
ज्ञान के किसी भी पक्ष को लेकर हमारी निर्भरता इतनी बढ़ गयी है कि छोटी छोटी बातों के उत्तर जानने के लिये हम कम्प्यूटर खोलकर बैठ जाते हैं और खो जाते हैं गूगल की अनगिनत गलियों में। कहीं एक दिन ऐसा न हो जाये कि हमारे ज्ञान-प्रक्रिया पर गूगल का एकाधिकार हो।
यहाँ तक तो ठीक है कि हम जो जानना चाहते हैं, जान जाते हैं। पर पता नहीं कितना और सम्बद्ध ज्ञान है जिसके बारे में हमें पता ही नहीं चल पाता है क्योंकि उसके बारे में हम कभी गूगल से पूछते ही नहीं, तो वह कभी बताता ही नहीं। मैं सगर्व कह सकता हूँ कि ज्ञान की बहुत सी अनुपम फुहारें मित्रों के द्वारा पता लगी हैं, न कि गूगल से। हाँ गूगल से उनके बारे में और जानकारी प्राप्त होती है।
ज्ञात के बारे में अधिक ज्ञान पर अज्ञात के बारे में मौन, गूगल का गणित बस यहीं पर ही गच्चा खा जाता है। ज्ञान की मात्रा तो ठीक है पर उसकी दिशा कौन निर्धारित करेगा? प्रसन्न रहने के ढेरों उपाय तो निश्चय ही गूगल बता देगा पर उसमें कौन सा आप पर सटीक बैठेगा, आपको ढंग से जानने वाले आपके शुभचिन्तक या आपके मित्र ही बता पायेंगे, अतः उनसे सम्पर्क में बने रहें। गूगल की गणितीय पहुँच उन क्षेत्रों में निष्प्रभ हो जाती है। सम्बन्धों के सम्बन्ध में गूगल का गणित निर्बन्ध हो जाता है।
तथ्यात्मक ज्ञान मिलने के बाद उन पर निर्णय लेने की समझ गूगल नहीं सिखा सकता। ज्ञान के परम्परागत स्रोत भले ही कई क्षेत्रों में गूगल से कमतर हों पर उसमें जो समग्रता हमें मिलती है, गूगल का गणित वहाँ नहीं पहुँच पाता है।
कृपया इस तर्क को खुदरा क्षेत्र से जोड़कर न देखा जाये, ज्ञान और सामान में कई असमानतायें भी हैं।
गूगल का गणित जो भी हो पर गूगल के द्वारा गणित का गहन प्रयोग ही उसे वर्तमान स्थान पर ले आया है। ज्ञान के हर शब्द को गणितीय विधि से विश्लेषण कर उन्हें आगामी खोजों के लिये सहेज कर रखना ही गूगल की कार्यशैली है। किसी भी शब्द को खोज में डालते ही लाखों लिंक छिटक कर सामने आ जाते हैं, जिसमें हम अधिकतम पहले दस ही उपयोग में ला पाते हैं। कई मित्रों ने इस बात की सलाह दी कि किस तरह से खोज-शब्द डालने से निष्कर्ष सर्वाधिक प्रभावी होते हैं। कई बार यह सलाह काम आयी तो कई बार दसवें पन्ने तक पढ़ने का धैर्य। पहले कुछ निष्कर्षों में उनकी कम्पनी का नाम आ जाये, इसके लिये कम्पनियों में कुछ भी करने की होड़ लगी रहती है। गूगल किस लिंक को किस आधार पर वरीयता देता है, यह घोर गणितीय शोध का विषय है और यही उसका धारदार हथियार।
ज्ञान के किसी भी पक्ष को लेकर हमारी निर्भरता इतनी बढ़ गयी है कि छोटी छोटी बातों के उत्तर जानने के लिये हम कम्प्यूटर खोलकर बैठ जाते हैं और खो जाते हैं गूगल की अनगिनत गलियों में। कहीं एक दिन ऐसा न हो जाये कि हमारे ज्ञान-प्रक्रिया पर गूगल का एकाधिकार हो।
यहाँ तक तो ठीक है कि हम जो जानना चाहते हैं, जान जाते हैं। पर पता नहीं कितना और सम्बद्ध ज्ञान है जिसके बारे में हमें पता ही नहीं चल पाता है क्योंकि उसके बारे में हम कभी गूगल से पूछते ही नहीं, तो वह कभी बताता ही नहीं। मैं सगर्व कह सकता हूँ कि ज्ञान की बहुत सी अनुपम फुहारें मित्रों के द्वारा पता लगी हैं, न कि गूगल से। हाँ गूगल से उनके बारे में और जानकारी प्राप्त होती है।
ज्ञात के बारे में अधिक ज्ञान पर अज्ञात के बारे में मौन, गूगल का गणित बस यहीं पर ही गच्चा खा जाता है। ज्ञान की मात्रा तो ठीक है पर उसकी दिशा कौन निर्धारित करेगा? प्रसन्न रहने के ढेरों उपाय तो निश्चय ही गूगल बता देगा पर उसमें कौन सा आप पर सटीक बैठेगा, आपको ढंग से जानने वाले आपके शुभचिन्तक या आपके मित्र ही बता पायेंगे, अतः उनसे सम्पर्क में बने रहें। गूगल की गणितीय पहुँच उन क्षेत्रों में निष्प्रभ हो जाती है। सम्बन्धों के सम्बन्ध में गूगल का गणित निर्बन्ध हो जाता है।
तथ्यात्मक ज्ञान मिलने के बाद उन पर निर्णय लेने की समझ गूगल नहीं सिखा सकता। ज्ञान के परम्परागत स्रोत भले ही कई क्षेत्रों में गूगल से कमतर हों पर उसमें जो समग्रता हमें मिलती है, गूगल का गणित वहाँ नहीं पहुँच पाता है।
कृपया इस तर्क को खुदरा क्षेत्र से जोड़कर न देखा जाये, ज्ञान और सामान में कई असमानतायें भी हैं।
'.....ज्ञान की बहुत सी अनुपम फुहारें मित्रों के द्वारा पता लगी हैं, न कि गूगल से। हाँ गूगल से उनके बारे में और जानकारी प्राप्त होती है।'
ReplyDeletewell said!
आपका ये आलेख आज नयी-पुरानी हलचल पर भी है ...! कृपया नयी पुरानी हलचल पर पधारकर हलचल की शोभा बढ़ाएं .आभार.
ReplyDeleteमायाजाल है
ReplyDeleteबौद्धिक स्वतंत्रता का प्रतीक बनकर उभरा गूगल कहीं न कहीं हमें बौद्धिक परतंत्रता के जाल में जकड़ चुका है ....सच है ज्ञात के बारे में सब कुछ उपलब्ध है, अज्ञात पर मौन .....
ReplyDeleteपर्दे के पीछे भले ही हज़ार कूटनितियां काम करती रहती हों एक बात तो तय है कि आज जानकारियां उपलब्ध करवाने में गूगलिंग को महत्व नकारा नहीं जा सकता
ReplyDeleteन सिर्फ ज्ञान, बल्कि सूचनाएं और जानकारियां भी सदैव लिखित से अधिक अलिखित और अलिखित से अधिक अनकही होती है. लिखित, संकलित और व्यवस्थित रूप में सहज उपलब्धता का अपना आकर्षण होता है.
ReplyDeleteआपकी बात में दम है....कई विचार उठते हैं इस दिशा में...
ReplyDeleteतकनीक से जीवन्तता की अपेक्षा ..? विज्ञान की बस इतनी ही उपयोगिता है कि वह समृद्धि देता है जो चरम मूल्य नहीं है.हम उसके ऊपर हैं.
ReplyDeleteसही है | गूगल देवता हर बात में सहायता नहीं कर सकता |
ReplyDeleteहम सहमत हैं.
ReplyDeleteभाई एक बात तो है गूगल जीवन तो आसान कर ही दिया है। पहले किसी रेफरेंस के लिए इतनी माथापच्ची करनी होती थी, पर गुगल बाबा हर मुश्किल को आसान कर देते हैं।
ReplyDeleteहां जी आपकी बातों से सहमत हूं कि ज्ञात के बारे में तो ठीक है, पर अज्ञात के बारे में बाबा खामोश है्।
ज्ञान के किसी भी पक्ष को लेकर हमारी निर्भरता इतनी बढ़ गयी है कि छोटी छोटी बातों के उत्तर जानने के लिये हम कम्प्यूटर खोलकर बैठ जाते हैं और खो जाते हैं गूगल की अनगिनत गलियों में। कहीं एक दिन ऐसा न हो जाये कि हमारे ज्ञान-प्रक्रिया पर गूगल का एकाधिकार हो।
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने.गूगल यांत्रिक रूप से
केवल वही ज्ञान उपलब्ध करा सकता है जो उस पर डाला गया हो.जरूरी नही वह सही और यथेष्ट ही हो.सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
सावधान!
ReplyDeleteगूगल गलत स्थानों पर भी पहुंचाता है।
'कहीं एक दिन ऐसा न हो जाये कि हमारे ज्ञान-प्रक्रिया पर गूगल का एकाधिकार हो।'
ReplyDeleteज्ञान देने तक तो गूगलिंग ठीक है पर जब उसका एकाधिकार पूर्ण रूप से हो जायेगा तो वह स्वतंत्र-सेवा को मोटे शुल्क में बदलने में गुरेज़ नहीं करेगा !
गूगल कामयाब मददगार है .....
ReplyDeleteaapne bilkul sahi kaha google keval rasta dikhata hai chalna to aapko hi padta hai fir vah rasta sahi hai ya galat uska nirnay bhi aapko hi karna padta hai .vaise google ko alladeen ka chiraag kahna galat nahi.ghar baithe sab jankari mil jati hai
ReplyDeletebahut tarksangat aalekh.
गूगल का महत्व निर्विवाद है, पर सहायक बन कर रहने तक ही .सिर पर सवार हो गया तो भगवान ही मालिक !
ReplyDeleteआज की पीढ़ी हर बात गूगल में ढूँढती है ..पर यह नहीं समझ पाती कि सही सलाह उनके शुभचिंतक ही दे सकते हैं ...
ReplyDeleteसार्थक लेख
सटीक,और तर्कसंगत आलेख।
ReplyDeleteसादर
गूगल पर निर्भरता ठीक नहीं है, आजकल जानकारी बिखरी पड़ी है और हम लोग बस उसे ढूँढ़ रहे हैं, अगर कोई नया काम भी करना होता है तो उसके लिये अपने दिमाग की उर्वरकता को इस्तेमाल न करते हुए गूगल में खोजा जा रहा है।
ReplyDeleteगूगल हर जगह सफ़ल भी नहीं है ।
प्रवीण जी ,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख .
गूगल और उसके sub-products के बिना , जीवन अब अधूरा ही लगता है .
बधाई !!
आभार
विजय
-----------
कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html
गूगल कभी कभी इतनी तगड़ी गुलाटी भी मारता है की किंकर्तव्य-विमूढ़ बने जाते है......................गूगल के गुलगुले हिसाब से ही खाएं जाए तो ही अच्छा है :)
ReplyDeleteज्ञात के बारे में अधिक ज्ञान पर अज्ञात के बारे में मौन, गूगल का गणित बस यहीं पर ही गच्चा खा जाता है। ज्ञान की मात्रा तो ठीक है पर उसकी दिशा कौन निर्धारित करेगा? प्रसन्न रहने के ढेरों उपाय तो निश्चय ही गूगल बता देगा पर उसमें कौन सा आप पर सटीक बैठेगा, आपको ढंग से जानने वाले आपके शुभचिन्तक या आपके मित्र ही बता पायेंगे, अतः उनसे सम्पर्क में बने रहें। गूगल की गणितीय पहुँच उन क्षेत्रों में निष्प्रभ हो जाती है। सम्बन्धों के सम्बन्ध में गूगल का गणित निर्बन्ध हो जाता है।
ReplyDeleteबेहतरीन निष्कर्ष निकाले हैं आपने भाई साहब .
kitna jante hain aap...
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteनिराला अंदाज |
बधाई ||
तथ्यात्मक ज्ञान मिलने के बाद उन पर निर्णय लेने की समझ गूगल नहीं सिखा सकता
ReplyDeleteगूगल क्या कोई नहीं सिखा सकता श्रीमान कुछ निर्णय हमेशा खुद को ही करना होते है...और अगर राजेश रेड्डी के इस शेर को सच माना जाय तो बिचारा गूगल भी क्या करेगा और हम भी क्या करेंगे? :-)
अजब कमाल है अक्सर सही ठहरते हैं
वो फैसले जो कभी सोच कर नहीं करते.
नीरज
तार्किक विश्लेषण और जानकारियों से भरी उम्दा पोस्ट बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteसही कह रहे हैं ..
ReplyDeleteगूगल है तो गुगली भी मारेगा ना हमेशा मनचाहा तो नही देगा कुछ अपनी बुद्धि का भी उपयोग जरूरी है।
ReplyDeleteगूगल पर ही निर्भर रहना उचित नही.कई बातों का पता हमें मित्रों से भी मिल जाती है..ये भी सच है कि गूगल का महत्व नकारा भी नहीं जा सकता...
ReplyDeleteJai Google Baba!!!
ReplyDeleteगूगल पर ही अधिक निर्भर रहना ठीक नही ,ज्ञान की बहुत सी बातें हमें मित्रो से भी मालूम हो जाती है..ये सच है कि गूगल का महत्व नकारा भी नहीं जा सकता ..
ReplyDeleteज्ञान का अनुपम खजाना ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteGoogle is no doubt very helpful. post achchhee hai.
ReplyDeleteजिसकी जितनी खोपड़ी उतना है संसार।
ReplyDeleteगूगल तो आखिर जानकारी प्रदाता ही है। उसका उपयोग कैसे करना है, वह हमें सोचना है।
ReplyDeleteआपका आलेख गहरे विचारों से परिपूर्ण होता है।
ReplyDeleteसही कह रहे है आप गूगल पर इतनी निर्भरता भी ठीक नहीं|
ReplyDeleteGyan Darpan
.
गूगल की जनकारियों को लेकर एग बात और - इसने आधिकारिकता और विश्वसनीयता भी हासिल कर ली है।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढते-पढते सूझ पडी कि मैं हतभाग अब तक एक बार भी गूगल की सेवाओं का उपयोग नहीं कर पाया हूँ। गोया, गूगल के बिना जीया जा सकता है, जीवन के सम्पूर्ण अनन्द सहित।
इस प्रतीति के लिए धन्यवाद।
आपका ब्लॉग अच्छा लगा...अच्छी जानकारियाँ और सार्थक लेखन..बधाई.
ReplyDeletemujhe to lagta hi ki dheere dheere Google hamare dimaag ka ek hisaa ban jayega....aur nayi technologies aane se iska share badhta hi jayega...
ReplyDeletebahut achha laga apka lekh.
GOOOOOOGle koi bhagwan nahi.....usaki bhi apani seema hai,,lekin gyan aur vishist suchna pane ke liye uska koi sani nahi...yeh hamari jankari ke paridhi ko bada karta hai.hamari utsukta aur kutuhal ko shant karta hai...iska koi gyan aur suchna ka anya vikalp filhal najar nahi ata hai...........
ReplyDeletegyan kal aur desh ki seema se pare hota hai...gyan aur vigyan kuch samay ke paschat swatah sarvdeshik aur sarkalik ho jata hai...chahe ARYABHAT KA SHUNYA HO YA NEWTON KA LAWS...
ReplyDeleteAUR SHAYAD AAJ KE SAMAY KE LIYE GOOGLE USI GYAN KA BEHTARIN DELIVERY SYSTEM HAI...
Dependency on google is so huge that it scares me sometimes that people will end up becoming dumb!
ReplyDeleteकुछ भी हो, पर बिना झुँझलाये, हर समय कुछ भी पूछे जाने पर कुछ-न-कुछ काम की बात बता देने वाला एक अच्छा मित्र तो सिद्ध होता ही है। अच्छे विश्लेषणात्मक प्रस्तुति हेतु बधाई व आभार।
ReplyDeleteगूगल गाथा पर आपका आलेख अच्छा लगा,...
ReplyDeleteनए पोस्ट -जूठन- में आपका स्वागत है...
गूगल को इनसान ने बनाया है, इनसान को गूगल ने नहीं...
ReplyDeleteजय हिंद...
गूगल पर बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ नहीं. होना भी नहीं चाहिए. मोती तो सागर की गहराइयों में ही मिलना चाहिए.
ReplyDeleteसचमुच एक अद्भुत आश्चर्य ही है. वर्ना एक समय तक जब सिर्फ पुस्कालयों पर इसके लिये निरभरता रहती थी और कभी कभी तो कॉपी की सुविधा ना होने पर पूरा आर्टिकल खुद ही नोट करना पड़ता था.
ReplyDeleteमैं तो गूगल और विकीपीडिया को ज्ञान की गंगा मानता हूँ और विकीपीडिया तक जाने का रास्ता भी गूगल ही देता है इसलिए गूगल गुरु भी हैं !
ReplyDeleteइस विषय पर बहुत पहले मैंने भी एक पोस्ट लिखी थी..आपने बहुत अच्छे से बातों को कहा है...मेरी लिखी पोस्ट तो आसपास भी नहीं फटकेगी इस पोस्ट के सामने :)
ReplyDeleteहमारे देश में ज्ञान की एक मौखिक परम्परा भी रही है .जो एक पीढ़ी दूसरी को थमाती रही है यह मौखिक संचार कभी भी चुकेगा नहीं अप्रासंगिक भी नहीं हो सकता ,दादा ,बना रहेगा आप जैसे लोग इसे जीवित रखेंगे जो विज्ञ हैं सचेत हैं जीवन और जगत के अपनी परम्परा और दर्शन औ संस्कृति के प्रति .!
ReplyDeleteतथ्यात्मक ज्ञान मिलने के बाद उन पर निर्णय लेने की समझ गूगल नहीं सिखा सकता....
ReplyDeleteबहुत सटीक समीक्षा ... सहमत हूँ ... आभार
आप का कहना अपनी जगह कुछ हद तक ठीक है,परन्तु आप गूगल के ज्ञान को नाकार नहीं सकते.....हर कोई आज गूगल पर डिपेण्ड कर रहा है अपनी हर चीज़ के लिए चाहे वो tangible ho ya intangible....
ReplyDeleteगूगल ने सब कुछ आपके द्वारे ला पटका है इसका एक नुकसान भी हुआ है तमाम शोध प्रबंध बे मानी हो गए हैं .ढूँढने का चस्का भी सामिग्री का जाता रहा है पता है सब कुछ एक क्लिक की दूरी पर है .
ReplyDeleteबहुत पहले लिखा मेरा एक लेख "गूगल चाचा से एक भेंटवार्ता "
ReplyDeleteआज बस यूं ही मन के विमान पर सवार हो कर अंतरिक्ष की यात्रा कर रहा था,तभी रास्ते में एक अजीब से कद काठी के आदमी से मुलाकात हो गई, जो बहुत ठिगना पर बहुत बड़े सिर वाला था।मैनें पूछा कौन हो भाई,"वह बोला,लो कर लो बात ,मुझे नही जानते,मै हूं तुम्हारा गूगल चाचा। पिछले जन्म में मेरा नाम लाल बुझक्कड़ था।मैने कहा अच्छा बताओ कैसे हो चाचा। बस इतना मेरा कहना था कि लगे चाचा बुक्का फ़ाड़ कर रोने,मैनें उन्हें धीरज बंधाते हुए पूछा क्या बात है चाचा?गूगल चाचा बोले,”क्या बताऊं ,शुरू शुरू मे तो मुझे बच्चों को उनके सवाल के जवाब देनें मे बहुत आनंद आता था, पर अब क्या बच्चे, क्या बड़े, सब ऐसी बातें लिखकर पूछ डालते हैं कि मेरे पेट में गुड़गुड़ होने लगती है।
आगे उन्होंने बताया कि लोग अपने दिमाग का सारा कचरा मेरे पेट मे डाल देते हैं,ना किसी को कोई शर्म है, ना कोई लिहाज़ कि चाचा से कैसे कैसे सवाल वे पूछ रहे हैं।’साबूदाना’के बनने की विधि से लेकर’बच्चा ना पैदा होने पाए’ तक की तरकीब मुझसे पूछ डालते हैं । अभी कल ही एक साहब मुझसे वियग्रा का कोई नया उपयोग पूछ रहे थे, मैने भी झल्ला कर बता दिया, तनिक सा लेकर चाय मे डाल देना बिसकुट गलेगा नही। कैसे कैसे चित्र मेरा पेट टटोल कर देखते हैं कि, मै अंदर ही अंदर शर्म के मारे कसमसाता रहता हूं पर क्या करूं,यही मेरी रोज़ी रोटी है पेट का सवाल है ,बेटा । मैने कहा चाचा पर आप तो बहुत पुण्य का काम भी कर रहे हैं,कितनो को बीमारियों की लेटेस्ट दवाओं के बारे मे जानकारी देकर,पढ़ने वाले बच्चों को उन्हे नई नई सूचनाएं एवं तकनीकी जानकारी देकर उनका काम आसान कर रहे है। रही बात लोगों के दिमाग के कचरे की, उसे हम नादानो की नादानी समझ कर माफ़ कर दीजियेगा। इस पर चाचा मूछों ही मूछों में मुसकुराते हुए आगे निकल गए धरती की पोस्टमैनी करने गूगल अर्थ का झोला लेकर।
सच कहा गूगल बाबा सब कुछ सही कह रहे अहिं ये भी नहीं पता ... और निर्णय क्या लेना चाहिए ... ये तो वैसे भी विवेक की बात है ...
ReplyDeleteअज्ञात के सामने ज्ञात की भला क्या बिसात?
ReplyDeleteबैसाखी को पाँव मान लेने भर से विश्वसनीयता तो नहीं बढ़ जाती।
जय गूगल बाबा। गूगल गाथा रुचिकर रही।
ReplyDeleteगूगल ज्ञान नहीं सूचनायें देता है जी! :)
ReplyDeleteसम्बन्धों के सम्बन्ध में गूगल का गणित निर्बन्ध हो जाता है।
ReplyDeleteसंबंधो के सम्बन्ध , भावनाओ की अभिव्यकि , अव्यक्त की व्यक्ति ये सभी गूगल की सीमा रेखाए है जिन्हें गूगल अतिक्रमित नहीं कर सकता इन पर हमारे अपनों का ही विचरण संभव है ..................
सम्पूर्णता के लिए ......परिपूर्ण ज्ञान के लिए दोनों में बैलेंस बनाये रखना आवश्यक है ............
हमें ये भी याद रखना चाहिए की गूगल भी किसी मानवीय मस्तिषक की उपज है इसलिए गूगल से भी आगे गूगल का निर्माता मस्तिष्क है .........
मस्तिष्क की अवहेलना कर गूगल पर निर्भरता बढ़ने से ज्ञान तंतुओ का विकास रुक जाता है वे संकुचित हो जाते है ..
तथ्य (डाटा) की गुलामी सिखाता है गूगल!
ReplyDeletebahut hi accha lekh sir.....
ReplyDeleteशुक्रिया ज़नाब आपकी आवाजाही के लिए .इस पोस्ट के लिए जो बेहद प्रेरक और बच्चों को समर्पित है .बच्चों के लिए तो उत्प्रेरक है उनके विकास के लिए .
ReplyDeleteआवश्यक नहीं जो गूगल बताये वही विश्वशनीय हो .
ReplyDeleteगूगल के गणित और ज्ञान का अद्भुत समीकरण!!
ReplyDeleteअंत में सूक्ष्म सार पर रोशनी डाल दी, आप बहुत गहरी सोच वाले बंदे हैं प्रवीण भाई। इसीलिए आप की टिप्पणियों के चुनिन्दा शब्दों से भी अर्थ ढूँढने को लालायित रहता हूँ मैं।
ReplyDeleteगूगल खुद कुछ नही करता , उसका सीधा सा फंडा है इसकी टोपी उसके सर..
ReplyDeleteगूगल ने मानव वयवहार को ताड़ कर ये निति अपनाई है, लेकिन क्या करें,
जब बिना मेहनत के सब कुछ सैकिंडो में मिले तो कोण न कहेगा गूगल महाराज को
तर्क संगत खूबशूरत आलेख,
ReplyDeleteपोस्ट में आने के लिए आभार
लाइब्रेरी में छै छै महीने खट कर निकाले गये रेफरेन्सेस गूगल का एक दिन का काम है । क्या बच्चे क्या बूढे सबको गूगल का ही सहारा है इसको तो आप नकार नही सकते । ज्ञान नही इनफॉरमेशन का जमाना है आज तो ।
ReplyDeleteइस पोस्ट में लिखी गई हर एक बात से सहमत हूँ। गूगल न सिर्फ ज्ञान ही देता है बल्कि किसी शीर्षक से जुड़ी तस्वीरें भी बड़ी ही आसानी से उपलभ्ध करा देता है। आज गूगल के बिना लोग कुछ सोच भी नहीं पाते इसलिए उसके महत्व को नकारा भी नहीं जा सकता। सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeletePower of google well explained n loved the way how u related it wid mathematics n complexities of life !!
ReplyDelete"लोग गूगलाने लगते हैं।" that was hilarious :D
फिर भी अभी ज्ञान सागर के बहुत से शब्दों का अभाव है कई बार मैने ऐसा महसुस किया है हिन्दी शब्दों का समावेश पूर्ण नही लगाता है फिर ठीक है क्योंकि ज्ञान का तो अन्त ही नही है ा
ReplyDeleteNice post
ReplyDelete
ReplyDeleteGulam sarwar please remove the links
nice story
ReplyDelete