भोजन पर सब साथ बैठे थे, टेलीविजन को विश्राम दे दिया गया था, सबकी अपनी व्यस्तता में यही समय ऐसा मिलता है जब सब एक साथ बैठकर इधर उधर की बातें करते हैं। बच्चों के प्रति मन में स्नेह सदा ही रहा है, उनकी ऊर्जा एक प्रकाश स्तम्भ की तरह हम जैसे दूर जाते जहाजों को जीवन से जुड़े रहने का संकेत देती रहती है। यद्यपि स्वयं भी बचपन की राहों से होकर बड़ा हुआ हूँ पर अब भी औरों के बचपन से कुछ न कुछ सीखने की ललक बनी रहती है। उनको कभी हल्के में लेने का प्रश्न ही नहीं रहा, पहले उनके पालन में, फिर उनके प्रश्नों के उत्तर ढूढ़ने में और उनकी विचार प्रक्रिया समझने में समुचित सतर्कता बनाये रखनी पड़ती है। निश्चय मान लीजिये यदि आज उन्हें हल्के में लिया तो भविष्य में वही हल्कापन ससम्मान वापस मिल जायेगा।
यदि बच्चे आपकी व्यस्तता में आपका समय चाहते हैं तो या आप अपने कार्य को थोड़ा विराम देकर उनकी शंकाओं का समाधान कर दें या उन्हें यह बता दें कि आप उन्हें कब समय दे पायेंगे। झिड़क देने से या टहला देने से, आत्मीयता कुंठित होने लगती है और धीरे धीरे अपने आधार ढूढ़ने कहीं और चली जाती है। बच्चों को सम्मान देने का अर्थ यह कभी नहीं है कि उन्हें अनुशासन में न रहने का अधिकार मिल गया, वरन यह संदेश स्पष्ट करने का उपक्रम है कि उन्हें सकारात्मकता में पूर्ण सहयोग मिलेगा और नकारात्कता में पूर्ण विरोध।
भोजन के अतिरिक्त बच्चों को सोते समय कुछ न कुछ सुनाते अवश्य हैं, मुझे या श्रीमतीजी, जिसको भी समय मिल जाये। श्रीमतीजी कहानी सुनाती हैं और मेरे हिस्से पड़ती हैं शेष जिज्ञासायें। मुझे कोई एक विषय देते हैं बच्चे और उस पर मुझे जो भी आता है, मुझे वह उनके समझने योग्य भाषा में सुनाना पड़ता है। पता नहीं कि कहानी सुनाने से मेरे लेखन को बल मिलता है या मेरे लेखकीय कर्म कहानी सुनाने को सरल बना देते हैं, पर इस कार्य में रोचकता सदा ही बनी रहती है। यह बात अलग है कि कभी कहानी सुनाते सुनाते मुझे भी नींद आ जाती है। बच्चों द्वारा प्रदत्त पिछले पाँच विषयों को देखकर आप मेरी दशा का अनुमान लगा सकते हैं। ये थे मौसम की भविष्यवाणी, टैंक की कार्यप्रणाली, फिल्मों का निर्माण, विद्युत का आविष्कार और कम्प्यूटर एनीमेशन। दिन भर थक जाने के बाद आपको इन विषयों पर बोलने को कहा जाये तो संभवतः आपको भी बच्चों के पहले ही नींद आ जाये। बच्चे भी अब ढूढ़ ढूढ़कर विषय लाने लगे हैं और मेरी परीक्षा लेने लगे हैं। जो भी परिणाम आये इस परीक्षा के, पर अब धीरे धीरे इस प्रक्रिया में आनन्द आने लगा है।
अन्य संवादों का संदर्भ देने का अभिप्राय उस स्तर को बताने का था जिस पर बच्चों का बौद्धिक आत्मविश्वास अधिकार बनकर झलकता है। यदि कहा जाये कि भोजन की मेज पर सबके बीच बराबर के स्तर पर बातचीत होती है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
विषय था रॉकस्टार के गानों का, घर में सबको ही बहुत अच्छे लगे वे गाने, और उनके बोल भी। निर्णय लिया गया कि बच्चों की परीक्षाओं के बाद देखी जायेगी। गानों की तरह ही उसकी कहानी भी अच्छी होनी चाहिये। इतने में आठ वर्षीय बिटिया बोल उठीं कि मुझे मालूम कि कहानी क्या होगी। अच्छा, जब फिल्म देखी नहीं तो कैसे पता चली? बिटिया बोलीं, उसके गानों से। आश्चर्य, बड़े बड़े फिल्म समीक्षक भी किसी फिल्मों की कहानी उसके गाने देखकर नहीं बता सकते हैं, टीवी पर पाँच गाने देखकर बिटिया कहानी बताने को तैयार हैँ। भोजन का कौर जहाँ था, वहीं रुक गया, बिटिया कहानी बताने लगी।
रणबीर कपूर एक अच्छा लड़का होता है, गिटार बजाता है मंदिर में, हल्का हल्का अच्छा गाना गाता है (गीत फाया कुन)। फिर एक लड़की आती है जिसे वह मोटर साइकिल में घुमाता है, वही लड़की हीरो को बिगाड़ देती है, दोनों बेकार पिक्चर देखने जाते हैं (गीत कतिया करूँ)। लड़का उस लड़की के साथ और बिगड़ जाता है, दाढ़ी बढ़ा लेता है, बेकार से कपड़े पहनता है और तेज तेज गाना गाता है (गीत जो भी मैं)। फिर वह सबके साथ लड़ाई करने लगता है, गाने में एक बार गाली भी देता है, पुलिस से भी लड़ता है और पुलिस उसे पकड़कर भी ले जाती है (गीत साडा हक)। जब उसे अपनी गलती पता चलती है तो उसे बहुत खराब लगता है और वह पहले जैसा होना चाहता है (गीत नादान परिन्दे)।
इतनी स्पष्ट कहानी सुन मेरी बुद्धि स्तब्ध सी रह गयी। पता नहीं, कहानी यह है कि नहीं, वह तो देखने पर ही पता चलेगा, पर अपने घर में एक नये फिल्म समीक्षक को पाकर हम धन्य हो गये।
यदि बच्चे आपकी व्यस्तता में आपका समय चाहते हैं तो या आप अपने कार्य को थोड़ा विराम देकर उनकी शंकाओं का समाधान कर दें या उन्हें यह बता दें कि आप उन्हें कब समय दे पायेंगे। झिड़क देने से या टहला देने से, आत्मीयता कुंठित होने लगती है और धीरे धीरे अपने आधार ढूढ़ने कहीं और चली जाती है। बच्चों को सम्मान देने का अर्थ यह कभी नहीं है कि उन्हें अनुशासन में न रहने का अधिकार मिल गया, वरन यह संदेश स्पष्ट करने का उपक्रम है कि उन्हें सकारात्मकता में पूर्ण सहयोग मिलेगा और नकारात्कता में पूर्ण विरोध।
भोजन के अतिरिक्त बच्चों को सोते समय कुछ न कुछ सुनाते अवश्य हैं, मुझे या श्रीमतीजी, जिसको भी समय मिल जाये। श्रीमतीजी कहानी सुनाती हैं और मेरे हिस्से पड़ती हैं शेष जिज्ञासायें। मुझे कोई एक विषय देते हैं बच्चे और उस पर मुझे जो भी आता है, मुझे वह उनके समझने योग्य भाषा में सुनाना पड़ता है। पता नहीं कि कहानी सुनाने से मेरे लेखन को बल मिलता है या मेरे लेखकीय कर्म कहानी सुनाने को सरल बना देते हैं, पर इस कार्य में रोचकता सदा ही बनी रहती है। यह बात अलग है कि कभी कहानी सुनाते सुनाते मुझे भी नींद आ जाती है। बच्चों द्वारा प्रदत्त पिछले पाँच विषयों को देखकर आप मेरी दशा का अनुमान लगा सकते हैं। ये थे मौसम की भविष्यवाणी, टैंक की कार्यप्रणाली, फिल्मों का निर्माण, विद्युत का आविष्कार और कम्प्यूटर एनीमेशन। दिन भर थक जाने के बाद आपको इन विषयों पर बोलने को कहा जाये तो संभवतः आपको भी बच्चों के पहले ही नींद आ जाये। बच्चे भी अब ढूढ़ ढूढ़कर विषय लाने लगे हैं और मेरी परीक्षा लेने लगे हैं। जो भी परिणाम आये इस परीक्षा के, पर अब धीरे धीरे इस प्रक्रिया में आनन्द आने लगा है।
अन्य संवादों का संदर्भ देने का अभिप्राय उस स्तर को बताने का था जिस पर बच्चों का बौद्धिक आत्मविश्वास अधिकार बनकर झलकता है। यदि कहा जाये कि भोजन की मेज पर सबके बीच बराबर के स्तर पर बातचीत होती है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
इतनी स्पष्ट कहानी सुन मेरी बुद्धि स्तब्ध सी रह गयी। पता नहीं, कहानी यह है कि नहीं, वह तो देखने पर ही पता चलेगा, पर अपने घर में एक नये फिल्म समीक्षक को पाकर हम धन्य हो गये।
निश्चय मान लीजिये यदि आज उन्हें हल्के में लिया तो भविष्य में वही हल्कापन ससम्मान वापस मिल जायेगा।
ReplyDeletePooree tarah sahmat hun aapke wicharon se!
बच्चों को अपने मन की बात बाहर निकाल देने चाहिए, बच्चॆ भी बडे काम की बात कह जाते है।
ReplyDeleteयूं तकिये पर लैपटाप रखने से उसके नीचे वाले air vent बंद हो जाने से वह गर्म हो जाता है. शार्ट सर्किट भी हो सकता है.
ReplyDelete:)
फ़िल्मी गाने बच्चों की सामान्य बुद्धि में बहुत वृद्धि कर रहे हैं :),
ReplyDeleteअक्सर फिल्मों की कहानी ऐसी ही होती है !
बच्चों को रोज नई कहानी सुनाना खासी चुनौती होती है .
पारिवारिक माहौल की पोस्ट अच्छी लगी !
ग्रेट!!!
ReplyDeleteगानों में ही पूरी कहानी बयान कर दी...
best wishes!!
हमें तो बचपन में अम्मा और नानी की कहानियां सुनने को मिल जाती थी पर आज के बच्चों को इस बारे में ही पता नहीं है.मैं भी कभी बेटे की जिद पर कहानी सुनाया करता था व उससे भी सुनता था पर अब नहीं.
ReplyDeleteबच्चे कितने समझदार होते जा रहे है ,समय से बहुत आगे !
बिटिया को मेरा आशीष :-)
हमरा तो मन कर रहा है कि आपके यहाँ बच्चे बन कर जियें ....और पीला वाला कप कास कर पकडें रहें!
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक, आभार .
ReplyDeleteसार्थक आलेख |आम के वृक्ष पर आम का फल ही लगेगा .....
ReplyDeleteबस थोड़ी देख भाल करना पड़ती है ..समय-समय पर .....नए फिल्म समीक्षक से मिल कर बहुत अच्छा लगा |हमारी शुभकामनायें...!!
waah beti waah... tussi gr8 ho
ReplyDeleteइन फिल्मों ने ही बच्चों को अधिक समझदार बना दिया है
ReplyDeleteबच्चों की कल्पनाशीलता बड़ो को भी मात कर जाती है कभी कभी ....जैसे मौजूदा उदाहरण ही :)
ReplyDeleteप्रवीण जी ,सामने टेबल पर नमकीन से भरी प्लेट हमें ललचाने के लिए रखी है क्या ?
ReplyDeleteकाजल जी की बात पर ज़रूर गौर करिये,वैसे मैं समझता हूँ यह महज़ 'पोज़' का उपक्रम था !
अब लगे हाथों माडरेशन भी हटा डालिए ताकि लोगों की डबल,तिबल टीपें और मिस-प्रिंट टीपें न आ सकें !
आभार !
नईं समीक्षक की बाते खूब भायीं .... :)
ReplyDeleteसच है की बच्चों को समय और साथ की ज़रुरत होती है .... ताकि वे अपने विचार और कल्पनाशीलता बाँट सकें ....
क्या बात!!!!:):):)
ReplyDeleteबधाई हो नन्हे फिल्म समीक्षक के लिए .. इतनी सुन्दर कहानी बनायीं है उन्होंने तो उन्हें तो बधाई मिलनी चाहिए .. और आपका बच्चो के प्रति माँ पिता किस तरह से समय दें .. अच्छा लेख भी है.. सुन्दर ..
ReplyDeleteBoss tussi great ho. I am regular reader of your blog but could not respond as I have never tried writing in Hindi. Your posts are simple, clear and out of everyday experiences which we even don't notice.
ReplyDeleteYour posts remind my of the small stories by Sudha Murthy. I can say that next Chetan Bhagat or Sudha Murthy is coming from Railways.
सटीक ||
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या नई समीक्षक को बधाई ..आपका आभार रोचकता से इसे प्रस्तुत करने का ।
ReplyDelete"उनकी ऊर्जा एक प्रकाश स्तम्भ की तरह हम जैसे दूर जाते जहाजों को जीवन से जुड़े रहने का संकेत देती रहती है" असहमत कैसे हों.
ReplyDeleteप्रवीणजी,
ReplyDeleteफ़िल्म तो हमने नहीं देखी और न ही गाने सुने हैं लेकिन फ़िल्म समीक्षा पढने के बाद अब सुनने का मन है।
एक अन्य प्रशन है, आपके सुपुत्र ने चित्र खिंचवाते समय हाथ से जिस मुद्रा का प्रदर्शन किया है, उसका हमारे प्रान्त टेक्सास में एक प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी से सम्बन्ध है। सिर्फ़ जिज्ञासा है कि कहीं University of Texas at Austin भारत में भी इतनी मशहूर हो गयी है क्या?
hehe :-) She is sweet...
ReplyDeleteसमीक्षक को बधाई ....!
ReplyDeleteबहुत मज़ा आया पढ़ कर।
ReplyDeleteफोटो मे आपके प्यारे से लैपटॉप को किसी की नज़र न लगे :)
सादर
ना तो हमारे माता-पिता ने पीले कप हमें पकडाये और ना ही हमने उनसे सवाल किये। नतीजा आज सिफर हैं और आपको पढ कर कुछ सीख गये तो अपने बच्चों को जरुर पीले कप दे देंगे। ताकि वो हमारी तरह सिफर ना रहें, चाहे देवला बिटिया के जैसे समीक्षक ना बन पायें।
ReplyDeleteबिटिया को शुभकामनायें
प्रणाम स्वीकार करें
बड़ी सिनर्जी है परिवार में! पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत..
ReplyDeleteअच्छा और सार्थक लेख।
बस अपनी सोच तो जीवन में यही रही है ...
ReplyDeleteनिश्चय मान लीजिये यदि आज उन्हें हल्के में लिया तो भविष्य में वही हल्कापन ससम्मान वापस मिल जायेगा।
ससम्मान की भी गारंटी नही ....!
बधाई बढिया सोच के लिए !
जीवन जगत परिवार से जुड़े प्रसंगों को आप अपनी आत्मीयता अपनापन देते हैं एक विश्लेषण करते चलते हैं आप रोजमर्रा की ज़िन्दगी का घर बाहर की जो दिलचस्प ही नहीं प्रेरक मार्गदर्शक भी बनता रहता है .बधाई .
ReplyDeleteबच्चों को जो समय आपने और श्रद्धा जी ने दिया वो अपनी सकारात्मकता दिखाने लगा है ..बच्चों को अशेष शुभकामनायें !!!
ReplyDeleteमैंने फिल्म देख ली है। नए समीक्षकों ने समीक्षा बिलकुल खरी की है। फिल्म का निचोड़ तो यही है।
ReplyDeleteप्रवीण जी ठीक ऐसा ही मेरे साथ भी हो रहा है... बड़ा बेटा पुराने कंप्यूटर और मोनिटर को कबाड़ी को बेचने नहीं दिया.. आज कल खेल रहा है उन्ही से...नए नए विषयों पर हमारे सामान्य ज्ञान की परीक्षा लेता है.... कोशिश करता हूं कि उत्तर दू... कई बार दूसरे दिन उत्तर दे पता हूं... नई नई कहानिया बनाता हूं... मन कर रहा है यदि उन्हें संग्रह कर लूं तो एक अच्छा संकलन तैयार हो सकता है.... बहुत आत्मीयता से लिखी गई है पोस्ट... युवा पेरेंट्स के लिए मार्गदर्शक बनेगी...
ReplyDeleteबधाई हो ..
ReplyDeleteक्या सूक्ष्म नज़र है बिटिया की...:)
ReplyDeleteबच्चों की कल्पनाशीलता गज़ब की होती है .. और यह आपके इस लेख से भी पता चल गया ... समीक्षक को पिक्चर दिखा ही दीजियेगा :)
ReplyDeleteबच्चे सब जानते हैं।
ReplyDeleteचलिए समीक्षा के नाम पर पूरी कहानी तो सुन ली आपने , नन्ही परी को आशीर्वाद .
ReplyDeleteबिटिया रानी को मेरा शुभाशीष ,वह निरंतर ज्ञान अर्जित करे
ReplyDeleteबच्चों को फोकस में लिए रहतें हैं आप ,बहुत विरल और अच्छा करतें हैं वगरना आज सब कुछ रहते माँ बाप के पास बच्चों के लिए वक्त नहीं हैं आप तो आदर्श ब्लॉग पुरुष भी हैं पिता और पति भी सहकर्मी भी प्रेरक हैं .
ReplyDeleteफिल्म समीक्षा तो बाद में…पहले फिल्में देखते-देखते ये बच्चे इतने आगे निकल गए लगते हैं कि फिल्म बनाने वालों और उसकी कहानी गानों से ही जान लेते हैं। यह तो फिल्म वालों की असफलता हुई न?…
ReplyDeleteबिलकुल सही समीक्षा की है नए समीक्षक ने:)
ReplyDeleteshe seems to have connected with the movie precisely with her brilliant imagination!!!
नन्हें समीक्षको को शुभकामनाएं...बच्चो की बाते बहुत प्यारी होती है...सार्थक आलेख..
ReplyDeleteबच्चा नहीं समझने का ..क्या ????:):).
ReplyDeleteवाकई इन बच्चों की क्षमता और अक्ल देख कर काम्प्लेक्स होने लगता है.
तस्वीर बहुत ही प्यारी है.
भोजन काल में बाल-बच्चों द्वारा फिल्म विश्लेषण!! निश्चय ही बाल की खाल नहीं, सार्थक!!
ReplyDeleteनिश्चय ही आज कल के बच्चे ग्रेट हैं...
ReplyDeleteहोनहार बिरवान के लक्षण यही- खाद-पानी बढ़िया मिल ही रहा है.
ReplyDeleteदेखा न ,आप नहीं पहुँच पाये जहाँ वे चुटकी में पहुँच गये !
यह फिल्म समीक्षक उतना ही अद्भुत जितना की उसके पिताजी का सरस रोचक लेख। आपको इन दोनो अनमोल निधियों के शत-शत बधाई।ईश्वर आपकी इन दोनों निधियों को निरंतर और उन्नत कर, यही कामना है।
ReplyDelete:) पहले पैराग्राफ की लास्ट लाइन बहुत अच्छी लगी | :)
ReplyDeleteघर की कहानी, घर-घर की नहीं.
ReplyDeleteऐसा लगा आपके साथ बैठ कर सुन रहा हू..काफी गहरे इशारे किये आपने. प्रज्ञावान विचारो के लिए धन्यवाद. (शुद्ध हिंदी :-))
ReplyDeleteसर बहुत ही प्रेरणादायी पोस्ट
ReplyDeleteसर बहुत ही प्रेरणादायक पोस्ट |बच्चों की जिज्ञासा का समाधान करना ही चाहिए |
ReplyDeletegreat critic in offing....
ReplyDeletenice pic.
नन्ही फिल्म समीक्षक को ढेरों बधाई और शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeletegood...
ReplyDeleteआज के बच्चों का आईक्यू भी बढ रहा है साथ ही माता-पिता भी उनके प्रित
ReplyDeleteअधिक संवेदनशील हो गयें है. इस समीक्षा के माध्यम से आपने भी
माता-पिता को जागरूक किया.साभार.
आज के बच्चों का आईक्यू भी बढ रहा है साथ ही माता-पिता भी उनके प्रित
ReplyDeleteअधिक संवेदनशील हो गयें है. इस समीक्षा के माध्यम से आपने भी
माता-पिता को जागरूक किया.साभार.
बच्चों के द्वारा की गई सुंदर समीक्षा..अच्छी लगी
ReplyDeleteसाथ ही आपका आलेख पसंद आया,..
पोस्ट में आने के लिए आभार,...
नई फ़िल्म समीक्षक की बेबाक राय बेहतरीन लगी। फिल्म नहीं देखी,लेकिन अगर ऐसा ही है तो इम्तियाज़ का करियर ख़तरे में है!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-715:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
sahi hai baccho ko halke me na lo .....
ReplyDeleteबाप तो बाप बच्चे रे बच्चे !
ReplyDeleteChildren are our future. We ought to understand them.
ReplyDeletenaye sameekshak ka aagman shubh ho...
ReplyDeleteab kuchh nayi sameeksha padhne ko milegee....!!
keep it up, my darling.....!!
मेरा अनुभव है कि बच्चों को हमसे कुछ मिले या न मिले, बच्चों से हमें काफी-कुछ मिलता है। बच्चों से बातें करने का अर्थ ही है - कुछ हासिल कर लेना।
ReplyDeleteनई फिल्मों के लिए नए समीक्षक की ही जरुरत है.....
ReplyDeleteनये फ़िल्म समीक्षक का स्वागत है!
ReplyDeleteकाजल कुमार की बात ध्यातव्य है! :)
बहुत सार्थक विश्लेषण!
ReplyDeleteखुशकिस्मत हो प्रवीण भाई ....
ReplyDeleteआगे से फिल्म समझाने के लिए माथापच्ची नहीं करनी पड़ेगी !
शुभकामनायें आपको !
खुशकिस्मत हो प्रवीण भाई ....
ReplyDeleteआगे से फिल्म समझाने के लिए माथापच्ची नहीं करनी पड़ेगी !
शुभकामनायें आपको !
"यूं तकिये पर लैपटाप रखने से उसके नीचे वाले air vent बंद हो जाने से वह गर्म हो जाता है. शार्ट सर्किट भी हो सकता है."
ReplyDeleteKajak ji ka ye comment dhyan dene laayak hai.
aapki sameeksha badi rachak hai.
शुक्रिया ज़नाब सलामत रहो .सपरिवार ऐसे ही आगे बढ़ो बढ़ते रहो .अच्छी पोस्ट .
ReplyDeleteबिटिया की एंटीसिपेटरी-समीक्षा लाजवाब है...
ReplyDeleteबच्चे एक ही सवाल को कई बार पूछे, हम जवाब देते नहीं थकते...लेकिन कोई बुज़ुर्ग ऐसे सवाल करे तो हम खीझ क्यों जाते हैं...
जय हिंद...
aajkal ke bachchon se to mujhe lagta hai ki main hi unse kuch seekh rahi hun.....waise rock star ki ye rocking story aapki bitiya ke kahe anusar hi hogi..... film to dekhi nahi hai ab tak..... lekin ab to story pura puri pata to ho hi gaya hai....
ReplyDeleteसबसे पहले तो सचेत कर दूँ- बच्चों को लेकर मैं भी चली गयी थी और परिणाम यह हुआ कि न स्वयं मनोयोग पूर्वक फिल्म देख पायी और न ही बच्चों की जिज्ञासाओं का समाधान कर पायी...छोटे बच्चों के लायक बिलकुल भी नहीं फिल्म...इसलिए गलती से भी लेकर न जाएँ..
ReplyDeleteजिस तरह का वातावरण घर का आप दंपत्ति रखे हुए हैं, अपार हर्ष हुआ जानकार...बच्चों का मानसिक विकास ऐसे ही परिवेश में ढंग से हो पाता है..
आपकी बाते आज भी उतनी ही खूबसूरत | आज आपको सब परिवार देखा बहुत अच्छा लगा आपका सबका साथ ऐसा ही बना रहे और सबको बेशुमार खुशियाँ मिलती रहे |
ReplyDeleteहर बार की तरह सुन्दर |
यदि बच्चे आपकी व्यस्तता में आपका समय चाहते हैं तो या आप अपने कार्य को थोड़ा विराम देकर उनकी शंकाओं का समाधान कर दें या उन्हें यह बता दें कि आप उन्हें कब समय दे पायेंगे।
ReplyDelete---बिल्कुल सही कहा!! आपसे सहमत!!
निश्चित ही बच्चे ज्यादा सहज होते हैं इसीलिए वे सच्चे और अच्छे होते है और उनकी दृष्टि ज्यादा गहरी होती है.यही सहजता हम धीरे-धीरे खोते चले जाते हैं और जिंदगी से नाता टूटता चला जाता है.
ReplyDeleteबच्चों का ज्ञान ज्यादा है आज ...
ReplyDeleteअच्छा लगा आपका परिवार सहित कुछ लम्हों को जीने का अंदाज़ ...
बच्चों को समय देने वाली आपकी बात सोलह आने सच है। बिटिया में भविष्य का बेहतरीन ब्लॉगर दिख रहा है।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रोचक आलेख पढ़कर बहुत मज़ा आया अक्सर यही होता है जिन चीजों पर हम ध्यान नहीं दे पते बच्चों कि नज़र और ध्यान उन्हीं चीज़ पर ज्यादा हुआ करता है। बस भलाई इसी में है कि हम अभिभावकों के साथ बच्चे इसी तरह मन के सच्चे बने रहे :-)
ReplyDeletegt so many things to say :)
ReplyDelete1. u r an awesome dad, ur kids r so lucky !!
2. ur daughter is a clever girl :)
3. Rockstar is an awesome movie n she captured around 45% of movie with those songs !!
यदि आज उन्हें हल्के में लिया तो भविष्य में वही हल्कापन ससम्मान वापस मिल जायेगा।
Super Like line :)
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
ReplyDelete----------------------------
आज 15/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!