26.11.11

कुम्भकर्ण का श्राप

कुम्भकर्ण शान्ति का प्रतीक था, उसे सोते रहने का वरदान मिला था। हम दैनिक रूप से जगने वालों को कुम्भकर्ण की मानसिक शान्ति की कल्पना भी नहीं हो सकती है, हमें लग सकता है कि वह सोकर जीवन व्यर्थ कर रहा था। हमें लग सकता है कि सोते रहना उसकी बाध्यता थी पर यह तथ्य किसी को ज्ञात ही नहीं है कि कुम्भकर्ण की शान्तिसाधना अपने आप में एक अनुकरणीय आदर्श थी जो राम और रावण के भारी व्यक्तित्वों के बीच कहीं छिप गयी। काश किसी ने कुम्भकर्ण के मन को समझने का प्रयत्न किया होता। उसका तो जीवन आनन्द से सोते हुये कट ही रहा था, रावण की व्यग्रता के कारण कुम्भकर्ण को असमय जगना पड़ा। रावण को कितना समझाया उसने कि युद्ध छोड़ शान्ति से रहो, सीता मैया को ससम्मान वापस कर दो, पर जिस विचार को आज के समय में फलीभूत होना लिखा हो, वह भला उस समय रावण के समझ में कैसे आता। रावण नहीं माना, कुम्भकर्ण को युद्ध करना पड़ा, राम के हाथों शान्ति के अग्रदूत को चिरनिद्रीय निर्वाण मिला।

रामायण समाप्त हो गयी, रावण रूपी समस्या समाप्त हो गयी, राम प्रसन्नचित्त अयोध्या लौट आये, उनके स्वागत में दिये जलाये गये, देवताओं ने पुष्पवर्षा की। हम सब भी निश्चिन्त हो गये कि अब कोई युद्ध नहीं होगा, बुराई का समूल नाश हो गया है, रावण का उदाहरण दुष्टों के हृदयों में स्थायी डर बन कर धड़केगा। आनन्द और आश्वस्तता के वातावरण में इस बात पर किसी का ध्यान नहीं गया कि हम सबको कुम्भकर्ण का श्राप लग गया है।

जहाँ एक ओर रामायण के सारे चरित्रों ने अपने चरित्र को अपनी बातों व अपने कर्मों से प्रकाशित किया और उन सबको इस बात के लिये पर्याप्त अवसर भी मिला, दुर्भाग्यवश यह अवसर कुम्भकर्ण को नहीं मिल पाया। बलात नींद से उठाये जाने के बाद थोड़ी सी शान्तिवार्ता और तत्पश्चात युद्ध में अवसान। ऐतिहासिक साक्ष्य तो नहीं है कि कुम्भकर्ण ने आने वाली पाढ़ियों को कोई श्राप दिया हो, पर थोड़ा अवलोकन करने से यह तथ्य स्वयं उद्घाटित हो जाता है।

रामराज्य की आस थी, शाश्वत, पर विश्व क्या पुनः वैसा हो पाया? नहीं, एक शान्तिप्रिय का श्राप हम सबको लग गया, कुम्भकर्ण मरा नहीं वरन हम सबके अन्दर आकर सो गया। अब उसका क्रोध न अपने भाई रावण से है, न अपने हन्ता राम से है, न उसका विरोध सच से है, न झूठ से है, उसका तो विरोध तो उनसे है जो लोग नींद में विघ्न डालते हैं और उनसे तो और भी है जो युद्ध के लिये उकसाते हैं।

यह श्राप का ही प्रभाव है कि हम लोगों की नींद गहरी और लम्बी हो गयी है, समाज स्वस्थ रहे न रहे, शान्ति बनी हुयी है। कितनी बड़ी से बड़ी समस्या आ जाये समाज में, हमारी नींद में विघ्न नहीं पड़ता है। कोई कितना भी चीखता रहे, कोई कितने भी दुख में हो, कोई अन्तर नहीं पड़ता है, बस शान्ति बनी रहे, नींद बनी रहे। हम सबकी काया में घुसकर कुम्भकर्ण अब और आलसी हो गया है। ६ माह के स्थान पर ५ वर्ष सोना प्रारम्भ कर दिया है। पंचवर्षीय कर्म हेतु उठता है, खा पीकर पुनः ५ वर्ष के लिये सो जाता है। चादर तनी है, निद्रा चरम पर है, कुम्भकर्ण का श्राप लय में है, न रावण के दुष्कर्म को अनुचित बताया जाता है और न ही राम के गुणों का वर्णन होता है, शान्ति और निद्रा युगशब्द बन जी रहे हैं, बीच बीच में बमचक मचती है पर शीघ्र ही दम तोड़ देती है।

संभवतः सोते सब रहते हैं पर इस तथ्य को सगर्व स्वीकार कर लेना अध्यात्मिकता की पहली किरण है। जागने का अभिनय करना जागने से कहीं अधिक कष्टकर है।

एक शान्तिप्रिय के बलिदान के श्राप की परिणति ऐसी स्याह शान्ति के रूप में होगी कि न प्रसन्न होते बनेगा और न ही दुख को व्यक्त करते बनेगा। अजब सी शान्ति है, विस्फोट के पहले सी। यह श्राप कैसे उतरेगा, कोई राह नहीं दीखती। हम सबके अन्दर सो रहे उदासीन कुम्भकर्ण को मारने के लिये अब तो आ जाओ राम, यह शान्ति काटती है।

80 comments:

  1. कल 26/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. हाँ, 5 साल की नीन्द और कभी-कभी मध्यावधि जागृति। वैसे कुम्भकर्ण की नीन्द के बारे में बड़े सारे षडयंत्र सिद्धांत फैले हुये हैं।

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  3. अद्भुत...कुंभकरण को इस नज़रिये से कभी देखा ही नहीं। आपको पढ़ना हमेशा सोच के नए दरवाजे खोलता है। फिर सुबह को कुछ अच्छा पढ़ने से दिन भी अच्छा जाता है। यूं तो इस वक़्त कभी जागी नहीं रहती...आज देर रात सोयी ही नहीं...तो अभी आपका लिखा हुआ देखा। दिन बन गया।

    बहुत शुक्रिया इस आलेख के लिये।

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  4. राम तो सभी में हैं वे कहीं से नहीं आते। हाँ उन्हें भी कुम्भकर्ण का शाप लगा है, अब उन्हें जगाना होगा।

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  5. अद्भुत विवेचन कुम्भकरण की नींद से लेकर आज की हमारी संवेदनहीनता वाली गहरी नींद तक का ..... और पंचवर्षीय नींद के तो कहने ही क्या ..? पेट ठसाठस भरकर खाते हैं और पूरी मस्ती में सोते हैं .....

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  6. यह श्राप कैसे उतरेगा, कोई राह नहीं दीखती। हम सबके अन्दर सो रहे उदासीन कुम्भकर्ण को मारने के लिये अब तो आ जाओ राम, यह शान्ति काटती है।
    Koyee Ram nahee aanewala....ham khud hee jag jayen so jag jayen!

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  7. कुम्भकर्णी-निद्रा अब हमारे आचरण में आ गई है,अब वह पांच साल बाद भी खत्म नहीं होती ,बल्कि लगातार ,पता नहीं कब से सोये जा रहे हैं !

    देश चलाने वाले सो रहे हैं और वे चाहते हैं कि हम भी सोते रहें तो उनकी नींद में खलल न पड़े !

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  8. वाकई में नींद कुछ ज्यादा ही लम्वी हो गई है!

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  9. कमाल का इन्गित किया है..... न माया मिली न राम , कुम्भकर्ण की नींद मिली

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  10. राम का आना भी समय बीतते एक अध्‍याय बन कर रह जाता है, कभी इतिहास तो कभी मन-बहलाव की कथा जैसा.

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  11. शायद हमारी सरकार भी कुम्भकर्ण जैसे श्राप से प्रभावित है।

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  12. बहुत बढिया, सच है हम सभी श्रापग्रस्‍त है।

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  13. प्रवीण जी,
    सुंदर विवेचन किया आपने,
    बेहतरीन पोस्ट,.बधाई ...
    नए पोस्ट पर आइये स्वागत है,....

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  14. एक उपेक्षित से चरित्र के द्वारा वर्तमान का सटीक आकलन ........ बस राम को भी हममें से ही आगे आना होगा .... अभी तो सब एकदूसरे की तरफ़ देख कर राम को तलाश रहे हैं (

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  15. अब तो थप्पड़ भी इन कुंभकर्णों की नींद नहीं खोल सकती। ये तो मताए (नशे में) हैं, नींद का नशा, मद का नशा, पद का नशा, सत्ता का नशा, भरपूर कुंभकरणी नींद ले रहे हैं और कह रहे हैं,
    अभी तो हाथ में जाम है
    तौवा कितना काम है ।

    फुरसत मिलेगी तो देखा जाएगा ।
    दुनिया के बार में सोचा जाएगा ।

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  16. बहुत सो लिये कुंभकर्ण नींद तुम,
    अब तो तुमको जगना ही होगा।
    त्याग मखमली बिस्तर अपना,
    कर्मयुद्ध पथ पर चलना होगा ।

    सुंदर व जागृति प्रदान करती प्रस्तुति।

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  17. सुबह सुबह आपको पढकर आनंद आ गया है जी.
    तभी तो अनुपमा जी की संगीतमयी हलचल के चल स्वर का 'प ' बनी हुई है आपकी प्रस्तुति.

    जागो सोने वालो....
    क्या यही कुम्भकरण का अभिशाप है.

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  18. कुम्भकर्ण को एक नए और प्रसंगिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है आपने ...!

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  19. कुम्भकर्ण मनोदशा को आज के समाज से जोड़ कर चित्रित करना बेहद अलग एवं अद्भुत अंदाज !

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  20. बेहद सार्थक व सटीक लेखन है आपका ...इस बेहतरीन पोस्‍ट के लिए आभार ।

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  21. यह श्राप कैसे उतरेगा, कोई राह नहीं दीखती। हम सबके अन्दर सो रहे उदासीन कुम्भकर्ण को मारने के लिये अब तो आ जाओ राम, यह शान्ति काटती है।
    यह श्राप कैसे उतरेगा, कोई राह नहीं दीखती। हम सबके अन्दर सो रहे उदासीन कुम्भकर्ण को मारने के लिये अब तो आ जाओ राम, यह शान्ति काटती है।
    कुम्भकरण ही हैं अबके पवार और पौवे .

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  22. "कुम्भकर्ण शान्ति का प्रतीक था"......अब समझा कि हम हिन्दुस्तानी सोते क्यों रहते है ! शांतिप्रिय लोग जो ठहरे :)

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  23. पर ये शांति ही हमें रचनात्मकता प्रदान भी करती है .

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  24. हमारी सरकार के साथ साथ हम भी इस चिरनिद्रा के श्राप से प्रभावित हैं

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  25. आज तो आपके लिए खड़े होकर ताली बजाने का मन कर रहा है.
    अद्भुत क्या चिंतन है...

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  26. कुम्भकर्ण के माध्यम से,देश की प्रजातान्त्रिक व्यवस्था पर की गयी चोट,अच्छी लगी | तुलसी ने विनयपत्रिका में कुम्भकर्ण को अहंकार का प्रतीक माना है,"मोह दशमौलि तद्भ्रात अहंकार" | मोह रावण है और कुम्भकर्ण अहंकार है | मेघनाथ को आगे इसी पद में काम का प्रतीक माना गया है | काम रूपी मेघनाथ को,जीव रूपी लक्ष्मण (ब्रह्म-जीव,बिच माया जैसे),मार सकते है, यानि जीव काम (कामनाओं) पर तो विजय प्राप्त कर सकता है पर मोहरूपी रावण और कुम्भकर्ण रूपी अहंकार का बध, प्रभु राम द्वारा ही संभव है,यानि बिना प्रभु की कृपा के, मोह और अहंकार का विगलन संभव नहीं है |

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  27. मगर ठीक तो यही है -कुम्भकरण सम सोवत नीके!:)

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  28. अद्भुत विवेचन...कुम्भकर्ण के व्यक्तित्व को इस द्रष्टिकोण से कभी नहीं देखा गया...आधुनिक सन्दर्भ में बहुत सटीक और उत्कृष्ट आलेख...

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  29. बहुत खूब ||

    अद्भुत ||

    सुन्दर रचनाओं में से एक ||

    आभार ||

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  30. आँखें खुल गयीं इस पोस्ट को पढ़ कर ...
    वाकई कई काम करने हैं !
    आभार जगाने के लिए !

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  31. कुम्भकरण के माध्यम से आपने हम सब को झिंझोड़ कर जगाने का प्रयास किया है...बधाई...

    नीरज

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  32. 'जहाँ न पहुँचे रवि' वाली कहावत छोड़ कर अब कहना होगा " लाखों चेतक [कों] से तेज़ भागे माइंड ऑफ लेखक"

    किस बात को कहाँ जोड़ा, मस्त मस्त मस्त
    और ये वाक्यांश "शान्ति के अग्रदूत को चिरनिद्रीय निर्वाण" बोले तो चारो खाने चित्त

    अच्छा चिंतन और धारदार आलेख

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  33. हो सकता है।
    वैसे हम सब बहुत से मामलो‍ में शापित हैं। :(

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  34. adbhut vivechan..dhanywaad likhne ke liye

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  35. arrey yeh neendh bhi kya cheez hai, ek ajeeb se kashish hote hai neendh main!!

    jo hume apne main khone ke liye majboor kar deti hai :P

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  36. @रामराज्य की आस थी, शाश्वत, पर विश्व क्या पुनः वैसा हो पाया? नहीं, एक शान्तिप्रिय का श्राप हम सबको लग गया, कुम्भकर्ण मरा नहीं वरन हम सबके अन्दर आकर सो गया।


    पांडे सर, आज बधाई कबूल फरमाइए... क्योंकि आज आपने मुझे एक नइ सोच डी है.. साधुवाद.

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  37. एक नवीन मूड... एक नूतन व्याख्या!!

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  38. सुखिया सब संसार, खाए और सोये.
    दुखिया दास कबीर, जागे और रोये....
    दिल्ली की नींद तमाचे खाकर खुलेगी या नहीं, देखते हैं, वर्ना एक आन्तरिक किओस के करीब हे हम लोग....

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  39. कुम्भकर्ण के माध्यम से बहुत अच्छा कटाक्ष
    किया है ...पर ये समस्या नयी नहीं है इस श्राप की जड़ें तो कुम्भ कर्ण से पहले से ही है ..दरअसल ये तो मानव स्वभाव में ही समाहित है
    जब तक धरती पर मानव है ये क्रम जारी रहेगा एक चरम पर पहुचने के बाद राम भी आयेंगे ...और रावण ही पैदा होते रहेंगे ..अच्छी रचना के लिए बधाई

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  40. बस शान्ति बनी रहे, नींद बनी रहे....मुश्किल ही है कि यह श्राप उतरे क्योंकि उसके लिए भी प्रयास तो करना होगा न...वो भी आराम में विध्न डालेगा.

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  41. ये तन्द्रा निश्चित ही श्राप है...
    कुम्भकर्णी निद्रा की विवेचना करते हुए संवेदनहीनता पर शांतिपूर्वक प्रहार करता हुआ सुन्दर आलेख!

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  42. सार्थक विवेचन से लैस उम्दा पोस्ट |

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  43. बस चले तो 5 वर्ष का बंधन भी तोड़ दें माननीय

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  44. The way in which you have connected Kumbhkarn, his long hibernation and passiveness with the rulers of the day has a deep approach with an ironical positivity. Alas!either the rulers or the masses would come back to their senses. Very nice article.

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  45. सुन्दर उद्भावना !कुंभकर्ण के शाप का प्रभाव भारत के लोगों पर सबसे अधिक हुआ लगता है .

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  46. बड़ा सोचना पड़ता है की ऐसे पोस्ट पर कमेन्ट में क्या लिखें..फिर सोच विचार कर लिख आते हैं -
    "खतरनाक पोस्ट" :)

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  47. हद तो यह है जो इस सामाजिक श्राप के खिलाफ खड़े होतें हैं उन्हें केजरीवाल -किरण -अन्ना बना दिया जाता है .यथा -स्थिति का पोषण ही व्यवस्था को माफिक आता है .

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  48. कुम्‍भकर्ण यानी बड़े कान वाला याकि घड़े के समान कान वाला। आवाज जिसके अंदर ही अंदर ही गूंजती रहती होगी। तभी तो वह आराम से सोता होगा। श्राप केवल सोने का नहीं बल्कि जागते हुए सोने का लगा है। जो सो रहे हैं वे तो सो ही रहे हैं। लेकिन जो जाग रहे हैं वे क्‍या कर रहे हैं। केवल दोषारोपण। इस मानसिकता से हम कब मुक्‍त होंगे।

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  49. कुम्भकरण को प्रतीक बना कर जो शांतिप्रिय बन सोने की बात कही है , आपकी अद्भुत सोच को दर्शाती है .. बहुत अच्छी पोस्ट ..

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  50. कुम्भकर्ण को अभिनव नजरिये से प्रस्तुत किया है आपने ..बहुत ही हृदयस्पर्शी ओर सोचने पर विवश करता हुआ आलेख...शुभ कामनायें !!

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  51. जगाया रावण ने, श्राप हमारे अच्छे नेताओं को काहे दे दिया ?

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  52. बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर (हरिवंश राय बच्चन) आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  53. हम जैसे कुंभकर्णी ब्लॉगरों के लिए तो रावण ब्लॉगिंग है जो सोने ही नहीं देती...

    जय हिंद...

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  54. आज का हर धनाड्य कुम्भकरण का श्राप मांगता है और इसके लिए वह डॉक्टर रूपी देवता की शरण में जाता है। यदि यह देवता ने अधिक मात्रा में श्राप दे दिया तो वह सदा के लिए सो जाएगा :)

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  55. गजब!
    कोच्ची से...

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  56. चीज़ों के प्रति टालू रवैया भी कुम्भ्करनी प्रवृत्ति ही है भाई साहब .आजकल लोग न गन्ना चूसतें हैं न साबुत गाज़र मूली ,गोभी कच्चा खाते हैं मुक्तावली क्या करे .फल भी पैस्ती -साइड की मार से बचने के लिए छील के खाते हैं .

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  57. kumbhkaran ko dekhne ka alag hi angle .:)

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  58. बेहद अलग एवं अद्भुत अंदाज !

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  59. सचमुच हम सब एक गहरी नींद में सो रहे हैं... और यह नींद टूटने का नाम ही नहीं लेती..कब आओगे राम!

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  60. Having read this I thought it was very informative. I appreciate you taking the time and effort to put this article together. I once again find myself spending way to much time both reading and commenting. But so what, it was still worth it!…

    From everything is canvas

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  61. प्रवीन जी,
    आपके चिंतन की गहराई को नमन करता हूँ !
    आभार !

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  62. गहन चिंतन परक पोस्ट।

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  63. अद्भुत चिंतन.. बेहद सार्थक व सटीक लेखन .

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  64. चिरशांति का ये श्राप है तो इसे दूर करने का उपाय करना ही होगा..मूर्दा शांति के साथ जीना समाज ने अपनी नियती समझ ली है शायद....पर ये शांति कई बार आने वाले तूफान की पहचान भी होती है..पर ऐसी शांति नहीं है....यानि कुंभकरण सो रहा है पर उसे जगाने के प्रयास किए जा रहे हैं..तो क्या माना जाए कि फिर शांति का नाश होगा?

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  65. इस कलियुगी कुम्भकरण को मारने के लिए राम का इंतजार करने के बजाय खुद राम की भूमिका में आना होगा

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  66. एकदम नए ढंग का प्रयोग..प्रवीण जी आपकी इस रचना के लिए बस एक ही शब्द है.. अद्भुत... कुम्भकरण के माध्यम से आज के हालात पर बहुत ही सटीक एवं अर्थपूर्ण कटाक्ष किया है आपने .. आपके लेखन की धारदार शैली से .. मै तो बस अभिभूत हूँ... प्रशंसा लायक उपयुक्त शब्द नहीं है... जितना भी कहा जाये कम ही होगा... बहुत दिनों के बाद कुछ बहुत अच्छा और सार्थक पढ़ने को मिला.. धन्यवाद !

    सादर
    मंजु

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  67. पांच सालाना नींद, सही कहा कुंभ कर्ण की औलादें हैं हम सब । मतदाता भी और मतलेता भी ।

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  68. दो चार कुम्भकरण तो हैं , किन्तु जागने वालों की और जगाने वालों की संख्या भी कम नहीं.... कर्म में सतत लगे रहना ही ध्येय होना चाहिए. ...विचलित होने से काम नहीं चलता...

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  69. यही आर्तनाद, यही विह्वल आह्वान हमारा भी है...

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  70. वाकई कुंभकरण के बारे में पहले शायद ही कभी किसी ने ऐसा कुछ सोचा हो ...

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  71. पूरा देश ही कुम्भकर्ण हुआ है..देखें कब जागता है ॥॥

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  72. RAVAN...
    BALVAN,ROOPVAN,VIDWAN,BUDHIMAN,DHANWAN....THA KINTU USAKA CHARITRAVAN NA HONA USAKE BARBADI KA KARAN BANA..
    VIBHISHAN..
    BHAGWAN SRIRAM KA SAHAYAK HONE KE BABJOOD BHI BHARATIYA SAMAJ ME USAKI SWIKRITI SAKARATMAK NAHI HAI.LOG APANO KA NAM VIBHISHAN NAHI RAKHATE,VIBHISAN PAR PRACHALIT MUHAVARE HAI.GHAR KA BHEDI LANKA DHAHE
    KUMBHKARAN...
    RAVAN KA YE BHAI SONE KE LIYE NAMI THA.KINTU ISAKE BARE ME EK NAYEE SOCH KO PARIBHASIT KARNA WAKAI ADBHUT HAI.

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  73. बहुत खूब...साथ ही आज के समय का महत्वपूर्ण प्रश्न...ये नींद कब खुलेगी ?

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  74. बहुत सुंदर, आपका लेख तो बहुत अच्छा है ही, आपकी भाषा शैली भी सुंदर है। लगता था की शायद नई पीढ़ी के लोग हिन्दी भाषा की शुद्धता को कहीं खो देंगे, लेकिन आपको देखके उम्मीद जगी हुई है। ऐसे ही अद्भुत लेख लिखते रहें, धन्यवाद।

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  75. विषय को सन्‍दर्भ से जोडा है या सन्‍दर्भ को विष्‍रय बनाया है? बहुत ही रोचक पोस्‍ट लगी। दो बार पढी। लेखन में नवोन्‍मेषी विधा में शामिल होगी आपकी यह पोस्‍ट।

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  76. aj pahli bar apke blog tk pahucha hoon bahut si mahatvpoorn jankariyan mili ....iske liye saprem abhar .

    bhai pandey ji ap apne tashvir me teen age ke dikhte the yani bachhe...
    aur aaj poori tashvir dekhi to pata chla ap to do bachhon ke bap hain ... iske liye ak bar fir se badhai. thanks pandey likhte rhao bhai

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  77. कुम्भकर्म के व्यक्तित्व का नया पहलू ढूँढा आपने।

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