कभी किसी को भारी भीड़ में दूर खड़े अपने मित्र से कुछ कहते सुना है, अपना संदेश पहुँचाने के लिये बहुत ऊँचे स्वर में बोलना पड़ता है, बहुत अधिक ऊर्जा लगानी पड़ती है। वहीं रात के घुप्प अँधेरे में झींगुर तक के संवाद भी स्पष्ट सुनायी पड़ते हैं। रात में घर की शान्ति और भी गहरा जाती है जब सहसा बिजली चली जाती और सारे विद्युत उपकरण अपनी अपनी आवाज़ निकालना बन्द कर देते हैं। पार्श्व में न जाने कितना कोलाहल होता रहता है, हमें पता ही नहीं चलता है, न जाने कितने संदेश छिप जाते हैं इस कोलाहल में, हमें पता ही नहीं चलता है। जीवन के सभी क्षेत्रों में संदेश और कोलाहल को पृथक पृथक कर ग्रहण कर लेने की क्षमता हमारे विकास की गति निर्धारित करती है।
किसी ब्लॉग में पोस्ट ही मूल संदेश है, शेष कोलाहल। यदि संवाद व संचार स्पष्ट रखना है तो, संदेश को पूरा महत्व देना होगा। जब आधे से अधिक वेबसाइट तरह तरह की अन्य सूचनाओं से भरी हो तो मूल संदेश छिप जाता है। शुद्ध पठन का आनन्द पाने के लिये एकाग्रता आवश्यक है और वेबसाइट पर उपस्थित अन्य सामग्री उस एकाग्रता में विघ्न डालती है। अच्छा तो यही है कि वेबसाइट का डिजाइन सरलतम हो, जो अपेक्षित हो, केवल वही रहे, शेष सब अन्त में रहे, पर बहुधा लोग अपने बारे में अधिक सूचना देने का लोभ संवरण नहीं कर पाते हैं। आप यह मान कर चलिये कि आप की वेबसाइट पर आने वाला पाठक केवल आपका लिखा पढ़ने आता है, न कि आपके बारे में या आपकी पुरानी पोस्टों को। यदि आपका लिखा रुचिकर लगता है तो ही पाठक आपके बारे में अन्य सूचनायें भी जानना चाहेगा और तब वेबसाइट के अन्त में जाना उसे खलेगा नहीं। अधिक सामग्री व फ्लैश अवयवों से भरी वेबसाइटें न केवल खुलने में अधिक समय लेती हैं वरन अधिक बैटरी भी खाती हैं। अतः आपके ब्लॉग पर पाठक की एकाग्रता बनाये रखने की दृष्टि से यह अत्यन्त आवश्यक है कि वेबसाइट का लेआउट व रूपरेखा सरलतम रखी जाये।
यह सिद्धान्त मैं अपने ब्लॉग पर तो लगा सकता हूँ पर औरों पर नहीं। अच्छी लगने वाली पर कोलाहल से भरी ऐसी वेबसाइटों पर एक नयी विधि का प्रयोग करता हूँ, रीडर का प्रयोग। सफारी ब्राउज़र में उपलब्ध इस सुविधा में पठनीय सामग्री स्वतः ही एक पुस्तक के पृष्ठ के रूप में आ जाती है, बिना किसी अन्य सामग्री के। इस तरह पढ़ने में न केवल समय बचता है वरन एकाग्रता भी बनी रहती है। सफारी के मोबाइल संस्करण में भी यह सुविधा उपस्थित होने से वही अनुभव आईफोन में भी बना रहता है। गूगल क्रोम में इस तरह के दो प्रोग्राम हैं पर वाह्य एक्सटेंशन होने के कारण उनमें समय अधिक लगता है।
किसी वेबसाइट पर सूचना का प्रस्तुतीकरण किस प्रकार किया जाये जिससे कि अधिकाधिक लोगों को उसका लाभ सरलता से मिल पाये, यह एक सतत शोध का विषय है। विज्ञापनों के बारे में प्रयुक्त सिद्धान्त इसमें और भी गहनता से लागू होते हैं, कारण सूचना पाने की प्रक्रिया का बहुत कुछ पाठक पर निर्भर होना है। यदि प्रस्तुतीकरण स्तरीय होगा तो पाठक उस वेबसाइट पर और रुकेगा। अधिक सूचना होने पर उसे व्यवस्थित करना भी एक बड़ा कार्य हो जाता है। कितनी सूचियाँ हों, कितने पृष्ठ हों, वे किस क्रम में व्यवस्थित हों और उनका आपस में क्या सम्बन्ध हो, ये सब इस बात को ध्यान में रखकर निश्चित होते हैं कि पाठक का श्रम न्यूनतम हो और उसकी सहायता अधिकतम। उत्पाद या कम्पनी की वेबसाइट तो थोड़ी जटिल तो हो भी सकती है पर ब्लॉग भी उतना जटिल बनाया जाये, इस पर सहमत होना कठिन है।
अन्य सूचनाओं के कोलाहल में संदेश की तीव्रता नष्ट हो जाने की संभावना बनी रहती है। यदि हम उल्टा चलें कि ब्लॉग व पोस्ट के शीर्षक के अतिरिक्त और क्या हो पोस्ट में, संभवतः परिचय, सदस्यता की विधि, पाठकगण और पुरानी पोस्टें। ब्लॉग में इनके अतिरिक्त कुछ भी होना कोलाहल की श्रेणी में आता है, प्रमुख संदेश को निष्प्रभावी बनाता हुआ। बड़े बड़े चित्र देखने में सबको अच्छे लग सकते हैं, प्राकृतिक दृश्य, अपना जीवन कथ्य, स्वयं की दर्जनों फ़ोटो, पुस्तकों की सूची और समाचार पत्रों में छपी कतरनें, ये सब निसंदेह व्यक्तित्व और अभिरुचियों के बारे एक निश्चयात्मक संदेश भेजते हैं, पर उनकी उपस्थिति प्रमुख संदेश को धुँधला कर देती है।
गूगल रीडर की फीड व सफारी की रीडर सुविधा इसी कोलाहल को प्रमुख संदेश से हटाकर, प्रस्तुत करने का कार्य करते हैं। यह भी एक अकाट्य तथ्य है कि गूगल महाराज की आय मूलतः विज्ञापनों के माध्यम से होती है और ब्लॉग के माध्यम से आय करने वालों के लिये विज्ञापनों का आधार लेना आवश्यक हो जाता है, पर विज्ञापन-जन्य कोलाहल प्रमुख संदेश को निस्तेज कर देते हैं।
मेरा विज्ञापनों से कोई बैर नहीं है, पर बिना विज्ञापनों की होर्डिंग का नगर, बिना विज्ञापनों का समाचार पत्र, बिना विज्ञापनों का टीवी कार्यक्रम और बिना विज्ञापनों का ब्लॉग न केवल अभिव्यक्ति के प्रभावी माध्यम होंगे अपितु नैसर्गिक और प्राकृतिक संप्रेषणीयता से परिपूर्ण भी होंगे।
आईये, अभिव्यक्ति का भी सरलीकरण कर लें, संदेश रहे, कोलाहल नहीं।
अन्य सूचनाओं के कोलाहल में संदेश की तीव्रता नष्ट हो जाने की संभावना बनी रहती है। यदि हम उल्टा चलें कि ब्लॉग व पोस्ट के शीर्षक के अतिरिक्त और क्या हो पोस्ट में, संभवतः परिचय, सदस्यता की विधि, पाठकगण और पुरानी पोस्टें। ब्लॉग में इनके अतिरिक्त कुछ भी होना कोलाहल की श्रेणी में आता है, प्रमुख संदेश को निष्प्रभावी बनाता हुआ। बड़े बड़े चित्र देखने में सबको अच्छे लग सकते हैं, प्राकृतिक दृश्य, अपना जीवन कथ्य, स्वयं की दर्जनों फ़ोटो, पुस्तकों की सूची और समाचार पत्रों में छपी कतरनें, ये सब निसंदेह व्यक्तित्व और अभिरुचियों के बारे एक निश्चयात्मक संदेश भेजते हैं, पर उनकी उपस्थिति प्रमुख संदेश को धुँधला कर देती है।
गूगल रीडर की फीड व सफारी की रीडर सुविधा इसी कोलाहल को प्रमुख संदेश से हटाकर, प्रस्तुत करने का कार्य करते हैं। यह भी एक अकाट्य तथ्य है कि गूगल महाराज की आय मूलतः विज्ञापनों के माध्यम से होती है और ब्लॉग के माध्यम से आय करने वालों के लिये विज्ञापनों का आधार लेना आवश्यक हो जाता है, पर विज्ञापन-जन्य कोलाहल प्रमुख संदेश को निस्तेज कर देते हैं।
मेरा विज्ञापनों से कोई बैर नहीं है, पर बिना विज्ञापनों की होर्डिंग का नगर, बिना विज्ञापनों का समाचार पत्र, बिना विज्ञापनों का टीवी कार्यक्रम और बिना विज्ञापनों का ब्लॉग न केवल अभिव्यक्ति के प्रभावी माध्यम होंगे अपितु नैसर्गिक और प्राकृतिक संप्रेषणीयता से परिपूर्ण भी होंगे।
आईये, अभिव्यक्ति का भी सरलीकरण कर लें, संदेश रहे, कोलाहल नहीं।
सलाह काफी लोगों के काम की होगी. हम ठहरे नोइज़-अनैलिसिस वाले बन्दे, सो अपनी बात और है.
ReplyDeleteबिना विज्ञापनों की होर्डिंग का नगर, बिना विज्ञापनों का समाचार पत्र, बिना विज्ञापनों का टीवी कार्यक्रम और बिना विज्ञापनों का ब्लॉग न केवल अभिव्यक्ति के प्रभावी माध्यम होंगे अपितु नैसर्गिक और प्राकृतिक संप्रेषणीयता से परिपूर्ण भी होंगे।
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे ... सबसे ज्यादा अहमियत तो हमारे लिखे विचारों की ही है बाकि सब तो कोलाहल ही कहा जायेगा .....काफी समय से गूगल रीडर का ही प्रयोग कर रही हूँ पोस्ट्स पढ़ने के लिए.......
बिना विज्ञापनों की होर्डिंग का नगर, बिना विज्ञापनों का समाचार पत्र, बिना विज्ञापनों का टीवी कार्यक्रम और बिना विज्ञापनों का ब्लॉग न केवल अभिव्यक्ति के प्रभावी माध्यम होंगे अपितु नैसर्गिक और प्राकृतिक संप्रेषणीयता से परिपूर्ण भी होंगे।
ReplyDeleteआपकी सलाह विचारणीय ही नहीं बल्कि आवश्यक भी है .....देखते हैं क्या करते हैं हम अपने ब्लॉग पर ....!
एकदम सहमत, कोलाहल से दूर होना चाहिये परंतु आजकल बहुत सारे लोगों को सारी सुविधाएँ एकदम मिलनी चाहियें, नहीं तो वे ब्राऊजर पर क्रास मारके निकल लेते हैं।
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी युक्त उपयोगी श्रंखला ....
ReplyDeleteआभार आपका !
नेक सुझाव.
ReplyDeleteबहुत मार्के की पोस्ट -मैं भी ऐसे कई ब्लागों से आक्रान्त सा हूँ और अब अपने ब्लॉग की भी अच्छी वीडिंग करने का मन है! आभार !
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना सार्थक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । सादर।
ReplyDeletesandesh hi zaruri hai...
ReplyDeleteआप ने पहले से ही कचरा-प्रबंधन कर रखा है ,अनुकरणीय ब्लॉग है आपका ! रीडर को ले कर मैं भी परेशान रहता हूँ !
ReplyDeleteआपकी यह बात बहुत ही पसंद आयी। कई ब्लाग्स पर गाने लगा दिए जाते हैं, जिस कारण पोस्ट पढ़ने में कठिनाई आती है और कई बार बिना पढ़े ही ब्लाग बन्द करना पड़ता है।
ReplyDeleteअच्छी सूरत को सँवरने की जरुरत क्या है
ReplyDeleteसादगी भी तो कयामत की अदा होती है.
बेशक , उपयोगी संदेश.
ब्लॉग पढ़ने को सरल करने के लिए ब्लॉगर ने भी एक नया लेआउट बनाया है. किसी भी ब्लॉग के अड्रेस के अंत में आप अगर /view टाइप करते हैं तो आपको ब्लॉग सरल अवतार में मिलेगा.
ReplyDeleteव्यू के अलग ऑप्शंस आपको क्लास्सिक,फ्लिप्कार्ड, मैग्जीन लेआउट देते हैं. किसी ब्लॉग में अगर बहुत सारी सामग्री है तो मैं ऐसे ही पढ़ती हूँ. इसमें स्क्रीन पर सिर्फ पोस्ट आती है और पोस्ट के नीचे कमेन्ट की संख्या.
नैसर्गिक , अतुलित सन्देश लेकर आते है आप
ReplyDeleteअच्छी जानकारी उपयोगी सलाह सुंदर पोस्ट....
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट में स्वागत है
बहुत ही प्रेरणात्मक एवं ज्ञानवर्धक प्रस्तुति ...आभार ।
ReplyDeleteजीवन के सभी क्षेत्रों में संदेश और कोलाहल को पृथक पृथक कर ग्रहण कर लेने की क्षमता हमारे विकास की गति निर्धारित करती है।
ReplyDeleteहम संगीत से जुड़े हुए लोगों के लिए भी आपका ये कथन बहुत उपयोगी है ...!!
सार्थक ...सुंदर लेख ...
अच्छी जानकारी,
ReplyDeleteबढिया सुझाव।
उपयोगी आलेख... कोलाहल को समझने के लिए कोलाहल से गुज़ारना जरुरी है....
ReplyDeletekuch nahi kahungi.shayad mera blog is kolahal ka udahran hai...:)par aapne acchi tarkeeb nikali kolahal se bachne ki:)
ReplyDeleteहाँ सरल,सुन्दर और सटीक ब्लॉग ही पसंद आता है.. ज्यादा हो-हल्ला हो तो ऑफिस में ब्लॉग नहीं खोल सकते हैं.. पर सादे पृष्ठ पर काले अक्षर हो तो लगेगा की कुछ अच्छा ही पढ़ रहा है लगता है :D
ReplyDeleteविचारणीय सलाह.
ReplyDeleteआईये, अभिव्यक्ति का भी सरलीकरण कर लें, संदेश रहे, कोलाहल नहीं।
ReplyDeleteवाह...क्या खूब बात कही है
नीरज
आपका कहना १०० फी सदी सही है ..
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी देने के लिए आभार
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी देने के लिए आभार
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी आलेख
ReplyDeleteयकीनन अनुकरणीय है यह सलाह
ReplyDeleteजब भी मैं आपके ब्लॉग में आता, इसके सरलतम रूप पर मुग्ध होता। तकनीकी ज्ञान के अभाव में अधिक कुछ नहीं कर सका। हेडर हटा देता हूँ। और कुछ क्या कर सकता हूँ आप देख कर सलाह दें तो अच्छा रहेगा।...आभार आपका।
ReplyDeleteबहुत कुछ हटा बढ़ा दिया अपने ब्लॉग से..अब देखिए और बताइये कैसा लग रहा है...अक्षर काले होते तो और मजा आता।
ReplyDeleteBahut he acchi salaah!
ReplyDeleteजीवन कथ्य, स्वयं की दर्जनों फ़ोटो, पुस्तकों की सूची और समाचार पत्रों में छपी कतरनें जैसी बातें उन्ही स्थानों पर अधिक दिखती है जो स्वत सुखाय के गर्व के साथ लिखते हैं लेकिन अधिक से अधिक (टिप्पणी सहित) पाठक देखना चाहते हैं
ReplyDeleteआपके द्वारा वर्णित उपाय निश्चित ही सटीक हैं
किन्तु सोलह श्रृंगार की रसिकता फिर कहाँ जाएगी :-)
आपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ । पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteकार्टून ब्लाग पर कोलाहल न हो तो बेचारा पाठक कुछ सेकेंड के लिए ही रूक पाएगा :)
ReplyDeletesachet karti sunder jankari .
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
आप का आब्जर्वेशन व सलाह सही है... पर यह हर किसी पर लागू नहीं होती... दुनिया की इसी तरह की अन्य सलाहों की तरह... :(
वजह सिर्फ एक है... हर किसी का कोई भी काम करने का मकसद अलग-अलग होता है।
...
`किसी ब्लॉग में पोस्ट ही मूल संदेश है, शेष कोलाहल। '
ReplyDeleteहाय़! ये टिप्पणियां झिंगुर ध्वनि से गई बिती है :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteसच.....
ReplyDeleteकितने सन्देश छिपे हैं
कोलाहल में.
मुझे लगता है, आपके कहने से पहले ही मैं आपके कहे पर चल रहा हूँ - तकनीकी श्ररान के अभाव के कारण।
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण और उपयोगी पोस्ट।
आपसे नयी नयी जानकारी मिल रही हैं ...अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteआपका यह टेक-अवतार भी आनंददायक है!! अच्छी जानकारी!!
ReplyDeletethanx for good suggestions...!!
ReplyDeleteअच्छे और उपयोगी सुझाव मिल जाते हैं यहाँ !
ReplyDeleteएक बढिया लेख अपने ब्लॉग को साफ़ सुथरा रखने के लिए | लेकिन ये सिर्फ उनके लिए सार्थक होगा जो सिर्फ अपनी लेखन शैली के बल पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं और लेखन शैली के बल पर पहचान बनाने में समय व परिश्रम लगता है ...|
ReplyDeleteटिप्स हिंदी में
आपकी यह बात बहुत ही पसंद आयी कि वेबसाइट का लेआउट व रूपरेखा सरलतम रखी जाये। सलाह काफी लोगों के काम की है.
ReplyDeletesahi kaha aapne...shor ko kam se kam hii rakhna chhaiye...yadi koi vigyapan laga raha hai...to usme bhi dhyan de sakta hai ki kaise lagaya jaye ki reader ko kam se kam asuvidha ho.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-694:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
bahut upyogi salaah aachcha aalekh.
ReplyDeleteलीजिये मैं आपसे कहने वाला था कि आपके ब्लॉग की थीम बदल कर थोड़ी आकर्षक कीजिये (आकर्षक का मतलब ताम-झाम वाली नहीं) पर अब पता चला आपने जानबूझकर ऐसी रखी है।
ReplyDeleteवैसे ज्यादा तामझाम वाली न सही पर ब्लॉग बिलकुल खाली पेज जैसा भी अच्छा नहीं लगता, जिस तरह का लेखन आप करते हैं आपके ब्लॉग की थीम डायरी शैली की या ऑटोमन शैली की होनी चाहिये।
मुख्य बात यह है कि ब्लॉग की थीम ब्लॉग के विषय से मेल खाती हो।
बढ़िया उपयोगी जानकारी देने के लिए आभार!
ReplyDeleteप्र्वीण जी नमस्कार, सुन्दर सोच अभिव्यक्ति ही पाठ्क को रुचिकर होती है सहमत हूं आपसे मेरे ब्लाग पर स्वागत है ।
ReplyDelete"आरिजो लब सादा रहने दो
ReplyDeleteताजमहल में रंग न डालो"
सुन्दर सन्देश...
सादर...
Feedly बढ़िया औजार है। गूगल रीडर से सिंक में!
ReplyDeleteशायद मोबाइल पर भी ठीक चलता होगा।
कसाव दार सटीक समालोचना .क्या मारा है सही खींच के .बेहतरीन व्यंग्य तेल देख तेल की धार देख अभी तो बेटा घुसा है काजल की कोठरी में .घुसा क्या घुसाया गया है .क्या मारा है सर बेहतरीन ,यथार्थ पर कटाक्ष
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी .हाँ भाई साहब रात को ध्वनी का वेग भी बढ़ जाता है आद्रता में अंतर आने से .पृष्ठभूमि शोर थम जाने से .अच्छी पोस्ट लिखी है आपने अद्यतन जानकारी समेटे .
बेहतरीन जानकारी .हाँ भाई साहब रात को ध्वनी का वेग भी बढ़ जाता है आद्रता में अंतर आने से .पृष्ठभूमि शोर थम जाने से .अच्छी पोस्ट लिखी है आपने अद्यतन जानकारी समेटे .
ReplyDeleteI know few ppl whose websites n blogs r full of unnecessary things... :D
ReplyDeleteyour blog is the most simplest one I love that about it :)
PS: Been away from blogosphere in past few days, hope u doing fine !!
अपनी तो कोशिश यही रहती है कि कोलाहल के हलाहल बनने से पहले ही संदेश समझ में आ जाये :)
ReplyDeleteहम गूगल रीडर में पढते हैं...और जो अच्छा लगता है वहाँ पर चल देते हैं|
ReplyDeleteबहुत अच्छा आलेख|
जीवन के सभी क्षेत्रों में संदेश और कोलाहल को पृथक पृथक कर ग्रहण कर लेने की क्षमता हमारे विकास की गति निर्धारित करती है।
ReplyDelete-एकदम निचोड़ यही है!!! आनन्द आ गया!
कोलाहल के बीच सन्देश ही नहीं जीवन ही गुम होने लगा है .आपकी ब्लोगिया दस्तक के लिए आभार शब्द की सीमा खुलके सामने आ चुकी है .
ReplyDeleteप्रेसेंट सर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और रोचक !!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग को यहाँ पढ़े
manojbijnori12 .blogspot .com
सहमत हूँ .कोलाहल से एकाग्रता बंटती है.
ReplyDeleteशत-प्रति-शत सही,सहज और सरल !
ReplyDeleteमैं ब्लॉग पढ़ने के लिए मुख्यतः रीडर का प्रयोग करता हूँ..वैसे मेरे ब्लॉग में भी बड़े सारे इधर उधर की चीज़ें भरी हैं :P
ReplyDeleteपूजा जी ने भी एक नयी बात बताई...:)
praveen ji
ReplyDeletebahut hi sateek avam vicharniy post.
bhad sateek tareeke se aapne vastu sthiti ko akxharshah spashht kiya hai.
bahut hi anukul vishhy
badhai
poonam
बिना विज्ञापन का समाचार पत्र! क्या कह रहे हैं भाई? आजकल तो समाचार पत्र छापते ही इसलिए हैं कि विज्ञापन छाप सकें.उनकी भी मजबूरी है, कर्मचारियों को वेतन कहाँ से देंगे?
ReplyDeleteप्रिय प्रवीण पाण्डेय जी बहुत सुन्दर सुझाव आप के कोलाहल कम हों और रचना दमदार हो ...इस पोस्ट पर दी गयी मेरी प्रतिक्रिया शायद हटा दी गयी ..या ..? अच्छा होता आप कुछ स्पष्ट कर देते .....
ReplyDeleteलेकिन अपवाद हर जगह है जैसा आप ने विज्ञापन के विषय में सब लिखा है रेडिओ टी वी कोई भी चैनेल बिना विज्ञापन के.... या बिना छवियों के ब्लाग आदि बहुत ही कम...कुछ ही लोग होंगे जो चल पा रहे हैं ...खुलने में आसानी और कम भार ये तो सच है ही ......हिंदी से कोई शायद ही कमा ले रहा हो लेकिन सर्च इंजिन या अन्य का लाभ लेने के लिए लोग कुछ मोह में तो हैं ही ...
सार्थक जानकारी
भ्रमर ५
आपकी राय मानते हुए मैने अपने ब्लाग से कोलाहल कुछ डेसीबेल्स कम कर दिये ।
ReplyDeleteमैं पूरी तरह से चुप्पी में सो बर्दाश्त नहीं कर सकता, मैं हमेशा पर एक प्रशंसक है तो. इसके अलावा, I'lll मैं जब से मेरे काम के दिन के अधिकांश के लिए अपने आइपॉड का उपयोग स्वीकार करते हैं कि
ReplyDeletehttp://www.arabie3lan.com الشيخ الروحاني
मैं कागजी कार्रवाई के माध्यम से काम कर रहा है यह एक बहुत खर्च करते हैं. मैं भी अक्सर मेरे सैर के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं, हालांकि, समय - समय पर, मैं इसके बिना जाना होगा और सिर्फ मेरे आसपास ध्वनियों को सुनने और अच्छे मौसम में ले लो.
बहुत बढ़िया
ReplyDelete