ब्राउज़र का प्रयोग आप सब करते हैं, यही एक सम्पर्क सूत्र है इण्टरनेट से जुड़ने का और ब्लॉग आदि पढ़ने का। कई प्रचलित ब्राउज़र हैं, क्रोम, फायरफॉक्स, सफारी, इण्टरनेट एक्सप्लोरर आदि। सबके अपने सुविधाजनक बिन्दु हैं, पुरानी जान पहचान है, विशेष क्षमतायें हैं। इसके पहले कि उनके गुणों की चर्चा करूँ, तथ्य जान लेते हैं कि किसका कितना भाग है?
लगभग २ अरब इण्टरनेट उपयोगकर्ता हैं, ९४% डेक्सटॉप(या लैपटॉप) पर, ६% टैबलेट(या मोबाइल) पर। डेक्सटॉप पर ९२% अधिकार विण्डो का व शेष मैक का है। टैबलेट पर ६२% अधिकार एप्पल का व शेष एनड्रायड आदि का है। टैबलेट में ब्राउज़र का हिसाब सीधा है, जिसका टैबलेट या मोबाइल, उसका ही ब्राउज़र, बस ओपेरा को मोबाइल धारकों के द्वारा अधिक उपयोग में लाया जाता है। डेक्सटॉप पर ब्राउज़र का हिस्सा बटा हुआ है, मुख्यतः चार के बीच, क्रोम, फायरफॉक्स, सफारी और इण्टरनेट एक्सप्लोरर के बीच।
२००४ तक ब्राउज़र पर लगभग इण्टरनेट एक्सप्लोरर का एकाधिकार था। २००४ से लेकर २००८ तक फायरफॉक्स ने वह हिस्सा आधा आधा कर दिया। २००८ में गूगल ने क्रोम उतारा और २०११ तक इन तीनों का हिस्सा लगभग एक तिहाई हो गया है। मैक ओएस में मुख्यतः सफारी और थोड़ा बहुत क्रोम भी प्रचलित है। जहाँ प्रतिस्पर्धा से सबसे अधिक लाभ उपयोगकर्ता को हुआ है, वहीं ब्राउज़र उतारने वालों के लिये यह इण्टरनेट के माध्यम से बढ़ते व्यापार पर प्रभुत्व स्थापित करने का उपक्रम है। पिछले दो वर्षों में जितना कार्य ब्राउज़र को उत्कृष्ट बनाने में हुआ है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। सबने ही एक के बाद एक ताबड़तोड़ संस्करण निकाले हैं, अपने अपने ब्राउज़रों के।
कौन सा ब्राउज़र उपयोग में लाना है, इसके लिये कोई स्थिर मानक नहीं हैं। जिसको जो सुविधाजनक लगता है, उस पर ही कार्य करता है, धीरे धीरे अभ्यस्त हो जाता है और अन्ततः उसी में रम जाता है। या कहें कि सबका स्तर एक सा ही है अतः किसी को भी उपयोग में ले आयें, अन्तर नहीं पड़ता है। फिर भी तीन मानक कहे जा सकते हैं, गति, सरलता व सुविधा, पर उन पक्षों के साथ कुछ हानि भी जुड़ी हैं। यदि गति अधिक होगी तो वह अधिक बैटरी खायेगा, सुविधा अधिक होगी तो अघिक रैम लगेगी और खुलने में देर भी लगेगी, सरल अधिक होगा तो हर सुविधा स्वयं ही जुटानी पड़ेगी।
जिस दिन से क्रोम प्रारम्भ हुआ है, उसी दिन से उस पर टिके हैं, कारण उसका सरल लेआउट, खोज और पता टाइप करने के लिये एक ही विण्डो, बुकमार्क का किसी अन्य मशीन में स्वयं ही पहुँच जाना, उपयोगी एक्सटेंशन और साथ ही साथ उसका अधिकतम तेज होना है। क्रोम के कैनरी संस्करण का भी उपयोग किया जिसमें आने वाले संस्करणों के बारे में प्रयोग भी चलते रहते हैं। मात्र दो अवसरों पर क्रोम से दुखी हो जाता था, पहला अधिक टैब होने पर उसका क्रैश कर जाना और दूसरा किसी भी वेब साइट को सीधे वननोट में भेजने की सुविधा न होना। बीच बीच में इण्टरनेट एक्सप्लोरर का नये संस्करण व फॉयरफाक्स पर कार्य किया पर दोनों ही उपयोग में बड़े भारी लगे। कुछ दिन घूम फिर कर अन्ततः क्रोम पर आना पड़ा।
जहाँ विण्डो में क्रोम का कोई विकल्प नहीं, मैक में परिस्थितियाँ भिन्न हैं। सफारी का प्रदर्शन जहाँ विण्डो में चौथे स्थान पर रहता है, मैक में उसे अपने घर में होने का एक बड़ा लाभ रहता है। मैक ओएस के अनुसार सफारी की संरचना की गयी है। क्रोम और सफारी दोनों में ही काम किया, बैटरी की उपलब्धता लगभग एक घंटे अधिक रहती है सफारी में। थोड़ा अध्ययन करने पर पता लगा कि कारण मुख्यतः ३ हैं। पहला तो क्रोम में प्रत्येक टैब एक अलग प्रोसेस की तरह चलता, यदि आपके १० टैब खुले हैं तो ११ प्रोसेस, एक अतिरिक्त क्रोम के लिये स्वयं, और हर प्रोसेस ऊर्जा खाता है। सफारी में कितने ही टैब खुले हों, केवल २ प्रोसेस ही चलते हैं, यद्यपि दूसरे प्रोसेस में रैम अधिक लगती है पर बैटरी बची रहती है। दूसरा कारण मैक ओएस के सुदृढ़ पक्ष के कारण है, मैक में यदि कोई प्रोसेस उपयोग में नहीं आता है तो वह तुरन्त सुप्तावस्था में चला जाता है। सफारी के उपयोग में न आ रहे टैब अवसर पाते ही सो जाते हैं, पर क्रोम की संरचना सुप्तावस्था में जाने के लिये नहीं बनी होने के कारण वह जगता रहता है और ऊर्जा पीता रहता है।
तीसरा कारण ग्राफिक्स व फ्लैश से सम्बन्धित है। एप्पल फ्लैश को छोड़ एचटीएमएल५ आधारित वीडियो लाने का प्रबल पक्षधर है, एप्पल का कहना है कि फ्लैश बहुत अधिक ऊर्जा खाता है और इस कारण से अन्य प्रक्रियाओं को अस्थिर कर देता है। एडोब व एप्पल का इस तथ्य को लेकर बौद्धिक युद्ध छिड़ा हुआ है। एचटीएमएल५ फ्लैश की तुलना में बहुत कम ऊर्जा खाता है। क्रोम में फ्लैश पहले से ही विद्यमान है और मैक में फ्लैश सपोर्ट न होने पर भी निर्बाध चलता है। सफारी में फ्लैश नहीं है, पर एक एक्सटेंशन के माध्यम से सारी फ्लैश वीडियो एचटीएमएल५ में परिवर्तित होकर आ जाते हैं, वह भी तब जब आदेश होते हैं। क्रोम प्रारम्भ करते ही उसकी जीपीयू(ग्राफिक्स प्रोसेसर यूनिट) स्वतः चल जाती हो, फ्लैश चले तो बहुत अधिक और न भी चले तब भी कुछ न कुछ ऊर्जा खाती रहती है।
मैक में अब हम वापस सफारी में आ गये हैं, क्रोम जितना ही तेज है, सरल भी है, पठनीय संदेश को बिना कोलाहल दिखाता है, कहीं अधिक स्थायी है और अथाह ऊर्जा बचाता है। क्यों न हो, देश की ऊर्जा जो बचानी है।
@ विवेक रस्तोगी जी - विण्डो में IE9 सबसे कम ऊर्जा खाता है पर सबसे तेज अभी भी क्रोम है। सफारी का प्रदर्शन मैक में ही सर्वोत्तम है।
लगभग २ अरब इण्टरनेट उपयोगकर्ता हैं, ९४% डेक्सटॉप(या लैपटॉप) पर, ६% टैबलेट(या मोबाइल) पर। डेक्सटॉप पर ९२% अधिकार विण्डो का व शेष मैक का है। टैबलेट पर ६२% अधिकार एप्पल का व शेष एनड्रायड आदि का है। टैबलेट में ब्राउज़र का हिसाब सीधा है, जिसका टैबलेट या मोबाइल, उसका ही ब्राउज़र, बस ओपेरा को मोबाइल धारकों के द्वारा अधिक उपयोग में लाया जाता है। डेक्सटॉप पर ब्राउज़र का हिस्सा बटा हुआ है, मुख्यतः चार के बीच, क्रोम, फायरफॉक्स, सफारी और इण्टरनेट एक्सप्लोरर के बीच।
कौन सा ब्राउज़र उपयोग में लाना है, इसके लिये कोई स्थिर मानक नहीं हैं। जिसको जो सुविधाजनक लगता है, उस पर ही कार्य करता है, धीरे धीरे अभ्यस्त हो जाता है और अन्ततः उसी में रम जाता है। या कहें कि सबका स्तर एक सा ही है अतः किसी को भी उपयोग में ले आयें, अन्तर नहीं पड़ता है। फिर भी तीन मानक कहे जा सकते हैं, गति, सरलता व सुविधा, पर उन पक्षों के साथ कुछ हानि भी जुड़ी हैं। यदि गति अधिक होगी तो वह अधिक बैटरी खायेगा, सुविधा अधिक होगी तो अघिक रैम लगेगी और खुलने में देर भी लगेगी, सरल अधिक होगा तो हर सुविधा स्वयं ही जुटानी पड़ेगी।
जिस दिन से क्रोम प्रारम्भ हुआ है, उसी दिन से उस पर टिके हैं, कारण उसका सरल लेआउट, खोज और पता टाइप करने के लिये एक ही विण्डो, बुकमार्क का किसी अन्य मशीन में स्वयं ही पहुँच जाना, उपयोगी एक्सटेंशन और साथ ही साथ उसका अधिकतम तेज होना है। क्रोम के कैनरी संस्करण का भी उपयोग किया जिसमें आने वाले संस्करणों के बारे में प्रयोग भी चलते रहते हैं। मात्र दो अवसरों पर क्रोम से दुखी हो जाता था, पहला अधिक टैब होने पर उसका क्रैश कर जाना और दूसरा किसी भी वेब साइट को सीधे वननोट में भेजने की सुविधा न होना। बीच बीच में इण्टरनेट एक्सप्लोरर का नये संस्करण व फॉयरफाक्स पर कार्य किया पर दोनों ही उपयोग में बड़े भारी लगे। कुछ दिन घूम फिर कर अन्ततः क्रोम पर आना पड़ा।
जहाँ विण्डो में क्रोम का कोई विकल्प नहीं, मैक में परिस्थितियाँ भिन्न हैं। सफारी का प्रदर्शन जहाँ विण्डो में चौथे स्थान पर रहता है, मैक में उसे अपने घर में होने का एक बड़ा लाभ रहता है। मैक ओएस के अनुसार सफारी की संरचना की गयी है। क्रोम और सफारी दोनों में ही काम किया, बैटरी की उपलब्धता लगभग एक घंटे अधिक रहती है सफारी में। थोड़ा अध्ययन करने पर पता लगा कि कारण मुख्यतः ३ हैं। पहला तो क्रोम में प्रत्येक टैब एक अलग प्रोसेस की तरह चलता, यदि आपके १० टैब खुले हैं तो ११ प्रोसेस, एक अतिरिक्त क्रोम के लिये स्वयं, और हर प्रोसेस ऊर्जा खाता है। सफारी में कितने ही टैब खुले हों, केवल २ प्रोसेस ही चलते हैं, यद्यपि दूसरे प्रोसेस में रैम अधिक लगती है पर बैटरी बची रहती है। दूसरा कारण मैक ओएस के सुदृढ़ पक्ष के कारण है, मैक में यदि कोई प्रोसेस उपयोग में नहीं आता है तो वह तुरन्त सुप्तावस्था में चला जाता है। सफारी के उपयोग में न आ रहे टैब अवसर पाते ही सो जाते हैं, पर क्रोम की संरचना सुप्तावस्था में जाने के लिये नहीं बनी होने के कारण वह जगता रहता है और ऊर्जा पीता रहता है।
तीसरा कारण ग्राफिक्स व फ्लैश से सम्बन्धित है। एप्पल फ्लैश को छोड़ एचटीएमएल५ आधारित वीडियो लाने का प्रबल पक्षधर है, एप्पल का कहना है कि फ्लैश बहुत अधिक ऊर्जा खाता है और इस कारण से अन्य प्रक्रियाओं को अस्थिर कर देता है। एडोब व एप्पल का इस तथ्य को लेकर बौद्धिक युद्ध छिड़ा हुआ है। एचटीएमएल५ फ्लैश की तुलना में बहुत कम ऊर्जा खाता है। क्रोम में फ्लैश पहले से ही विद्यमान है और मैक में फ्लैश सपोर्ट न होने पर भी निर्बाध चलता है। सफारी में फ्लैश नहीं है, पर एक एक्सटेंशन के माध्यम से सारी फ्लैश वीडियो एचटीएमएल५ में परिवर्तित होकर आ जाते हैं, वह भी तब जब आदेश होते हैं। क्रोम प्रारम्भ करते ही उसकी जीपीयू(ग्राफिक्स प्रोसेसर यूनिट) स्वतः चल जाती हो, फ्लैश चले तो बहुत अधिक और न भी चले तब भी कुछ न कुछ ऊर्जा खाती रहती है।
मैक में अब हम वापस सफारी में आ गये हैं, क्रोम जितना ही तेज है, सरल भी है, पठनीय संदेश को बिना कोलाहल दिखाता है, कहीं अधिक स्थायी है और अथाह ऊर्जा बचाता है। क्यों न हो, देश की ऊर्जा जो बचानी है।
@ विवेक रस्तोगी जी - विण्डो में IE9 सबसे कम ऊर्जा खाता है पर सबसे तेज अभी भी क्रोम है। सफारी का प्रदर्शन मैक में ही सर्वोत्तम है।
सर इंटरनेट की दुनिया से जुड़ी उम्दा जानकारी देने के लिए आभार
ReplyDeleteसर इंटरनेट की दुनिया से जुड़ी उम्दा जानकारी देने के लिए आभार
ReplyDeleteआपकी किसी पोस्ट की हलचल है ... शनिवार (५-११-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ......कृपया पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें .....!!!धन्यवाद.
ReplyDeleteDhanya ho gaye ham browser katha sun ke!!
ReplyDeleteपुनः एक जानकारी भरी पोस्ट !
ReplyDeleteमैं भी अब क्रोम पर ज्यादा निर्भर हूँ.पहले फायर फ़ॉक्स भी खूब अच्छा लगता था पर जैसा आपने बताया,कहीं न कहीं टिकना तो होता ही है ! एक्सप्लोरर भी देखते रहते हैं पर अब उसमें ज्यादा आकर्षण रहा नहीं !
आप सफारी का मज़ा लें और अपनी ऊर्जा बचाएँ
बहुत बढ़िया समीक्षा की है आपने| हम तो क्रोम व फायरफोक्स दोनों में उलझें है|
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण आधारभूत जानकारी
ReplyDeleteइतनी उपयोगी जानकारी देने के लिए आपका आभार!
ReplyDeletebahut he acchi jaankari de hai aapne, main zada tar, firefox ya IE he use karti hu
ReplyDeleteपर क्या सफ़ारी विन्डोज में भी ऐसे ही परिणाम देता है ? अगर कुछ ऐसा है तो हम भी सफ़ारी पर चल देंगे। ऊर्जा जितनी बचाई जाये उतनी अच्छी है, और इसके लिये सबको प्रतिबद्ध होना चाहिये।
ReplyDeletebehatreen jankari...dhanywad bhaisahab!!
ReplyDeleteजब से क्रोम आया है हम भी इसी के साथ काम करते हैं, आभार।
ReplyDeletekitna padhen ?.... ant me sab bhul jayenge
ReplyDeleteशुक्रिया , बेहतरीन जानकारी के लिए ....
ReplyDeleteअब सफारी ट्राय करते हैं !
बहुत अच्छी जानकारी ... फिलहाल तो क्रोम पर ही अटके हुए हैं ..
ReplyDeleteमजा आ गया आप तो जानकारी भी बहुत जबदस्त तरीके से देते है !
ReplyDeleteNice peice of Information Dear Pravin Bhai..I like Crome in Windows..Will try Safari also soon...
ReplyDeleteहम तो क्रोम पर ही काम करते हैं। बाक़ी सब से अधिक सरल और तेज़ लगता है मुझे।
ReplyDeleteअपनी तो आदत फायरफॉक्स की है सर!
ReplyDeleteवैसे बहुत उपयोगी जानकारी दी है आपने !
सादर
अपन भी क्रोम पे फ़िदा हैं...
ReplyDeleteनीरज
प्रवीण जी,
ReplyDeleteतकनीक के बारे में इतने सरल भाषा में उपयोगी जानकारी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
सार्थक जानकारी
उपयोगी जानकारी देने के लिए आपका आभार!
ReplyDeleteबेहद उम्दा जानकारी ...
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत ही ज्ञानवर्धक प्रस्तुति ...आभार ।
ReplyDeleteअत्यन्त पठनीय लेख।
ReplyDeleteदो बातें:
१)हम ने अपना अंतर्जाल में भ्रमण करना शुरू किया था पिछली सदी में, नेट्स्केप नैविगेटर से
क्या हुआ उसका? किसी को कोई खबर है? इन्टर्नेट एक्स्प्लोरर ने उसे शायद खत्म कर दिया।
२)आजकल कुछ ऐसे applications हैं जिसे download और install करने की आवश्यकता नहीं। बस ब्राऊसर में ही चलते हैं। मैं मानता हूँ कि आगे चलकर जो ब्राऊसर इसकी सब से ज्यादा सुविधा देगी, वह अधिक सफ़ल होगा।
शुभकामानाएं
जी विश्वनाथ
जानकारी भरा आलेख पठनीय है.
ReplyDeleteलम्बे समय तक फॉयरफॉक्स प्रयोग करने के बाद अब क्रोम की संगति में हूं।
ReplyDeleteइंटरनेट एवं ब्राउजर के बावत बढ़िया जानकारी के लिए आभार ....
ReplyDeleteमेरे पोस्ट में स्वागत है ....
डेस्कटॉप पर काम करते हैं जी
ReplyDeleteऔर
@जहाँ विण्डो में क्रोम का कोई विकल्प नहीं
यही सत्य लगता है.
बहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteमुझे तो अंतत: एक्सप्लोरर पर ही लौट आना पड़ता है.
हम भी क्रोम पर टिके हुए हैं पाण्डेय जी:)
ReplyDeleteवाह ब्राउज़र पर ऊर्जा की दृष्टि से यह पहला लेख पढ़ा धन्यवाद
ReplyDeleteमेरे लिए तो यह जानकारी बहुत काम की है..... बहुत कुछ पता चला ब्राउज़र्स के विषय में.... आभार
ReplyDeleteये सारे ब्राउज़र व्यर्थ हैं , मेरा ब्राउज़र मेरी श्रीमती जी है ,कौन सा सामान कहां रखा है, सालों पुरानी चीज़ें ,तमाम पुराने रिश्ते नाते ,सब झट ढूंढ लाती है,वह तो बड़े करीने से अपने फ़ेसटॉप पर मेरे प्रति सारे भावों का आइकॉन सजा रखती है, जब चाहो फ़ट क्लिक करो और समझ लो.और नाराज़ होने पे आँसू ऐसी तेजी से डाऊनलोड करती हैं कि बस ’रेनड्रॉप वाइरस’ की याद आ जाती है ....
ReplyDeleteहम तो फायर फॉक्स और क्रोम के बीच ही छलांग लगाते रहते हैं
ReplyDeleteनयी तकनीकों के आपके विश्लेषणों का जवाब नहीं. प्रस्तुत आलेख भी इसका एक उदहारण है. ऊर्जा सयांचित करने का प्रयास अवश्य करेंगे सिर्फ क्रोम का प्रयोग करके.
ReplyDeleteहर ब्राऊज़र की अपनी अपनी खूबियाँ और खामियां हैं
ReplyDeleteहम तो इंटरनेट एक्स्प्लोरर के अलावा हर उपलब्ध ब्राऊज़र का इस्तेमाल करते हैं
@ G Vishwanath जी
नेटस्केप नेवीगेटर हमने भी खूब इस्तेमाल किया लेकिन वह तो 2008 के बाद अपडेट ही नहीं हुआ और अब सुरक्षा कारणों से जागरूक उपयोगकर्ता उसका प्रयोग बंद कर चुके
अब कभी कभी मन करता है तो इस लिंक पर अपनी मेल देख आते हैं क्या पता कोई हमें उस पर अभी भी याद कर रहा हो :-)
इतनी तो जानकारी थी .....
ReplyDeleteमैं तो फायरफोक्स इस्तेमाल करती हूँ .....
अब इसी में आदत पड़ गई है .....
शोध परक आलेख के लिए शुक्रिया .जानकारी से भरपूर लघु कलेवर में बड़ी बात .
ReplyDeleteएक और उपयोगी जानकारी के लिये आभार.
ReplyDeleteमेरी मोबाईल टिप्पणी शायद रास्ते में ही कहीं अटक गई ।
aapke tecnology se related gyan ko dekh kar aaschrya hota hai...aapka comparison achha laga...shayd hi hindi mein is vishay par kahin aur aisa vishleshan meile..:)
ReplyDeleteबाप रे! आप तो बड़ी ज्ञान की बातें बताते हैं लेकिन हमारे पल्ले कुछ नहीं पड़ता। हम तो इतना जानते हैं कि गूगल क्रोम का इस्तेमाल करते हैं और कोई परेशानी नहीं आई। कमवे का है?.. पोस्ट करना कमेंट करना बस।
ReplyDeleteआप हमारे net tech गुरु बन जाइये.
ReplyDeleteआपकी जाकारी ,हाजरी और हाज़िर ज़वाबी का ज़वाब नहीं .महत्वपूर्ण अपडेट मुहैया करवातें हैं आप .आभार आपका .
ReplyDeleteउर्जा बचत में आपके इस अतुलनीय योगदान के मद्दे नजर भारत रत्न के लिए आपके नाम की अनुशंसा की जाती है. :)
ReplyDeleteसुन्दर समीक्षा. हम भी थक हार कर अब क्रोम से ही जुड़े हुए हैं.
ReplyDeleteChrome ki tarif aap ne ki hi......Apne bacchon se bhii suni...try bhii kiya....lekin na jaane kyun mujhe firefox hi pasand aaya hai..IE to arsa hua use nahin karti...Aap ne vistaar se jaankari di,shukriya.
ReplyDeleteइन्टरनेट व् I T की अधिक जानकारी nahi hai kintu fire फोक्स ही अच्छा लगा
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी हेतु आभार !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html
बहुत उपयोगी जानकारी...वैसे जब से क्रोम से जुड़े हैं वह सुविधाजनक लगा..
ReplyDeleteवाह जितनी अच्छी जानकारी उतनी अच्छी पोस्ट मेरे ख्याल से सभी ज्यादा तर chrome वाले ही मिलेंगे आपको :)
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिली | अबतक फायरफोक्स का ही इस्तेमाल करते आयें है | पिछले 8 साल से इसी पर अटके हुए हैं | आप गूगल क्रोम का प्रयोग करके भी देखेंगे |
ReplyDeleteटिप्स हिंदी में
बाप रे! इतनी जानकारियॉं? मैं बहुत सुखी हूँ। कुछ भी नहीं जानता। बेटे ने कहा था कि वह मेरे लेपटॉप पर क्रोम स्थापित कर रहा है और मैंने इसी के सहारे अपना, इण्टरनेट का काम करना चाहिए। तब से बेटे का कहा मान रहा हूँ और कोई असुविधा नहीं है। मुझे लग रहा है कि मैं जितना कम जानूँगा, उतना सुखी रहूँगा।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी ,शुक्रिया.
ReplyDeleteक्रोम सुविधाजनक है ...
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी!
अपने को तो गूगल क्रोम में ही मजा आता है ... सफारी भी जम नहीं पाता ...
ReplyDeleteइस खूबसूरत जानकारी के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद |
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteइस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद |
ReplyDeleteप्रवीण पाण्डेय जी अभिवादन -इन्टरनेट और सरलीकरण कोलाहल के विषय में बहुत सुन्दर जानकारी दी आप ने आभार -
ReplyDeleteरही बात बिना विज्ञापनों के तो वैसे तो शायद ही कोई हिंदी लिख के विज्ञापनों का उचित लाभ ले पा रहा लेकिन कुछ लोभ तो अवश्य है की सर्च इंजिन्स या अधिक पाठक आदि -टी वी आदि जिसका आप ने जिक्र किया सब तो इस से भरे पड़े हैं .
भ्रमर ५
हमारा पहला ब्राउजर इंटरनेट ऍक्सप्लोरर था। फिर टैब्स का मजा लेने ऑपेरा पर आये (ऑपेरा पहला ब्राउजर था जो टैब सुविधा लाया था), उस समय वह हमारा प्यारा ब्राउजर था। फायरफॉक्स के आने पर उसकी ऍक्सटेंशन सुविधा के कारण उसके दीवाने हुये। क्रोम आया, हल्का-फुल्का होने से अच्छा लगा, ऍक्सटेंशन भी हैं पर फायरफॉक्स जितनी अभी नहीं।
ReplyDeleteवैसे आम प्रयोक्ता के लिये मेरे विचार से क्रोम सबसे अच्छा है और गीक के लिहाज से फायरफॉक्स और क्रोम।
फायरफॉक्स की एक ही कमी है - मेमोरी लीक। कुछ समय चले रहने पर मेमोरी लीक होने लगती है यानि यह समय समय पर मेमोरी फ्री नहीं करता। इस कारण कई बार इसे छोड़ने का मन हुआ पर इसकी ऍक्सटेंशनों के विकल्प अभी क्रोम में न होने से छोड़ नहीं पा रहे।
मैंने लगभग सभी ब्राउजर इस्तेमाल किया है लेकिन सबसे बेहतर क्रोम ही लगा...मैक तो इस्तेमाल किया नहीं अब तक...
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