भोजन पर सब साथ बैठे थे, टेलीविजन को विश्राम दे दिया गया था, सबकी अपनी व्यस्तता में यही समय ऐसा मिलता है जब सब एक साथ बैठकर इधर उधर की बातें करते हैं। बच्चों के प्रति मन में स्नेह सदा ही रहा है, उनकी ऊर्जा एक प्रकाश स्तम्भ की तरह हम जैसे दूर जाते जहाजों को जीवन से जुड़े रहने का संकेत देती रहती है। यद्यपि स्वयं भी बचपन की राहों से होकर बड़ा हुआ हूँ पर अब भी औरों के बचपन से कुछ न कुछ सीखने की ललक बनी रहती है। उनको कभी हल्के में लेने का प्रश्न ही नहीं रहा, पहले उनके पालन में, फिर उनके प्रश्नों के उत्तर ढूढ़ने में और उनकी विचार प्रक्रिया समझने में समुचित सतर्कता बनाये रखनी पड़ती है। निश्चय मान लीजिये यदि आज उन्हें हल्के में लिया तो भविष्य में वही हल्कापन ससम्मान वापस मिल जायेगा।
यदि बच्चे आपकी व्यस्तता में आपका समय चाहते हैं तो या आप अपने कार्य को थोड़ा विराम देकर उनकी शंकाओं का समाधान कर दें या उन्हें यह बता दें कि आप उन्हें कब समय दे पायेंगे। झिड़क देने से या टहला देने से, आत्मीयता कुंठित होने लगती है और धीरे धीरे अपने आधार ढूढ़ने कहीं और चली जाती है। बच्चों को सम्मान देने का अर्थ यह कभी नहीं है कि उन्हें अनुशासन में न रहने का अधिकार मिल गया, वरन यह संदेश स्पष्ट करने का उपक्रम है कि उन्हें सकारात्मकता में पूर्ण सहयोग मिलेगा और नकारात्कता में पूर्ण विरोध।
भोजन के अतिरिक्त बच्चों को सोते समय कुछ न कुछ सुनाते अवश्य हैं, मुझे या श्रीमतीजी, जिसको भी समय मिल जाये। श्रीमतीजी कहानी सुनाती हैं और मेरे हिस्से पड़ती हैं शेष जिज्ञासायें। मुझे कोई एक विषय देते हैं बच्चे और उस पर मुझे जो भी आता है, मुझे वह उनके समझने योग्य भाषा में सुनाना पड़ता है। पता नहीं कि कहानी सुनाने से मेरे लेखन को बल मिलता है या मेरे लेखकीय कर्म कहानी सुनाने को सरल बना देते हैं, पर इस कार्य में रोचकता सदा ही बनी रहती है। यह बात अलग है कि कभी कहानी सुनाते सुनाते मुझे भी नींद आ जाती है। बच्चों द्वारा प्रदत्त पिछले पाँच विषयों को देखकर आप मेरी दशा का अनुमान लगा सकते हैं। ये थे मौसम की भविष्यवाणी, टैंक की कार्यप्रणाली, फिल्मों का निर्माण, विद्युत का आविष्कार और कम्प्यूटर एनीमेशन। दिन भर थक जाने के बाद आपको इन विषयों पर बोलने को कहा जाये तो संभवतः आपको भी बच्चों के पहले ही नींद आ जाये। बच्चे भी अब ढूढ़ ढूढ़कर विषय लाने लगे हैं और मेरी परीक्षा लेने लगे हैं। जो भी परिणाम आये इस परीक्षा के, पर अब धीरे धीरे इस प्रक्रिया में आनन्द आने लगा है।
अन्य संवादों का संदर्भ देने का अभिप्राय उस स्तर को बताने का था जिस पर बच्चों का बौद्धिक आत्मविश्वास अधिकार बनकर झलकता है। यदि कहा जाये कि भोजन की मेज पर सबके बीच बराबर के स्तर पर बातचीत होती है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
विषय था रॉकस्टार के गानों का, घर में सबको ही बहुत अच्छे लगे वे गाने, और उनके बोल भी। निर्णय लिया गया कि बच्चों की परीक्षाओं के बाद देखी जायेगी। गानों की तरह ही उसकी कहानी भी अच्छी होनी चाहिये। इतने में आठ वर्षीय बिटिया बोल उठीं कि मुझे मालूम कि कहानी क्या होगी। अच्छा, जब फिल्म देखी नहीं तो कैसे पता चली? बिटिया बोलीं, उसके गानों से। आश्चर्य, बड़े बड़े फिल्म समीक्षक भी किसी फिल्मों की कहानी उसके गाने देखकर नहीं बता सकते हैं, टीवी पर पाँच गाने देखकर बिटिया कहानी बताने को तैयार हैँ। भोजन का कौर जहाँ था, वहीं रुक गया, बिटिया कहानी बताने लगी।
रणबीर कपूर एक अच्छा लड़का होता है, गिटार बजाता है मंदिर में, हल्का हल्का अच्छा गाना गाता है (गीत फाया कुन)। फिर एक लड़की आती है जिसे वह मोटर साइकिल में घुमाता है, वही लड़की हीरो को बिगाड़ देती है, दोनों बेकार पिक्चर देखने जाते हैं (गीत कतिया करूँ)। लड़का उस लड़की के साथ और बिगड़ जाता है, दाढ़ी बढ़ा लेता है, बेकार से कपड़े पहनता है और तेज तेज गाना गाता है (गीत जो भी मैं)। फिर वह सबके साथ लड़ाई करने लगता है, गाने में एक बार गाली भी देता है, पुलिस से भी लड़ता है और पुलिस उसे पकड़कर भी ले जाती है (गीत साडा हक)। जब उसे अपनी गलती पता चलती है तो उसे बहुत खराब लगता है और वह पहले जैसा होना चाहता है (गीत नादान परिन्दे)।
इतनी स्पष्ट कहानी सुन मेरी बुद्धि स्तब्ध सी रह गयी। पता नहीं, कहानी यह है कि नहीं, वह तो देखने पर ही पता चलेगा, पर अपने घर में एक नये फिल्म समीक्षक को पाकर हम धन्य हो गये।
यदि बच्चे आपकी व्यस्तता में आपका समय चाहते हैं तो या आप अपने कार्य को थोड़ा विराम देकर उनकी शंकाओं का समाधान कर दें या उन्हें यह बता दें कि आप उन्हें कब समय दे पायेंगे। झिड़क देने से या टहला देने से, आत्मीयता कुंठित होने लगती है और धीरे धीरे अपने आधार ढूढ़ने कहीं और चली जाती है। बच्चों को सम्मान देने का अर्थ यह कभी नहीं है कि उन्हें अनुशासन में न रहने का अधिकार मिल गया, वरन यह संदेश स्पष्ट करने का उपक्रम है कि उन्हें सकारात्मकता में पूर्ण सहयोग मिलेगा और नकारात्कता में पूर्ण विरोध।
भोजन के अतिरिक्त बच्चों को सोते समय कुछ न कुछ सुनाते अवश्य हैं, मुझे या श्रीमतीजी, जिसको भी समय मिल जाये। श्रीमतीजी कहानी सुनाती हैं और मेरे हिस्से पड़ती हैं शेष जिज्ञासायें। मुझे कोई एक विषय देते हैं बच्चे और उस पर मुझे जो भी आता है, मुझे वह उनके समझने योग्य भाषा में सुनाना पड़ता है। पता नहीं कि कहानी सुनाने से मेरे लेखन को बल मिलता है या मेरे लेखकीय कर्म कहानी सुनाने को सरल बना देते हैं, पर इस कार्य में रोचकता सदा ही बनी रहती है। यह बात अलग है कि कभी कहानी सुनाते सुनाते मुझे भी नींद आ जाती है। बच्चों द्वारा प्रदत्त पिछले पाँच विषयों को देखकर आप मेरी दशा का अनुमान लगा सकते हैं। ये थे मौसम की भविष्यवाणी, टैंक की कार्यप्रणाली, फिल्मों का निर्माण, विद्युत का आविष्कार और कम्प्यूटर एनीमेशन। दिन भर थक जाने के बाद आपको इन विषयों पर बोलने को कहा जाये तो संभवतः आपको भी बच्चों के पहले ही नींद आ जाये। बच्चे भी अब ढूढ़ ढूढ़कर विषय लाने लगे हैं और मेरी परीक्षा लेने लगे हैं। जो भी परिणाम आये इस परीक्षा के, पर अब धीरे धीरे इस प्रक्रिया में आनन्द आने लगा है।
अन्य संवादों का संदर्भ देने का अभिप्राय उस स्तर को बताने का था जिस पर बच्चों का बौद्धिक आत्मविश्वास अधिकार बनकर झलकता है। यदि कहा जाये कि भोजन की मेज पर सबके बीच बराबर के स्तर पर बातचीत होती है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
इतनी स्पष्ट कहानी सुन मेरी बुद्धि स्तब्ध सी रह गयी। पता नहीं, कहानी यह है कि नहीं, वह तो देखने पर ही पता चलेगा, पर अपने घर में एक नये फिल्म समीक्षक को पाकर हम धन्य हो गये।