दीवाली के पहले की एक परम्परा होती है, घर की साफ़ सफाई। घर में जितना भी पुराना सामान होता है, वह या तो बाँट दिया जाता है या फेंक दिया जाता है। वर्षा ऋतु की उमस और सीलन घर की दीवारों और कपड़ों में भी घुस जाती है। उन्हें बाहर निकालकर पुनः व्यवस्थित कर लेना स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत आवश्यक है। जाड़े के आरम्भ में एक बार रजाई-गद्दों और ऊनी कपड़ों को धूप दिखा लेने से जाड़ों से दो दो हाथ करने का संबल भी मिल जाता है। पुराने कपड़ों को छोड़ने का सीधा सा अर्थ है नयों को सिलवाना। नयेपन का प्रतीक है, दीवाली का आगमन।
बचपन से यही क्रम हर बार देखा। इस प्रक्रिया के बाद, घर के वातावरण में आया हल्कापन सदा ही अगली बार के उत्साह का कारण बना रहा। विवाहोपरान्त नयी गृहस्थी में भी वार्षिक नवीनीकरण से ऊर्जा मिलती रही। अभी तक तो सबका सामान व्यवस्थित रखने में स्वयं ही जूझना पड़ता था, सामान मुख्यतः व्यक्तिगत और सबके साझा उपयोग का, साथ में बच्चों का भी थोड़ा बहुत। श्रीमतीजी का सामान व्यवस्थित करने की न तो क्षमता है और न ही अनुमति। इस बार हमने बच्चों को भी इस प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेने को कहा, उन्हे अपने सामान के बारे में निर्णय लेने को भी कहा। बच्चों को अपने सामान की उपयोगिता समझने व उसे सहेजने का गुण विकसित होते देखना किसी भी पिता के लिये गर्व का विषय है।
दोनों बच्चों के अपने अलग कमरे हैं। दोनों को बस इतना कहा गया कि कोई भी वस्तु, कपड़ा या खिलौना, जो आप उपयोग में नहीं लाते हैं, आप उन्हें अपने कमरे से हटा दें, वह इकठ्ठा कर घर में काम करने वालों को बाँट दिया जायेगा। उसके पहले उदाहरण स्वरूप मैंने अपना व्यक्तिगत सामान लगभग २५% कम करते हुये शेष सबको एक अल्मारी में समेट दिया। साझा उपयोग के सामान, फर्नीचर व पुराने पड़ गये इलेक्ट्रॉनिक सामानों को निर्ममता से दैनिक उपयोग से हटा दिया। अपने कमरे में जमीन पर ही बिस्तर बिछा कर सोने से एक बेड को विश्राम मिल गया। ऊर्जा सोखने वाले डेस्कटॉप को हटा वहाँ अपना पुराना लैपटॉप रख दिया। एक अतिरिक्त सोफे को भी ड्रॉइंग-कक्ष से विदा दे गैराज भेज दिया गया।
अपने कक्ष व ड्राइंग-कक्ष में इस प्रकार व्यवस्थित किये न्यूनतम सामान से वातावरण में जो ऊर्जा व हल्कापन उत्पन्न हुआ, उसका प्रभाव बच्चों पर पड़ना स्वाभाविक था। उन्हें यह लगा कि कम से कम सामान में रहने का आनन्द अधिकतम है। अधिक खिलौनों का मोह निश्चय ही उनपर बना रहता यदि न्यूनतम सामान का आनन्द उन्होने न देखा होता। आवश्यक दिशानिर्देश देकर हम तो कार्यालय चले गये, लौटकर जो दृश्य हमने देखा, उसे देखकर सारा अस्तित्व गदगद हो उठा।
एक दिन के अन्दर ही दोनों के कमरे अनावश्यक व अतिरिक्त सामानों से मुक्ति पा चुके थे। पुराने के मोह और भविष्य की चिन्ता से कहीं दूर वर्तमान में जीने का संदेश ऊर्जस्वित कर रहे थे दोनों कमरे। न्यूनतम में रह लेने का उनका विश्वास, उनके स्वयं निर्णय लेने के विश्वास के साथ बैठा निश्चिन्त दिख रहा था। उनके द्वारा त्यक्त सामानों से उठाकर कुछ सामान मुझे स्वयं उनके कमरे में वापस रखना पड़ा।
पुराने सामानों को सहेज कर रख लेने का मोह, संभवतः वह आगे कभी काम आ जाये, या उससे कोई याद जुड़ी हो, साथ ही भविष्य के लिये सुदृढ़ आधार बनाने की दिशा में घर में ठूँस लिये गये सामान, दोनों के बीच हमारा वर्तमान निरीह सा खड़ा रहता है। वर्तमान का सुख अटका रहता है, अस्तित्व के इसी भारीपन में। मेरे लिये यही क्या कम है कि बच्चों में यह समझ विकसित हो रही है कि उनके लिये क्या आवश्यक है, क्या नहीं? हल्केपन के आनन्द के सामने त्यक्त व अनुपयोगी सामानों का क्या मूल्य, संभवतः उन्हें अपना उचित स्वामी मिल ही जायेगा।
घर आयी इस नवप्राप्त ऊर्जा में दीवाली के दियों का प्रकाश जगमगा उठा है। हर वर्ष के क्रम को इस वर्ष एक विशेष सम्मान मिला है, मेरे घर में दीवाली इस बार सफल हुयी है। बस एक कमरा अभी भी भण्डारवत है, श्रीमतीजी का, पर हम तीनों का दबाव उस पर बना रहेगा, अगली दीवाली तक।
बचपन से यही क्रम हर बार देखा। इस प्रक्रिया के बाद, घर के वातावरण में आया हल्कापन सदा ही अगली बार के उत्साह का कारण बना रहा। विवाहोपरान्त नयी गृहस्थी में भी वार्षिक नवीनीकरण से ऊर्जा मिलती रही। अभी तक तो सबका सामान व्यवस्थित रखने में स्वयं ही जूझना पड़ता था, सामान मुख्यतः व्यक्तिगत और सबके साझा उपयोग का, साथ में बच्चों का भी थोड़ा बहुत। श्रीमतीजी का सामान व्यवस्थित करने की न तो क्षमता है और न ही अनुमति। इस बार हमने बच्चों को भी इस प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेने को कहा, उन्हे अपने सामान के बारे में निर्णय लेने को भी कहा। बच्चों को अपने सामान की उपयोगिता समझने व उसे सहेजने का गुण विकसित होते देखना किसी भी पिता के लिये गर्व का विषय है।
अपने कक्ष व ड्राइंग-कक्ष में इस प्रकार व्यवस्थित किये न्यूनतम सामान से वातावरण में जो ऊर्जा व हल्कापन उत्पन्न हुआ, उसका प्रभाव बच्चों पर पड़ना स्वाभाविक था। उन्हें यह लगा कि कम से कम सामान में रहने का आनन्द अधिकतम है। अधिक खिलौनों का मोह निश्चय ही उनपर बना रहता यदि न्यूनतम सामान का आनन्द उन्होने न देखा होता। आवश्यक दिशानिर्देश देकर हम तो कार्यालय चले गये, लौटकर जो दृश्य हमने देखा, उसे देखकर सारा अस्तित्व गदगद हो उठा।
पुराने सामानों को सहेज कर रख लेने का मोह, संभवतः वह आगे कभी काम आ जाये, या उससे कोई याद जुड़ी हो, साथ ही भविष्य के लिये सुदृढ़ आधार बनाने की दिशा में घर में ठूँस लिये गये सामान, दोनों के बीच हमारा वर्तमान निरीह सा खड़ा रहता है। वर्तमान का सुख अटका रहता है, अस्तित्व के इसी भारीपन में। मेरे लिये यही क्या कम है कि बच्चों में यह समझ विकसित हो रही है कि उनके लिये क्या आवश्यक है, क्या नहीं? हल्केपन के आनन्द के सामने त्यक्त व अनुपयोगी सामानों का क्या मूल्य, संभवतः उन्हें अपना उचित स्वामी मिल ही जायेगा।
घर आयी इस नवप्राप्त ऊर्जा में दीवाली के दियों का प्रकाश जगमगा उठा है। हर वर्ष के क्रम को इस वर्ष एक विशेष सम्मान मिला है, मेरे घर में दीवाली इस बार सफल हुयी है। बस एक कमरा अभी भी भण्डारवत है, श्रीमतीजी का, पर हम तीनों का दबाव उस पर बना रहेगा, अगली दीवाली तक।
...कल मैंने भी नेफ़्थालिन की गोलियां ख़रीदीं, आजकल किश्तों में घर की दीवारों की पुताई कर रहा हूं... :)
ReplyDeleteसफाई दिवाली में आवश्यक कर्म हो गया है! अगले साल तक इंतजार करे !
ReplyDeleteदिवाली पर घर की साफ़ सफाई करने की परम्परा का यही फायदा है कम से कम इस बहाने पुरे घर की सफाई हो जाति है |
ReplyDeleteGyan Darpan
RajputsParinay
भण्डारवत कमरा, हमारी पुस्तकों की आलमारी जैसा है, अचानक जरूरत आन पड़ने पर, ऐन वक्त पर कुछ न कुछ उपयुक्त निकल ही आता है. एक कमरा ऐसा बना रहे तभी घर की व्यवस्था और सफाई निभ पाती है.
ReplyDeleteइसे कहते हैं समझदार सफाई... बच्चों को उचित सिखाते हुए
ReplyDeleteनवप्राप्त उर्जा से आपसभी यूँ ही दीप्त हों..
ReplyDeleteन्यूनतम सामान में रहने का आनन्द अधिकतम है।
ReplyDeleteशायद इसलिए दीपावली के बहाने प्रयोग में न आनेवाले सामान को छांटकर अलग थलग करने और साफ सफाई कर घर को उर्जावान बनाने का चलन बनाया गया होगा !!
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteमंगलकामनाएँ!
कम करते भी बहुत कुछ फिर से सहेज लिया जाता है जो अगले साल कचरे में ही जाता है !
ReplyDeleteबढ़िया रहा सफाई दर्शन !
काश ! ऐसी दिवाली सब मना पाते और कुछ अनावश्यक है उसे घर से बाहर निकालते , और दर्शन भाव से जो मनो में भी जो वैर - विरोध है उसे भी बाहर निकालते .....बेहतर जीवन दर्शन से भरी पोस्ट ...!
ReplyDeleteदिवाली वास्तव में सकारात्मक ऊर्जा का ही पर्व है .वैसे कहावत है एक दिन नया सौ दिन पुराना .लेकिन आवासीय कक्ष बड़ा लगता है जब कमरे में सामान आवश्यकता के अनुरूप होता है .कमरे का अनुगूंजन रिवरबरेशन टाइम भी बढ़ जाता है आवाजें मुखरित होतीं हैं साजो सामन में खो नहीं जातीं हैं .आज घर में सामान ज्यादा दिखता है आदमी कम .दिवाली किफायत का सन्देश देती है .
ReplyDeleteजीवन के हर क्षेत्र में जरुरी है यह... बेटा स्मार्ट लग रहा है... भाभीजी सुरुचि... और बिटिया प्यारी... दीपावली की शुभकामनाएं...
ReplyDeleteहम भी इसीलिये हर वर्ष घर को ऊर्जावान बनाते हैं, और जो भी समान पिछले एक वर्ष से उपयोग में नहीं आता है, उसे विदाई देना श्रेयस्कर समझते हैं। घर में कम समान अच्छा लगता है।
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कह गए प्रवीन भाई आप. अस्तित्व के शून्य की अपनी एक गहन सुन्दरता होती हैं. घर में सामान और शुन्यता में एक बैलेंस एक सुन्दरता पैदा करता हैं.
ReplyDeleteबड़ा प्रेरक प्रसंग है
ReplyDeleteसर बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ---
ReplyDeleteकिन्तु घर की लक्ष्मी पर भरी पड़ना ठीक नहीं ! आप के ही विचार -" एक श्रीमती जी का भंडार और हम तीनो भारी पड़ेंगे " देर ही सही दीपावली , भैयादूज और छट की शुभकामनाएं ! हा...हा..हा..हा...हा...छोडिये मजाक ही सही किन्तु सही है ...
रवि को रविकर दे सजा, चर्चित चर्चा मंच
ReplyDeleteचाभी लेकर बाचिये, आकर्षक की-बंच ||
रविवार चर्चा-मंच 681
उत्तम प्रस्तुति, आभार
ReplyDeleteभैय्या, अब भाभी को भी ब्लॉग लिखने की आवश्यकता प्रतीत हो रही है | हम उन्हें अवश्य ही इस पुनीत कार्य में प्रेरित करेंगे |
ReplyDeleteआज 29- 10 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
दीवाली , सफाई चिंतन और जीवन दर्शन सब तो है यहाँ .
ReplyDeleteदीवाली कि सफाई के साथ ज़िंदगी का फलसफा अच्छा लगा ..
ReplyDeleteपुराने सामानों को सहेज कर रख लेने का मोह, संभवतः वह आगे कभी काम आ जाये, या उससे कोई याद जुड़ी हो, साथ ही भविष्य के लिये सुदृढ़ आधार बनाने की दिशा में घर में ठूँस लिये गये सामान, दोनों के बीच हमारा वर्तमान निरीह सा खड़ा रहता है। वर्तमान का सुख अटका रहता है, अस्तित्व के इसी भारीपन में..
कितनी ही चीजें ऐसी होती हैं जो दास साल से प्रयोग में नहीं लायी गयीं ..फिर भी रखी हुयी हैं ..आपके लेख को पढ़ लग रहा है कि सबको बाहर निकाल फेंकूं ..:)
बहुत प्रभावित हुआ।
ReplyDeleteहम तो जितने लदर फदर थे, उतने ही हैं। बढ़े नहीं, यही गनीमत! :)
सच कहा आप ने.. नयेपन का प्रतीक है, दीवाली का आगमन।
ReplyDeleteबहुत सार्थक सुव्यस्थित लेख...
इसी बहाने सफ़ायी हो जाती है।
ReplyDeleteghar ki safai me aapka sakriy sahyog sarahneey hai...deep parv ki shubhkamnayen.
ReplyDeleteबहुत सार्थक सोच .और जो कुछ हमारे लिये फ़ालतू है उससे औरों की ज़रूरतें पूरी होंगी ,खुशियों का घेरा बड़ता जायेगा -साधुवाद !
ReplyDeleteदीवाली कि सफाई के साथ घर का समान अच्छा लगता है।
ReplyDeleteदीवाली पर घर की सफाई क्यों हो और कैसे हो इन दोनों बातों की सार्थक जानकारी देता सुंदर लेख...
ReplyDeleteपुराने सामान से मुक्ति नहीं मिलती। अब अगली दिवाली के लिए सामान जमा होता रहेगा:)
ReplyDeleteइसी बहाने कुछ गैर जरुरी सामान भी निकल जाता है घर से.
ReplyDeleteगहन सीख देती,रोचक पोस्ट।
ReplyDeleteदीपावली का तो मायने ही यही है कि वाह्य और अंदर भरे संचित अज्ञान व अनावश्यक को हम निकाल फेंके व अपने अस्तित्व को पारदर्शी व प्रकाशमय कर लें। आपकी व बच्चों द्वारा मनायी गयी इतनी सार्थक दीपावली के लिये हार्दिक। उम्मीद करता हूँ अपकी यह प्रेरणा हमें भी ऐसी ही सद्बुद्धि देगी।
ReplyDeleteसादर,
देवेन्द्र
“यह तिहवार ही हमारी म्युनिसिपैलिटी हैं”
ReplyDeleteभारतेन्दु हरिश्चंद की यह उक्ति शायद इसी संदर्भ में महत्वपूर्ण है जो उन्होंने ददरी मेले में भाषण देते हुए कही थी। वे लोगों को समझा रहे थे कि ‘भारतवर्षॊन्नति कैसे हो सकती है’।
दीवाली पर साफ़ सफ़ाई के साथ ध्यान से गुम वस्तुएं मिल जाती हैं, मेरी एक गायब डायरी अभी मिली। वैसे अनावश्यक कबाड़ की कभी अत्यावश्यक जरुरत पड़ जाती है, इसलिए एक कबाड़ाखाना भी घर मे जरुरी है।
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएं।
sorting kar lijiye.
ReplyDeleteघर साफ़ सुथरा हो तो सरस्वती के रहने के बाद और बावजूद भी लक्ष्मी खिंची चली आती हैं -प्रत्यक्षम किम प्रमाणं ?
ReplyDeleteबच्चे ऐसे ही तो सीखते हैं।
ReplyDeleteहम भी कई बार फालतू सामान निकालने की सोचते हैं पर कहीं भविष्य में जरूरत न पड़ जाय वाले विचार से टाल देते हैं।
प्रेरणादायक. अपनी शादी शुदा बिटिया को पढवा हूँ.
ReplyDeleteसफाई के बहाने जीवनदर्शन की ओर सुन्दर संकेत!
ReplyDeleteयही तो है दीपावली का सौन्द््र्य। दीपावली के बहाने घर का कोना कोना साफ हो जाता है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteकाम आयेगा..कभी काम आयेगा कह कर जीवन भर कबाड़ जुटाते रहते हैं। मर भी जाते हैं काम भी नहीं आता। बढ़िया सफाई करी आपने।
ReplyDeleteकम से कम सामान में रहने का आनन्द अधिकतम है।
ReplyDelete....जीवन का गहन सत्य. काश हम सभी इसे जीवन में उतार सकें.
aapki har post shikshaprad va manoranjak hoti hai.bahut achcha likha hai.baahar jaane ke karan padhne me thoda late ho gai.
ReplyDeleteहमारे यहाँ बनी हर परम्परा चाहे कुछ बसाने की हो या कुछ चीज़ों को विदा करने की, सच में कमाल है ...दिवाली की यह परम्परा भी व्यवस्थित जीवन का सुंदर सदेश देती है..... बहुत सुंदर पोस्ट ...
ReplyDeleteये सफ़ाई और ऊर्जा साल भर बना रहे।
ReplyDeleteसफल दीपावली की हार्दिक बधाइयॉं। बच्चों को समझाने-सिखाने का यह सुन्दर तरीका है।
ReplyDeleteशफैई तो सभी करवाते हैं या करते हैं पर पुराना सामान हटाने के लिये जिगरा चाहिये । आपके ऊर्जावान कमरे देख कर कुछ प्रेरणा तो मिली है । देखते हैं घर जाने का समय नजदीक आ रहा है ।
ReplyDeleteदीपावली पर्व की उचित व्याख्या आपने किया है |साफ सफाई और नवीनता हमारे पर्वों का परम उद्येश्य होता है |इस सफाई में मन की सफाई भी घर गृहस्थी के साथ शामिल है |
ReplyDeleteदीपावली पर्व की उचित व्याख्या आपने किया है |साफ सफाई और नवीनता हमारे पर्वों का परम उद्येश्य होता है |इस सफाई में मन की सफाई भी घर गृहस्थी के साथ शामिल है |
ReplyDeleteचलिये...साफ सफाई हो गई...प्रसन्न रहें मित्र.
ReplyDeleteप्यारी सी गृहलक्ष्मी और प्यारे-प्यारे बच्चे...
ReplyDeleteसाफ-सुथरी दिवाली की शुभकामनाएँ|
घर की सफाई तो हर साल हो जाती है, मैं तो अपने मन की सफाई के लिए कोई वैक्यूम क्लीनर ढ़ूंढ रहा हूं...
ReplyDeleteजय हिंद...
हर दम ऊर्जा से भरे रहतें हैं आप इसीलिए बुहार लेतें हैं घर दुआर ,छंटनी कर लेते हैं सामान .हृदय से आपका आभार ब्लॉग पर आने के लिए ,सौ बार .
ReplyDeleteप्रत्येक मुद्दों पर आपकी बारीक सोच वाकई तारीफ के काबिल ही है ।
ReplyDeleteश्रीमती जी का तो पूरा घर ही है, अब उसमें वे कैसे कतर-ब्यौंत कर सकती हैं?
ReplyDeleteसभी मित्रों को छठ की शुभ कामनाएं
ReplyDeleteमैंने भी अपनी पत्नी की मदद से घर की सफाई की //
दीपावली के बहाने पूरे घर की सफाई तो हो जाती है,यह परम्परा भी है जरूरी भी है..सकरात्मक सुंदर पोस्ट.....
ReplyDeleteJab is mauke hometown me hote hain tab to mammi tini safaai karaati hain kii mammi ki mammi yani nani yaad aa jaati hain :)
ReplyDeleteबच्चों को सिखाने का आपका तरीका बहुत अच्छा लगा .....
ReplyDeleteदेर से ही सही पर दीपोत्सव की शुभकामनायें आप सब को !
बच्चों के हँसी से घर हमेशा खिलखिलाता रहे !
आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेर नए पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteDiwali ki safai toh mujhe karna bilkul pasand nhi, jitna ho sake usse talte rehtu hu.
ReplyDeletegood to see your beautiful family! Hope you all had a great diwali!
sarthak post baccho ko bhi is bahane seekh mili ............
ReplyDeleteबच्चों को सिखाने का आपका तरीका बहुत अच्छा लगा| धन्यवाद|
ReplyDeleteदिवाली का आना और हमारा आपस में मिलजुलकर इस काम को करना ...बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ... ।
ReplyDeleteबहुत सुदर प्रवीण जी, सफाई के जरिए एक
ReplyDeleteबेहतर संदेश दिया आपने।
आभार
maja aaya padhkar
ReplyDeleteप्प्रवीण जी आपने तो दीवाल का सही लुत्फ़ उठाया ...सफाई और पुरानी वस्तुवो को हटा कर... इन पुरानी चीजों के साथ जो कि अनुपयोगी होती है और प्रयोग में नहीं ला जा रही है...ये नाकारात्मक ऊर्जा का श्रोत होती हैं ... उनके हटाये जाने से सकारात्मक ऊर्जा घर में आई और आपने भी हल्का पण महसूस किया ...बच्चों को भी सिखाया ... यह एक सार्थक दिवाली रही ..आपको बधाई
ReplyDeleteप्प्रवीण जी आपने तो दीवाल का सही लुत्फ़ उठाया ...सफाई और पुरानी वस्तुवो को हटा कर... इन पुरानी चीजों के साथ जो कि अनुपयोगी होती है और प्रयोग में नहीं ला जा रही है...ये नाकारात्मक ऊर्जा का श्रोत होती हैं ... उनके हटाये जाने से सकारात्मक ऊर्जा घर में आई और आपने भी हल्का पण महसूस किया ...बच्चों को भी सिखाया ... यह एक सार्थक दिवाली रही ..आपको बधाई
ReplyDeletebahut kuch apna-sa laga aapka yah post...
ReplyDeleteapni hi ek line aaj yaha bhee kahne ka man ho raha hai "sirf chhat alag hai, uske neeche ki kahani ek hai"
जीवन से ..तीज-त्योहारों से जुडी बातों का कितना महत्व है हमारे जीवन में ....यही बात चरितार्थ कर रही है आपकी पोस्ट .....बहुत अच्छा लिखा है ...!!दीपावली पर शुभकामनायें.
ReplyDeleteसचमुच बहुत शुकून मिलता है साफ़ सफाई होने के बाद घर में बैटकर अपनी म्हणत और बच्चों की मेहनत देख मन खिल उठता . सचमुच एक अनोखा आनंद महसूस होता है, ख़ास कर मेरे जैसे आलसी आदमी को जो १५-२० दिनों में एक बार अच्छे से सफाई करता है तो....
ReplyDeleteस्वस्थ परम्पराओं का संरक्षण बेहद ज़रूरी है .इनसे कटना जीवन से उदासीनता दर्शाता है बे -दिली भी .बधाई आपको .ब्लोगिया दस्तक के लिए सैदेव ही आभारी हूँ .
ReplyDeleteभण्डारवत कमरा.....बस एक कमरा अभी भी भण्डारवत है, श्रीमतीजी का...
ReplyDeleteहिम्मत कि दाद देनी पड़ेगी खुले आम ये सब कह लेने कि हिम्मत हम्मम्मम ......
De-Cluttering has helped us like any thing .Things are for us not we are for them ,thanks to my husbands job
ReplyDeletewe kept moving from place to place sorting unused things became a habit. .
तस्वीर में आप की कमी खल रही है.
ReplyDeleteबेजोड़!!
ReplyDeleteदिवाली पर घर की साफ़ सफाई करने की परम्परा का यही फायदा है कम से कम इस बहाने पुरे घर की सफाई हो जाति है
ReplyDeleteबहुत सही...दीपावली शुभ हो!!
ReplyDeleteअब ना कोई बहाना मैं बनाऊंगा ना आपको बनाने दूँगा..आता हूँ जल्द ही आपके घर..फ़िलहाल तो घर पर हूँ महीने भर के लिए, जैसे ही बैंगलोर आता हूँ, सीधा आ धमकूँगा!! ;)
ReplyDeleteबाबा रेय 80 कमेंट अब मैं क्या लिखूँ :-)बढ़िया रहा सफाई दर्शन ...
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