कहते हैं यदि व्यक्ति तुलना न करे तो समाज संतुष्ट हो जायेगा और चारों ओर प्रसन्नता बरसेगी। पड़ोसी के पास कुछ होने का सुख आपके लिये कुछ खोने सा हो जाता है। औरों का सौन्दर्य, धन, ऐश्वर्य आदि तुलना के सूत्रों से आपको भी प्रभावित करने लगते हैं। आप बचने का कितना प्रयास कर लें पर यह प्रवृत्ति आपकी प्रकृति का आवश्यक अंग है, बहुत सा ज्ञान हमारी तुलना कर लेने की क्षमता के कारण ही स्पष्ट होता है।
हमारे लिये मैकबुक एयर पर कार्य सीखना, पहली नज़र के प्यार के बाद आये वैवाहिक जीवन को निभाने जैसा था। प्रेम-विवाह को विजयोत्सव मान चुके युगल अपने वैवाहिक जीवन व मेरी स्थिति में बड़ी भारी समानता देख पा रहे होंगे। सम्बन्धों को निभाने और कम्प्यूटर से कुछ सार्थक निकाल पाने में लगी ऊर्जा के सामने प्रथम अह्लाद बहुधा वाष्पित हो जाता है। कितनी बार विण्डो की तरह कीबोर्ड दबा कर मैक से अपनी मंशा समझ पाने की आस लगाये रहे, विवाह में भी बहुधा ऐसा ही होता है। मैक सीखने की पूरी प्रक्रिया में हमें विण्डो ठीक वैसे ही याद आया जैसे किसी घोर विवाहित को विवाह के पहले के दिनों की स्वच्छन्दता याद आती है।
देखिये, तुलना मैक व विण्डो की करना चाह रहा था, वैवाहिक जीवन सरसराता हुआ बीच में घुस आया। तुलना में वही पक्ष उभरकर आते हैं जो बहुत अधिक लोगों को बहुत अधिक मात्रा में प्रभावित करते हैं। किसी बसी बसायी शान्तिमय स्थिरता को छोड़कर नये प्रयोग करने बैठ जाना, स्वच्छन्द जीवन छोड़ विवाह कर लेने जैसा ही लगता है।
जैसे वैवाहिक जीवन में कई बार लगता है कि काश पुराना, जाना पहचाना एकाकी जीवन वापस मिल पाता, मैक सीखते समय वैसा ही अनुभव विण्डो में लौट जाने के बारे में हो रहा था। अनिश्चित उज्जवल भविष्य की तुलना में परिचित भूतकाल अच्छा लगता है। निर्णय लिये जा चुके थे, उन्हे निभाना शेष था।
बीच का एक रास्ता दृष्टि में था, मैकबुक एयर में ही विण्डो चलाना। बहुत लोग ऐसा करते हैं, प्रचलन में तीन विधियाँ हैं, तीनों के अपने अलग सिद्धान्त हैं, अलग लाभ हैं, अलग सीमायें हैं। कृपया इनको वैवाहिक जीवन से जोड़कर मत देखियेगा। फिर भी आप नहीं मानते हैं और आपको बुद्धत्व प्राप्त हो जाता है तो उसका श्रेय मुझे मत दीजियेगा, मैं आने वाली पीढ़ियों के ताने सह न पाऊँगा।
पहला है, बूटकैम्प के माध्यम से मेमोरी विभक्त कर देना, एक में मैक चलेगा एक में विण्डो, पर एक समय में एक। एक कम्प्यूटर में दो ओएस, उनके अपने प्रोग्राम, एक उपयोग में तो एक निरर्थ। ठीक वैसे ही जैसे कुछ घरों में दो पृथक जीवन चलते हैं, दोनों अपने में स्वतन्त्र। जब जिसकी चल जाये, कभी किसी का पलड़ा भारी, कभी किसी का।
दूसरा है, वीएमवेयर(वर्चुअल मशीन) के माध्यम से, मैक में ही एक प्रोग्राम कई ओएस के वातावरण बना देता है, आप विण्डो सहित चाहें जितने ओएस चलायें उसपर। ठीक वैसे ही जैसे कोई रहे आपके घर में पर करे अपने मन की। ऐसे घरों में अपनी जीवनशैली से सर्वथा भिन्न जीवनशैलियों को जीने का स्वतन्त्रता रहती है।
तीसरा है, पैरेलल के माध्यम से विण्डो को मैक के स्वरूप में ढाल लिया जाता है और विण्डो के लिये एक समानान्तर डेक्सटॉप निर्मित हो जाता है। ठीक वैसे ही जैसे अपने पुराने स्वच्छन्द जीवन को नयी वैवाहिक परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेना।
दो विचारधाराओं को एक दूसरे में ठूसने के प्रयास में जो होता है, भला कम्प्यूटर उससे कैसे अछूता रह सकता है। मैक में विण्डो चलाने की दो हानियाँ हैं, पहला लगभग २५जीबी हार्ड डिस्क का बेकार हो जाना और दूसरा २५% कम बैटरी का चलना। कारण स्पष्ट है, कम्प्यूटर में भी और वैवाहिक जीवन में भी, सहजीवन में विकल्पीय विचारधारायें संसाधन भी व्यर्थ करती हैं और ऊर्जा भी।
आप बताईये मैं क्या करूँ, पहली नज़र के प्यार के सारे नखरे सह लूँ और मैक सीखकर उसकी पूर्ण क्षमता से कार्य करूँ या फिर पुराने और जाने पहचाने विण्डो को मैक में ठूँस कर मैक की क्षमता २५% कम कर दूँ?
देखिये लेख भी खिंच गया, वैवाहिक जीवन की तरह।
प्रवीण जी,
ReplyDeleteमैंने जब मैक पर शिफ्ट किया था, तब शुरुवात में मुझे भी कुछ परेशानी आयी थी लेकिन आज ५ वर्षा बाद , मैक से विंडोज कभी नहीं ! ऐसा कोई टूल नहीं, या ऐसा कोई कार्य नहीं जो मैक पर बेहतर तरीके से नहीं किया जा सके! मैक पर विंडोज चलाना तो मुझे कुछ ऐसा लगता है कि फेरारी मालिक, उसमे मारुती ८०० का इन्जीन लगाना चाहे !
वैवाहिक रिश्ते और नया मैक... क्या समानता ढूंढ निकाली है ...
ReplyDeleteकिसको क्या मुफीद है , कंप्यूटर और समय की सीमा ही बता सकती है !
सुखी बना रहे आपके प्रयोग का दौर.
ReplyDeleteअधिक लालच ठीक नहीं, एक के हो कर रहिए।
ReplyDeleteदर्शन समझा सत्य नहीं जाना
ReplyDeleteनया नौ दिन ,पुराना सौ दिन...ये कहावत तो सुनी होगी.भले ही नयी वस्तुएं (लोग भी अब वस्तु बन गए हैं) बहुत आकर्षक लगें लेकिन पुराना ज़रूर रह-रहकर अपनी टीस देता रहेगा !
ReplyDeleteसमभाव से दोनों को आजमाते रहिये,दिल जैसा ,जब चाहे उसका आनंद लो,भले ही इसके लिए अतिरिक्त 'ऊर्जा' खर्च करनी पड़े !
शुभकामनायें !
मैक सीखकर उसकी पूर्ण क्षमता पर काबिज हो जाएँ यही उपयुक्त जान पड़ता है.
ReplyDeleteलगता है मैक को हिंदी ब्लॉग जगत में खूब पापुलर बना दोगे प्रवीण भाई !
ReplyDeleteआभार !
आपके प्रयोगों से हमें काफ़ी नई जानकारियां मिल जाती है। उसमें से कुछ हम भी अपना लेते हैं।
ReplyDeleteरूचिकर बातों से मैक ...लोकिप्रय हो रहा है ...जिसका श्रेय आपको जाता है ... आभार ।
ReplyDeleteएक साधे सब सधै ...
ReplyDeleteहम तो हमारे इकलौते विवाह से ही खुश है। खिडकियों से ही देखते हैं दुनिया को।
ReplyDeleteमैक की कार्यप्रणाली विंडोस से एकदम भिन्न है इसलिए सीखने में न केवल वक्त अधिक लगता है बल्कि जिन चीज़ों की विंडो में आदत हो, कई बार मैक में नहीं मिलते वो फंक्शन.
ReplyDeleteमैक इस्तेमाल करने वाले लोग उससे बेहद खुश रहते हैं...मैं कहूँगी कि जब मैक लिया है तो उसे थोड़ा वक्त और दीजिए. उसके कुछ फंक्शन बेहद उपयोगी हैं...मेरे मित्र जो मैक इस्तेमाल करते हैं अब विंडो के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं.
अच्छा रहेगा अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में रहें जो मैक इस्तेमाल करता हो...उसके लिए आपकी छोटी समस्याओं का सीधा इलाज रहेगा. इन्टरनेट पर वही चीज़ ढूँढने में बहुत वक्त लगेगा.
धीरज धरिये :) एक दिन मैक सध ही जाएगा :)
gajab
ReplyDeletesir,ye vevahik rishte wali tukna khoob rahi...sathak jaankari...
ReplyDeleteMac....Windows.....windows....Mac......वैवाहिक स्थिति-परिस्थिति.....लगाव-छलकाव :)
ReplyDeleteलगता है आप कहीं पुराने प्यार और नये प्यार के बीच 'हिंचान' महसूस कर रहे हैं......ऐसे में जरूरी है कि थोड़ी देर के लिये अमिताभ बच्चन बन जाइये और बैंगलोर के किसी खूबसूरत गार्डन में बैठ यह पंक्तियां गुनगुनाइये :)
कभी कभी मेरे दिल मैं ख्याल आता हैं
कि ज़िंदगी तेरी जुल्फों कि नर्म छांव मैं गुजरने पाती
तो शादाब हो भी सकती थी।
यह रंज-ओ-ग़म कि सियाही जो दिल पे छाई हैं
तेरी नज़र कि शुआओं मैं खो भी सकती थी।
मगर यह हो न सका और अब ये आलम हैं
कि तू नहीं, तेरा ग़म तेरी जुस्तजू भी नहीं।
गुज़र रही हैं कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे,
इसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं
Mac....Mac.....
Mac....
Mac....
:)
सहजता और सरलता से बहुत गहरी बात कह गए...आपकी इस पोस्ट को तो किसी मैरिज काउंसलर के पास होना चाहिए..लाजवाब...
ReplyDeleteवैसे पंचम जी की टिप्पणी का सच आज के दौर में ज़्यादा दिखाई देता है :)
Kash Steve Jobs ne ye lekh padha hota...khair Bill Gates ke paas to abhi bhi mauka hai..:)
ReplyDeleteशानदार...मजा आया...
ReplyDeleteपड़ोसी के पास कुछ होने का सुख आपके लिये कुछ खोने सा हो जाता है।.....aur bhi bahut kuchh
ReplyDeleteबहुत खूब्।
ReplyDeleteआप तकनीकी बातों को भी रसपूर्ण तरीके से कहने में माहिर हैं।
ReplyDeleteबूटकैम्प वाला तरीका काफी लोग प्रयोग करते हैं, वर्चुअल बॉक्स जैसे किसी वर्चुअल मशीन का तरीका टैस्टिंग आदि के लिये तो ठीक रहता है पर नियमित प्रयोग के लिये नहीं और पैरेलल (आपके बताये अनुसार अनुमान लगा रहा हूँ) से मैक का मजा बिगाड़ना ठीक नहीं। तो जब तक मैक में पूरी तरह आत्मनिर्भर न हो जायें विण्डोज़ के साथ ड्यूल बूट कर लें।
वैसे हम भी आजकल उबुंटू लिनक्स के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रहे हैं। हमारी नन्हीं नेटबुक पर उबुंटू सुन्दर लगता है।
एक प्रश्न, मेरे पास 10 इंच स्क्रीन की ऍचपी मिनी नेटबुक है, मुझे उस पर काम करना सुविधाजनक नहीं लगता। क्या 11 इंच की स्क्रीन आपको छोटी/असुविधाजनक नहीं लगती?
ReplyDeleteमेरा सुझाव:
ReplyDeleteक्या हुआ यदि कुछ समय लगता है, लगने दो
MAC OS का सही प्रयोग सीखिए
दफ़्तर का काम Windows पर करें
निजी काम, blogging वगैरह MAC पर करें
हम भी आजकल दो OS क प्रयोग कर रहें हैं
दफ़्तर मे Windows और घर मे अपना Ipad पर Apple iOS
धीरे धीरे सब फ़िट हो रहा है
Windows मेरी बीवी लगने लगी है और iOS मेरी girlfriend
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
पूजा उपाध्यायजी का कहना सही है... किसी मैकप्रयोगकर्ता से दोस्ती गांठ लें...
ReplyDeleteजैसे विवाहित होकर कुंवारों की संगत में खुद को अलग-सा महसूस करने की बजाय विवाहितों की संगत में ढल जाना चाहिए :)
अच्छा है.. नये नये प्रयोग करते रहिए हमें भी नई नई जानकारियां मिलती रहेगी.और आप के साथ,साथ हम भी अपडेट होते रहेंगे...धन्यवाद..
ReplyDeleteमैक की किस्मत के क्या कहने,आपकी पोस्ट पर छाया हुआ है बस...
ReplyDeleteप्रवीण जी आपने तो तकनीक को भी इतना प्यारा बना दिया . वाकई आज कम्प्यूटर हमारे जीवन में किसी साथी से कम अहमियत भी तो नही रखता ......
ReplyDeleteतकनीकी बातों कोसरलता से बहुत गहरी बात कह गए....
ReplyDeleteपरिवार सहित ..दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं....प्रवीण जी
कहीं ऐसा तो नहीं कि मेक के बहाने आप कहना कुछ और चाह रहे हैं?
ReplyDeleteवैवाहिक परिप्रेक्ष्य में विंडो, न दैन्यं न पला
ReplyDeleteरेड टी-शर्ट ब्लू जीन्स में, तनहा यह बड़ा खला
दीपक बाबा की बक बक से, होकर के तंग चला
गुम नदियों को पड़ा ढूँढना, दिल का जो अनल जला
लिंक आपकी रचना का है
अगर नहीं इस प्रस्तुति में,
चर्चा-मंच घूमने यूँ ही,
आप नहीं क्या आयेंगे ??
चर्चा-मंच ६७६ रविवार
http://charchamanch.blogspot.com/
जानते हैं हो ..ई आपका पोस्ट पढ के हमको ऊ सिलेमा का याद आ गया जिसमें हीरोहन के फ़र्राटादार इंग्रेजी के बाद हमरे टैप का हीरो निवेदन करता है ,देवि ई जौन कुछ आप बोले ..समझ में नय आया किंतु ..लगा बहुत बढियां । तो कहने का तात्पर्य ई कि केतनो आसान भाषा में समझाइएगा तो ई एप्पलवा को नय खा सकेंगे । बकिया देख रहे हैं नयका यंत्र आपको भरपूर पसंद आया है ..आउर दिन रात आप उसका खून पी रहे हैं ,..दीवाली नजदीक है ..इसलिए इन एडभांस ..एक ठो मोमबत्ती हमारी तरफ़ से आपके लिए चुम्मी वाली ।
ReplyDeleteअब इसमें हम क्या बता सकते हैं? -आप तो इस क्षेत्र के महारथी हैं !:)
ReplyDeleteजो शुभ विवाह वही स्वीकार!!
ReplyDeleteदीपक प्रेसेंट सर...
ReplyDeleteपूर्ण दक्षता तो प्राकृतिक संरचना के अनुरूप आचरण व इसके साथ पूर्ण एकीकरण में ही होती है,वरना विभिन्न प्रक्रियाओं ( या परिवार के संदर्भ में कहें तो विभीन्न विचारधारायें) की साथ-साथ व समानांतर प्रोसेसिंग की जटिलतायों व इसको निभाने के लिये अनिवार्य समझौते तो करने ही पड़ते हैं। सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया लिखा है. सचमुच आनन्द आया. एक सपाट विषय पर सपाटबयानी से बचते हुए एक सरस किन्तु अर्थपूर्ण पोस्ट लिखने के लिए बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteअगर विंडो से पडोसी की पत्नी पर एपल फेंक दिया जाय तो शायद टेबलेट लेना पड़े। तब पता चले कि तुलना करना कितना महंगा पड़ता है :)
ReplyDeleteठीक वैसे ही याद आया जैसे किसी घोर विवाहित को विवाह के पहले के दिनों की स्वच्छन्दता याद आती है।
ReplyDeleteयह घोर विवाहित कौन है और विवाह के बाद भी कोई स्वच्छन्दता होती है क्या. वैसे पुराना जाना पहचाना के बाद एकाकी जोड़कर आपने बचाव तो कर लिया.
बहोत ही रंजक शैली मे लिखा है जी आपने |मजा आ गया | हलाकि विंडो और मैक की जानकारी हमें बिलकुल नहीं थी पर आपने बड़ी कुशलता से उनसे मुलाकात करवा दी | धन्यवाद |
ReplyDeleteमैकबुक पर काम करना कोई बड़ी सीखने जैसी चीज तो नहीं है। मैं एक ही दिन में मैकबुक प्रो. और एचपी पर विंडोज़-7 में बराबर गति से कब काम करने लगी, इसका किंचित भी पता न चला। पर हाँ, मैक पर विंडोज़ लगाना तो अह बिलकुल नहीं जमा। सफारी की सवारी करें। मैकबुक एयर तो खिलौने जैसा नाजुक, हल्का और स्लीक है, उसके साथ यह बर्बरता क्यों ?
ReplyDeleteविंडो चाहे कोई भी हो मगर कार्य होना चाहिए।
ReplyDeleteआपने अच्छी जानकारी दी है!
आप बताईये मैं क्या करूँ, पहली नज़र के प्यार के सारे नखरे सह लूँ और मैक सीखकर उसकी पूर्ण क्षमता से कार्य करूँ या फिर पुराने और जाने पहचाने विण्डो को मैक में ठूँस कर मैक की क्षमता २५% कम कर दूँ?
ReplyDeleteहम तो पहले विकल्प के साथ है जो नित नूतन है वही सौन्दर्य है .अनुपम है प्रथम दर्शन प्रेम सा .उपमा भी खूब रही वैवाहिक प्रति -बद्धता तथा छंद मुक्त जीवन की .बधाई इस अपडेट के लिए .
आप बताईये मैं क्या करूँ, पहली नज़र के प्यार के सारे नखरे सह लूँ और मैक सीखकर उसकी पूर्ण क्षमता से कार्य करूँ या फिर पुराने और जाने पहचाने विण्डो को मैक में ठूँस कर मैक की क्षमता २५% कम कर दूँ?
ReplyDeleteहम तो पहले विकल्प के साथ है जो नित नूतन है वही सौन्दर्य है .अनुपम है प्रथम दर्शन प्रेम सा .उपमा भी खूब रही वैवाहिक प्रति -बद्धता तथा छंद मुक्त जीवन की .बधाई इस अपडेट के लिए
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteकल 24/10/2011 को आपकी कोई पोस्ट!
नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद
सुन्दर सृजन , प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteसमय- समय पर मिले आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.
प्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.
मैक से रिश्ता (विवाह) बना लिया.....सहसा विश्वास नहीं होता कि आप ऐसा भी करेंगे|
ReplyDelete:-)
भैये अपनी तो राय यही है किसी एक के रहिये!
जैसे वैवाहिक जीवन में कई बार लगता है कि काश पुराना, जाना पहचाना एकाकी जीवन वापस मिल पाता,
ReplyDeleteअब आगे कदम बढ़ा ही दिया है तो चलते रहिये ... कुछ नयी जानकारियाँ हम भी सीखते रहेंगे ..
its a typical case of getting married without knowing the repurcussions of the same !!!!!
ReplyDeletedelearn windows
its a typical case of getting married without knowing the repurcussions of the same !!!!!
ReplyDeletedelearn windows
पुराने प्रेम को इस लिए तो नहीं भुलाया जा सकता की कार्य क्षमता २५% कम हो जायगी ...
ReplyDeleteइशारा समझ गए होंगे आप ...
बाकी बातें गुणी लोग जाने.हम तो इतना जानते हैं.हर हिंदी ब्लॉगर से मैक खरीदवा कर रहेंगे आप :)
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिल रही है,और लेखन शैली भी रोचक - शायद कभी इधऱ से उधर मुड़ ही जायें !
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिल रही है,और लेखन शैली भी रोचक - शायद कभी इधऱ से उधर मुड़ ही जायें !
ReplyDeleteबहुत सही तुलना!
ReplyDelete..सर जी मैं तो अभी इस फ़ील्ड की कच्ची खिलाडी हूं.. सरलतम तरीके से तकनीकी जानकारी के लिये धन्यवाद.
ReplyDelete.सर जी मैं तो अभी इस फ़ील्ड की कच्ची खिलाडी हूं.. सरलतम तरीके से तकनीकी जानकारी के लिये धन्यवाद.
ReplyDeleteयांत्रिकता में साँस लेना ....वाह वाह बहुत खूब !
ReplyDeleteआपके नित नए प्रयोग नयी जानकारियां दे रहे हैं हमें....... वैवाहिक जीवन और तकनीक के पहलुओं की तुलना बढ़िया रही .....
ReplyDeleteप्रवीण जी शायद ही किसी ने इस विषय पर इतनी तन्मयता लिखने की सोची होगी ....
ReplyDeleteआप सीखते रहिये क्योंकि सिखने का नाम ही ज़िन्दगी है ....
और इस प्यार को बरकरार रखें .....:))
नई विवाहिता के नखरे समझने में ही भलाई है मैक ही ठीक रहेगा
ReplyDeleteप्रवीण जी,
ReplyDeleteपिछले ३ वर्षों से मैक इस्तेमाल कर रहा हूँ. शुरुआत के चंद महीनो को छोड़ कर कभी यह ख़याल नहीं आया की वापस windows पर जाऊं.
यक़ीनन आपके भी वही चंद महीने चल रहे हैं. मेरे ऑफिस के लैपटॉप पर windows है और घर के लैपटॉप पे mac इस वजह से थोड़ी
दिक्कत आती है किसी एक keyboard का आदी होने में.
थोड़े धीरज के साथ कुछ दिन निभा जाइए. फिर mac भी संगिनी की तरह ही साथ देगा :)
हा हा~ आपका जबाब नहीं...हम हैं बाती, तुम पटाखा. :)
ReplyDeleteतुलनात्मक अध्ययन का बेहतरीन प्रयोग
ReplyDeleteप्रवीण भाई अकसर ऐसी टिपण्णी आप जैसे विज्ञ व्यक्ति की लेखन की आंच को अनुप्राणित रखती है .आभार आपका .आपकी सतत दस्तक हमारी ऑक्सीजन है .
ReplyDeleteहमेशा कि तरह ही बेहतरीन
ReplyDeleteआपको व आपके परिवार को दीपावली कि ढेरों शुभकामनायें
आपको दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें....
ReplyDeleteपञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
ReplyDelete***************************************************
"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
आपको दीप-पर्व पर अनंत शुभकामनाएं. आप ऐसे ही ब्लागिंग में नित रचनात्मक दीये जलाते रहें !!
ReplyDeleteबहुत रोचक...दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं।
ReplyDelete.**शुभ दीपावली **
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
मैक सीखने की पूरी प्रक्रिया में हमें विण्डो ठीक वैसे ही याद आया जैसे किसी घोर विवाहित को विवाह के पहले के दिनों की स्वच्छन्दता याद आती है।
ReplyDeleteभला होगा कि मैक ही सीख लीजिये । एक म्यान में दो तलवारे रहेंगी तो कटेंगे तो आप ही । कभी सैक भारी तो कभी विन्डो ।
बढिया आलेख और तुलना भी एकदम सटीक ।
aapko aur aapke parivar ko Shubh Deepawali.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteMAC is good but price
ReplyDeletethat is once of problem users go to windows
nice article
Smiles :D
ReplyDeleteतकनीक के चक्कर में तो हम नहीं पड़ते ..पर मनोरंजक शैली ने दो बार तो पढ़ने पर मजबूर कर ही दिया :)
ReplyDeleteचलिए! उर्जा की बात है तो फिर मैक पे ही टिके रहिए. :)
ReplyDeleteहर एक os अपने आप में सम्पूर्ण है. जरूरत है उपयोग करने की.
दो बातें हैं -
OS के हिसाब से हम बदल जाये या फिर अपने हिसाब से OS बदल दे..