माना तुमको गुड्डे गुड़िया पुस्तक से प्रिय लगते हैं,
माना अनुशासन के अक्षर अनमन दूर छिटकते हैं,
माना आवश्यक और प्यारी लगे सहेली की बातें,
माना मन में कुलबुल करती बकबक शब्दों की पातें,
पर पढ़ने के आग्रह सम्मुख, प्रश्न न कोई खड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।१।
विद्यालय जाना बचपन का एक दुखद निष्कर्ष सही,
रट लेने की पाठन शैली लिये कोई आकर्ष नहीं,
उच्छृंखल मंगल में कैसे भाये सध सधकर चलना,
उच्छृंखल मंगल में कैसे भाये सध सधकर चलना,
बाहर झमझम बारिश, सूखे शब्दों से जीवन छलना,
पर भविष्य को रखकर मन में, वर्तमान से लड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।२।
बालमना हो, बहुत खिलौने तुमको भी तो भाते हैं,
मन में दृढ़ हो जम जाते हैं, सर्वोपरि हो जाते हैं,
पढ़ने का आग्रह मेरा यदि, तो तुम राग वही छेड़ो,
केवल अपनी बातें मनवाने को दोष तुरत मढ़ दो,
आज नहीं तो कल आयेंगे, हठ पर न तुम अड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।३।
नहीं अगर कुछ हृदय उतरता, झरझर आँसू बहते क्यों,
बस प्रयास कर लो जीभर के, ‘न होगा यह’ कहते क्यों,
देखो सब धीरे उतरेगा, प्रकृति नियम से वृक्ष बढ़े,
बीजरूप से महाकाय बन, नभ छूते हैं खड़े खड़े,
बस कॉपी में सुन्दर लेखन, हीरे मोती जड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।४।
शब्द शब्द से वाक्य बनेंगे, वाक्य तथ्य पहचानेंगे,
तथ्य संग यदि, निश्चय तब हम जग को अच्छा जानेंगे,
ज्ञान बढ़े, विज्ञान बढ़े, तब आधारों पर निर्णय हो,
दृष्टि वृहद, संचार सुहृद, तब क्षुब्ध विषादों का क्षय हो,
आनन्दों का आश्रय होगा, शब्दों से नित जुड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।५।
है अधिकार पूर्ण हम सब पर, घर में जो है तेरा है,
एक समस्या, आठ हाथ हैं, संरक्षा का घेरा है,
सबका बढ़ना सब पर निर्भर, यह विश्वास अडिग रखना,
संसाधन कम पड़ते रहते, मन का धैर्य नहीं तजना,
छोटे छोटे अधिकारों पर, भैया से मत लड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।६।
यही एक गुण भेंट करूँगा, और तुम्हें क्या दे सकता,
जितना संभव होगा, घर की जीवन नैया खे सकता,
एक सुखद बस दृश्य, खड़ी तुम दृढ़ हो अपने पैरों पर,
सुख दुख तो आयें जायेंगे, रहो संतुलित लहरों पर,
निर्बन्धा हो, खुला विश्व-नभ, पंख लगा लो, उड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।७।
क्या बनना है, निर्भर तुम पर, स्वप्न तुम्हे चुन लाने हैं,
मन की अभिलाषा पर तुमको अपने कर्म चढ़ाने हैं,
साथ रहूँगा, साथ चलूँगा, पर निर्भरता मान्य नहीं,
राह कठिनतम आये, आये, तुम भी हो सामान्य नहीं,
तुम सब करने में सक्षम हो, स्वप्न हृदय का बड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।८।
है पितृत्व का बोध हृदय में, ध्यान तुम्हारा रखना है,
मिला दैव उपहार, पालना सृष्टि श्रेष्ठ संरचना है,
रीति यही मैं रीत रहूँ, लेकिन तू जिस घर भी जाये,
प्रेम हृदय में संचित जितना, उस घर जाकर बरसाये,
मेरे मन में, यह दृढ़निश्चय, नित-नित थोड़ा बड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।९।
मेरी बिटिया पढ़ा करो।९।
है पितृत्व का बोध हृदय में, ध्यान तुम्हारा रखना है,
ReplyDeleteमिला दैव उपहार, पालना सृष्टि श्रेष्ठ संरचना है,
बहुत सुंदर कविता और बहुत प्यारी बिटिया ........पिता के ह्रदय से निकले उद्गार लिए हर पंक्ति हृदयस्पर्शी है......
वाह सुंदर बातचीत.
ReplyDelete'है अधिकार पूर्ण हम सब पर, घर में जो है तेरा है,
ReplyDeleteएक समस्या, आठ हाथ हैं, संरक्षा का घेरा है,
पिता द्वारा व्यक्त अंतर के भाव.....प्रेरक उद्बोधन गीत !
बहुत सुल्दर शिक्षाप्रद रचना!
ReplyDeleteबहुत सुंदर सन्देश देती हुई रचना पिता की चिंता को भी उजागर करती है यह रचना, बहुत अच्छी
ReplyDeleteदेवला बिटिया को स्नेहाशीष और सुखद भविष्य के लिए शुभकामनाएं ..
ReplyDeleteवो सब कुछ करेगी और पापा का निश्चय दॄढ़ होगा..
पितृत्व की चिंताएं बखूबी बयां की हैं आपने। बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकल कल बहती नदी के प्रवाह समान सुंदर भाव प्रवण काव्यात्मक प्रस्तुति और एक पिता का बेटी के नाम स्नेह भरा संदेश। उत्तम प्रस्तुति।
ReplyDeleteगुजर गया एक साल
वाह, पुत्री को पिता की ओर से यह ब्लॉग पोस्ट निवेदन एक यादगार कृति है हर पिता लिए जो अपनी पुत्री के लिए सर्वतोभद्र कामना करता है ..बहुत प्रभावशाली रचना !
ReplyDeleteआँखें भर आयीं...आपने अपनी बेटी के लिए कितना सुन्दर लिखा है.
ReplyDeleteबेहद भावुक और प्यारी कविता, हम भी अपने बेटे को सुनायेंगे यह कविता ।
ReplyDeleteप्यारी सी बिटिया के लिए आपकी प्यारी सी कविता बहुत सुंदर लगी |प्यारी बिटिया मेहनत से पढ़ाई करो और पाण्डेय जी [अपने पिता ]से भी बहुत आगे बढ़ो |शुभकामनाएं |
ReplyDeleteप्यारी सी बिटिया के लिए आपकी प्यारी सी कविता बहुत सुंदर लगी |प्यारी बिटिया मेहनत से पढ़ाई करो और पाण्डेय जी [अपने पिता ]से भी बहुत आगे बढ़ो |शुभकामनाएं |
ReplyDeleteवाह ! शानदार रचना|
ReplyDeleteमिला दैव उपहार, पालना सृष्टि श्रेष्ठ संरचना है,
ReplyDeleteयकीनन बेटिया सृष्टि की श्रेष्ठ संरचना हैं
बहुत सुन्दर और भावुक कर देने वाली रचना ..
बिटिया, पढ़ा करो.
ReplyDeleteसुबह कोचिंग जाओ,
शाम को डांस क्लासेज़
दोपहर कराटे सीखो
और समय बचे तो कुकरी सीखो.
बिटिया, पढ़ा करो.
बचपन और बचपने में क्या रखा है
खेलकूद और मस्ती
टाइम वेस्ट के सिवा कुछ नहीं,
बिटिया पढ़ा करो!!!!!
पढ़ा करो!!! पढ़ा करो!!!!!
बहुत ही अच्छी भावनाएँ हैं कविता मे।
ReplyDeleteसादर
वाह वाह एक पिता का वात्सल्य और बेटी को आगे बढ़ाने की भावना का अद्भुत मिश्रण तैयार किया है आपने साधूवाद आपकी लेखनी को
ReplyDeleteबेटी को उत्तम सीख देती सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सीख देती है ये कविता, सच में बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल है.पर आपका पितृत्व धन्य है,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
है पितृत्व का बोध हृदय में, ध्यान तुम्हारा रखना है,
ReplyDeleteमिला दैव उपहार, पालना सृष्टि श्रेष्ठ संरचना है,
भावमय करते शब्दों का संगम... इस रचना में ।
अच्छी रचना।
ReplyDeleteबहुत प्यारा गीत है.
ReplyDeleteयकीनन बेटिया सृष्टि की श्रेष्ठ संरचना हैं
ReplyDeleteekdam theek bole......sunder kavita likhe hain.
अभी बिटिया पूजन को बुला कर खास तौर पर सुनाई ये कविता...
ReplyDeleteजय हिंद...
प्रेणदायक रचना
ReplyDeleteपापा की चिंता ,पापा का प्यार
ReplyDeleteदोनों का साथ और बार-बार ....
आशीर्वाद और प्यार !
बहुत सुंदर रचना। मैं अपनी पोती को पढ्वाऊंगा॥
ReplyDeleteदिल को छूने वाली कविता !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया. और क्या कहें !
ReplyDeleteare pyaari bitiya padh lo ...apne sapnon se papa ke sapne poore ker do
ReplyDeleteयह कविता तो बिटिया जीवन भर पढ़ते रहना चाहेगी।
ReplyDelete...बहुत सुंदर।
वाह वाह वाह ...शब्द नहीं हैं मेरे पास.सुन्दरतम...
ReplyDeleteअपनी बेटी को भी पढ़ाऊंगी.
बस चिट्ठे में सुन्दर लेखन, हीरे मोती जड़ा करो।
ReplyDeleteलगे रहो प्रवीण भैया, तुम बस हर रोज़ लिखा करो।
Absolutely charming picture with the most pinchable cheeks I have seen!
Regards
GV
प्यारी सी बेटी के लिए सुन्दर लिखा है....!
ReplyDeleteजरूरी कार्यो के कारण करीब 15 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
पिता और पुत्री दोनो अति कोमलमना व संवाद सुखकर हैं। कामना व विश्वास है कि आपकी बिटिया भी आप की ही तरह हर रूप से पूर्ण व्यक्तित्व व सर्सवफल होगी और आपकी कविता में अभिव्यक्त आपकी भावनाओं को अवस्य साकार करेगी। बहुत सुंदर व हृदय स्पर्शी संदेशगीत। बहुत-बहुत शुभकामनायें।
ReplyDeleteबाप की कविता बिटिया के नाम एक सफरनामा एक आश्वाशन साथ साथ चलने का आगे बढ़ने का एक आत्मविश्वास रोपती कविता .बेहद सार्थक आश्वस्त करती रचना .
ReplyDeleteबहुत सुंदर...प्यारी कविता
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर संदेश देती हुई बढ़िया प्रस्तुति....शुभकामनयें
ReplyDeleteवाह ---
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
शुभ-कामनाएं ||
पिता का प्यार शब्दों में बह निकला,आँखें नम हुईं पापा की याद आ गई..
ReplyDeleteहर बेटी के लिये एक अमूल्य तोहफा है आपकी ये रचना। रचना सी ही प्यारी है आपकी बेटी और सौभाग्यशाली भी जिसके पिता आप हैं...
इतनी खुबसूरत कविता भी हो सकती है..? हाँ ! बिटिया की तरह ही.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता है बिटिया के लिए...
ReplyDeleteपितृ - सम्मित - उपदेश ...
ReplyDeleteअद्भुत ग्राह्य विलक्षण और सदयः प्रभावी ...सुखद कविता
.
ReplyDelete.
.
सुन्दर, अति सुन्दर...
अपनी बिटिया को भी पढ़ाई यह कविता... अब कम से कम एक सप्ताह तक होमवर्क करवाने में आराम रहेगा पत्निश्री को... :)
...
नहीं अगर कुछ हृदय उतरता, झरझर आँसू बहते क्यों, बस प्रयास कर लो जीभर के, ‘न होगा यह’ कहते क्यों, देखो सब धीरे उतरेगा, प्रकृति नियम से वृक्ष बढ़े, बीजरूप से महाकाय
ReplyDeleteप्रेरणादायक पंक्तियाँ...प्यारी सी बिटिया के लिए पिता के दिल से निकला भावभीना उद्गार...
This is so adorable !!
ReplyDeleteundoubtedly u r a lovely dad :)
Smiles !!
प्रवीण पाण्डेय जी बहुत सुन्दर रचना ...प्यारा सन्देश काश लोग इस को आजमायें गले लगाएं ..बधाई हो ...
ReplyDeleteभ्रमर ५
यही एक गुण भेंट करूँगा, और तुम्हें क्या दे सकता,
जितना संभव होगा, घर की जीवन नैया खे सकता,
एक सुखद बस दृश्य, खड़ी तुम दृढ़ हो अपने पैरों पर,
सुख दुख तो आयें जायेंगे, रहो संतुलित लहरों पर,
निर्बन्धा हो, खुला विश्व-नभ, पंख लगा लो, उड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।७।
बहुत सुन्दर और भावुक कर देने वाली रचना|
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
पिता के स्नेह की आंच एक निस्स्वार्थ छाता है .ऐसी बिटिया आसमान के तारों से दूधगंगाओं के पार एक और दूध गंगा ढूंढ लेगी .यकीन मानिए .बहुत सुन्दर कोमल भाव की रचना .जहां तक पृथ्वी के उल्का पात से बाँझ होने की संभावना है वह बहुत ही कमतर है .और अब तो धूमकेतुओं के मार्ग को विचलित किया जा सकता है रोकेट दाग कर .आभार आप की हाज़िर ज़वाबी और हाजिरी का .
ReplyDeleteशब्द शब्द से वाक्य बनेंगे, वाक्य तथ्य पहचानेंगे,
ReplyDeleteतथ्य संग यदि, निश्चय तब हम जग को अच्छा जानेंगे,
ज्ञान बढ़े, विज्ञान बढ़े, तब आधारों पर निर्णय हो,
दृष्टि वृहद, संचार सुहृद, तब क्षुब्ध विषादों का क्षय हो,
आनन्दों का आश्रय होगा, शब्दों से नित जुड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।५।
कितना सुंदर आदेश है, एक पिता के कर्तव्य को बखूबी निभाता हुआ ।
आपकी इस बिटिया को हार्दिक आशीर्वाद ये आपका सम्मान बहुत बढ़ाएगी ये मैं दावे के साथ कह सकता हूँ..
ReplyDeleteआपकी इस बिटिया को हार्दिक आशीर्वाद ये आपका सम्मान बहुत बढ़ाएगी ये मैं दावे के साथ कह सकता हूँ..
ReplyDeleteपिता की कविता पुत्री के नाम। सुंदर।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर संदेश है।
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पढ़कर बहुत अच्छा लगा !
ReplyDeleteशुक्रिया.......
ममतापूर्ण रचना.....!
ReplyDeleteसुन्दर भाव...
सुन्दर शब्द संयोजन...!!
बहुत खुबसूरत सी रचना, प्रवीन भाई...बहुत दिनों बाद दिल को छूने वाला कुछ पढ़ा...ये रचना और उसके भाव हर उस पिता के हैं जिसके घर एक प्यारी सी बिटिया हैं, और पिता हृदय जानता हैं कठिनाइय इस कठोर ज़माने की.....कुछ कहना चाहता हैं अपने अनुभवों से...लेकिन कहे तो कैसे.....इस रचना के माध्यम से कुछ बोझ हल्का होता हैं....
ReplyDeleteशायद आने वाले समय में इस रचना का उल्लेख जमाना करे...शुभकामनाये....
प्यारी बिटिया रानी के प्यारे पापा....कितने प्यार से समझाया है...बहुत प्यारा...सीख देता गीत!!
ReplyDeleteपिता का बेटी के नाम स्नेह भरा काव्यात्मक संदेश
ReplyDeleteहै पितृत्व का बोध हृदय में, ध्यान तुम्हारा रखना है,
ReplyDeleteमिला दैव उपहार, पालना सृष्टि श्रेष्ठ संरचना है,
वह बिटिया धन्य है जिसको इतने प्यार से समझने वाले पिता मिले ...
बहुत खूबसूरत कविता और सन्देश!
बिटिया की ही तरह सरल, सहज अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteडॉ ओपी तिवारी से प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeletebahut bahut ati sundarm bhavnatmk abhivkti ha.aapko shubh kamna.
dr o p tiwari
बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteएक पिता का कर्त्तव्य बच्चों को सही मार्गदर्शन देना भी है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता और बहुत प्यारी बिटिया.
dil khush kar diya praveen ji
ReplyDeleteआपकी इस अनमोल रचना को भारत सरकार के ’सर्व शिक्षा अभियान’ के लिये किये जा रहे प्रयास के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिये ।
ReplyDeleteअत्यंत सरल एवं शिक्षा प्रद ,बाललुभावन रचना ।
पिता का सारा दुलार हर अक्षर के हर बिन्दु में झलक रहा है ....... आज तो सिर्फ़ आशीष देने को मन कर रहा है !
ReplyDeleteमन से प्रवाहित मन में उतरती प्रेरणादायी रचना.
ReplyDeleteपितृ हृदय के सुन्दर उद्गार!
ReplyDeleteबेटियों के प्रति आपका प्यार...बहुत प्यारा.
ReplyDeleteबहुत सुल्दर शिक्षाप्रद रचना!
ReplyDeleteवाह! अद्भुत/अनमोल गीत है....
ReplyDeleteसादर बधाई....
lovely poem.
ReplyDeleteयही एक गुण भेंट करूँगा, और तुम्हें क्या दे सकता,
ReplyDeleteजितना संभव होगा, घर की जीवन नैया खे सकता,
एक सुखद बस दृश्य, खड़ी तुम दृढ़ हो अपने पैरों पर,
सुख दुख तो आयें जायेंगे, रहो संतुलित लहरों पर,
निर्बन्धा हो, खुला विश्व-नभ, पंख लगा लो, उड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।७।
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है……………भावविभोर कर दिया…………ऐसा ही तो हम दोनो भी सोचते है और कहते है यूँ लगा हमारे ही मन के भावो को संजोया है।
ati sundar bhaav, prabhaavkaari srijan . badhaayee.
ReplyDeleteप्यारी बिटिया के लिये स्नेही पापा की सुन्दर सीख .
ReplyDeleteविश्वास कीजिये ,खरी उतरेगी जीवन की कसौटी पर ऐसे संस्कार पाकर !
बिटिया और पापा दोनों काफ़ी-कुछ अनुरूप लग रहे हैं .हार्दिक शुभ-कामनायें !
शिशुओं के लिए प्रेरक शिशु गीत!!
ReplyDeleteप्यारी, भावुक कविता...मुझे बहुत पसंद आई! :)
ReplyDeleteYou are blessed with a lovely daughter.
ReplyDeleteAnd you have really created a master-piece, i don't think there would be any such creation on the subject.
इतना सुन्दर!
ReplyDeleteइतना स्नेहमयी!
अतीव मधुर! :)
सुन्दर रचना, आभार
ReplyDeleteमाना तुमको गुड्डे गुड़िया पुस्तक से प्रिय लगते हैं,
ReplyDeleteमाना अनुशासन के अक्षर अनमन दूर छिटकते हैं,
माना आवश्यक और प्यारी लगे सहेली की बातें,
माना मन में कुलबुल करती बकबक शब्दों की पातें,
पर पढ़ने के आग्रह सम्मुख, प्रश्न न कोई खड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।१।
पिता के निस्स्वार्थ सेवा भाव से भीगी कविता .पितृत्व को आलोकित सम्मानित करती .बधाई .
पितृत्व का बोध ह्रदय में ध्यान तुम्हारा रखना है .......बिटिया पढ़ा करो....बेहद सुन्दर प्रेरणादायी प्रसंग....स्वयं भी पढ़ा और बिटिया को भी पढाया .....शुभ कामनाएं !!!
ReplyDeleteपर भविष्य को रखकर मन में,
ReplyDeleteवर्तमान से लड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो....
हार्दिक शुभकामनाएं !
प्रेरणा दायक, बाल कविता .
ReplyDeleteकाश मैं भी ऐसा पिता बना होता!
ReplyDeleteआपकी लेखनी को बारम्बार नमन...अद्भुत रचना है ये आपकी.
ReplyDeleteनीरज
pita ke hruday ki abhilasha jimmedariyon ka ehsas bahut sunder..
ReplyDeletevery touching & a global poem for all the daughter in the earth
ReplyDeleteशुक्रिया भाई साहब इस प्रेरक आहट के लिए खूबसूरत भाव पूर्ण विचार कविता के लिए .
ReplyDeleteह्रदय से निःसृत पंक्तियों में प्यार व् दुलार के साथ ही एक पिता का संसार है और सृजन धर्म का चमत्कार भी. बिटिया रानी को ढेर सारा आशीर्वाद.
ReplyDeleteनहीं! केवल आग्रह या उपदेश नहीं है इस कविता में। अक्षर-अक्षर से टपक रही है पिता के मन में हिलोरे ले रही, लाडली की चिन्ता। सन्दर।
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteउम्मीद है कि बिटिया रानी को पापा की बात समझ में आ गई होगी। और पढाई भी शुरू हो गई होगी।
स्नेहसिक्त उद्गार!!
ReplyDeleteस्नेहसिक्त उद्गार !!
ReplyDeleteबहुत अनमोल रचना है आपकी ये ... आपकी बेटी के लिए भी बहुत अनमोल !मेरी पिता ने भी मेरे लिए ऐसा ही कुछ लिखा था ....
ReplyDeleteदिव्यताओं ने जिसको ढाला है ,
सभ्यताओं ने जिसको पाला है,
सारे रिश्ते है पुस्तकों जैसे ,
बेटी रिश्तों की पाठशाला है ........
My daughter says Every girl is a princess to her father,hope now she learns what even a princess is supposed to do.
ReplyDeleteये तो सुन्दर है। बाकी कभी बिटिया रानी को शीर्षक से एतराज हो सकता -क्या मैं पढ़ती नहीं हूं। :)
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना,बधाई!
ReplyDeleteबहुत ही मधुर ... दिल से निकली कविता है ... हर बाप के दिल से यही पुकार मिकलती है जो शीरे शीरे गुस्से में भी बदल जाती है जब बच्चे नहीं मानते ...
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी लग रही थी बस अंत तक आते आते वह ...रीति यही मैं रीत रहूँ, लेकिन तू जिस घर भी जाये,
ReplyDeleteप्रेम हृदय में संचित जितना, उस घर जाकर बरसाये,
मुझे अच्छा नहीं लगा. क्या यह आवश्यक है कि हर बेटी को महसूस कराया जाए कि वह किसी अन्य खेत में रोपे जाने के लिए तैयार की जा रही रोप/ पौध है? शायद इससे बचना असम्भव है. बेटी को शुभकामनाएँ.
घुघूतीबासूती
सर जी -मेरी बिटिया पढ़ा करो -- बहुत ही कोमल और सुदृढ़ विचार ! बिटिया के सर पर रंगीले छतरी , फिर भय कैसा !
ReplyDeleteहै अधिकार पूर्ण हम सब पर, घर में जो है तेरा है,
ReplyDeleteएक समस्या, आठ हाथ हैं, संरक्षा का घेरा है,
सबका बढ़ना सब पर निर्भर, यह विश्वास अडिग रखना,
संसाधन कम पड़ते रहते, मन का धैर्य नहीं तजना,
छोटे छोटे अधिकारों पर, भैया से मत लड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।६।
bahut hi mann se likhi gayi aapki ye rachna ati sundar hai ..beti ko snehashish :)
ati sundar
ReplyDeleteमेरी प्यारी बिटिया.....
ReplyDeleteनन्हें फूलों की क्यारी है मेरी बिटिया
घर भर को लगती प्यारी है मेरी बिटिया.
एक साल हुआ पकड़ उंगली दादा की
चलने की तैयारी है मेरी बिटिया.
जिसने पकड़ा उसको, झट से चूम लिया
सबकी राजदुलारी है मेरी बिटिया.
मुझे ज़मीं पर बिठा पीठ के ऊपर चढ़कर
मुझ पर करे सवारी है मेरी बिटिया.
मेरी प्यारी बिटिया.....
ReplyDeleteनन्हें फूलों की क्यारी है मेरी बिटिया
घर भर को लगती प्यारी है मेरी बिटिया.
एक साल हुआ पकड़ उंगली दादा की
चलने की तैयारी है मेरी बिटिया.
जिसने पकड़ा उसको, झट से चूम लिया
सबकी राजदुलारी है मेरी बिटिया.
मुझे ज़मीं पर बिठा पीठ के ऊपर चढ़कर
मुझ पर करे सवारी है मेरी बिटिया.
शानदार पोस्ट ... बहुत ही बढ़िया लगा पढ़कर .... Thanks for sharing such a nice article!! :) :)
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