कल देवेन्द्रजी के ब्लॉग पर एक पोस्ट पढ़ी, पढ़ते ही चेहरे पर एक स्मित सी मुस्कान खिंच आई। विषय था गृहणियों के बारे में और प्रसंग था उनकी एक २५ वर्ष पुरानी सहपाठी का। होनहार छात्रा होने के बाद भी उन्होने कोई नौकरी न करते हुये एक गृहणी के दायित्व को स्वीकार किया और उसे सफलतापूर्वक निभाया भी। पता नहीं वह त्याग था या सही निर्णय पर हमने वह आलेख अपनी श्रीमतीजी को पढ़ाकर उनका अपराधबोध व अपने मन का बोझ कम कर लिया।
देवेन्द्रजी के लिये, २५ वर्ष पुरानी स्मृति में उतराते हुये अपनी मित्र के लिये निर्णयों को सही ठहराना तो ठीक था पर विषय से हटकर उनकी सुन्दरता का जो उल्लेख वे अनायास ही कर बैठे, वह उनके मन में अब भी शेष मधुर स्मृतियों की उपस्थिति का संकेत दे गया। आदर्शों की गंगा में यह मधुर लहर भी चुपचाप सरक गयी होती पर अपनी श्रीमतीजी को वह आलेख पढ़ाने की प्रक्रिया में वह लहर पुनः उत्श्रंखल सी लहराती दिख गयी। इस तथ्य पर उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिये जब उन्हें फोन किया तो मुझे लग रहा था कि स्मृतियों की मधुरता पर उन्हें छेड़ने वाला मैं पहला व्यक्ति हूँ, पर उनके उत्तर से पता लगा कि उनकी श्रीमतीजी इस विषय को लेकर उन पर अर्थपूर्ण कटाक्ष पहले ही कर चुकी हैं।
इस पूरी घटना से भारतीय विवाहों के बारे में दो तथ्य तो स्पष्ट हो गये। पहला यह कि विवाह के कितने भी वर्ष हो जायें, विवाह पूर्व की स्मृतियाँ हृदय के गहनतम कक्षों में सुरक्षित पड़ी रहती हैं और सुखद संयोग आते ही चुपके से व्यक्त हो जाती हैं। न जाने किन तत्वों से बनती हैं स्मृतियाँ कि २५ वर्ष के बाद भी बिल्कुल वैसी ही संरक्षित रहती हैं, कोमल, मधुर, शीतल। कई ऐसी ही स्मृतियाँ विवाह के भार तले जीवनपर्यन्त दबी रहती हैं। दूसरा यह कि विवाह के कितने ही वर्ष हो जायें पर भारतीय गृहणियों को सदा ही यह खटका लगा रहता है कि उनके पतिदेव की पुरानी मधुर स्मृतियों में न जाने कौन से अमृत-बीज छिपे हों जो कालान्तर में उनके पतिदेव के अन्दर एक २५ वर्ष पुराने व्यक्तित्व का निर्माण कर बैठें।
इतने सजग पहरे के बीच बहुत पति अपने उद्गारों को मन में ही दबाये रहते हैं और यदि कभी भूलवश वह उद्गार निकल जायें तो संशयात्मक प्रश्नों की बौछार झेलते रहते हैं। अब जब इतना सुरक्षात्मक वातावरण हो तो भारतीय विवाह क्यों न स्थायी रहेंगे। भारतीय पति भी सुरक्षित हैं, उनकी चंचलता भी और भारत का भविष्य भी।
‘न मुझे कोई और न तुझे कहीं ठौर’ के ब्रह्मवाक्य में बँधे सुरक्षित भारतीय विवाहों में अब उन मधुर स्मृतियों का क्या होगा, जो जाने अनजाने विवाह के पहले इकठ्ठी हो चुकी हैं, उन कविताओं का क्या होगा जो उन भावों पर लिखी जा चुकी हैं? क्या उनको कभी अभिव्यक्ति की मुक्ति मिल पायेगी? मेरा उद्देश्य किसी को भड़काना नहीं है, विशेषकर विश्व की आधी आबादी को, पर एक कविमना होने के कारण इतनी मधुरता को व्यर्थ भी नहीं जाने दे सकता।
देवेन्द्रजी सरलमना हैं, भाभीजी उतनी ही सुहृदय, घर में एक सोंधा सा सुरभिमय खुलापन है, निश्चय ही यह हल्का और विनोदपूर्ण अवलोकन एक सुखतरंग ही लाया होगा। पर आप बतायें कि वो लोग क्या करें जो इन मधुर स्मृतियों में गहरे दबे हैं? क्या हम भारतीय इतने उदारमना हो पायेंगे जो भूतकाल की छाया से वर्तमान को अलग रख सकें?
प्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है।
न जाने किन तत्वों से बनती हैं स्मृतियाँ कि २५ वर्ष के बाद भी बिल्कुल वैसी ही संरक्षित रहती हैं, कोमल, मधुर, शीतल।
ReplyDeleteप्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है।
हाँ बिल्कुल ...और यह उदारता पत्नियों में भी बहुत होती है यकीन मानिये..... :) सुंदर स्मृतियाँ ....सुंदर पोस्ट
प्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है।
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कह रहें हैं प्रवीण भाई आप.
पर बात कहने के लिए सहारा आपने देवेन्द्र
भाई का लिया.लगता है राज की बाते हैं जी.
कोई बात नहीं,मधुरं मधुरं, स्मृति मधुरं.
आभार.
इस तरह की मधुर स्मृतियों को मैं अपनी श्रीमती जी से कब का बाँट चुका हूँ. वे मेरी ओर से 'निसा खातिर' हैं !
ReplyDeleteसहज विश्लेषण, सहलाती-सी, थपकी देती सी.
ReplyDeleteप्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है।
ReplyDeleteसत्य है !
:)
ReplyDeleteNo comments:)
हम आप भी सुरक्षित रहें .....हमारी चंचलता भी ......और सपत्नीक हमारा भविष्य भी!
ReplyDelete(सूचना: पति और पत्नी दोनों कार्यरत हैं)
संरक्षित स्मृतियाँ और उसके अमृत बीज हमेशा हृदय के गहन कक्षों में वास करती हैं, आज भी जब हम अपने उस काल के दोस्तों से बातें करते हैं तो ऐसा लगता है कि ये घटनाएँ बस होकर ही चुकी हैं।
ReplyDeleteखैर यह तो है "मधुरं मधुरं, स्मृति मधुरं"
वर्तमान के लिये यह सत्य है कि प्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है ।
कुछ पंक्तियों में उस तरंगदैर्ध्य को मैंने भी महसूस किया था -आप भी सटीक प्रेक्षण वाले चतुर चितेरे हैं हीं...
ReplyDeleteऐसे ही प्रसंग-संदर्भ मनुष्य प्रजाति की 'मनुष्यता' मानवीयता का प्रमाण प्रस्तुत करते रहते हैं ....अन्यथा वह भी तो एक निरा पशु ही है न ....देवेन्द्र जी से मन संवेदित हुआ ..आप और उन्हें सपरिवार दशहरा और विजय पर्व की शुभकामनाएं !
मतलब की बातें जुटाईं, खूब मजे लिये
ReplyDeleteनज़र मिली नज़र चुराई, खूब मजे लिये।
इंतजार था यह लिखने का क्या मतलब?
दोनो में बातें साझा थीं, खूब मजे लिये।।
मधुरं मधुरं, स्मृति मधुरं.
ReplyDeleteखूबसूरत |
सादर नमन ||
http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post.html
प्रवीण भाई,
ReplyDeleteऐसे मौके के लिए सीमा फिल्म में रफ़ी साहब सटीक गाना गा गए हैं-
जब भी ये दिल उदास होता है, जाने कौन आसपास होता है...
जब भी इस गीत को सुनो बड़ी राहत मिलती है...
जय हिंद...
प्रवीण जी अब क्या कहूँ,आप तो मन की बातें पढ़ने में प्रवीण हैं , इतना ही कह कर आह भर सकता हूँ कि- बात निकली है तो दूर तलक जायेगी।
ReplyDeleteहाँ एक विचार और निवेदन है कि मधुर स्मृतियाँ बोझवान नही, बल्कि हमारे अस्तित्व को, मन व आत्मा को हल्का, बोझरहित व सहिष्णु बनाती हैं।
सबके जीवन में प्रेम व सहिष्णुता बनी रहे,आज नवरात्र के पावन व दसहरा के उल्लास पर्व पर सबको शुभकामना व बधाई।
सत्य है
ReplyDeleteप्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है
जहा तक बात पिछली स्मृतियों की है तो निश्चिन्त रहे पत्निया आप को छेड़ने चिढाने और आप को आप की बातो में फंसा कर परेशान करने के लिए तो कुछ कटाक्ष कर सकती है पर वो उन्हें गंभीरता से बिल्कुल भी नहीं लेती है तब तो बिल्कुल भी नहीं जब पतियों का वर्तमान में उनसे कोई मेल जोल ही ना हो या फिर मेल जोल इतने वर्षो बाद हो :) |
ReplyDeleteमधुरं मधुरं, स्मृति मधुरं.
ReplyDeleteसही कहा आपने। प्रेम अनमोल धन है और उदारता की ज़मीन पर यह फलता फूलता है।
ReplyDeleteसबके जीवन में प्रेम व सहिष्णुता बनी रहे| दशहरे की आप सबको शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteप्रेम को प्रेम ही रहने दो कोई नाम ना दो।
ReplyDeleteइस प्रकरण से मिली प्रसन्नता पर आप भी विवाद के घेरे में आ सकते हैं. :) आपने तो बाकायदा व्याख्या भी की है.
ReplyDeleteन जाने किन तत्वों से बनती हैं स्मृतियाँ कि २५ वर्ष के बाद भी बिल्कुल वैसी ही संरक्षित रहती हैं, कोमल, मधुर, शीतल।
ReplyDeleteप्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है।
बहुत ही बढिया ..
बात बात में गहरी बात कह जाते हैं आप।
ReplyDelete------
एक यादगार सम्मेलन...
...तीन साल में चार गुनी वृद्धि।
बहुत सुंदर प्रशंग, जिसे आपने काफी प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है।
ReplyDeleteक्या बात है।
:):)..
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteबहुत सवेंदनशील विषय छेड़ा हैं आपने, प्रवीन भाई.:-)..कुछ पंक्तिया लिखी थी इन्ही पर..जल्द ही साझा करूँगा...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर स्मृतियां ...स्मृतियों को भूलना तो आसान नहीं होता, लेकिन उनको स्मृतियों तक ही रखें और पत्नी से उसे बांटना बेहतर होगा.
ReplyDeleteहम सहमत है आलेख की हर पंक्ति से . यही कह कर निकल लेते है अभी तो .
ReplyDeleteवैसे तो पुरानी स्मृतियों से वर्तमान को मधुर बनाया जा सकता है ... अगर संबंधों को हलके फुल्के में लिया जाय और मधुरता २५ साल बाद भी बरकरार हो ...
ReplyDeletehmm
ReplyDeletehmmm
hmmmmm
hmmmmmmm
प्रवीण जी ,
ReplyDeleteअपनी भारतीय संस्कृति की यही तो विशेषता है। यहाँ विवाह एक संबन्ध नहीं, अपितु एक संस्कार है और संस्कार कभी न तो पुराने होते हैं और न ही समाप्त। पच्चीस वर्ष हो गए तो क्या हुआ? अभी अप्रैल माह में मेरे एक नजदीकी बन्धु ने अपने बेटों के दबाव में अपने विवाह की पचासवीं वर्षगाँठ धूमधाम से मनाई। उनका एक बेटा अमरीका में अच्छे पद पर कार्यरत है। समारोह को सम्पन्न कराने अमेरिका से भारत आने के लिए उसने अपने अधिकारी से छुट्टी माँगा । उससे कारण पूछा गया । जब उसने बताया कि उसके माता-पिता के विवाह की पचासवीं वर्षगाँठ मनाई जा रही है और वह उसमें शामिल होने के लिए गुड़गाँव (भारत ) जाना चाहता है तो उस अमरीकी बॉस को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ। उसने कहा- शादी की पचासवीं वर्षगाँठ? यहाँ (अमेरिका में) तो अब तक पचासवीं शादी की वर्षगाँठ मनाई जाती। (O god,fiftieth marriage anniversary ! Here It would be anniversary of fiftieth marriage!) यह बात समारोह में ही उस भतीजे ने मुझे बताई थी।
प्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है।
ReplyDeleteमधुर स्मृतियाँ ........जब भूलना बस में न हो तो न भूलें...मधुर स्मृतियाँ ज़रूर साथ रखें.....यकीन मानिये भारतीय नारियां इस तरह की स्मृति से बिलकुल नहीं डरतीं....इसीलिए हमारे देश में विवाह जैसी संस्था की ईमारत इतनी मज़बूत है ....बहुत अच्छा लिखा है....दशहरे की शुभकामनायें.......
सुन्दर आलेख ...सरंक्षित स्मृतियों को उजागर करने पर प्रेम के पूर्ववत पल्लवित रखने के लिये अतरिक्त प्रयास करना पड़ता है कभी कभी...शुभकामनायें !!!
ReplyDeleteप्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है……………सत्य वचन्।
ReplyDeleteयह आपकी अपनी स्म्रतियों पर निर्भर करने के साथ-साथ आपके जीवन साथ पर भी निर्भर करता है,कि आपके और उनके बीच कि understanding कैसी है यदि बहुत ही बढ़िया है तो कोई बात ही नहीं आपकी स्म्रतियान और भी मधुर बन जायेंगी अथवा ... आप खुद बहुत समझ दार है :)
ReplyDeleteसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
यदि कोई भी स्मृति मधुर हो तो वह आजीवन रिफ्रेश करता रहता है बस वहां जाने की जरुरत होती है.विवाह सम्बन्ध उदार प्रेम हो तो क्या कहना..
ReplyDeleteदेवेन्द्रजी सरलमना हैं, भाभीजी उतनी ही सुहृदय, घर में एक सोंधा सा सुरभिमय खुलापन है, निश्चय ही यह हल्का और विनोदपूर्ण अवलोकन एक सुखतरंग ही लाया होगा।
ReplyDeleteदेवेंद्र जी भाग्यशाली हैं, हम उनकी जगह होते तो ताई दो चार लठ्ठ तोड चुकी होती और हम यहां टिप्पणी की बजाये किसी नर्सिंग होम की खटिया में पडे होते.:)
रामराम.
sambhaw karne ki agar thaan len to kya dikkat ... shubhkamnayen
ReplyDeleteसुंदर स्मृतियाँ ....सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteहाय! शादी के पहले उद्गार हमारे साथ क्यों नहीं हुए... बुढापे में कम से कम अब तो पत्नी को संशय में डाल सकते थे :)
ReplyDeleteadvut
ReplyDeleteआप सब को विजयदशमी पर्व शुभ एवं मंगलमय हो।
ReplyDeleteयह प्रथम-प्रीति की महक,कहाँ कब मिट पाती है |
ReplyDeleteजब तब गवाक्ष खुलते रहते,मन बगिया महकाती है|
......
स्मृतियाँ तो मन की लहरें हैं
फिर फिर दस्तक दे देती हैं |
कैसे यह मन चुप रह जाए ,
आखिर मन है मेरा मन है |
बहुत सुन्दर रचना..बधाई.
ReplyDeleteआप सभी को विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !!
___________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
ReplyDeleteनवीन सी. चतुर्वेदी
"स्मॄतियों" की हार्ड ड्राइव की पार्टीशनिंग कर लेनी चाहिये । विवाह से पहले की अलग और पश्चात की स्मृति अलग । भूल से भी कभी इधर की स्मॄति उधर कट कापी पेस्ट ना करें ,अन्यथा कितना भी लेटेस्ट एंटी-वायरस पड़ा हो ,आपका घर का सिस्टम क्रैश होना तय है ।
ReplyDeleteपहला आकर्षण,पहला प्यार ,पहला रोमांस शायद मन पे उकेरित सा ही रहता है ,सदैव ।यह अलग बात है कि उकेरित चित्त पर समय की धूल जम जाती है और वस्तुतः लगता है कि सतह समतल सी है ,पर कभी कोई ऐसी घटना घट जाती ,जिससे वो समय की धूल हटती है ,तब वो उकेरापन तो दिखना तय ही है !!!!
...मैं भी घर बैठ कर बच्चे बगैहरा संभालने को तैयार हूं पर मेरी कोई सुनता ही नहीं :)
ReplyDeleteबंधू !विवाह एक कमिटमेंट है .मिट जाना है .स्मृतियों को बुहारना ही अच्छा है .इस संस्था में सब कुछ परम्परा बद्ध है .मुक्त छंद की गुंजाइश नहीं है .छायावादी मुस्कान भी संशय के घेरे में आजाती है .एक दूसरे को पज़ेस करने के जिद रहती है यहाँ .विवाह में खुलापन नहीं होता .आप सच बोलने की छूट ले सकतें हैं लेकिन कीमत भी आपको ही चुकानी पड़ेगी .सच को पचाते पचाते औरत शमिता बन जाती है .मानने समझने लगती है खुद को शमित .ऐसा है अतीत के सच का स्वाद .
ReplyDeleteकोमल अहसासों का पिटारा । कभी मुस्कान ला दे तो कभी हंगामा बरपवा दे ।
ReplyDeleteदशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ...
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच 659,चर्चाकार-दिलबाग विर्क
a cute n sweet read...smiles !!
ReplyDeleteगहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुति!
ReplyDeleteविजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
देवेन्द्र दत्त जी और आप दोनों संवेदनशील इंसान हैं आप दोनों ब्लोगिंग को अपनी वैचारिक मंथन से नित शुद्ध कर रहें हैं ये देखकर मन को एक शांति मिलती है....आपने इस पोस्ट में जिन विषयों को उठाया है उसके बारे में मैं तो इतना ही कहूँगा की मन तो हमेशा हिलोरे मारता रहता है और हम आप जैसे इंसान उस हिलोरें में से कुछ अच्छाई को सहेज कर बाकीं को किनारे लगने के लिए छोर देते हैं और ये प्रक्रिया रोज होती है.....
ReplyDeleteस्मृतियाँ निकलती कब हैं ह्रदय की अतल गहराइयों से...
ReplyDeletehaha, bahut he pyaari saaree!!
ReplyDeleteसुंन्दर जानकारी...
ReplyDeleteएक ब्लोगर का सम्मान
http://vijaypalkurdiya.blogspot.com/2011/10/blog-post.html
पुरानी बाते और घटानाएं जीवन भर याद रहती हैं।
ReplyDeleteविजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
स्मृति बहुत सुन्दर... ऐसी ही सुन्दर यादों के सहारे जिंदगी कटती है
ReplyDeleteवो पल जो ज़िन्दगी का नखलिस्तान होतें हैं ,ओएसिस होतें हैं ,कभी जाते ही नहीं है .
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और विचारणीय पोस्ट |
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और विचारणीय पोस्ट |
ReplyDelete@@प्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है।
ReplyDeleteसहमत है... १००%
उर्मिला सिंह की प्राप्त टिप्पणी..
ReplyDeleteमधुरं,मधुरं----सटीक लेख,क्यों नहीं,स्मृतियों की गुलाबी पंखुडियां,सूंघते रहना चाहिए,जीने की अभीप्सा बनी रहती है,अधिकार दौनों को है.
प्रयोग की वस्तु----आपने सही कहा,काशः हम न्याय कर पाते.
बहुत खूबसूरत विचार और व्यक्त करने का वही खूबसूरत अंदाज़ :) आपका लेख पढकर हमें भी लगा की हम भी गलत नहीं थे |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट दोस्त |
प्रवीण जी, धन्यवाद कि आपके सोंधे छौंक वाला लेखन वह मनोरम अभिव्यक्ति पढ़ने को प्रेरित कर गया .
ReplyDeleteइतने सजग पहरे के बीच बहुत पति अपने उद्गारों को मन में ही दबाये रहते हैं और यदि कभी भूलवश वह उद्गार निकल जायें तो संशयात्मक प्रश्नों की बौछार झेलते रहते हैं। अब जब इतना सुरक्षात्मक वातावरण हो तो भारतीय विवाह क्यों न स्थायी रहेंगे। भारतीय पति भी सुरक्षित हैं, उनकी चंचलता भी और भारत का भविष्य भी।
ReplyDeleteपाण्डेय जी सार्थक आलेख सुन्दर सन्देश आप का ...जय श्री राम
भ्रमर ५
मैं भी पत्नी को पढ़वा कर देखता हूँ देवेन्द्र जी का आलेख.... :)
ReplyDeleteवैसे निचोड़ तो मिल ही गया है:
प्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है।
यादों की यही विशिष्टता है कि घटनायें अच्छी अथवा बुरी कैसी भी हों ,परन्तु यादें बन जाने पर वही स्थितियां मीठी लगने लगती हैं .....
ReplyDeleteवैसे आपने देवेन्द्र जी के कन्धे पर रख कर बन्दूक अच्छी चलायी :)))
प्रेम तो उदारता में और पल्लवित होता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
लगता है, आप टोह ले रहे हैं - अपने 'गोपन' को 'ओपन' किया जाय या नहीं। बिन्दास हो कर कह दीजिए सब कुछ। प्रत्येक वैवाहिक जीवन का विशाल सुदृढ प्रासाद, ऐसी अव्यक्त कथाओं की नींव पर ही आकार लेता है।
ReplyDeleteWhich came first? chicken or the egg
ReplyDelete