दीवाली के पहले की एक परम्परा होती है, घर की साफ़ सफाई। घर में जितना भी पुराना सामान होता है, वह या तो बाँट दिया जाता है या फेंक दिया जाता है। वर्षा ऋतु की उमस और सीलन घर की दीवारों और कपड़ों में भी घुस जाती है। उन्हें बाहर निकालकर पुनः व्यवस्थित कर लेना स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत आवश्यक है। जाड़े के आरम्भ में एक बार रजाई-गद्दों और ऊनी कपड़ों को धूप दिखा लेने से जाड़ों से दो दो हाथ करने का संबल भी मिल जाता है। पुराने कपड़ों को छोड़ने का सीधा सा अर्थ है नयों को सिलवाना। नयेपन का प्रतीक है, दीवाली का आगमन।
बचपन से यही क्रम हर बार देखा। इस प्रक्रिया के बाद, घर के वातावरण में आया हल्कापन सदा ही अगली बार के उत्साह का कारण बना रहा। विवाहोपरान्त नयी गृहस्थी में भी वार्षिक नवीनीकरण से ऊर्जा मिलती रही। अभी तक तो सबका सामान व्यवस्थित रखने में स्वयं ही जूझना पड़ता था, सामान मुख्यतः व्यक्तिगत और सबके साझा उपयोग का, साथ में बच्चों का भी थोड़ा बहुत। श्रीमतीजी का सामान व्यवस्थित करने की न तो क्षमता है और न ही अनुमति। इस बार हमने बच्चों को भी इस प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेने को कहा, उन्हे अपने सामान के बारे में निर्णय लेने को भी कहा। बच्चों को अपने सामान की उपयोगिता समझने व उसे सहेजने का गुण विकसित होते देखना किसी भी पिता के लिये गर्व का विषय है।
दोनों बच्चों के अपने अलग कमरे हैं। दोनों को बस इतना कहा गया कि कोई भी वस्तु, कपड़ा या खिलौना, जो आप उपयोग में नहीं लाते हैं, आप उन्हें अपने कमरे से हटा दें, वह इकठ्ठा कर घर में काम करने वालों को बाँट दिया जायेगा। उसके पहले उदाहरण स्वरूप मैंने अपना व्यक्तिगत सामान लगभग २५% कम करते हुये शेष सबको एक अल्मारी में समेट दिया। साझा उपयोग के सामान, फर्नीचर व पुराने पड़ गये इलेक्ट्रॉनिक सामानों को निर्ममता से दैनिक उपयोग से हटा दिया। अपने कमरे में जमीन पर ही बिस्तर बिछा कर सोने से एक बेड को विश्राम मिल गया। ऊर्जा सोखने वाले डेस्कटॉप को हटा वहाँ अपना पुराना लैपटॉप रख दिया। एक अतिरिक्त सोफे को भी ड्रॉइंग-कक्ष से विदा दे गैराज भेज दिया गया।
अपने कक्ष व ड्राइंग-कक्ष में इस प्रकार व्यवस्थित किये न्यूनतम सामान से वातावरण में जो ऊर्जा व हल्कापन उत्पन्न हुआ, उसका प्रभाव बच्चों पर पड़ना स्वाभाविक था। उन्हें यह लगा कि कम से कम सामान में रहने का आनन्द अधिकतम है। अधिक खिलौनों का मोह निश्चय ही उनपर बना रहता यदि न्यूनतम सामान का आनन्द उन्होने न देखा होता। आवश्यक दिशानिर्देश देकर हम तो कार्यालय चले गये, लौटकर जो दृश्य हमने देखा, उसे देखकर सारा अस्तित्व गदगद हो उठा।
एक दिन के अन्दर ही दोनों के कमरे अनावश्यक व अतिरिक्त सामानों से मुक्ति पा चुके थे। पुराने के मोह और भविष्य की चिन्ता से कहीं दूर वर्तमान में जीने का संदेश ऊर्जस्वित कर रहे थे दोनों कमरे। न्यूनतम में रह लेने का उनका विश्वास, उनके स्वयं निर्णय लेने के विश्वास के साथ बैठा निश्चिन्त दिख रहा था। उनके द्वारा त्यक्त सामानों से उठाकर कुछ सामान मुझे स्वयं उनके कमरे में वापस रखना पड़ा।
पुराने सामानों को सहेज कर रख लेने का मोह, संभवतः वह आगे कभी काम आ जाये, या उससे कोई याद जुड़ी हो, साथ ही भविष्य के लिये सुदृढ़ आधार बनाने की दिशा में घर में ठूँस लिये गये सामान, दोनों के बीच हमारा वर्तमान निरीह सा खड़ा रहता है। वर्तमान का सुख अटका रहता है, अस्तित्व के इसी भारीपन में। मेरे लिये यही क्या कम है कि बच्चों में यह समझ विकसित हो रही है कि उनके लिये क्या आवश्यक है, क्या नहीं? हल्केपन के आनन्द के सामने त्यक्त व अनुपयोगी सामानों का क्या मूल्य, संभवतः उन्हें अपना उचित स्वामी मिल ही जायेगा।
घर आयी इस नवप्राप्त ऊर्जा में दीवाली के दियों का प्रकाश जगमगा उठा है। हर वर्ष के क्रम को इस वर्ष एक विशेष सम्मान मिला है, मेरे घर में दीवाली इस बार सफल हुयी है। बस एक कमरा अभी भी भण्डारवत है, श्रीमतीजी का, पर हम तीनों का दबाव उस पर बना रहेगा, अगली दीवाली तक।
बचपन से यही क्रम हर बार देखा। इस प्रक्रिया के बाद, घर के वातावरण में आया हल्कापन सदा ही अगली बार के उत्साह का कारण बना रहा। विवाहोपरान्त नयी गृहस्थी में भी वार्षिक नवीनीकरण से ऊर्जा मिलती रही। अभी तक तो सबका सामान व्यवस्थित रखने में स्वयं ही जूझना पड़ता था, सामान मुख्यतः व्यक्तिगत और सबके साझा उपयोग का, साथ में बच्चों का भी थोड़ा बहुत। श्रीमतीजी का सामान व्यवस्थित करने की न तो क्षमता है और न ही अनुमति। इस बार हमने बच्चों को भी इस प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेने को कहा, उन्हे अपने सामान के बारे में निर्णय लेने को भी कहा। बच्चों को अपने सामान की उपयोगिता समझने व उसे सहेजने का गुण विकसित होते देखना किसी भी पिता के लिये गर्व का विषय है।
अपने कक्ष व ड्राइंग-कक्ष में इस प्रकार व्यवस्थित किये न्यूनतम सामान से वातावरण में जो ऊर्जा व हल्कापन उत्पन्न हुआ, उसका प्रभाव बच्चों पर पड़ना स्वाभाविक था। उन्हें यह लगा कि कम से कम सामान में रहने का आनन्द अधिकतम है। अधिक खिलौनों का मोह निश्चय ही उनपर बना रहता यदि न्यूनतम सामान का आनन्द उन्होने न देखा होता। आवश्यक दिशानिर्देश देकर हम तो कार्यालय चले गये, लौटकर जो दृश्य हमने देखा, उसे देखकर सारा अस्तित्व गदगद हो उठा।
पुराने सामानों को सहेज कर रख लेने का मोह, संभवतः वह आगे कभी काम आ जाये, या उससे कोई याद जुड़ी हो, साथ ही भविष्य के लिये सुदृढ़ आधार बनाने की दिशा में घर में ठूँस लिये गये सामान, दोनों के बीच हमारा वर्तमान निरीह सा खड़ा रहता है। वर्तमान का सुख अटका रहता है, अस्तित्व के इसी भारीपन में। मेरे लिये यही क्या कम है कि बच्चों में यह समझ विकसित हो रही है कि उनके लिये क्या आवश्यक है, क्या नहीं? हल्केपन के आनन्द के सामने त्यक्त व अनुपयोगी सामानों का क्या मूल्य, संभवतः उन्हें अपना उचित स्वामी मिल ही जायेगा।
घर आयी इस नवप्राप्त ऊर्जा में दीवाली के दियों का प्रकाश जगमगा उठा है। हर वर्ष के क्रम को इस वर्ष एक विशेष सम्मान मिला है, मेरे घर में दीवाली इस बार सफल हुयी है। बस एक कमरा अभी भी भण्डारवत है, श्रीमतीजी का, पर हम तीनों का दबाव उस पर बना रहेगा, अगली दीवाली तक।