शब्दों
का बल नापा नहीं जा सकता है, पर जब
उनका प्रभाव दिखता है तो अनुमान हो जाता है कि शब्द तीर से चुभते हैं, हृदय में लगते हैं, भावों को प्रेरित करते हैं, अस्तित्व उद्वेलित करते हैं। कुछ शब्दों में अथाह शक्ति थी, उन्होने इतिहास की दिशा बदल दी। पिता का वचन और
राम चौदह वर्ष के वनवास स्वीकार कर लेते हैं, पत्नी की झिड़की और तुलसीदास राम का चरित्र गढ़ने में जीवन बिता देते हैं, सौतेली माँ की वक्र टिप्पणी और ध्रुव विश्व में
अपना स्थायी स्थान ढूढ़ने निकल जाते हैं। शब्दों का मान रखने के लिये के लिये
वीरों ने राजपाट तो दूर, अपना रक्त
भी बहा दिया है। शरणागत की रक्षा के लिये अपना सब कुछ स्वाहा करने के उदाहरणों से
हमारा इतिहास भरा पड़ा है।
वैसे तो
कितना कुछ हम बोलते रहते हैं, सुनते
रहते हैं, बातें आयी गयी हो जाती
हैं। शब्दों की उसी भीड़ में कब कौन सा वाक्य आपको झंकृत कर दे, न जाने
कौन सा वाक्य कब आप पर प्रभाव डाल दे, चुभ जाये या जीवन की दिशा बदल दे, आपको भान नहीं रहता है। वह कौन सी मनःस्थिति होती है जिस पर शब्द
प्रभावकारी हो जाते हैं? भारतीय
जनमानस वैसे तो सहने के लिये विख्यात है, हम न जाने कितनी बातें पचा जाते हैं पर कब शब्दों के प्रवाह हमें बहा
ले जाये, इस पर बड़ी अनिश्चितता है।
जिन
घरों में नित्य टोका टाकी होती है वहाँ के बच्चे इस प्रकार के शब्द-प्रहारों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर
लेते हैं, धीरे धीरे संवेदनशीलता
कुंठित होने लगती है, किसी का कुछ
कहना बहुत अधिक प्रेरित या उद्वेलित नहीं करता है उन्हें। समस्या तब आती है जब
आपको पहली बार कुछ सुनने को मिलता है, आपकी संवेदनशीलता पर पहली चोट पड़ती है। याद कीजिये, आप सबके जीवन में वह क्षण आया होगा जब शब्दों
ने अपनी वाक-ऊर्जा से कई गुना कंपन
आपके शरीर में उत्पन्न किया होगा, आप
हिल गये होंगे, आप बहुत कुछ सोचने
लगे होंगे। ऐसे अवसर प्रकृति सबको देती है, भले ही कोई विद्यालय गया हो या न गया
हो, जीवन की पाठशाला में कोई निरक्षर नहीं है, ऐसी परिस्थितियों और घटनाओं के
माध्यम से सबकी समुचित शिक्षा और परीक्षा चलती रहती है। संवेदनशीलता यही है कि हम
सदा ही सीखने और उसे व्यक्त करने को तत्पर रहें।
भाग्यशाली
हैं हम सब भाई बहन कि घर में सदा ही निर्णय लेने का अधिकार मिला है, स्वतन्त्र विचारशैली व जीवनशैली को सम्मान मिला
है, माता-पिता का स्नेह-कवच सदा ही
पल्लवित करता रहा है। यही कारण था कि लड़कपन तक एक हल्कापन और स्वच्छन्दता
जीवनशैली में रची बसी रही। हाईस्कूल में सामान्य से अंक देख बस पिता ने यही कहा कि
यदि इतनी सुविधा उन्हें मिली होती तो उनका प्रदेश में कोई स्थान आया होता। ये शब्द
पूरे अस्तित्व को झंकृत कर गये, आने
वाले वर्षों की दिशा निर्धारित कर गये। इण्टरमीडियेट में बोर्ड में स्थान आ गया, आईआईटी में पढ़ने का अवसर मिल गया, सिविल सेवा में चयन हो गया, जीवन में स्थायित्व भी आ गया, पर 25 वर्ष बाद भी वे शब्द स्मृति पटल पर स्पष्ट अंकित हैं।
न उसके
पहले पिता ने कभी कुछ कहा था, न
उसके बाद पिता ने अभी तक कुछ कहा, पर
वे शब्द तो निश्चय ही थपेड़े से थे, अपने बल से आपका प्रवाह बदलने में सक्षम।
प्रेरक बात, प्रेरक प्रसंग। दूसरा पक्ष यह भी है कि, "नशा शराब में होता तो नाचती बोतल ..."
ReplyDeleteशब्दों की सार्थकता के माध्यम से आपका यह प्रेरणादायी संस्मरण लोगों के लिए मार्गदर्शन का काम करेगा |माँ -पिता की संवेदना से जुड़े अपने ही दो शेर आपके लिए -
ReplyDeleteनये घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो
दिया बनकर वहीँ से माँ हमेशा रोशनी देगी
ये सूखी घास अपने लाँन की काटो न तुम भाई
पिता की याद आयेगी तो ये फिर से नमीं देगी -
ये शब्द ही हैं जो किसी की दशा और दिशा को बना-बिगाड़ सकते हैं !वे लोग भाग्यशाली हैं जिन्होंने शब्द-बाणों को अपने जीवन का मन्त्र बना लिया और उससे सकारात्मक सीख ली !इसलिए कौन-सा शब्द कब प्रेरित कर जाये ,कह नहीं सकते पर जो लोग यह नहीं समझ पाते ,उन्हीं को ये नुकसान भी पहुँचाते हैं !
ReplyDeleteशब्द ब्रह्म हैं इसलिए ही तो ....वैसे अक्लमंदों के लिए इशारा ही काफी होता है :)
ReplyDeleteसच ब्यान कर रहे है आपके शब्द,
ReplyDeleteशब्दै मारा गिर पड़ा, शब्दै छोड़ा राज।
ReplyDeleteजिन्हिं शब्द विवेकिया,तिन का सरिगो काज।
प्रेरक और सत्य वचन!
ReplyDelete''ये शब्द पूरे अस्तित्व को झंकृत कर गये'' वाद्य का सुर मिला हो तभी संभव होता है यह.
ReplyDeleteशब्द्श: सच ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रेरक आलेख. "जिन घरों में नित्य टोका टाकी होती है वहाँ के बच्चे इस प्रकार के शब्द-प्रहारों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं" यह भी एक बड़ी सीख ही है.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
ReplyDelete@ ये शब्द पूरे अस्तित्व को झंकृत कर गये...
पिता के बोले यह शब्द आपका जीवन बदल गए , बधाई आपके व्यक्तित्व की जिसने पिता के कष्ट को महसूस कर लिया प्रवीण भाई !
काश समाज में भी लोग अपनी गलतियों को महसूस करना सीख लें तो शायद व्यक्तित्व की वह ऊंचाई उन्हें आसानी से मिल पाए जिसको पाने के लिए शायद रातों को नींद भी चैन से न आती हो !
....
ReplyDeleteब्लॉग जगत के परिप्रेक्ष्य में देख कर कहूं तो आजकल एक दुखद बहस सिर्फ इन्हीं शब्दों की मार को लेकर चल रही है और इसका अंत न जाने कितने दिलों से, कितनों को नीचे गिराएगा, कुछ पता नहीं ....
अफ़सोस तब होता है जब यह लड़ाई दो विद्वानों के बीच हो रही हो! समाज नायक बनने योग्य लोग, केवल ग़लतफ़हमी और और संवादहीनता की स्थिति में, भीड़ के बीच उपहास का पात्र बन रहे हैं ! लेखक के मनोभावों को समझे बिना की जा रही प्रतिक्रियाएं विस्मयकारी हैं !
मगर यह सच है कि ...
कडवे शब्द कहीं गहरे तक जाकर चोट करते हैं ...
अपमान का दंश भुलाना आसान नहीं चाहे चोट किसी ने दी हो !
हमें पछतावे तक नहीं पंहुचना चाहिए !
अधिक संवेदनशील होने से शायद दुनिया का अनुभव अधिक रंगीन और भावपूर्ण होता है, पर बातों की चोट से हताश हो जाना या उसे सहन कर पाना उतना ही कठिन है.
ReplyDeleteजीवन की छोटी छोटी बातें, जीवन का रुख कब बदल देती हैं पता भी नहीं चलता. पीछे मुड़ कर देखने से ही उनका महत्व समझ में आता है.
अक्षरश: सत्य कहा है ...प्रेरक विचारों का संगम है इस प्रस्तुति में ... आभार
ReplyDeleteशब्दों में बड़ी ताकत है चाहे तो तुलसीदास बना दे या फिर कंस की श्रेणी में ला खड़ा करे।
ReplyDeleteअच्छा। शब्द कभी कभी ब्रह्म लेकिन अधिकतर भ्रम होते हैं…झंकृत करने वाले शब्द ही कारण बने तब सब क्यों नहीं झंकृत हो जाते हैं…बस एक बात है यह…
ReplyDeleteसच है जीवन में शब्दों का गहरा प्रभाव होता है...ये इंसान के ऊपर है की वो शब्दों को सकारात्मक रूप में ले या नकारात्मक....आपने सकारात्मक रूप में लिया और वो पहचान बनाई जो शायद आपके पिताजी का सपना होगा आपके लिए...प्रेरणादाई संस्मरण के लिए धन्यवाद्
ReplyDeleteथपेड़े से शब्दों ने जीवन को दिशा दी ..प्रेरक प्रसंग ..सच है शब्द संवेदनाओं को छूते हैं ..
ReplyDeleteजिन घरों में नित्य टोका टाकी होती है वहाँ के बच्चे इस प्रकार के शब्द-प्रहारों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं,
ReplyDeleteबिल्कुल मुझ पर लागू होती है यह बात।
vo shabd bhi mahaan hote hain jo asar karen aur vo dil bhi mahaan hota hai jo unko grahan kare.bahut bahut behtreen lekh.
ReplyDeleteशब्द असर तभी करते हैं जब उन के प्रति संवेदनशीलता भी हो।
ReplyDeleteप्रेरणा दायक सस्मरण
ReplyDeleteअक्षरशः सत्य. इस पोस्ट के बाद थोडा ज्यादा ही लग रहा है कि आपसे मिलना मिस हो गया.
ReplyDeleteप्रवीण जी !शब्द निश्चय ही सारथी बनतें हैं बा -शर्ते उनके अर्थ हमारे अन्दर मौजूद हों .शब्द को ब्रह्म कहा गया है इसीलिए .शब्द चलातें हैं ज़िन्दगी ,सुख दुःख का ताना बाना शब्द ही बुनतें हैं हमारे गिर्द चयन हमारा ही होता है फिर भी .हमारी तो किस्मत ही ऐसी थी ,सब भाग्य का लेखा है वगैरा वगैरा .लोग पहले ऐसा बोलतें हैं और फिर ऐसा ही महसूस करतें हैं .इन शब्दों को अपने आसपास से हटा दें तो ज़िन्दगी आसान हो जाती है .शब्द ही चलातें हैं हमारी मनास्तिथियाँ .दिशा और दशा .
ReplyDeleteजी, शब्दो का जादू...
ReplyDeleteलेकिन कई मायनों में प्रेरक लगी ये पोस्ट.
प्रवीण जी
ReplyDeleteआपने इल की बात कह दी , देखा जाए तो ये शब् ही है जो , हमें खुशी देते है और दुःख भी देते है .. आपके आज के इस लेख को मैं सलाम करता हूँ ..
विजय
बिलकुल सही कहा....
ReplyDelete..ये दुधारी तलवार है....
" जिव्हा एसी बावरी, कीन्हे बहुरि कमाल |
आपु तौ कही भीतर गयी, जूता खाय कपाल ||
तभी तो कहा है....
" ह्रदय तराजू तोल के तब मुख बाहर आनि "
आपके हर एक शब्द से सहमति.
ReplyDeleteशब्द हो या शबद, देते ही है सबक . प्रेरणास्पद .
ReplyDeleteआजकल यह थपेडे तो ब्लाग पर भी चल रहे हैं :)
ReplyDeletePita aur bhaiyon ke kayi vakyon se kuch prabhavit hua parantu fir bhi wo mukam hasil na hua jo chata tha.. Apka blog padh kar thoda malal fir jahir hua parantu jo tathya aur sachchai hai wo to hai hi!!
ReplyDeleteशब्दहि सुनि-सुनि वेश धरत है,
ReplyDeleteशब्द सुनै अनुरागी...... ,शब्द के भेद न पाए.
बहुत बढिया,
ReplyDeleteप्रेरणा देने वाला लेख
काश लोग जीवन में भी उतारें
जी शब्द का प्रभाव नावक के तीर की तरह होता है।कहीं अंधे का पुत्र अंधा ही कहना महाभारत करा देता है, तो कहीं नारायण का गलती से उच्चारण पापी अजामिल का उद्धार कर देता है।
ReplyDeleteI agree completely Sir. :)
ReplyDeleteशब्द ही सम्मान देते हैं और शब्द ही हैं जो अपमान भी करते हैं।
ReplyDeletePRIY PANDEY JI
ReplyDeleteVIKAAAS PANTH PAR MAN KUNTHIT NA HO
BACHCHAA HO YAA BADAA VYVHAAR MEN SAMVEDANSHOONYTAA VIDROHEE PRAVRITTI KEE JAANMASTHLEE HOTEEH HAI
ISLIYE
VACHNE KAA DARIDRATAA
VANDNEEY VICHAAR BADHAAYEE
"शब्द जो थपेड़े से थे……………मगर जीवन को दिशा दे गये…………एक सार्थक और सटीक आलेख्।
ReplyDeleteअपने विचार - आपके पोस्ट में.. अभिभूत!!
ReplyDeleteजिन घरों में नित्य टोका टाकी होती है वहाँ के बच्चे इस प्रकार के शब्द-प्रहारों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं, बिलकुल सही है| धन्यवाद|
ReplyDeleteशब्दों का प्रभाव निश्चय ही अद्भुत है ......शुरू से अंत तक सुविचार देता हुआ ....सुंदर आलेख ...
ReplyDeletebadhai ...
सत्य को दर्शाती एक प्रेरक सुन्दर आलेख...
ReplyDeleteग्रहण करनेवाले की क्षमता पर भी शब्द का असर निर्भर करता है...
ReplyDeleteसुन्दर प्रेरणादाई संस्मरण.....प्रवीण जी
ReplyDeleteहर शब्द की पहचान है,हर शब्द का अस्तित्व।
ReplyDeleteकाफी कुछ याद आ गया शब्दों का सफर...
बधाई ||
ReplyDeleteमित्रवत व्यवहार करके दो बच्चों को MNNIT एवं NIT दुर्गापुर से B TECH करवाया | तीसरी BIET झाँसी से कर रही है |
थप्पड़ से थपेड़े, असरदार ज्यादा हैं |
घोड़े जस थपेड़े, थप्पड़ तो प्यादा हैं ||
कूद-कूद के ढाई, प्रगति पन्थ पर जाए--
प्यादा अटकाई, प्यादा टांग अड़ाए ||
नोट : नापसंद हो तो मिटा दें ||
निश्चित ही आपसे सहमत...मैं स्वयं का सी ए बन जाना भी ऐसे ही एक वाकिये की परिणीति मानता हूं...आज तक!
ReplyDeleteबंदूक से निकली गोली और मुंह से निकली बोली कभी वापस नहीं आती...
ReplyDelete(अपवाद...वन एंड ओनली रजनीकांत)
जय हिंद...
शब्द विचारों के वाहक हैं । हमारे जीवन की दिशा ही बदल देते हैं।
ReplyDeletesatya vachan.maza aagaya padhke. blog writing me aaj se mujhe apna shisya sweekar karen.
ReplyDeleteशब्दों में बहुत ताकत होती है बस हमारे पास संवेदनशील मन चाहिये । आपके जीवन को आपके पिताजी के एक वाक्य नें दिशा दे दी ।
ReplyDeleteतुकाराम जी ने कहा है आम्हां घरी धन शब्दांचीच रत्ने । हमारे घर का धन तो बस शब्द-रत्न ही हैं ।
sarthak prsang...
ReplyDeleteसतगुर साँचा सूरबां
ReplyDeleteसबद जु बाह्या एक
लागत ही भैं मिट गया
पड़ा कलेजे छेक
[कबीर]
तीर, तलवार या खंजर की जरूरत क्या है
ReplyDeleteमरनेवाला तो फ़क़त बात से मर जायेगा.
praveen ji
ReplyDeletebahut hi suxhmta se aapne shabdon ki vyakhya ki hai .aapke lekh ke har shabd apna prabhav chodne mesaxham hain.
shabdon ki yahi to vishheshhta hoti hai.
bahut hi badhiya vishleshhan
badhai
poonam
प्रेरक प्रसंग।
ReplyDeleteEminently readable blog post!
ReplyDeleteSo true indeed.
Verily is it said "The pen is mightier than the sword"
Words can be powerful indeed.
They can inspire, provoke or even damage and destroy.
I recall that cricketer Navjot Singh Siddhu was inspired/provoked into improving his batting by the stinging criticism of his earlier batting performances
A sports journalist had described him as "a strokeless wonder"
Sidhu worked hard to live down that remark.
Words have changed governments and created new parties.
Stung by the humiliation of the congress chief minister Anjaiah, by his own boss Rajiv Gandhi, NTR used the powerful words "Telugu Aatma Gouravam" to create the Telugu Desam Party and defeat the congress party which was considered invincible in Andhra.
Hundreds of examples like this can be cited.
The power of words is truly phenomal.
Regards
GV
( excuse me for commenting in English. Hindi typing is possible on my Ipad but much more difficult and time consuming)
प्रेरक प्रसंग. सुंदर शिक्षाप्रद आलेख.
ReplyDeleteबात लग जाती है तो कुछ हो कर ही रहता है-( लेने वाले पर भी निर्भर करता है)
ReplyDeleteआप को तो उबार दिया उस थपेड़े ने !
a very awesome and true post!!
ReplyDeletewords are mightier than sword :)
शब्द-शब्द, अक्षर-अक्षर सत्य है।
ReplyDeleteलेकिन फिर जो अनुराग जी कहते हैं, बात वो भी सही है।
बहुत सही कहा प्रवीण भाई। कुछ शब्द हमारी जीवन शैली ही बदल डालते हैं।
ReplyDeleteशब्दों के थपेडे निश्चित जी जीवन में उथल पुथल मचा देते हैं, यह बहुत कुछ ग्रहण करने वाले पर निर्भर करता है.
ReplyDeleteरामराम.
सर जीवन में कुछ शब्द दिशा बदल देते है ! यदि उनके महत्त्व को समझा जाय !
ReplyDeleteAbsolutely true...
ReplyDeleteWords r powerful blades... sometimes they cut u so deep that they goes with u even in grave.
Brilliantly explained !!!
प्रवीण जी ,आपकी आज की पोस्ट को पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त करने में मुझे भी शब्द कम पड़ रहें हैं ......
ReplyDeleteशब्दों का प्रभाव इस बात पर ज्यादा निर्भर करता है कि सामने वाला उसे किस परिपेक्ष्य में लेता है।
ReplyDeleteएक-एक शब्द जैसे चुन-चुन कर प्रयोग किया गया हो, हमेशा की तरह।
ReplyDelete------
मनुष्य के लिए खतरा।
...खींच लो जुबान उसकी।
वाक-ऊर्जा की सारगर्भित मीमांसा...
ReplyDeletebahut achhe....shabdon pe aapki pakad ko bhi manana hoga :)
ReplyDeleteअक्सर देखा जाता है कि ज्यादा शब्दों में कही गयी बात उतना असर नहीं कर पाती जितना कि सही तरीके से कम शब्दों में कही बात....!
ReplyDeleteकुछ ऐसे ही संस्मरण हैं मेरे भी अपने पिता जी के साथ...!
जिन्हें कुछ करना होता वे शब्दों के प्रहार को अपने आगोश में ले लेते हैं जिन्हें नहीं करना होता है वे बहाने और विपरीत दिशा ढूंड लेते हैं
ReplyDeleteशुक्रिया अशोक भाई .हौसला अफजाई के लिए .
ReplyDeletesach kaha apne ki kab kaun se shabd kisko bhed jaye , keh nahi sakte... aap samvedansheel thae to ye shabd apko sunai diyae or chubhae... varna aj to lag itnae samvedansheel hi nahi hotae...asar to door , shabd hi sunai nahi dete...
ReplyDeletekabhi mere blog par bhi aiyae achha lagega..
प्रेरणादायी संस्मरण,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
शब्दों की महत्ता दिखाता बहुत सुन्दर और प्रेरक आलेख...शब्दों के प्रति संवेदनशीलता बहुत ज़रूरी है.
ReplyDeleteआपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
ReplyDeleteजय माता दी..
♥
ReplyDeleteआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
Thanks for this great post. Its super helpful for the noobs like me :)
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