तैरना
एक स्वस्थ और समुचित व्यायाम है, शरीर
के सभी अंगों के लिये। यदि विकल्प हो और समय कम हो तो नियमित आधे घंटे तैरना ही
पर्याप्त है शरीर के लिये। पानी में खेलना एक स्वस्थ और पूर्ण मनोरंजन है, मेरे बच्चे कहीं भी जलराशि या तरणताल देखते हैं
तो छप छप करने के लिये तैयार हो जाते हैं, घंटों खेलते हैं पर उन्हें पता ही नहीं चलता है, अगले दिन भले ही नाक बहाते उठें। सूरज की गर्मी और दिनभर की थकान मिटाने
के लिये एक स्वस्थ साधन है, तरणताल
में नहाना। गर्मियों में एक प्रतीक्षा रहती है, शाम आने की, तरणताल में
सारी ऊष्मा मिटा देने की। कोई भी कारण हो, तैरना आये न आये, आकर्षण
बना रहता है, तरणताल, झील, नदी या ताल के प्रति।
उपर्युक्त
कारणों के अतिरिक्त, एक और कारण है
मेरे लिये। पानी के अन्दर उतरते ही अस्तित्व में एक अजब सा परिवर्तन आने लगता है, एक अजब सी ध्यानस्थ अवस्था आने लगती है। माध्यम
का प्रभाव मनःस्थिति पर पड़ता हो या हो सकता है कि पिछले जन्मों में किसी जलचर का
जीवन बिताया हो मैंने। मुझे पानी में उतराना भाता है, बहुत लम्बे समय के लिये, बिना
अधिक प्रयास किये हुये निष्क्रिय पड़े रहने का मन करता है। मन्थर गति से
ब्रेस्टस्ट्रोक करने से बिना अधिक ऊर्जा गँवाये बहुत अधिक समय के लिये पानी में
रहा जा सकता है। लगभग दस मिनट के बाद शरीर और साँसें संयत होने लगते हैं, एक लय आने लगती है, उसके बाद घंटे भर और किया जा सकता है यह अभ्यास।
प्रारम्भिक
दिनों में एक व्यग्रता रहती थी तैरने में, कि किस तरह जलराशि पार की जाये। तब न व्यायाम हो पाता था, न ही मनोरंजन, होती थी तो मात्र थकान। तब एक बड़े अनुभवी और दार्शनिक प्रशिक्षक ने यह
तथ्य बताया कि जलराशि शीघ्रतम पार कर लेने से तैरना नहीं सीखा जा सकता है, तैरना चाहते हो तो पानी में लम्बे समय के लिये
रहना सीखो, पानी से प्रेम करो, पानी के साथ तदात्म्य स्थापित करो। शारीरिक
सामर्थ्य(स्टैमना) बढ़ाने और पानी के अन्दर साँसों में स्थिरता
लाने के लिये प्रारम्भ किया गया यह अभ्यास धीरे धीरे ध्यान की ऐसी अवस्था में ले
जाने लगा जिसमें अपने अस्तित्व के बारे में नयी गहराई सामने आने लगी। इस विधि में
शरीर हर समय पानी के अन्दर ही रहता है, बस न्यूनतम प्रयास से केवल सर दो-तीन पल के लिये बाहर आता है, वह भी साँस भर लेने के लिये। पानी के माध्यम में
लगभग पूरा समय रहने से जो विशेष अनुभव होता है उसका वर्णन कर पाना कठिन है, तन और मन में जलमय तरलता और शीतलता अधिकार कर
लेती है। पता नहीं इसे क्या नाम दें, जल-योग ही कह सकते हैं।
कभी कभी
इस अवस्था को जीवन में ढूढ़ने का प्रयास करता हूँ। समय बिताना हो या समय में रमना
हो, समय बिताने की व्यग्रता हो या
समय में रम जाने का आनन्द, जीवन
भारसम बिता दिया जाये या एक एक पल से तदात्म्य स्थापित हो,
जीवन से सम्बन्ध सतही हो या गहराई में उतर कर देखा जाये इसका
रंग? यदि व्यग्रता से जीने का
प्रयास करेंगे तो वैसी ही थकान होगी जैसे कि तैरते समय पूरे शरीर को पानी के बाहर
रखने के प्रयास में होती है। साँस लेने के लिये पूरे शरीर को नहीं, केवल सर को बाहर निकालने की आवश्यकता है। जिस
प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।
तैरने का
आनन्द उठाना है तो ढंग से तैरना सीखना होगा। जीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से
जीना सीखना होगा।
प्रकॄति ने सब कुछ उपलब्ध कराया है,बस उसके साथ रहना सीख लेने से ही हर जगह ध्यानस्थ हुआ जा सकता है ,भय कहीं भी हो कुछ भी ढंग से करने नहीं देता है,भयमुक्त जीवन जीना ही शायद जीना कहलाता है ...एक अच्छा आलेख..
ReplyDelete(तो बहुत दिन हो गए -इन्तजार है भयमुक्त होने का....)
शनिवार (१०-९-११) को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आमंत्रण स्वीकार करें ....aur apne vichar bhi den...
ReplyDeleteतिरा सो तरा.
ReplyDeleteमनुष्य के उत्पत्ति /विकास की एक संकल्पना यह भी बताती है कि हामरे पूर्वज जलचर थे ..प्रमाण में वे नवजातों के तैरने का उदाहरण देते हैं -मनुष्य नवजात जन्म के तत्काल बाद भी पानी में हाथ पैर चलाते देखे जाते हैं -
ReplyDeleteनिश्चय ही तैरना एक उल्लासपूर्ण अनुभव है -व्यायाम तो नम्बर एक है ही !
तैरने का लाभ चाहकर भी नहीं उठा पाया.गंगाजी के पास रहते हुए भी इस ओर प्रगति नहीं हो पाई,इसकी बड़ी वज़ह यह रही कि इस मामले में मैं डरपोक रहा.
ReplyDeleteतैरना एक उत्तम व्यायाम है.शीतल जल वैसे ही सारी थकान दूर कर देता है.दो-चार छींटे जहाँ किसी की बेहोशी ख़त्म करने को पर्याप्त होती हैं और यदि जल में ही क्रीडा करने लगे कोई तो क्या होगा,यह बताने की ज़रुरत नहीं है !
कोशिश जारी है,मेरी..तैरना सीखने की भी और जीवन जीने की भी
ReplyDeleteजीवन का विकास ही जल में हुआ.....तभी तो कहाजाता है ...जल ही जीवन है...
ReplyDeletebahut achcha aalekh likha hai.really tairna bahut achchi exercise hai.bahut kuch yesa hi anubhav hota hai jab main swimming karti hoon.dheere dheere abhyaas se kitna hi stemina develop kar sakte hain.jo bhi kam dil ki gahraaiyon se karen usi me aanand aata hai.
ReplyDeleteमुझे तो पानी में पैर लटकाकर बैठना अच्छा लगता है या फिर ट्यूब-वैल की धारा/उसके गड्ढ़े में नहाना.
ReplyDeleteमुझे भी तैरना बहुत अच्छा लगता है और अगर एकाँत भी हो तो मन एकदम शाँत हो जाता है!
ReplyDeleteतैरना क्या सीख पायेंगे इस उम्र मे .... हां ढंग से जीना सीखने का प्रयत्न तो कर ही रहे है
ReplyDeleteतैरना अच्छा तो लगता है पर यह एक काम हो गया है आज... सबसे पहले तो समय निकाल कर मन बनाओ, फिर मौसम देखो, फिर देखो कि आज पूल बंद तो नहीं होगा, फिर वहां जाने का उपक्रम करो, पूल में घुसने से पहले नहाओ...फिर निकल कर नहाओ, कपड़े बदलने के रूम में आओ, फिर गाड़ी उठा कर घर लौटना...
ReplyDeleteबहुत याद आता है, गांव का पोखर... वहां से गुजरते हुए जब जी चाहा कपड़े उतारे, डुबकी लगा ली....
शहर में तैरना.... अब क्या कहूं
dhiru singh {धीरू सिंह} ने कहा…
ReplyDeleteतैरना क्या सीख पायेंगे इस उम्र मे .... हां ढंग से जीना सीखने का प्रयत्न तो कर ही रहे है
जरुर धीरू भाई ||
मैंने २५ की आयु में तैरना सीखा ||
हाँ पर नहर पार कर सकता हूँ नदी नहीं |
बधाई प्रवीण जी ||
तैरने का आनन्द उठाना है तो ढंग से तैरना सीखना होगा। जीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से जीना सीखना होगा।
ReplyDeleteतैरने के विषय में पोस्ट है जो जीवन में खुद को तारने की राह बता रही है..... सुंदर
बहुत तत्वपूर्ण चिंतन!
ReplyDeleteजिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।
ReplyDeleteजलयोग भी इसी मूलभूत आनंद को प्राप्त करने की एक विधि लगत्ती है मुझे तो. शुभकामनाएं.
रामराम.
जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है.
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कही है .. गंभीर चिंतन
काजल कुमार जी ने मेरे दिल की बात कह दी . तैराकी पूर्ण व्यायाम है और सुकून प्रद भी .
ReplyDeletedoobne ka dar tairne nahin deta...shayd isliye tairna seekhne ki sari koshish nakam rahi hai meri...
ReplyDeleteshayad aapke tarike se ho sake, agli baar dhyan sthir karke dekhti hun.
हर एक के समझने के लिए जरूरी ....कि..???
ReplyDeleteजिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।
स्वस्थ रहें!
सुन्दर आलेख. हमारे पुश्तैनी घर में एक चौड़ी बावड़ी हुआ करती थी जो हमेशा लबालब रहती थी. छुट्टी मनाने आये कुछ बच्चे डूब रहे थे. उन्हें बचा तो लिया गया परन्तु हमारे पिताश्री ने उस तरन ताल को पटवा दिया. अब फिर से उसका पुनरुद्धार होगा.
ReplyDeleteसहमत।
ReplyDeleteभाई प्रवीण जी यहां दिल्ली में देखता हूं कि लोग स्वीमिग सीखने के लिए बहुत पैसे खर्च करते हैं। हम तो मिर्जापुर गंगा किनारे के रहने वाले हैं। लोगों की मर्जी के खिलाफ उन्हें तैरना सिखा दिया करते थे।
ये सही कि अब वक्त नहीं है इसके लिए, पर स्वास्थ्य के लिए तो वाकई रामबाण है।
कमाल है जी आप तो हर चीज में दर्शन ढूँढ लेते हैं। वैसे पानी में रहना सचमुच आनन्ददायक है। मैं एक-दो बार ही गया हूँ लेकिन फिर निकलने का मन ही नहीं करता।
ReplyDeleteजब तैरा करती थी तब चिंतन की शक्ति नहीं .. जब से चिंतन की शक्ति विकसित हुई है .. तैर पाना संभव नहीं .. अब तो हिलोरे लेते पानी में पैर रखने में भी डर होता है .. प्रकृति से दूर रहते हुए हम जीना क्या सीख पाएंगे ??
ReplyDeleteprerna se bhari post. praveen ji ..
ReplyDeleteजिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।
ReplyDeleteये क्या कह दिया है आपने,प्रवीण जी.
पढकर ही 'ध्यानस्थ'होने का मन कर रहा है.
अपना तैरने का प्रेम भी आप जैसा ही है.
ReplyDeleteढंग ही तो मायने रखता है...
ReplyDeleteसोच रहा हूं जलपरी के पुलिंग को क्या कहते होंगे...
ReplyDeleteजय हिंद...
"जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।"
ReplyDeleteआपके नाम से बार बार इस 'कोटेशन' का ज़िक्र होगा..बहुत गहरी बात कह दी आपने ..
वर्षा को तो एन्जॉय कर लेती हूँ लेकिन बहुत सी जलराशि से थोडा सा फोबिया है! :(
ReplyDeleteतैरने का आनन्द उठाना है तो ढंग से तैरना सीखना होगा। जीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से जीना सीखना होगा।
ReplyDeleteसुचारू जीवन का शुभ सन्देश दे रहा है आपका लेख ....ये बात सिर्फ तैरने में नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में लागू होती है......उपयोगी आलेख है ...!!
जलपाखी कैसा रहेगा ?
ReplyDeleteबहुत ही रोचक पोस्ट,पढ़ते-पढ़ते आभास ही न हुआ कि कब हमें जीने की सीख दे दी...
ReplyDeleteतैरते सामान तो नहीं, हाँ तरणताल के किनारे खड़ी हो ये ज़रूर सोचती हूँ की उतरा जाए ? एक बार TRY किया जाए ?
ReplyDeleteअब तो ऐसा समझ में आ रहा है कि यदि जीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से तैरना सीखना होगा।वाह क्या बात है, आपका लेख पढ़कर आनंद आ गया।
ReplyDeleteतैरना सब को आना चाहिए न जाने कब जरुरत पड जाये लाजवाब बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई ||
स्वास्थ्योपयोगी जीवन को दृष्टि देता बहुत अच्छा आलेख....
ReplyDeleteअद्भुत ज्ञान सरोवर में गोते लगाने सा आनंद!!
ReplyDeletevery nice meaningful creation
ReplyDeleteधरती से पहले समस्त विश्व में जल था- ऐसा ज्ञानी लोग कहते हैं। शायद इसीलिए हम स्वाभाविक पानी से आकर्षित होते हैं। नमक खाना भी शायद एक कारण है कि हम आज भी समुद्र से जुडे हुए हैं :)
ReplyDeleteतैरने की प्रक्रिया में साधा गया संतुलन ही जीवन जीने में भी काम आता है ...... कुछ पल अपनी रुचि से बिताना ही सांस लेने के लिये ऊपर आना है ....
ReplyDelete"जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।" .... इस विचार के लिये आपको नमन !
तैरने की प्रक्रिया में साधा गया संतुलन ही जीवन जीने में भी काम आता है ...... कुछ पल अपनी रुचि से बिताना ही सांस लेने के लिये ऊपर आना है ....
ReplyDelete"जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।" .... इस विचार के लिये आपको नमन !
तैरने की प्रक्रिया में साधा गया संतुलन ही जीवन जीने में भी काम आता है ...... कुछ पल अपनी रुचि से बिताना ही सांस लेने के लिये ऊपर आना है ....
ReplyDelete"जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।" .... इस विचार के लिये आपको नमन !
हम तो कभी ठीक से तैरना सीख नहीं पाये। बस किनारे पर छप-छप करने का आनंद ले लेते हैं ... ज़िन्दगी में भी।
ReplyDeleteतैरना चाहते हो तो पानी में लम्बे समय के लिये रहना सीखो, पानी से प्रेम करो, पानी के साथ तादात्म्य स्थापित करो।........
ReplyDeleteयह तो सूक्ति हो गई. बड़े काम की है.
तैरना प्राकृतिक योग है . तन-मन स्वस्थ रहता है . अच्छा लेख . अनंत चतुर्दशी की बधाई .
ReplyDeleteइस पोस्ट को आप पढ़ ही चुकें है ----
" विकलांग बना चैंपियन "
http://www.ashokbajaj.com/2011/07/blog-post_05.html
तैरना मुझे भी अच्छा लगता है बस तैरना नहीं आता :)
ReplyDeleteपानी में रहना अच्छा तो लगता है पर तैरना अभी भी सीख नहीं पाया। पानी की सतह पे फ्लोटिंग करते वक़्त अच्छा तो लगता है पर असली आनंद पूरी तरह पानी के भय से अपने आपको मुक्त कर के ही पाया जा सकता है।
ReplyDeleteहमारे शरीर का बहुलांश भी तो पानी ही है .इसीलिए पानी से एक सहज लगाव रहता है .मन मुक्त होता है स्नान से .स्नान तो संध्या आराधना ही है .और तैरना उस रीत से जो आपने बताई है एक विश्राम ही है मन और काया का .आभार .
ReplyDeleteबहुत खूब... तैरना वाकई कुछ खास ही है... कभी मस्ती, कभी व्यायाम, कभी पिकनिक का हिस्सा, कभी परिवार के साथ तो कभी दोस्तों के साथ... नर्मदा मैया में तैरना सबसे ज्यादा याद आता है... अभी भी गाँव जाते हैं तो एक लालच रहता ही है कि तालाब जाने का मौका मिले और बस...
ReplyDeleteएक चीज़ में सबसे ज्यादा मज़ा आता था, वो था अन्दर तक जाना, अपनी ही सीमाएं तोड़ना... जितना अन्दर जाना या देर तक अन्दर रहना, उतनी ही तेज़ी से बाहर आना... शायद लड़ना भी वहीं से सीखा... और वही ज़स्बा बैठ गया है कहीं अन्दर मन में... बहुत-बहुत धन्यवाद ये लेख लिखने के लिए और पूरे वक़्त का fast-replay आँखों के सामने लाने के लिए...
कहते तो आप ठीक हैं, लेकिन हम तो यही कहेंगे कि अपनी ये इच्छा रह ही गई। अब तो डैड सी में ही कभी..।
ReplyDeleteसर तरणताल के करीब रहा पर तैरना न सीखा क्यों की पानी के अन्दर जाने से डर लगता रहा ! वाकई तैराकी एक स्वस्थ व्यायाम है !
ReplyDeleteबचपन में नदी में नहाने के खूब नज़ारे लेते थे| आप के लेख ने वे दिन याद दिला दिए| धन्यवाद|
ReplyDeleteआप की पोस्ट पढ़ कर तैरने का मन हो आया है
ReplyDeleteअलबत्ता तरन ताल का स्वच्छ होना भी लाजिमी है क्लोरिन का स्तर दुरुस्त हो वरना कान का संक्रमण ,चमड़ी रोग की सौगात भी खूब मिलती है कई को .फंगल इन्फेक्शन bhi .
ReplyDeleteजीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से जीना सीखना होगा।
ReplyDeleteयह तो जीवन है और यही विचारणीय आज के दौर में ...आपका आभार
तैरने का आनन्द उठाना है तो ढंग से तैरना सीखना होगा। जीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से जीना सीखना होगा।
ReplyDeleteबेहद सशक्त लेखन ... आभार ।
सुंदर आलेख और सही विवेचना.
ReplyDeleteमुझे तैरना तो नही आता पर हां पानी का प्रचंड आकर्षण है और पानी में उतरना हमेशा बहुत आनंद देता है ।
ReplyDeleteसमय बिताना हो या समय में रमना हो, समय बिताने की व्यग्रता हो या समय में रम जाने का आनन्द, जीवन भारसम बिता दिया जाये या एक एक पल से तदात्म्य स्थापित हो, जीवन से सम्बन्ध सतही हो या गहराई में उतर कर देखा जाये इसका रंग? यदि व्यग्रता से जीने का प्रयास करेंगे तो वैसी ही थकान होगी जैसे कि तैरते समय पूरे शरीर को पानी के बाहर रखने के प्रयास में होती है। साँस लेने के लिये पूरे शरीर को नहीं, केवल सर को बाहर निकालने की आवश्यकता है। जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।....
ReplyDeleteइससे सुन्दर और क्या कहा जा सकता है....
वाह !!!!
बिलकुल सही लिखा है आपने की जीने का ढंग हर ठोकर से सीखना ही चाहिए...तभी असल जीने का आनंद आएगा....
ReplyDeleteGyaanvardhak post..Abhar.
ReplyDeleteAre wah kya lekh hai.
ReplyDeletehumare ghar aaee ek nanhee paree ko jab vo teen mahine kee thee tabhee se swiming sikhaaee gayee hai aur ab vo ek saal kee hai aur panee dekhte hee jump karne lagtee hai khushee se . hum to mazak me kahte hai apnee bitiya se ki tumharee betee fish rahee hogee pichale janm me.
han aapke kathnanusar usane bhee jeena seekh hee
liya....:)
हम तो नहर के किनारे वाले ........... तैरना सीखना ज्यादा मुश्किल नहीं. लगा. सच अच्छा व्यायाम हो जाता है .
ReplyDelete.
पुरवईया : आपन देश के बयार
जल से प्रेम है..पर तैरने की जगह नहीं थी आसपास ..इतना प्यार शायद न रहा हो इसलिए तैरना सीखा नहीं अब तक..पर जल में रहकर आनंद और शांति का सुख अनेकर बार लिया है..
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा पोस्ट -
ReplyDeleteरहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे मोती मानुष ,चून
बहुत ही उम्दा पोस्ट -
ReplyDeleteरहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे मोती मानुष ,चून
इस भव सागर से तरने के लिए तैरना सीखना जरुरी है..सुन्दर आलेख...आभार
ReplyDeleteजल के महत्व और जीवन को एकजुट कर दिया आपने ...
ReplyDeleteशायद यह दर्शन ....'तब एक बड़े अनुभवी और दार्शनिक प्रशिक्षक ने यह तथ्य बताया कि जलराशि शीघ्रतम पार कर लेने से तैरना नहीं सीखा जा सकता है, तैरना चाहते हो तो पानी में लम्बे समय के लिये रहना सीखो, पानी से प्रेम करो, पानी के साथ तदात्म्य स्थापित करो।' हर क्रिया कलाप पर लागू होता है.यदि किसी तरह हर काम, मजबूरी में भी किए जाने वाले काम, पर भी यह आजमाया जाए तो काम अपेक्षाकृत सरल लगेगा.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
तैरना और जकूजी में पानी में पड़े रहने का ऐसा शौक है...कि आप निश्चिंत होकर जलचर कह सकते हैं हमको...
ReplyDeleteवाह यह पोस्ट तो और भी बढ़िया है। तैरते तैरते आध्यात्म में डूबोया फिर दर्शन का चब्बो दे दिया।
ReplyDeleteचब्बो..! काशिका बोली में एक तैराक के द्वारा दूसरे को पानी में जबरी गोते लगवाने को कहते हैं।)
'तैरना चाहते हो तो पानी में लम्बे समय के लिये रहना सीखो' यह तो 'मेनेजमेण्ड का फण्डा' है। पोस्ट ने आनन्द दिया।
ReplyDeletebahut hi rochak prastuti hai sir
ReplyDeleteSwimming the best of all :)
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