घर में 'सब' चैनल के कार्यक्रम अधिक चलते हैं, हल्के फुल्के रहते हैं, परिवार
के साथ बैठ कर देखे जा सकते हैं, बच्चों
को भी सुहाते हैं, भारतीय परिवेश की
सामान्य जीवनशैली पर आधारित होते हैं, स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करते हैं और कृत्रिमता से कोसों दूर होते हैं।
मनोरंजन का अर्थ ही है कि आपके मन के कोमल भावों को गुदगुदाया जाये, कभी किसी परिस्थिति द्वारा, कभी किसी चरित्र के हाव भाव द्वारा, कभी किसी उहापोह से, कभी हास्य से, कभी बलवती
आशाओं से, कभी क्षणिक निराशाओं से।
हो सकता
है कि कभी हास्य का कोई रूप आपको थोड़ा हीन लगे पर संदर्भों के प्रवाह में वह
भी मनोरंजन बनकर बह जाता हो, बिना
कोई विशेष क्षोभ उत्पन्न किये हुये। ऐसा ही कुछ मुझे भी खटकता है, सामान्य हास्य नहीं लगता है। कुछ धारावाहिकों
में एक ऐसा चरित्र दिखाया जाता है जो बड़ी संस्कृतनिष्ठ हिन्दी बोलता है, छोटी बातों को भारी भरकम शब्दों से व्यक्त करता
है, औरों को वह समझ में नहीं आता है, तब कोई समझदार सा लगने वाला चरित्र उसे सरल
हिन्दी या अंग्रेजी में बता देता है, अन्य हँस देते हैं। आपके सामने वह हास्य और विनोद समझ कर परोस दिया जाता
है।
धीरे
धीरे यह धारणा बनायी जा रही है कि हिन्दी एक ऐसी भाषा है जो संवाद और संप्रेषण
योग्य नहीं है, जो वैज्ञानिक नहीं
है, जो आधुनिक नहीं हैं। किसी
तार्किक आधार की अनुपस्थिति में भी यह हल्का सा लगने वाला परिहास ही उस धारणा को
स्थायी रूप देने लगता है।
सरल भव, सहज भव |
अति उत्साही हिन्दी-बुद्धिजीवियों को अपने संश्लिष्ट ज्ञान से हिन्दी को पीड़ा पहुँचाते हुये
देखता हूँ, सरल से शब्दों को
क्लिष्टता के आवरण से ढाँकते हुये देखता हूँ, शब्दों के अन्दर ही क्रियात्मकता और इतिहास ठूँस देने का प्रयास करते
हुये देखता हूँ। उपर्युक्त कारणों से जब हिन्दी का मजाक उड़ाया जाता है, तो क्रोध भी आता है और दुख भी होता है। क्रिकेट
और रेलगाड़ी जैसे सरल शब्दों पर किये गये अनुप्रयोग इस मूढ़ता के जीवन्त उदाहरण
हैं, समझ में नहीं आता है कि वे
भाषा का भला कर रहे हैं या उपहास कर रहे हैं। आप ही बताईये कि 'माइक्रोसॉफ्ट' को हिन्दी में 'अतिनरम' क्यों लिखा जाये?
अगली
बार इस तरह की मूढ़ता सुने तो विरोध अवश्य करे और प्रयास कर उन्हें सही शब्द भी
बतायें। जो अवधारणायें नयी हैं, उनसे सम्बद्ध शब्द अन्य भाषाओं से लेते रहना
चाहिये, उन अवधारणाओं के स्थानीय
विकास के लिये। अंग्रेजी भी तो न जाने कितनी भाषाओं के शब्दों से भरी पड़ी है।
बिना हलचल भाषाओं को भी स्वास्थ्य प्राप्त ही नहीं हो सकता, सजा कर रख दीजिये किसी जीवित प्राणी को, कुछ ही
दिनों में कृशकाय हो जायेगा। हम अपनी माँदों से बाहर निकलें, प्रयोगों
के खेल खेलें, नये शब्दों के खेल खेलें, सरलता आयेगी भाषा में, जनप्रियता आयेगी भाषा में, संभवतः वही भाषा का स्वास्थ्य भी होगा।
यह भी
उचित नहीं होगा कि जिसका जैसा मन हो वह हिन्दी में अनुप्रयोग करे और हिन्दी में जो
शब्द प्रचलित है उन्हें भी अन्य भाषाओं से बदल दे। अपनी तिजोरी देखने के पहले औरों
से भीख माँगने की आदत, जो कई अन्य
क्षेत्रों में है, हिन्दी में न
लायी जाये। जिस देश में 12% जन भी
अंग्रेजी नहीं समझते हैं, उन्हें
नये अंग्रेजी शब्द याद कराने से अधिक सरल होगा उपस्थित हिन्दी शब्दों को अधिक
उपयोग में लाना। जब अन्य भारतीय भाषाओं में उन शब्दों का प्रयोग हो रहा हो तो
अंग्रेजी शब्द आयातित करना बौद्धिक भ्रष्टाचार सा लगता है। कई तथाकथित प्रबुद्ध
हिन्दी समाचार पत्र इस प्रवृत्ति के पोषक बने हुये हैं।
हो सकता
है कि हिन्दी उत्थान पर यह पोस्ट आपको उपदेशात्मक लगे, हिन्दी जैसे व्यक्तिगत
विषयों पर टीका टिप्पणी करने जैसी लगे, क्रोध भी आये, पर इस पर विचार अवश्य हो कि
क्या हिन्दी भाषा इस प्रकार के हास्य का विषय हो सकती है?
चित्र साभार - lalitdotcom.blogspot.com
हिन्दी से हास्य जरूर उपजाया जाए, पर हिन्दी को हास्यास्पद बनाया जाना उचित नहीं ।
ReplyDeleteजो अवधारणायें नयी हैं, उनसे सम्बद्ध शब्द अन्य भाषाओं से लेते रहना चाहिये, उन अवधारणाओं के स्थानीय विकास के लिये। अंग्रेजी भी तो न जाने कितनी भाषाओं के शब्दों से भरी पड़ी है। बिना हलचल भाषाओं को भी स्वास्थ्य प्राप्त ही नहीं हो सकता । साथ ही भीख मांगने से पहले अपने तिजोरी में देखने वाली बात में भी आपसे एकदम सहमत ।
ReplyDeleteभाषा के बारे में सही कहा जाता है ,जिस तरीके से सम्प्रेषण जल्दी और सुगम हो,वही उपयुक्त होता है.अकसर हम आम बोलचाल में 'रौब-दाब' के लिए दूसरे तरीके अपनाते हैं,जो कई बार हास्यास्पद भी लगते हैं.
ReplyDeleteहिंदी की दशा बहुत अच्छी नहीं है,फिर भी व्यावसायिक-दबाव के चलते भी इसका प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है,यह संतोष की बात है.आमजन के शब्द ज़रूर समाहित हों,पर कई बार हिंदी के अख़बार 'हिंगलिश' का प्रयोग अपनी 'हेड लाइन' तक में करते हैं , जबकि उन शब्दों के सरल विकल्प मौजूद होते हैं !
100 बार बोलने से झूठ सच नहीं हो जाता। ऐसे षडयंत्र नाकामयाब ही होंगे। उर्दू सहित सभी बोलियों को मिलाया जाये तो आज हिन्दी विश्व में प्रथम न हुई तो भी दूसरे स्थान पर सबसे बडी भाषा तो होगी ही।
ReplyDeleteहिन्दी देश की बिंदी।
ReplyDeleteविचारणीय आलेख!
ReplyDeleteआपकी भाषा के लिए, यदि इसी पोस्ट से उदाहरण लें तो-''अति उत्साही हिन्दी-बुद्धिजीवियों...'' पैरा पढ़ कर देखें, पढ़े-लिखे लोगों की लिखने की भाषा है, बोलचाल की नहीं,(ऐसा मुझसे भी होता है). वस्तुतः भाव और प्रसंग अनुरूप भाषा, या कहें प्रयोग में आने वाले शब्द बदल जाते हैं. गंभीर विषय पर सावधानीपूर्वक लेखन में निश्चित अर्थ देने वाले पारिभाषिक शब्द आवश्यक होने लगते हैं, जो बोलचाल में कम प्रचलित होते हैं, आमतौर पर प्रयोग नहीं होते.
ReplyDelete'प्रयोग' लिखते हुए सोच रहा हूं कि इसके बजाय इस्तेमाल, बरतना, उपयोग, क्या लिखूं, क्योंकि प्रयोग तो एक्सपेरिमेंट का अर्थ दे सकता है, अनुप्रयोग कहूं तो एप्लीकेशन का समानार्थी होगा और अंगरेजी में सोचकर हिन्दी में लाया शब्द होगा, सहज भी नहीं लगेगा.
भले भी १२% ही अंग्रेजी बोलते और सम्झते हो लेकिन कही ना कही हिन्दी को हम ही लोगो ने कम्जोर किया है और कर रहे है . मै एक कार कम्पनी के लिये कार्य करता हूं वह अपने देश मे तो अपनी भाषा प्र्योग करती है और भारत मे शुद्ध अंग्रेजी
ReplyDeleteकल से ही कुछ पोस्टों पर हिन्दी चिंतन पढ़ रहा हूँ -हिन्दी का उपहास उड़ाने वाले
ReplyDeleteकोई भी भाषा ठीक से नहीं जाने -किसी भी भाषा का उपहास लबार लोग ही करते हैं ..
हाँ उन प्रवृत्तियों पर भी प्रहार होते रहना चाहिए जो हन्दी की मजाक उड़ाते हैं और इस भाषा के प्रति गंभीर नहीं हैं
आज हिन्दी पूरे विश्व में एक सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर चुकी है .......
भाषा अपने विविध रूप सौन्दर्य में प्रगट होती है -
ज्ञान विज्ञान की भाषा ,जन भाषा ,सरकारी कार्यालयों की भाषा ...खबरनवीसों और रिपोर्टिंग की भाषा ..हम प्रायः इनमें भेद नहीं कर पाते -मुश्किल यही आती है -
तुलसी ने कहा -भाषा भनिति भूति भाल सोई सुरसरि सम सबकर हित होई ..
तो यहाँ वे गवारों की भाषा की ही बात नहीं करते -वे उस भाषा की बात करते हैं जिससे सभी का कल्याण हो ...
और ऐसी भाषा विज्ञान की भी हो सकती है और खुद उनके आर्ष ग्रन्थ मानस की ....
अच्छा लगा यह भाषा विमर्श!
बहुत ही उत्कृष्ट पोस्ट हिंदी की दुर्दशा के लिए ऐसे ही तथाकथित बुद्धिजीवी और भद्रजनों ने नुकसान पहुँचाया है |आभार भाई पाण्डेय जी आपके बेबाक लेखन को नमन
ReplyDeleteठीक कहा हिंदी का प्रवाह बना रहना चाहिए । भारी भरकम बना देंगें तो आगे ले जाना कठिन होगा नए प्रयोग किए जाने चाहिए लेकिन बहुत ज्यादा नहीं हिंदी हिंदी ही लगनी चाहिए
ReplyDeleteसार्थक चिंतन!! आपकी धारणा से पूर्ण सहमत!!
ReplyDeleteआप कि बात से पूर्ण सहमत| एक सार्थक चिंतन| धन्यवाद|
ReplyDeleteसही सुझाव हैं आपके, सहजता में आनंद और अपनापन लगता है !
ReplyDeleteराहुल सिंह जी के विचार गौर करने लायक हैं !
शुभकामनायें !
नहीं आपकी यह पोस्ट उपदेशात्मक नहीं बल्कि पूरी तरह व्यवहारिक है ..... क्योंकि अगर हमने हिंदी को इतना कमज़ोर किया है तो उसका मान बनाये रखने लड़ाई लड़ना भी हमारी ही जिम्मेदारी है.... विचारणीय पोस्ट
ReplyDeleteसरल सहज भाव से हिंदी उत्थान में लगा आपका आलेख पसंद आया ...एक चिंतन भी दे रहा है ...हिंदी को हास्यास्पद मानने वालों का विरोध ज़रूर करना चाहिए ...
ReplyDeleteमेरे विचार से समृद्ध भाषा वह है जिसमें दूसरे भाषओं के शब्दों को स्वीकार करने की क्षमता हो। हिन्दी में अंग्रेजी के शब्दों का स्वीकार करना हिन्दी के लिये अच्छा होगा।
ReplyDeleteगणित में साइन, कॉस, या टैन का प्रयोग ज्या कोज्या से बेहतर ही होगा।
'यह भी उचित नहीं होगा कि जिसका जैसा मन हो वह हिन्दी में अनुप्रयोग करे और हिन्दी में जो शब्द प्रचलित है उन्हें भी अन्य भाषाओं से बदल दे। अपनी तिजोरी देखने के पहले औरों से भीख माँगने की ---आदत, जो कई अन्य क्षेत्रों में है, '
ReplyDelete- बहुत सही और व्यावहारिक बात कही है,प्रवीण जी, यह व्यवहार मुझे भी बड़ा विचित्र लगता है .हिन्दी के पत्रकार भी अपनी भाषा का समुचित ज्ञान नहीं रखते ,न इस बिषय में उनकी अपनी कोई दृष्टि है .नई कौड़ी लाने के चक्कर में खूब मनमानी करते हैं.
बहुत ही व्यवहारिक आलेख,उपदेशात्मक लेश-मात्र भी नहीं.हिंदी बोलने में और लिखने में गर्व करना चाहिये.जो व्यक्ति हिंदी समझ सकता हो उसके साथ तो हिंदी में ही सम्प्रेषण होना चाहिये चाहे वह अंग्रेजी में जवाब देता रहे.हाँ,यदि कोई हिंदी न जानता हो और न समझता ही हो तो उसको समझ में आने वाली भाषा में ही सम्प्रेषण होना आवश्यक होगा.भाषा को अतिरंजित और अति क्लिष्ट करने से उपहास ही होगा.आपके विचारों से पूर्णत: सहमत.अन्य भाषा के प्रचलित शब्दों को उसी रूप में स्वीकार करना ही चाहिये.
ReplyDeleteयह वाकई बहुत ही निराश करने वाली बात है... अक्सर आम जीवन में भी हिंदी के शब्दों को बोलने पर लोग भौचक्के रह जाते हैं, उन्हें अपनी ही भाषा का मतलब नहीं पता होता... ऐसे में हिंदी बोलने वाले हंसी का पात्र बना दिए जाते हैं... मैं हमेशा इसका विरोध करता हूँ...
ReplyDeleteहमें अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए...
हिंदी भाषा को जो लोग वैज्ञानिक नहीं मानते उनकी बुद्धि पर तरस ही आ सकता है ....सार्थक लेख ... हिंदी भाषा तो समन्वय कि भाषा है ..बहुत से विदेशी भाषा के शब्द हिंदी में अपना लिए गए हैं .. और लगातार नए शब्द अपनाये जा रहे हैं ..सहजता से जो बोला जाये उसे अपनाने में कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए ..अभी भी हम अंग्रेज़ी की गुलामी की मानसिकता से ऊपर नहीं उठ पाए हैं ..
ReplyDeleteअच्छा लगा यह लेख ... विचारणीय
एक शब्द ही काफी है - सहमत
ReplyDeleteएक बात समझ नहीं आती है कि यदि कोई व्यक्ति अंग्रेजी में क्लिष्ट शब्द का प्रयोग करता है तब उसे अति विद्वान समझा जाता है और यहाँ हिन्दी में हास्य की स्थिति पैदा की जाती है। भाशा के नाम पर मखौल उड़ाना बन्द होना चाहिए। बहुत ही अच्छा आलेख।
ReplyDeleteसूचना - कल रायपुर के लिए रवाना हो रही हूँ इसलिए एक सप्ताह बाद वापसी होगी। आपकी नवीन पोस्ट अब आकर ही पढ़ने का अवसर मिलेगा।
आप के यहाँ तो ज्ञान की बरसात हो रही है ....
ReplyDeleteराहुल सिंह जी की बात ध्यान करें ....और 'सब' देखें ,क्रोध से दूर रहें ....:-):-)
अन्य भाषाओं के शब्दों के उपयोग से भाषा और धनी ही होती है.
ReplyDeleteआपके इस लेख पर
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई
प्रवीन जी ||
हिंदी के प्रचार प्रसार में इसका सुबोध सरल और सुगम्य होना महतवपूर्ण कारक हो सकता है .. दूसरी भाषा से शब्द लेकर हिंदी को और एनरिच किया जा सकता है .
ReplyDeleteअक्षरश: सत्य कहा है आपने ... आभार ।
ReplyDeleteहिंदी को क्लिष्ट बनाकर उसका मजाक बनाना बस हिंदी वाले ही कर सकते हैं.. हिंदी का इससे क्या बिगड़ता है.. यह एक महान भाषा है और इसके विकास को कोई रोक नहीं सकता.
ReplyDeleteप्रवीण जी ! हिंदी के उत्थान की बात जहाँ भी होती है.यह मुद्दा खास होता है कि भाषा को सहज तौर पर पढ़ाया जाये या उसके किलिष्ट शब्दों के साथ. और अक्सर ही यह २ गुटों ( बुद्धिजीवी और आम )का टकराव बनकर रह जाता है.और बेचारी हिंदी कहीं कोने में ही नजर आने लगती है.भाषा का उत्थान तब तक नहीं हो सकता जब तक वह जन साधारण को प्रिय न हो.काश हिंदी के शुभचिंतक समझ पाते यह बात.
ReplyDeleteपूरी बात को बड़ी सहजता से स्व. हृषिकेश मुकर्जी ने फिल्म 'चुपके-चुपके' में प्रस्तुत किया है!!
ReplyDeleteदुःख होता है ऐसे प्रसंग देख कर ... सहमत हूँ की हिंदी को उपहास का पात्र नहीं बनाना और बन्ने देना चाहिए ..
ReplyDeleteपूरी तरह सहमत, दोनों बातों से।
ReplyDeleteभाषा कोई भी हो, उसका सम्मान होना चाहिए।
आपकी बात बिलकुल सही है... गाँव वाले हिंदी भाषा के साथ ज्यादा प्रयोग करते हैं और जब तब नए शब्द गढ़ते रहते हैं. मगर यह भी सही है की दूसरी भाषाओँ के भी कई शब्द हिंदी में रच बस गए हैं जैसे अरबी, फारसी, अंग्रेजी.... मजाक अपनी जगह है!
ReplyDeleteविचारणीय तथ्य.....
ReplyDeleteहिंदी का भविष्य उज्जवल है. एक बहुत बाज़ार बाज़ार होने के कारण हिंदी बोली, लिखी और बेचीं जा रही है. नई पीढी को जब तक भाषा से प्रेम नहीं आयेगा तब तक यह बदलाव बाज़ार से ही प्रेरित रहेगा.
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल
ReplyDeletesahi baat hai sir. :)
ReplyDeleteआप सही कहते हैं भाषा का यूँ मज़ाक नहीं बनाया जाना चाहिए...फिल्म चुपके चुपके में भाषा का खूब मज़ाक बनाने के बाद ऋषिकेश मुखर्जी ने डेविड जी से ये कहलवा कर के "भाषा अपने आप में इतनी महान होती है उसका मज़ाक नहीं बनाया जा सकता" अपना पल्ला झाड लिया...आपकी बात में दम है हमें इस तरह के मज़ाक का विरोध करना चाहिए...
ReplyDeleteनीरज
प्रवीण जी "सब" से हिंदी भाषा के प्रयोगों तक का सफर बहुत अच्छा रहा .हाँ एक शब्द आपने दिया भारतीय राष्ट्र राज्य के सन्दर्भ में "अति -नरम "माइक्रो -सोफ्ट स्टेट है मेरा देश ,जब तक किसी घरु मंत्री की लूंगी में बम नहीं फटेगा यहाँ कुछ नहीं होगा ।बम को ये पटाखा कहतें हैं .अब तफ़तीश होगी -ब्रीफ केस कहाँ से खरीदा गया था ?फंदा जहां फिट आयेगा डाल दिया जाएगा .कसाब ,अफज़ल को आज़ादी है ,बाकी सब आतंक वादी हैं .
ReplyDeleteअलबत्ता भाषा को सर्व समावेशी सारग्राही ,सर्व -ग्राही होना ही चाहिए -अंग्रेजी को देखिए समोसा ,पूरी सभी अंग्रेजी के अपने हैं .हमें तो इंटर नेट के स्थान पर परोसा गया "अंतर जाल "भी खटकता है ।
एक मिथक ही रचा गया -हिंदी ज्ञान विज्ञान उत्थान की भाषा नहीं है .स्वतः बढ़ रही है हिंदी -चैनलों की मजबूरी है ,विज्ञापन के लिए हिंदी बहुत ज़रूरी है ,आज कितने ही साहित्यकार सिर्फ विज्ञापन रच रहें हैं ।
हिंदी पखवाड़े की पूर्व संध्या पर आपने मौजू सवाल उठाएं हैं ।
नरसिंह राव जी कहा करते थे -कैसी विडंबना है -हिंदी दिवस भी मनाना पड़ता है उस राष्ट्र को जिसकी भाषा हिंदी हिन्दुस्तानी है ,हिन्दवी है ।
लूंगी में बम वाली बात गैर प्रासंगिल लगे तो निकाल दीजिए .
badiya lekh.....
ReplyDeletekripya mere blog par bhi aayen..
aabhar.
http://umeashgera.blogspot.com/
अन्य भाषा के शब्दों के लेने से ही भाषा संमृद्ध होती है। हिंदी को शुद्ध बनाने की मुहीम में हम भाषा को क्लिष्ट बनाएंगे तो संप्रेषण कठिन ही होगा ना॥
ReplyDeleteसर बहुत सुन्दर - हिंदी विश्व की सम्यक भाषा है , जिसके अंतर्गत हर प्रान्त और देश के कोई न कोई शब्द इसमे समाहित है ! यही हिंदी की विशिष्टता है ! जिससे सिखाने वाले के करीब होती है ! आज दक्षिण भारत में इसे काफी संख्या में लोग बोल और पढ़ लेते है !
ReplyDeleteआपके विचारों से पूर्णतया सहमत, कुछ लोग अपनी विद्वता दिखाने के चक्कर में हिंदी के अलावा अंग्रेजी बोलेंगे तो जानबूझकर कुछ अति कम प्रचलित शब्द ढूंढ ढांढ कर बोलेंगे जिनका सिर्फ़ अंदाज ही लगाया जा सकता है. हिंदी जैसी है उसको सहज और अबाध रूप से बहने देने में ही उसकी भलाइ है.
ReplyDeleteआज विश्व के सभी कोनों से हिंदी में ब्लागिंग एवम अन्य माध्यमों से भी लेखन हो रहा है, इसमे सभी क्षेत्रिय भाषाओं के शब्दों का अनायास ही मिश्रण हो रहा है जो अंतत: इसकी समृद्धि में बहुत ही कारगर साबित होगा.
रामराम
बिलकुल सही कह रहे है आप. हिंदी सिर्फ जुबान से ही नहीं दिल से भी जुडी है और दिल ये गवाही नहीं देता की हम हिंदी का अपमान सहे और करें .
ReplyDeletebilkul sahi kaha aapne ...
ReplyDeleteहमारी मात्रभाषा को सदा नमन...
ReplyDeleteहिंदी पर गर्व है सदा ही रहेगा...
आपके द्वारा प्रकाशित लेख,’हिन्दी उत्थान---’हमारी मातृभाषा के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार व अन्याय को दर्शाता है.आपके द्वारा व्वक्त हर विचार से मेरी सहमति है.
ReplyDeleteसरल,सहज संवाद स्थापित करती भाषा ही सबसे सुंदर व प्रभावकारी भाषा है। मुँशी प्रेमचंद जी जैसे हमारे लेखकों की कृतियाँ हमारी हिंदी भाषा कि इसी सुंदरता व प्रभावकारिता की अक्ष्क्षुण सिद्धिमान हैं। अति सुंदर व स्पष्ट लेख ।
ReplyDeleteहिन्दी भाषा की रातें अमावस सी हैं,
ReplyDeleteआंग्ल-भाषा की रातें तो पावस सी हैं,
मन्त्रियों की जबानों में छाला हुआ।
तेल कानों में हमने है डाला हुआ।।
हम हिन्दी,हिन्दू,हिन्दुस्तान.....
ReplyDeleteहमारी भाषा सबमें महान.......
जो हिंदी का सम्मान न करे उसमें स्वाभिमान की कमी है।
ReplyDeleteबहुत ही निराश करने वाली बात है...
ReplyDeleteविचारणीय और सटीक आलेख्।
ReplyDelete"धीरे धीरे यह धारणा बनायी जा रही है कि हिन्दी एक ऐसी भाषा है जो संवाद और संप्रेषण योग्य नहीं है, जो वैज्ञानिक नहीं है, जो आधुनिक नहीं हैं। "
ReplyDelete---यह धारणा कौन बना रहा है...चंद अंग्रेजीदां पश्चिमोमुखी लोग....अन्यथा विभिन्न वैज्ञानिक एवं प्रत्येक प्रकार पत्र, साहित्य, व्यापारिक, बाज़ार के कार्य सभी में हिन्दी में बढ़ चढ कर सुलभता से कार्य होरहा है....
---भाषा वह है जो रहे सुंदर सरल सुबोध |
जन मानस को कर सके हर्षित,प्रखर,प्रबोध||
--परन्तु यह भी सत्य है कि भाव और प्रसंग के अनुरूप तो भाषा अवश्य ही होनी चाहिए.. शुद्ध भाषा भी व क्लिष्ट भाषा भी ....अन्य भाषाओं के तमाम शब्द ग्रहण करने से भी मूल भाषा का लुप्त होने का भय रहता है अत: उसमें भी संयमता बरतानी चाहिए...
------सुंदर सार्थक पोस्ट के लिए बधाई...
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-631,चर्चाकार --- दिलबाग विर्क
सही है. सब टी वी वाले तो काफ़ी बढ़िया हिन्दी उपयोग करते हैं.
ReplyDeleteमुझे लगता है की अन्य भारतीय भाषाओँ से शब्द लिए जाएँ तो बेहतर होगा.
घुघूती बासूती
मान्यवर प्रवीण जी !आपकी यह पोस्ट "हिंदी उत्थान और सहजता "आज समाज "(८ सितम्बर ,२०११ )के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित है.बधाई .जरा भी कांट छांट नहीं की गई है पोस्ट से .बधाई !
ReplyDeleteकिस्मत वालों को मिलती है "तिहाड़".
http://veerubhai1947.blogspot.com/
शब्दशः सहमति है आपसे...आपने जितने सार्थक ढंग से विषय को विवेचित किया,बहुत अधिक कुछ नहीं बच जाता जोड़ने को...
ReplyDeleteसचमुच ही बहुत दुःख होता आज की पीढी को यह कहते सुनकर की क्या उपयोगिता है हिन्दी की...इसे अवैज्ञानिक अनुपयोगी और उपहासप्रद (संस्कृतिनिष्ठ रूप को) ठहरा पीढी केवल एक भाषा से ही नहीं,बल्कि विराट संस्कृति से दूर हो रही है..
हमारे यहाँ एक समाचार पत्र है जो युवा पीढी(युवतियों) के लिए एक विशेष परिशिष्ट निकलता है जिसमे लड़कियों के लिए किशोरी,युवती जैसे शब्दों का व्यवहार नहीं बल्कि "गर्ल्स" शब्द व्यवहृत होता है...और जो लेख या समाचार होते हैं,उसमे अधिकांश रोमन शब्दों को देवनागरी में लिखा गया होता है...किस हिन्दी और किस वर्ग का कल्याण इससे किया जा रहा है,,,पता नहीं...
सम्प्रेश्नीयता की बात सही है की बोलचाल की भाषा का उपयोग होना चाहिए.एनी भाषा के शब्दों को स्थान और स्वीकार्यता मिलनी चाहिए...पर इसका मतलब यह तो नहीं की एक वाक्य में साठ से अस्सी प्रतिशत शब्द अंगरेजी या अन्य भाषा से हों तो भी वाक्य हिन्दी ही कहलाये...
ReplyDeleteहिन्दी दिवस आ रहा है तो लेखों का बाजार गर्म है। यहाँ तो एक से एक भाषाविद और महान हिन्दी प्रेमी लोग आ चुके हैं। अब हम क्या कहे?
ReplyDeleteभाषा किसी के कहने से नहीं बनती, उसे समाज और परिवेश बनाता है। उदाहरण हैं आजके एफएम रेडियो। आप लाख सर मार लें वे जिस भाषा में बात करते हैं उसे आप क्या कहेंगे। एक एफएम रेडियो पर बहुत प्यार के साथ रसिया( यानी रूस) की बातें हिन्दी में बताई जाती हैं। लेकिन आधे से अधिक शब्द अंग्रेजी के होते हैं।
ReplyDeletetechnical difficulty.
ReplyDeletei typed a comment on qullpad in hindi but unable to transfer here.
i wonder how do somany people can write thier comments in hindi but not me.
aap to kaphi technical hain, could you help me?
aapka prashanshak
rakesh ravi
जो हो भाई साहब हिंदी सरकारी उपेक्षा के बावजूद फल फूल रही है और अब तो इलेक्त्रोनी पत्रकारिता हिंदी के बिना लंगड़ी है .बच्चों के लिए अंग्रेजी के अलावा हिंदी पर अधिकार भी ज़रूरी है .केन्द्रीय विद्यालय प्रशंशा के पात्र हैं .
ReplyDeleteगहन चिन्तनयुक्त विचारणीय लेख....
ReplyDeleteachchha lga aapka ye lekh ...vicharneey baat...
ReplyDeleteachchha lga aapka ye lekh ...vicharneey baat...
ReplyDeleteachchha lga aapka ye lekh ...vicharneey baat...
ReplyDeleteभाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। कपार पर ले कर चलने की चीज नहीं!
ReplyDeleteसंस्कृत निष्ठ भाषा को भी मजाक का पात्र बनाते हैं, जबकि जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है वे सामान्य लगने लगते हैं और जिन का प्रयोग बन्द कर दिया जाता है वे दुरूह हो जाते हैं.
ReplyDeleteप्यारे प्रवीण जी
ReplyDeleteआपका लिठ侼/SPAN> सही है और अच्छा लगा. सरल भाद#183ा ही सुंदर भाद#183ा है. आपकी हिन्दी सरल है, सुंदर है, और शुद्ध है. हिन्दी ऐसी ही होनी चाहिए. श्री राजीव गोस्वामी दिल्ली मे प्राध्यापक वैज्ञानिक हैं. उनकी वेबसाइट है गीता कविता. वैसे तो यह हिन्दी कविताओं का सुंदर संकलन है पर वहाँ उनके कई वैयक्तिक ले़/SPAN> भी हैं. एक ले़/SPAN> में उन्होने इस बात पर विचार किया है और उनका मानना है की शुद्ध हिन्दी और उपयुक्त शब्दों का प्रयोग भी ज़रूरी है अगर हम हिन्दी का सम्मनजंक विकास चाहते हैं तो. कई क्लिद#183्ट विचार, भाव और परिस्थिति को सही सही व्यक्त कर पाने के लिए क्लिद#183्ट शब्दों का प्रयोग आवश्यक हो सकता है और हमें उससे बचने की कोशिश नही करनी चाहिए. हिन्दी मे विज्ञान और दर्शन के विकास के लिए यह भी आवश्यक है. परंतु कोशिश तो यही हो की हम सटीक और सरल हों. धन्यवाद
राकेश
आपकी बात से मैं शब्दश: सहमत हूँ। हिन्दी के ही नहीं, किसी भी भाषा के मामले को हलकेपन से नहीं लिया जाना चाहिए। हिन्दी के लिए, अपने परिचय क्षेत्र में मैं वह सब करता हूँ जिनका संकेत आपने किया है। असर यह होता है कि मेरी उपस्थिति में कोई भी हिन्दी का उपहास करने का साहस नहीं करता। अनुवाद के नाम पर हिन्दी को क्लिष्ट कर देना भी हिन्दी विरोध ही है।
ReplyDeleteकोई भी शब्द और कहीं का भी विज्ञान कठिन नहीं होता। कठिन तो वह अर्थ होता है जो चयनित शब्दों के प्रयोग और उस विज्ञान के भौतिकीय अर्थ से भी मनुष्य के दिमाग में स्पष्ट चित्र नहीं बना पाता। यदि आपको मेरे शब्द कठिन लगते हैं। अर्थात मेरे लेखन में कहीं तो कमी है। और मुझे उसे दूर करना चाहिए।
ReplyDelete- अज़ीज़ राय