31.8.11

डैडी दा पैसा, पुतरा मौज कर ले

स्पष्ट रूप से याद है, आईआईटी के प्रारंभिक दिन थे, रैगिंग अपने उफान पर थी, दिन भर बड़ी उलझन रहती थी और सायं होते होते मन में ये विचार घुमड़ने लगते थे कि आज पता नहीं क्या होगा?

दिन भर कक्षाओं में प्रोफेसरों की भारी भारी बातें, नये रंगरूटों को अपने बौद्धिक उत्कर्ष से भेदती उनकी विद्वता, चार वर्षों में आपके भीतर के सामान्य व्यक्तित्व को आइन्स्टीन में बदल देने की उनकी उत्कण्ठा, श्रेष्ठता की उन पुकारों में सीना फुलाने का प्रयास करती आपकी आशंका और उस पर हम जैसे न जाने कितनों के लिये अंग्रेजी में दिये व्याख्यानों को न पचा पाने की गरिष्ठता। ऐसी शैक्षणिक जलवायु में दिन बिताने का भारीपन मन में बड़ी गहरी थकान लेकर आता था।

हम तो सात वर्षों के छात्रावास के अनुभव के साथ वहाँ पहुँचे थे पर कईयों के लिये किसी नये स्थान पर अपरिचितों से पहला संपर्क उस भारीपन को और जड़ कर रहा था। यह भी ज्ञात था कि रात्रि के भोजन के बाद ही रैगिंग के महासत्र प्रारम्भ होते हैं। कई मित्र इन सबसे बचने के लिये 5 किमी दूर स्थित गुरुदेव टाकीज़ में रात्रि का शो देखने निकल जाते थे और वह भी पैदल, न जाने की जल्दी और न ही आने की, बस किसी तरह वह समय निकल जाये। कुछ मित्र स्टेडियम में जाकर रात भर के लिये सो जाते थे, नील गगन और वर्षाकाल के उमड़े बादलों के तले।

तुलसी बाबा के "हुइहे वही जो राम रचि राखा" के उपदेश को मन में बसा कर हम तो अपने कमरे में जाकर सो जाते थे। जब रात में जगाई और रगड़ाई होनी ही है तो कमाण्डो की तरह कहीं भी और कभी भी सोने की आदत डाल लेनी चाहिये। जैसी संभावना थी, रात्रि के द्वितीय प्रहर में सशक्त न्योता आ जाता है, आप भी पिंक फ्लॉयड के "एनादर ब्रिक इन द वाल" की तरह अनुभव करते हुये उस परिचय-प्रवृत्त समाज का अंग बन जाते हैं।

रैगिंग पर विषयगत चर्चा न कर बस इतना कहना है कि उस समय औरों के कष्ट के सामने अपने कष्ट बौने लगने लगते हैं और विरोध न कर चुपचाप अनुशासित बने रहने में आपको रैगिंग करने वालों से भी अधिक आनन्द आने लगता है। परम्पराओं ने हर क्षेत्र में संस्कृति को कितना कुछ दिया है, इसकी पुष्टि घंटों चला धाराप्रवाह अथक कार्यक्रम कर गया।

उस पूरे समय में मेरा ध्यान एक सीनियर पर ही था, एक सरदार जी थे, आनन्दपान में पूर्ण डूबे, वातावरण को अपने जीवन्त व्यक्तित्व से सतत ऊर्जस्वित करते हुये, उनकी भाव-गंगा के प्रवाह में संगीत का सुर मिल रहा था, पीछे एक पंजाबी गाना बज रहा था।

डैडी दा पैसा पुतरा मौज कर ले, तेरा जमाना पुतरा मौज कर ले.....

उनके पास तो प्रोफेसरों के द्वारा सताये दिन को भुलाने का बहाना था, गले के नीचे उतारने को सोम रस था, उड़ाने के लिये डैडी दा पैसा था, आनन्द-उत्सव में सर झुकाये सामने खड़े जूनियरों का समूह था, मित्रों का जमावड़ा था, युवावस्था की ऊर्जा थी। उनकी मौज के सारे कारक उपस्थित थे।

हमारे पास तो कुछ भी नहीं था, पर उस दिन विपरीत परिस्थितियों में भी हमें उन सरदार जी से अधिक आनन्द आया होगा क्योंकि हमें तो उनकी मौज पर भी मौज आ रही थी। अब यदि डैडी के पास उड़ाने वाला पैसा नहीं है तो क्या मौज नहीं कर सकते?

81 comments:

  1. अब यदि डैडी के पास उड़ाने वाला पैसा नहीं है तो क्या मौज नहीं कर सकते..?

    गुरुमंत्र हो सकता है यह तो हर जनरेशन के लिए ..... ज़बरदस्त पोस्ट है :)

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  2. मौज तो मन की और मन से ही हो सकती है.

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  3. मौज तो बस डैडी के पैसे के बाद ही बंद हो जाती है -अपनी कमाई से भला कहाँ मौज !

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  4. वैसे यथार्थ तो यही है। जो भी मौज की, वह डैडी के ही पैसे पर हुई। अपनी कमाई में तो एक ढंग की पुस्तक भी खरीदने के पहले दो बार सोचना पडता है कि महँगी तो नहीं और महीने का बजट न गडबड हो जाय। सुंदर , संतुलित व अति रोचक प्रस्तुति ।

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  5. अपनी कमाई हुई धनराशि को मौज-मस्ती में उड़ाने में वाकई में कष्ट होता है।
    बाप की कमाई पर ही तो मौज-मस्ती कर रहे हैं आज के कर्णधार!

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  6. अब.. ये उड़ाने वाला पैसा ? कैसा होता है ???

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  7. मौज तो डैडी के ही माल से होती है...

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  8. यथार्थ को चित्रित करता बढ़िया आलेख

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  9. पैसा उड़ाने का मजा तो डैडी के पैसा का ही है। काश हम भी यह आनन्‍द ले पाते?

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  10. मौज की मौज लेने वाले ही तो असली ताऊ होते हैं, उनके आनंद को कौन छिन्न भिन्न कर सकता है? बहुत उत्कॄष्ट सोच, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  11. सही लिखा है ....परम्पराएँ हमारी संरक्षक तो हैं ही ...तभी उन विपरीत परिस्थितियों में भी आपको अपने कर्तव्य से बांधे रखा ...वर्ना बिगड़ने वालों को बिगड़ने का बहाना चाहिए ...

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  12. मौज़ के लिए पैसा नहीं मन की मनमौजी अवस्था चाहिए होती है|

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  13. जिनके डैडी के पास उड़ाने वाला पैसा नहीं होता है उनके मौज लेने के तरीक़े अलग होते हैं :)

    अलबत्ता कमी उनकी मौज में भी कोई नहीं होती.

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  14. हमारे तो दो पुत्र क्रमशः तॄतीय और द्वितीय वर्ष में अध्धयनरत हैं, आई.आई.टी. कानपुर में ,और मै पूछता रहता हूं कि क्या और पैसों की आवश्यकता है तो वे दोनो कहते हैं ,अभी पहले वाले ही नही खर्च हो पाये हैं ,वे दोनो तो बिना पैसों के ही एकदम मस्त रहते हैं और लगभग सभी क्रिया-कलापों मे मस्त रहते हैं । हाँ ! मै जब मोती लाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज .इलाहाबाद में था ,तब मैं जरूर अभाव महसूस करता था,वास्तव मॆं अभाव में ही था ,फ़िर भी मस्त रहने में कभी कोई कसर नही छोड़ी थी,आज भी मेरी अभूतपूर्व खुराफ़ातें मेरे दोस्त याद करते हैं । हाँ ,जेब में पैसे हो तो थोड़ा दोस्तों पे जलवा तो होता ही है !!!

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  15. हमारे भाग्य मे यह सब नही था . लेकिन डैडी का पैसा मेहनत का था इस्लिये चाहते हुये भी मौज की हिम्मत ना कर सके

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  16. हमारे पास तो कुछ भी नहीं था, पर उस दिन विपरीत परिस्थितियों में भी हमें उन सरदार जी से अधिक आनन्द आया होगा क्योंकि हमें तो उनकी मौज पर भी मौज आ रही थी। अब यदि डैडी के पास उड़ाने वाला पैसा नहीं है तो क्या मौज नहीं कर सकते?

    मौज करने के लिए पैसों की ज़रूरत नहीं होती ... दिमाग खुराफाती होना चाहिए :):)

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  17. पेंशन और पगार में यही अंतर है.

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  18. Anonymous31/8/11 11:11

    अत्यंत सारगर्भित चिंतन ..

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  19. मौज के लिए पैसा क्या जरूरी है?

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  20. मुझे हॉल- २ के अहलुवालिया जी याद आये जो हम सबको अपने पेसे से अमिताभ की हर पिक्चर दिखाते थे चाहे गुरुदेव में हो या हीर पैलेस में . मौज तो दिमाग का प्रोडक्ट है .

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  21. मौज लेने वाले हर हाल में मौज ले ही लेते हैं। जब काम अधिक हो तो बोझ समझ कर करने से बेहतर है कि काम का ही आनंद लिया जाय। किसी विदेशी साहित्यकार ने कहा भी है कि जब बलात्कार अवश्यसंभावी हो जाय तो विरोध करने के बजाय उसका आनंद लेना चाहिए।

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  22. प्रवीण जी ,
    डैडी दा पैसा पुतरा मौज कर ले,
    हमने तो अपने पैसे से भी मौज नही करी ....
    मौज करते रहें ,और अपने बच्चों को भी कराएँ .

    शुभकामनाये!

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  23. बहुत सुन्दर --
    प्रस्तुति |
    बधाई |

    D C Gupta
    I S M
    Dhanbad

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  24. मौज-मस्ती भला कब पैसों के लिये रुकी है उसके लिये तो मात्र एक बहाना चाहिये...

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  25. आप कमाई कीमती , बाप कमाई धूल
    खुद उड़ाये मौजा लगे,बेटा उड़ाये हिय-शूल.

    मौज मना पर-मौज पर.प्रवीण पाण्डेय का मंत्र
    अपना ले हर यूथ तो सुधरे जीवन-तंत्र.

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  26. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
    तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
    अवगत कराइयेगा ।

    http://tetalaa.blogspot.com/

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  27. मौजां ही मौजां...इधर भी, उधर भी!

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  28. मौज़ लेने की चाह्त हो तो फ़कीर भी ले लेता है :-)

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  29. अब यदि डैडी के पास उड़ाने वाला पैसा नहीं है तो क्या मौज नहीं कर सकते?

    बिलकुल नहीं कर सकते......

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  30. अब यदि डैडी के पास उड़ाने वाला पैसा नहीं है तो क्या मौज नहीं कर सकते?

    बिलकुल नहीं कर सकते......

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  31. हाय हाय ये मजबूरी..... आइन्स्टाइन बनते बनते रेल ठेलना नसीब में :) अब तो रेगिंग एक अपराध माना जाएगा॥

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  32. हमने तो जी दूसरों के पैसे पर मौज करनेवाले बहुत देखे हैं. जब संत माखन खाते हैं तो भक्तों को छाछ मिल ही जाती है.
    मेरी न तो कभी रैगिंग हुई और न ही मैंने किसी की रैगिंग ली. यह सीनियर और जूनियर का फंडा ही समझ में नहीं आता . भाई लोग वहां पढ़ने जाते हैं, श्यान्पंती करने नहीं.

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  33. मौज करने के लिए पैसों की ज़रूरत नहीं होती ... दिमाग खुराफाती होना चाहिए.....

    jai baba banars.....

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  34. अति रोचक प्रस्तुति ।

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  35. Anonymous31/8/11 17:19

    आपका आलेख,’डेडी का पैसा------’पढा,बहुत सच्चा चिट्ठा आपने खोला है.वही रेगिंग उन दिनों अपनत्व की भावनाओं से जुडी होती थी,परंतु,अब उस परिचय के माहोल में पशविक पृवत्तियां ने जगह ले ली है.

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  36. आपका आलेख,’डेडी का पैसा------’पढा,बहुत सच्चा चिट्ठा आपने खोला है.वही रेगिंग उन दिनों अपनत्व की भावनाओं से जुडी होती थी,परंतु,अब उस परिचय के माहोल में पशविक पृवत्तियां ने जगह ले ली है.

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  37. हमारे एक मित्र इसे Hotel D'Papa कहा करते थे..

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  38. ‘हास्टल के दिन भी क्या दिन थे’..हमने भी खूब सुर बेसुर गाया है भाई !

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  39. जीवन के यही चार दिना, जिंदगी न चले मौज बिना....

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  40. बहुत खूब प्रवीण जी !आपकी शैली और कथ्य दोनों सम्मोहित करतें हैं ,अब तो लगता है "गुजरा ज़माना रेगिंग का ..."?

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  41. wow, college ke dino ki yaad dila de aapke iss post ne.

    ab toh papa ke paise udhane ke umar mere bhi nhi rhe!!

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  42. nice article
    ragging is crime and who ever does it should be suspended forever on the spot.

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  43. मौज तो अपने मन से ही होती है। पैसा, पावर ये सिर्फ़ भरमाने वाली चीजें हैं, ये अलग बात है कि हम प्राय: इनसे भरम जाते हैं।

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  44. भाई, रैगिंग के अपने अनुभव याद आ गए. हमारे सीनियर अपनी हर ज्यादती की भी व्याख्या इस तरह करते थे जैसे सारा आदर्शवाद उन्हीं के पास गिरवी धरा है. काश इन परिचय सत्रों में से अशिष्टाचार और क्रूरता को निकाला जा सकता!

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  45. Anonymous1/9/11 02:08

    बस यही उत्साह की जिंदगी ही वसूल वाली है बाकी तो कुल उधार खाता..!

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  46. मौज करने के लिए तो मन ही काफी है।

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  47. प्रवीण जी आपके लेखन में ये तो कहीं नहीं झलक रहा कि आपको डैडी का पैसा ना होने का कोई मलाल था । वो लोग तो पैसे उड़ा कर मौज ले रहे थे और आप तो मन की मौज मुफ्त में ले रहे थे ।
    हमें पढ़ कर ही मौज आ गयी आप के तो फिर क्या कहने

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  48. बिलकुल कर सकते हैं. आजकल पंजाब में हूँ. दारु नहीं पीता. लेकिन दारू पिए लोगों की हरकतों को देखने में जो आनंद है.... वो और कहाँ?
    आशीष

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  49. उत्कृष्ट शैली में लिखा एक रोचक और शिक्षाप्रद आलेख बधाई आदरणीय पाण्डेय जी

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  50. Nice Post...

    आज तो गणेश-चतुर्थी है. गणेश भगवान जी तो मुझे बहुत प्रिय हैं. कित्ते सारे मोदक (लड्डू) खा जाते हैं. कोई रोकने-टोकने वाला भी नहीं. और हम बच्चे अगर ज्यादा मिठाई खाने लगें तो दांत से लेकर पेट तक ख़राब होने की बात. ...गणेश चतुर्थी पर सभी को बधाई !!

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  51. प्रवीण भाई "इन दिनों कुछ लोग विदेशी बाप के पैसे पर अन्ना जी की भी रेंगिंग करना चाह रहें हैं .सावधान रहें इन देश -घातियों,पंचान्गियों से .आदर एवं नेहा से -

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  52. शुक्रिया प्रवीण भाई साहब !
    बुधवार, ३१ अगस्त २०११
    मुद्दा अस्पताल नहीं है ?
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  53. shandar prastuti sir...ham bhi in halaton se thoda bahut 2-4 hue hai..to yaden taja huyi...

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  54. बहुत बढिया प्रस्तुति ..
    गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!

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  55. छात्र-जीवन का दिलचस्प लगा यह संस्मरण. आभार. गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं .

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  56. सर रैगिंग का नाम लेते ही डर भी आता है और मजा भी ! झेलने और खेलने पड़ते है !wish you a happy Ganesha chaturthi

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  57. कहाँ कहाँ नहीं भागते थे लोग उन दिनो. हम तो एक ही दिन भागे फिर जो होगा देख लेंगे पर उतर आये :)

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  58. मौज तो मन से होती है....जरुर कर सकते हैं प्रभु..खैर आपने तो की भी...:)

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  59. गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!

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  60. डैडी होते ही इसी लिए हैं... अति रोचक प्रस्तुति ।आभार...

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  61. Awesome read !!
    Keep enjoying :)

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  62. जब हम पढ़ते थे ,तब वातावरण ऐसा नहीं था ,न आज जैसी स्थितियाँ थीं.आज जितना पैसा भी अधिकांश डैडियों के पास नहीं होता होगा .तभी ऐसी बातें सुनने में नहीं आती होंगी.पर वे दिन भी अच्छे थे .

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  63. सोच को नई दिशा देने वाली महत्पूर्ण प्रस्तुति ....

    गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!

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  64. डैडी के पैसों की बात ही कुछ और होती है, दर्द पुतरा को नहीं होता और डैडी बिचारा लुटता देखता रहता है।

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  65. मौज का पैसे से क्या लेना देना ..गज़ब की पोस्ट.

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  66. छात्र-जीवन का संस्मरण दिलचस्प लगा| आभार|

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  67. हर किसी को कहां होता है डैडी दा पैसा मौज के लिये । पर किसी और की मौज से मौज लेना आ जाये तो फिर क्या मौजा ही मौजा ।

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  68. आपने पुराने संस्मरण के बहाने एक बड़ी बात कह दी. मौज के भी कई रंग हैं.किसी को किसी चीज़ में मौज मिलती है तो उसी में किसी को ऊब !

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  69. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा शनिवार ३-०९-११ को नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आयें और अपने विचार दें......

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  70. वाह वाह क्या बात है आपने तो विद्यालयीय जीवन के सारे राज खोल दिए...मन करता है की उन दिनों में फिर वापस चले जाएँ ...पर अब कह्हन वो मौज वाले दिन...घर में गुर्राहट ...बाहर विद्यार्थियों को दिए जाते हैं उपदेश ..जय हो आपकी !!!

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  71. बहुत दिनों के बाद कुछ फुर्सत मिली है...!
    सुन्दर लेख...सभी के लिए...
    जो इस दौर से गुज़र चुके हैं,जो गुज़र रहे हैं
    और जो गुज़रने वाले है उनके लिए भी...!!

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  72. लो जी हम तो हाल ही में छोटे बेटे को जबलपुर के इंजीनि‍यरिंग कॉलेज में दाखिल करवाकर लौटे हैं। रह रहा है वह भी एक प्राइवेट होस्‍टल में। अब अपने पास तो बस उतने ही हैं जितने होने चाहिए। पुतरा मौज करें कि सौज.. ये तो वे ही जानें।

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  73. मैं पेशे से फैशन designer हूँ
    और पढाई भी पंजाब के ही एक फैशन कॉलेज से की है
    इस रचना को पढ़ते वक़्त मुझे कॉलेज के दिन याद आ गए
    :)

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  74. :) :)
    क्या बात है...और भी कुछ बताइए :)

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  75. अपना पैसा तो कोई कोई ही उड़ाता है और उड़ाना पड भी जाए तो बाद में मन दुखता है पर डैडी का पैसा उडाने में जो सुख है वो और कहाँ...

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  76. वो बीते दिन और वो पुरानी यादें ...
    पर ये सच है की देदी के पैसों पर सबसे ज्यादा ऐश हो सकती है ... अपने जाते हैं तो दिल दुखता है ...

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  77. सही कहा, अपना कमाने पर तो हर आदमी सोच-समझकर खर्च करने लगता है।

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  78. अपनी कमाई हुई दौलत से कितना भी मजे कर ले
    पर वो आनंद नही आता।

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  79. आपका बहुत बहुत धन्यवाद

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