बंगलोर
में जहाँ मेरा निवास है, उससे बस 50 मीटर की दूरी पर ही है फ्रीडम पार्क। एक
पुराना कारागार था, बदल कर
स्वतन्त्रता सेनानियों की स्मृति में पार्क बना दिया गया। पार्क को बनाते समय एक
बड़ा भाग छोड़ दिया गया जहाँ पर लोग धरना प्रदर्शन कर सकें। यहीं से नित्य आना
जाना होता है क्योंकि यह स्थान कार्यालय जाने की राह में पड़ता है। सुबह टहलने और
आगन्तुकों को घुमाने में भी यह स्थान प्रयोग में आता है।
लगभग हर
तीसरे दिन यहाँ पर लोगों का जमावड़ा दिखता है। कभी पढ़े लिखे, कभी किसान, कभी आँगनवाड़ी वाले, कभी
शिक्षक, कभी वकील, और न जाने कितने लोग, समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हुये। सुबह से एकत्र होते है, सायं तक वापस चले जाते हैं। पुलिस और ट्रैफिक
की व्यवस्था सुदृढ़ रहती है, बस
थोड़ी भीड़ अधिक होने पर वाहन की गति कम हो जाती है।
इतना
समय या उत्साह कभी नहीं रह पाता है कि उनकी समस्याओं को सुना और समझा जा सके। उन
विषयों को समस्यायें खड़े करने वाले और उन्हें सहने वाले समझें, मैं तो धीरे से पढ़ लेता हूँ कि बैनर आदि में
क्या लिखा है, यदि नहीं समझ में आता
है तो अपने चालक महोदय से पूछ लेते हैं कि कौन लोग हैं और किन माँगों को मनवाने
आये हैं। अब तो चालक महोदय हमारे पूछने से पहले ही विस्तार से बता देते हैं।
इस
प्रकार समस्याकोश का सृजन होने के साथ साथ, प्रदर्शनकारियों के चेहरों से क्या भाव टपक रहे होते हैं, उनका अवलोकन कर लेता हूँ। कवियों और उनकी
रचनाओं में रुचि है अतः वह स्थान पार होते होते मात्र एक या दो पंक्तियाँ ही मन
में आ पाती हैं।
कभी
व्यवस्था से निराश भाव दिखते है,
जग को
बनाने वाले, क्या तेरे मन में समायी,
तूने
काहे को दुनिया बनायी?
कभी
व्यवस्था का उपहास उड़ाते से भाव दिखते है,
बर्बाद
गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था,
हर शाख
पे उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा?
कभी
व्यवस्था के प्रति आक्रोश के भाव दिखते हैं,
गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही
पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ।
पिछले तीन दिनों से यहाँ से निकल रहा हूँ, लोग बहुत हैं, युवा बहुत हैं, उनके भी चेहरे
के भाव पढ़ने का प्रयास करता हूँ। किन्तु पुराने तीन भावों से मिलती जुलती नहीं
दिखती हैं वे आँखें। मन सोच में पड़ा हुआ था। आज ध्यान से देखा तो और स्पष्ट हुआ, सहसा राम प्रसाद बिस्मिल का लिखा याद आ गया। हाँ, उनकी आँखें बोल रही थीं,
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।
आज का युवा पुरानी पीढ़ी से बस यही सुनाता आ रहा है की इस देश का कुछ नहीं हो सकता यहाँ कोई बदलाव नहीं आ सकता सब के सब डरपोक और चोर है वह चुप रहा है क्योकि वो जानता है की ये सारी देन उसी पुरानी पीढ़ी के निराशावादी सोच और कायरता की देन है और आज वही युवा उस पुरानी पीढ़ी को दिखा रहा है की अहिंसा के पुराने फार्मूले पर चल कर भी व्यवस्था को बदला जा सकता है बस हिम्मत होनी चाहिए किन्तु आज भी पुरानी पीढ़ी में उन लोगों की कोई कमी नहीं है जो आज भी युवाओ को अन्ना का फैशन, जवानी का जोश , मीडिया का बढाया हुआ अंध भक्त कह उनके कामो साहस का अपमान कर रही है या शायद उसकी हिम्मत तोड़ कर उनकी नजरो में अपनी इज्जत बचाना चाहता है |
ReplyDelete''सरफ़रोशी की तमन्ना ..अब हमारे दिल में है ...
ReplyDeleteदेखना है ज़ोर कितना ..बाज़ु-ए- कातिल में है ...''
कुछ बदलाव बहुत ज़रूरी है ...!!
सार्थक है पार्क की व्यथा!!
ReplyDeleteजगह उससे भी अधिक सार्थक है…॥
कारागार बदल कर स्वतन्त्रता सेनानियों की स्मृति में पार्क।
दुआ है कि चेहरे का संवाद सही हो ...
ReplyDeleteyuva peedhi karna to bahut kuch chahti hai par aaj ki prob bhi to ek sawaal hai
ReplyDeleteडर ये सता रहा हैं की, गर अबकी चुके तो फिर बहुत मुश्किल हैं.
ReplyDeleteहर नगर में ऐसे स्थान विकसित हो चुके हैं। लेकिन ये व्यवस्था के लिए सेफ्टीवाल्व का काम करते हैं। पर सेफ्टी वाल्व का लाभ व्यवस्था को केवल तब तक मिलता है जब वह इन पर ध्यान दे कर अपनी मरम्मत करता रहता है।
ReplyDeleteअंत में एक दिन ऐसा आता है कि मरम्मत से काम नहीं चलता व्यवस्था को बदलना पड़ता है।
बिस्मिल जी का भाव इस समय पूरे देश में तैर रहा है! हम देख रहे हैं,पर जिनको दिखना चाहिए उन्हें नहीं !
ReplyDeleteआपका 'फ्रीडम पार्क' प्रतीक के रूप में अच्छा काम कर रहा है,उसकी कोशिश व्यर्थ नहीं जाएगी !
अब फ़्रीडम पार्क जैसे मैदान ही जनता की भावनाओं को उद्वेलित कर सकते हैं, नई क्रांति की शुरूआत है।
ReplyDeleteएक पूरी भ्रमित पीढ़ी को सच्चा मार्गदर्शक चाहिए था जो अन्ना के रूप में मिल गया लगता है !
ReplyDeleteचेहरा मन का प्रतिबिम्ब है ....जो हमारे मन में होता है वह इसे बखूबी अभिव्यक्त कर देता है ...बस शर्त है हमारे पास वह दृष्टि हो ....!
ReplyDeleteअब तो अण्णा की कदर पूरा देश कर रहा है लेकिन यह वही अण्णा थे जिनको रास्ते से हटाने के लिये महाराष्ट्र के सियासी दलों ने न जाने कितनी चालें चली। तब अण्णा का साथ दिया था प्रौढ़ों ने, कुछ उम्रदराज लोगों ने। तब अण्णा को लेकर महाराष्ट्र के टुच्चे राजनीतिक दलों ने अंदाजा भी न लगाया होगा कि अण्णा जैसी हस्ती उनके बीच है। आज वही राजनेता अण्णा के साथ अपने दिखने को लेकर लालायित हैं भले ही अपना चेहरा सुधारने की आड़ में ही सही।
ReplyDeleteदेश का युवा अब अपने हित अहित बराबर पहचानने लगा है। एक ओर फेसबुक ट्वीटर पर अपने मन की बातें कहता है तो दूजी ओर अण्णा के लिये अपना समर्थन भी जाहिर करता है।
एक बात तो समझ आ गयी कि ड्राईवर बहुत समझदार है।
ReplyDeleteआशा है यह भाव और संवाद सच्चे निकलें ...... बाकि तो वक्त ही बताएगा ........
ReplyDeletetrue.. that face is the reflection of expressions and it looks like u r good at reading face.
ReplyDeleteThis post of different facets becomes more beautiful with those verses.
Awesome read !!!
मैंने तो कल एक सभा में "कर चले हम फ़िदा जान- ओ -तन साथियों " भी सुना था.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़ने के आब्द और देश और समाज के हालत देख आज आसमान से एक चेहरा झांकता हुआ प्रतीत हो रहा है और उसके चेहरे को पढ़ने पर यह भाव प्रतीत हुआ
ReplyDeleteहर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गांव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
Praveen Ji , thanx a lot for your comment on my blog.I am grateful to you for regularly encouraging me on my posts. Hope you like the look and feel of my new blog...www.achhikhabar.com
ReplyDeleteThanks :)
:)
ReplyDeleteचालक अपने मालिक के इशारे जल्दी समझने लगा है
ReplyDeleteवक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
ReplyDeleteहम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में.......सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ,देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है .जय अन्ना !जय श्री अन्ना !आभार बेहतरीन पोस्ट के लिए आपकी ब्लोगियाई आवाजाही के लिए
बृहस्पतिवार, १८ अगस्त २०११
उनके एहंकार के गुब्बारे जनता के आकाश में ऊंचाई पकड़ते ही फट गए ...
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Friday, August 19, 2011
संसद में चेहरा बनके आओ माइक बनके नहीं .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
बहुत ही बढ़िया तरीके से चेहरे पढ़ें हैं आपने, पर आधे प्रदर्शन तो बस यूं ही होते रहते हैं पर बदलाव के लिये ये सब बहुत ज़रूरी है,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सार्थक संवाद....
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
देखना .... कहीं मैदान और पार्क कम न पड जाएँ .
ReplyDeletevaah ji vaah
ReplyDeleteकहा जाता है ..दिल सच्चा और चेहरा झूठा .. बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteअच्छा लगता है...युवाओं का ये जोश..आत्मविश्वास...कुछ कर गुजरने का हौसला देख.....कुछ सकारात्मक परिणाम आने तो चाहियें.
ReplyDeleteबदलाव बहुत ज़रूरी है .......
ReplyDeleteयह सब सार्थक हो ...आभार ।
ReplyDeleteसही बात है हलवाई को क्या मिठाई के स्वाद से :)
ReplyDeletebadlav ke aasaar hain , bas dekhna hai zor kitna....
ReplyDeleteमेरी प्रार्थना है, सबको सत्बुद्धि दे भगवान्. युवाओं के मन में चिंगारी सुलग रही है.
ReplyDeleteयुग के युवा
ReplyDeleteमत देख दायें और बाएं
झाँक मत बगलें
न अपनी आँख कर नीचे
अगर कुछ देखना है, देख अपने वे वृषभ कंधे
जिन्हें देता चुनौती, सामने तेरे पड़ा,
युग का जुआ
युग के युवा!!
टूटी हुई मुंडेर पर मिट्टी का एक चिराग
ReplyDeleteमौसम से कह रहा है तूफां चला के देख...
aap is lekha ke madhyam se jo kahna chahte the aap purntaya safal rahe hain..behad shadar
ReplyDeleteआज ध्यान से देखा तो और स्पष्ट हुआ, सहसा राम प्रसाद बिस्मिल का लिखा याद आ गया। हाँ, उनकी आँखें बोल रही थीं,
ReplyDeleteवक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान, हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।
आप अपनी बातें एक निराले अंदाज में कह जाते हैं.
लगता है 'क्रान्ति' के बीज बोये जा चुके हैं.
ऐसे स्थान लोगों की सामूहिक अभिव्यक्ति को सार्वजनिक करने में बडे सहायक होते हैं। विदेश में कहीं 'स्पीकर्स कार्नर' की बात एकाधिक बार पढी थी। ऐसे स्थान लोगों के लिए 'प्रेशर रीलीज वाल्व' का काम भी करते हैं।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्त किया है चेहरों का संवाद ...
ReplyDeleteवक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
ReplyDeleteहम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।
इस शायरी के बाद तो यही कहूँगी आजकल तो सबके दिल में एक ही लहर है कि भ्रष्टाचार से मुक्ति कैसे मिले |
बहुत सुन्दर लेख आपकी लेखनी बहुत खूबसूरत होती है हमें अच्छी लगती है |हर बात को खूबसूरती से बयान करने का खूबसूरत अंदाज़ |
भाई पाण्डेय जी बहुत अच्छी पोस्ट |अच्छी जानकारी भी मिली
ReplyDeleteभाई पाण्डेय जी बहुत अच्छी पोस्ट |अच्छी जानकारी भी मिली
ReplyDeleteकुछ कारगर हल निकल आए तो बात बने .....प्रासंगिक आलेख
ReplyDeleteसार्थक व् सुन्दर प्रस्तुति .आभार
ReplyDeleteBLOG PAHELI NO.1
आज तो लगता है मिक्स्ड मूड है आपका ....शुभकामनायें आपको
ReplyDeleteअब आ ही जानी चाहिए, दिल की बात जुबान पर.
ReplyDeleteसर फ्रीडम पार्क ,सबके लिए फ्री है , जो वहा नहीं है उनके लिए भी ! इसीलिए रोब झाड़ने के बाद भी , यह पार्क सभी के चहरे पर एक उदासी ही महसूस करता है !
ReplyDeleteगिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नही
ReplyDeleteपेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ।
bahut badhiya kahaa Pandeyji aapne!
@इतना समय या उत्साह कभी नहीं रह पाता है कि उनकी समस्याओं को सुना और समझा जा सके।
ReplyDeleteआपकी हमारी बात और है, जन प्रतिनिधियों के पास ही कौन सा समय है, जनता की समस्यायें जानने का. आओ, प्रदर्शन करो और चले जाओ, वे तो सिमटे रहेंगे अपने खोल में।
बहुत ही अच्छी जगह है, काश हमारे यहाँ भी ऐसी कोई जगह होती।
ReplyDeleteस्वतंत्रता उद्यान या आज़ादी बाग़ से फ्रीडम पार्क ज़्यादा मार्केटेबल लगता है...
ReplyDeleteजय हिंद...
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
ReplyDeleteहम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।
बस यही तो होता दिख रहा !
ये जो लहर चल पड़ी है, बनी रहे वो सबके मन में, बस यही चाहिए।
ReplyDeleteइस दुर्योधन की सेना में सब शकुनी हैं ,एक भी सेना पति भीष्म पितामह नहीं हैं ,शूपर्ण -खा है ,मंद मति बालक है जिसे भावी प्रधान मंत्री बतलाया समझाया जा रहा है .एक भी कृपा -चारी नहीं हैं काले कोट वाले फरेबी हैं जिन्होनें संसद को अदालत में बदल दिया है ,तर्क और तकरार से सुलझाना चाहतें हैं ये मुद्दे .एक अरुणा राय आ गईं हैं शकुनियों के राज में ,ये "मम्मीजी" की अनुगामी हैं इसीलिए सरकारी और जन लोक पाल दोनों बिलों की खिल्ली उड़ा रहीं हैं.और हाँ इस मर्तबा पन्द्रह अगस्त से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है सोलह अगस्त अन्नाजी ने जेहाद का बिगुल फूंक दिया है ,मुसलमान हिन्दू सब मिलकर रोजा खोल रहें हैं अन्नाजी के दुआरे ,कैसा पर्व है अपने पन का राष्ट्री एकता का ,देखते ही बनता है ,बधाई कृष्णा ,जन्म दिवस मुबारक कृष्णा ....
ReplyDeleteहर गली हर मोड़ पर यह शोर है ,आसमान से लग रही अब होड़ है . ., . ram ram bhai
कुर्सी के लिए किसी की भी बली ले सकती है सरकार ....
स्टेंडिंग कमेटी में चारा खोर लालू और संसद में पैसा बंटवाने के आरोपी गुब्बारे नुमा चेहरे वाले अमर सिंह को लाकर सरकार ने अपनी मनसा साफ़ कर दी है ,सरकार जन लोकपाल बिल नहीं लायेगी .छल बल से बन्दूक इन दो मूढ़ -धन्य लोगों के कंधे पर रखकर गोली चलायेगी .सेंकडों हज़ारों लोगों की बलि ले सकती है यह सरकार मन मोहनिया ,सोनियावी ,अपनी कुर्सी बचाने की खातिर ,अन्ना मारे जायेंगे सब ।
क्योंकि इन दिनों -
"राष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,महाराष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,
मनमोहन दिल हाथ पे रख्खो ,आपकी साँसे अन्नाजी .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Saturday, August 20, 2011
प्रधान मंत्री जी कह रहें हैं .....
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
चहरे के संवाद और एक नई क्रांति......
ReplyDeleteशुक्रिया भाई साहब आपकी ब्लोगिया दस्तक का .
ReplyDeleteप्रवीण पाण्डेय जी "जो मेरे लिए कल्याण कारी मार्ग है वही बतलाइये ,आर्थ आज भी यही कृष्ण (किसनउर्फ़ अन्ना )से पूछ रहा है .शुक्रिया आपकी बेशकीमती टिप्पणी के लिए . ,इस दौर में आप लोगों की टिप्पणियाँ ही लिखने की प्रेरणा बनी हुईं हैं .
ReplyDeleteरविवार, २१ अगस्त २०११
सरकारी "हाथ "डिसपोज़ेबिल दस्ताना ".
http://veerubhai1947.blogspot.com/2011/08/blog-post_5020.html
praveen ji
ReplyDeletebahut hi achhi v sarahniy prastuti
logo ke chehre par sach ko padh pana jara mushkil hota hai.aapne jis park kia ullekh kiya hai vah ek smriti park ban kar rah gaya hai.
sabhi ki samsyaon ka samadhan to karna kathin hai par kabhi kabhi koshish se hal nikal hi aate hain.
ek nye badle yug ke intjaar me
badhai
poonam
bas isi badlaav ki laghar ka intejaar tha pichli kai peedhiton ko .ab lahar uthi hai to ummid bhi jagi hai ki kinara mil jaega.....
ReplyDeleteसमर्थन नहीं कर सकते तो रोकने की प्रवत्ति टाल दो
थाम लो हाथ से हाथ और विरोधी को ललकार दो
भारतवासी हो तो भारत का कर्ज उतार दो
देल्ही नहीं जा सकते तो घर की छत पर ही तिरंगा गाड़ दो
पर, इस बार कम से कम अपने अन्दर के कायर को मार दो.
आज जिस हालात में देश चल रहा है
ReplyDeleteयुवा शक्ति को आशावादी सोच के साथ आगे बदते देखना कितना सुखद है देश में पनप रही इन समस्याओं का समाधान भी अब नयी पीढ़ी को करना है सार्थक आलेख के लिए आभार ...
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।
शुभ कामनाएं !!!
अक्सर ऐसी जगहें इतिहास घड्ती हैं ...
ReplyDeleteसमय बड़ा बलवान होता है .
ReplyDeleteश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
कुछ-न-कुछ चलता रहता है - संवाद बना रहता है ,
ReplyDeleteसबसे जुड़े रहने के लिये बहुत ज़रूरी है .
...युवाओं का ये जोश..आत्मविश्वास...कुछ कर गुजरने का जनून देख कर अच्छा लगता है .कुछ सकारात्मक कुछ अच्छा ही परिणाम आने चाहियें.ऐसा विश्वास है...
ReplyDeleteकुछ न कहने की मर्यादा का पालन करते हुए आपने बहुत कुछ कह दिया. शैलेन्द्रजी के गीत में जग को बनानेवाले के बजाय दुनिया बनानेवाले लिखा गया है.
ReplyDeleteवक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
ReplyDeleteहम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।
post to hai hi shaandaar us par ye baate ,mano chaar chaand lag gaye .
सरफ़रोशी की तमन्ना ..अब हमारे दिल में है ....
ReplyDeleteहर चेहरे पर यही भाव चस्पा हैं आजकल....
हम लोग दिखावे के लोग हैं, आत्म-मुग्ध, आत्म संतुष्ट और कई चेहरों वाले. जब जिस चेहरे की जरूरत हुई, जेब से निकाला और मुंह पर चिपका लिया. कौन सा धरना सही है, कौन सा गलत, पास जाकर ही पता चलता है..
ReplyDeletefreedon park jaise sthan hona bahut zaroori hai ....
ReplyDeleteaaj ke samay mei ek tukda asmaan to mil jata hai per zameen nahi milti... log apni vyatha katha kahan sunayeiin..
ram leela maidan na sahi ...
freedom park to hai...
hame aapko samay na sahi...
driver ko to hai....
बहुत सटीक प्रस्तुति, सोचने पर विवश करती रचना
ReplyDeleteARE YOU READY FOR BLOG PAHELI -2
ReplyDeleteआपने सही कहा पर होना तो वही है जो सदियों से होता आया है क्यों की ये भारत की जनता है जिसे कुछ दिखाई नहीं देता बस उसे दिखाना पड़ता है जनता तो वही है जो अन्ना के अनसन से पहले थी क्या ये जनता पहले मर गई थी क्या क्या हुआ था इस जनता को १२५ करोड़ जनता में १ अन्ना ही क्यों निकला १ गाँधी जी क्यों निकले बात वही है की अब कलयुग आज्ञा है अभी तो कुछ हुआ भी नहीं है होना तो बाकि है और होना भी क्या है इस देश में आँखों के अंधे रहते है उस देश की दशा असी होती है फूट डालो राज करो इस समय bhrstachar जसे खाने की कोई वस्तु का नाम है जो खरब हो चुकी है अब उसे फेंकना है अरे मेरे देश वाशियो जागो अब भी कुछ हुआ नहीं है पर इस जनता को कुछ कहना भी बेकार लगता है क्यों की सब अपना पेट पलते नजर आते है किसी को नहीं लगता की ये मेरा भारत है मेरा भारत महँ जेसा नारा लगाने से कुछ नहीं होगा कुछ महान कर्म करो अन्ना के पीछे तो तुम लोग हो पर क्या इस लोक पल बिल से सब कुछ सही हो जायेगा ये नेता लोग सब कुछ छोड़ देगे अरे मेरे भाइयो आज अगर किसी ने किसी को मर दिया है तो उस को जेल होते होते २० साल गुजर जाते है फिर जज बदल जाते है मुंबई बम धामके के आरोपी १ अज भी जेल में है पैर उसको फंसी देने की जगह पोलिस उसकी हिफाजत में लगी है उसकी मेहमान नवाजी कर रही है हर रोज़ उसका मेडिकल होता है लाखो रूपया खर्चा होता है जेसे पोलिश का या सरकार का वो जवाई है कुछ नहीं होने वाला इस देश का और नेताओ का जय जवान जय किशन
ReplyDeleteअगर आप मेरी बैटन से सहमत नहीं है तो करपिया मेरे ब्लॉग लिंक पे क्लिक करे और अपनी राय देवे
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
समय के साथ प्रथा और व्यथा दोनों बदल रहे हैं।
ReplyDeleteदो दिन मैं भी गया था फ्रीडम पार्क..और अगर फिर जाना पड़ा तो आपके घर भी आ धमकते हैं चाय और पकौड़ियों के लिए :)
ReplyDeletenice.
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना ! बेहतरीन प्रस्तुती!
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