मानव
मस्तिष्क की एक क्षमता होती है, स्मृति
के क्षेत्र में। बहुत अधिक सूचना भर लेने के बाद यह पूरी संभावना रहती है कि आगत
सूचनायें ठहर नहीं रह पायेंगी और बाहर छलक जायेंगी। यह न हो, इसके लिये बहुत आवश्यक है कि उन्हें लिख लिया
जाये। तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी भी स्मृति लोप से ग्रसित रहते हैं, जोर डालते हैं कि क्या भूल रहे हैं? अतः जिस समय जो भी विचार आये, लिख लिया जाये। यह आप निश्चय मान लीजिये यदि वह
विचार दुबारा आता है तो आप पर उपकार करता है। अब विचार कहीं पर भी आ सकता है तो
तैयारी सदा रहनी चाहिये उसे लिख लेने की। या तो एक छोटी सी डायरी हो एक पेन के साथ
या आप अपने मोबाइल में ही लिख सकें वह विचार। मुझे भी अपनी स्मृति पर उतना भरोसा
नहीं है, मुझे जो भी विचार उपहार
में मिलता है मैं समेट लेता हूँ।
इसी
प्रकार अध्ययन करते समय कई रचनायें व विषय समयाभाव के कारण उसी समय नहीं पढ़े जा
सकते हैं, यह आवश्यक है कि उन्हें
किसी ऐसी जगह संग्रहित कर लिया जाये जहाँ पर आप समय मिलने पर विस्तार से पुनः पढ़
सकें। किसी विषय पर शोध करने पर बहुत सी सूचनायें प्रथमतः पृथक स्वरूप में होती है
पर उनका समुचित विश्लेषण करने के लिये उन्हें एक स्थान पर रखना आवश्यक होता है।
कभी इण्टरनेट में, कभी पुस्तक में, कभी दीवार पर, कभी सूचना बोर्ड पर, कभी
चित्र के माध्यम से, कभी वाणी रूप
में, कभी मैसेज में, कभी ईमेल में, कभी ब्लॉग में, हर प्रकार
से आपको सम्बन्धित तथ्य मिलते रहते हैं, आपको सहेजना होता है, रखना
होता है, एक स्थान पर, भविष्य के लिये।
साहित्य
के अतिरिक्त भी, अपने अपने
व्यावसायिक क्षेत्रों में सम्बद्ध ज्ञान-संवर्धन और नियमावली अपना महत्व रखते हैं और आपकी निर्णय प्रक्रिया को
प्रभावित करते हैं। औरों पर निर्भरता कम रहे और निर्णय निष्पक्ष लिये जायें, उसके लिये भी आवश्यक है कि हम अपना ज्ञान
संग्रहित और संवर्धित करते चलें। सामाजिक और व्यावसायिक बाध्यतायें आपको ढेरों
संपर्क, तिथियाँ, बैठकें, कार्य, निर्देश आदि याद
रखने पर विवश करेंगी, उन्हें कैसे
सहेजना है, कैसे उपयोग में लाना है
और कैसे उन्हें अगले स्तर पर पहुँचा प्रवाह बनाये रखना है, यह स्वयं में एक बड़ा और अत्यन्त ही आवश्यक कार्य है।
डिजिटल
रूप में विविध प्रकार की सूचना का संग्रहण मुख्यतः आपके कम्प्यूटर में होता है, आपका ज्ञान आपके साथ और चल सकता है यदि आपके
पास लैपटॉप हो। सूचनाओं के एकत्रीकरण के लिये एक उपयोगी मोबाइल और सूचनाओं के
बैकअप के लिये इण्टरनेट का प्रयोग आपके संग्रहण को पूर्ण बनाता है। लैपटॉप, मोबाइल और इण्टरनेट, ये तीन अवयव एक दूसरे के पूरक भी हैं और आवश्यक समग्रता भी रखते हैं। आपका
संग्रहण-प्रवाह इन तीनों पर आधारित
बने रहने से कभी अवरुद्ध नहीं होगा।
सूचना
के संग्रहण के तीन अवयव किसी एक डोर से बँधे हों जिससे इन तीनों के समन्वय में
आपको कोई प्रयास न करना पड़े। कहीं भी और किसी भी माध्यम से एकत्र सूचना इन तीन
अवयवों में स्वमेव पहुँच जानी चाहिये। कहीं आपको इण्टरनेट नहीं मिलेगा, कहीं आपका लैपटॉप आपके पास नहीं रहेगा, कई बार आप मोबाइल बदल लेते हैं या खो देते हैं।
यह सब होने पर भी आपका सूचना-तंत्र
निर्बाध बढ़ना चाहिये। किसी भी सूचना का आपकी परिधि में बस एक बार आगमन हो, उसे उपयोग में लाने के लिये बार बार बदलना न
पड़े। जब मैं लोगों को मोबाइल बदलते समय सारे संपर्क हाथ से भरते हुये या सिमकार्ड
से बार बार कॉपी करते हुये देखता हूँ तो मुझे ऊर्जा व्यर्थ होते देख दुःख भी होता
है और क्षोभ भी।
सूचनाओं
का संग्रहण और समग्र समन्वय, तीनों
अवयवों में उनका स्वरूप, एकत्रीकरण
और विश्लेषण में लचीलापन, समय पड़ने
पर उनकी खोज। इन विषयों का महत्व जाने बिना यदि आप मोबाइल का चयन, लैपटॉप पर संग्रहक प्रोग्राम का चयन और
इण्टरनेट पर इन सूचनाओं के स्वरूप का चयन करते हैं, तो संभव है कि आपका संग्रहण आपकी ऊर्जा और समय व्यर्थ करेगा।
असहज मत
हों, इन सिद्धान्तों को मन में बिठा
लेने के पश्चात जो भी आपके संग्रहण का प्रारूप होगा, वह आपको ही लाभ पहुँचायेगा। इस प्रकार संरक्षित ऊर्जा और समय साहित्य
संवर्धन में लगेगा।
इस बार
आप अपने संग्रहण के प्रारूप पर मनन कर लें, अगली बार बाजी पास नहीं करूँगा, अपने पत्ते दिखा दूँगा।
ऊर्जा बचाना हम सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए।
ReplyDeleteआभार।
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बारात उड़ गई!
ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!
उपयोगी सलाह !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteविषय प्रस्तावना बहुत महत्वपूर्ण है -आगे विस्तार ,कार्यविधि आदि की प्रतीक्षा रहगी -कम्प्यूटर युग ने इस जरुरत के लिए भी के रास्ते सुझा दिए हैं!मगर उन्हें सही सही संयोजित और श्रृंखलाबद्ध करना सबसे बड़ी चुनौती है !
ReplyDeleteआप भी प्रवीण भाई ...पत्तेबाज निकले :-(
ReplyDelete:-)
आदरणीय पाण्डेय जी आपकी लेखन शैली निराली है कम शब्दों में सघन और उत्कृष्ट बात कह जाते हैं |
ReplyDeleteआदरणीय पाण्डेय जी आपकी लेखन शैली निराली है कम शब्दों में सघन और उत्कृष्ट बात कह जाते हैं |
ReplyDeletebahut mahtvpoorn salaah deta hua yeh aalekh bahut pasand aaya.dimaag ka cumputer gadbada sakta hai isliye dairy me sangrhan karna chahiye,dairy kho sakti hai is liye cumputer me save karna chahiye ye cheejen safar me carry nahi kar saken is liye internet par hona chahiye.sahi hai teen jagah rahega to sangrahan safe n save rahega.bahut achchi salaah.aabhar.
ReplyDeletetrue.. thoughts are like flowing wind... can touch u any time with almost zero probability of coming back and its profitable for us to store that...
ReplyDeleteNice read as ever :)
रोचक आलेख ...
ReplyDeleteउर्जा संरक्षण कर समय बचत करना ...और उसका सकारात्मक प्रयोग करना ..
बहुत सही दिशा में ध्यान आकर्षित किया है आपने..बहुत लाभान्वित होंगे हम सभी ...
इंतज़ार है अगली कड़ी का ..
आभार.
भूमिका रोचक और जिज्ञासा बढ़ाने वाली है.
ReplyDeleteलगता है कि तुरुप का पत्ता आपने ही दबाया हुआ है!:)
ReplyDeleteबहुत सारी चीज़ें सिन्क्रोनाइज़ होती जा रही हैं. एक दिन मनुष्य भी मशीनों से जुड़ ही जाएगा. तक सभी समस्याओं से निजात मिल जाएगी? सच!?
संग्रहण और प्रवाह ठीक तरीके से हो तो बहुत सारी आंतरिक और बाह्य ऊर्जा बचा सकते हैं, और संवर्धन में लगा सकते हैं।
ReplyDeleteसंग्रहण के तरीके पर आपके पत्ते देखने का इंतजार करेंगे .
ReplyDeleteप्रवीण पाण्डेय जी!
ReplyDeleteआपने बहुत उपयोगी आलेख लिखा है और जब से हम अपने विचारों को सहेज रहे हैं अच्छा खास कलक्शन हो गया है हमारे पास!
काश् हम शुरू से ही यह आदत बना लेते?
पहले जमाने में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बात सुनकर सुनाकर आदान-प्रदान कर दिया जाता था और पीढ़ियों तक बात चलती चली जाती है।
ReplyDeleteआज हम बुकमार्क कर लेते हैं, पर पढ़ना ही भूल जाते हैं।
काम की बात, उर्जा तो बचानी ही पड़ेगी .....
ReplyDeleteमार्गदर्शन और दर्शन का समन्वय ....दिशा देने वाला है .....!
ReplyDeleteयह भी व्यवस्थित होने का ही खेल का.....संग्रहण भी सही ढंग से किया जाये तो उर्जा तो बचेगी ही ...... उसे हम नए सृजन के लिए भी उपयोग कर पायेंगें .........
ReplyDeleteबात तो आपने सही कही...
ReplyDeleteएक समय था जब तकनीक लोगों के पास नहीं थी सारी बाते दिमाग में ही संग्रगित होती थी आम आदमी की, पर तकनीक के आ जाने से दिमाग अपनी ये क्षमता शायद खोता जा रहा है | कुछ सालो पहले तक कितने फोन नंबर याद रहते थे हर बार नंबर डायल जो करना पड़ता था किन्तु आज दो चार नम्बरों से ज्यादा याद नहीं होते तकनीक ने याद रखने से मुक्ति दिला दी है कुछ जानना है तो गूगल बाबा है ना , वहा से जानने की बाद भी भूल जाइये क्योकि अगली बार फिर गूगल बाबा है ना | तकनीक ने शायद आराम दे दे कर दिमाग को सुस्त बना दिया है |
ReplyDeleteसंग्रहण और प्रवाह से बहुत सारी आंतरिक और बाह्य ऊर्जा बचा सकते हैं.......बहुत उपयोगी आलेख पाण्डेय जी
ReplyDeleteमस्तिष्क की क्षमता व सूचनाओं के संग्रहण की सुंदर व्याख्या .....
ReplyDeleteसही है, बहुत अधिक भूसा मस्तिष्क में भरने से विस्मृति पैदा हो जाती है-- अब आप कलमाडी को ही लें, वे अब विस्मृति के शिकार हो गए हैं। उन्हें यह लेख अवश्य पढना चाहिए॥
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
संग्रहण चाहे बौद्धिक हो अथवा भौतिक निरंतर प्रक्रिया है व्यक्ति अपनी आवश्यकतानुसार, आदत, व स्वभानुसार, सुविधा अनुकूल विधि अपनाता रहता है.
ReplyDeleteimportant advise... thank u...
ReplyDeleteमुझे तो हमेशा खाना बनाते वक़्त....ढेर सारे विचार आते हैं... कैसे लिखूं उन्हें तब???
ReplyDeleteकिचेन से निकलो तब भी दूसरे काम राह देखते होते हैं...:)
रोचक और चिन्तन योग्य आलेख ...
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक प्रस्तुति ।
ReplyDeletehmmm... aapke patton ka intazaar rahega...
ReplyDeletepar wakai ye bahut hi jyada jaroori hai ki ham apne sangrahan mei kitna waqt vyarth hi ganwa rahe hain...
mujhe bhi diary saath rakhne aur mobile mei notes rakhne ki aadat hai... kabhi-kabhi koi baat sirf do lines mei khatm ho jaati aur kabhi achanak unhi ko padhkar kuch bhooli baat yaad aa jati hai...
thank you so much...
आप हमेशा ही बिल्कुल अलग विषय लेते हैं और उसे प्रस्तुत करने के अंदाज का क्या कहना।
ReplyDeleteबहुत बढिया
praveen ji
ReplyDeletebahut hi badhiya jaankari di hai aapne .
yah sach hai ki kabhi kabhi ham kisi baat ko bhul jaate hain aur waqt par vo yaad nahi rahta atah use kahi note kar lena hi chahiye jo ki bahut hi jaruri ho.
ek bahut hi sarthak lekh
bahut bahut badhai
poonam
bahut hi upyogi baate hai . inke anusaar badhne me suvidha hogi ,dhanyabaad
ReplyDeleteसर बहुत सुन्दर ! लिंक पर भी नजर दौडाई ! अच्छे पोस्ट है !
ReplyDeleteव्यवस्थित संग्रहण का प्रारूप तैयार करने में एक बार समय और दिमाग लगता है उसके बाद सब सरल हो जाता है ..साथ ही ऊर्जा और समय की बचत भी.
ReplyDeleteकुछ के लिए एक 'जटिल'सा विषय .
...........
सार्थक लेखन हेतु बधाई.
बहुत उपयोगी श्रृंखला है...मनन में लगे हैं और इन्तजार में भी.
ReplyDeleteयह बहुत ही उपयोगी सलाह दी है आपने, हमको जो भी आईडिया सूझता है उसे तुरंत सहेजते हैं, खुद को एस एम एस, मेल या जेब में किसी कागज पर लिख कर.
ReplyDeleteआपके अगले पत्ते खुलने का इंतजार है, जिससे इसमे और सुधार कर सकेंगे.
रामराम
atisundar aur mahatwapoorn aalekh..
ReplyDeleteaabhar..swagat hai aapaka mere blog par..
कहते है अगर इंसान को कोई चीज़ मुफ्त में मिलती है तो वो है एक सलाह , अभी मांगी भी नहीं ये लो जी :) :)बहुत खूबसूरत बात कही दोस्त बहुत बहुत शुक्रिया |
ReplyDeleteइस मामले में मैं पारम्परिक डायरी/लेखन पेड और कलम को अधिक बेहतर, अधिक उपयोगी मानता हूँ। यह मेरा अनुभव है।
ReplyDeleteजहॉं आदमी को खुद के लिए फुरसत मिलनी कम हो गई हो, ऐसे समय में आपकी यह पोस्ट बहुतों को 'उपयोगी परामर्श' लगेगी।
सत्य वचन।
ReplyDeleteमुझे तो अपने बेतरतीब होने पर बस यही याद आता है,
ReplyDeleteमैं ऐसा क्यों हूं, मैं वैसा क्यों हूं...
जय हिंद...
इंटनेट सबसे सुरक्षित है देखा जाए तो |
ReplyDeletesaarthak aur gyanvardhak post , aabhar.
ReplyDeleteप्रवीण जी.. उर्जा संरक्षण कर समय बचत करना ..फिर सकारात्मक्रुप में उसका प्रयोग करना ,बहुत ही उपयोगी टिप्स दिये आपने... कई बार काम के बीच अच्छे विचार आते हैं पर जल्दी ही भूल भी जाते है. बहुत सार्थक पोस्ट...आभार..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteउडते हुए विचारों के प्रवाह को तत्काल सहेज लेना तो आवश्यक होता ही है वर्ना जिस तेजी से वे आते हैं उसी प्रकार लोप भी हो जाते हैं । माध्यम चाहे कलम व डायरी हो अथवा मोबाईल व लेपटाप.
ReplyDeleteA very useful and effective information!
ReplyDeleteA very useful and effective information!
ReplyDeleteमेरी एक आदत बहुत पहले से रही है, कहीं भी जाऊं तो एक पेन और कम से कम एक कागज़ पॉकेट में या फिर वॉलट में जरुर रखता हूँ..ये आदत अब ऐसी हो गयी है की अगर कभी पेन कहीं छूट गयी तो मुझे रास्ते में दूकान से एक पेन खरीदना पड़ता है..
ReplyDeleteऔर वैसे मोबाइल फॉर्मेट करने के बाद भी या बदलने के बाद भी कभी मैंने नंबर नहीं खोये किसी के...दो तीन जगह बैक अप बना के रखता हूँ...और डायरी में भी सबके नंबर नोट कर के..हाँ, थोड़ी मेहनत लगती है लेकिन फिर भी नंबर सुरक्षित तो रहते हैं :)
सही कहा आपने...विचार कभी भी आकर कभी भी जा सकते हैं...मेरा मोबाइल का 'ड्राफ्ट' इनसे भरा रहता है:)
ReplyDeleteउपयोगी आलेख ......
ReplyDeleteek naye vishay par achchhi shuruaat..
ReplyDeleteसंग्रह और प्रवाह के प्रणेता ,शुक्रिया आपकी आवा -जाही का .एक न एक शम्मा अँधेरे में जलाए रखिए,.....
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी आपकी मौजूदगी अपेक्षित है -http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_9034.हटमल
Friday, August 12, 2011
रजोनिवृत्ती में बे -असर सिद्ध हुई है सोया प्रोटीन .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बृहस्पतिवार, ११ अगस्त २०११
Early morning smokers have higher cancer रिस्क.
सकारात्मक लेखन...
ReplyDeleteबहुत उपयोगी आलेख...आभार
ReplyDeleteआपके बताये हुए तीन अवयवों का तालमेल के साथ प्रयोग कार्य में सुगमता उत्पन्न कर देता है.
ReplyDeleteडायरी-लेखन का शौक पहले था,अब नहीं रहा!पहले कभी रात में ,बत्ती बुझने के बाद भी कुछ याद आता तो झट से छोटी डायरी में उतार लेते थे,वाही काम अब मोबाइल से हो जाता है.
contacts को सहेजने का काम गूगल अकाउंट के ज़रिये आसान लगता है !
बहुत उपयोगी सलाह है ... करके देखना चाहिए ...
ReplyDelete