संग्रहण
मनुष्य का प्राचीनतम व्यसन है। जब कभी भी कोई अतिरिक्त वस्त्र, भोजन, शस्त्र इत्यादि अस्तित्व में आया होगा, उसका संग्रहण किस प्रकार किया जाये, यह प्रश्न अवश्य उठा होगा। हर वस्तु के संग्रह करने की अलग विधि, अलग स्थान, अलग सुरक्षा, अलग समय सीमा।
मूलभूत संग्रहण को पूरा करने के पश्चात आवश्यकताओं का क्रम और बढ़ा, ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य, सौन्दर्यबोध आदि विषय पनपे, उनसे सम्बन्धित संग्रहण भी आकार लेने लगा। मशीनें आयीं, कारखाने आये, व्यवसाय आया, संग्रहण का
विज्ञान धीरे धीरे विकसित होने लगा। आज संग्रहण पर विशेषज्ञता, किसी भी व्यवसाय का अभिन्न अंग बन चुकी है।
हर
व्यक्ति संग्रह करता है, आवश्यक भी
है, कोई अत्याधिक करता है, कोई न्यूनतम रखता है। पशुओं में भी संग्रहण का
गुण दिखता है, जीवन में अनिश्चितता
का भय इस संग्रह का प्रमुख कारण है। हम अपने घरों की सीमाओं में न जाने कितनी
प्रकार की वस्तुओं को रखते हैं, हर
एक का नियत स्थान और नियत आकार। मूलभूत आवश्यकताओं के ही लिये यदि घरों का निर्माण
होता तो सारा विश्व अपने दसवें भाग में सिमट गया होता।
नये
विश्व में नित नयी नयी वस्तुयें जन्म ले रही हैं, सबका अपना अलग संग्रहण प्रारूप। आलेखों, श्रव्य और दृश्य सामग्रियों को डिजिटल स्वरूप दिया जा रहा है, भौतिक विश्व धीरे धीरे आभासी में बदलता जा रहा
है अब चित्रों में भौतिक रंग नहीं वरन 1 और 0 से निर्मित आभासी
रंगों का मिश्रण पड़ा होता है। भौतिक पुस्तकें और डायरी अब इतिहास के विषय होने को
अग्रसर हैं, उनका स्थान ले रहे हैं
उनके डिजिटल अवतार। पुस्तकालय या तो आपके कम्प्यूटर पर सिमट रहे हैं या इण्टरनेट
के किसी सर्वर पर धूनी रमाये बैठे हैं।
आप लेख
लिखते हैं, कहानियाँ रचते हैं, कवितायें करते हैं, गीत गुनते हैं, चित्र गढ़ते
हैं। संवाद के माध्यम डिजिटल होने के कारण, उन सृजनाओं का डिजिटल स्वरूप आवश्यक हो जाता है। बहुधा कम्प्यूटर के ही
किसी भाग में आपके सृजित-शब्द पड़े
रहते हैं, फाइलों के रूप में। हम नव-उत्साहियों के पास ऐसी सैकड़ों फाइलें होंगी और
जो वर्षों से सृजन-कर्म में रत हैं, उनके लिये यह संख्या निश्चय ही हजारों में
होगी। न जाने कितनी फाइलें ऐसी होंगी जिसमें कोई एक विचार बाट जोहता होगा कि कब वह
रचना की सम्पूर्णता पायेगा। सृजित और सृजनशील, पठित और पठनशील, न जाने
कितनी रचनायें, कई विधायें, कई विषय, कई प्रकल्प, कई संदर्भ, यह सब मिलकर साहित्य संग्रहण के कार्य को
गुरुतर अवश्य बना देते होंगे।
साहित्यकार
ही नहीं, शोधकर्ता, विद्यार्थी, वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी और
इस श्रेणी में स्थित सबको ही ज्ञान के संग्रहण की आवश्यकता पड़ती है। संग्रहण के
सिद्धान्त भौतिक जगत में जिस तरह से प्रयुक्त होते हैं, लगभग वैसे ही डिजिटल क्षेत्र में भी उपयोग में आते हैं। कम स्थान में
समुचित रखरखाव, समय पड़ने पर उनकी
खोज, खोज में लगा समय न्यूनतम, शब्दों और विषयों के आधार पर खोज, अनावश्यक का निष्कासन,
आवश्यक की गतिशीलता।
कम्प्यूटर
में कोई फाइल कहाँ है यह पता लगाना सरल है यदि आपने बड़े ही वैज्ञानिक ढंग से उनका
संग्रहण किया है। आपको उस फाइल का नाम थोड़ा भी ज्ञात है तब भी कम्प्यूटर आपको खोज
कर दे देगा आपकी रचना। किन्तु यदि आपको बस इतना याद पड़े कि उस रचना में कोई शब्द
विशेष उपयोग किया है, तो असंभव सा
हो जायेगा खोज करना। कम्प्यूटर तब एक नगर जैसा हो जाता है और आपकी खोज में एक रचना
किसी घर जैसी हो जाती है।
देखिये
न, गूगल महाराज खोज के व्यवसाय से
ही कितने प्रभावशाली हो गये हैं, इण्टरनेटीय
ज्ञान में गोता लगाने में इनकी महारत आपको इण्टरनेट में तो सहायता दे सकती है पर
आपके अपने कम्प्यूटर में वे कितना सहायक हो पायेंगे, इस विषय में संशय है। वैसे भी यदि ज्ञान इण्टरनेट पर न हो या ठीक से
क्रमबद्ध न हो तो उस विषय में गूगल भी गुगला जाते हैं। एक विषय पर लाखों निष्कर्ष
दे आपका धैर्य परखते हैं और पार्श्व में मुस्कराते हैं।
आपके
कम्प्यूटर पर साहित्यिक संग्रह आपका है, उपयोग आपको करना है, व्यवस्थित आपको करना
है। आप करते हैं या नहीं? यदि करते
हैं तो कैसे? अपनी विधि से आपको भी
अवगत करायेंगे, पर आपकी विधि जानने के बाद।
कम्पयूटर टैक्नोलोजी की प्रगति चौंकाने वाली है शायद ही विज्ञानं ने किसी और क्षेत्र में इतनी तेजी से तरक्की की हो ...अभी बहुत कुछ देखना बाकि है ! शुभकामनायें प्रवीण भाई !
ReplyDeleteहम तो इतने बेतरतीब हैं कि ये नयी तकनीकें भी हमारे काम की नहीं!
ReplyDeleteअभी तक सबकुछ अव्यवस्थित ही है .. संग्रहन की आपकी विधि से ही अवगत होना चाहूंगी !!
ReplyDeleteबहुत अच्छा आलेख है ...कम्प्यूटर के मामले में नवसिखिया ही हैं |बहुत धीरे -धीरे स्पीड बढ़ रही है |आप अपने हिसाब से ही जानकारी देंगे ठीक रहेगा |Please start from basic steps....beginners like me really need to know a lot.Thanks if u can do that...!
ReplyDeleteसंग्रहण तो ज़रूरी है...
ReplyDeleteहमारा तो खोने पाने का खेल चलता रहता है और स्मृति (याददाश्त) पर हमें पूरा भरोसा है, पर वह ऐन मौके पर बेवफा साबित होती है.
ReplyDeletesarthak post.
ReplyDeleteसंग्रहण के मामले में हमारी खुराक लगातार बढती जा रही है.जो मेमोरी-क्षमता मोबाइल या कंप्यूटर में पहले बहुत लगती थी,अब नाकुछ हो गयी है !
ReplyDeleteवैसे संग्रहण करना और उसे व्यवस्थित करना ,ताकि खोजने में दिक्कत न हो, दोनों अलग काम हैं !
इस बार टिप्पणी विस्तार से
ReplyDelete1 प्रिंट मीडिया खत्म तो नहीं होगा पर हाँ इलेक्ट्रिक मीडिया उत्तरोत्तर और अधिक प्रासंगिक होता जाएगा।
2 तुलशीदास ने अनगिनत पुराणों, उपनिषदों और वेदों को एक छोटी सी [तब के समय के अनुसार] रामायण में भरा ये समझते हुए कि आने वाले वक़्त में लोगों के पास बहुत कम समय होगा - पर हम में से कितनों ने पढ़ी है पूरी रामायण? और कितनी बार , और आखिरी बार कब? ऐसे में हम कैसे उम्मीद करें कि आने वाली पीढ़ियाँ हमारी लिखी पुस्तकों को पढ़ेंगी, अच्छा खासा समय निकाल कर - और हाँ, वो भी शब्द कोशों के साथ। आने वाले वक़्त में सर्च इंजिन्स और अधिक महत्वपूर्ण हो जाएँगे|
3 इसलिए मैंने भी आप सभी लोगों की तरह इंटरनेट का माध्यम चुना, और उस का सुपरिणाम भी देखा।
4 संग्रहण, पद्धति वार करने से हम खोजते वक़्त काफी वक़्त बचा लेते हैं, मैं ऐसा करता हूँ| ब्लॉग के नए / पुराने टूल्स को समझने का प्रयास जारी है| ब्लॉग के बेक अप के बारे में भी ख्याल रखा जाना चाहिए।
5 मेरे बड़े नाना जी [माँ के दादाजी] अपने समय के ब्रजभाषा के बहुत अच्छे कवि थे, पर ले दे कर अब तक मैं उन के कुल जमा तीन छन्द ही जुटा पाया हूँ, उस में से भी एक का अर्थ तो मिल ही नहीं पा रहा| ऐसे में हमारे लिए और भी अधिक ज़रूरी हो जाता है कि अपने रचना संसार को अंतर्जाल जैसे माध्यमों को समर्पित कर दें| भविष्य में इच्छुक व्यक्ति के लिए यह सजह जी उपलब्ध हो सकेगा।
पिछले दिनों आदरणीय प्राण शर्मा जी के द्वारा दिये गए मिसरे पर कही गई ग़ज़ल का एक शेर :-
आने वाली पीढ़ी की खातिर मिल जुल कर।
आओ भरें सारा लिटरेचर कम्प्युटर में॥
प्रवीण भाई इस आलेख को श्रुखला बद्ध जारी रखिएगा, यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है|
हम भी जानना चाहेगें संग्रहण का तरीका, अगली पोस्ट इस पर लिखें।
ReplyDeleteNice post.
ReplyDeleteआपके बोल हैं प्यारे प्यारे
लेकिन हमारा लिंक है न्यारा न्यारा
यक़ीन न आए तो ख़ुद देख लीजिए
बिना लाग लपेट के सुना रही हैं खरी खरी Lady Rachna
"...किन्तु यदि आपको बस इतना याद पड़े कि उस रचना में कोई शब्द विशेष उपयोग किया है, तो असंभव सा हो जायेगा खोज करना।..."
ReplyDeleteवस्तुतः ऐसा नहीं है. बहुत से ऐसे औजार हैं जैसे कि विंडोज/गूगल डेस्कटॉप सर्च जिनसे आप ऐसे शब्दों वाले तमाम दस्तावेज़ों को पलक झपकते खोज सकते हैं.
संग्रहण का सही तरीका हम भी जानना चाहते हैं -पर कंप्यूटर के मामले में नौसिखिये होने के कारण ,जरूरी काम भर कर लेते हैं .
ReplyDeleteआपसे जो जानकारी मिलेगी ,अग्रिम धन्यवाद !
nice post.
ReplyDeleteवाकई फाईल संग्रहण के लिए कम्प्यूटर बहुत उपयोगी है....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रवीन जी ||
ReplyDeleteबढ़िया विश्लेषण ||
बधाई ||
हमने तो अच्छे से संग्रहण किया हुआ है.. घर की चीजे मतलब हार्डवेयर से लेकर सॉफ्टवेयर तक सब कुछ..
ReplyDeleteअरविन्द जी की टिपण्णी को ही हमारी टिपण्णी समझे .....
ReplyDeleteuseful and informative post !
ReplyDeletescience n technology mei progress to din dooni raat chouguni ho rahi hai... aur files ko save karke rakhna to bahut hi asaan ho gaya hai.. par aaj bhi kai lag hain jinhe abhi bhi sychronization n management seekhne ki jaroorat hai... kypnki sangrahan ko jitni acche se aur saaf-suthre se zamaya jaye tabhi uska matlab hai... :)
ReplyDeleteकिसी भी तकनीकी जानकारी के प्रति बहुत कम ही जगरूकता रही है । शायद इसके मूल में कलम थामने वाली आदत है ,जो अस्वस्थ होने पर भी आराम फ़रमाते हुए भी काम करवा देती है । अब तो लगता है कि जितनी अव्यवस्थायें हैं उन्हें वैसे ही संग्रहित कर लें तो शायद अलग सा ही सुख मिलेगा ......
ReplyDelete""संग्रहण मनुष्य का प्राचीनतम व्यसन है...""
ReplyDeleteसहमत हूँ...सारगर्वित प्रस्तुति ...
हमने तो एक फोल्डर बना दिया है संग्रह नाम से। उसके अन्दर भाषाओं के नाम से, फिर उनके अन्दर विषयों के नाम से और इस तरह कई लाख मिनटों में भी नहीं पढ़े जा सकने लायक सामग्री जमा कर दी है। खोजने में कभी-कभी मेहनत पड़ जाती है लेकिन याद रहता है कौन कहाँ है? अब तो डाउनलोड या सुरक्षा का चक्र हमेशा चलता है और कभी याद आए तो सजाने का शुरु करना पड़ता है। फिर भी हजारों फाइलें अव्यस्थित हैं। यही काम साफ्टवेयर से दृश्य-श्रव्य तक के लिए है। लेकिन कुछ अधिक अव्यवस्थित तो पाठ्य ही है।
ReplyDeleteरतलामी साहब से सहमत। कुछ हद तक तो विंडोज से भी ऐसा हो जाता है शायद।
यह सच है कि हाथ में लेकर पढ़ने का मजा अलग है। यह सही है कि डिजिटल चीजें बढ़ रही हैं लेकिन अभी बहुत दिनों तक प्रिंट का राज रहेगा।
अपने देश में तो बहुत समय लगेगा क्योंकि अभी भी मुश्किल एक प्रतिशत सामग्री का डिजिटलीकरण नहीं हुआ है और डिजिटल की पहुँच 10-20 करोड़ लोगों से अधिक के पास नहीं पहुँची है।
संग्रहण का तरीका तो अभी तक कम्प्यूटर के हार्ड डिस्क में ही है लेकिन साथ साथ हम ड्रॉप बॉक्स में अंतर्जाल पर भी संग्रहित करते है जिनको कही से भी देखा जा सकता.है.
ReplyDeleteक्या बात है!!इसी से कुछ मिलता जुलता पोस्ट मैंने लगाया है आज!!अपनी फ्रीक्वेंसी मिलती है, लगता है :)
ReplyDeleteयदि कम्प्यूटर का दीमक चट न कर जाये तो संग्रहण के लिए कम्प्यूटर सबसे उपयुक्त माध्यम है
ReplyDeleteसंग्रहण का सही तरीका हम भी जानना चाहते हैं।
ReplyDeleteढूंढने में, कंप्यूटर दा जवाब नईं
ReplyDeletegood post...
ReplyDeleteसंग्रहण सभी करना चाहते हैं .. कंप्यूटर का काम चलाऊ ज्ञान है .. अपने नाम का एक फोल्डर बना रखा है बस उसी में रखते जाते हैं अपने मतलब की फाईल ..बाकी कुछ नहीं आता :):)
ReplyDeleteआपके द्वारा दी जाने वाली जानकारी का इंतज़ार है ..
बहुत ही अच्छा विषय और बेहतरीन लेखन के लिये आपका आभार ...।
ReplyDeleteapni to lal dayri ne hi sath diya hua hai swrchit jo chahu jht se samne kr deti hai lekin seekhne ki koi umr nhi hoti hai isliye aapki nai post ka intjar rhega .
ReplyDeleteग्रहस्थी की चीजे तो संग्रह करना अच्छी तरह आता है किन्तु इस विषय में तो आपकी अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा |
ReplyDeleteसदाचार का संग्रहण सदा साथ रहता...
ReplyDeleteपढ़ना-समझना व संग्रहण करना अद्भुत विचार...
सर आज कल कंप्यूटर का जमाना है , तो संग्रह भी इसका एक हिस्सा है ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteभाई साहब दुर्दिन के लिए तो चींटिया भी संग्रह करतीं हैं .संग्रह करना एक सहज प्रवृत्ति है .कोई चीज़ मार्किट से गायब हो जाए तब देखिएगा .सर्वोत्तम स्थान संग्रह करने का स्विस बेंक है न कि कंप्यूटर .मंद मति राज कुमार इस के साक्षी हैं .
ReplyDeleteहे रक्षक ..
ReplyDeleteमेरे समय की रक्षा की आपके इस प्रशिक्षण ऩे.. धन्यवाद,.
भाई साहब दुर्दिन के लिए तो चींटिया भी संग्रह करतीं हैं .संग्रह करना एक सहज प्रवृत्ति है .कोई चीज़ मार्किट से गायब हो जाए तब देखिएगा .सर्वोत्तम स्थान संग्रह करने का स्विस बेंक है न कि कंप्यूटर .मंद मति राज कुमार इस के साक्षी हैं .कृपया नै पोस्ट पर पधारें .-
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_06.html
sangrahan ke vishya me achchi post hai computer ki mahatta to desh ke kone kone me pahuch chuki hai.aapki agli post se jaroor labhanvit hona chahenge.
ReplyDeleteकेवल संग्रहण वृत्ति ही नहीं, संगहित वस्तुओं को अव्यवस्थित रखना भी एक वृत्ति है।
ReplyDelete'एब्स्ट्रेक्ट' विषय पर बहुत ही रोचक 'आब्जेक्टिव' पोस्ट।
हम फाइलों को उनके विषय और टाइप के अनुसार श्रेणियाँ बनाकर फोल्डरों में रखते हैं। डॉस के जमाने के आदमी हैं इसलिये फाइलों को करीने से लगाने के आदी हैं।
ReplyDelete"...किन्तु यदि आपको बस इतना याद पड़े कि उस रचना में कोई शब्द विशेष उपयोग किया है, तो असंभव सा हो जायेगा खोज करना।..."
विण्डोज़ ७ की सर्च सुविधा (कुछ समय इण्डैक्सिंग के उपरान्त) झट से फाइल खोज देती है। ऍक्सपी के लिये ऍवरीथिंग नामक टूल कुछ ऐसा ही काम करता है।
http://www.voidtools.com/
तकनीकें कितनी भी आ जाएं, पर किताब पढने का आनंद किसी भी अन्य तरीके में नहीं1
ReplyDelete------
कम्प्यूटर से तेज़!
इस दर्द की दवा क्या है....
संग्रहण बहुत आवश्यक है..लेकिन करीने से और व्यवस्थित ताकि जब चाहे तुरंत मिल जाएँ.....मैं अपने अकाउंट में अपनी सभी फाईलों को वर्गीकरण कर के किस टाईप की हैं ऑडियो /विडियो /गेम्स/स्कूल सबन्धित आदि ...उनमें मुख्य रूप से बांटती हूँ फिर ज़रूरत के हिसाब से उनके सब -फोल्डर बनने हों तो बनाती हूँ ...अंत में फाईलों को अल्फाबेट के अनुसार लगाती हूँ...जो प्रोजेक्ट चल रहा हो उसका अलग फोल्डर रहता है जो खत्म हो गया हो उसका अलग.
ReplyDeleteहाँ..विस्टा में खोजना बहुत आसान है..
ReplyDeleteBahut e achi post hai... Praveen ji!
ReplyDeletelooking forward to your 'modus operandi'
ReplyDeleteअपन भी अभी सीख ही रहे हैं। जमा करना और फिर कुछ समय बाद डस्टबिन में डालना चलता ही रहता है।
ReplyDeleteएक TPM (Toatal Productive maintenance) प्रणाली है जिसके तहत प्रोडक्शन यूनिटों में वर्करों को इस तरह ट्रेन किया जाता है कि मशीनों के छोटे छोटे बिगाड़ को पहचान सकें और कम समय में ही प्रोडक्शन डाउन होने से बचा लें।
ReplyDeleteइसी प्रणाली की एक यूनिट होती है सही ढंग से संग्रहण जिसके तहत वर्करों को सिखाया जाता है कि मशीनों के कल पुर्जे किस तरह से स्टोर में खांचो में बांटकर रखना चाहिये ताकि वक्त पर जल्दी मिल सके और मशीन का प्रॉडक्शन लॉस कम हो।
अपने एक जगह के सेवाकाल में मैंने देखा था कि वर्कर इस TPM से ज्यादा खुश नहीं थे क्योंकि उन्हे डाक्यूमेंटेशन में ज्यादा इन्वोल्व होना पड़ता था जो कि TPM का ही हिस्सा है लेकिन वे स्टोरेज प्रणाली से ज्यादा खुश थे क्योंकि उन्हें समय पर कल पुर्जे सही जगह पर संग्रहण के कारण जल्दी मिल जाते थे और प्रॉडक्शन गिरने से बच जाता था।
संग्रहण के महत्व को दर्शाती एक सुन्दर पोस्ट।
@ अपनी विधि से आपको भी अवगत करायेंगे, पर आपकी विधि जानने के बाद।
ReplyDeleteअरे कोई विधि नहीं है हमारे पास। इस विषय पर पहली बार सुना है। जल्द बताइए।
karane ki koshish me hi jujhate samay beeta jaa raha hai..kya batayen!!!
ReplyDeleteसंग्रहण तो ज़रूरी है
ReplyDeleteअभी तक सबकुछ अव्यवस्थित ही है .. संग्रहन की आपकी विधि से ही अवगत होना चाहूंगी
ReplyDeleteसंग्रहण किया है पर कुछ विशेष ढंग से नहीं...... आपसे मिलने वाली जानकारी यक़ीनन मददगार साबित होगी ....
ReplyDeleteFile management can be very crucial sometimes :P
ReplyDeleteThough the processor does the maximum work but humane logic is still a necessity.
Nice read as always !!!
एक संग्रहण सरकार का भी है...गोदामों में अनाज सड़ रहा है और न जाने देश में कितने गरीबों को रोज़ भूखा सोना पड़ता है...
ReplyDeleteजय हिंद...
Super food :Beetroots are known to enhance physical strength,say cheers to Beet root juice.Experts suggests that consuming this humble juice could help people enjoy a more active life .(Source: Bombay Times ,Variety).
ReplyDeleteसंग्रह एक वनिक वृत्ति है .जन्मना कोई वणिक नहीं होता ,एक ब्राह्मण भी संग्रह करने की प्रवृत्ति कर सकता है उन अर्थों में कंप्यूटर एक वणिक है .भाषाओं का कंप्यूटर पर संग्रहण कल की उत्तरजीविता ,कल कायम रहने के लिए भी ज़रूरी है इसलिए हिंदी चिठ्ठे की अपनी प्रासंगिकता है .कृपया यहाँ भी पधारें -
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_07.html
ताउम्र एक्टिव लाइफ के लिए बलसंवर्धक चुकंदर .
एनास्थीज़िया इज क्लोज़र टू कोमा देन स्लीप.
ईपंडित से सहमति है, हम भी डॉस के जमाने के लोग हैं, जो कि ट्री कमांड से डायरेक्टरी देखते थे और ncd का उपयोग करते थे, आज भी हमें अगर अपने फ़ाईलों का बैकअप लेना होता है या उनमें से ढूँढ़नी होती है तो मुँह जबानी बता सकते हैं।
ReplyDeleteपर हाँ आप कैसे संग्रहण करते हैं, यह जरूर जानना चाहेंगे।
एक बात और है कि कितने ही ढूँढ़ने के नये उपकरण आ जायें, अगर हम संग्रहण करते समय दिमाग का उपयोग नहीं करेंगे तो ढूँढ़ना बहुत ही मुश्किल है।
आपका पोस्ट अच्छा लगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteमित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
ReplyDeleteएस .एन. शुक्ल
अब तो क्लाउड कम्पुटिंग का जमाना आ गया है संग्रहण भी अपने कम्पूटर से दुसरे कम्पूटर तक फैलता जा रहा है. शायद भविष्य में कम्पूटर के हार्ड ड्राइब की जगह ही ना रहे.
ReplyDeleteअच्छा तो हम लोगों के तरीके जानकर और अब स्वयं गायब!
ReplyDeleteहम आपका यह पोस्ट संग्रहित करते हैं॥
ReplyDeleteप्रवीण जी, मितत्रा दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाये ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दी आपने,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
sarthak jankari se yukt aalekh aage bhi intzar rahega.
ReplyDeleteaapko friendship day kee bahut bahut shubhkamnayen.
अपना तरीका भी बताता पर अभी मिल नहीं रहा है, खोज रहा हूँ।
ReplyDeleteङम तो ्व्यव्स्थित रूप से व्यवस्थित हैं सारे कागज एक ही फाइल में चाहे देर लगे पर मिलता अवश्य है । इसके विपरीत मेरे पति लिफाफे में लिफाफा स्टाइल डाइरेक्टरी सब डाइरेक्टरी फोल्डर और भी जाने क्या क्या ।
ReplyDeleteहम सब एक दुसरे से सीखते हैं ....आपका अनुभव निश्चित रूप से हम सब के काम आने वाला होगा ....!
ReplyDeleteसही कहा है संग्रहण मनुष्य का प्राचीन स्वभाव है !! बस पहले खाने पिने के लिए चिंतित था अब विषय बहुत सारे हो गए हर क्षेत्र में, और कम्प्यूटर तो साथी सा है , बस चिंता यही है कहीं कलम चलाना न भूल जाए हैण्ड राइटिंग न खराब हो जाए !!!
ReplyDeleteजानकारियाँ जुटाने मेँ इंटरनेट ने भले ही बाजी मार ली हो मगर किताबोँ का महत्व अपनी जगह है। आपकी खोज का इंतजार है।
ReplyDeleteसीख रहे हैं हम भी !
ReplyDeleteरोचक !
कंप्यूटर को मेमोरी लोस नहीं होता और न ही अल्ज़ाइमर्स अलबत्ता वायरस ,हेकिंग आदि की निकासी और पहरेदारी भी ज़रूरी है . . ..कृपया यहाँ भी आयें - http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_09.html
ReplyDeleteTuesday, August 9, 2011
माहवारी से सम्बंधित आम समस्याएं और समाधान ...(.कृपया यहाँ भी पधारें -).
maja aa gya pravinji...sach me yadi gyan vyavasthit n ho to google bhi gugla jata hai...
ReplyDeletekaafi upyogi post likha hai aapne...hindi ke in blogs me kaafi vivdhta dikh rahi hai...
ReplyDeletehumaara bhi hausla badhaaye:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/2011/08/blog-post.html
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/2011/08/blog-post_04.html
अच्छा आलेख ...
ReplyDeleteसारे जीवन के जोड़े हिस्से बढ़ते ही जाते हैं, सब खाली जगहें भर देते हैं. जितना संग्रह आज हम करते हें या करना चाहते हैं, उतना ही अपने संग्रह के देखने समझने का समय घटता जाता है!
ReplyDeleteयह वास्तव में एक बड़ी समस्या है. मैं गानों का और पुस्तकों का काफी शौक़ीन हूँ. इन दो सन्दर्भों में मैंने काफी खोज की है की अपने गाने और पुस्तकों की सोफ्ट copies कैसे सम्भालूँ. पुस्तकों को संभालना एक बड़ा और दुष्कर कार्य है ख़ास तौर से जब आपके पास ढेर पुस्तकें हों.
ReplyDeleteपिछले एक वर्ष से मैंने दो यन्त्र इस्तेमाल करने शुरू किये हैं.
१. iPod
२. Kindle
दोनों की बहुत कारगर टैक्नोलोजी हैं. Kindle आपको बिलकुल वही अनुभव देता है जैसे की आप कोई पुस्तक पढ़ रहे हों. शायद उस से बेहतर.
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प्रवीण जी,
यह थे मेरे पत्ते. अब आप की बारी.. शो करने की
ye to jaroori hai aur is karan dhyaan rakhna bhi jaroori ati uttam
ReplyDeleteशुक्रिया भाई जान यहाँ भी आपको तवज्जो मिल जाए तो --
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
Thursday, August 11, 2011
Music soothes anxiety, pain in cancer "पेशेंट्स "