घना जंगल, न आसमान का नीलापन, न धरती पर सोंधा रंग, न कोई सीधी रेखा, न ही दृष्टि की मुक्त-क्षितिज पहुँच, संग चलता आच्छादित एक छाया मंडल, छिन्नित प्रकाश को भी अनुमति नहीं, बस हरे रंग के सैकड़ों उपरंगों से सजी प्रकृति की अद्भुत चित्तीकारी, रंग कुछ हल्के, कुछ चटख, कुछ खिले, पर सब के सब, बस हरे। हरी चादर ओढ़े प्रकृति का श्रंगार इतना घनीभूत होता जाता है कि संग बहती हुयी शीतल हवा का रंग भी हरा लगने लगता है। बहती हवा को अपनी सिहरनों से रोकने का प्रयास करती झील अपनी गहराई में ऊँचे शीशम वृक्षों के प्रतिबिम्ब समेटे हरीतिमा चादर सी बिछी हुयी है।
घना जंगल, गहरी झील, बरसती फुहारें, शीतल बयार, पूर्ण मादकता से भरा वातावरण।
मैं स्वप्न में नहीं, काबिनी में हूँ।
बंगलोर से सुबह 6 बजे निकल कर 11 बजे पहुँचने के बाद जंगल के बीचों बीच बने अंग्रेजों के द्वारा निर्मित कक्ष में जब स्वयं को पाया तो यात्रा की थकान न केवल उड़न छू हो गयी वरन एक उत्साह सा जाग गया, प्रकृति की गोद में निश्छल खेलने का, न टीवी, न फोन, बस प्रकृति से सीधा संवाद। बच्चे तो पल भर के लिये भी नहीं रुके और बाहर जाकर खेलने लगे। थोड़ी ही देर में हम सब निकल पड़े, जीप सफारी में जंगल की सैर करने।
जंगल के बीच 3 घंटे की जीप-सफारी में इंजन की सारी आवृत्तियाँ स्पष्ट सुनायी पड़ती हैं और जीप रुकने पर आपकी साँसों की भी। बीच बीच में जंगल के जीव जन्तुओं के संवाद में अटकती आपकी कल्पनाशक्ति, साथ में चीता या हाथी के सामने आने का एक अज्ञात भय और उनकी एक झलक पा जाने के लिये सजग आँखें। चीता यद्यपि नहीं दिखा पर उसके पंजों को देख कर उस राजसी चाल की कल्पना अवश्य हो गयी थी।
रात्रि में भोजन के पहले एक वृत्तचित्र दिखाया गया जिसमें मानव की अन्ध विकासीय लोलुपता और अस्पष्ट सरकारी प्रयासों के कारणों से लुप्त हो रहे चीतों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण था।
सुबह 6 बजे से 3 घंटे की बोट-सफारी में हमने पक्षियों की न जाने कितनी प्रजातियाँ देखी, झील के जल में पानी पीते और क्रीड़ा करते जानवरों के झुण्ड देखे, पेड़ों से पत्तियाँ तोड़ते स्वस्थ हाथियों का समूह देखा, धूप सेकने के लिये बाहर निकला एक मगर देखा। बन्दर, हिरन, मोर, जंगली सुअर, चील, गिद्ध, नेवले और न जाने कितने जीव जन्तु हर दृश्य में उपस्थित रहे।
वातावरण तो वहाँ पर कुछ और दिन ठहरकर साहित्य सृजन करने का था, पर प्रशासनिक पुकारों ने वह स्वप्न अतिलघु कर दिया। वहाँ के परिवेश से पूर्ण साक्षात्कार अभी शेष है।
वन आधारित पर्यटन की एक सशक्त व्यावसायिक उपलब्धि है, जंगल लॉज एण्ड रिसॉर्ट। वन के स्वरूप को अक्षुण्ण रखते हुये, मानवों को उस परिवेश में रच बस जाने का एक सुखद अनुभव कराता है यह उपक्रम। वन विभाग के अधिकारियों द्वारा संचालित इस स्थान का भ्रमण अपने आप में एक विशेष अनुभव है और संभवतः इसी कारण से इण्टरनेट पर संभावित पर्यटकों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय भी है।
न जाने क्यों लोग विदेश भागते हैं घूमने के लिये, काबिनी घूमिये।
अति सुन्दर! हमने तो सुना था कि भारतीय चीता दशकों पहले विलुप्त हो गया था।
ReplyDeleteकबीनी के बारे में बढ़िया जानकारी मिली|
ReplyDeleteलेख के माध्यम से अच्छी जगह सैर करवाने के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteबच्चों के चेहरे की रौनक बता रही है कितना मजा आया होगा...भाई के यहाँ जाना ही है मैसूर..फ़ायदा उठाया जाएगा..
ReplyDeleteअच्छी जानकारी,सुन्दर प्रस्तुति ,आभार
ReplyDeleteवन विभाग के वृत्त चित्र में ''अस्पष्ट सरकारी प्रयासों के कारणों से लुप्त हो रहे चीतों की दयनीय दशा'' का भी जिक्र है.
ReplyDeleteघना जंगल, गहरी झील, बरसती फुहारें, शीतल बयार, पूर्ण मादकता से भरा वातावरण।
ReplyDeleteमनोहारी ..सजीव चित्रण और वर्णन ...
बचपन की सैर कर आया मन ..
brought me back some nostalgic memories...thanks...
कबीनी का सुन्दर प्रस्तुतीकरण , बधाई .
ReplyDeleteप्रवीण भाई आपने हमारा मन ललचा दिया, अब तो हम भी - भाई काबिनी न सही यहाँ महाराष्ट्र में कहीं और सही - किसी पिकनिक की व्यवस्था करते हैं|
ReplyDeleteफोटो अल्बम मनोहारी है|
bahut khoobsurat jagah dikhai de rahi hai.sundar chitron ke saath aapka varnan bhi sarahniye hai.bachche bahut pyare hain.bahut khush lag rahe hain.
ReplyDeleteअद्भुत स्थल की अद्भुत जानकारी!!
ReplyDeleteसुंदर चित्रावली।
ReplyDeleteहमारे पूर्वजों ने ऐसे ही या इन से भी गहरे जंगलों में कभी अग्रपादों की सहायता से वृक्षों पर उतरने चढ़ने का श्रम करने के फलस्वरूप प्रकृति से हाथों का वरदान प्राप्त किया होगा। हाथों ने उन के मस्तिष्क को विकसित होने का अवसर प्रदान किया और वे मनुष्य बन सके।
जब भी जंगल में जाता हूँ या चित्र देखता हूँ, उन पूर्वजों का स्मरण हो आता है।
घना जंगल, गहरी झील, बरसती फुहारें, शीतल बयार, पूर्ण मादकता से भरा वातावरण।
ReplyDeleteमैं स्वप्न में नहीं, काबिनी में हूँ..
काबिनी के बारे में अच्छी जानकारी देता लेख .. रोचक
अच्छी जानकारी देता लेख .. ...!
ReplyDeleteप्रकृति से मिलना हमेशा से सुखद रहा है.हमने तो आप के साथ ही काबिनी की सैर मुफ़्त में कर ली.कई चित्र तो लगता है जैसे बोल पड़ेंगे !
ReplyDeleteप्रारम्भिक 7-8 पंक्तियों में प्रकृति चित्रण ने मन मोह लिया.विकास की कलुषित छाया से सुरक्षित,इंजन की सारी आवृत्तियाँ स्पष्ट सुनायी पड़ती हैं,पर प्रशासनिक पुकारों ने वह स्वप्न अतिलघु कर दिया। -जैसे वाक्यांशों के पद-चिन्हों से पता चला कि यहाँ से प्रवीण जी की कलम गुजरी है.
ReplyDeleteविशेषत: पंछियों के चित्र-विहंगम.अपने आनंद को साझा कर हमें भी आनंदित कर दिया.
वाह!
ReplyDeleteसचमुच जाना चाहिए यहाँ...अतीव मनोहारी चित्र।
हमारे देश जैसी प्राकृतिक सुन्दरता कही भी दुर्लभ है ...बाहर जाने में आनंद दूसरों की संस्कृति और रहनसहन का अध्ययन में आता होगा ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteSundar prakriti chitran ke saath Kambini bandh ke baaren mein badiya jaankari prastuti ke liye aabhar!
ReplyDeleteइस पोस्ट को तत्काल अपडेट कीजिए और बताइए कि वहाँ कैसे किस तरह पहुँचा जा सकता है और रेस्टहाउस में रिजर्वेशन इत्यादि कैसे किया जा सकता है. 3 दिवस रुकने के संभावित व्यय की जानकारी भी दें.
ReplyDeleteअगली यात्रा काबिनी की पक्की!
वाह बहुत सुन्दर वर्णन कि पढने वाला अभी बश चले तो टिकट कटा ले। धन्यवाद।
ReplyDeleteकाबिनी के बारे में पढ़कर जिम कार्बेट सफारी याद आयी . मनोहारी चित्र .
ReplyDeleteइस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteअभी तो आपकी फोटो एल्बम से ही घूम लिये जी :)
ReplyDeleteप्रणाम
बहुत अच्छा संस्मरण बिल्कुल काबिनी की तरह!
ReplyDeleteAapke sath kabini ghuman achchha laga..aabhar
ReplyDeleteनैसर्गिक सौंदर्य से परिचय कराया आपने..
ReplyDeleteबिलकुल सही सुझाव दिया आपने कि विदेश नहीं देश मे ही घूमना चाहिए ।
ReplyDeleteकबीनी के बारे में सजीव चित्रण और वर्णन ... बढ़िया जानकारी मिली|
ReplyDeleteअच्छी जगह सैर करवाने के लिये आभार*****
सही कहा...अपने देश में इतने सुन्दर सुन्दर स्थल हैं कि इनके आगे विदेश जाने की ललक ही समाप्त होजाय ...
ReplyDeleteकाबिनी आने की इच्छा है. कितना समय हो गया प्रकृति में स्वच्छंदता से रहे बिना!
ReplyDeleteलेकिन वहां से वापस आना तो पड़ेगा ही! :(
धत्त! ये भी कैसी सोच है!:)
आपके साथ तो हम भी सैर कर आये आज ... अच्छी जगह की जानकारी दी है ...
ReplyDeleteबैंगलोर व केरल के बीच व पास के ऐसे कुछ स्थलों में इस बार के भारत प्रवास में लगभग 2 माह बिताए हैं। उनकी स्मृतियाँ ताज़ा हो गईं। बैंगलोर से कनकपुर, वहाँ से संगम होते हुए कनकपुरा से लगभग 50 किलोमीटर दूर (जहाँ तीनों राज्यों की सीमाएँ मिलती हैं और जो वीरप्पन का गढ़/स्थल कहा जाता है, कावेरी और तीनों ओर घोर जंगल व पर्वतों से घिरा है) में लंबे अरसे तक रहना हुआ। हिरण हाथी, भालू, अजगर, मगर, चीते और मोरों का ही साथ था। फिर Wayanad Wildlife Sanctuary के भीतर तो और भी अनेकानेक जीवों से साबका पड़ा। सब कुछ अत्यंत रोमांचकारी और अद्भुत था।
ReplyDeleteनिसर्ग का सान्निध्य नव चेतना का उन्मेष कर देता है।
एक नई जगह की सैर कराई आपने
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख
कबीनी के बारे में बढ़िया जानकारी मिली| धन्यवाद|
ReplyDeleteसही बात है. अपने देश में बहुत कुछ है घूमने के लिए.
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 21 - 07- 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- उसकी आँखों में झिल मिल तारे -
इतनी अच्छी जगह के बारे मेँ जानकारी मिली। सच विदेश देखने की ख्वायिश रखने वालोँ ने इस देश को अच्छी तरह से देखा नहीँ होगा। incredible india.
ReplyDeletebahut kuch janne ko mila
ReplyDeleteप्रवीण जी पहली बात तो चीता और काबिनी का कॊई संबंध नही है दूसरे काबिनी की सुंदरता पर आप और प्रकाश डालें आम तौर पर यह जंगल हाथी और गौर या कहें बाईसन का घर है । तेंदुआ या leopard इसके बाहरी भागो मे पाया जाता है भारतीय चीता भारत से कुल सत्तर साल पहले महाराज सरगुजा की गोलियो का शिकार हो चुका है और तेंदुआ आज भी भारत की सबसे ज्यादा घनत्व वाली शिकारी प्रजाती का सदस्य है
ReplyDeletewaah... saaree yaadein taza ho gai.. thank you so much... kabhi mai bhi wo photographs share karungi...
ReplyDelete:)
par vivran ke liye aapke isi post ka link use karungi... is aap allow karenge...
बंगलोर के इतने पास होते हुये भी काबिनी का पता नही था, तीन बार कूर्ग हो आये, इस बार काबिनी में ही छुट्टियां व्यतीत करेंगे. जानकारी के लिये बहुत आभार.
ReplyDeleteरामराम.
इसी बहाने सैर भी हो गयी और नई जानकारी भी मिल गयी। आभार।
ReplyDelete------
बेहतर लेखन की ‘अनवरत’ प्रस्तुति।
अब आप अल्पना वर्मा से विज्ञान समाचार सुनिए..
You do have an amazing command over hindi, and the place does look beautiful.
ReplyDeleteबहुत सुंदर विवरण व सुंदर चित्र,
ReplyDeleteसाभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सरकारी विश्रामालयों में तो बुकिंग ही नहीं मिलती.. और मुझे आश्चर्य होता है कि बुकिंग मिलती किसे हैं. कार्बेट में कई बार कोशिश की..
ReplyDeleteमैं प्लान बनाता हूँ फिर जल्दी ही. अगर बैंगलोर के आस पास कोई और जगह इससे अच्छी निकल आई तो फिर और बात है. वरना यहाँ की योजना बनाता हूँ.
ReplyDeleteहम भी प्रोग्राम बनाते हैं।
ReplyDeleteबढ़िया फोटोग्राफी मैंने आपकी यात्रा इन फोटो के माध्यम से महसूस की. मेरी भी ६ साल की बच्ची है वो भी जब DISCOVERY और TLC देखती है तो कहती है "पापा वहां घुमाने कब ले चलोगे" तब मै उससे कहता हूँ जब अपने पास बहुत से पैसे आ जायेंगे तब चलेंगे.
ReplyDeleteकाबिनी भ्रमण को साझा करने के लिए आभार...
ReplyDeletepraveen ji apka blog phle bhi 1 ,2 baar padha maine aur jab bhi padhti hu padhti hi jati hu.jaadu hai apke shabdo bandhkar rakkh lete hai aapke shabd....
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteइतने में ही इतना आनंद आया तो प्रत्यक्ष साक्षात्कार कैसी अनुभूति कराएगा,सोचा जा सकता है...
जब जाने का होगा या नहीं,पर अभी आपने जो यात्रा का आनंद दिया...आभार इसके लिए...
बहुत अच्छी जानकारी तस्वीरों समेट। धन्यवाद।
ReplyDeletehamare jaankari me ye jagah bilkul hi nadarat rahi ,aabhari hoon hamare desh is khoobsurati ko saamne laane ke liye .kaabini lubhavna naam hai .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यात्रा वृतांत प्रस्तुत किया है आपने साथ ही काबिनी के बारे में तो जानकारी हम जैसों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो आज तक भारत में कुछ विशेष घूमे ही नहीं हैं .आभार
ReplyDeleteआह...काफी जगहें जाने को न जाने कब से सोच रहा हूँ...ये भी अब उस लिस्ट में एड कर लेता हूँ...
ReplyDeleteआपका काम बस हमें जलाना रह गया है...:)
बहुत ही सुन्दर यात्रा सस्मरण ..मन ललचा गया
ReplyDeleteमन करता है निकल पडूं इतनी मनमोहक यात्रा पर ..शुभकामनाएं एवं आभार !!!
यह नाम पहली बार सुना.जगह भी बहुत ही सुन्दर लग रही है .
ReplyDeletelucky hain!
बहुत ही रोचक प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपकी किसी रचना की हलचल है ,शनिवार (२३-०७-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ...!!कृपया आयें और अपने सुझावों से हमें अनुग्रहित करें ...!!
ReplyDeletebeautiful and picturesque.....
ReplyDeleteहाँ विदेश जाने से तो अच्छा है की अपने देश में घूमें और काबिनी जायें....
ReplyDeleteभैया इस प्रकार के रमणीय स्थल भग्यवान व्यक्तियों को ही प्राप्त हो पाता है।
ReplyDeleteप्रकृति के इतना करीब कुछ दिन गुज़ारने का आनंद ही कुछ और होताहै। सुंदर चित्र- आभार॥
ReplyDeleteसर बहुत ही सुन्दर फोटोग्राफी वह भी पुरे परिवार के साथ ! बधाई !प्रकृति तो प्राकृत ही है !
ReplyDeleteप्रवीण जी ,आज तो आपकी गद्य रचना में भी पद्य सा आनन्द आया .....
ReplyDeleteइस स्थान के बारे में बताने के लिए बहुत बहुत आभार, ये बताइए कि वहां जाने का सही समय कौन से महीने में होगा।
ReplyDeleteprakriti yahan ekant baihi...
ReplyDeletekya baat hai. sundar jagah aur aapne kya khoob vanan kiya hai.
मैसूर, बैंगलौर सब घूमा..यही रह जाना था...सो आपसे जाना....बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteकाबिनी का मनोहारी यात्रा वृत्तांत चित्र मय साथ में आपका पुर सूकून परिवार देख भाल कर अच्छा लगा .विदेश भैया हम तो अपनों से मिलने जातें हैं घूमना घुमाना हमारे लिए बोनस सा सिद्ध होता है बच्चों का प्रेम जहां ले जाए चले जातें हैं .केरल तो धरती मैया का सबसे हरा बिछौना है .कोचीन हमने भी देखा है .उधर चेन्नई ,बंगलुरु ,पोंडिचेरी ,तिरुपति -तिरुमाला ,एला गिरी आदि भी मनोरम स्थल हैं ,खूब देखा है जी भर के इन जगहों को .आई आई टी चेन्नई तो पक्षी विहार के प्रांगन में ही अवस्थित है .
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