छिपी
किसी के मन में कितनी गहराई, मैं
क्या जानूँ?
आतुर
कितनी बहने को, हृद-पुरवाई, मैं क्या जानूँ?
कैसे
जानूँ, लहर प्रेम की वेग नहीं खोने वाली,
कैसे
जानूँ, प्रात जगी जो आस नहीं सोने वाली।
धूप, छाँव में बह जाता दिन,
आ जाती है रात बड़ी,
बढ़ता
रहता, खुशी न जाने किन मोड़ों पर
मिले खड़ी।
एक
अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
सकल
विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये
फिरता हूँ।
सकल विश्व पर बरसा दूं , वह प्यार छिपाए रहता हूँ ...
ReplyDeleteछिपा सकता नहीं आकाश भी, बरसात के रूप में बरस जाता है खुले प्रेम- पत्र की तरह !
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
बरखा आई और बादल छा गए हैं ...कोमल ..बहुत सुंदर हृद-उदगार ...मौसम का असर मन पर हो ही जाता है ....!!
आप वो प्यार छुपाते ही नहीं, बल्कि बरसाते भी हैं. बहुत सुन्दर कविता :)
ReplyDeleteनोट: ये टिपण्णी दिल से लिखी गयी है, इसमें रैपिडैक्स कोर्स का इस्तेमाल बिलकुल नहीं किया गया है.
आशा है, बरसात होगी, भरपूर होगी.
ReplyDeletekya baat hai bhaiya
ReplyDeleteबरसात का मौसम निराला होता है
ReplyDeleteएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ, सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
ReplyDeleteसुंदर ....बहुत सुंदर
सुंदर कविता।
ReplyDeleteएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ,वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
बादल और बरसात.सुनते ही मन में आनंद की लहरें
उठने लगती है.
आप बादल बने और प्यार की बरसात करें तो मौसम बहुत सुहावना हो जाता है.
काश! ऐसी बरसात का मौसम सदा बना ही रहे.
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
जब घन घनघोर बरसने को हैं तो आप भी बरसाइये.:)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता, उतना ही मनोरम चित्र
ReplyDeleteआपके स्नेहिल दिल को हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteमन हरषाए बदरवा . मनमोहक प्रस्तुति .
ReplyDeleteप्यार छुपता नहीं है उसके बाहर आने का केवल तरीक़ा बदल जाता है व्यक्ति के अनुसार ! अगर व्यक्तिगत प्यार है तो छुप के भी बहुत कुछ अन्य माध्यम (कविता आदि ) से तो छलक ही पड़ता है,यदि सार्वभौमिक प्यार है तो कृतित्व और कर्म से 'सकल विश्व' को लाभान्वित किया जा सकता है !
ReplyDeleteप्यार जैसा भी हो,हमेशा अच्छा होता है !
आप सर्वश्व लुटा दें मगर उधर से तो अनजाना ही रहेगा सब कुछ !
ReplyDeleteशायद यही उदात्त और अशरीरी प्यार है ....शायद ही , मुझे भी पक्का पता नहीं है !
जो अपना या अपने लिए हो
ReplyDeleteवही प्यार प्यारा
बाकी तो आवारा --
यह सोच भी प्रभावी हुई है |
सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति ||
vaah Praveen ji bahut bahut achchi kavita hai kuch panktiyon ne to man moh liya.
ReplyDeleteधूप, छाँव में बह जाता दिन, आ जाती है रात बड़ी,
ReplyDeleteबढ़ता रहता, खुशी न जाने किन मोड़ों पर मिले खड़ी।
बहुत ही अच्छी शिल्प में गढ़ी हुई सुंदर छन्दबद्ध रचना ने प्रभावित किया। गूढ अर्थों का समावेश रचना को एक ऊंचा आयाम प्रदान करता है।
oh!! ye pyaar!! adbhut hai!!!
ReplyDeleteअजी प्यार छुपाइये नहीं.. बांटते फिरीये.. ज़िन्दगी का तो यही दस्तूर है.. और अगर नहीं है तो बना दीजिये :)
ReplyDeleteएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
These lines are magical :)
Beauteous !!!
सकल विश्व पर बरसाने वाला प्यार भला कहाँ छुप सकता है ..सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ...
Your love is magnificent !
Loving the creation .
.
बहुत -ही अच्छी और प्यारी रचना है पढ़ने का अवसर देने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ, सकलविश्व पर बरसा दूँ,वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
ReplyDeleteसार्वभौमिक भावना...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना !
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 14-07- 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा -
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteआपकी रचना तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
http://tetalaa.blogspot.com/
प्रवीण भाई, प्यार छिपाने की चीज नहीं, जताने की है। और हां, यह जताने से बढता भी है।
ReplyDeleteवैसे आपके जज्बों में दिल को छू लेने की कशिश है।
------
साइंस फिक्शन की तिलिस्मी दुनिया
लोग चमत्कारों पर विश्वास क्यों करते हैं ?
बंधू ,
ReplyDeleteआप ने तो प्यार बरसा दिया ...
आप को भी प्यार !
धूप, छाँव में बह जाता दिन,
ReplyDeleteआ जाती है रात बड़ी, बढ़ता रहता,
खुशी न जाने किन मोड़ों पर मिले खड़ी।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं.
**नेह के मह बरस जायेंगे तो भी रीते नहीं होंगे..प्रेम -लहर यूँ भी आसानी से वेग खोती नहीं है.
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
...प्यार भी कभी छुपा है क्या ..खूबसूरत अभिव्यक्ति..बधाई.
___________________
शब्द-शिखर : 250 पोस्ट, 200 फालोवर्स
किसी चंचल नदी की कल-कल धारा समान एक वेग से बहती, मन में सुख का संचार करती सुंदर प्रस्तुति| 'हृद पुरवाई' वाला शब्द प्रयोग बहुत जोरदार रहा|
ReplyDeleteएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
इस अभिनव बिम्ब के साथ बुनी गयीं इन पंक्तियों का जवाब नहीं !
आभार!
bahut pyar aur dular bhari kavita!
ReplyDeleteबरसात का सुहाना मौसम है ये प्यार भी कहाँ छुपेगा बरस ही जायेगा.
ReplyDeleteएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ !
वाह ... बहुत ही खूबसूरत से अहसास इन पंक्तियों में ।
वाह, क्या कहने।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
क्या बात है, बहुत सुंदर,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अंतिम दो पंक्तियों में पूरी कविता का सार छिपा है..प्रेममयी भाव
ReplyDeleteशानदार भावनात्मक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआज बरस ही जाइये ..
ReplyDeleteबरसात भी आ गयी है..और बाकि पंक्तिया बड़ी सुन्दर है बंधू
जों छिपा है वही प्रकट है.. जों अजाना है वही तो ज्ञान है!!
ReplyDeletepremras se sarobar rachna............
ReplyDeleteकैसे मन में उठे ये सुंदर विचार, मैं क्या जानूं। बढिया कविता के लिए बधाई पाण्डेय जी॥
ReplyDeletechoti si pyari kavita..refreshing!!
ReplyDeleteएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।.....बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...इस मनमोहक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.....
बहुत बढिया।
ReplyDeleteसावन में फागुन का फोटो लगाया है।
प्यार छिपाये क्यों फिरते हो,बरसो बादल बरसो
ReplyDeleteजल-संरक्षण करना हमनें सीख लिया है.
धूप-छाँव पर पुल बाँधा है,दिन अब ना डूबेगा
कैसे पार उतरना ,खुशी ने सीख लिया है.
सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
ReplyDeletebeautiful poem
भाई! बादलों की सार्थकता तो बरसने में है.प्यार बांटते रहिये, यह खजाना देने से और बढ़ता है.
ReplyDeleteछिपी किसी के मन में कितनी गहराई, मैं क्या जानूँ?
ReplyDeleteआतुर कितनी बहने को, हृद-पुरवाई, मैं क्या जानूँ
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
कैसे जानूँ, लहर प्रेम की वेग नहीं खोने वाली,
ReplyDeleteकैसे जानूँ, प्रात जगी जो आस नहीं सोने वाली ....सकारात्मक सोच...
वाह!
ReplyDeleteये जो अनिश्चित बादल सा आकार है यही तो प्यार है ..... बहुत ख़ूबसूरत भाव :)
ReplyDeleteधूप, छाँव में बह जाता दिन, आ जाती है रात बड़ी,
ReplyDeleteबढ़ता रहता, खुशी न जाने किन मोड़ों पर मिले खड़ी ..
यही तो जीवन है ... बढते रहना ...
बारिश का मौसम और आपकी यह रचना..बहुत खूबसूरत
ReplyDelete<a href="http://hindiuniverse.blogspot.com/2011/07/hindi-satire-and-humor-from-google.html>हिन्दी साहित्य के चुनिन्दा व्यंग्य लेखकों की रचनाएं गूगल बुक्स पर पढ़ें</a>
बेहतरीन.
ReplyDeleteसादर
बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteप्यार छिपता नहीं छिपाने से..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत है भैया..
ReplyDeleteवाह...वाह...वाह...
ReplyDeleteवन्दनीय सोच और प्रशंशनीय शिल्प.....
और क्या कहूँ....
जियो...
धूप, छाँव में बह जाता दिन, आ जाती है रात बड़ी,
ReplyDeleteबढ़ता रहता, खुशी न जाने किन मोड़ों पर मिले खड़ी।
....बहुत सुन्दर और कोमल अहसास..भावों और शब्दों का सुन्दर संयोजन...बहुत सुन्दर प्रस्तुति
waah aaj to kalam kuchh hat ke gunguna rahi hai.
ReplyDeletesunder abhivyakti.
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
baras jaiye...apne desh me to bas bam aur gole hi baraste hain...aaapke pyar bhari fuhar ki barish shayad kuch raahat de sabko.
टिपण्णी कला काम नहीं आ रही इस पोस्ट पर :)
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार|
ReplyDeleteएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
बहुत ही खूबसूरत रचना....
बरस ही जाइए।
ReplyDeleteसकल ब्लॉग जगत पर तो बरस ही रहा है आपका स्नेह । बहुत सुंदर कविता ।
ReplyDeleteआप प्यार बरसायें , बदले में पुनः सभी का स्नेह ,वाष्प बन आपके प्यार के बादल को और घना कर देगा ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिलाषा और अभिव्यक्ति..
बहुत सुंदर कविता है | :) :)
ReplyDeleteछिपी किसी के मन में कितनी गहराई, मैं क्या जानूँ?
ReplyDeleteआतुर कितनी बहने को, हृद-पुरवाई, मैं क्या जानूँ
मनमोहक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.....
धूप, छाँव में बह जाता दिन, आ जाती है रात बड़ी,
ReplyDeleteयही तो ज़िंदगी है..
बढ़ता रहता, खुशी न जाने किन मोड़ों पर मिले खड़ी।
और इसी के भरोसे तो जिन्दगी जी जाती है... बहुत सुन्दर रचना
बहुत बढिया, अच्छा विषय, सटीक बात
ReplyDeleteबहुत बढिया, अच्छा विषय, सटीक बात
ReplyDeleteअहसासों को शब्दों में गूँथती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआपके शब्दों को पढ़कर अहसास होता है कि दिल के भावों को व्यक्त करने के लिये कविता सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। हाँ ईश्वर यह क्षमता केवल कुछ ही लोगों को देता है।
कोई नहीं जानता कि 'स्व' को 'सर्व' में विसर्जित करने पर 'सर्वस्व' मिल जाता है। पहले मालूम होता तो सब यही कर लेते।
ReplyDeleteएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ,
ह्रदय की पीड़ा को मन की भावना को शब्द प्रदान करते हो,
निमित्त बन वैचारिक क्रान्ति को बल प्रदान करते हो..
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
ReplyDeleteसकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।
ati sundar man ko behad bha gayi .kai baar gunguna dali .maja aa gaya padhkar .
chipayee kyu hai , barsa dijiye !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDelete