वर्षों
हम तो यही समझते रहे कि पीड़ा पहुँचाने की क्षमता ही शक्ति का प्रतीक-चिन्ह है, पीड़ा का भय ही शक्ति का आदर करता है। जीवन भर यही समझ लिये पड़े रहते यदि
लगभग 15 वर्ष पहले एक सेमिनार में
जाने का सौभाग्य न मिला होता। संदर्भ भारत और पाकिस्तान की सामरिक क्षमताओं पर था
और एक प्रखर वक्ता उस पर बड़े तार्किक ढंग से प्रकाश डाल रहे थे। उनके अनुसार, शक्ति को नापने में पीड़ा पहुँचाने की क्षमता
से भी अधिक महत्वपूर्ण है की पीड़ा सहने की क्षमता। उस समय लगा कि किसी ने विचारों
के कपाट सहसा खोल दिये हैं, हम भी
मुँह बाये सुनते रहे। धीरे धीरे जब शक्ति के इस सिद्धान्त की व्याख्या कई उदाहरणों
के साथ की गयी तो सामरिक संदर्भों में वह सिद्धान्त मूर्त रूप लेने लगा।
जो देश
पर लागू होता है, वह देह पर भी लागू
होता है। एक धुँधला सा चित्र बना रहा, व्यवहारिक अनुप्रयोग के अभाव में अपूर्ण सा ही बना रहा यह सिद्धान्त। कुछ
सिद्धान्त उद्घाटित होने के लिये अनुभव का आहार चाहते हैं,
स्वयं पर बीतने से अनुभव का उजाला शब्दों की स्पष्टता बढ़ा
देता है। यौवन तो केवल कहने और करने का समय था, संभवतः इसीलिये यह सिद्धान्त अपूर्ण सा बना रहा। सहने के अनुप्रयोग जीवन
में आने शेष थे, संभवतः इसीलिये यह
सिद्धान्त अपूर्ण सा बना रहा।
भारतीय
मनीषियों ने भले ही अविवाहित रह कर यह तथ्य न समझा हो पर हमारे लिये विवाह
सिद्धान्त-समूहों का प्राकृतिक
निष्कर्ष है। हर वर्ष बीतने के साथ ज्ञान-चक्षुओं के न जाने कितने स्तर खुलते जाते हैं, जीवन यथारूप समझ में आने लगता है, घर में अपनी स्थिति स्पष्ट होने के साथ ही विश्व में भी अपनी नगण्यता का
भान होने लगता है, युवावस्था की
वेगवान पहाड़ी नदी सहसा समतल पर आकर फैल जाती है, श्रीमतीजी और बच्चों के किनारों के बीच सिमटी।
जब कुछ
अनुकूल नहीं होता है तो बड़ी कसमसाहट होती है, व्यग्रता को उसी क्षण उतार देने का मन करता है, दिन भर उतारने और चढ़ाने में मन और तन लगा रहता है, जीवन गतिमान बना रहता है। घर के बाहर तो यह
व्यवहार चल सकता है पर घर के भीतर भी आप यही करने बैठ गये तो आपको शान्ति कहाँ
मिलेगी?
शान्ति-प्राप्ति की इसी विवशता ने सहने का महामन्त्र
सिखा दिया। स्वभावानुसार थोड़े दिन तो व्यवहार में रुक्षता बनी रही पर धीरे धीरे
सहने का गुण सीखने लगे। पहले तो तुरन्त उत्तर न देकर कुछ घंटों के लिये जीभ ने
सहना सीखा, फिर उस बात को कुछ दिनों
में ही भुलाकर मन ने सहना सीखा, फिर
उन्हीं परिस्थितियों में संभावित अनुकूलता निकाल कर जीवन ने सहना सीखा।
पता
नहीं, जब देश में हर ओर आक्षेपों का
उद्योग पनप रहा है, मेरा सहनशील
चिन्तन किस महत्व का हो, पर
आत्मशक्ति का एक सशक्त कारक बनकर उभरी है मेरी सहनशीलता। सहनशीलता में गाँधीजी के
सत्य के प्रयोगों ने एक स्वतन्त्रता तो दिला दी है, हमारे प्रयोग न जाने क्या मुक्त कर बैठेंगे।
हम तो 'सहना, रहना और सहते रहना' के मार्ग पर चलते चलते अपनी शक्ति बढ़ाने में
लगे हैं, कम से कम घर में हमारा बॉर्नबीटा यही है। आप कौन सा शक्ति-पेय पीते है?
ग़ालिब का शेर है की, "मुश्किलें इतनी पड़ी की आसान हो गयीं"
ReplyDeleteबुजुर्ग तो यही कह गए हैं की सहने से आत्मा का विस्तार होता है. लेकिन हर आदमी की सहने की क्षमता होती है. चाहने भर से सहनशील नहीं हुआ जा सकता.
vastav men behatar post, badhai
ReplyDeleteइसे ही शायद कहते होंगें स्थितिप्रज्ञता या तुरीयावस्था !
ReplyDeleteइतना अनवरत तो नहीं, महीने में दो चार दिन मेरे भी ऐसे बीतते हैं ...
तब कर्ण कपाट भले ही खुले हों मस्तिष्क द्वार हठात बंद हो रहता है ...
यह आत्मानुशासन से संभव है :) मगर इस मनोदशा को लम्बा न खीचिये ..
अनुषंगिक प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं !
Praveen ji badhaai bahut achcha likhte hain aap.aapka lekh bahut pasand aaya.sahi hai sahansheelta shanti ka mool mantra hai sabhi ko yeh seekhna chahiye jeevan behtar ho jayega.
ReplyDeleteशहंशाह न सही सहनशाह तो बना ही जा सकता है.हर तपस्या के लिये सहनशीलता जरुरी होती है.जीवन भी एक तपस्या ही है.रहना है तो सहना है.सहते रहना है.उम्र के साथ साथ सहने की सीमाओं का विस्तार भी होता है. एक यथार्थ को सुंदर शैली में व्यक्त किया है,तभी तो प्रवीण कहाते हो.
ReplyDeleteभारतीयों की सहनशक्ति तो यूँ भी अद्भुत है ...
ReplyDeleteसहनशक्ति की प्रेरणा किसने किससे ली , मनीषियों ने गृहस्थों से या इससे उलट , ये भी शोध का विषय है !
घर में अपनी स्थिति स्पष्ट होने के साथ ही विश्व में भी अपनी नगण्यता का भान होने लगता है, ...सहमत हूँ..... ऐसा ही होता है..... बहुत सुंदर चिंतन ....
ReplyDeleteशायद इसी को ताप कहा जाता है
ReplyDeleteआदर्श व्यवस्था के आकांक्षियों द्वारा सुव्यवस्था पर विचार विमर्श के लिए प्रारंभ किया गया पहला विषय आधारित मंच , हम आप के सहयोग और मार्गदर्शन के आकांक्षी हैं |
सुव्यवस्था सूत्रधार मंच
http://www.adarsh-vyavastha-shodh.com/"
"....सहनशीलता इतनी बढ़ जाये कि प्रतिकूलताओं के छोटे मोटे पत्थर आपकी मनस-झील में तरंग तो उत्पन्न करें पर उनमें न ही आयाम हो और न ही अनुनाद...." इसे चिकने घड़े के नाम से भी समझा जा सकता है :)
ReplyDeleteसहनशीलता पर आपके विचार मन को सोचने पर मजबूर करते हैं .....आपका आभार
ReplyDeleteशक्ति को नापने में पीड़ा पहुँचाने की क्षमता से भी अधिक महत्वपूर्ण है की पीड़ा सहने की क्षमता--
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति,
हार्दिक बधाई ||
सहनशीलता में गाँधीजी के सत्य के प्रयोगों ने एक स्वतन्त्रता तो दिला दी है, हमारे प्रयोग न जाने क्या मुक्त कर बैठेंगे।
हम तो 'सहना, रहना और सहते रहना' के मार्ग पर चलते चलते अपनी शक्ति बढ़ाने में लगे हैं,
kaho n kaho sahta hi hai aadmi yaa waqt
ReplyDeleteश्रद्धा और सबूरी ...अर्थात प्रभु में आस्था और सब्र या सहनशीलता ....ये दो मिलकर ही सही जीवन दर्शन हो सकता है ...बहुत सार्थक लेख ...
ReplyDeleteसब परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यदि आप किसी के साथ सहजीवन बिताना चाहते हैं तो दोनों को कुछ कुछ सहना होगा। कुछ सहने से इन्कार भी करना होगा। विवाद में समझौता भी करना होगा।
ReplyDeleteकिसी से समझौताहीन संघर्ष करना हो तो भी संघर्ष के दौरान बहुत कुछ सहन करना होगा। बिना उस के संघर्ष भी संभव नहीं है। हाँ सहनशीलता हर परिस्थिति में आवश्यक है।
'भारतीयों की सहनशक्ति तो यूँ भी अद्भुत है ...'
ReplyDeleteवाणी गीत जी की इस बात से मैं भी सहमत हूँ -बस निरीक्षण के आधार पर उसमें यह वाक्यांश और जोड़ना चाहती हूँ -'घर से बाहर '.अब प्रवीण जी ,घर में भी विकसित हो जाय तो आनन्द ही आनन्द!
इसीलिए पूरे विश्व में भारत में शादियों के सफल रहने का प्रतिशत सबसे ऊंचा है...
ReplyDeleteजय हिंद...
पहले तो तुरन्त उत्तर न देकर कुछ घंटों के लिये जीभ ने सहना सीखा, फिर उस बात को कुछ दिनों में ही भुलाकर मन ने सहना सीखा, फिर उन्हीं परिस्थितियों में संभावित अनुकूलता निकाल कर जीवन ने सहना सीखा।
ReplyDeleteजब मन से सहना सीख किया तो शांत झील में तरंगे तो उठेंगी पर शोर नहीं ...
बहुत खुबसूरत हम आपके विचारों को आज फिर से सलाम करते हैं जीवन तो रोज नये रंग दिखाती है दोस्त और अगर जिसने अपने आप पर काबू प् लिया तो कोई शक्ति उसे नहीं हिला सकती यही जीवन को बेहतर बना सकती है और खुद जिओ और जीने दो का पाढ सिखा सकती है | हम भी आपकी ही तरह .............. 'सहना, रहना और सहते रहना' के मार्ग पर चलते चलते अपनी शक्ति बढ़ाने में लगे हैं, :)
ReplyDeleteसुन्दर और यथार्थ विषय पर चर्चा |
अच्छा लगा इसे पढ़ना।
ReplyDeleteहम भी, आपकी तस्वीर सामने लगा , यही मंत्र उच्चारण करने का प्रयत्न कर रहे हैं !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
बढ़िया चिंतन , सहनशीलता तो सुखमय जीवन के मूल में है .
ReplyDeleteबहुत बढिया.. शायर नवाज देवबंदी की दो लाइनें याद आ रही हैं...
ReplyDeleteवो रुला कर हंस ना पाया देर तक.....
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक .........
अद्भुत दार्शनिक चिंतन है यह, जो जीवन के महान अनुभवों के बाद ही मिल पाता है, हम जैसे पहले पायदान पर खड़े लोगों के लिए "चिंतनीय, मननीय और करणीय" है .
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@ कम से कम घर में हमारा बॉर्नबीटा यही है। आप कौन सा शक्ति-पेय पीते है?
# गुरूजी अब हम भी यही शक्ति-पेय पान करेंगे :)
पर अरविन्द मिश्राजी के बताये आनुषंगिक प्रभाव से भी डर लगता है ............... शायद द्विवेदी जी का फार्मूला सटीक है आनंददायी जीवन जीने के लिए.
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sahnshilta aur sahishnuta se prani matra ke saath prem gahrata chal jata hai
ReplyDelete"जब सामने वाला आपको विचलित करने के प्रयास करते करते थक जायेगा, तब आपको बिना अपनी ऊर्जा व्यर्थ किये शक्ति का आभास होने लगेगा"
ReplyDeleteये एक ऐसी बात आप ने कह दी है कि इसे जो अपना लेगा उस के जीवन से मानसिक तनाव समाप्त हो जायेंगे...जीवन में सिर्फ शांति ही बचेगी...बहुत गुणकारी सूत्र दिया है ये आपने..जिसका उपयोग जीवन में कहीं भी किया जा सकता है..
नीरज
कुछ सिद्धान्त उद्घाटित होने के लिये अनुभव का आहार चाहते हैं, स्वयं पर बीतने से अनुभव का उजाला शब्दों की स्पष्टता बढ़ा देता है।
ReplyDeleteआनंद आ गया ................ सहनशीलता का रियल लाइफ में प्रयोग का तरीका और फायदे सटीक चिंतन ............... बधाई ........
आनंद आ गया ................ सहनशीलता का रियल लाइफ में प्रयोग का तरीका और फायदे सटीक चिंतन ............... पुनः बधाई ........
ReplyDeleteआपका बार्नवीटा तो गजब का है प्रवीण जी, वैसे भी आजकल तो बड़ों के लिए अलग से ऐसे पाउडर आने लगे हैं जो बार्नवीटा की तरह दूध का स्वाद तो बढ़ाते ही हैं, पचाने में सहायक होते हैं। (पिछले दिनों टीवी पर देखे एक विज्ञापन से यह ज्ञान प्राप्त हुआ, गलत भी हो सकता है) तो सीधा सा अर्थ है कि अगर बड़े हो रहे हो, तो अब बच्चों की तरह पैर पटकने से काम नहीं चलेगा, सहनशीलता तो आचरण में लानी ही होगी। लेकिन इससे पहले इसका सारा भार स्त्रियों पर ही होता था, पर यह जानकर खुशी हो रही है कि पुरुष भी इसे अपने आचरण में शामिल कर रहे हैं।
ReplyDeleteसचमुच सुन्दर विचार. एक मोमेंट में आदमी के सोचने के तरीके में कितना बदलाव आ सकता है!!!
ReplyDeleteप्रवीण पाण्डेय जी ,
ReplyDeleteकुछ बोलने से ,इक चुप भली,
बड़ी सज़ा,थोड़े में टली...हा हा हा !
शुभकामनायें!
Bhartiya janmanas ki yahi nisani hai.
ReplyDeleteहमारी सहनशक्ति की ही तो पराकाष्ठा है कि स्विज़ बैंक में अरबों की दौलत पड़ी है और हम फिर भी सहनशील है। इसका एक ही कारण है कि आम जनता का शक्ति पेय ठर्रा है :)
ReplyDeleteप्रवीण भाई आप की बात में निश्चित रूप से दम है, पर एक सच ये भी है
ReplyDeleteबाद गांधीजी के यार इस मुल्क़ में|
पुस्तकों में ही गांधीगिरी रह गई||
एक और चिंतन परक आलेख के लिए बधाई|
बेहतर है मुक़ाबला करना
जिसने सहना सीख लिया उसने जीना सी्ख लिया।
ReplyDeleteयह धरा भी कितना कुछ सहती है फिर भी संभाले रहती है सम्पूर्ण सृष्टि को!!
ReplyDeleteसहनशीलता तो सुखमय जीवन के मूल में है| बहुत सुंदर चिंतन|
ReplyDeleteकम से कम इस देश में अब आम नागरिक सहनशीलता की हर सीमा को समझ गया है और आमलोगों की पीड़ा सहने की क्षमता भी कई गुना बढ़ गयी है बल्कि ये कहा जा सकता है की पीड़ा ही जीवन है आज इस देश में अगर सत्य,न्याय,ईमानदारी व इंसानियत की राह पर चलना है तो....क्योकि भारत सरकार ही सत्य,न्याय,ईमानदारी व इंसानियत की सबसे बरी दुश्मन बन चुकी है आज ....और इस देश का संसद इंसानियत के दुश्मनों से भर चुका है...
ReplyDeleteगहन चिंतन के बाद निकला निष्कर्ष ...
ReplyDelete“आत्मशक्ति का एक सशक्त कारक”!!
"सहना, रहना, सहते रहना"
आपने तो शक्ति को बड़े सुन्दर ढंग से परिभाषित कर दिया ..पीड़ा का महत्व शिक्तिशाली कहलाने के लिए और सहनशीलता इनको खुल कर रख दिया और वैवाहिक अवैवाहिक जीवन में इस स्तर पर अंतर भी पता चला ..उम्दा लेख..
ReplyDeleteजिसमें सहनशीलता है वह निश्चित ही ज्ञानी भी है...आपकी हर पोस्ट में जीवन से जुड़ा गहरा दर्शन होता है जो मन को प्रभावित करता है..
ReplyDeleteभारतीय मनीषियों के अविवाहित रहने में भी एक सहनशीलता थी. असहनीय को सहन तो करना ही पड़ता है, लेकिन इस द्वंद से आप वाकिफ कैसे हो गये? :)
ReplyDeleteआपके इस पेय का एक घूंट भी मुश्किल से बन पाता है, आपसे सध गया है, बधाई.
ReplyDeleteपोस्ट का एक वाक्य आकर्षित भी करता है और प्रभावित भी - प्रतिकूलताओं के छोटे मोटे पत्थर आपकी मनस-झील में तरंग तो उत्पन्न करें पर उनमें न ही आयाम हो और न ही अनुनाद।
ReplyDeleteगॉंधीजी से किसी ने पूछा था कि हिन्दी वर्णमाला में 'स', 'श' और 'ष' क्यों रखे गए किसी एक से ही काम क्यों नहीं चलाया जा सका उत्तर में गॉंधीजी ने कहा था कि उन्हें तो इसका एक ही मतलब समझ आता है - 'सहन करो, सहन करो, सहन करो।'
मुस्कराकर गम का जहर जिसको पीना आ गया,
ReplyDeleteसमझो इस जग में उस बंदे को जीना आ गया.
आभार इस चिन्तनपरक प्रस्तुति पर...
एक और चिंतन परक आलेख के लिए बधाई|
ReplyDeleteअस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
"हर वर्ष बीतने के साथ ज्ञान-चक्षुओं के न जाने कितने स्तर खुलते जाते हैं"
ReplyDeleteSo true.. a line with a profound meaning !!
Tolerance is the biggest weapon any one can have, but tolerance for wrong things is the biggest hindrance too.
इस पेय पदार्थ का एक साईड एफ़ैक्ट भी है, जो एक बार पियेगा हमेशा उसे ही पीना होगा।
ReplyDeleteinching towards stoicism...
ReplyDeleteहर एक व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग होता है और उसके सहनशीलता का पैमाना भी..
ReplyDeleteसहनशीलता कब तक /कहाँ तक/किन परिस्तिथियों में /कितनी होनी चाहिए यह समय और अनुभव सिखाता है.
मौन अच्छा है मगर स्थिति के अनुसार बोलना भी ज़रुरी होता है .
एक साँप और ऋषि की कहानी याद होगी ही.
सहना उतना ही चाहिए जब तक आप को या आप के प्रियजनों को उस स्वभाव से नुक्सान ना पहुँच रहा हो.अधिक सहनशील व्यक्तियों को आज कल की दुनिया में शांति कहाँ मिलती है??कभी न कभी तो आवाज़ उठानी ही पड़ती है.
सर सौ बात के आगे एक चुप काफी है ! इसी का नाम जीवन है अभी तो बहुत कुछ बाकी है ! आगे संतुलित रूप से बढ़ना ही वीरता है !
ReplyDeleteअति सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteसहनशक्ति के बल पर ही तो पाक को 60 वर्षों से अधिक से झेल रहें हैं!
ReplyDeleteसहन शीलता ही सुखमय जीवन का आधार है.
ReplyDeleteसहन करना सीखने का अच्छा तरीका सिखाया .... अगर ये संभव हो जाये तो कोई उलझन सम्मुख न आये .....
ReplyDeletejaldi hi fir vairagi ban jayenge.
ReplyDeletestriyon ki niyti ke chhetr me ek purush ki imandar koshish ka swagt hai .
ReplyDeletedekhna is kdm se bndhan smbndh bn jayega our jeevn me shbhagita ko prshry milega . shn shbd tirohit ho jayega . aameen .
पर आत्मशक्ति का एक सशक्त कारक बनकर उभरी है मेरी सहनशीलता। सहनशीलता में गाँधीजी के सत्य के प्रयोगों ने एक स्वतन्त्रता तो दिला दी है, हमारे प्रयोग न जाने क्या मुक्त कर बैठेंगे। ....
ReplyDeleteइन प्रयोगों पर ही तो दुनिया टिकी है. शानदार पोस्ट...बधाई.
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शब्द-शिखर / विश्व जनसंख्या दिवस : बेटियों की टूटती 'आस्था'
निष्कर्ष अच्छे हैं.एक निश्चित हद तक सहना उत्तम है.सर से ऊपर निकलने पर माकूल जवाब देना और जीत हासिल करना भी जरूरी है.
ReplyDeleteसहते रहने के अपने फायदे हैं बशर्ते वे सिद्धांतों और मूल्यों से समझौता करने की क़ीमत पर न हों !
ReplyDeleteप्रवीण, बहुत सुन्दर आलेख और अभिव्यक्ति, पढ़ कर आनन्द आया.
ReplyDeleteसहना, रहना और सहते रहना
ReplyDeletebeautiful thoughtful post
इस बार तो आपने बहुत ही विचारणीय लेख लिखा है,
ReplyDeleteआभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
एक चुप हज़ार सुख व्यक्ति पर तो लागू होता है भारत सरकार पन नहीं .आपके ब्लॉग पर सदैव विचार पूर्ण सामिग्री फैली रहती है .
ReplyDeleteगांधीजी का जिक्र आपने खूब किया. उन्होंने इसी सहनशीलता को अपने सत्याग्रह का सबसे बड़ा हथियार बना दिया था. विचारोत्तेजक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteगहन चिन्तनयुक्त प्रासंगिक लेख....
ReplyDeleteलगता तो हमें भी यही है कि हमारा पेय भी यही है. लेकिन किस हद तक ये तो मुझे जानने वाले ही बता पायेंगे. इस पथ पर अग्रसर होने की कोशिश जारी है.
ReplyDeleteआपके दोनों ही लेखों में जीवन से गहरा जुडाव है. एक लेख जहाँ घर में बिखरी चीजों को सजाकर जीने की प्रेरणा देता है, वहीँ दूसरे लेख में समभाव से, निर्विकार चेतना के साथ जीने का सन्देश है..सहना, रहना और सहते रहना शीर्षक वाले लेख से सच कहूँ तो बड़ा संबल मिला.आभारी हूँ.नमन.
ReplyDeleteइन दिनों बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है आपके ब्लॉग पे....:)
ReplyDeleteवैसे जीवन खुद में ही एक समझौता है।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर बॅल का "ऍडजस्टमेंट इन्वेंटरी" नामक परीक्षण याद आ गया जो कभी बीऍड में पढ़ा था। ये मनोविज्ञान का एक टैस्ट है जिसमें कई सामान्य प्रश्नों के माध्यम से मनोस्थिति का पता लगाया जाता है।
सहना, रहना और सहते रहना..............
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख
ReplyDeleteहम तो 'सहना, रहना और सहते रहना' के मार्ग पर चलते चलते अपनी शक्ति बढ़ाने में लगे हैं, कम से कम घर में हमारा बॉर्नबीटा यही है। आप कौन सा शक्ति-पेय पीते है?
ReplyDeleteshayad yahi ,lagbhag sabhi lete hai kahi .badhiya rahi .
arvind ji ki tippani bha gayi ,sach hi kaha ,veena ki taar utni hi khincho jisse wo na toote .
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