सुबह का समय, दोनों बच्चों को विद्यालय भेजने में जुटे माता-पिता। यद्यपि बेंगलुरु में विद्यालय सप्ताह में 5 दिन ही खुलते हैं पर प्रतिदिन 7 घंटों से भी अधिक पढ़ाई होने के कारण दो मध्यान्तरों की व्यवस्था है। दो मध्यान्तर अर्थात दो टिफिन बॉक्स अर्थात श्रीमतीजी को दुगना श्रम, वह भी सुबह सुबह। शेष सारा कार्य तब हमें ही देखना पड़ता है। अब कभी एक मोजा नहीं मिलता, कभी कोई पुस्तक, कभी बैज, कभी और कुछ। परिचालन में आने के पहले तक, सुबह के समय व्यस्तता कम ही रहती थी, तो इन खोज-बीन के क्रिया-कलापों में अपना समुचित योगदान देकर प्रसन्न हो लेते थे। समस्या गम्भीर होती जा रही थी, अस्त-व्यस्त प्रारम्भ के परिणाम दिन में दूरगामी हो सकते थे, अतः कुछ निर्णय लेने आवश्यक थे।
अब दोनों बच्चों को बुलाकर समझाया गया। रात को ही अगले दिन की पूरी तैयारी करने के पश्चात ही सोना अच्छा है। प्रारम्भ में कई बार याद दिलाना पड़ा पर धीरे धीरे व्यवस्था नियत रूप लेने लगी। बस्ता, ड्रेस, गृहकार्य इत्यादि पहले से ही हो जाने से हम सबके लिये आने वाली सुबह का समय व्यवस्थित हो गया।
विद्यालय जाने की प्रक्रिया एक उदाहरण मात्र है, घर के प्रबन्धन में ऐसी बहुत सी व्यवस्थाओं को मूर्तरूप देना पड़ता है। हर वस्तु का एक नियत स्थान हो और हर वस्तु उस नियत स्थान पर हो। यदि घर में सामान अव्यवस्थित पड़ा हो, हमें अटपटा लगता है। हमारे पास कितना भी समय हो पर किसी अन्य स्थान पर रखी वस्तु को ढूढ़ने में व्यय श्रम और समय व्यर्थ सा प्रतीत होता है, उपयोग के बाद किसी वस्तु को समुचित स्थान पर रखने में उससे कहीं कम श्रम और समय लगता है।
एक व्यवस्थित परिवेश में स्वयं को पाने का आनन्द ही कुछ और है। छोटे से छोटे विषय पर किया हुआ विचार किसी भी स्थान को एक सौन्दर्यपूर्ण आकार दे देता है। किसी भी स्थान को व्यवस्थित करने में लगी ऊर्जा उसके सौन्दर्य से परिलक्षित होती है। कुछ लोग कह सकते हैं कि इस व्यवस्था रूपी सौन्दर्य से विशेष अन्तर नहीं पड़ता है पर उन्हें भी अव्यवस्थित स्थान क्षुब्ध कर जाता है।
किसी भी तन्त्र, परिवार, संस्था, समाज और देश का कुशल संचालन इसी आधार पर होता है कि वह कितना व्यवस्थित है। जो कार्य सीधे होना चाहिये, यदि उसमें कहीं विलम्ब होता है या अड़चन आती है तो असहज लगता है। यही असहजता आधार बनती है जिससे तन्त्र और भी व्यवस्थित किया जा सकता है।
कई व्यवस्थायें बहुत पुरानी होती हैं, कालान्तर में न जाने कितने अवयव उसमें जुड़ते जाते हैं, हम अनुशासित से उनका बोझ उठाये चलते रहते हैं। परम्पराओं का बोझ जब असह्य होता है तो उसमें विचार की आवश्यकतायें होती हैं, सरलीकरण की आवश्यकतायें होती हैं। क्या कोई दूसरा मार्ग हो सकता है, क्या प्रक्रिया का समय और कम किया जा सकता है, क्या बिना इसके कार्य चल सकता है, अन्य स्थानों पर कैसे कार्य होता है, बहुत से ऐसे प्रश्न हैं जो घुमड़ते रहने चाहिये। प्रश्न पूछने का भय और अलग दिखने की असहजता हमें अव्यवस्थाओं का बोझ लादे रहने पर विवश कर देती है। जटिल तन्त्रों का बोझ असह्य हो जाता है, सरलता स्फूर्तमयी होती है। प्रबन्धन का सार्थक निरूपण एक व्यवस्थित परिवेश की अनुप्राप्ति ही है।
कोई भी क्षेत्र चुनिये, घर से ही सही, अपने कपड़ों से ही सही, पूछिये कि क्या आपको उन सब कपड़ों की आवश्यकता है? जब तक आप संतुष्ट न हो जायें किसी गरीब को दिये जाने वाले थैले में उनको डालते रहिये।
यही प्रश्न अब हर ओर पूछे जाने हैं, हर तन्त्र सरल होना है, हर तन्त्र व्यवस्थित होना है, हर तन्त्र सौन्दर्यपूर्ण होना है।
यक़ीनन व्यवस्थित जीवन का सौन्दर्य ही अलग होता है..... ऊर्जा और समय की बचत भी होती है ...आम जीवन से जुड़ा उदहारण देकर बहुत खास चिंतन सामने रखा आपने......
ReplyDeleteव्यवस्थित घर तो सभी को अच्छा लगता है कि आजकल इतनी भागमभाग भरी लाइफ हो गयी है कि आदमी स्वयं को ही व्यवस्थित नहीं रख पाता।
ReplyDelete------
जादुई चिकित्सा !
इश्क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।
हम तो ‘‘बिखरी चीज़ें” वाले हैं, यहां आपकी हां में हां मिला दें तो वहां क्या मुंह दिखाएंगे, इसलिए इतना ही कहूंगा कि ---
ReplyDelete“अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है।”
यक़ीनन व्यवस्थित होना समय की बचत करता है, मैं अपने घर में रखी अपनी कोई भी वस्तु अँधेरे में भी खोज सकता हूँ ,छात्र जीवन में होस्टल में रहने के दौरान ही हर वस्तु को नियत जगह रखने की आदत पड़ गयी जो अभी तक बरक़रार है|
ReplyDeleteइस समस्या से तो अधिकतर सभी ग्रस्त होंगे.
ReplyDeleteबच्चों में समझदारी आते ही उन्हें इस सम्बन्ध में अनुशासित किया जा सकता है.
मेरे बच्चे तो दोनों ही बड़े छोटे हैं. अगले साल जब बिटिया भी स्कूल जाने लगेगी तब पता चलेगा.
शायद बच्चे मुझे देखकर अपने आप सीख जाएँ. एक समय मैं भी बहुत अव्यवस्थित परिवेश में रहने का आदी था. धीरे-धीरे मैंने व्यवस्था को अपना लिया.
यही प्रश्न अब हर ओर पूछे जाने हैं, हर तन्त्र सरल होना है, हर तन्त्र व्यवस्थित होना है, हर तन्त्र सौन्दर्यपूर्ण होना है।
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित आलेख है ...एक जागरूकता लाने की ज़रुरत है इस विषय में ..हमारे देश में हमें ...सरल उदाहरण से आपने अत्यंत गंभीर बात सामने राखी है ..!सफाई ..अनुशासन ..से आपका बौद्धिक स्तर पता चलता है ..सृजनात्मकता बढ़ जाती है ...किसी कार्य को सुचारू रूप से करने पर उसके परिणाम ही अलग होते हैं ...!! पर दुःख की बात है हम अपने देश में रह कर अपने आस पास के वातावरण को उतना साफ़ नहीं रखते जितना हमें रखना चाहिए ..बड़े शहरों की बात छोड़ दीजिये ,छोटे शहरों में हालत ख़राब ही रहती है ...
ज्वलंत समस्या पर गहन चिंतन ....!!
सही लिखा है आपने। प्रबंधन का सूत्र भी है ऐसा ही एक, "if you fail to plam, you are palnning to fail'
ReplyDeleteव्यास्थित होना श्रेयस्कर ही है।
सकारात्मक दृष्टि, लेकिन माया के कई रूप, अनेक चेहरे.
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है आपने। लगा कि बाउजी बोल रहे हैं। व्यवस्थित परिवेश सुंदर दिखता है लेकिन व्यवस्था देते वक्त मानवीय बेवकूफियों को भी उचित सम्मान मिलना चाहिए। क्योंकि व्यवस्थित रहना जीने की मजबूरी है, बेफिक्री परमानंद की अवस्था।
ReplyDeleteपरम्पराओं का बोझ जब असहाय होता है तो उसमें विचार की आवश्यकतायें होती हैं .
ReplyDeleteजीवन का भी एक व्यवस्थित क्रम है तो फिर जीवन जीने का क्योँ नहीं ?
खुद को व्यवस्थित रखना , व्यवस्था को सुघड़ बनाने या देखने का व्यवस्थित उपक्रम है जो हमने अपने घर से शुरू किया . अच्छा चिंतन .
ReplyDeleteव्यवस्थित रखना और रहना एक कला है.किसी की बैठक में जाने मात्र से ही वहाँ रहने वालों की सोच को समझा जा सकता है.घर ही क्या, जीवन के हर क्षेत्र में यह आवश्यक है.दैनिक जीवन में अक्सर नजर अंदाज किये जाने वाले पहलू पर सुंदरता से ध्यानाकर्षण किया है.बधाई.
ReplyDeleteएक अनुशासित व्यवस्था कई सारी परेशानियों को व्यवस्थित कर देती है.बिना कोई व्यवस्था (अंग्रेजी में प्लैनिंग ) के हम हर जगह दुखी रहेंगे,चाहे वह घर हो या कार्य-क्षेत्र !
ReplyDeleteएन्ट्रापी पर प्रभावी नियंत्रण के लिए बधाई -निश्चय ही यह औरों को प्रेरित करेगी ...अब हम क्या सीखें ..
ReplyDeleteदिन बीत गया अब उड़ भी कैसे पायेगें
पंख फैलाए तो क्या उल्लू न कहलायेगें?
बहुत सुन्दर विषय पर चर्चा जो हमारी रोज़ की जिंदगी से जुड़ा हुआ है और बहुत सही बात कही अगर हर चीज़ व्यवस्थित तरीके से चलेगी तो दिल भी खुश होगा और काम भी आसन होगा |
ReplyDeleteसुन्दर विषय पर चर्चा और बात को रखने का एक खुबसूरत अंदाज़ :)
यही प्रश्न अब हर ओर पूछे जाने हैं, हर तन्त्र सरल होना है, हर तन्त्र व्यवस्थित होना है, हर तन्त्र सौन्दर्यपूर्ण होना है।
ReplyDeleteवाह! प्रवीण जी, आपकी सुन्दर प्रस्तुति से सहज व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त हुआ.
आभार.
पर होता यह है कि दूसरे से भी व्यवस्थित रखने की अपेक्षा करनेवाली महिला को सबका कोप-भाजन बनना पड़ता है क्योंकि वह तो घर पर ही है (आराम से?)और बाकी सब जल्दी में हैं ,व्यस्त हैं उस समय कहाँ क्या रखना है कैसे ध्यान रख सकते हैं!
ReplyDeleteहमें तो ऊपर वाला फोटू अच्छा लगता है ...सब सामान पास ही है !
ReplyDeleteक्या कल्लोगे :-)
kitni saralta se aapne kitna kuch samjha diya ....main bhi yahi chahti hun - ek suvyavasthit dimaag
ReplyDeleteरात को ही अगले दिन की पूरी तैयारी करने के पश्चात ही सोना अच्छा है।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई ||
आप शादीशुदा हो ना सर.. हमारा दर्द क्या जानोगे?? :)
ReplyDeleteवरना चीजों को व्यवस्थित रखने की बात नहीं करते....... :)
व्यवस्था को छोटे छोटे स्तरों से सुधार जाना चाहिए तभी सुगमता बनी रह सकती है
ReplyDeleteअनुशासित और व्यवस्थित जिन्दगी ही बेहतर जिन्दगी है ..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है ...व्यवस्थित घर व्यवस्थित जिन्दगी ...आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
ReplyDeleteपिछले कुछ समय से स्वयं को व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहा हूँ. मेरा डिजिटल डाटा मेरा एक बड़ा हिस्सा है. काफी समय से जो की अव्यवस्थित है. इधर कुछ समय से कुछ नए सॉफ्टवेर मिले हैं जो काफी मददगार साबित हुए हैं. विशेषकर CALIBRE एक अच्छा सॉफ्टवेर है आपकी डिजिटल पुस्तकें व्यवस्थित रखने में..
ReplyDeleteघर में सबसे फालतू सामान हम खुद ही नज़र आते हैं...
ReplyDeleteयहां हिसाब उलटा है, मेरी ग्यारह साल की बिटिया ही मुझे व्यवस्थित रहने के पाठ पढ़ाती रहती है...
जय हिंद...
व्यवस्थित घर ..व्यवस्थित ज़िंदगी ..पर घर घर ही लग्न चाहिए कोई होटल नहीं ... कभी कभी बिखरी चीज़ों से भी जीवंतता बनी रहती है ..बहुत ज्यादा व्यवस्थित होने से जड़ता का आभास होता है ...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट विचारणीय है
व्यवस्थित परिवेश, हमेशा ही सुखकारी होता है ..
ReplyDeleteपर समय और मेहनत अपनी-अपनी ...?
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 07-07- 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- प्रतीक्षारत नयनो में आशा अथाह है -
पूर्ण रूप से सहमत हूँ |
ReplyDeleteअच्छा लगता है आपको पढकर .. ऐसा विषय लेते हैं,जिसे सोचना भी मुश्किल होता है। फिर सटीक लेखन।
ReplyDeleteबहुत बधाई
व्यवस्था हर जगह जरुरी है.और व्यवस्थित परीवश एमन ही मस्तिष्क और समाज का विकास संभव है.
ReplyDeleteसहज भाषा में गहन चिंतन.
छोटी छोटी बातों को लेकर संजीदा मोड देते हैं आप ... बहुत अच्छा लिखा है ...
ReplyDeleteप्रवीण जी आपके इस आलेख से यदि किसी का जीवन सबसे सुव्यवस्थित होने वाला है तो वो मैं हूं... लेकिन ना जाने कई बार खुद से अनुशाषित होने की प्रतिज्ञा ली है.. फिर एक दो दिन में वही ढ़ाक के तीन पात... फिर भी...
ReplyDeleteव्यवस्थित होना बहुत जरूरी है फिर चाहे रोज के कार्यकलाप हों, समाज हो या देश
ReplyDeleteअपने कपड़ों से ही सही, पूछिये कि क्या आपको उन सब कपड़ों की आवश्यकता है? जब तक आप संतुष्ट न हो जायें किसी गरीब को दिये जाने वाले थैले में उनको डालते रहिये।
ReplyDeleteवाह आपने तो मेरे दिल की बात लिख दी...मैं इस बात को यदा कड़ा क्रियान्वित करता रहता हूँ...हमेशा की तरह प्रेरक लेख.
नीरज
आपकी पोस्ट पढ़ कर एक शेर याद आ गया...सुनिए:-
ReplyDeleteअपना ग़म ले के कहीं और ना जाया जाए
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए
:निदा फाज़ली
दिलचस्प लेख...
ReplyDeleteमुझे तो व्यवस्थित घर ही पसंद आता है...
आधुनिक इंटीरियर डेकोरेशन का ‘हिडेन कंसेप्ट’ भी मुझे पसंद है...
कोई भी क्षेत्र चुनिये, घर से ही सही, अपने कपड़ों से ही सही, पूछिये कि क्या आपको उन सब कपड़ों की आवश्यकता है? जब तक आप संतुष्ट न हो जायें किसी गरीब को दिये जाने वाले थैले में उनको डालते रहिये।
ReplyDeleteयही प्रश्न अब हर ओर पूछे जाने हैं, हर तन्त्र सरल होना है, हर तन्त्र व्यवस्थित होना है, हर तन्त्र सौन्दर्यपूर्ण होना है।
क्या बात कही.....
साधु साधु...
यह जीवन दृष्टिकोण बन जाए तो जीवन जगत क्योंकर न सुन्दर बनेगा...
Bahut khoob sir ji,
ReplyDeletesuniyojit byawastha hi kisi kary ko safal banati hai.
ap bhi ayen.... hame padhe aur hamara hausla badhayen.
व्यवस्थित रहें खुस रहें
ReplyDeleteहमारे यहाँ कई बार पंगा हो जाता है तौलिये बेड पर क्यों रखे? के लिए
bahut hi sach kaha hai aapne hum bhi bahut vyavasthit prakriti ke hai her vastu jagah per honi sahi hai
ReplyDeleteachha hai ji.....
ReplyDeleteअपनी कहें तो हम हर आने वाले वीकेंड से व्यवस्थित होने की सोचते हैं... :)
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी ने सही कहा....हमें तो ऊपरवाला फोटो घर का लगता है, नीचे वाला होटल का ....
ReplyDeleteव्यवस्था की अव्यवस्था के बीच व्यवस्थित होने की सलाह अनुकरणीय!!
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया आलेख है व्यवस्थित जीवन पर,आजकल 5S के नाम पर बहुत प्रसिद्ध भी हो रहा है,
ReplyDeleteआभार, विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
एक बार पुस्तकें फैली देखकर मेरी बेटी ने अपने बेटॆ से कहा कि यह सब क्या फैला रखा है? पुत्र का सरल उत्तर था- हां मां, यह घर है :)
ReplyDeleteसारगर्भित लेख.
ReplyDeleteसब कुछ व्यवस्थित ही आकर्षित करता है.अच्छा लगता है.सुलझा -सुलझा सा सब..
कुछ लोग व्यवस्थित होने के नाम से ही डर जाते हैं। अव्यवस्था का भी अपना मजा होता होगा। कोई सामान खोजना हो तो दो घंटे जो लगते हैं!
ReplyDeleteअनुभवों पर आधारित पे्ररक पोस्ट। अनुशासन के बिना कोई भी व्यवस्था कामयाब नहीं होती।
ReplyDeleteबात सोलह आने सही है
ReplyDeleteशब्दों और विचारों का सु-व्यवस्थित लेख ।
ReplyDeletePraveen ji aapke blog par aakar bahut achcha laga bahut mahatvpoorn baaton ki aur prakash dala hai .bahut achcha likhte hain aap.apne blog par bhi aane ke liye aamantrit karti hoon samay mile to access kijiyega.
ReplyDeleteहर तन्त्र सरल होना है, हर तन्त्र व्यवस्थित होना है, हर तन्त्र सौन्दर्यपूर्ण होना है
ReplyDelete-निश्चित ही...यही खुशहाली लायेगा.
आपकी सुन्दर प्रस्तुति से सहज व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त हुआ| सारगर्भित लेख| धन्यवाद|
ReplyDeleteसुब्यवस्थित सुगठित क्रमबद्धता जीवन सौंदर्य का पर्याय है... , हर तन्त्र का सौन्दर्यपूर्ण होना पूर्णता की और अग्रसर करता है....अति सारगर्भित सौन्दर्यपूर्ण रचना....सादर !!!
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति.....
ReplyDeleteआस पास यदि सब कुछ व्यवस्थित हो तो अपना मन भी व्यवस्थित या सुकून से भरा हुआ लगता है .
ReplyDeleteकुछ भी व्यवस्थित अच्छा तो लगता है पर व्यवस्थित करना अच्छा नहीं लगता
ReplyDeleteAbsolutely right...
ReplyDeleteProper arrangement of things and doing things beforehand reduces a lot of clutter and confusion.
My mom always tell me to do the same. But sometimes being the " Lazy Me" version of mine is dominant I left things mismanaged and later...... its better not to disclose here what happens when my mom come back in my room :D
छोटी-छोटी बातों को भी आप बड़ा वितान दे देते हैं...साधुवाद.
ReplyDeleteछोटी-छोटी बातों को भी आप बड़ा वितान दे देते हैं...साधुवाद.
ReplyDeleteव्यवस्थित होना एक साधारण सी आदत है...पर सिर्फ इस छोटी सी आदत से जिंदगी बेहद आसान हो जाती है.
ReplyDeleteमुझसे प्रबंधन नहीं हो पाता...बहुत कोशिश करती हूँ घर को व्यवस्थित रखने का...आपकी ये पोस्ट पढ़ कर कुछ बदलने की इच्छा हो रही है.
आभार.
सुव्यवस्थित जीवन शैली निस्सन्देह जीवन धारा को सहज बनाये रखती है ,पर छोटे बच्चों वाले घर में एक दिन उनकी अव्यवस्था के नाम भी होना चाहिये ,उनके बचपन को बनाये रखने के लिये :))
ReplyDeleteकल शनिवार (०९-०७-११)को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी ..नयी -पुरानी हलचल पर ..आइये और अपने शुभ विचार दीजिये ..!!
ReplyDeletepost padkar acha laga...meaningful post.
ReplyDeleteबहुत सच कहा है...एक सुव्यवस्था जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमारी उपलब्धियों का कारण बन सकती है..बहुत सार्थक आलेख
ReplyDeleteसत्य वचन, व्यवस्थित रहना आवश्यक भी है और श्रेयस्कर तो निःसंदेह है ही।
ReplyDeleteKise achcha na lagega suwyawasthit ghar ya office ? par hme apane aap ko niyat sthan par wastu rakhne ke liye prashikshit karna padta hai. Fir bhee kabhee kabhee manmani karne ko ji to karta hee hai.
ReplyDeleteज्यादा व्यवस्थित होना भी आराम में खलल डाल सकता है | काफी घरो में बच्चो को पलंग पर केवल इसलिए नहीं खेलने दिया जाता है कि चद्दर में सलवट पड जायेगी | घर को घर रहने दिया जाए उसे ना तो कबाड़ी की दूकान बनाए और ना ही पांच सितारा होटल |
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी और प्रेरणादायक पोस्ट। व्यवस्था का जीवन की परेशानियाँ कम करने में बहुत भूमिका। है।
ReplyDeleteअक्सर ठीक स्कूल जाते हुये सही समय पर तैयार होने पर भी कोई एकाध चीज रुमाल, जुराब या पेन आदि न मिलने पर लेट हुआ जाता है। विवाह के बाद पत्नी जी द्वारा चीजों को सही जगह रखने से इस बारे में काफी सुधार हुआ है।
"उपयोग के बाद किसी वस्तु को समुचित स्थान पर रखने में उससे कहीं कम श्रम और समय लगता है।"
इस मामले में तो हम भुक्त भोगी हैं। अक्सर जरुरी कागजात को कहीं रख देते हैं कि फिर सम्भालेंगे, वो फिर आता नहीं और जरुरत पड़ने पर पूरे घर में तलाशी अभियान छेड़ना पड़ता है। समय तो नष्ट होता ही है और परेशानी अलग झेलनी पड़ती है।