स्वभाववश ओडी सड़क पर एक जाते हुये वाहन के पीछे भागता है। चौराहे पर पहुँचते पहुँचते सामने से एक दूसरा वाहन निकलता है, ओडी उसके पीछे भागने लगता है। अगले चौराहे पर पुनः यही क्रम। भागते रहने की शक्ति होने तक वह यही करता रहता है और जब थक कर बैठता है तब उसे घर की याद आती है। वापस पहुँचने में वह घर का रास्ता भूल जाता है।
फिल्म मनोरंजक मोड़ ले अन्ततः सुखान्त होती है, ओडी को घर लाने में गारफील्ड महोदय ही महत भूमिका निभाते हैं।
ओडी के भटकने के दृश्य पर थोड़ा और विचार करें। एक के बाद एक लक्ष्य, सारे के सारे लक्ष्य ऐसे जो प्राप्त होना संभव नहीं, लक्ष्य प्राप्त होने पर भी कोई लाभ नहीं, इस निरर्थक प्रयास में होश ही नहीं कि कहाँ भाग रहे हैं, भागने में इतने मगन कि राह पर ध्यान ही नहीं, अन्ततः निष्कर्ष, घर से दूर और असहाय।
ओडी का स्वभाव जो भी रहा हो, क्या हम मनुष्यों को सच में पता नहीं चल पाता कि हमारा स्वभाव क्या है? कौन सा लक्ष्य ग्राह्य है, कौन सा त्याज्य है, गति कितनी अधिक है, मार्ग से कितना भटकाव हो गया है, घर से कितना दूर आ गये हैं, कितना अभी और चलना है, कब तक वापस पहुँचना होगा, कब विश्राम होगा? इनके उत्तर निश्चय ही केन्द्र-बिन्दु से नियन्त्रित सम्पर्क बनाये रखते हैं, पर राह में आये विचारों से भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण है, लक्ष्य की उपादेयता। क्या लक्ष्य आपके योग्य है, क्या लक्ष्य आपके वर्तमान जीवन-स्तर को और उठाने में सक्षम है?
चरैवेति चरैवेति अनुपालक मन्त्र है, उसमें चलते रहने का संदेश है, पर जीवन में हम कब भागने लगते हैं, पता ही नहीं चलता है और जब तक पता चलता है, हम अपने घर से बहुत दूर होते हैं, स्मृतिभ्रम की स्थिति में, असहाय, अपनेपन में कुछ समय बिताने को लालायित।
गति, ऊर्जा, उपादेयता, सुख आदि के विविध दिशोन्मुखी वक्तव्यों के बीच खड़ा है हमारा जीवन, एक के बाद एक न जाने कितने लक्ष्य सामने से निकले जा रहे हैं और निकला जा रहा है मिला हुआ समय।
इस गतिशीलता में आपका हर निर्णय महत्वपूर्ण है, एक के बाद एक।
इसे इस नजरिये से देख सब कुछ आपबीती सी लगी बातें:
ReplyDeleteराह की सुधि नहीं, अन्ततः स्वयं से कोसों दूर और स्वयं को ढूढ़ने की आकांक्षा।
-चिन्तन में हूँ अब!!
भागने में इतने मगन कि राह पर ध्यान ही नहीं, अन्ततः निष्कर्ष, घर से दूर और असहाय।
भागने में इतना मगन की घर का रास्ता ही भूल जाए ....
ReplyDeleteहर तरह है बेशुमार आदमी फिर भी तन्हाईओं का है शिकार आदमी !
सही कहा आपने |
ReplyDeleteलक्ष्यों को प्राप्त करने के चक्कर में व्यक्ति कितना खो चूका होता है वह तो चिंतन करने के बाद ही उसे पता चलता है |
बहुत अच्छा लगा ||
ReplyDeleteबधाई |
लक्ष्य साफ हो तो ही दौड़ना सार्थक होता है।
ReplyDeleteमनुष्य का सचमुच अपना भाग्य विधाता है या बस निमित्त मात्र ही ....या
ReplyDeleteप्रारब्ध का प्रगटन ही.....ये गुत्थियां कहाँ सुलझी हैं अभी तक ...
भागेंगे नहीं तो कहेंगे कि घाणी का बैल है, बस एक ही जगह घूमे जा रहा है।
ReplyDeleteलोग भाग रहे हैं,लेकिन बिना किसी 'उद्देश्य' के नहीं! मैंने कम समय में ही महसूस है की अधिकांश लोग अर्थ की आकांक्षा में बिना सोचे समझे,आंधी दौड़ का हिस्सा बने हुए हैं !वे यदि जीवन के सुख के लिए ऐसा कर रहे हैं तो इससे तो जीवन का चैन ज़्यादा खो रहा है! बिना सार्थक उद्देश्य के ऐसी दौड़ अंततः अवसाद का कारण बनती है.
ReplyDeleteबहुत ही सामयिक और ज़रूरी टिप !
अब गारफील्ड कैसे देखी जाए ...सुबह सुबह उलझा दिया आपने :-)
ReplyDeleteशुभकामनायें !
पता नहीं मेरे और मेरे जैसे कितने और लोगों की बात आपने कह दी यहाँ..
ReplyDeleteसब पता होता है, पर एक धुन रहती है ... और एक ज़िद भी
ReplyDeleteसफलता - असफलता मानव की सोच है ....उसे तो बस कर्म करना चाहिए ....अगर लक्ष्य स्पष्ट हो तो भागने में मजा आता हो और ना हो तो फिर जितना चल लो भाग लो कोई लाभ नहीं मिलने वाला ..!
ReplyDeleteकई बार तो लोग यही मानने को तैयार नहीं होते कि वो वास्तव में भटक गए हैं. इस सन्दर्भ में पद्म सिंह जी की एक रचना उल्लेखनीय है -
ReplyDeletehttp://padmsingh.wordpress.com/2010/03/19/%E0%A4%B9%E0%A5%87-%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B0/
सुन्दर जीवन-दर्शन !
ReplyDeleteबस एक इस उम्मीद में, कुछ दिन तसल्ली से कटें|
ReplyDeleteखुद अपने से ही - आप, कटता जा रहा हर आदमी|| [मेरी ई किताब से]
प्रवीण भाई विषय को ढूँढना और फिर बात में से बात निकालना कोई आप से सीखे|
आपके लेख प्रभावित और प्रेरित करते हैं...
ReplyDeleteसजग करता सुन्दर आलेख...
ReplyDeleteसबकी आपबीती यही है
ReplyDeleteढूंढने निकले थे उसको और खुद को खो दिया ...
जीवन में हम कब भागने लगते हैं, पता ही नहीं चलता है और जब तक पता चलता है, हम अपने घर से बहुत दूर होते हैं, स्मृतिभ्रम की स्थिति में, असहाय, अपनेपन में कुछ समय बिताने को लालायित।
ReplyDeleteकितना सुंदर चिन्तन ढूंढ लाये आप ......
गारफील्ड मेरा पसंदीदा कार्टून करेक्टर है.... :)
गारफील्ड मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक है...
ReplyDeleteगारफील्ड के बहाने गहन सार्थक चिन्तन....
आमिर ख़ान ने सही ही गाना बनाया है...
ReplyDeleteभाग...भाग...बोस डी के...भाग...भाग...
वाकई हम सारे ही डी के बोस हैं...
जय हिंद...
ओडी के भटकने के दृश्य पर थोड़ा और विचार करें। एक के बाद एक लक्ष्य, सारे के सारे लक्ष्य ऐसे जो प्राप्त होना संभव नहीं, लक्ष्य प्राप्त होने पर भी कोई लाभ नहीं, इस निरर्थक प्रयास में होश ही नहीं कि कहाँ भाग रहे हैं, भागने में इतने मगन कि राह पर ध्यान ही नहीं, अन्ततः निष्कर्ष, घर से दूर और असहाय
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है ...निरंतर भागना व्यर्थ है ...थोडा रुक कर मनन चिंतन करने से भटकाव नहीं होगा ...!!
सार्थक प्रस्तुति ...!!
क्या लक्ष्य आपके योग्य है, क्या लक्ष्य आपके वर्तमान जीवन-स्तर को और उठाने में सक्षम है?
ReplyDelete*लक्ष्य की उपादेयता अगर जीवन में समझ आ जाये तो मंजिल पाना मुश्किल नहीं होता.
- मार्गदर्शक लेख.
गहन विचारात्मक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकभी कभी भाग भाग कर ही सही रास्ता पता चलता है |
ReplyDeleteलक्ष्यों का अधिकाधिक होना इस भटकाव , और भागम भाग का मूल है
ReplyDeleteहम तो डी वी डी लेने जा रहे हैं फिल्म की.
ReplyDeleteये कसक तो हर भागने वाले के मन में रह ही जाती है और इस दौड़ में इतना आगे निकल चुका होता है की चाहने पर भी वापसी कठिन ही है |
ReplyDeleteयहाँ ये भी तो प्रश्न उठता है? तरक्की !कैसे हासिल की जाय भागकर या एक जगह खड़े होकर ?
या तरक्की किसे कहते है ?
सुन्दर..लाजवाब...जीवन की आपाधापी पर गहराई से विचार करने पर विवश करता आलेख...
ReplyDeleteकुछ इसी तरह के विचारों से युक्त लेख अपने ब्लॉग पे आज ही लिखा है..आपके उल्लिखित कथ्य तक पहुँचने का प्रयास किया पर पता नहीं कितना पहुँच सका...आपकी प्रतिक्रिया चाहूँगा...
आपका स्वागत है- www.filmihai.blogspot.com पर
ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं सोचा था,बहुत अच्छा,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सर बहुत सुन्दर..चलना ही जीवन है , दौड़ना मौत !
ReplyDeleteक्या हम मनुष्यों को सच में पता नहीं चल पाता कि हमारा स्वभाव क्या है? कौन सा लक्ष्य ग्राह्य है, कौन सा त्याज्य है, गति कितनी अधिक है, मार्ग से कितना भटकाव हो गया है, घर से कितना दूर आ गये हैं, कितना अभी और चलना है, कब तक वापस पहुँचना होगा, कब विश्राम होगा?
ReplyDeleteआपके आलेख के उपरोक्त शब्द सोचने को बाद्य करते हैं, पर शायद जीवन में जब ये सोचने का समय आता है तब तक काफ़ी देर हो चुकी होती है. लगता है यंत्रवत यह जीवन चलता जा रहा है. शुभकामनाएं.
रामराम
सार्थक सन्देश परक लेख प्रवीन जी बधाई निम्न सटीक कहा आप ने
ReplyDeleteचरैवेति चरैवेति अनुपालक मन्त्र है, उसमें चलते रहने का संदेश है, पर जीवन में हम कब भागने लगते हैं, पता ही नहीं चलता है और जब तक पता चलता है, हम अपने घर से बहुत दूर होते हैं, स्मृतिभ्रम की स्थिति में, असहाय, अपनेपन में कुछ समय बिताने को लालायित।
bilkul sahi likha hai aapne hum ek sath kai raste chun leta per lakshya bhool jate hai
ReplyDeletebahut sarthak aalekh .
ReplyDeleteगति, ऊर्जा, उपादेयता, सुख आदि के विविध दिशोन्मुखी वक्तव्यों के बीच खड़ा है हमारा जीवन, एक के बाद एक न जाने कितने लक्ष्य सामने से निकले जा रहे हैं और निकला जा रहा है मिला हुआ समय..
ReplyDeleteगहन चिंतन ..लक्ष्य सुनिश्चित हो तो दिशा सही होती है भागने कि पर जब मंजिल का पता नहीं तो निरुद्देश्य भागना भी पड़ता है पता पाने को ..
जीवन में हम कब भागने लगते हैं, पता ही नहीं चलता है और जब तक पता चलता है, हम अपने घर से बहुत दूर होते हैं, स्मृतिभ्रम की स्थिति में, असहाय, अपनेपन में कुछ समय बिताने को लालायित।
ReplyDeleteसार्थक संदेश देती रचना।
तृष्णा सबको खूब छली
ReplyDeleteभाग दौड़ में साँझ ढली
चाल सम्हल कर चलना प्यारे
दुर्घटना से देर भली.
ओडी के लिए हमारे लोकमानस का 'कोल्हू का बैल' कैसा?
ReplyDeleteकई दिनों बाद ब्लॉग पढना षुरु किया और पहली ही पोस्ट ने आत्म चिन्तन, आत्म मन्थन करने की सलाह दे दी।
बिल्कुल सही.
ReplyDeleteबहुत सही कहा अगर जीवन में लक्ष्य नहीं तो कुछ भी मिल पाना संभव नहीं सिर्फ भागते रहने से लक्ष्य की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती जैसे सिर्फ सपने देखने से सब कुछ नहीं मिल सकता उसके लिए लक्ष्य और मेहनत दोनों जरूरी है | बात को सरलता से कहने सुन्दर अंदाज़ |
ReplyDeleteतीर्थ नहीं है केवल यात्रा, लक्ष्य नहीं है केवल पथ ही...
ReplyDeleteनिष्प्रयोजन भागते रहना , और ब्लैक होल्स में समां जाना , जीवन प्रकाश को धुंधला करता है
ReplyDeleteआगे तो सबको बढ़ना ही चाहिए, लेकिन पुरानी चीजो को महत्ता को हमेशा याद रखना चाहिए.
ReplyDeletebahut khoob...! ache seekh de aapne iss post k zariye..!
ReplyDeletegarfield hume bhi bahut pasand tha bachpan main
चरैवेति चरैवेति अनुपालक मन्त्र है, उसमें चलते रहने का संदेश है, पर जीवन में हम कब भागने लगते हैं, पता ही नहीं चलता है और जब तक पता चलता है, हम अपने घर से बहुत दूर होते हैं, स्मृतिभ्रम की स्थिति में, असहाय, अपनेपन में कुछ समय बिताने को लालायित।
ReplyDeleteजीवन का सत्य यही है. अक्सर यह हम तब समझ पाते हैं जब बहुत देर हो चुकी होती है.
न जाने कहां जाकर खत्म होगी ये दौड...
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तांत्रिक शल्य चिकित्सा!
…ये ब्लॉगिंग की ताकत है...।
विचारणीय !!
ReplyDeleteहर निर्णय महत्वपूर्ण होता है ... भागते हुवे कभी कभी रुक के सोचना जरूरी होता है ... पर रुकना क्या संभव होता है ..
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित और प्रेरक प्रस्तुति..सच में आज हम सब भागते भागते अपने घर का रास्ता भूल गये हैं.
ReplyDeleteचरैवेति चरैवेति अनुपालक मन्त्र है, उसमें चलते रहने का संदेश है, पर जीवन में हम कब भागने लगते हैं, पता ही नहीं चलता है और जब तक पता चलता है, हम अपने घर से बहुत दूर होते हैं,
ReplyDeleteबहुत सच्ची अच्छी बात. आपका लेखन बेजोड़ है.
नीरज
हर ओडी को गारफ़ील्ड मिले, हम तो ये दुआ करते हैं।
ReplyDeleteहम तो चलते चलते ही यहां पहुंचे हैं।
ReplyDeletegood movie and yes one should keep ourselves on his place and should check it.
ReplyDeleteSuperb post
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखते हैं आप. अपनी बात रखने का यइ अंदाज़ काफी पसंद आता है...आपकी तुलना सोचने पर विवश करती है.
ReplyDeleteसच मच जीवन निकलता जा रहा है बिना लक्ष्य की प्राप्ति के ही |
ReplyDeletewaha bahut khub...aaj pahli bar aapko padha.....aapki lekhni man ko bha gayi.......aabhar
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