भविष्य में क्या बनना है, इस विषय में हर एक के मन में कोई न कोई विचार होता है। बचपन में वह चित्र अस्थिर और स्थूल होता है, जो भी प्रभावित कर ले गया, वैसा ही बनने का ठान लेता है बाल मन। अवस्था बढ़ने से भटकाव भी कम होता है, जीवन में पाये अनुभव के साथ धीरे धीरे उसका स्वरूप और दृढ़ होता जाता है, उसका स्वरूप और परिवर्धित होता जाता है। एक समय के बाद बहुत लोग इस बारे में विचार करना बन्द कर देते हैं और जीवन में जो भी मिलता है, उसे अनमने या शान्त मन से स्वीकार कर लेते हैं। धुँधला सा उद्भव हुआ भविष्य-चिन्तन का यह विचार सहज ही शरीर ढलते ढलते अस्त हो जाता है।
कौन सा यह समय है जब यह विचार अपने चरम पर होता है? कहना कठिन है पर उत्साह से यह पल्लवित होता रहता है। उत्साह भी बड़ा अनूठा व्यक्तित्व है, जब तक इच्छित वस्तु नहीं है तब तक ऊर्जा के उत्कर्ष पर नाचता है पर जैसे ही वह वस्तु मिल जाती है, साँप जैसा किसी बिल में विलीन हो जाता है। उत्साह का स्तर बनाये रखने के लिये ध्येय ऐसा चुनना पड़ेगा जो यदि जीवनपर्यन्त नहीं तो कम से कम कुछ दशक तो साथ रहे।
पता नहीं पर कई आगन्तुकों का चेहरा ही देखकर उनके बारे में जो विचार बन जाता है, बहुधा सच ही रहता है। उत्साह चेहरे पर टपकता है, रहा सहा बातों में दिख जाता है। जीवन को यथारूप स्वीकार कर चुके व्यक्तित्वों से बातचीत का आनन्द न्यूनतम हो जाता है, अब या तो उनका उपदेश आपकी ओर बहेगा या आपका उत्साह उनके चिकने घड़े पर पड़ेगा।
मुझे बच्चों से बतियाने में आनन्द आता है, समकक्षों से बात करना अच्छा लगता है, बड़ों से सदा कुछ सीखने की लालसा रहती है। पर युवाओं से बात करना जब भी प्रारम्भ करता हूँ, मुझे प्रश्न पूछने की व्यग्रता होने लगती है। अपने प्रत्येक प्रश्न से उनका व्यक्तित्व नापने का प्रयास करता हूँ। युवाओं को भी प्रश्नों के उत्तर देना खलता नहीं है क्योंकि वही प्रश्नोत्तरी संभवतः उनके मन में भी चलती रहती है। आगत भविष्य के बारे में निर्णय लेने का वही सर्वाधिक उपयुक्त समय होता है।
मुझे दो ही प्रश्न पूछने होते हैं, पहला कि आप जीवन में क्या बनना चाहते हैं, दूसरा कि ऐसा क्यों? दोनों प्रश्न एक साथ सुनकर युवा सम्भल जाते हैं और सोच समझकर उत्तर देना प्रारम्भ करते हैं। उत्तर कई और प्रश्नों को जन्म दे जाता है, जीवन के बारे में प्रश्नों का क्रम, जीवन को पूरा खोल कर रख देता है। चिन्तनशील युवाओं से इन दो प्रश्नों के आधार पर बड़ी सार्थक चर्चायें हुयी हैं। व्यक्तित्व की गहराई जानने के लिये यही दो प्रश्न पर्याप्त मानता हूँ। वह प्रभावित युवा होगा या प्रभावशाली युवा होगा, इस बारे में बहुत कुछ सही सही ज्ञात हो जाता है।
जब तक इन दो प्रश्नों को उत्तर देने की ललक मन में बनी रहती है, उत्साह अपने चरम पर रहता है।
आप स्वयं से यह प्रश्न पूछना प्रारम्भ करें, आपको थकने में कितना समय लगता है, यह आपके शेष मानसिक-जीवन के बारे में आपको बता देगा। यदि प्रश्नों की ललकार आपको उद्वेलित करती है तो मान लीजिये कि आपका सूर्य अपने चरम पर है।
मैं नित स्वयं से यही दो प्रश्न पूछता हूँ, मेरा उत्तर नित ही कुछ न कुछ गुणवत्ता जोड़ लेता है, जीवन सरल होने लगता है पर उत्तर थकता नहीं है, वह आगे भी न थके अतः जीवन कुछ व्यर्थ का भार छोड़ देना चाहता है। एक दिन उसे शून्य सा हल्का होकर अनन्त आकाश में अपना बसेरा ढूढ़ लेना है।
आप भी वही दो प्रश्न स्वयं से पूछिये।
अपना सूर्य चरम पर है:)
ReplyDeleteआगामी जीवन की झलक आपके दो प्रश्नों के उत्तर से काफी-कुछ मिल जाती है.हालाँकि ,आज हमारे स्वभाव में भी कृत्रिमता आ गयी है.हम थोड़े समय के लिए आदर्शवाद का लबादा भी ओढ़ लेते हैं,पर अंततः अपने को ज्यादा गुप्त नहीं रख सकते !
ReplyDeleteबस इन्हीं दो प्रश्नों के संग बहे जा रहे हैं...उत्तम आलेख.
ReplyDeleteइन्ही दो प्रश्नों में जीवन का सार है....
ReplyDeleteआपको थकने में कितना समय लगता है'
ReplyDeleteथकन भी सापेक्ष है. कार्य में रूचि के स्तरानुसार परिवर्तित होता रहता है.
सार्थक दो प्रश्न
प्रश्नों की उथलपुथल मची ही रहती है ...ऐसा क्यों , ऐसा क्यों नहीं !
ReplyDeleteसार्थक दार्शनिक चिंतन !
प्रश्नों की धार तेज होती ही है और वह खुद से हो तो दुधारी जैसी असरदार हो जाती है.
ReplyDeleteमैं जानता हूँ कि आपका ऐसा पूछना निश्चित ही सर्वतोभद्र मंगलमयी कामना के वशीभूत होता मगर मैं इन्ही दो प्रश्नों को सबसे असहज पाता हूँ ..मनुष्य का जीवन बहुत ही अनिश्चित और दुर्निवार है -ऐसे प्रश्न क्या पूछे जाना चाहिए ... :)
ReplyDeleteसूर्य उत्तरायण. दक्षिणायन होता रहेगा, प्रश्न उठेंगे तभी मनन होगा .अपने लिए किये गए प्रश्नों के उत्तर से संतुष्ट होना और उस दिशा में कार्यशील होना , जीवन का अभीष्ट है .सुँदर चिंतन .
ReplyDeleteइन उत्तर खोजते प्रश्नों ने ही सभ्यता और संस्कृति का विकास किया है। इनका जवाब ढूँढने के क्रम में ही मानवता आगे बढ़ पायी है। मनुष्य विवेकशील है इसलिए इन प्रश्नों की डोर पकड़कर बहुत दूर तक चला आया है और आगे बढ़ता ही जा रहा है।
ReplyDeleteजिज्ञासा और जिजीविषा मनुष्य को आगे बढ़्ते रहने की दो सबसे बड़ी प्रेरक शक्तियाँ है। आपका आलेख बहुत अच्छा है। हमें विश्वास है कि यह उत्साह बना ही रहेगा।
जीवन की शेष उर्जा के आंकलन हेतु ये प्रश्न अति आवश्यक हैं.उत्तम आलेख में आपका गहन चिंतन हमेशा की तरह और आपकी ही तरह मुस्कुरा रहा है.
ReplyDeleteमुझे स्वयम से यह पूछने का समय कभी नहीं मिला। अपन तो - जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया ...
ReplyDeleteइन्हीं दो प्रश्नों के साथ जीवन कार्यशील है| सुन्दर सार्थक दार्शनिक चिंतन|
ReplyDeleteगहन चिंतन के बाद लिखा प्रभावी आलेख ...
ReplyDeleteसकारात्मक सोच की दिशा बता रहा है ...!!
उत्साह भी बड़ा अनूठा व्यक्तित्व है, जब तक इच्छित वस्तु नहीं है तब तक ऊर्जा के उत्कर्ष पर नाचता है पर जैसे ही वह वस्तु मिल जाती है, साँप जैसा किसी बिल में विलीन हो जाता है।
ReplyDeleteगहराई लिए हुए है आपका व्यक्तित्व |
चिंतनीय प्रश्न |
लक्ष्य प्राप्ति के बाद जश्न --
चलेगा ||
पर अधिकाँश पहले ही मना लेते हैं जश्न--
यह निश्चित खलेगा |
जीवन-पर्यंत ||
बेशक उम्र के आखिरी पडाव पर हूँ लेकिन सूर्य को अभी भी मुट्ठी मे रखती हूँ ताकि जीने की ऊर्जा बनी रहे। सार्थक चिन्तन। शुभकामनायें।
ReplyDeleteसोचकर बताते हैं।
ReplyDeleteआपकी एक भी पोस्ट नज़र से छूटती नहीं लेकिन हल्की फुल्की टिप्पणी से लेख का वज़न कम न हो जाए इसलिए यूँ ही निकल जाते हैं..
ReplyDeleteथकना क्यों..थक गए तो रुक गए..और रुकना तो मौत के बराबर हुआ..बस चलते ही जाना ज़िन्दगी है..जीवन भर दो नही अनगिनत प्रश्न दिमाग में कौंधते हैं..कुछ सुलझ जाते है...कुछ उलझे रहते है...यूँ ही जीवन चलता रहता है...
सार्थक आलेख।
ReplyDeleteखुद से भी प्रश्न पूछते ही रहना चाहिए।
"उत्साह भी बड़ा अनूठा व्यक्तित्व है, जब तक इच्छित वस्तु नहीं है तब तक ऊर्जा के उत्कर्ष पर नाचता है पर जैसे ही वह वस्तु मिल जाती है, साँप जैसा किसी बिल में विलीन हो जाता है"
ReplyDeleteवाह...विलक्षण पोस्ट...उत्साहीन व्यक्ति और मुर्दे में कोई विशेष अंतर नहीं है...उत्साहहीन व्यक्ति सिर्फ चलता है जबकि मुर्दा नहीं...बस.
नीरज
actually prashaant ji, bhaagy ka apna chakr hota hai . jo ham banna chahte hai , wo aksar ban nahi paate.. lekin tab aur ab ke samay me bahut fark hai ,. aaj ka yuva jyada bada canvas liye hue hai chahto ka !!. choices jyada hai , isliye tni naumeedi nahi hoti hai aaj ke baccho ko .. lekin agar ham apne aapko dekhe to 40 saal ke baad ye prashn thoda sa nirarthak sa lagta hai . aisa main sochta hoon..
ReplyDeletelekin at the same time , jo main ban nahi saka, uski kuch kami ,ko main abhi poori kar leta hoon .
is lekh ke liye bahut dhanywaad.
vijay
बिल्कुल सही कहा है आपने इस आलेख में ।
ReplyDeleteजब तक प्रश्न रहेंगे सही उत्तरों की खोज चलती रहेगी - जीवन की गतिशीलता को भी दिशा मिलती रहेगी !
ReplyDeleteप्रश्नों के साथ उत्साह बना रहता है उत्तर मिलने पर आनंद यानि उपभोग की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है
ReplyDeletesach kaha ... inhin do prashnon mein sab hai
ReplyDeleteभविष्य में क्या बनना है...अपने आप में बहुत सब्जेक्टिव है
ReplyDeleteइन दो प्रश्नों से आजकल जूझ रहा हूं। पर यह भी सच है कि पल पल बदलती दुनिया में हर प्रश्न का उत्तर क्षण भर के लिए ही स्थायी होता है।
ReplyDeleteइन दो प्रश्नों से आजकल जूझ रहा हूं। पर यह भी सच है कि पल पल बदलती दुनिया में हर प्रश्न का उत्तर क्षण भर के लिए ही स्थायी होता है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है आपने यहां ...हमेशा की तरह बेहतरीन आलेख ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर.. जीवन में अक्सर कई प्रश्न उठते रहते हैं। लेकिन इन दो प्रश्नों का अगर उत्तर मिल जाए तो मुझे लगता है कि तीसरे प्रश्न की जरूरत ही नहीं होगी। सच बहुत ही दार्शनिक सोच के साथ लिखा गया है ये लेख.. आभार।
ReplyDeleteनिर्मला कपिला जी की टिप्पणी वाकई युवाओं के लिए प्रेरणा देने वाली है।
बेशक उम्र के आखिरी पडाव पर हूँ लेकिन सूर्य को अभी भी मुट्ठी मे रखती हूँ ताकि जीने की ऊर्जा बनी रहे।
समयानुसार अनुभव और परिस्थितिया हमारे इन विचारो के परिशोधन का कार्य करती है..
ReplyDeleteयह बात बाल्यावस्था से शुरू हो जाती है जब बच्चा शक्तिमान ही मेन ..फिर फिल्म कलाकार पोलिस वाला..फिर डाक्टर इंजिनियर प्रसाशक इत्यादि इत्यादि
क्यों?? का जबाब भी मानव और मष्तिष्क के विकासक्रम के साथ बदलता रहता है
बहुत स्वाभाविक से प्रश्न हैं पर बहुत महत्वपूर्ण....जिंदगी के लिए अनमोल...
ReplyDeleteअरे! हमने तो कभी सोचा ही नहीं कि जीवन में क्या बनना है, बस वही बनते गए जो जीवन बनाता गया.... और अब तो बहुत देर हो चुकी है सोचने के लिए :)
ReplyDeleteमुझे युवाओं से बात करना अच्छा लगता है। लेकिन मैं उन्हें बात करने और सवाल पूछने का मौका देता हूं। उनका उत्साह, जोश, जिज्ञासा मुझमें नया जीवन भरती है।
ReplyDeleteहम तो युवाओं के साथ रहते हैं। शायद युवा बने रहने का इस से आसान तरीका कोई नहीं।
ReplyDeleteहम तो युवाओं के साथ रहते हैं। शायद युवा बने रहने का इस से आसान तरीका कोई नहीं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteआपकी पुरानी नयी यादें यहाँ भी हैं .......कल ज़रा गौर फरमाइए
नयी-पुरानी हलचल
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
हमने कभी सोचा ही नहीं कि हमें क्या बनना है, बस जहाँ आशा की किरण दिखती गई बड़ते गये, जो सोचा था वह बनने नहीं दिया गया, खैर अब न चाहकर भी संतुष्ट होना ही पड़ता है। खैर हम तो शायद ही कभी इन प्रश्नों के उत्तर दे पायें ।
ReplyDeleteपढने के बाद सच्मुच मुखमुद्रा बिल्कुल रोदें के उस थिंकर सी हो गयी!!
ReplyDeleteप्रशन ही हैं जो सोचने क् लिए प्रेरित करते हैं और दिशा देते हैं ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteइन दो प्रश्नों का सही जवाब मिल जाये तो जीवन की राह आसान हो जाती है .
ReplyDeleteप्रभावी लेख .
जीवन में आत्म मंथन तो होना ही चाहिए.सहज बने रहना ही सबसे कठिन है.
ReplyDeleteलेकिन अब आपका दूसरों को तौलने का और उनके मूल्यांकन का सीक्रेट सबको पता चल गया.
ReplyDeleteअच्छा दार्शनिक चिंतन.
अधिकतर लोगों की सोच scalar ही होती है , कठिन होता है, प्रारम्भ से ही सोच को vector बना पाना ।
ReplyDeleteबड़े ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं ये...इसका उत्तर इतना आसान भी नहीं है....पर यह ज़रूरी है की हम इनका उत्तर पता करें तभी जीवन सार्थक हो सकता है.
ReplyDeleteअभी तक तो मुझे प्रश्न ही पता नहीं थे...अब पूछती हूँ...दोनों...
ReplyDelete----यह एक यक्ष प्रश्न है....उम्र के साथ बदलता रहता है...और हर उम्र में हम वह क्यों न बने, एक नया प्रश्न मन को मथता रहता है ..क्योंकि सीखना व ज्ञान एक सतत प्रक्रिया है ..अतः ...
ReplyDelete...मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया....
आपके प्रश्न पूछने की आदत तो मैं समझ सकता हूँ, मेरे से भी आपने कई प्रश्न पूछे..वैसे ये बात भी सही है की वो प्रश्नें ज्यादातर काम के बारे में थी लेकिन फिर भी मुझे उनका जवाब देना अच्छा लगा...
ReplyDeleteऔर वैसे कमाल का लेख है ये...:
अभी तक की जीवन यात्रा में जो विकल्प सामने आते गये उसी में चुनाव कर चलते चले गये और अंततः जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया.
ReplyDeleteइन दोनों प्रश्नों का जवाब आज तक हम नहीं दे पाए ... जवाब की पूर्णतया से पहले कुछ और मन में आ जाता है ..
ReplyDeleteसर आप ने ठीक ही प्रश्न किया है ! ऐसे ही प्रश्न मेरे मन में भी उठे और पूर्ण विराम भी लगा दिया क्योकि आगे का मार्ग और इसके चारो तरफ ...बहुत ही अनुशासनहीन दिखा !
ReplyDeletebahut khoob..inhi pashno me ulajh kar rah gai hai jindagi
ReplyDeleteaapke jiwan ki gunwatta ka raaj to aaj pata chal gaya...aur ab se ham bhi talassh karte hain :)
ReplyDeletesunder, vicharneey post.
कौन सा यह समय है जब यह विचार अपने चरम पर होता है? कहना कठिन है पर उत्साह से यह पल्लवित होता रहता है। उत्साह भी बड़ा अनूठा व्यक्तित्व है, जब तक इच्छित वस्तु नहीं है तब तक ऊर्जा के उत्कर्ष पर नाचता है पर जैसे ही वह वस्तु मिल जाती है, साँप जैसा किसी बिल में विलीन हो जाता है। उत्साह का स्तर बनाये रखने के लिये ध्येय ऐसा चुनना पड़ेगा जो यदि जीवनपर्यन्त नहीं तो कम से कम कुछ दशक तो ''bahut sarthak post hai aapki ve do prashn main bhi swayam se avashay poochhongi.mere blog kaushal par aane ke liye bahut bahut dhanyawad.
ReplyDeleteसार्थक चिंतन !
ReplyDeleteवास्तव में इन दो प्रश्नों का उत्तर ही जीवन की दिशा निर्धारित करता है..बहुत सारगर्भित आलेख..
ReplyDeleteपूरा जीवन ही इस क्या और क्यों की तलाश में बीत जाता है ......
ReplyDeleteप्रश्न पूछने के साथ उस पर मनन और उत्तर की तलाश की जाए तभी इन प्रश्नों की सार्थकता है.
ReplyDeletegreat.......
ReplyDeletesarthak aalekh.....
aapke lekhon me smahit darshan ka put hamesha aakarshit karta hai...sundar aalekh har bar ki tarah...
ReplyDeleteउत्साह ही तो हो जीवन में फिर थकान कैसी । अब क्या बनना चाहते हैं का सिर्फ एक ही उत्तर है अच्छा इन्सान और कोशिश जारी रहेगी मरते दम तक ।
ReplyDeleteइन दो प्रश्नों के उत्तरों से फिर प्रश्नों का जन्म लेना ....बहुत सुंदर चिंतन.....
ReplyDeleteये दो प्रश्न जीवन की सारी उहापोह के जन्मदाता हैं....
इन दो प्रश्नों में ही तो सारा जग सिमटा है......जग की सारी माया सिमटी है. सार्थक चिंतन !
ReplyDeleteबस इन्ही दो प्रश्नों में जीवन का असली सार छिपा है सार्थक चिंतन ,सुन्दर आलेख!...धन्यवाद.. ...
ReplyDeleteप्रवीण जी आप शायद पहली बार मेरे ब्लांग में आए अच्छा लगा । आप की उत्साहित करने वाली टिप्पणियॊं की मुझे हमेशा आवश्यकता होगी. .आभार..
प्रवीण भाई एक बार फिर पते की बात चिपका गये ब्लॉग पर| सही है, उत्तरों से डरेंगे तो आगे कैसे बढ़ेंगे|
ReplyDeleteअब तक तो मुकम्मल जवाब मिला नहीं!:(
ReplyDeleteयही दो प्रश्न किसी युवा को सबसे ज्यादा परेशान करते हैं। कई साल लग जाते हैं इनका उत्तर ढूँढने में।
ReplyDeleteaap ne bhut hi acha likha hi
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