स्वप्न देखने में कोई प्रतिबन्ध नहीं है। वास्तविकता कितना ही द्रवित कर दे, सुधार के उपाय मृगतृष्णावत कितना भी छकाते रहें, पाँच वर्ष पहले किये गये वादों की ठसक भले ही कितनी पोपली हो गयी हो, किलो भर के समाचारपत्र कितना ही अपराधपूरित हो जायें, भविष्य के चमकीले स्वप्न देखने का अधिकार हमसे कोई नहीं छीन सकता है, देखते रहे हैं और देखते रहेंगे। कोई कह सकता है कि संविधान के अनुच्छेद 14 में सबको समानता का अधिकार है और जब कोई भी स्वप्न देखने योग्य बचा ही नहीं तब आप क्यों अपनी नींद में व्यवधान डाल रहे हैं? संविधान का विधान सर माथे, पर क्या करें आँख बन्द होते ही स्वप्न तैरने लगते हैं।
स्वप्न सदा ही बड़े होते हैं, हर अनुपात में। अथाह सम्पदा, पूर्ण सत्ता, राजाओं की भांति, 'यदि होता किन्नर नरेश मैं' कविता जैसा स्वप्न। सामान्य जीवन के सामान्य से विषयों को स्वप्न देखने के लिये चुनना स्वप्नशीलता का अपमान है। राह चलते किसी को प्यार से दो शब्द कह देना स्वप्न का विषय नहीं हो सकता है, पति-पत्नी के प्रेम का स्थायित्व स्वप्न का विषय नहीं हो सकता है, एक सरल या सहज सी जीवनी स्वप्न का विषय नहीं हो सकती है, स्वप्न तो ऐश्वर्य में मदमाये होते हैं, स्वप्न तो प्राप्ति के उद्योग में अकुलाये होते हैं।
मैं अपने स्वप्नों के बारे में सोचता हूँ। पता नहीं, पर मुझे इतने भारी स्वप्न आते ही नहीं हैं? बड़ा प्रयास करता हूँ कि कोई बड़ा सा स्वप्न आये, गहरी साँस भरता हूँ, आकाश की विशालता से एकीकार होता हूँ, पर जब आँख बन्द करता हूँ तो आते हैं वही, हल्के फुल्के से स्वप्न। मेरे स्वप्नों में एक हल्का फुल्का सा प्रफुल्लित बचपन होता है, प्रेमपगा परिवार होता है, कर्मनिरत दिन का उजाला होता है और शान्ति में सकुचायी निश्चिन्त सी रात्रि होती है। इसके बाहर जाने में ऐसा लगता है कि जीवन सीमित सा हो जायेगा।
आप सब भी संभवतः यही चाहते होंगे कि हर जगह पारदर्शिता हो, कहीं शोषण न हो, व्यवस्थायें सरल हों, कोई किसी कार्य को करवाने के लिये पैसा न मांगे। बहुत देशों में जीवन का स्तर इन्हीं छोटी छोटी चीजों से ऊँचा होता गया। हम दुनिया भर की बुद्धि लिये बैठे हैं पर छोटी छोटी चीजों को न अपनाने से विकास-कक्ष के बाहर बैठे अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। चाह हम सबकी भी उसी राह की है जो समतल हो। किसी ने कभी उस पर स्वार्थ की कीलें बिखेरी होंगी, एक कील हमें चुभती है और हम क्रोध में आने वालों के लिये कीलें बिखरेना प्रारम्भ कर देते हैं। एक राह जो सुख दे सकती थी, दुखभरी हो जाती है।
मेरे गहनतम स्वप्नों में मुझे कोई झुका सा दिखता है, उन्हीं समतल राहों में, पास जाकर देखता हूँ चेहरा स्पष्ट नहीं दिखता है, पर उसके हाथ में एक थैला है जिसमें वह राह में पड़ी कीलें समेट रहा है, मैं साथ देने को आगे बढ़ता हूँ, वह कहता है बेटा संभल के, चुभ जायेंगी।
मेरा स्वप्न टूट जाता है।
वह राह में पड़ी कीलें समेट रहा है, मैं साथ देने को आगे बढ़ता हूँ, वह कहता है बेटा संभल के, चुभ जायेंगी।'
ReplyDeleteकौन कहता है आप बड़े स्वप्न नहीं देखते. इससे बड़ा और सार्थक स्वप्न भला और कौन सा हो सकता है.
संकल्प की दिशा में बढ़ते हुए, स्वप्न में मार कन्याएं आती ही हैं.
ReplyDeleteमेरे स्वप्नों में एक हल्का फुल्का सा प्रफुल्लित बचपन होता है, प्रेमपगा परिवार होता है, कर्मनिरत दिन का उजाला होता है.......
ReplyDeleteउसके हाथ में एक थैला है जिसमें वह राह में पड़ी कीलें समेट रहा है, मैं साथ देने को आगे बढ़ता हूँ, वह कहता है बेटा संभल के, चुभ जायेंगी....
यही स्वप्न जीवन को अर्थ देते हैं...... जो आपकी सार्थक सोच का ही प्रतिबिम्ब हैं......
जो स्वप्न आप देखते हैं वह महत्तम है. यदि आप उस कीलें बटोरनेवाले को तलाश नहीं पायें तो क्या यह संभव नहीं कि आपकी खोज गलत दिशा हें है?
ReplyDeleteवह व्यक्ति आप ही हैं. अन्य किसी से यह अपेक्षा ही क्यों?
आपकी भांति ही मैं भी बहुत स्वप्न देखता हूँ यद्यपि मेरे स्वप्न अटपटे होते हैं और उनमें बीते दिनों की स्मृतियाँ झलकती हैं.
सपने देखना ही ज़रूरी है. यदि सपने देखनेवाले हर व्यक्ति अपने सपने सच कर सकते तो यह दुनिया कहाँ की कहाँ होती! लेकिन सभी को सब कुछ हासिल करने या होने की ज़रुरत भी नहीं है. एक व्यक्ति का शुभ स्वप्न यदि फलीभूत होगा तो वह सकल जग को उन्नति के मार्ग पर ले जाएगा.
अथातो स्वप्न जिज्ञासा -सभी के सपने साकार हों ,वे टूटें नहीं यही सर्वतोभद्र कामना है यह आलेख पढ़कर !
ReplyDeleteआप खूब सपने देखिये !
मेरे गहनतम स्वप्नों में मुझे कोई झुका सा दिखता है, उन्हीं समतल राहों में, पास जाकर देखता हूँ चेहरा स्पष्ट नहीं दिखता है, पर उसके हाथ में एक थैला है जिसमें वह राह में पड़ी कीलें समेट रहा है, मैं साथ देने को आगे बढ़ता हूँ, वह कहता है बेटा संभल के, चुभ जायेंगी।
ReplyDeleteमेरा स्वप्न टूट जाता है।
प्रवीण जी बहुत गहन और सुंदर आलेख है आज का |अंतिम पंक्ति मन उदास कर गयी| परन्तु दिव्य स्वप्न था तो टूटना ही था ..इतनी दिव्यता कहाँ है ...हमारे आस-पास अब ....? फिर भी मैं कहूँगी दिव्यता का स्वप्न देखना न छोड़ें .....हो सकता है एक दिन सच हो जाये |प्रभु किसी न किसी रूप में तो हैं ही हमारे आस-पास...!
वर्तमान में कीले बटोरने वाले के हाथ काट दिए जाते हैं। लेकिन यह सत्य है कि स्वप्न होंगे तो कभी ना कभी सत्य भी बनेंगे।
ReplyDeleteओह!!बेटा संभल के....
ReplyDelete'वह कहता है बेटा संभल के, चुभ जायेंगी।'...
ReplyDeleteकितनी सादगी से कही गयी पंक्ति पर कहीं गहरे असर करती है.
स्वपन और चिन्तन ---- बहुत गहरा सम्बन्ध है इनमे जब भी मुझे सपना आता है तो दिन भर उसके बारे मे सोचती हूँ बहुत कुछ मिलता है उन्हें खोजने से । मुझे भी उस कील बटोरने वाले उन्सान की तलाश है मगर आज कल तो संतों के थैले से भी सोना चाँदी हीरे जवाहरात और धन मिलता है। अच्छी पोस्ट शुभकामनायें।
ReplyDeleteमेरा सुंदर सपना बीत गया,
ReplyDeleteमैं इंसानियत में सब कुछ हार गया,
बेदर्द ज़माना जीत गया,
मेरा सुंदर सपना बीत गया...
जय हिंद...
main bhi sapne dekhti hun aur ye sapne kitna kuch dikha jate hain
ReplyDeleteकाश! आपके सपनों जैसे सपने सबको आयें !
ReplyDeleteबचपन में सपने ज़्यादा देखता था ,कभी अच्छे,कभी बुरे !इसका भी कोई कारण होगा कि अब बंद क्यों हो गये ? पहले क्रियाशीलता भी ज़्यादा थी,कल्पनाएँ भी खूब थीं,अब न जाने सब-कुछ कहाँ(सपनों में?)खो गया ?
ईशा वास्यमिदँ सर्वं।
ReplyDeleteअच्छा विचारपूर्ण लेख....
ReplyDeleteस्वप्नदर्शी होना मानव को आगे बढ़ते जाने और क्रियाशील रहने को प्रेरित करता है . देखते रहिये सपने , भला तो समाज का ही होगा .
ReplyDelete"...पर क्या करें आँख बन्द होते ही स्वप्न तैरने लगते हैं..."
ReplyDeleteपर क्या करें, हमें तो दिवास्वप्न दिखते हैं. आंखें बंद करने की भी जरूरत नहीं होती :)
बड़ा गहरा सपना आता है आपको सर !
ReplyDeleteशिल्पा
स्वप्न अर्थ पूर्ण हो तो साकार होने में अधिक बिलंबन नहीं होता इसी को दिवास्वप्न भी कहते है
ReplyDeleteवह राह में पड़ी कीलें समेट रहा है, मैं साथ देने को आगे बढ़ता हूँ, वह कहता है बेटा संभल के, चुभ जायेंगी।'
ReplyDeleteदिल को छूते इन शब्दों के एहसास .. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति हमेशा की तरह ।
अच्छे बच्चों को सपनों में भी, अपनी हिफाजत
ReplyDeleteकरने वाले मिल जाते हैं!
शुभकामनाएँ!
बहुत गहन विवेचन्।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDeleteकुछ चुने हुए खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .
स्वप्न होंगे तो कभी ना कभी सत्य भी बनेंगे।
ReplyDeleteबचपन में आते रहने वाले स्वप्न या तो अब आते नहीं या फिर याद रहते नहीं ।
ReplyDeleteजाने कहाँ गये वो दिन...
किन्तु आप स्वप्न देखते रहिये और राह में बिखरी कीलें बटोरने वालों को स्वप्न में ही सही अपना अमूल्य सहयोग देते रहें ।
शुभकामनाएँ...
एक बेहतरीन संकल्पित स्वपन .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर..बिल्कुल अलग अंदाज
ReplyDeleteसपनों को साकार करना है तो कील तो चुभेंगे ही। फूल की चाहत है तो शूल भी सहेजना होगा॥
ReplyDeleteकिसी ने कभी उस पर स्वार्थ की कीलें बिखेरी होंगी, एक कील हमें चुभती है और हम क्रोध में आने वालों के लिये कीलें बिखरेना प्रारम्भ कर देते हैं। एक राह जो सुख दे सकती थी, दुखभरी हो जाती है।
ReplyDeleteये बहुत बडी बात है, प्रवीण जी जिसे आपने सरल शब्दों में आसानी से समझा दिया है। वाकई चीजें कितनी भी खराब क्यों न हों , उम्मीदों के लिए स्थान खत्म नहीं होता
"प्रक्रियाओं के भारीपन में मुझे न जाने कितने जीवन बलिदान होते से दिखते हैं। व्यवस्था जब सरलता में गरलता घोलने लगती है, मन उखड़ सा जाता है। कभी क्रमों और उपक्रमों से सजी व्यवस्था देखकर हाँफने लगता हूँ"--
ReplyDelete--इशारे कई किये हैं, प्रवीन भाई. कभी विस्तार से चर्चा कीजियेगा. कही पढ़ा था, स्वप्न अनजिया पहलू हैं जीवन का.
स्वार्थ की कीलें सपनों से बाहर निकल कर हर रास्तों पर बिखर गयी है..
ReplyDeleteफिलहाल तो प्रेजेंट लगा लीजिये... आपकी पोस्ट पर मैं बिना ध्यान से पढ़े कमेन्ट नहीं करता... चूंकि आ गया था.. तो यह बताना भी ज़रूरी था... मैं फिर आऊंगा... इत्मीनान से पढ़ कर...
ReplyDeletebahut badhiya vivran diya hai aapne.
ReplyDeleteयही मेरे स्वप्नों की विषयवस्तु हो गयी है, बस प्रक्रियायें सरल हों, राजनीति जन-उत्थान को प्राथमिकता दे, लोक-व्यवहार बिना लाग लपेट के सीधा सा हो, सर्वे भवन्तु सुखिनः वाले स्वप्न।
ReplyDeleteऐसे ही दिवा स्वप्न मै देखती हूँ पर य़े शायद मेरी उम्र का असर हो अब स्वप्न नही आते या आते भी हों तो याद नही रहते । राह में बिखरी कीलों में से एक भी हम कम कर सकें तो दिन सार्थक हो । आपके सपनों की पूर्ती के लिये शुभ कामनाय़ें ।
स्वप्न में न सही , जागती आँखों से दिखती कीलें चुन लीजिये , साथियों और मित्रों के राहों में पड़ी हुयी।
ReplyDeleteजागती आंखें ही इन स्वप्नों को बुन लेती हैं शायद
ReplyDelete...काफी कुछ वही दिखता है जो हम देखना चाहते हैं
हंसी के फव्वारे में- हाय ये इम्तहान
प्रवीणजी आपके लेखों में बहुत गहरे है..मन की छटपटाहट को बयां करने वाला सुन्दर आलेख...वधाई
ReplyDeleteलोक-व्यवहार बिना लाग लपेट के सीधा सा हो, सर्वे भवन्तु सुखिनः वाले स्वप्न।...सर स्वपन सकारात्मक चाहिए ...अन्यथ कुरीतियों के प्रेरक हो जाते है !
ReplyDeleteस्वप्न देखे नहीं जायेंगे तो पूरे कैसे होंगे.देखते रहिये स्वप्न.
ReplyDeleteदुष्यंत जी की कविता याद आ गई.
जा तेरे स्वप्न बड़े हों .....
बहुत ही विचारपूर्ण आलेख...
ReplyDeleteआभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
... हल्के फुल्के से स्वप्न। मेरे स्वप्नों में एक हल्का फुल्का सा प्रफुल्लित बचपन होता है, प्रेमपगा परिवार होता है, कर्मनिरत दिन का उजाला होता है और शान्ति में सकुचायी निश्चिन्त सी रात्रि होती है....
ReplyDeleteऐसे सपने देखने वालों के कारण ही भारतवर्ष जिन्दा हैऔर वो जो कीलें चुन रहा था वो कौन था ....माँ या संस्कार जो सपनों में भी अच्छा कार्य कर रहा था
मैं भी बहुत सपने देखती हूँ ...कई बार समस्याओं के हल भी देते हैं यही सपने ...
ReplyDeleteसंविधान के अनुच्छेद 14 तथा किन्नर नरेश जैसे तमाम विषयों के सहारे बुनी गयी सुंदर स्वप्न मीमांशा
ReplyDeleteप्रवीणजी...
ReplyDeleteस्वप्न वाही सार्थक हैं जो मूर्त रूप में सार्थक हों..
वर्ना न जाने कितने स्वप्न आते हैं,जाते हैं....!
इतने सुन्दर सार्थक स्वप्न के लिए बधाई...
***punam***
bas yun...hi..
स्वप्न से हर इंसान का नाता है ...कभी कभी ऐसे स्वप्न भी आते हैं जिनके बारे में सोचा भी नहीं होता ...
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियाँ स्वप्न में भी दिशा दे रही हैं ... सुन्दर प्रस्तुति
बहुत गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइस दुनिया में कुछ गिनी चुनी चीजें ही जिसे आपसे से कोई छीन नहीं सकता "यादें" और आपके "सपने देखने का अधिकार"
कई बार तो सोचता हूं कि यदि स्वप्न न होते तो कितना मुश्किल होता भड़ास निकालना :)
ReplyDeleteस्वप्न स्वप्न स्वप्न ... स्वप्न मेरे कुछ भूले भटके ... काग़ज़ को तरसे हैं बरसों ....
ReplyDeleteसार्थक स्वप्न .....
ReplyDelete--सपने सपने कब हुए अपने,
आँख खुली तो टूट गए ||
पहले सपने देखेंगे फिर उन्हें साकार करेंगे |
ReplyDeleteaaj ..hakikat ki rahen b swapnil ho gai hain....
ReplyDeleteजटिलताओं का भय मेरे चिन्तन का उत्प्रेरक है..
ReplyDeleteबात बहुत बढ़िया कही है मगर कवन सा स्वप्न देख रहें है ....जरा प्रकाश डाले
काश ! हर कोई ऐसा ही सपना देखे ,दूसरों की राह से कांटे और कील चुनने का ।
ReplyDeleteइससे बड़ा स्वप्न क्या होगा ।
काश ! हर कोई ऐसा ही सपना देखे ,दूसरों की राह से कांटे और कील चुनने का ।
ReplyDeleteइससे बड़ा स्वप्न क्या होगा ।
sach hi likha hai aapne my blog link- "samrat bundelkhand"
ReplyDeleteप्रक्रियायें सरल हों, राजनीति जन-उत्थान को प्राथमिकता दे, लोक-व्यवहार बिना लाग लपेट के सीधा सा हो, सर्वे भवन्तु सुखिनः वाले स्वप्न।
ReplyDeleteयह स्वपन तो सदियों पहले देखे गए थे लेकिन आज तक साकार नहीं हो सके।
इन सपनों को टूटने मत देना. जोड़ते जाइए, बहुत सारी आँखों में ऐसे ही सपने हैं.
praveen ji
ReplyDeletevastav me aapki soch badi hi sarthak aur gahnata liye hoti hai.
aapke lekh ki antim panktiyon ne bahut bahut hi prabhavit kiya hai.
bahut hi achhi prastuti
badhai
poonam
सार्थक स्वप्न।
ReplyDeletepraveen ji ,..
ReplyDeletethoughtful expression.
bahut kuch kahna chahta hoon is vishay par. phir kahunga .. abhi to itna hi ki ek bahut hi acche vishay par aapne likha hai !!
dhanywaad
vijay
वाह ! पढ़ लिया अब चलें सपने देखने |
ReplyDeleteक्या सपने आते हैं मुझे, उसपर क्या सोचता हूँ....अपने बारे में फ़िलहाल कुछ नहीं बताने वाला मैं :)
ReplyDelete'वह कहता है बेटा संभल के, चुभ जायेंगी।'...
ReplyDeleteसपनो से ही जीवन की महत्ता बढती है आप की यह पोस्ट बहुत प्रबल है.
aapke blog ko padh kar bahut accha laga