लेटने के बाद और नींद आने तक किया गया चिन्तन न तो चिन्तन की श्रेणी में आता है और न ही स्वप्न की श्रेणी में। दिन भर के एकत्र अनुभव से उपजे विचारों की ऊर्जा शरीर की थकान के साथ ही ढलने लगती है, मन स्थिर हो जाने के प्रयास में लग जाता है। कुछ विचार स्मृति में जाकर ठहर जाते हैं, हठी विचार कुछ और रुकना चाहते हैं, महत्व व्यक्त करते हैं चिन्तन के लिये। शरीर अनुमति नहीं देता है, निष्चेष्ट होता जाता है, मन चलता रहता है, चिन्तन धीरे धीरे स्वप्न में विलीन हो जाता है। इस प्रक्रिया को अब क्या नाम दें, स्वप्न-चिन्तन संभवतः इसे पूरी तरह से स्पष्ट न कर पाये।
बड़े भाग्यशाली होते हैं वे, जिनको बिस्तर पर लेटते ही नींद आ जाती है, उनके लिये यह उथल पुथल न्यूनतम रहती है। जब दिन सामान्य नहीं बीतता है, तब यह कालखण्ड और भी बड़ा हो जाता है। कटु अनुभव या तो कोई हल निकाल लेता है या क्षोभ बनकर मानसिक ऊर्जा खाता रहता है। सुखद अनुभव या तो आनन्द की हिलोरें लेने लगता है या गुरुतर संकल्पों की मानसिक ऊर्जा बन संचित हो जाता है। जो भी निष्कर्ष हो, हमें नींद के पहले कोई न कोई साम्य स्थापित कर लेना होता है स्वयं से।
यही समय है जब आप नितान्त अकेले होते हैं, विचार श्रंखलाओं की छोटी-छोटी लहरियाँ इसी समय उत्पन्न होती हैं और सिमट जाती हैं, आपके पास उठकर लिखने का भी समय नहीं रहता है उसे। सुबह उठकर याद रह गया विचार आपकी बौद्धिक सम्पदा का अंग बन जाता है।
अनिश्चय की स्थिति इस कालखण्ड के लिये अमृतसम है, इसे ढलने नहीं देती है। कई बार तो यह समय घंटों में बदल जाता है, कई बार तो नींद खड़ी प्रतीक्षा करती रहती है रात भर, कई बार तो मन व्यग्र हो आन्दोलित सा हो उठता है, कई बार उठकर आप टहलने लगते हैं, ऐसा लगता है कि नींद के देश जाने के पहले विषय आपसे अपना निपटारा कर लेना चाहते हों। यदि क्षुब्ध हो आप अनिर्णय की स्थिति को यथावत रखते हैं तो वही विषय आपके उठने के साथ ही आपके सामने उठ खड़ा होता है।
निर्णय ऊर्जा माँगता है, निर्भीकता माँगता है, स्पष्ट विचार प्रक्रिया माँगता है। अनुभव की परीक्षा निर्णय लेने के समय होती है, अर्जित ज्ञान की परीक्षा निर्णय लेने के समय होती है, बुद्धि विश्लेषण निर्णय लेने के समय काम आता है, जीवन का समस्त प्रशिक्षण निर्णय लेने के समय परखा जाता है। यह हो सकता है कि आप अनिश्चय से बचने के लिये हड़बड़ी में निर्णय ले लें और निर्णय उचित न हो पर निर्णय न लेकर मन में उबाल लिये घूमना तो कहीं अधिक कष्टकर है।
जिस प्रकार निर्णय लेकर दुःख पचाने का गुण हो हम सबमें, उसी प्रकार उल्लास में भी भारहीन हो अपना अस्तित्व न भूल बैठें हम। सुखों में रम जाने की मानसिकता दुखों को और गहरा बना देती है। द्वन्द के किनारों पर रहते रहते बीच में आकर सुस्ताना असहज हो जाता है हमारे लिये। 1 या 0, आधुनिक सभ्यता के मूल स्रोत भले ही हों पर जीवन इन दोनों किनारों के भीतर ही सुरक्षित और सरल रहता है।
सुख और दुःख के बीच का आनन्द हमें चखना है, स्वप्न और चिन्तन के बीच का अभिराम हमें रखना है, प्रेम और घृणा के बीच की राह हमें परखना है, दो तटों से तटस्थ रह एक नया तट निर्मित हो सकता है जीवन में।
पिताजी आजकल घर में हैं, सोने के पहले ईश्वर का नाम लेकर सोने की तैयारी कर रहे हैं, 'राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट'। अपने द्वन्द ईश्वर को अर्पित कर, चिन्तन और स्वप्न के बीच के अनिश्चय को कर्ता के समर्थ हाथों में सौंप कर निशा-मग्नता में उतर गये, अनिर्णयों की श्रंखला का समुचित निर्णय कर निद्रा में उतर गये।
अपना द्वन्द स्वयं ही समझना है। ईश्वर ने संकेत दे दिया है। मैं भी रात भर के लिये अपनी समस्याओं की टोकरी भगवान के नाम पर रखकर सोने जा रहा हूँ। रात भर में संभावना यही है कि समस्या अपना रूप नहीं बदलेगीं, सुबह होगी, नयी ऊर्जा होगी, तब उनसे पुनः जूझूँगा।
परम्पराओं के पीछे भी अनुभव छिपा है। चाहे त्रिकाल सन्ध्या हो या सोने से पहले क्षमा प्रार्थना करना या अपना द्वन्द्व ईश्वर को अर्पित करना हो।
ReplyDeleteआप तो तकनीक के बारे में बहुत जानकारी देते रहते हैं, कोई गैजेट ऐसा नहीं बना कि ऑन-ऑफ़ का स्विच हो उसमें और ये विचारों की उथल-पुथल कंट्रोल की जा सके?
ReplyDeleteसुना है कि अनुशासित लोग सोने के पहले का समय अपनी समीक्षा के लिए और उठने के बाद का कुछ समय दिन भर की योजना के लिए रखते हैं, क्या सचमुच.
ReplyDeleteजो दिन भर हम कर्म करते हैं ,उनके आकलन का भी सही समय होता है सोने का समय !कई बार यह चिंतन या आकलन इतना उद्द्वेलित कर देता है कि नींद में खलल पड़ जाता है !
ReplyDeleteबड़ा अच्छा होता है बिस्तर पर गिरते ही बेहोश हो जाना,पर कुछ लोग ही इसका लाभ उठाते हैं.
सुख और दुःख के बीच वाली स्थिति ही ठीक है क्योंकि दोनों के बारी-बारी आने की हालत में हम आराम से 'शिफ्ट' हो सकते हैं !
कहीं पढ़ा था संत दिन में सोते रात में जगते हैं जबकि शेष दुनिया दिन में सोती रात में जगती है...
ReplyDeleteयह उस ओर का ही तो महाभिनिष्क्रमण नहीं है ? :)
वैसे स्वप्न में हर्ष मिले या विषाद, वह जाग्रत अवस्था में मिलने वाले से कई गुना अधिक होता है.
ReplyDeleteअपने लिये तो 1 और 0 के, सुख और दुःख के बीच का मध्यम मार्ग ही सबसे भला.
ReplyDeleteयही जीवन है .....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
कुछ बातें हमारी परम्परा का हिस्सा रही हैं...... ईश्वर को अपने द्वन्द अर्पित कर निद्रा में मग्न हो जाना भी वहीँ से आता है...... यूँ भी आने नए दिन में द्वंदों से जूझने की नई उर्जा देने वाला भी तो वही है.....
ReplyDeleteसपने तो सपने होते हैं...
ReplyDeleteजय हिंद...
मै तो अक़पकी पोस्ट पडःा कर ही कई बार चिन्तन मे डूब जाती हूँ। शुभकामनायें\
ReplyDeleteसुख और दुःख के बीच का आनन्द हमें चखना है, स्वप्न और चिन्तन के बीच का अभिराम हमें रखना है, प्रेम और घृणा के बीच की राह हमें परखना है, दो तटों से तटस्थ रह एक नया तट निर्मित हो सकता है जीवन में।
ReplyDeleteबहुत गहन चिंतन ... अपने अपने द्वंद्व से सबको खुद ही निपटना होता है .
एक अन्य पक्ष भी है. स्वप्न में आए विचारों का शरीर पर प्रभाव आता है, जागृत अवस्था में सचेष्ट किए विचार का शरीर पर कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है.
ReplyDeleteप्रारम्भ में हमारे साथ भी ऐसा ही होता था कि सोने जाओ तो विचार आते थे। लेकिन अब इतना लिख लिया है और ब्लाग पर तो रोज ही मन के सारे ही द्वंद्व निकल जाते हैं इसलिए नींद के समय विचार शान्त रहते हैं। ब्लाग पर लिखने का लाभ यह है कि आपके मन के सारे ही विचार विभिन्न टिप्पणियों के माध्यम से बाहर आ जाते हैं, बस टिप्पणी ईमानदारी से विचारों के अनुरूप हो। केवल एक लाइन लिखकर इतिश्री कर देने से विचार वहीं चक्कर काटते रहते हैं।
ReplyDeleteविचारों की उथल पुथल रोकना आसान नही ... पर अंत में भगवान को ही बीच में आना पढ़ता है ... सुखद निंद्रा के लिए .... सुंदर चर्चा है आज ....
ReplyDeleteस्वप्न और चिन्तन के उपर एक सत्य लेख !
ReplyDeleteआभार !
अरे!!!! यह तो मंथन की श्रेणी का है :)
ReplyDeleteबेजोड़ अभिव्यक्ति..आपको पढना एक सुखद अनुभव है
ReplyDeleteनीरज
पसंद आया चिंतन आपका .
ReplyDeleteजागने और सोने के बीच के समय पर अंगुली रख कर जागृति का सहज संकेत दिया आपने
ReplyDeleteआस्था के साथ अनंत का स्मरण व्याहारिक दृष्टि से भी समय, उर्जा और अनावश्यक चिंताओं से बचाता है
हमें रचनात्मक चिंतन के योग्य बनाता है
जागने और सोने के बीच के समय पर अंगुली रख कर जागृति का सहज संकेत दिया आपने
ReplyDeleteआस्था के साथ अनंत का स्मरण व्याहारिक दृष्टि से भी समय, उर्जा और अनावश्यक चिंताओं से बचाता है
हमें रचनात्मक चिंतन के योग्य बनाता है
बिस्तर पर निद्रा में निमग्न होने से पहले दिन भर की भागदौड़ और चिन्ताओ को परमपिता के पास क्लोक रूम में रखकर निश्चिंत सो जाने वाली परंपरा पर पूरा विश्वास है अपना .
ReplyDeleteसर ...सही बिश्लेषण ..मुख्यालय से बाहर होने पर नींद बहुत जल्दी आती है ! समस्या का विस्तार हो तो नींद उचाट सी जाती है ! नींद टूटते ही नया सवेरा होता है ! कुछ कर डालने के लिए ! सही ...पर हो जाते है .....कुछ - कुछ ...
ReplyDeleteकर्म करे फल कि चिंता ना करे वो सब भगवान पर छोड़ देवे | इससे बड़ा चिन्तन कुछ नहीं है
ReplyDeleteबकौल 'दिनकर' जी --
ReplyDeleteद्वंद्व में रहना मनुष्य का स्वभाव है.
देवियों[देवता] में द्वंद्व नहीं होता.
वैसे सच बोलूं तो जब नींद न आने पर ऐसे विचार आते हैं तो मैं प्रयास करके उन्हें कल आने वाली समस्याओं पर केंद्रित कर देता हूँ, अब अगले दिन जो याद रहे, काम आता है,
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया आलेख,
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बेहद गहन चिन्तन्…………यही है ज़िन्दगी।
ReplyDeleteसुख और दुःख के बीच का आनन्द हमें चखना है, स्वप्न और चिन्तन के बीच का अभिराम हमें रखना है, प्रेम और घृणा के बीच की राह हमें परखना है, दो तटों से तटस्थ रह एक नया तट निर्मित हो सकता है जीवन में।
ReplyDeletebahut hi khubsurat baat sari baaton ka nichod shyad isi me hai tabhi jindagi khubsurat ban sakti hai :)
sundar lekh .
नींद के पहले का यह काल बड़ा विचित्र होता है .कभी-कभी तो बड़ा लंबा खिंच जाता है और स्वयं को भी पता नहीं चलता कि हम क्या सोच रहे हैं .पल भर में कहाँ से कहाँ पहुँचा देता है .
ReplyDeleteबहुत अच्छा चिंतन !
अपना द्वन्द स्वयं ही समझना है। ईश्वर ने संकेत दे दिया है। मैं भी रात भर के लिये अपनी समस्याओं की टोकरी भगवान के नाम पर रखकर सोने जा रहा हूँ। रात भर में संभावना यही है कि समस्या अपना रूप नहीं बदलेगीं, सुबह होगी, नयी ऊर्जा होगी, तब उनसे पुनः जूझूँगा।
ReplyDeleteये अनुच्छेद सबसे अच्छा लगा. आपने मन में उठती भावनाओ के उतार चढ़ाव को अच्छी तरह से शब्दों में ढाला हैं . धन्यवाद
I guess I am the lucky one....
ReplyDeleteIt only takes less than 5 min to sleep :D
But I fail to do the analysis of whole day at this time as everyone else do... Poor Me :P
जिस प्रकार निर्णय लेकर दुःख पचाने का गुण हो हम सबमें, उसी प्रकार उल्लास में भी भारहीन हो अपना अस्तित्व न भूल बैठें हम। सुखों में रम जाने की मानसिकता दुखों को और गहरा बना देती है। द्वन्द के
ReplyDeleteगहन चिंतन के बाद लिखा गया लेख |सार्थक है |आभार.
actually "dreams" act as shock absorber in the stress full life,and we become capable enough to avoid sudden shocks met in the course of life.
ReplyDeleteअब भाग्यशाली कौन है.....वो जिसे तुरंत ही नींद आ जाए या वो जिन्हें इतना चिंतन-मनन का समय प्राप्त हो
ReplyDeleteशायद दोनों ही एक दूसरे को ज्यादा भाग्यवान समझते हों.
गहन विवेचना। सुंदर पोस्ट।
ReplyDeleteहम भी यही कह कर सो जाते हैं आजकल ...ईश्वर तू जाने ! गहरी नींद आ भी जाती है वर्ना श्वान- सी निद्रा से त्रस्त थे !
ReplyDeleteदार्शनिक चिंतन !
प्रणाम,
ReplyDeleteआप का प्रत्येक लेख मौलिक होता है ..पर ,इस द्वन्द के सुन्दर चित्रण के लिए कोटि कोटि बधाई.
अपना द्वन्द स्वयं ही समझना है। ईश्वर ने संकेत दे दिया है। मैं भी रात भर के लिये अपनी समस्याओं की टोकरी भगवान के नाम पर रखकर सोने जा रहा हूँ। रात भर में संभावना यही है कि समस्या अपना रूप नहीं बदलेगीं, सुबह होगी, नयी ऊर्जा होगी, तब उनसे पुनः जूझूँगा।
ReplyDeleteगंभीर चिंतन जीवन का.
जिन्दगी जागते हुए हर कदम एक नयी जंग है...लेकिन अब तो ज्यादातर इंसानों को नींद में भी मनमोहन सिंह,शरद पवार,प्रणव मुखर्जी जैसे महा पापियों व शर्मनाक भ्रष्टाचारियों के कुकर्म से जंग लड़ना परता है.....क्योकि ये भ्रष्ट मंत्री कहीं से भी इंसान नहीं बल्कि हैवान हैं और इंसानियत जब हैवानों से घिरी हो तो आँखों में नींद कहाँ...
ReplyDeleteस्वप्न से पहले की अवस्था अक्सर चिंतन की ही होती है....मेरे साथ तो यही होता है....कभी-कभी यह समय लम्बा खिंच जाता है...
ReplyDeleteबढ़िया और गहन चिंतन युक्त आलेख....
सुख और दुःख के बीच का आनन्द हमें चखना है, स्वप्न और चिन्तन के बीच का अभिराम हमें रखना है, प्रेम और घृणा के बीच की राह हमें परखना है, दो तटों से तटस्थ रह एक नया तट निर्मित हो सकता है जीवन में। .....
ReplyDeleteबहुत ही सारगर्भित कथन..बहुत सुन्दर मननीय पोस्ट..आभार
मुझे तो ये समय अपने दिन भर के कार्यों और विचारों की जुगाली करने जैसा लगता है और बहुधा समस्या-समाधान का भी .....
ReplyDeleteमुझे तो ये समय अपने दिन भर के कार्यों और विचारों की जुगाली करने जैसा लगता है और बहुधा समस्या-समाधान का भी .....
ReplyDeletevicharneey
ReplyDeleteजीवन ऐसे ही चलता है। अच्छा लगा आपका व्यवहारिक नजरिया।
ReplyDelete---------
हॉट मॉडल केली ब्रुक...
लूट कर ले जाएगी मेरे पसीने का मज़ा।
अपन को तो नींद बिस्तर में जाते ही आ जाती है। और अगर नहीं आती है तो फिर देर तक नहीं आती। वैसे पिछले कुछ दिनों से मैं एक प्रयोग कर रहा हूं,जब नींद नहीं आती है तो कुछ प्रिय लोगों को नाम लेकर याद करने लगता हूं। बस नींद तुरंत आ जाती है।
ReplyDeleteइस स्थिति में अच्छी रचनाएँ लिखी जाती हैं ....उदाहरण मौजूद है ही....
ReplyDelete" स्वप्न और चिन्तन के बीच का अभिराम हमें रखना है" इस विषय को विस्तार मिले तो मन की कुछ उलझन दूर हो...
ReplyDeleteबढ़िया चिन्तन...
ReplyDeleteहम दिन भर की सारी समस्याओं को दराज में रख कर ओशो की सीडी लगा लेते हैं लेटते समय और जाने कब सुनते सुनते सो जाते हैं ....सीडी अपने समय से खतम हो कर बंद हो जाती है....
आज तक तो याद नहीं पड़ता कि सीडी खतम हो गई हो और हम जागे हों...पिछले कई सालों में...
सोने से पहले ईश्वर का नाम लेने से मन को शांति अवश्य मिलती है और नींद भी अचछी आती है । वैसे हमारी माँ का मुझे वरदान है कि बिस्तर पर पडते ही नींद आ जाती है । ुनके भी नींद न आने की शिकायत कभी नही रही । स्वप्न भी अब नही आते ।
ReplyDeleteईश्वर के प्रति समर्पण का भाव सदैव होना चाहिए .
ReplyDeleteसपनों के बारे में आपका यह चिंतन और प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी ... ।
ReplyDeleteinsomnia से पीड़ित हूँ, अतः मुझे तो हर रोज़ सोने के लिए लम्बा इंतजार करना ही पढता है| :(
ReplyDeleteShilpa
थका-मादा साथ हों तो नींद न कैसे आये!
ReplyDeleteयथार्थ - कल्पना - स्वप्न और महत्वाकांक्षा सब का अपना अपना वजूद है और महत्व भी| जरूरत है एक संतुलन की|
ReplyDeleteइस सुषुप्तावस्था में सोचे गए विचार बड़े अच्छे होते हैं पर कई बार उठाने के बाद याद नहीं रहते :)
ReplyDeleteलेटने और निद्रा का मध्य काल .शरीर का निढाल होना.मस्तिष्क का शांत होने की ओर अग्रसर होना.जैसे चंचल सरिता का सागर समीप आकर मद्धम होना.इन्ही क्षणों में आत्म-मंथन और नए विचार गहराते हैं.अगले दिन के लिए एक नई पृष्ठ भूमि तैयार होती है.यह मेरी अनुभति है.आपका आलेख सदा नई विषय-वस्तु लिए होता है.नए चिंतन को जन्म देता है.बधाई.
ReplyDeleteस्वप्न और चिन्तन पर बहुत तथ्यात्मक विचार प्रस्तुत किए हैं आपने...
ReplyDeleteअति सुन्दर जानकारी क्यों कि प्रत्येक व्यक्ति इस स्थिति से गुजरता है। धन्यवाद स्वीकार करें।
ReplyDeletebahut hi sundar aur vicharparak aalekh...kuchh ansuljhe prashno ka javan deta lekh...vadhayi
ReplyDeleteबिस्तर तो आराम के लिए ही है.और हाँ सब कुछ भगवान पर छोड़ना भी उचित नहीं. कर्म तो करना ही पड़ेगा.सारगर्भित चिंतन.
ReplyDeleteमानसिक कुन्हासे को पैरहन पह्रातें हैं आप ,दर्शन बोनस के रूप में दे जातें हैं आप ,बार बार हर बार .
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