तकनीक हमारी जीवनशैली बदल देती है। नयी जीवनशैली नये अनुभव लेकर आती है। दो घटनायें ही इस तथ्य को स्थापित करने के लिये पर्याप्त हैं।
सामने से आते एक व्यक्ति को हल्के से मुस्कराते हुये देखता हूँ, सोचता हूँ कि कोई परिचित तो नहीं, याद करने का यत्न करता हूँ कि कहाँ देखा है, जैसे जैसे पग आगे बढ़ाता हूँ अपनी स्मरणशक्ति पर झुँझलाहट होने लगती है, भ्रम-मध्य में खड़ा परिचय-अपरिचय की मिश्रित भंगिमा बनाकर उनके सम्बोधन की डोर ढूँढ़ता हूँ, किन्तु आगन्तुक बिना कुछ कहे ही निकल जाते हैं। अरे, तो मुस्कराये क्यों थे, थोड़ा ध्यान से देखा तो महाशय ब्लूटूथ पर अपनी प्रेमिका से बतिया रहे थे और हमारी स्मरणशक्ति पर अकारण ही जोर डाल रहे थे। चलिये, एक बार स्मरणशक्ति पर तो आक्षेप सहा जा सकता है पर जब सामने से यही प्रक्रिया कोई कन्या कर बैठे तो आप वहीं खड़े हो जायेंगे, किंकर्तव्यविमूढ़ से। यदि दुर्भाग्यवश आपकी पत्नी आपके साथ में हों तो संशयात्मक भँवरों में उतराने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं बचेगा आपके लिये।
एक साफ्टवेयर कम्पनी में कार्यरत पतिदेव अपनी श्रीमतीजी के साथ होटल में खाने जाते हैं। इसी बीच एक अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेन्स कॉल आ जाती है, पत्नी को बिना कुछ बताये पतिदेव कान में ब्लूटूथ लगाकर वार्तालाप सुनने लगते हैं, पर आँखें एकाग्र अपनी पत्नी पर टिकाये हुये। पत्नी का हृदय आनन्द में हिलोर उठता है, उन्हें लगता है कि पुराने दिन पुनः वापस आ गये हैं, आनन्दविभोर उनकी माँगों की सूची धीरे धीरे शब्दरूप लेने लगती हैं एक के बाद एक, वह भी बड़े प्यार से, पति एकाग्रचित्त हो सप्रेम देखते ही रहते हैं। अब सूची इतनी बड़ी हो गयी कि पत्नी को संशय होने लगा, अटपटा भी लगने लगा, सकुचा कर पत्नी शान्त हो जाती हैं। उसी समय कॉल समाप्त होती है और पति उत्सुकता वश पूछ बैठते हैं कि आप कुछ कह रहीं थी क्या? उफ्फ..., अब शेष दृश्य आप बस कल्पना कर लीजिये, मुझमें तो वह सब सुनाने की सामर्थ्य नहीं है।
कान में लगाने वाला ब्लूटूथ का यन्त्र आधुनिक जीवनशैली का अभिन्न अंग है। जिन्होने आधा किलो के फोन रिसीवर का कभी भी उपयोग किया है, उनके लिये डेढ़ छटाक का यह आधुनिक झुमका किसी चमत्कार से कम नहीं है। आप बात कर रहे हैं पर आपके दोनों हाथ स्वतन्त्र हैं, कुछ भी करने के लिये। न जाने कितने लोग इसका उपयोग कर गाड़ी चलाते हुये भी बतियाते हैं, ट्रैफिकवाला भले ही कितनी भी बड़ी दुरबीन लेकर देख ले, उसे किसी भी नियम का उल्लंघन होता हुआ नहीं दिखायी देगा, अपितु लगेगा कि कितने एकाग्र व प्रसन्नचित्त वाहन चालक हैं।
निश्चय ही बहुत घटनायें होंगी, चलते चलते खम्भे से भिड़ने की या चलाते चलाते गाड़ी भिड़ाने की। आधुनिक झुमका होने से कम से कम इतनी सुविधा तो है कि दोनों हाथ खाली रहते हैं, स्वयं को सम्हालने के लिये। एक हाथ में मोबाइल होने से तो भिड़ने व भिड़ाने की सम्भावनायें दुगनी हो जाती हैं।
हमारे पास भी आधुनिक झुमका है, फोन आते ही कान में लगा लेते हैं। सुरक्षित क्षेत्र में हैं क्योंकि न ही गाड़ी चलाते हैं और न ही हँसकर बात करने वाली कोई प्रेमिका ही है। बात करते करते निर्देशों को मोबाइल पर ही लिख लेते हैं, बात यदि हल्की फुल्की हो तो मेज पर हल्का सा तबला बजा लेते हैं, बात यदि बहुत लम्बी चलनी हो तो घर में फैला हुआ सामान समेटने में लग जाते हैं।
कल ही पढ़ा है कि मोबाइल तरंगें, ब्लूटूथ तरंगों से अधिक घातक होती हैं, कैंसर तक हो सकता है, आधुनिक झुमका लेना हमारे लिये व्यर्थ नहीं गया। मोबाइल भी आवश्यक है और शरीर भी, दोनों में सुलह करा देता है यह आधुनिक झुमका। कम से कम साधनों में जीने वाले जीवों को एक अतिरिक्त यन्त्र को सम्हाल कर रखना बड़ा कष्टप्रद हो सकता है पर स्वास्थ्य, सुरक्षा और सौन्दर्य की दृष्टि से यह आवश्यक भी है। श्रीमतीजी के कनक-छल्लों से तो बराबरी नहीं कर पायेगा आधुनिक छल्ला पर इसे पहन कर आप अधिक व्यस्त और कम त्रस्त अवश्य ही दिखेंगे।
ब्लू टूथ को ले कर एक कन्या के साथ हुए कन्फ्य़ूजन पर एक बार बहुत पहले लिखा था....कान पकड़े इस बला के लेकिन व्यवसायिक मजबूरियाँ देखें कि यही कान पकड़े बैठा है....
ReplyDeletehttp://udantashtari.blogspot.com/2007/10/blog-post_25.html
इसके कान से गिरने की सम्भावना कितने प्रतिशत है ?
ReplyDeleteआयी मीन ब्लू टूथ गिरा रे बंगलुरू के बाजार में की प्रोबेबिलिटी ?
aab aap itni badai kar rahe hain
ReplyDeleteto lagta hai , jaldi hi lena padega .
प्रवीण जी,
ReplyDelete"कल ही पढ़ा है कि मोबाइल तरंगें, ब्लूटूथ तरंगों से अधिक घातक होती हैं, कैंसर तक हो सकता है, "
यह एक बकवास है, ब्लूटूथ , मोबाइल सभी रेडियो तरंगो का प्रयोग करते है! रेडियो तरंगे किसी भी हाल में डीएनए को प्रभावित नहीं कर सकती, तो कैंसर कैसे होगा! WHO की यह रिपोर्ट में प्रयुक्त डाटा भी यह संकेत नहीं देता है! यदि मोबाइल के EMF बात करे तब भी, वह डीएनए को प्रभावित नहीं कर सकता. लगता है WHO में भी भारत के जैसे तकनीकी विशेषज्ञ घूस गए है.
यह कुछ ऐसे है कि आंकड़ो के आधार पर कहना कि शिक्षा के बढ़ने के साथ अपराधो की संख्या बढ़ रही है. विश्वास नहीं हो तो आप भारत में कहीं का भी आंकड़ा उठा के देख लीजीये, आपको शिक्षा की दर के साथ अपराधो की दर की बढ़ोत्तरी मील जायेगी.
आपके पास प्रेमिका नहीं तो क्या हुआ आपके पास दोस्त तो है,
ReplyDeleteदोस्त तो प्रेमिका से भी बढकर होता है, ये अच्छा हुआ कि अब आपको ब्लूटूथ के होने से तरंगों से कम नुक्सान होवेगा,
आधुनिक झुमका जरुर है, पर इसके कारण ठुमका नहीं लगता, सीधी जोरदार टक्कर होती है,
बहुत सही नामकरण किये है "आधुनिक झुमका"
ReplyDeleteयह जान कर अच्छा लग रहा है कि ब्लू टुथ काटता नहीं है. इलैक्ट्रॉनिक गेजेट आते रहेंगे हम प्रयोग करते रहेंगे, डॉ कहेगा तो छोड़ देंगे. समीर जी की बात सुनने लायक है कि - व्यावसायिक मजबूरियाँ देखें कि यही कान पकड़े बैठा है....
ReplyDeleteनिश्चय ही यह आधुनिक झुमका कई अवसरों पर संशय उत्पन्न करता है और कभी कभी तो गलतफहमी भी. वैज्ञानिक चमत्कार सीमाहीन है.
ReplyDeleteआपका लेख पढने से कुछ ही मिनट पहले मै अपने झुमके को सैट कर रहा था .
ReplyDeleteऔर झुमका तो बरेली के बाज़ार मे गिरा था
नोकिया मोबाइल का एक पुराना विज्ञापन याद आया, झुमके का भ्रम, पति-पत्नी के बच हो तब तक फिर भी गनीमत है, लेकिन...
ReplyDeletele to liya hai ... per dhyaan rahe , vakyaa aap hi bata chuke ... hahaha bechaari patni !
ReplyDeleteआधुनिक जीवन-शैली से बचा भी नहीं रहा जा सकता और इसके दुष्परिणामों को भी रोका नहीं जा सकता,हाँ खतरों को ज़रूर कमतर किया जा सकता है !
ReplyDeleteवैसे तो कोई इसी बहाने हमें मुस्कुराता हुआ लगे तो थोड़ी देर के लिए यह 'भरम'भी बुरा नहीं है !
'ब्लूटूथ' को 'झुमका' नाम देकर आपने इसकी सार्थकता भी बता दी !
@आप कुछ कह रहीं थी क्या?
ReplyDelete:)
kai masle aasaan ho sakte hain.
@आप कुछ कह रहीं थी क्या?
ReplyDelete:)
kai masle aasaan ho sakte hain.
उपयोगी झुमका। रोचक शैली।
ReplyDeleteधार थोड़ी पैनी करें तो अच्छा व्यंग्य लिख सकते हैं आप।
निश्चय ही बहुत घटनायें होंगी, चलते चलते खम्भे से भिड़ने की या चलाते चलाते गाड़ी भिड़ाने की|
ReplyDeleteइसको कान में लगा कर सड़क पार करना सबसे खतरनाक है ..!!
रोचक विवरण .बढ़िया लेख .
• आपके बारीक विश्लेषण गहरे प्रभावित करते हैं।
ReplyDeleteनई तकनीकों ने हमारे जीवन शैली को गहरे प्रभावित किया है। जहां कई जटिलताएं आसान हुई हैं, वहीं नई पेचीदिगियां भी उत्पन्न हुई हैं।
ओह तो यहां है हंसी-फंसी का झुमका...लोग खामख्वाह इसे बरेली के बाज़ार में ढूंढते रहते हैं...
ReplyDeleteजय हिंद...
'अरे, तो मुस्कराये क्यों थे, थोड़ा ध्यान से देखा तो महाशय ब्लूटूथ पर अपनी प्रेमिका से बतिया रहे थे .'
ReplyDelete- कोई मुस्करा कर बात करे - फ़ोन पर ,तो आप झट इस निष्कर्ष पर पहुँच जायेंगे?
फ़ोन पर बात करते समय आप मुस्कराते हैं क्या कभी ?
ये लो जी. मै कल शाम को अपने कनखजूरे को ढूंढ़ रहा था जो अभी तक नहीं मिला, लगता है कही कान से सरक गया ,आपने इसे झुमका नाम देकर इसकी प्रतिष्ट में चार चाँद लगा दिये ..
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी मस्त भाषा ....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
अभी तक तो मैंने इसका प्रयोग किया नहीं है.. चलते समय काल आ जाये तो रुक कर ही अटेन्ड करना पसन्द करता हूं... मन को मुदित करता हुआ लेख...
ReplyDeleteहम भी झुमके वाले हैं।
ReplyDeleteaadhunik jhumka...waah....kya baat hai
ReplyDeleteसुविधा तो मिलती है घंटो गप्पे मारो बिना अपना काम डिस्टर्ब किये ... कोई जडाऊ आधुनिक झुमका लौंच हो तो बताइयेगा
ReplyDeleteप्रवीणजी...
ReplyDeleteनयी तकनीकियों से और कुछ हो न हो जिनके साथ आप रहते है उनसे दूरियां बढ़ती हैं और जिनके साथ आप नहीं रहते उनसे नजदीकियां भी बढ़ती हैं....और शायद मुस्कुराने का यही कारण भी होता है....!
तो फिर bluetooth लगाइए और मंद-मंद मुस्कुराइए क्यूंकि किसे पता आप किससे बात कर रहे हैं..
पति उत्सुकता वश पूछ बैठते हैं कि आप कुछ कह रहीं थी क्या? ..
ReplyDeleteआधुनिक झुमके की अच्छी जानकारी ..
आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्वागत है
ReplyDeletehttp://tetalaa.blogspot.com/
चिंता मत करिए, अगली जनरेशन ब्लूटूथ एनेबल्ड यानी इन-इयर कॉकलियर इम्प्लांट समेत रहेगी. यानी झुमके का भी झंझट नहीं!
ReplyDeleteऔर, क्या जाने आगे इवॉल्यूशन ही इतना हो जाए कि बाई बर्थ ब्लूटूथ एनेबल्ड हो जाए आदमी :)
कान में झुमका, टूथ में ब्लू?
ReplyDeleteझुमके के साथ ठुमके लगाते रहे और मंद मंद मुस्कराते रहे.
ReplyDelete....और अगर पुराने जमाने की तरह ये टेक्निकल झुमका कहीं गिर जाये तो... :)
ReplyDelete"झुमका गिरा रे... हम दोनो की तकरार में... झुमका गिरा झुमका... हाये हाये हाये..." :P :P
मोबाइल फ़ोन मुझे तो मानवता के लिए श्राप सा लगता है. फ़ोन की घंटे बजे तो भी मुझे कोफ़्त होती है. झुमके की तो क्या कहूं. मुझे ईर्ष्या होती है उनसे जो फ़ोन पर, इतने कष्ट उठा-उठा कर भी बात करने से नहीं चूकते. धन्य हैं वे.
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति आधुनिक झुमके की ... ।
ReplyDeleteरोचक शैली ने आलेख की गरिमा बनाये रखी ....
ReplyDelete:)इस आधुनिक झुमके से ऐसे ही भ्रम हो जाते हैं..कभी भ्रमित होते हैं तो कभी भ्रम में डाल देते हैं.....रोचक लेख
ReplyDeleteसटीक जानकारी !
ReplyDeletevery interesting write-up. झुमका गिरा रे ...बरेली के बाजार में ...
ReplyDeleteआपके झुमके से मुझे अपना करधोना याद आ गया। असल में अपने मोबाइल को बेल्ट में फंसे पाकेट में रखता हूं। आप कहेंगे वो तो बहुत सारे लोग रखते हैं,इसमें नया क्या है। नया यह है कि मैं मोबाइल में एक लम्बी डोरी भी बांधकर रखता हूं। डोरी का दूसरा छोर बेल्ट में बंधी एक दूसरी डोरी में फंसा रहता है। उद्देश्य यह है कि फोन कहीं छूट न जाए।
ReplyDeleteकुछ दिनों में यह भी बोझिल लगने लगेगा, फ़िर कुछ और हल्की और सुविधाजनक चीज आयेगी और ये कहानी चलती रहेगी। हम लोगों की इन पर निर्भरता भी।
ReplyDeleteमज़ा आ गया पढकर
ReplyDeleteकई साल पहले टी वी पर One Black Coffee Please! विज्ञापन की याद आ गई।
स्कूटर चलाते समय मोबाईल पर बातें करते लोग मिलेंगे जिन्हें इन झुमकों की ज़रूरत नहीं पढती।
गर्दन एक तरफ़ रखकर मोबाईल को अपने कान और कन्धे के बीच जकडे हुए, बातें करते हैं
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
वैसे तो मोबाइल फ़ोन कान से लगाकर रखने से काफी नुकसान होता ही है, लेकिन इस ब्लूटूथ डीवाईस का भी ज्यादा इस्तेमाल ठीक नहीं है, यही बात ईअरफोंस पर भी लागू होती है |
ReplyDelete.
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शिल्पा
झुमका का आधुनिकरण हमारे हित में है या नहीं ,ये हमारी आवश्यक आवश्यकता है या यूँ ही हम इसे पहन रहें हैं और इसकी उपयोगिता बढ़ा रहें हैं इसपर भी गहन विचार करने व सोचने की जरूरत है....वैसे आपने शीर्षक बरी गहन सोच विचार कर चुना है...शीर्षक शानदार है...
ReplyDeleteअच्छी रचना। पर दिल्ली के लिए बहुत जरूरी है ये झुमका। मोबाइल पर बात करो तो चालान, झुमका बहुत काम करता है।
ReplyDeleteस्वास्थ्य, सुरक्षा और सौन्दर्य की दृष्टि से यह आवश्यक भी है। श्रीमतीजी के कनक-छल्लों से तो बराबरी नहीं कर पायेगा आधुनिक छल्ला पर इसे पहन कर आप अधिक व्यस्त और कम त्रस्त ....
ReplyDeletejai baba banaras.....
झुमका पुराण झूमने पर मजबूर करता है!!
ReplyDeleteएक दिन किसी की पिटाई भी करा देगा ये आधुनिक झुमका....
ReplyDeleteहाल में ही एक सहेली ने अपना एक अनुभव बताया....वो कही जा रही थी सामने ही कार से टिक कर एक व्यक्ति खड़ा था... उसे देखकर मुस्कुराया...सहेली की भृकुटी चढ़ी...फिर मुस्कुरा कर पूछा .."क्या हाल.."..शायद वो गुस्से में कुछ कह ही बैठती...कि उस आदमी ने आगे कहा..."बहुत दिनों बाद फोन किया...".
तब उसे असलियत पता चली..:)
बहुत सुंदर मजेदार पोस्ट,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
landline also should have such bluetooth set.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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रोचक,
पर काजल कुमार जी की ही तरह मुझे तो मोबाइल फोन ही मानवता के लिये शाप सा लगता है... यह झुमका पहनने तक इवोल्व तो नहीं ही कर पाउंगा इस जीवन में...:(
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अरे ये झुमका बहुत हास्यप्रद लगता है हमें तो.अपने आप से बातें करता हुआ नजर आता है इंसान,कभी बेवजह हंसना कभी मुस्कुराने जैसे भाव ..लगता है अभी अभी आगरे से छूट कर आये हैं.
ReplyDeleteचारबाग,लखनऊ पर बहुत पहले एक देहाती औरत ने कमेंट किया था- "लड़का तो अच्छा खासा है पर भगवान की देखो दिमगवै खराब कर दिया ,अकेले में बडबड़ा रहा है बेचारा" ।
ReplyDelete.
ReplyDelete@-अरे, तो मुस्कराये क्यों थे, थोड़ा ध्यान से देखा तो महाशय ब्लूटूथ पर अपनी प्रेमिका से बतिया रहे थे और हमारी स्मरणशक्ति पर अकारण ही जोर डाल रहे थ......
You really made me smile Praveen ji. Loving the way you have written .
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दिलचस्प और मजेदार जानकारी...
ReplyDelete'अरे, तो मुस्कराये क्यों थे, थोड़ा ध्यान से देखा तो महाशय ब्लूटूथ पर अपनी प्रेमिका से बतिया रहे थे
ReplyDeleteऐसे वाकये तो हमारे साथ भी हुए हैं :) बढ़िया जानकारी दी आपने......
ये आधुनिक बरली का बाज़ार है तो निला दांत या सांसद तीन [एम पी थ्री]जैसा आधुनिक झुमका ही तो गिरेगा:)
ReplyDeleteमेरे पास हे, ओर मैने सिर्फ़ एक बार ही इसे कान से लगाया, भाई मुझे मजा नही आया, पहले तो इस की बेटरी कब धोखा दे जाये पता नही, फ़िर इसे कान से लगाये रखो,फ़ोन आने पर इसे चालू करो, इसे चालू रखो तो बेटरी खत्म हो जायेगी... फ़िर देखने वाला देख कर पता नही क्या सोचता हे कि इसे अपने आप से बात करने की बिमारी हे क्या... ना बाबा ना हम तो तोबा करते हे.
ReplyDeleteआप का लेख बहुत अच्छा ओर रोचक लगा, धन्यवाद
प्रवीण जी,
ReplyDeleteइस लिंक को देखिये, हम जैसों का इस सुसरे ब्लू टूथ ने कभी कभी काफ़ी कबाडा किया है, उसका किस्सा फ़िर कभी
http://www.youtube.com/watch?v=Khn1d6LQ8PU
आशीष श्रीवास्तव की बातों पर थोडा एतराज है। इस तरह के विषयों पर शोध लांग टर्म होते हैं और किसी भी परिणाम को संशय की नजर से देखना तो ठीक है लेकिन इतना आत्मविश्वास की वो गलत ही हैं कहना शायद ठीक नहीं। वैसे हो सकता है इस विषय पर उनको ज्यादा जानकारी हो।
ठीक यही बात ग्लोबल वार्मिंग/मौसम आदि के बारे में अक्सर देखने को मिलती है। इतने गूढ विषय पर इतनी जल्दी इतनी Strict राय बनाना ठीक नहीं।
सुविधाजनक तो है ये आधुनिक झुमका , बस कुछ गलतफहमियां करवा कर सरेराह पिटवा ना दे !
ReplyDeleteआपने इस आधुनिक झुमका के प्रति अब मेरा भी आकर्षण बढ़ा दिया है.
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
प्रवीण शाह से सहमत. इस जैसे आधुनिक तकनीकी उपाय जीवनशैली में सहायक तो हैं पर उनपर हद से अधिक निर्भरता उचित नहीं है.
ReplyDeleteऔर अब आप भी गा सकेंगे झुमका गिरा रे किसी भी बाज़ार में.
ReplyDeleteबहुत सच कहा है आपने ... इस झुम्केसे तो हम अक्सर परेशां रहते है :)
ReplyDeleteपढ़ कर एक प्रश्न कौंधता है ...
ReplyDeleteक्या २१वी सदी में दिखावे का प्रेम है
जिसकी हैसियत झूमके कि है वो ट्रैफिक वालो कानून भंग कर के भी आराम से बच जाएगा | लेकिन बाकी लोग जुर्माना भरेंगे | यानी इस झूमके ने भी समाज को दो भागो में बांटने का काम किया है | अब मोबाईल तरंग कितना नुकशान करती है ये तो पता नहीं लेकिन लोगो को देखता हूँ ससुरे दिन भर कान के फोनवा लगा के रखते है |एक भी नहीं मरा फोन के कारण नाही किसी को कैंसर हुआ है | लेकिन इतना जरूर है कि ये फोन नामकी बीमारी घातक है |
ReplyDeleteनीरज भाई,
ReplyDeleteक्या मोबाईल फोन से कैंसर हो सकता है ?
यु ट्यूब का एक लिंक है साथ में कुछ विद्वानों की राय भी.
मै स्केप्टिक हूँ, किसी भी रिपोर्ट को ठोंक बजा कर ही विश्वास करता हूँ!
ग्लोबल वार्मिंग को मै मानव गतिविधियों से उत्पन्न मानता हूँ :-) इसमे कोई शक नहीं !
lovely anecdotes
ReplyDeleteand a thoughtful post...
Sometimes people follow technology blindly without precautions.
ये कान भी आप ही का है .....:))
ReplyDeleteपाण्डेय जी,
ReplyDeleteशुभकामनाएँ !
जो दिल ने कहा ,लिखा वहाँ
पढिये, आप के लिये;मैंने यहाँ:-
http://ashokakela.blogspot.com/2011/05/blog-post_6262.html
हा हा हा हा बहुत सही कहा...आधुनिक झुमका...
ReplyDeleteलेकिन मैंने सुना है की यह भी कान को बचा नहीं पाता...
यदि आपके पास अधिक जानकारी हो तो मुझे बताएं,इससे सम्बंधित...आश्वस्त हो जाऊं तो मैं भी इसका प्रयोग करूँ...
कान में लगाने वाला ब्लूटूथ का यन्त्र आधुनिक जीवनशैली का अभिन्न अंग है। जिन्होने आधा किलो के फोन रिसीवर का कभी भी उपयोग किया है, उनके लिये डेढ़ छटाक का यह आधुनिक झुमका किसी चमत्कार से कम नहीं है।सर अजब का झुमका !
ReplyDeleteएक नवीन यन्त्र की जानकारी सविस्तार मिली.अब जाना कि वो झुमके में मस्त रहे होंगे.वरना ऐसी हरकतें करते हुए मैं जब कुछ लोगों को देखता था तो सोचता था.अच्छे घर का पढ़ा-लिखा दिख रहा है.कपड़े भी अच्छे पहन रखे हैं . बिचारा !!! कितनी कम उम्र में सरक गया है.च च च
ReplyDeleteमैं तो तार वाला हेडफोन ही इस्तेमाल करता हूँ अगर कभी लम्बी बात करनी हुई तो.
ReplyDeleteअभी तक तो कभी झुमका पहनना नहीं हुआ :)
हमने तो कभी नहीं पहना ये आधुनिक झुमका...अब पहनेंगे भी नहीं!
ReplyDeletepraveen ji
ReplyDeletebahut hi mast -mast laga aapka ye aadhinik jhumka .
badhiya jankari .dekhiye shri maan ji se kahte hai .
vo to vaise hi jhmko ke naam par chidhte hain----;)
bahut bhut badhai
poonam
अब कुछ ऐसे गाने सुनने में आ सकते हैं
ReplyDeleteदिल्ली के मेक डोनाल्ड में
ब्लू टूथ गिरा रे
आद. प्रवीन जी,
ReplyDeleteब्लू टूथ सुविधा और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर है !
मगर इसका भी अधिक उपयोग ठीक नहीं है !
यह तो बड़ी रोचक पोस्ट लगाई...मजेदार.
ReplyDeleteाब मै क्या कहूँ--- दिल ललचा गया है आधुनिक झुमका पहनने को। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआप का लेख बहुत अच्छा ओर रोचक लगा, धन्यवाद|
ReplyDeletebahut badhiya .aadhunik jhumka wakai anokha hai
ReplyDeleteरोचक लेख, हमने झुमका कभी इस्तेमाल नहीं किया, वैसे ही काम चल जाता है। इसके प्रयोग के लिये बार-बार नीले दाँत चालू करना, झुमका चालू करना वगैरह झंझटिया लगता है।
ReplyDelete...अब समझ आया कि ई हमको अब तक काहे नहीं सुहाया ...........आखिर है तो "आधुनिक झुमका ही "......तभिये इसके प्रति हमेशा अनाकर्षण ही रहा इसके प्रति !
ReplyDelete......कुछ और नामकरण करिये ना ......हम तो तभिये इसके बारे में गंभीर होंगे !
ReplyDeleteइमेल सबस्क्राइब कर लिया है. शुक्रिया!
ReplyDeleteआज 25 जून 2011 के दैनिक जनसत्ता के बाजार में यह आधुनिक झुमका गिर गया है।
ReplyDeleteइस नील-दंत कर्ण-कुँडल की कथा खूब भायी
ReplyDelete