बहुत दिन हो गये, डायरी नहीं लिखी। ऐसा नहीं है कि जीवन में कुछ घट नहीं रहा है, ऐसा भी नहीं है कि मैं लिख नहीं रहा हूँ, पर पता नहीं क्यों डायरी नहीं लिख पा रहा हूँ। डायरी लिखना एक अत्यन्त अनुशासनात्मक कार्य है और बहुधा अनुशासन अवसर पाते ही सरक लिया करता है जीवन से। मन में बहुत कुछ चलता रहता है, बहुत ही व्यक्तिगत, साधारणतया बाहर आता ही नहीं है, सार्वजनिक लेखन में तो कभी भी नहीं। डायरी ही एक ऐसा माध्यम है जिसमें आप अपने व्यक्तिगत क्षणों को उतार सकते हैं और वह भी निःसंकोच। बहुत बार जब डायरी में औपचारिक होने लगता हूँ तो स्वयं पर हँसता हूँ, लगता है किसी और के लिये लिख रहा हूँ, किसी नाटक में किसी और पात्र को जी रहा हूँ। स्वयं को स्वयं समझ स्वयं के लिये लिख लेना ही डायरी लेखन है।
अपनी लिखी हुयी डायरी के पृष्ठों को पुनः पढ़ना एक विशेष अनुभव है। आपके वास्तविक जीवन का जो प्रक्षेप होता है उससे नितान्त अलग दिखता है डायरी में व्यतीत किया हुआ जीवन। आप यह मानकर तो चलिये कि यदि किसी के मन में अपने जीवन का सत्य सहेजकर रखने का संकल्प है तो वह सत्य को बचाकर रखना चाहेगा, अपनी सुरक्षा के लिये या अपने विकास के लिये। मुझे अपने जीवन के व अपनी डायरी के तटों में बहुत अधिक निकटता दिखायी पड़ती है, पतली सी धारा में बहता निश्चित सा जीवन। बहुत महापुरुष ऐसे हैं जिनकी डायरी को पढ़ना न केवल रुचिकर रहता है वरन उसमें रहस्यों के उद्घाटन की विशेष संभावनायें बन जाती हैं। विकीलीक्स जैसा विस्फोटक कुछ भी न हो पर फिर भी बहुत कुछ ऐसा निकल आता है जिस पर चर्चाओं का बवंडर मचा ही रहता है, बहुत दिनों तक।
मैं यही सोचता हूँ कि कभी मेरी डायरी इस तरह अपने रहस्य खोलेगी तो कितना बवाल मचेगा? जीवन जब सपाट राह में भाग रहा हो तो इस संदर्भ में बहुत अधिक संभावना नहीं है कि कुछ रोचक मिलेगा। मर्यादावश जिन भावों को मन में छिपाना पड़ा है, बस वही निकलने को उतावले होंगे। बहुधा मन मानता नहीं है बिना अपनी बात कहे। किसी तरह उसको मना कर उसका पक्ष ही डायरी में लिखना पड़ता है। यद्यपि डायरी में लिख लेने भर से पूरा द्वन्द शमित नहीं हो पाता है पर एक सन्तोष बना रहता है कि मन और मर्यादा को समान अवसर दिया गया।
डायरी लेखन किसी संभावित निष्कर्ष को ध्यान में रख कर नहीं होता है, पर उसमें विस्फोट की संभानायें बनी रहती हैं। कुछ भी हो, आपबीती को औरों के दृष्टिकोण से न देखकर स्वयं से बतियाने का एक सशक्त माध्यम हो सकता है डायरी लेखन। स्वयं से बतियाना, अपने अन्दर देखना, अपनी क्षमताओं को स्वयं आकना और आत्म-साक्षात्कार का एक सशक्त माध्यम हो सकता है डायरी लेखन। दिन में कुछ पल सच के बीच बिताने का माध्यम हो सकता है डायरी लेखन। स्वयं को समझाने और मनाने का माध्यम हो सकता है डायरी लेखन।
डायरी का जीवन हृदय के निकटतम होता है।
@मैं यही सोचता हूँ कि कभी मेरी डायरी इस तरह अपने रहस्य खोलेगी तो कितना बवाल मचेगा?
ReplyDelete@डायरी लेखन किसी संभावित निष्कर्ष को ध्यान में रख कर नहीं होता है
इन्हीं खतरों के चलते बहुत से लोग डायरी नहीं लिख पाते हैं और लिखते हैं तो अपने बारे में "वाह वाह" ही लिखते हैं। वैसे अब तो इस उद्देश्य के लिये भी ब्लॉग का प्रयोग किया जा सकता है।
लिखने-कहने की बातें तो लगभग वही होती हैं, लेकिन माध्यम और अवसर के मुताबिक अभिव्यक्ति का ढंग बदल जाता है.
ReplyDeleteएक बुजुर्गवार की डायरी पढ़ने मिली थी, उसमें जहां काट-छोट था वहां काउन्टर साइन भी किया गया था.
लिखने-कहने की बातें तो लगभग वही होती हैं, लेकिन माध्यम और अवसर के मुताबिक अभिव्यक्ति का ढंग बदल जाता है.
ReplyDeleteएक बुजुर्गवार की डायरी पढ़ने मिली थी, उसमें काट-छोट पर काउन्टर साइन किया गया था.
डायरी रहस्योद्घाटन करे न करे पर स्वयं को मूल्यांकित करने के अवसर अवश्य प्रदान करती है. हाँ, कुछ अवसरों पर यह रहस्योद्घाटन का खतरा भी बरकरार रखती है
ReplyDeleteदिन में कुछ पल सच के बीच बिताने का माध्यम हो सकता है डायरी लेखन। स्वयं को समझाने और मनाने का माध्यम हो सकता है डायरी लेखन।
ReplyDeleteडायरी का जीवन हृदय के निकटतम होता है।
बहुत अच्छा लिखा है |सच्चाई अपना मार्ग चाह रही है -
लिखते रहिये मार्ग मिल ही जायेगा ...!!
"बहुत बार जब डायरी में औपचारिक होने लगता हूँ तो स्वयं पर हँसता हूँ,"
ReplyDeleteयही तो ...इसलिए मैंने भी लांग बैक डायरी लेखन को तिलांजलि देदी ...
यह आन लाईन डायरी तो है न ?
मगर अनौपचारिक डायरी लिखने के लिए गांधी का नैतिक साहस जुटाना होगा !
सत्य से साक्षात्कार करना होगा !
कोई स्थान तो मिले जहाँ वो ही लिखा जाय जो मन में है..... बिना किसी औपचारिकता के...... ऐसा तो डायरी लेखन में ही हो सकता है..... फिर भले ही आगे चलकर रहस्योद्घाटन का डर ही क्यों न हो.....
ReplyDelete@मैं यही सोचता हूँ कि कभी मेरी डायरी इस तरह अपने रहस्य खोलेगी तो कितना बवाल मचेगा?
ReplyDeleteडायरी लिखने वाला हर व्यक्ति ये बात जनता है ,ऐसी बात जो बवंडर खड़ा कर सकती है अपने बारे में तो कोई नहीं लिखता ,अनजाने में लिख जाये तो बात अलग है | डायरी में आजतक तक लोगों ने दूसरों के ही रहस्य खोले अपने नहीं ,यदि अपने रहस्य खोले भी है तो वे सतही है गंभीर नहीं |
लगातार ११ वर्षों तक डायरी लिखता रहा हूं , पिछले दो वर्षों से लगभग छूट सी गई है । लगता है आप फ़िर से शुरू करवाएंगे । अरे जब इत्ता ऐसा ऐसा लिखेंगे तो भला कौन जालिम बच पाएगा । शुभकामनाएं जी ।
ReplyDeleteकिसी ने कहा था कि वास्तविक डायरी लेखन ऐसे ही खतरों से भरा है जैसा प्रेम-पत्र लिखना।
ReplyDeleteपहले बिना नागा डायरी लिखते थे, परंतु अब ऐसा लगता है कि डायरी में हम जो भी लिखते हैं, उसे अगर किसी ने पढ़ लिया तो अपनी सारी गोपनीय चीजें उजागर हो जायेंगी और अपनी कमजोरियाँ भी हाथ लग जायेंगी। इसलिये अब लिखना बंद ही कर दिया है, यहाँ तक कि उपहार में हमें कई अच्छी अच्छी डायरी मिली हैं, पर वे हमारी अलमारी की शोभा बड़ा रही है।
ReplyDeleteहाँ इस बात से मैं भी वाकिफ हूँ। इसलिए अलग सरनेम अलग शहर और अलग राज्य के नाम से ब्लॉग बनाया हूँ। मैं कंप्यूटर का जीनियस हूँ, जानता हूँ की करोडो में मेरा ब्लॉग का मिलना और अलग नाम के बाबजूद पहचाना जाना असंभव है।
Deleteडायरी लिखना बहुत अच्छा होता है - इससे बढ़कर कोई भी सच्चा दोस्त नहीं है
ReplyDeleteस्वयं की खोज के लिए स्वयं के प्रति सच्चा बनना पड़ेगा।
ReplyDeleteइसके लिए डायरी से बेहतर जगह शायद ही हो कोई।
कुछ लोग ब्लॉगिंग को भी डायरी लेखन मानते हैं। पता नहीं।
डायरी लेखन किसी संभावित निष्कर्ष को ध्यान में रख कर नहीं होता है, पर उसमें विस्फोट की संभानायें बनी रहती हैं।
ReplyDeleteआपकी डायरी के कुछ 'विस्फोटों 'की इंतजार कर रहें हैं प्रवीण भाई.
bilkul theek kha aapne...Praveen ji.....
ReplyDeleteaise lga jaise mere mann ke hi vichar likh diye aapne...
डायरी स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार कराती है ..
ReplyDeleteरहस्योद्घाटन के साथ विस्फोट की सम्भावना काफी होती है ...पर लिखने वाले लिखते ही हैं ..
हम तो इस अनुभव और रोमांच से महरूम ही है
ReplyDeleteशुभकामनये
आपने सही लिखा है कि बहुधा अनुशासन अवसर पाते ही सरक लिया करता है जीवन से।
ReplyDeleteडायरी लेखन पर रोचक चर्चा की है आपने...
बहुत अच्छा विषय और लेख। सोच रहा हूं मैं भी लिखूं डायरी।
ReplyDeleteक्या डायरी में सब कुछ सच लिखा जा सकता है ? अन्तरंग भी !
ReplyDeleteध्यान रखियेगा, अक्सर "डायरी" अपने स्वामी से अधिक "सशक्त" हो जाती है ।
ReplyDeleteडायरी दिल के करीब होती है इसलिए उसमे लोग दिल निकाल कर रख देते है |
ReplyDeleteडायरी लेखन के बारे में सोचते है , अभी तो खुद के प्रति इमानदार बनने की सोच रहे है .
ReplyDeleteकितने ही लेखकों की आत्मकथाएं नज़रों के सामने घूम गयीं...जिनमे उनकी 'डायरी' द्वारा हुए रहस्योद्घाटन से उन्हें मुसीबतें झेलनी पड़ीं.
ReplyDeleteपर सबके लेखन की शुरुआत डायरी लेखन से ही होती है...यह भी सच है.
डायरी लेखन ... हमें अवगत कराती है हमारी वास्तविकता से ... बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...।
ReplyDeleteड़ायरी तो कभी मै भी लिखा करती थी मगर अब पिछले कुछ सालों से छुट गयी है………या कहिये जब से ब्लोग लेखन शुरु हुआ तब से डायरी लिखनी बन्द ही हो गयी है मगर इतना तो है कि जो हम डायरी मे लिख सकते है उसकी जगह कोई नही ले सकता।
ReplyDeleteअच्छा विषय
ReplyDeleteडायरी लिखना बहुत अच्छा होता है
@ परवीन जी
ReplyDeleteलोग ब्लॉगिंग को भी डायरी लेखन मानते हैं मेरा भी यही विचार है
डायरी लिखना स्वयं से पारदर्शिता तो है ... पर यदि किसी के हाथ लग जाये तो... खास कर घरवाली के... तो इतना बेबाक बनने की ज़रूरत भी क्या है... बकौल शमशेर - नहीं लिखी, तो नहीं लिखी॥
ReplyDeleteडायरी-लेखन तो अपनी अत्मा से पहचान जैसा लगता है .....रह गयी खतरों की बात तो न लिखो तब भी ,खतरों को जब भी आना होगा रास्ता खोज ही लेते हैं .......
ReplyDeleteकोई डायरी लिखे या ना लिखे पर आपका हर कर्म आपके भविष्य की डायरी लिख रहा होता है जो विष्फोटक रूप से खतरनाक व सुखद भी हो सकता है...इसलिए अपने हर कर्म में ईमानदारी भरी सावधानी आप पर निर्भर है चाहे घर हो,बाहर हो या दफ्तर ...जो लोग जीवन में संतुलित व सत्य के करीब होते हैं उनकी डायरी सुखद भविष्य की ही लिखी जाती है......
ReplyDeleteNow a days personal blogs are become the another way to express instead of writing diaries. But Dary writing remains still important.
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
honesty se dairy likhana saahaspoorn kadam hai...
ReplyDeleteबचपन से ही डायरी लिखते थे..मित्रों ने सीक्रेट कोड भी बताए लेकिन मम्मी के सामने काम नहीं आए..फिर भी बाज़ नहीं आए...डायरी लिखने के बाद कुछ और कहीं लिखने को रह नहीं जाता..
ReplyDeleteएक नफा देखा है डायरी का - आसानी से अतीत में उतरा जा सकता है!
ReplyDeleteडायरी लिखना बहुत अच्छी आदत है!
ReplyDelete--
बहुत शानदार आलेख!
'पत्र' और 'डायरी' को बेसिकली प्रकाशन-प्रसारण के उद्देश्य से नहीं लिखा जाना चाहिए. लेकिन आजकल ऐसा नहीं रह गया है.....और इसीलिए इन विधाओं की आत्मीयता तथा विश्वसनीयता खतरे में दिखाई देने लगी है. डायरी को बुलेटिन नहीं न होना चाहिए.
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट के लिए बधाई.
मुझे तो यह ब्लॉग लेखन भी डायरी जैसा ही कुछ कुछ लगता है.
ReplyDeleteआपकी डायरी में उपस्थित हूँ,
ReplyDeleteआज बस इतना ही !
दिन में कुछ पल सच के बीच बिताने का माध्यम हो सकता है डायरी लेखन। स्वयं को समझाने और मनाने का माध्यम हो सकता है डायरी लेखन।
ReplyDeleteलेकिन काफी हिम्मत का काम है. सक्रिय स्तरीय लेखन के लिए बधाई.
एक जमाना गुजरा जब नियमित डायरी लिखा करते थे...फिर तो डायरी नोटस बनाने के काम आने लगी. आज भी आ रही है, जब कुछ पढ़ता हूँ तो डायरी जरुर रखता हूँ साथ...उम्दा विचार और वाक्य उतारने के लिए...उन्हें बाद में अलग से पढ़ना...बहुत सुखकर लगता है.
ReplyDeleteअब तो हम हैं, हमारा ब्लॉग, किताबें और नोटस बनाने के लिए डायरियाँ.....कुछ पंक्तियाँ तो आपकी भी नोट हो गई हैं. :)
स्वयं को स्वयं समझ स्वयं के लिये लिख लेना ही डायरी लेखन है।
ReplyDeletefor me, by me, to me...
जय हिंद...
जीवन के शुरुआती दिनों में डायरी-लेखन मेरा मुख्य शगल रहा.कई कविताएँ,शेर-ओ-शायरी भी लिखकर मन को हल्का किया.आत्म-संतुष्टि खूब मिली.
ReplyDeleteअब चार-पाँच डायरियां हैं,उन्हें पलटकर पढ़ना अच्छा लगता है,कभी-कभार वहीँ से उठाकर 'पोस्ट' भी कर देता हूँ.
आपने सही कहा है कि डायरी-जीवन हमारे सबसे करीब होता है.और हाँ,कोई तूफ़ान या बखेडा न खड़ा हो इसके लिए भाभीजी की नज़रों से ज़रा बचा के रखना !
विचार तो अच्छा लग रहा है भाई
ReplyDeleteडायरी अपने मन क दर्पण है , एक सच्चा दोस्त भी है । जो डायरी रोज लिखते है वे टेंशन में कम ही रहते हैं।
ReplyDeleteप्रवीण जी ! बहुत अच्छे विषय चुन कर गहरी मीमांसा कर लेते हैं आप.हिंदी भाषा पर आपका अधिकार देखते ही बनता है.वैसे आप हैं कहाँ के ? आपका विस्तृत परिचय मुझे अप्राप्त है.डायरी लेखन की आदत किसी उम्र में थी.अब डायरियाँ तो बहुत रहती हैं पर बाँट देता हूँ.दो मेरे पास रहती हैं पर उसमे कविताओं के सिवा कुछ लिखा नहीं रहता.Contd......
ReplyDeleteमूलत : दैनन्दिनी का लेखन अब संभव नहीं लगता.किसी उम्र में निजी जीवन के अवसादों और महत्वपूर्ण घटनाओं को डायरी में कलमबद्ध करने की आदत थी. पर अब निजी जैसा कुछ भी नहीं लगता.सारी गोपनीयता अब ओपनीयता बन चुकी है.इन सबके बावजूद डायरी लेखन की मूल अवधारणा को किसी भी युग में नकारा नहीं जा सकता.पुरानी डायरियाँ किसी "बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन" की तरह लगती हैं.
ReplyDeleteडायरी लेखन उपयोगी आदत है. लेकिन डायरी यदि निजी बातों को उजागर कर रही हो तो इसे सबसे अधिक खतरा अंतरंग लोगों से होता है.
ReplyDeletedairy likhanaa aek bahut achchi aadat hai isme likhne se purani baaten yaad raha jaatin hain .per isme likhi hui secreat baaten agar kisi ko pataa chal jaaye to muskil bhi ho sakati hai,isiliye diary likhne ke baare main log sochten hain.parantu phir bhi diary likhnaa achchi aadat hoti hai.lekin sach likhnaa chahyie.jhoot nahi likhnaa chayie.
ReplyDeleteplease visit my blog and leave the comments also.
जो घटता है उसे लिख नहीं पाते और जो लिखते है वह घटता नहीं है इसी को तो लेखक कहते है। डायरी लिखो मगर छुपा कर रखो
ReplyDeleteमेरे लिए बहुत मुश्किल काम है ...शुभकामनायें आपको !!
ReplyDeleteबहुत हिम्मत का काम है डायरी लिखना और वह भी सच लिखना . मै ऎसी हिम्मत ना जुटा पाया आज तक
ReplyDeleteNice Topic n article Praveen bhai..Because of you I again read my old diaries and cleaned it before..The way we think about the past n the way we penned it quire different...
ReplyDeleteKeep writing..
कहीं-कहीं कभी-कभी स्वयं के प्रति पूरी इमानदारी से किया गया यह डायरी लेखन मरणोपरांत परिवार के शेष सदस्यों के जीवन में तूफान भी ला सकता है ।
ReplyDeleteअब तो जी ब्लॉग ही सब कुछ है।
ReplyDeleteराहुल सिंह जी का कमेंट पढ़कर मजा आ गया।
अपने मनोभाव और जीवन का सच दोनों ही डायरी में उजागर होते हैं अगर पूरी तरह से सच है तो समय के साथ बहुत सारे रहस्यों का उद्घाटन होता है....अगर वाकई हमारा जीवन रहस्यमय है....यह खतरा तो बना रहेगा...
ReplyDeleteडायरियां जिंदगी में तूफ़ान भी ला सकती हैं , यह सोचकर लिखना पड़े तो फिर लिखने का फायदा क्या ...
ReplyDeleteडायरी में लिखना और फिर कई वर्षों बाद उसे पढना रोचक लगता है ...कभी कभी लगता है बुरी यादों को डायरी में समेटना ठीक नहीं , जब आप दुबारा उसे पढ़ते हो तो , फिर वही दर्द !
मगर फिर भी लिखने वाले लिखते ही हैं ...
डायरी लिखना अच्छा है अगर आप में कटुसत्य को भी लिखने की ताकत हो..
ReplyDeleteडायरी लिखना खुद को भी कटघरे में खड़ा करने वाला काम है. अगर पूरी ईमानदारी से लिखा गया तो फिर प्रश्नचिह्नों के नीचे दब जाएगी सारी अभिव्यक्ति और फिर सोचना होगा कि ऐसा क्यों लिखा? हाँ डायरी स्व-अभिव्यक्ति का अच्छा मध्यम है और दिल और दिमाग के बोझ को हल्का भी कर देती है. ये सोच कर भी डायरी लिखना बेहतर है कि आगे चलकर ये गले का फन्दा न बनजाय.
ReplyDelete--
डायरी इतनी निजी चीज़ है कि उसे ,ईमानदारी से लिखा जाय तो व्यक्त करने में कठिनाई भी है और खतरे भी!
ReplyDeletewriting a diary is like releasing all ur good and bad in it.
ReplyDeleteits a very powerful tool to go bck in good times and come out of bad feelings.
Nice post !!
डायरी लेखन सा आनंद कही नहीं प्रवीण जी,सच्ची दोस्त वाही है!!
ReplyDeleteपर ब्लॉग्गिंग शायद इसकी जगह लेने में किसी के लिए सफल किसी क लिए विफल हो सकता है.....आपना
अपना नजरिया है......
डायरी लेखन सा आनंद कही नहीं प्रवीण जी,सच्ची दोस्त वाही है!!
ReplyDeleteपर ब्लॉग्गिंग शायद इसकी जगह लेने में किसी के लिए सफल किसी क लिए विफल हो सकता है.....आपना
अपना नजरिया है......
डायरी लिखना अच्छा है अगर आप में कटुसत्य को भी लिखने की ताकत हो..
ReplyDeleteडायरी लिखने की उत्सुकता तो शायद ही कोई मन ऐसा होगा जिसमे न होगा...क्योंकि कोई मन नहीं जो खुद से नहीं बतियाता और उन एकान्तिक विचारों को किसी के साथ सांझा करने को उत्सुक न होता होगा...पर इसके संभावित खतरे ही लोगों को इसकी हिम्मत नहीं देते....
ReplyDeleteडायरी लिखने का बहुत फायदा है, एक तरह से देखा जाये तो आत्म-मंथन हो जाता है | दूसरा यह कि जब काफी समय के बाद पुराने पन्ने पढ़े जाते हैं तो एक तरह से पुराने दिन फिर से जीए जाते हैं |खुद को बढ़ते हुए महसूस किया जा सकता है डायरी से |:)
ReplyDelete.
.
.
शिल्पा
सर डायरी लेखन पारदर्शी होनी चाहिए !
ReplyDeleteजीवन में विवशताओं का विष न चढ़े इसके लिये आवश्यक है कि वह निकलता रहे किसी न किसी माध्यम से। इस कार्य के लिये डायरी से अधिक आत्मीय क्या और हो सकता है भला
ReplyDeletebahut gahri aur sachchi baat kahi .dairy likhne ke kai fayde hai ,meri aadat bhi hai
सच में डायरी का जीवन हृदय के निकटतम होता है .... बहुत सुन्दर लेख
ReplyDeletedayeri lekhan shayad aab kam hota ja raha hai aab to blog ,per hi sabh apne bhav prakat kar dete hai
ReplyDeleteउम्दा लेखन ..........
ReplyDeletevery nice article you write this article in the meaningful way thanks for sharing this.
ReplyDeleteplz visit my website
बहुत खूब ..
ReplyDeleteअद्भुत लेख!
Hindi Panda