कितना रखना, कितना तजना,
नैसर्गिक या विधिवत सजना,
संचय कर लूँ या त्याग करूँ,
अनुशासन या अनुराग रखूँ,
कुछ कह दूँ या सहता जाऊँ,
तट रहूँ या संग बहता जाऊँ,
द्वन्द, दिशायें तोड़ सघन होता जाता,
अभिलाषायें, जीवन यह खोता जाता,
किन्तु हृदय में कोई कहता, सुन साथी,
व्यर्थ व्यग्रता जीवन को भरती जाती,
हाथ लिया जो कार्य, उसे निपटा डालो,
स्वप्नों के उपक्रम जीवन में मत पालो,
भय छोड़ो, आश्वस्त रहो,
व्यस्त रहो या मस्त रहो।1।
लम्बा जीवन, विश्राम यहीं,
राहों में भी, संग्राम यहीं,
अतिशय आश्वासन पाकर भी,
शंकायें मन किसने भर दी,
आगत दुख से घबराने का,
जो बीत गया, पछताने का,
निर्माण किये अपने भवनों में खो जाता,
बहुधा प्रात हुयी, मै थककर सो जाता,
प्रकृति-विषम जीवन हमने चुन ही डाला,
व्यर्थ अकारण धधक रही उर में ज्वाला,
तन, मन, जीवन तिक्त रहे, अवसाद रहे,
क्यों खण्डयुक्त जीवन का प्रखर विषाद रहे,
तन-मन साधन है, स्वस्थ रहो,
व्यस्त रहो या मस्त रहो।2।
निर्वात बने पर रुके नहीं,
देखो अब ऊर्जा चुके नहीं,
भरती जाये, बढ़ती जाये,
अधिकारों को लड़ती जाये,
वह स्रोत कहीं से आना है,
हमको ही पता लगाना,
जीवन अपना कुछ दुष्कर है कुछ रुचिकर है,
सुख दुख खींच रहे, जो भी मन अन्तर है,
दशा आत्म की, दिशा पंथ की मायावी,
कहने को, सुख भर लायेंगे, क्षण भावी,
चाह हमारी वर्तमान को प्रस्तुत हों,
क्षितिज ओर हों, पैर धरा से ना च्युत हों
जगते स्वप्नों में व्यक्त रहो,
व्यस्त रहो या मस्त रहो।3।
एक आशावादी जीवन दर्शन!
ReplyDeleteकविता कवि के स्वर में ज्यादा आनन्दित करती है !
निर्वात बने पर रुके नहीं,
ReplyDeleteदेखो अब ऊर्जा चुके नहीं,
भरती जाये, बढ़ती जाये,
अधिकारों को लड़ती जाये,
वह स्रोत कहीं से आना है,
हमको ही पता लगाना,
ati uttam ,raaste to hame hi talashne hai sach kaha ......
सुंदर कविता,
ReplyDeleteमस्त रहने की इस व्यस्तता में पेट का बहुत बड़ा रोल है।
यह प्रतिमा जापानी चेहरा ले कर आई है. इस का मूल भारतीय रूप देखना हो तो मथुरा के संग्रहालय में कुबेर की प्राचीन प्रतिमा देखें।
सुंदर कविता,
ReplyDeleteमस्त रहने की इस व्यस्तता में पेट का बहुत बड़ा रोल है।
यह प्रतिमा जापानी चेहरा ले कर आई है. इस का मूल भारतीय रूप देखना हो तो मथुरा के संग्रहालय में कुबेर की प्राचीन प्रतिमा देखें।
मस्ती, कभी व्यस्तता की कभी फुरसत की.
ReplyDeleteमस्त!
ReplyDeleteअतिशय आश्वासन पाकर भी,
ReplyDeleteशंकायें मन किसने भर दी,
आगत दुख से घबराने का,
जो बीत गया, पछताने का,
इस जद्दोज़हद से निकलें तो शायद वर्तमान को ज्यादा जी सकें ..... हर पंक्ति सधी सी है ...कैसे बाँध लेते है विचारों को इस तरह ...... बधाई
कहने को, सुख भर लायेंगे, क्षण भावी,
ReplyDeleteचाह हमारी वर्तमान को प्रस्तुत हों,
क्षितिज ओर हों, पैर धरा से ना च्युत हों
जगते स्वप्नों में व्यक्त रहो,
व्यस्त रहो या मस्त रहो।3
बहुत अच्छा लिखा है आपने-
मन का द्वंद्व हटाती ..वर्तमान में जीने की शिक्षा दे रही है आपकी रचना ..
जो है उसे अपनाओ -
उसी में जुट कर -
उसी से सुख पाओ -
अगर आम आदमी इतनी सी बात समझ ले तो ये जीवन सुखपूर्वक बीते ....
पर दुःख है यही बात तो समझ में नहीं आती ...!!
भय छोड़ो, आश्वस्त रहो,
ReplyDeleteव्यस्त रहो या मस्त रहो।1।
--------------
भय छोड़ो, आश्वस्त रहो,
व्यस्त रहो और मस्त रहो।1।
क्षितिज ओर हों, पैर धरा से ना च्युत हों...
ReplyDeleteइस तरह व्यस्त और मस्त रहने की बात ही क्या ...
सुन्दर कविता ...
:)
ReplyDeleteमस्त कविता
ReplyDeleteसंपूर्ण दर्शन...वाह!!!
ReplyDeleteबहुत उम्दा!!
संवेदशील व्यक्ति के लिए आज व्यस्त रहने के लाखों कारण हैं क्योकि चारो तरफ दुःख बिखरा परा है मानवता त्राहिमाम कर रही है ऐसे में अगर इन सबसे मुक्त होकर मस्त रहना चाहे तो बरा मुश्किल है....कभी कभार सोचने पर लगता है की हम जो जीवन जी रहें हैं ..क्या यही जीवन है...?
ReplyDeleteप्रेरणादायी रचना जिसमें आशा का नवसंचार निहित है और निहितार्थ भी।
ReplyDeleteजीवन अपना कुछ दुष्कर है कुछ रुचिकर है,
ReplyDeleteसुख दुख खींच रहे, जो भी मन अन्तर है,
दशा आत्म की, दिशा पंथ की मायावी,
कहने को, सुख भर लायेंगे, क्षण भावी,
यही तो जीवन के सत्य हैं जिन्हें समझना आवश्यक है ...पूरे जीवन को सकारात्मक दर्शन में समेट दिया आपने ..आपका आभार
न दुखी करो न ही त्रस्त रहो
ReplyDeleteव्यस्त रहो या मस्त रहो ॥
व्यस्त रहो तभी मस्त भी रह सकते हो !
ReplyDeleteहर व्यक्ति अपने शौक और रूचि के अनुसार व्यस्त रहता है,यह अलग बात है कि सबकी व्यस्तता मस्त नहीं करती !
जीने की कला के सही प्रयोग से ही जीवन की गुणवत्ता निर्धारित होती है . मस्त कविता .
ReplyDeleteव्यस्त रहो या मस्त रहो, मेरा मानना है कि व्यस्त रहो और मस्त रहो।
ReplyDeleteकिन्तु हृदय में कोई कहता, सुन साथी,
ReplyDeleteव्यर्थ व्यग्रता जीवन को भरती जाती,
हाथ लिया जो कार्य, उसे निपटा डालो,
स्वप्नों के उपक्रम जीवन में मत पालो,
भय छोड़ो, आश्वस्त रहो,
व्यस्त रहो या मस्त रहो।1।
कविता का एक एक शब्द जीवन की ऊर्जा बनाये रखने के लिये सक्षम है\ तभी तो हम कमेन्ट मे व्यस्त रहते हैं और मस्त रहते हैं आप जैसों को पढ कर प्रसन्नता से सराबोर। बधाई सुन्दर रचना के लिये।
जीवन अपना कुछ दुष्कर है कुछ रुचिकर है,
ReplyDeleteसुख दुख खींच रहे, जो भी मन अन्तर है,
दशा आत्म की, दिशा पंथ की मायावी,
कहने को, सुख भर लायेंगे, क्षण भावी,
चाह हमारी वर्तमान को प्रस्तुत हों,
क्षितिज ओर हों, पैर धरा से ना च्युत हों
जगते स्वप्नों में व्यक्त रहो,
व्यस्त रहो या मस्त रहो।3।
mast rahna zaruri hai ...
निर्वात बने पर रुके नहीं,
ReplyDeleteदेखो अब ऊर्जा चुके नहीं,
बहुत खूब ....आपको शुभकामनायें !!
हाथ लिया जो कार्य, उसे निपटा डालो--सुन्दर ...
ReplyDelete---व्यस्त रहो और (तभी) मस्त रहो....
तन-मन साधन है, स्वस्थ रहो,
ReplyDeleteव्यस्त रहो या मस्त रहो
सुन्दर अभिव्यक्ति ,शानदार विचार
आपने बखूबी प्रस्तुत किया है जीवन का सार.
बहुत बहुत आभार.
बिल्कुल सत्य...
ReplyDeleteन दुःखी करो ना त्रस्त रहो
व्यस्त रहो और मस्त रहो.
चलो दिल्ली दोस्तों अब वक्त अग्या हे कुछ करने का भारत के लिए अपनी मात्र भूमि के लिए दोस्तों 4 जून से बाबा रामदेव दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठ रहे हें हम सभी को उनका साथ देना चाहिए में तो 4 जून को दिल्ली जा रहा हु आप भी उनका साथ दें अधिक जानकारी के लिए इस लिंक को देखें
ReplyDeletehttp://www.bharatyogi.net/2011/04/4-2011.html
'जीने कला' एक निबंध पढ़ा था महादेवी वर्मा का . आपने bhi जीने की कला सिखा दी " व्यस्त रहो या मस्त रहो " के सन्देश से . सत्यम सुंदरम .
ReplyDeleteलम्बा जीवन, विश्राम यहीं,
ReplyDeleteराहों में भी, संग्राम यहीं,
अतिशय आश्वासन पाकर भी,
शंकायें मन किसने भर दी,
आगत दुख से घबराने का,
जो बीत गया, पछताने का,
Awesome !
.
व्यस्त रहो या मस्त रहो
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
बढिया कविता ठेल दी आपने... बिलकुल फुरसतिया इशटाइल....लगता है फ़ुरसतिया जी को चौकन्ना रहना पडेगा :)
ReplyDeleteapan to vyast bhi hain aur mast bhi !:-)
ReplyDeleteजीवन में नव उर्जा का संचार करती कविता.
ReplyDeleteकिन्तु हृदय में कोई कहता, सुन साथी,
ReplyDeleteव्यर्थ व्यग्रता जीवन को भरती जाती,
हाथ लिया जो कार्य, उसे निपटा डालो,
स्वप्नों के उपक्रम जीवन में मत पालो,
भय छोड़ो, आश्वस्त रहो,
व्यस्त रहो या मस्त रहो ...
सच है हाथ के काम निपटा कर मस्त रहना चहाइए ... जीवन् में मस्ती के पल चुराने पढ़ते हैं ... मिलते कभी नही ... मज़ा आ गया पढ़ के ....
Vyast rahne men hi masti ka raz chhupa hai.
ReplyDelete............
तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।
निर्वात ही तो प्रबल प्रवाह का कारक होता है । जबर्दस्त जीवन दर्शन ।
ReplyDeleteजीवन अपना कुछ दुष्कर है कुछ रुचिकर है,
ReplyDeleteसुख दुख खींच रहे, जो भी मन अन्तर है,
दशा आत्म की, दिशा पंथ की मायावी,
कहने को, सुख भर लायेंगे, क्षण भावी,
चाह हमारी वर्तमान को प्रस्तुत हों,
क्षितिज ओर हों, पैर धरा से ना च्युत हों
जगते स्वप्नों में व्यक्त रहो,
व्यस्त रहो या मस्त रहो
बहुत ही सुंदर
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सकारात्मक सोच का दर्शन्।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
मै तो हमेशा मस्त ही रहता हू |
ReplyDeleteजिस कलात्मक,मनोहारी और प्रभावशाली ढंग से सकारात्मक उर्जा को हमारे ह्रदय तक इस अप्रतिम रचना के द्वारा पहुँचाया है आपने, कि जितना भी आभार दे, प्रशंसा करें,कम है....
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना...
मन आनंद से भर गया पढ़कर...बहुत बहुत आभार...
भय छोड़ो, आश्वस्त रहो,
ReplyDeleteव्यस्त रहो या मस्त रहो
बेहतरीन प्रस्तुति
bahut acchi poem hai sir!!
ReplyDelete.
.
.
shilpa
निर्वात बने पर रुके नहीं,
ReplyDeleteदेखो अब ऊर्जा चुके नहीं,
भरती जाये, बढ़ती जाये,
अधिकारों को लड़ती जाये,
वह स्रोत कहीं से आना है,
हमको ही पता लगाना है,
ये पंक्तियाँ धरती पर आए प्रत्येक जीव का संघर्ष व्यक्त करती है. बहुत ही अच्छी रचना है प्रवीण जी.
सकारात्मक विचारों को प्रवाहमान करती शब्द सरिता ........
ReplyDeleteएक सुझाव-कविताओं के प्रकाशन की गति भी ऐसी ही अविरल रहनी चाहिये :)
सच.. बहुत बढिया
ReplyDeleteबहुत सही !
ReplyDeleteव्यस्त रहो तभी मस्त भी रह सकते हो !
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने
तन, मन, जीवन तिक्त रहे, अवसाद रहे,
ReplyDeleteक्यों खण्डयुक्त जीवन का प्रखर विषाद रहे,
तन-मन साधन है, स्वस्थ रहो,
व्यस्त रहो या मस्त रहो ।
अवसाद और विषाद को परे रखने के लिए व्यस्त और मस्त रहना ही होगा।
उत्तम रचना।
"हाथ लिया जो कार्य, उसे निपटा डालो,
ReplyDeleteस्वप्नों के उपक्रम जीवन में मत पालो,
भय छोड़ो, आश्वस्त रहो,
व्यस्त रहो या मस्त रहो।1।"
बस व्यस्त रहो और मस्त रहो !!
आशावादी जीवन-दर्शन ...!!
.
ReplyDelete.
.
मस्त, एकदम मस्त!
...
संपूर्ण दर्शन,सुंदर भावाव्यक्ति,शब्दों का चयन बहुत अच्छा बधाई .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता, हम तो व्यस्त रहने वाले हे, ओर इसी व्यस्ताता मे मस्त हे
ReplyDeleteमस्त रहने का सरल तरीका..व्यस्त रहो।
ReplyDelete..मूल मंत्र गांठ बांध लिया।
Praveen bhai...bole to jakas...Ekk jadu ki jhappi dene ka mood kar raha hain..:-)...Keep writing!!!
ReplyDeleteकाफी कुछ सोचने को मजबूर कर गयी आपकी यह कविता...
ReplyDeleteलम्बा जीवन, विश्राम यहीं,
ReplyDeleteराहों में भी, संग्राम यहीं,
अतिशय आश्वासन पाकर भी,
शंकायें मन किसने भर दी,
आगत दुख से घबराने का,
जो बीत गया, पछताने का
बहुत खूबसूरती से ज़िंदगी के फलसफे को बताया ..
@अनूप शुक्ल
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@डॉ॰ मोनिका शर्मा
यह पशोपेश सदा ही रहता है, शंकायें हमारा रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती हैं।
@anupama's sukrity !
सच कहा, वर्तमान में जी लेने को ही हमें अपने जीवन का आधार बनाना होगा।
@Gyandutt Pandey
समस्या तो तभी आती है जब व्यस्तता नहीं होती है।
@Arvind Mishra
ReplyDeleteगीत नहीं गा पा रहा हूँ, कारण भी लिखूँगा और प्रसंग भी।
@ज्योति सिंह
बहुधा मन खाली हो जाता है, यदि उसे ऊर्जा से न भरा गया तो नैराश्य से भर जाता है।
@दिनेशराय द्विवेदी
मन स्थिर रहेगा तो प्रसन्न भी रहेगा। कुबेर की प्रतिमा देखी, संतुष्टि पूरी दिखी पर मस्ती नहीं।
@Rahul Singh
पर सदा ही प्रसन्नता बनी रहे।
@वाणी गीत
ReplyDeleteनकारात्मकता को समय ही न दिया जाये तनिक भी।
@Kajal Kumar
बहुत धन्यवाद आपका।
@Ratan Singh Shekhawat
बहुत धन्यवाद आपका।
@Udan Tashtari
सदा कुछ न कुछ करते रहना चाहिये।
@honesty project democracy
जब व्यस्तता न हो तो मस्त ही रहा जाये।
@मनोज कुमार
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@: केवल राम :
इसी द्वन्द को भरते भरते हमारा जीवन निकल जाता है।
@Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
सच बात है, मस्त रहा जाये।
@संतोष त्रिवेदी
व्यस्तता मस्त नहीं करती है, मस्ती अलग से हो।
@ashish
जीवन की गुणवत्ता बनी रहे।
ये पोस्ट बड़ी है मस्त मस्त
ReplyDelete@सदा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@चंद्रमौलेश्वर प्रसाद
फुरसतिया जी से सीख रहे हैं मस्त रहना।
@बाबुषा
उसी में आनन्द है।
@shikha varshney
बहुत धन्यवाद आपका।
@दिगम्बर नासवा
सच कहा आपने, जीवन में ऐसे पल चुराकर ही मस्त रहा जा सकता है।
@ajit gupta
ReplyDeleteहर व्यस्तता में मस्त रहना संभव नहीं हो पाता है।
@निर्मला कपिला
बहुत धन्यवाद आपका। व्यस्तता के साथ मस्त रहने की भी राह बनाये रहनी होगी।
@रश्मि प्रभा...
सच कहा आपने, जीवन के लिये बहुत आवश्यक है यह।
@सतीश सक्सेना
बहुत धन्यवाद आपका।
@Dr. shyam gupta
सदा ही व्यस्त रहना भी आनन्द नहीं देता है, दुख से ध्यान अवश्य हटा देता है।
@Rakesh Kumar
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@सुशील बाकलीवाल
सच यही है।
@अमीत तोमर
बहुत धन्यवाद आपका।
@गिरधारी खंकरियाल
पता नहीं पर अपने ऊपर लागू करता रहता हूँ।
@ZEAL
बहुत धन्यवाद आपका।
@mahendra srivastava
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@Abhishek Ojha
बहुत धन्यवाद आपका।
@संजय भास्कर
बहुत धन्यवाद आपका।
@mahendra verma
द्वन्द से ऊपर उठना होगा।
@***Punam***
बहुत धन्यवाद आपका।
@प्रवीण शाह
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@Sunil Kumar
बहुत धन्यवाद आपका।
@राज भाटिय़ा
व्यस्तता में भी मस्ती रहे तो क्या बात है।
@देवेन्द्र पाण्डेय
व्यस्त रहते रहते भी मन अकुला जाता है।
@Rahul Kumar Paliwal
बहुत धन्यवाद आपका, इस उत्साहवर्धन के लिये।
@रंजना
ReplyDeleteव्यस्त और मस्त छोरों के बीच जीवन समेटने का प्रयास करता हूँ।
@कुश्वंश
बहुत धन्यवाद आपका।
@Shilpa
बहुत धन्यवाद आपका।
@Bhushan
जब हमारी ऊर्जा का स्रोत अनवरत हो जायेगा, निर्वात नहीं आयेगा।
@निवेदिता
आप सबके कहने से कविता लेखन में और ध्यान देना प्रारम्भ किया है।
@ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
ReplyDeleteव्यस्त रहना मस्ती दे न दे, मस्त रहना तो होगा ही।
@अमित श्रीवास्तव
निर्वात होने पर ही विचारधारायें घेरने का प्रयास करती हैं।
@Vivek Jain
बहुत धन्यवाद आपका।
@वन्दना
बहुत धन्यवाद आपका, इस सम्मान के लिये।
@नरेश सिह राठौड़
और रहना भी चाहिये।
@Shah Nawaz
ReplyDeleteबहुत अधिक सोचने से द्वन्द गहरा जाता है।
@संगीता स्वरुप ( गीत )
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Navin C. Chaturvedi
व्यस्त मस्त का चक्र है यह।
पहली बार आपके ब्लॉग पर कविता पढ़ी..मस्त.
ReplyDelete_____________________________
पाखी की दुनिया : आकाशवाणी पर भी गूंजेगी पाखी की मासूम बातें
लम्बा जीवन, विश्राम यहीं,
ReplyDeleteराहों में भी, संग्राम यहीं,
अतिशय आश्वासन पाकर भी,
शंकायें मन किसने भर दी,
आगत दुख से घबराने का,
जो बीत गया, पछताने का,
saahityik rachna/.....
प्रेरणादायी रचना जिसमें आशा का नवसंचार निहित है| धन्यवाद|
ReplyDeletebahut achcha bole......
ReplyDelete@ Akshita (Pakhi)
ReplyDeleteपाखीजी अब तो कविता लिखते रहेंगे।
@ CS Devendra K Sharma "Man without Brain"
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Patali-The-Village
व्यस्तता और मस्ती में ही प्रेरणा पल्लवित होती है।
@ mridula pradhan
बहुत धन्यवाद आपका।
@
जगते स्वप्नों में व्यक्त रहो,
ReplyDeleteव्यस्त रहो या मस्त रहो।
बहुत सुन्दर रचना |
beautiful positive
ReplyDeletepoem
मस्त रहो मस्ती में,
ReplyDeleteआग लगे बस्ती में।
kuchh maitri kuchh apnapan hai.
ReplyDeleteinmen jivan hai, darshan hai.
kya baat hai.
मीनाक्षी जी की ईमेल से प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteजगते स्वप्नों में व्यक्त रहो,
व्यस्त रहो या मस्त रहो। --
जाने क्यों आजकल पोस्ट पढ़ने के बाद टिप्पणी नहीं कर पाते.... पेज खुलता ही नहीं...
अब इतनी मस्त कविता पढ़ कर बिना टिप्पणी किए कैसे रह पाते.... सो मेल कर रहे हैं...
बहुत खूबसूरती और सहजता से जीने की कला समझा दी ..
मीनाक्षी
प्रवीण पाण्डेय जी सुन्दर रचना व्यस्त रहो मस्त रहो शीर्षक ही सब कुछ कह गया हम अपने जीवन को क्लिस्ट बना जलते रहते हैं -काश ये रचना सब का ध्यान खींचे -
ReplyDeleteप्रकृति-विषम जीवन हमने चुन ही डाला,
व्यर्थ अकारण धधक रही उर में ज्वाला,
तन, मन, जीवन तिक्त रहे, अवसाद रहे,
क्यों खण्डयुक्त जीवन का प्रखर विषाद रहे,
शुक्ल भ्रमर ५
very nice article you write this article in the meaningful way thanks for sharing this.
ReplyDeleteplz visit my website