समस्या पर यही है कि ये सूट शरीर को सूट ही नहीं करते हैं। घुटन सी लगती है, बँधा हुआ सा लगता है अस्तित्व। हाथ ऊपर करने में लगता है कि पूरा पेट खुल गया है। भोजन का कौर मुँह तक पहुँचाने के लिये हाथ को सारे अंगों से युद्ध करना पड़ता है। हैंगर जैसा व्यक्तित्व हो जाता है। टँगे रहिये, जहाँ हैं आप क्योंकि सूट पहनने से आप विशेष हो जाते हैं और विशेष मानुष असभ्य सी लगने वाली सारी गतियाँ कैसे कर सकता है। टाई गर्दन पर लटकी रहने से यह डर रहता है कि कहीं कोई विनोद में ही पकड़कर झटक न दे, ऊपर की साँसे ऊपर और नीचे की नीचे, मस्तिष्क कार्य करना बन्द कर देता है।
मन का डर मन में छिपाये फिरते हैं। क्यों न हो, सब बड़े बड़े लोग पहनते हैं। पहन कर आवश्यकता पड़ने पर भाँगड़ा भी कर लेते हैं। हम तो जब पहनते हैं तो उछलते नहीं और जब उछलना आवश्यक हो तो पहनते नहीं। क्योंकि यदि यह भेद पता चला गया तो हम नीचे गिर जायेंगे सभ्यता के मानकों से, ब्लडी गँवार कह देगा कोई।
कैज़ुअल वस्त्र पहनता हूँ, चेहरा भी वैसा ही है। सौम्यता व गाम्भीर्य चेहरे में टिकने के पहले ही उकता जाते हैं। लोगों को दिखता भी है। कार्यालय में बहुत आगन्तुक बोल चुके हैं कि हम तो सोचे थे कि कोई बड़ी उम्र का (पढ़ें, अधिक सौम्य और गम्भीर) व्यक्ति होगा इस पोस्ट पर। अब पिछले 19 वर्षों से वोट डाल रहा हूँ, कितनी और उम्र चाहिये आपको समझने के लिये और कुर्सी पर बैठने के लिये?
मेरा बस चले तो सूट पहनने का आँकड़ा दहाई नहीं छू पायेगा पर श्रीमती जी बार बार याद दिला देती हैं कि इतने मँहगे सिलवाये हैं तो पहनने की आदत भी डालिये। किसी तरह तो टाल रहे हैं पर यदि असह्य हो गया तो या सूट की जेब में चूहा डाल कर वार्डरोब बन्द कर देंगे या अपने दूध वाले को पकड़ा देंगे। आपको कोई और उपाय समझ में आये तो बताईये।
(गर्मी आ रही है और सूट का प्रकरण चल रहा है, संभवतः इसी बहाने आपको मेरी उलझन गाढ़ी लगेगी। फिर भी विषय सामयिक है क्योंकि बंगलोर में यही माह सबसे ठण्डे होते हैं।)
सूट (का कोट/टाई) न सिर्फ़ वस्त्र के रूप में एक अक्षम डिज़ाइन है, भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिये यह कार्यालयों में एसी आदि के बहाने से ऊर्जा-व्यय का स्रोत भी है।
ReplyDeleteSay no to suit-tie!
हा हा! सूट से आप भी घबराते हैं हमारी ही तरह...मगर हमारी तो क्या बतायें कैसी कैसी मजबूरियाँ फंसती हैं. ऑफिशियल मंत्रणा और बैठक में पहनना नौकरी की शर्त है.
ReplyDeleteaapke soch wale ek I I T Kanpur 5th batch ke bande ko bhee aisa hee parhez hai sazaa se kum nahee lagta...
ReplyDeleteye sare IITians aise hee hote hai kya?
:)
"सूट या वर्दी डिनर की"
ReplyDeleteमजा आ गया , पढ़कर । सारी बातें सोलह आने सच । मैं तो अक्सर बोलता हूं कि पार्टियों में दो तरह के लोग वर्दियों में होते हैं ,एक खिलाने वाले ( बेयरा) और दूसरा खाने वाले ।
बहुत लोगों का दर्द है यह. मेरा भी है. शादी के समय जो सूट सिलाया था उसे अभी भी पहना जा सकता है क्योंकि अभी तक केवल ४ बार ही पहना है और फिट भी वैसे ही होता है. लेकिन जो मज़ा बिना सूट के है वह कैसे मिलेगा?
ReplyDeleteइसलिए ज्यादातर टी-शर्ट और जींस. बिलकुल मस्त आइटम:-)
सूट तो हमारे भी वार्डरोब मे टंगे है और हरसाल वह इसलिये छोटे हो जाते है क्योकि हम हर साल फ़ैल जाते है
ReplyDeleteजनाब, अपने पास भी तीन ही हैं, भरपूर कोशिश करने के बाद साल में पांच-छ: बार पहन लेता हूं.
ReplyDelete४५ वर्ष में दो सूट सिलवाये,पहला अपनी शादी में जिसे शादी के बाद कभी पहना नहीं | दूसरा पुत्र की शादी में दोस्तों ने जबदस्ती सिलवा दिया उसे पुत्र की शादी में तो नहीं पहन पाए हाँ दूसरी तीन सदियों में पहना | फिर भी आपसे ज्यादा वर्ष और स्कोर कम - ४५ वर्ष में चार बार पहना | आगे बचे रहने की पूरी उम्मीद है क्योंकि आजकल हमारे यहाँ शादियों व अन्य समारोह में धोती कुरता और पगड़ी पहनने का फैशन चल रहा है | जो आराम दायक और सस्ता भी होता है |
ReplyDeleteटँगे रहिये, जहाँ हैं आप क्योंकि सूट पहनने से आप विशेष हो जाते हैं और विशेष मानुष असभ्य सी लगने वाली सारी गतियाँ कैसे कर सकता है। टाई गर्दन पर लटकी रहने से यह डर रहता है कि कहीं कोई विनोद में ही पकड़कर झटक न दे, ऊपर की साँसे ऊपर और नीचे की नीचे, मस्तिष्क कार्य करना बन्द कर देता है।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक है आपकी पोस्ट |पर मुझे नहीं लगता आप इस समस्या से छुटकारा पा सकेंगे |डर अपने मन से निकाल दीजिये श्रीमतीजी आपको धीरे-धीरे सूट पहनने की आदत डलवा ही देंगी |
भारत के गर्म प्रदेशों में सूट पहनना व्यर्थ की नफासत है। जाड़े के मौसम में शादी-विवाह के मौके पर ही काम आता है ।
ReplyDeleteहमने बहुत सूट पहने आखिर शादी पर दो दो सिलवाये थे और वो भी अलग अलग स्टाईल में अब सिलवाने की हिम्मत नहीं, बहुत ही महँगा सौदा है, हमने तो अपने सूट के पूरे पैसे वसूल कर लिये। :)
ReplyDeleteहमारे सुट का भी ये हो हाल है... अब शायद सिलवाने से पहले दस बार सोचूंगा....
ReplyDeleteहा हा हा, इस मामले में हम भी इसी यूनियन के हैं:)
ReplyDeleteबस इधर समझाईश का जिम्मा माताजी ने ले रखा है(श्रीमती जी तो अच्छे से जानती हैं कि हम आज्ञाकारी वाली श्रेणी में नहीं आते)।
मेरा भाई वकील है उसे रोज कोट टांगना पड़ता है,वो भी काला..बेचारा....अब हमारे यहाँ दूल्हे का साथ देने के लिए सारा पुरूष वर्ग जोर देता है कि शादी कड़ाके की ठंड के मौसम में की जाए,ताकि सूट का उपयोग हो और वे ऐसा करते भी है सब साथ में फोटो खिंचवाकर...(एक ही सूट की फोटो बार- बार) और महिला वर्ग चाहता है कि थोडी गुलाबी ठंड हो ताकि कपड़े-जेवर स्वेटर शॉलों से न ढँके....
ReplyDeleteआप पर तो सूट एकदम सूट करेगा भिया..अरे आपकी पर्सनालिटी तो एकदम सूट के लिए ही बनी है...:P
ReplyDeleteवैसे सूट में हम भी अनकम्फर्टेबल ही फील करते हैं..
म तो फोटो खिंचवाते हैं और उतार देते हैं ....चूहे वाला विचार अच्छा लगा ! शुभकामनायें आपके सूट को !
ReplyDeleteस्वामी विवेकानंद का प्रसंग बताया जाता है. एक बार उनहें तैयार होने में देर लग रही थी, पता लगा उन्होंने अपने मेजबान के आग्रह पर कुछ खास अंदाज का पहनावा धारण किया था और आईने के सामने खड़े हो कर अलग-अलग कोण से खुद को निहार रहे हैं. पूछने पर कहा, मुझे कपड़े ही दिख रहे हें, खुद को देख नहीं पा रहा हूं, वही तलाश रह हूं.
ReplyDeleteश्रीमती जी बार बार याद दिला देती हैं कि इतने मँहगे सिलवाये हैं तो पहनने की आदत भी डालिये।...upay kya , pahaniye
ReplyDeleteसूट पहनने से
ReplyDeleteटिप्पणियों की संख्या में
होती बढ़ोतरी
तो सूट सूट कर जाता
बिना बूट भी पहना जाता
फिर यूं हाशिए पर
न जाता सूट
करें विचार
कैसे हिंदी ब्लॉगरों को
सूट कर सकता है सूट
नहीं को कर देगा
जरूर इसे कोई शूट
सच यही है
बाकी है सब झूठ
कुछ और कहा तो
सूट भी जाएगा रूठ।
यह मुआ सूट हमें हमें भी सूट नहीं करता है... लेकिन कार्यालयी मीटिंग्स या पार्टियों में इसमें घुस के जाना पड़ जाता है... फिर भी जैसे-तैसे करके, हम अपनी गर्दन को तो बचा ही लेते हैं इसमें लटकने से...
ReplyDeleteलोग क्या कहेंगे ? सोच कर हम एक अलिखित नियमावली का पालन करने को बाध्य हो जाते हैं.दोसा,चाँवल-दाल खाने का जो आनंद हाथों से मिलता है वह चम्मच में कहाँ.सायकल चलाना,चप्पल पहनना , जमीन पर बैठ कर खाना,खुल कर हँसना,आदि,आदि और आदि.
ReplyDeleteप्रवीण जी ! असहज होने की पीड़ा सभी में होती है. उसे अभिव्यक्त करने में भी असहजता आड़े आती है.साहस चाहिए.आपने उस पीड़ा को स्वर दिये,देखिये कितने पीड़ितों ने समवेत स्वरों में समर्थन किया है.दिखने में छोटा सा किन्तु भारतीय समाज कि दृष्टि से बहुत बड़े मुद्दे पर आपने कलम चलाई है.साधुवाद.
लोग क्या कहेंगे ? सोच कर हम एक अलिखित नियमावली का पालन करने को बाध्य हो जाते हैं.दोसा,चाँवल-दाल खाने का जो आनंद हाथों से मिलता है वह चम्मच में कहाँ.सायकल चलाना,चप्पल पहनना , जमीन पर बैठ कर खाना,खुल कर हँसना,आदि,आदि और आदि.
ReplyDeleteआह आहा और वाह वाह, पुरुषों की समस्या पढ़कर मजा आ रहा है। वाह रे सूट तूने तो इनके नाकों चने चबवा दिए। जिंदाबाद रहे तू और तेरा रूतबा। बस इन लोगों को ऐसे ही कैदी बनाकर रखना।
ReplyDeleteहम तो जब पहनते हैं तो उछलते नहीं और जब उछलना आवश्यक हो तो पहनते नहीं। :)
ReplyDeleteरोचक किस्सा है सूट के सूट न करने का......
एक बार की कीमत २०००...............
ReplyDeleteहैंगर जैसा व्यक्तित्व हो जाता है............
टँगे रहिये, जहाँ हैं ..............
कोई बड़ी उम्र का (पढ़ें, अधिक सौम्य और गम्भीर) व्यक्ति..............
मस्त यार मस्त|
आप की परेशानी अच्छे से समझ रही हूँ एक बार हमने भी शौक में सिलवा लिया था टाईट स्कर्ट से तो परेशानी नहीं हुई पर सुट सच में आरामदायक नहीं लग रहा था किन्तु क्या करे सब कहते थे बहुत फब रहा है तो बार बार पहनने की इच्छा होती थी बस सावधानी ये रखते थे की वही पहने जहा मुझे ज्यादा कुछ करना न पड़े बस कुर्सी पर बैठे रहना हो |
ReplyDelete"...इस समस्या से पिछले 37 वर्षों से जूझ रहा हूँ और अब तक मेरा स्कोर रहा है - 8 या 9।..."
ReplyDeleteये भी कोई समस्या है? हद है!! हमारा स्कोर तो है शून्य. जी हाँ, बिग 0.
ऊपर से, भारत में, खासकर गर्मियों में सूट पहना आदमी मुझे छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल की याद दिलाता है. :)
बिल्कुल ठीक कहा प्रवीणजी आपने. हमने तो सूट को पेंट और कोट में विभक्त कर लिया है. महीने के पहले सोमवार को सेल्स मीटिंग होती है, सर्दियों में हम सिर्फ़ कोट का इस्तेमाल करते हैं और कोट अधिक बार dryclean होता है और पेंट से बिल्कुल अलग रंग-रूप हों चुका है... क्या करें ??
ReplyDeleteवर्तमान पोस्टिंग ने पिछले दो साल में चार सूट खरीदवा दिए और पहने जाने वाले अवसरों की गिनती भुला दी.. कई बार तो लगता है शूट कर दूं इस सूट के ड्रेस कोड की याद दिलाने वालों को!!
ReplyDeleteसूट का कोट और गले की टाई, गले की फाँस लगती हैं इसलिए किसी भी सामाजिक कार्य यानि शादी आदिमें बैरंग ही रहना पसंद करते है . गर्मी में सूट की याद क्यों आयी आपको ?
ReplyDeleteक्या बात है, जले पर नमक छिड़क दिया आपने तो..अब तक कितने शूट खरीद चुका हूं, गिनती नहीं है और कोई भी ऐसा नहीं रहा जिसे दो तीन बार से ज्यादा पहन पाया हूं। वाह क्या विषय लिया है आपने ...
ReplyDeleteसही समस्या है आपकी । आधे दर्जन से अधिक सूट मैं भी बेकार कर चुका हूँ । एक बार तो मेचिंग के चक्कर में मंहगे जूते भी ऐसे लेने पडे जो आज तक चौथी बार भी पहने हुए याद नहीं आते ।
ReplyDeleteशुरू से अंत तक बरकरार रहा ...सूट का यह रोचक किस्सा ...बहुत ही अच्छा लिखा है ।
ReplyDeleteहा हा हा बात तो एकदम सही कही है आपने.और सूट से छुटकारा पाने का तरीका भी खूब सोचा है :)
ReplyDeleteमुझे मन कर रहा है ऐसे ही कुछ पोइंट्स साड़ी पर लिख डालूं :P :D
comment to mai karchukee I d different thee apane blog ke hastakshar jarooree hai na.......?
ReplyDeleteBangalore me hee ho kabhee milenge......
badiya lekhan shailee hai .aur bangalore me rah kar hindi se jude ho sochkar padkar accha lagta hai .
Aabhar
प्रवीण जी ... आपका रिकार्ड मेरे से आगे है ... मैने अभी तक बार २ कोट सिलवाएँ है .... सूट तो एक भी नही ... और पहना होगा शायद ५-७ बार ... यहाँ तक की अपनेर विवाह पर भी मैने कमीज़ पेंट पहनी ... सूट नही ... वैसे आपकी बात से इतेफ़ाक रखता हूँ .. घुटन होती है ...
ReplyDeleteसूट नहीं करता सूट ...फिर भी सिलवाते हैं ....इनके दो सूट तो मैं भी दूधवाले और चपरासी को दे चुकी हूँ :):) पर अभी भी अलमारी में जगह घेरे हुए हैं ...आप तो स्वयं ही दुखी हो रहे हैं ..यहाँ तो मैं उनको सहेजने में दुखी होती हूँ ...
ReplyDeleteएक एक वाक्य/व्यंगोक्ति का रस लिया हमने...बस आनंद आ गया ....
ReplyDeleteवैश्विक सभ्यता का प्रतीक है ये सूट. आप इस तरह आलोचना (परोक्ष ही सही) नहीं कर सकते। आपके खिलाफ आंदोलन किया जाएगा।
ReplyDeleteपोस्ट और टिप्पणी पढ़ कर लग रहा है कि राजस्थान के अलावा सभी स्थानों पर लोग सूट पहनने से कतराते हैं ...
ReplyDeleteवैसे घबराने वाली बात नहीं है ...महिलाओं की महंगी साड़ियों और लहंगा ओढ़नी के साथ भी ऐसी ही समस्या होती है ...कुल दो चार बार पहनी जाती हैं और फैशन आउट ! आईडिया दे दिया है आपको शायद आपके सूट चूहों के खाने से बच जाएँ :):)
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसूट नहीं सूट करता तो उसे सूट्केस में रख दीजिए।
ReplyDeleteअँग्रेज़ चले गये कँठ्लँगोट छोड़ गये
चलिये आपकी पोस्ट के जरिये पता चला कि बहुमत मेरे साथ है ।
ड्रेस-प्रोटोकॉल अलग मुद्दा है, उसे अपनाने की बाध्यता उससे अहम मुद्दा है ।
शायद हममें हाकिमकालीन युग से ही सूट पहन कर साहब लगने की मानसिकता धर कर गयी लगती है ।
मुझे परहेज़ तो नहीं, पर जबरियन थोपे किसी भी नियम के विरोध के चलते मैंने गिनती के अवसरों पर ही सूट पहना होगा ।
मैं तो अपनी सुविधा के वस्त्र, यहाँ तक कि कुर्ता-पाज़ामा में क्लिनिक सँचालित कर लेता हूँ, जो अपने को सहज लगे वही ठीक है ।
आपकी पोस्टें पढ़ता रहा हूँ, आज टिप्पणी करने का मन हो आया । क्षमा करें, मॉडरेशन मुझे आभिजातिक सोच लगती है, जिसका मैं विरोधी हूँ !
सूट से बेहाल होकर सफारी का चलन निकल पडा पर अब लगता है कि आम आदमी का आम ड्रेस ही ठीक है.... खास ओकेशन तो जीवन में अब आने से रहे... इसलिए अब सूट अलमारी की शोभा बढा रहे हैं :)
ReplyDelete''टँगे रहिये, जहाँ हैं आप क्योंकि सूट पहनने से आप विशेष हो जाते हैं और विशेष मानुष असभ्य सी लगने वाली सारी गतियाँ कैसे कर सकता है।''
ReplyDelete:)
''''
ख़ास मौकों पर और कुछ विशेष पदों पर आसीन पुरुषों पर सूट अच्छा लगता है..
गरम मौसम के लिए ठन्डे सूटों का रिवाज़ है.
मिस्र और लेबनान आदि देशों वाले पुरुष यहाँ हर मौसम में[ १२ महीने ]सूट पहनते हैं .
आज तो आपने हंसा ही दिया |
ReplyDelete.
.
.
शिल्पा
हा हा, अपना भी यही हाल है.
ReplyDeleteवैसे आपके दूध वाले की किस्मत अच्छी है. :)
हमलोग तो शादी में धोती-कुर्ता पहनते थे। सो उस समय समस्या नहीं हुई।
ReplyDeleteयूपीएससी के साक्षात्कार में सूट सिलवाने की हैसियत बनी नहीं थी, सो सवाल ही नहीं उठा कि इस विषय पर सोचते।
फ़ाउण्डेशन कोर्स नागपुर में हुआ, सो वहां की गर्मी ने बचा लिया।
२२ साल की नौकरी में १८ साल अपेक्षाकृत गर्म प्रदेशों में पोस्टिंग रही, सो सूट में दफ़्तर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। चण्डीगढ का जाड़ा जैकेट से बीता।
अभी तक बचे हैं ... इस मुसीबत से।
यह तो सफारी सूट का मौसम है -हमने दो सिलाए हैं अभी -दोनों पड़े हैं आलमारी में पहनने का समय आ रहा है -इन्टरनेट से डिजाईन ढूंढ के खुद ही दरजी के पास डाउनलोड प्रिंट लेकर गए ..अब अपने प्रेरणा दी है की मैं भी इसे विषय बना लूं !
ReplyDelete.
ReplyDelete@-ये सूट शरीर को सूट ही नहीं करते हैं। घुटन सी लगती है, बँधा हुआ सा लगता है अस्तित्व। हाथ ऊपर करने में लगता है कि पूरा पेट खुल गया है। भोजन का कौर मुँह तक पहुँचाने के लिये हाथ को सारे अंगों से युद्ध करना पड़ता है..
So true !
Honestly speaking I rarely see any sensible person wearing suit now a days.
.
hahahahaha....suit to shoot karta hai,,,,khaskar ke is mausam mein..maja aaya padhkar.
ReplyDeleteअच्छा है ये सूट पुराण हमारे यहाँ सूट तो अलमारी कि ही शोभा बढ़ाते हैं
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रसंग छेड़ा है आप ने| सूट तो किसी को भी सूट नहीं करता मज़बूरी में चलाना पड़ता है||
ReplyDeleteसुट खरीदने का शोक मेरी बीबी ओर बच्चो को बहुत हे, मुझे पहनाने का नही, इस लिये खरीदा ओर अलमारी मे टांग दिया... अब सब अपने आप सुधर गये, इन सुटो मे मेरा दम घुटता हे वो तो बह्गवान का शुक्र की यहां इगलेड की तरह सुट पहनाने का रिवाज नही.... एक दो साल मे एक आध बार पहनाना पडता हे तो केद हो जाती हे...
ReplyDeleteबढ़िया रही ये सूट-गाथा... हमारे हीरो लोगो से प्रेरणा लीजिये कुछ...कितनी उछल-कूद....नृत्य-गान सब सूट पहन कर कर लेते हैं.
ReplyDeleteसमाचार यह नहीं है कि आपके पास सूट है। समाचार यह है कि 'इस सबके बाद भी' आपके पास तीन-तीन सूट हैं। गजब।
ReplyDeleteपहले पिलानी के बिरला इंस्टीटृयूट के छात्रों से और अब आई आई टी के छात्रों से जाना कि इन (और ऐसी) संस्थाओं के 'पढाकुओं' को ऐसे 'राजसी' वस्त्रों से विरक्ति हो जाती है।
आप भी ऐसे ही निकले।
प्रवीण जी बहुत सुन्दर लेख। उतना ही सहज,सरल और सुन्दर जैसे आप स्वयं हैं। कैजुअल्स में तो आप वैसे भी अति सौम्य, सुन्दर हैन्डसम लगते हैं, पर आप के इस लेख के बाद आपको किसी दिन फॉर्मल सूट ड्रेस में देखने की उत्सुकता बढ गयी है।
ReplyDeleteहा सच है भारत जैसे गरम देश में सुट पहना अपने आप में एक सजा है ....
ReplyDeleteहा हा हा
ReplyDeleteप्रवीन जी यही स्थिति अपन की भी है
बहुत बढ़िया आलेख
आपकी समस्या समझ रहा हूँ।
ReplyDeleteमेरे पास ८ सूट हैं।
केवल एक सिलवाया था, शादी के समय।
केवल एक बार पहना था, रिसेप्शन के समय।
बाकी के सभी सूटें मेरे पिताजी से मुझे विरासत में मिली।
उनहोंने कहा था "हम तो नहीं पहन सके। तुम तो हमसे ज्यादा पढे लिखे हो, इन्जिनीयर हो, तो आशा करता हूँ कि तुम इन सूटों पर किया गया खर्च वसूल करोंगे"
वे सूटें कई साल मेरे वार्डरोब में टंगे थे। बीस साल में शायद एक या दो बार पहना था।
एक दिन देखा कि सभी गायब हो गए हैं।
पूछने पर पत्नि से पता चला, कि जब पहनने का कोई इरादा नहीं है, तो उसे वार्डरोब में क्यों रखें? बक्से में, moth balls के साथ पैक करके रख दिया है। अब वार्डरोब में खाली हुई जगह पत्नि की रंग बिरंगी साडियों के लिए आरक्षित हैं।
पर हम हिम्मत नहीं हारेंगे।
अब बेटे की पढाई की समाप्ति का इन्तज़ार है।
लडका PhD कर रहा है और वह भी ऑक्स्फ़ोर्ड युनिवर्सिटी से।
हमसे भी ज्यादा पढा लिखा बनेगा।
अवश्य दादाजी के सूट पहनकर जचेगा।
देखते हैं लडका क्या करता है। पहनेगा या नहीं।
आशा तो कर सकता हूँ न?
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
यह एक मानसिक स्थिति है. कभी मैं भी टाई-सूट में यूं ही बंधे होने का आभास पाता था. जब कोई चारा नहीं रहा तो टाई-सूट टांगा और मन को कह दिया -'..कुछ नहीं, जीन्स-कुर्ता ही पहना है'
ReplyDeleteतब से आराम ही आराम है :)
सूट का यह रोचक किस्सा ...बहुत ही अच्छा laga .......
ReplyDeleteहम तो भारतीय हॆ..भारतीय पहनावा ही पहनते हॆ...ये सूट पहनना तो अग्रेजो के मानसिक गुलामी का परिचायक हॆ..
ReplyDeleteइस प्रकार की पोस्ट मुझे हमेशा अच्छी लगती है जब सबके घरों की दिलो कि दास्ताँ बाहर आजाती है | अपने राम की क्या बताऊ शादी में एक शूट सिलवाया था क्यों कि वो जरूरी होता है उसके बाद ना तो पहनाना अच्छा लगता है और ना ही सिलवाया था | टाई पहनने के बाद तो ऐसा लगता है कि जैसे मै कोइ सेल्समेन हूँ |मै नौकरी नहीं करता अपनी खुद कि दूकान है इस लिए मर्जी हो सो पहन सकता हूँ इसलिए ज्यादातर खादी का पजामा और टी शर्ट ही पहनता हूँ | अगर कभी किसी शादी विवाह या फंक्सन में जाना होता है तो लौटकर आने पर सबसे पहला काम यही करता हूँ कि घर वाली ड्रेस पहन लेता हूँ |
ReplyDeleteप्रवीण जी
ReplyDeleteये सूट पहनना तो अग्रेजो के मानसिक गुलामी का परिचायक हॆ....बहुत बढ़िया आलेख
चेहरा भी वैसा ही है। सौम्यता व गाम्भीर्य चेहरे में टिकने के पहले ही उकता जाते हैं
ReplyDeleteगज़ब का लेखन...वाह..आनंद आ गया.
नीरज
आप का सूट ब्लागरी को सूट कर गया। मेरे पहले 65 लोग पहन चुके हैं।
ReplyDeleteसूट हमने भी सिलाए हैं। एक अपनी शादी में, एक गिफ्ट आए कपड़े का, और एक पत्नी के आग्रह पर कि उन्हें शादियों में हमारे साथ जाते शर्म न आए।
पर अजीब यूँ नहीं लगता कि रोज कोट पहनते ही हैं। टाई या बैंड भी लगाते ही हैं। यूँ सूट में कुछ भी कर सकते हैं नाचने से ले कर खाने तक। फिर सूट का कुछ भी हो।
यूँ हमें सर्दी में शर्ट-पेंट के साथ जाकिट पहनना अच्छा लगता है।
bhai prveen phle to aap ka hardik aabhar vykt krta hoon aap ka nirntr mei rchnaon ko pyar mil rha hai
ReplyDeleteaap chahera apne blog pr dekhte hi ek apoorv prsnna ka anubhv sa hone lgta hai aap ke chitr ki nishchhlta sahj aakrshit krti hai chote bhai ke prti swabhavik sneh umd aata hai
bhai aap ne apne aalekh me bhartiyta ka sundr chitr kiya hai swami viveka nnd ji ne kha tha ki hmare yhan drji vykti ko nhi bnata hai apitu us ka chritr use mhan bnata hai
sundr chitrn hai bhut 2 bdhai v shubhkamnayen
ved vyathit
dr.vedvyathit@gmail.com
bhai prveen phle to aap ka hardik aabhar vykt krta hoon aap ka nirntr mei rchnaon ko pyar mil rha hai
ReplyDeleteaap chahera apne blog pr dekhte hi ek apoorv prsnna ka anubhv sa hone lgta hai aap ke chitr ki nishchhlta sahj aakrshit krti hai chote bhai ke prti swabhavik sneh umd aata hai
bhai aap ne apne aalekh me bhartiyta ka sundr chitr kiya hai swami viveka nnd ji ne kha tha ki hmare yhan drji vykti ko nhi bnata hai apitu us ka chritr use mhan bnata hai
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ved vyathit
dr.vedvyathit@gmail.com
पता नहीं ?हिन्दू रीती रिवाजो में (शादी में ) अंग्रेजी सूट कबसे अनिवार्य हो गया |
ReplyDeleteबजरंग दल वालो को समझ नहीं आया क्या ?
वैसे भी आजकल तो बेंगलोर में भी काफी गर्मी है |
क्या खूब लिखा है, मजा आ गया। आपका ब्लॉग पढ़कर दिमाग खुल सा जाता है। मैंने पिछले साल केवल एक दिन सूट पहना और वो भी एक मित्र की शादी में। दस साल पहले एक सूट सिलवाया था वही चल रहा है। अब घर वाले कह रहे हैं कि एक और सिलवा लो, क्या करूंगा सिलवाकर?
ReplyDeletekabhi-kabhar padhe-likhe lagne ka jab shauk chadta hai to yah jaama dhaaran kar leta hoon....!
ReplyDeleteachchhi prastuti!
बहुत ही रोचक है आपकी पोस्ट ..
ReplyDeleteYogesh
सूट नहीं करता सूट ! क्या बात है.
ReplyDeleteसूट न करने पर भी मजबूरी में कभी कभी सूट पहनना पड़ता है.
बहुत ही रोचक लेख... सूट से छुटकारा पाने का तरीका नायाब लगा....
ReplyDeleteविवाह के बाद पत्नी द्वारा पहनाया जाने वाला सूट इसलिए पहन लेते हैं कि कहीं हमें कोई उनका ड्रायवर ना समझ ले...वैसे सूट पहनने की नौबत कम आती है...काला कोट ही पहनते हैं
ReplyDeleteअपना भी कुछ आप जैसा ही हाल है....कई मित्र कहते हैं की सूट पहना करो लेकिन मन इसके लिए तैयार ही नहीं है...मन तो जूता पहनने के लिए भी तैयार नहीं जो सूट का अभिन्न अंग है...हम तो एक साधारण से चप्पल में हीं खुश हैं साथ में पेंट व साधारण शर्ट....
ReplyDelete@Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
ReplyDeleteजो अंगों और उनकी गतियों को सुविधा दे, वही वस्त्र सबसे अच्छे।
@Udan Tashtari
अच्छा है कि हमारी नौकरी में यह बाध्यता नहीं है।
@sarita
हमने आईआईटी में भी बहुत सूटिया पहलवान देखे हैं।
@अमित श्रीवास्तव
और दोनों ही असहज उन सूटों में।
@Shiv
हम भी अधिकतर जीन्स व टीशर्ट चढ़ाये रहते हैं।
@dhiru singh {धीरू सिंह}
ReplyDeleteअब सूट के कारण तो शरीर पर अत्याचार तो नहीं कर सकते हैं।
@भारतीय नागरिक - Indian Citizen
आप तब भी दाम वसूल रहे हैं।
@Ratan Singh Shekhawat
प्रति पहनाई में आपके सूट तो हीरे से भी मँहगे निकले।
@anupama's sukrity !
पता नहीं, पर अब मुखर हो गये हैं, न पहनने का हठ ठान लिया है।
@देवेन्द्र पाण्डेय
एक माह की ठंड में तो स्वेटर ही सर्वोत्तम हैं।
@Vivek Rastogi
ReplyDeleteजितने सूट हों, उनका पैसा वसूल लिया जाये और आगे न सिलवाये जायें।
@रंजन (Ranjan)
हम तो अब सिलवाने से रहे।
@संजय @ मो सम कौन ?
हम भी अब आसानी से नहीं मानने वाले।
@Archana
वकीलों का तो हाल सच में बेहाल है, अंग्रेजों की वेशभूषा ढो रहे हैं नित।
@abhi
बाहर से अच्छी लगे पर अन्दर से घुटन सी होती है।
@सतीश सक्सेना
ReplyDeleteचूहा भी अगर दगा दे गया तब कोई और उपाय ढूढ़ना पड़ेगा।
@Rahul Singh
सच में, हम कहीं खो जाते हैं इसमें।
@रश्मि प्रभा...
यही तो समस्या है पर उपाय पहनना न हो।
@अविनाश वाचस्पति
सूट करे न सूट
लेखन में न छूट।
@Shah Nawaz
बस गर्दन बाहर मुलुकती रहती है।
@अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका। हम सहज और सरल जीवन के पक्षधर हैं, जीवन के हर क्षेत्रों में।
@ajit gupta
कैदी बनाने के लिये सौ रुपये का एक बेलन ही पर्याप्त था, हजारों क्यों व्यर्थ किये जायें।
@डॉ॰ मोनिका शर्मा
अभिव्यक्ति की बाध्यता हो जाती है, सूट पहनने में।
@Navin C. Chaturvedi
बहुत धन्यवाद, आत्मभोगी व्यथा है यह।
@anshumala
शोपीस बनकर ही रहना हो तो कुछ भी पहना जा सकता है पर समस्या सामान्य जीवन जीने पर आती है।
@raviratlami
ReplyDeleteआप बड़े भाग्यशाली हैं, स्कोर शून्य ही बनाये रखिये।
@Manoj K
बहुत अच्छा किया आपने, समस्या आधी कर ली।
@चला बिहारी ब्लॉगर बनने
ड्रेस कोड लागू करने वालों को इससे अच्छा उपाय न दिखता होगा किसी को बाँधे रहने का।
@गिरधारी खंकरियाल
गर्मी में कम से कम कोई विरोध नहीं करेगा इस पोस्ट का। सर्दी में तो बहुत समर्थक आ जाते।
@mahendra srivastava
बहुत धन्यवाद, समस्या हम सबकी ही है।
@सुशील बाकलीवाल
ReplyDeleteसच कहा, जूते, बेल्ट आदि भी पड़े रहते हैं शोभागारों में।
@सदा
बहुत धन्यवाद आपका।
@shikha varshney
साड़ी पर एक पोस्ट लिख ही डालिये, हम अपनी श्रीमती जी से दुश्मनी नहीं लेना चाहता हूँ।
@Apanatva
निश्चय ही मिलना है आपसे, आपका पता मिल जाये तो हम स्वयं ही धमक जायेंगे।
@दिगम्बर नासवा
मेरा रिकार्ड भी घुट घुट कर बना है, बस चलता तो कभी नहीं पहनता।
@संगीता स्वरुप ( गीत )
ReplyDeleteअब लगता है, हमें भी यही करना पड़ेगा।
@रंजना
बहुत धन्यवाद आपका।
@satyendra
जी, आन्दोलन कर लीजिये पर हम भी सत्याग्रह पर अडिग हैं।
@वाणी गीत
ऐसे वस्त्र क्यों सिलवाये जायें जो संग्रह मात्र की वस्तु बन जायें।
@हास्यफुहार
सब के सब अन्दर ही पड़े हैं।
@डा० अमर कुमार
ReplyDeleteअंग्रेजों की गुलामी का भार ढो रहे हैं हम सदियों से। जो सहज हो वही पहना जाये।
@cmpershad
सफारी में फिर भी ऐसा बन्धन नहीं दिखता है।
@अल्पना वर्मा
भारत का मौसम सूट के लिये अनुकूल ही नहीं है।
@Shilpa
बहुत धन्यवाद आपका।
@Abhishek Ojha
यदि पहनने का दबाव बढ़ा तो निश्चय ही दूधवाले भाग्यशाली हो जायेंगे।
@मनोज कुमार
ReplyDeleteशादी और अन्य उत्सवीय अवसरों पर धोती कुर्ता ही पहना जाये, बड़ा ही शालीन और अच्छा लगता है।
@Arvind Mishra
सफारी में सफरिंग कम हो जाती है।
@ZEAL
जो गुलामी की परम्पराओं के वाहक हैं, बस वही पहनना चाहेंगे सूट।
@Gopal Mishra
बड़ी घुटन सी होती है इस लिबास में।
@रचना दीक्षित
अलमारी का स्थान घेरना कहें तो अधिक उपयुक्त होगा।
@Patali-The-Village
ReplyDeleteमजबूरी में इतना खर्चा, इतने धनी भी नहीं हैं हम।
@राज भाटिय़ा
मेरा भी कभी सूट सिलवाने का मन रहा ही नहीं।
@rashmi ravija
देखकर अचरज होता है, कि इतना उछल कैसे लेते हैं लोग सूट पहनकर।
@विष्णु बैरागी
एक भी सूट अपने मन से नहीं सिलवाया है हमने, सब के सब थोपे हुये हैं।
@देवेन्द्र
पता नहीं आपकी इच्छा पूरी कर पाऊँगा कि नहीं।
@Coral
ReplyDeleteअंग्रेजों की दी हुयी सजा है और हम अभी तक भुगत रहे हैं।
@प्रो पवन कुमार मिश्र
चलिये, मिले सुर मेरा तुम्हारा।
@G Vishwanath
वार्डरोब में अधिकार जताने के लिये टँगे हैं नहीं तो साड़ियों का अधिकार हो जायेगा उनमें। यह परम्परा बिना निर्वाह किये ही आगे बढ़ा देना ही उचित है।
@रजनी मल्होत्रा नैय्यर
बहुत धन्यवाद आपका।
@Ashu Singh
आपसे पूर्णतया सहमत।
@नरेश सिह राठौड़
ReplyDeleteघुटन से शीघ्रतम निकलना हो, वही उचित है हम सबके लिये।
@संजय भास्कर
धीरे धीरे इस मानसिकता से निकलना होगा हमें।
@नीरज गोस्वामी
बहुत धन्यवाद आपका।
@दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
बहुतों की समस्या है यह। पानी जब सर के ऊपर से निकल गया तभी लिख पाये हम।
@vedvyathit
आपका ब्लॉग पढ़ने में अच्छा लगता है।
@शोभना चौरे
ReplyDeleteसंस्कृति के इस पक्ष भी सबका ध्यान जाना चाहिये।
@पंकज मिश्रा
यदि नहीं पहनना हो तो सिलवाइयेगा भी नहीं। जो चल रहा है उसी को घसीटे रहिये।
@संतोष त्रिवेदी
पता नहीं पहनने भर से ही सभ्य कैसे लग सकता है कोई।
@Yogesh Amana
बहुत धन्यवाद आपका।
@गुर्रमकोंडा नीरजा
इसी मजबूरी में तो घुटघुट कर जी रहे हैं सब।
@मीनाक्षी
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@bhuvnesh sharma
पता नहीं हम तो किसी का सिलवाया नहीं पहन पायेंगे अब।
@honesty project democracy
जो मन में आये वही करें।
इस आलेख में तो आपने सबके मन की बात कह दी .....
ReplyDeletevery nice article you write this article in the meaningful way thanks for sharing this.
ReplyDeleteplz visit my website