वर्षों पुराना दृश्य है, एक कुली अपने सर पर दो सूटकेस रखे हुये है, एक हाथ से उन्हे सहारा भी दे रहा है, दूसरे हाथ में एक और बैग, शरीर तना हुआ और चाल संतुलित, चला जा रहा है तेजी से पग बढ़ाते हुये, मुख की मांसपेशियाँ शारीरिक पीड़ा को सयत्न ढकने में प्रयासरत, आप साथ में चल रहे हैं और बहुधा आपकी साँस फूलने लगती है साथ चलने भर में। दृश्य आज भी वही रहता है, बस स्थान बदल जाते हैं, यात्री बदल जाते हैं।
कुली आपका सामान यथास्थान रखते हैं, माथे से अपना पसीना पोछते हैं और साधिकार कहते हैं कि जो बनता है, दे दीजिये। आपने जितना पहले से निर्धारित किया होता है, आप उससे भी अधिक दे देते हैं। पसीने की बूंदों में बहुधा वह अधिकार आ जाता है जो आपके कृपण-मन को पराजित कर जाता है। आपको अधिक पैसा देने में कष्ट नहीं होता है।
मैं न तो कुलियों द्वारा निर्धारित से अधिक धन लेने को सही ठहरा रहा हूँ और न ही उन यात्रियों को कोई आदर्श सिखाने का प्रयास कर रहा हूँ जो निर्धारित से अधिक धन देने के लिये पहले से ही मान जाते हैं। यह एक स्वस्थ बहस हो सकती है कि कुली के द्वारा सामान ढोने का क्या मूल्य हो? बाजारवाद के समर्थक और वामपंथी पुरोधा पूरा शोधपत्र तैयार कर देंगे इस विषय पर। यदि जैसे तैसे कोई एक सूत्र निश्चय भी हो तो उसका अनुपालन कैसे होगा? एक व्यस्त स्टेशन में लाखों यात्री एक दिन में चढ़ते उतरते हैं, अधिकतर तो पहिये वाले सूटकेस लेकर चलते हैं, शेष बचे हजारों यात्रियों और कुलियों के बीच हुये लेन देन पर प्रशासनिक दृष्टि रखना संभव ही नहीं है। इन परिस्थितियों में स्टेशन के बाजार में मोल-भाव का पारा चढ़ता है, यात्रियों का बाजारवाद, कुलियों का साम्यवाद और रेलवे का सुधारवाद, जैसे जैसे जो जो प्रभावी होता जाता है, देश उसी पथ पर बढ़ता जाता है।
जहाँ पर विकल्प होता है, बाजार स्वतन्त्र रूप से मूल्य निर्धारित कर लेता है। पर यदि सारे विकल्प यह निश्चित कर लें कि उन्हें विकल्प की तरह प्रस्तुत ही नहीं होना है तो बाजार पर कोई भी नियन्त्रण नहीं रहता है। आप यदि यह निश्चय कर लें कि आप निर्धारित मूल्य ही देंगे तो बहुत स्टेशनों पर यह भी हो सकता है कि कोई आपका सामान ही न ले जाये। आपसी सहमति के बाद निश्चित मूल्य प्रशासन द्वारा निर्धारित मूल्य से अधिक ही रहता है। कहीं कुछ होते हुये नहीं दिखता है, पर यही प्रयासों का अन्त नहीं है।
अपने दृष्टिकोण को यदि नया आयाम दें और विषय को पूर्वाग्रहों से मुक्त कर एक सार्थक रूप दें तो प्रश्न उठेगा कि इतने आधुनिक परिवेश में कुली अपने सर पर बोझ क्यों ढोये? बहुत से यात्री पहियों वाला सूटकेस लेकर चलते हैं पर उसके पहिये छोटे और स्टेशनों में मार्ग अनियमित होने के कारण बहुत असुविधाजनक होते हैं। क्यों न तब कुलियों को एयरपोर्ट जैसी हैण्डट्रॉली दी जाये जिससे सर पर बोझा ढोने के स्थान पर उस ट्रॉली के माध्यम से श्रम को कम किया जा सके। जब श्रम कम होगा, तब यात्रियों से निर्धारित पैसों से अधिक लेने की प्रवृत्ति भी कम होगी। स्टेशनों पर कुलियों का माध्यम आवश्यक सा हो गया है क्योंकि यात्रियों को सीधे ट्रॉली देने से अव्यवस्था और कुलियों द्वारा विरोध की आशंका रहती है।
प्रायोगिक तौर पर ऐसी 30 हैण्डट्रॉलियाँ, बंगलोर स्टेशन पर लगायी गयी हैं। आरम्भिक आशंकाओं के बाद सभ्यता के सशक्त आविष्कार पहियों ने हैण्डट्रॉली के माध्यम से स्टेशन पर अपना स्थान बनाना प्रारम्भ कर दिया है। निकट भविष्य में सभी कुलियों को हैण्डट्रॉली देने की योजना है।
कुलियों का भार कम होने लगा है, आप आशा करें कि उसका सुप्रभाव आपकी जेब के लिये भी हितकर हो। बाजारवाद, साम्यवाद व सुधारवाद में उपजे घर्षण को कोई पहिया कम कर दे।
कुलियों का भार कम होने लगा है, आप आशा करें कि उसका सुप्रभाव आपकी जेब के लिये भी हितकर हो। बाजारवाद, साम्यवाद व सुधारवाद में उपजे घर्षण को कोई पहिया कम कर दे।
हैण्डट्रॉलियाँ? अच्छी शुरुआत है।
ReplyDeleteजब श्रम कम होगा, तब यात्रियों से निर्धारित पैसों से अधिक लेने की प्रवृत्ति भी कम होगी।
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने.कुलियों का भार कम करना मानव वादी भी है और बाज़ार के दृष्टिकोण से सही है.
बहुत ही सार्थक चिंतन.
कुलियों द्वारा इतना बोझ उठाया जाना और उसे मेहनताना देने में झिक झिक ,प्लेटफोर्म पर ऐसे दृश्य आम हुआ करते हैं ...ऐसे में कुलियों को ट्रौली के साथ देखना एक सुखद अनुभव है ...कुलियों और यात्रियों दोनों के लिए ही लाभकारी रहेगा ...
ReplyDeleteवाह यह तो क्रांतिकारी कदम है -भूरि भूरि प्रशंसा के काबिल ...
ReplyDeleteयह ट्रालिया कुलियो को भार मुक्त भी कर सकती है .हवाई अड्डो की नकल है लेकिन वहा ट्रालिया स्व्यम ढकेली जाती है ना की कुलियो के द्वारा .
ReplyDeleteजैसे भिश्ती इतिहास हो गये अब कुलियो का नम्बर आ चुका है शायद और यह ट्राली ही उनका काल साबित होगी
कुछ स्टेशन पर महिला पोर्टर्स को भी लाईसेंस दिये गये हैं, इस द्रूष्टि से भी भविष्य में यह एक अच्छा कदम होगा।
ReplyDeleteGood to hear Bangalore division is always ready with something new to do .Congratulatoins.
ReplyDeletekabhi kabhi to coolie wakai gambheer samasya utpann kar dete hain... lekin ye badhiya prayas hai. hamare dhiru ji ki tippanni bhi sahi prashn utha rahi hai...
ReplyDeletebadiya shuruaat...
ReplyDeleteभार-वाहक का काम सबके बूते का नहीं है,कुली अधिकतर जी-जान लगा देते हैं भार ढोने में !
ReplyDeleteअगर कुली ज़्यादा मोलतोल नहीं करता तो कई बार व्यक्ति उसकी मेहनत को देखकर अलग से भी टिप देते हैं !
इस से कुलियों को सिर से भार ढोने से मुक्ति मिलेगी| सिर का बोझ कम हो जाएगा|
ReplyDeleteबैंकोक में इस तरह की व्यवस्था से रूबरू हुए.. वहाँ सामान (नग) के हिसाब से पैसा है... लगभग ३० रुपये प्रति नग...अपने सामान के हिसाब से कूपन लेलो और सामान पहुचाने के बाद कुली को कूपन थमा दो... सीधा सरल कोई झंझट नहीं...
ReplyDeleteचांगमई में शायद ३० रुपये में ट्रोली मिलती है.. ट्रोली लो अपना सामान रखो और बस.. ये भी अच्छी व्यवस्था लगी..
ऐसे बहुत से प्रयोग किये जा सकते है... लेकिन वहाँ संभव नहीं जहां पर प्लेटफार्म क्रोस करने के लिए सीढ़ी से जाना होता है...
शुभकामनाएँ.. नई शरुआत के लिए..
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ReplyDelete@-अपने दृष्टिकोण को यदि नया आयाम दें और विषय को पूर्वाग्रहों से मुक्त कर ...
Great thought !
All we need to do is to be progressive and a positive thinker in our views. That works wonders.
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प्रवीण जी, मैंने मध्यप्रदेश के अधिकांश शहरों में देखा है कि वहाँ सीढियों के साथ रेम्प भी होते हैं, इस कारण कुली ना मिलने की स्थिति में परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। नागपुर में तो इतना अच्छा लगा कि वहाँ नए चमकदार रेम्प पर गोल्फ-कार चल रही थी। वे अशक्त यात्रियों को डिब्बे तक मुफ्त छोड़ रही थी। इसलिए ट्रोली के साथ ही स्टेशनों पर रेम्प भी बनवा दिए जाएं तो बहुत सुविधा हो जाएगी। कई स्टेशनो पर तो कुली होते ही नही हैं। समान के साथ सीढियां चढना असम्भव सा हो जाता है।
ReplyDeleteप्रवीण जी, मैंने मध्यप्रदेश के अधिकांश शहरों में देखा है कि वहाँ सीढियों के साथ रेम्प भी होते हैं, इस कारण कुली ना मिलने की स्थिति में परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। नागपुर में तो इतना अच्छा लगा कि वहाँ नए चमकदार रेम्प पर गोल्फ-कार चल रही थी। वे अशक्त यात्रियों को डिब्बे तक मुफ्त छोड़ रही थी। इसलिए ट्रोली के साथ ही स्टेशनों पर रेम्प भी बनवा दिए जाएं तो बहुत सुविधा हो जाएगी। कई स्टेशनो पर तो कुली होते ही नही हैं। समान के साथ सीढियां चढना असम्भव सा हो जाता है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी पहल ..... प्रसंशनीय कदम
ReplyDeleteकुली पर बहुत संवेदनापूर्ण आलेख है यह.... अब तो किसी भी पेशा में मानवीय दृष्टि ख़त्म हो रही है और बाजारू दृष्टि आ गई है... अधिकांश कुली बोझ उठाते उठाते बवासीर के मरीज़ हो जाते हैं .. शायद २० ३० रूपये देते समय हम इसका ख्याल नहीं करते.... कई बार कुली बहस भी करते हैं लेकिन उसके पीछे उनका भी बुरा अनुभव होता है.. सभी यात्री सहज और सरल नहीं होते.. कई बार लोग वाजिब मेहनत भी नहीं देते हैं..
ReplyDeleteआज आपने उन पर कलम चलाई है जिनके बारे में बहुत कम लिखा गया है ....इनका वज़न कम करने की घोषणा से मानवता को थोड़ी राहत मिलेगी ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteइन ट्रॉलियों का प्रयोग हवाई अड्डे पर आसान है लेकिन रेलवे स्टेशन पर मुश्किल। यहां पर अक्सर पुल पार करने पड़ते हैं जहां पर सीड़ियां हैं।
ReplyDeleteसुखद शुरुआत!!
ReplyDeleteरेलवे की तरफ से बहुत अच्छी शुरुआत, प्रवीण ज़ी.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट भी.
उन्नत सोच ! बेहतर योजना ! प्रशंसनीय !
ReplyDeleteयात्रियों का बाजारवाद, कुलियों का साम्यवाद और रेलवे का सुधारवाद .......सटीक बात कही है |
ReplyDeleteसूरत रेलवे स्टेशन पर मैंने इन कुलियों की तलवारबाजी देखी है |
जब श्रम का विभाजन होता है to कार्य की आसानी के साथ साथ आर्थिक प्रगति भी होती है
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर मन में ये प्रश्न उठा की ये ट्रोलियाँ अगर यात्रियों को रेलवे की तरफ से मुफ्त ही उपलब्ध करा दी जायं जैसा की मॉल में होता है तो क्या होगा ?
ReplyDeleteक्या विदेशी रेलवे स्टेशनों पर और एअरपोर्ट पर भी अपने कुली भाई मिलते हैं ?
अब जो ट्राली भी कुली से धकियाएंगे उनका कोई क्या कर लेगा
ReplyDeleteयह तो बेहद अच्छी पहल है .. इस प्रस्तुति के लिये आपका बहुत-बहुत आभार ।
ReplyDeleteअच्छी पहल । अधिक समस्या ओवर हेड ब्रिज पर सामान लेकर चढ़ने में होती हैं । उसके लिये पुल के बगल में लगेज कनवेयर्स , या एसकेलेटर्स,जिन पर लगेज भी कैरी हो सके ,ऐसा कुछ किया जाना चाहिये । इन ट्रालियों में अगर नीचे बेस पर weighing platter इनबिल्ट कर दे तो सामान का वजन भी तुरंत log हो जाएगा और कुलियों को भुगतान वजन के अनुसार निर्धारित दर से किया जा सकता है ।
ReplyDeleteभारत मे गरीब बहुत हे इन नेताओ की वजह से, इस लिये लोगो को हम सब का भार ऊठाना पडता हे, वैसे यह एक आमनविया कार्य हे, रिक्शा चलना, कुली का काम, माल को ढोना ओर यह सब नही होना चाहिये, हम सब को अपना काम खुद करना चाहिये, बुजुर्ग ओर बिमार लोगो को टिकट के समय ही सहायता के लिये बोल देना चाहिये.
ReplyDeleteमुझे मौजूदा व्यवस्था में सुधार की गुंजाईश नहीं दिखती.
ReplyDeleteवर्तमान में मैंने पाया है कि कुलियों के झुण्ड खाली बैठे रहेंगे लेकिन बहुत कम सामान होने पर भी तय दर से चलने के लिए तैयार नहीं होंगे. क्योंकि वे जानते हैं कि परेशान यात्री के पास और कोई ठौर नहीं है.
अन्दर की बात यह भी है कि कुली दिन भर में सैंकड़ों रुपये कमाते हैं पर इसका कुछ हिस्सा पुलिस और दूसरे मंगतों को भी चढौती में लगता है. इस बारे में तो खैर क्या बात की जाय.
जिस तरह दफ्तर में नाकारा कर्मचारी काम से बचने के लिए कम्प्यूटरों को खराब कर देते हैं इसी तरह ट्रालियों को भी देरसबेर पुरानी व्यवस्था चलते रहने देने के लिए बिगाड़ देने की संभावनाएं हैं.
भारिकों की मनमानी और बदतमीजी का तोड़ मैंने इस तरह किया है कि कम सामान लेकर चलता हूँ और यथासंभव सारा सामान खुद ही उठा लेता हूँ.
हूँ दुबला-पतला लेकिन चालीस-पचास किलो सामान कई दफा उठा चुका हूँ.
सामान ढोना भी एक कला है. सबसे अच्छे होते हैं ट्रेवल बैग्स. और सबसे खराब होते हैं भीमकाय सूटकेस. दो मीडियम साइज़ के बैग दोनों कन्धों पर और दो मंझोले सूटकेस हाथों में... और फिर अपनी दुनिया का बोझ हम खुद ही उठाते हैं.
पत्नी इसे मेरी कंजूसी कहती है और मैं इसे आत्मनिर्भरता कहता हूँ. आखिर हर जगह तो कुली मिलने से रहे.
विचार शून्य साहब जैसे ही विचार मेरे मन में आये . अगर ये पहिये वाली ट्राली यात्रियों को उपलब्ध हो जाएगी तो . सीढियों पर तो चढ़ नहीं सकती हा अगर सब वे है तो बढ़िया .
ReplyDeleteहैण्डट्रॉलियाँ - जरूरी है .. जब बाकि जगह श्रम को मशीनों के साथ बदला जा रहा है - कुली ही अपवाद क्यों रहें.
ReplyDeleteबेहतरीन विचार.
बहुत सुन्दर विचार भाई..
ReplyDelete"बाजारवाद, साम्यवाद व सुधारवाद में उपजे घर्षण को कोई पहिया कम कर दे।"
ReplyDeleteसे पहले
"बाजारवाद के समर्थक और वामपंथी पुरोधा पूरा शोधपत्र तैयार कर देंगे इस विषय पर"
तथा
"बहुधा आपकी साँस फूलने लगती है साथ चलने भर में"
जैसे वाक्यों ने इस आलेख को अधिक प्रभावशाली बना दिया है|||
वैसे एक सच ये भी है कि अक्सर दो सूटकेस और एक बड़ा बेग उठाने के नाम पर हम से २०० रुपये तक माँगने लगते हैं कुली लोग|
ट्रालियां सीढियों पर कैसे चलेंगी ????
ReplyDeleteयह बहुत बढ़िया बात सुनाई आपने.प्राय:स्टेशन पर दूसरे से भर उठवा कर ग्लानि होती है. न उठवाना भी कुली के लिए दुखद होगा. यह समाधान बेहतर है.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
isko kahte hain win win situation. :)accha laga jaan kar.
ReplyDeleteसच है कुलियों के बिना सफर कितना मुश्किल है, इसे आसानी से समझा जा सकता है। सफर की शुरुआत और अंत दोनों इन्हीं के साथ होती है। अच्छा विषय और विचार
ReplyDeleteसुन्दर,रोचक भूरि भूरि प्रशंसा के काबिल ...
ReplyDeleteआपको हार्दिक शुभ कामनाएं !
--अच्छा आलेख व नवीन विषय..व अच्छी शुरूआत..
ReplyDelete"जब श्रम कम होगा, तब यात्रियों से निर्धारित पैसों से अधिक लेने की प्रवृत्ति भी कम होगी। ---"
------मुझे नहीं लगता कि यह प्रव्रत्ति कम होगी...क्योंकि यह मानवीय कमजोरी, बाजार व्यवस्था व आर्थिक आवश्यकता की बात है...आज भी बहुत से अच्छे कुली सही पैसे ले लेते हैं( यद्यपि कम ही हैं--समाज की स्थिति के अनुसार )
---हर ओवर-ब्रिज सीडियों के साथ रेम्प/सब-वे भी हो तो और भी आसानी रहेगी...
‘ इतने आधुनिक परिवेश में कुली अपने सर पर बोझ क्यों ढोये?’
ReplyDeleteकोलकाता में तो आदमी आदमी को ढो रहा है :(
बहुत सार्थक चर्चा करता हुआ लेख.....
ReplyDeleteकुलियों के बोझ को कम करने के लिए हैण्ड ट्राली का प्रयोग सराहनीय है |
मेरी राय में कूलियों को सर पर भार रखने से रोका जाना चाहिए।
ReplyDeleteसभी कूलियों को मुफ़्त में ट्रॉली दी जानी चाहिए जो रेल्वे की सम्पत्ति हो।
हर स्टेशन पर बाहर निकलने के लिए ऐसे रास्ते होने चाहिए, जहाँ सीढियाँ न हो और उतार चढाव की आवश्यकता न हो। अधिक रैम्पों का इन्तजाम हो।
प्लैटफ़ॉर्म का फ़र्श थोडी चिकनी हो, जिसपर ट्रॉली आसानी से चल सके।
एक ट्रॉली का भार कितना हो, वह पूर्वनिश्चित हो और उसके लिए कूली को पूर्वनिश्चित मुआवजा दिया जाए।
यात्री को (यदि वह चाहें तो ) रेल टिकट के साथ, सामान का भी एक टिकट दिया जाए (अतिरिक्त शुल्क पर) जिसे वह कूली को दिखाकर, अपना सामान कूली की ट्रॉली द्वारा बहार ले जा सके।
कूली इस कूपन या टिकट को रेल्वे कार्यालय में पेश करके रकम वसूल कर सकता है।
ट्रॉलियाँ दो किस्म की हों, एक हलके सामान के लिए, और एक भारी सामान के लिए, जिसके शुल्क अलग हो।
और सोचने पर, बहुत से सुझाव संभव हैं।
देखते हैं अन्य पाठक क्या कहते हैं
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
बढ़िया शुरुआत है.धीरे धीरे यात्रियों के हाथ में आ ही जानी है ये ट्रोली .एअरपोर्ट की तरह.
ReplyDeleteयह मानवीय पहल है। इसके बारे में सोचनेवाले और इसे क्रियान्वित करनेवाले को साधुवाद। अन्तर्मन से। यह सोच, 'श्रम' के प्रत्येक क्षेत्र में विकसति किया जाना चाहिए।
ReplyDeleteआज कल लोग खुद ही खींचते हुए सामान ले जाने वाले बक्से और बैगों का प्रयोग करते हैं। ऐसे में इन कुलियों के पेशे वर तो लगता है भारी आफ़त आ गई होगी। हां ये हैंड ट्रोली अच्छी पहल है।
ReplyDeleteआलेख बहुत ही अच्छा है।
आप के सारे ब्लांग पढ़ती हूँ, काफी उत्साह वर्धक हैं। मेरे ब्लांग में भी आप आये तो मुझे खुशी होगी धन्यवाद…
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
कुलियों के भार पर भारी-भरकम चिंतन... वैसे यह सब सोचने में थोड़ी देर नहीं कर दी रेलवे ने... ६३ साल हो गये हैं आजाद हुऐ...
ज्यादा नग होने पर हाथ-ठेला तो लगभग सभी स्टेशनों पर मौजूद है पहले से और उनका ठेकेदार भी, जो प्रति फेरा ५ से १० रूपये लेकर कुलियों को उसे देता है...
...
समय के साथ परिवर्तन अवश्यसंभावी और स्वागतेय.
ReplyDeleteअरे वाह! ये तो बड़ी अच्छी पहल है.
ReplyDeleteभाई पाण्य जी मेरे पोस्ट पर जरा खुल कर कमेंट दीजिए।आपका स्वागत है।
ReplyDeleteसर उपयोगी कदम !
ReplyDeleteये आप जैसे सामाजिक व मानवीय सोच रखने तथा विकाश को सही मायने में जन-जन तक पहुँचाने के लिए लगातार सोचते रहने वाले अधिकारीयों के सच्चे प्रयास का नतीजा है...काश हमारे देश के सर्वोच्च संवेधानिक पदों पे बैठे लोग भी ब्लोगर होते और उनकी सोचने की शक्ति भी इसी तरह परोपकारी इंसानी सोच पे आधारित होती...
ReplyDeleteसुखद मानवीय पहल
ReplyDeleteएक नई सोच के साथ ही नया प्रयोग शुरू किए जाने पर रेलवे को बधाई । कल क्या होगा कौन जानता है लेकिन ऐसे प्रयोग होते रहने चाहिए और उम्मीद की जानी चाहिए कि सब इस बात को समझ सकेंगे । बेहतरीन पोस्ट प्रवीण भाई
ReplyDeleteसोच तो अच्छी है किन्तु इससे यात्रियों को आर्थिक राहत मिल सकेगी इसमें संदेह है ।
ReplyDeleteसारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं.., ट्रॉलियों के विषय में सिर्फ इतना कि और भी गम हैं इन ट्रॉलियों के अतिरिक्त, उनका क्या!!!
ReplyDeleteप्रायोगिक तौर पर ऐसी 30 हैण्डट्रॉलियाँ, बंगलोर स्टेशन पर लगायी गयी हैं। आरम्भिक आशंकाओं के बाद सभ्यता के सशक्त आविष्कार पहियों ने हैण्डट्रॉली के माध्यम से स्टेशन पर अपना स्थान बनाना प्रारम्भ कर दिया है। निकट भविष्य में सभी कुलियों को हैण्डट्रॉली देने की योजना है।
ReplyDeleteप्रयोग सफल रहे यही शुभकामना है ...कुली और यात्री दोनों को आराम ...बढ़िया शरुआत ...अच्छी जानकारी
तब कुलियों को एयरपोर्ट जैसी हैण्डट्रॉली दी जाये जिससे सर पर बोझा ढोने के स्थान पर उस ट्रॉली के माध्यम से श्रम को कम किया जा सके। जब श्रम कम होगा, तब यात्रियों से निर्धारित पैसों से अधिक लेने की प्रवृत्ति भी कम होगी। स्टेशनों पर कुलियों का माध्यम आवश्यक सा हो गया है क्योंकि यात्रियों को सीधे ट्रॉली देने से अव्यवस्था और कुलियों द्वारा विरोध की आशंका रहती है।
ReplyDeleteEK SAHI PRAYAS.....
JAI BABA BANARAS.....
अच्छी शुरुआत है .. पर धीरे धीरे कुलियों का धंधा ही न चोपट हो जाए ...
ReplyDeleteहैण्ड ट्राली के साथ थोडा कसरत भी हो जाएगी ... सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteयह तो कब का हो जाना चाहिये था. देर आयद दुरूस्त आयद ..
ReplyDeleteबहुत अच्छी शुरुआत है| बाकी जगहों पर भी ऐसा हो इसकी उम्मीद करती हूँ |
ReplyDelete.
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शिल्पा
kuliyon ko bhi manmani nahi karni chahiye aur trolly milna sahi hai
ReplyDeleteNice thought for the porters and public!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
कुलियों को ट्रॉलियाँ दिए जाने की क्या आवश्यकता है? यात्री स्वयं ट्रॉली का प्रयोग करके आत्मनिर्भर क्यों न रहें?
ReplyDeleteकुलियों को कुलीत्व से मुक्त क्यों न करे दिया जाए ?
आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
It is really a welcome step . Thanks for sharing.
ReplyDeleteट्रॉली प्रथा कुली प्रथा का अंत हो सकती है.. कुली एक कहानी का पात्र हो सकता है.. किन्तु किसी की रोटी नहीं छिननी चाहिए ... कुछ विकल्प उनके लिए भी हों .. एक बात बोलूं प्रवीण जी.. महंगाई बड रही है तो कुली का भी मेहताना बढना चाहिए ...
ReplyDeleteसुखद शुरुआत है। कुलियों के प्रति हम संवेदनशील बने रहें।
ReplyDeleteDhanyawad.
ReplyDeletepraveen ji
ReplyDeleteaapka sijhav mujhe to bahut hi achha laga .agar waqai me aisa ho jaaye to dono hi paxhon ko rahat milegi.bahut sarthak v vicharniy tathy uthaya hai aapne .iske liye sach me prayatn sheel ho jaana chahiye
bahut hisarthak post
bahut bahut badhai v dhanyvaad
poonam
@Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
ReplyDeleteजब यही निष्कर्ष है तो प्रारम्भ भी कभी न कभी करना ही होगा।
@विशाल
पसीने की बूँदों में वह अधिकार आ जाता है, पर वह श्रम क्यों किया जाये जिसकी आवश्यकता ही नहीं है।
@वाणी गीत
लक्ष्य यही है किसी को भी हानि न हो और किसी को भी अनुचित लाभ न हो।
@Arvind Mishra
बहुत धन्यवाद आपका।
@dhiru singh {धीरू सिंह}
वर्तमान समाजिक परिवेश में कुलियों का अस्तित्व समाप्त नहीं किया जा सकता है पर घर्षण कम तो किया ही जा सकता है।
@संजय @ मो सम कौन ?
ReplyDeleteमहिला पोर्टरों को तो यह हर स्थान पर हैण्डट्रॉली देनी चाहिये।
@anupama's sukrity !
बंगलोर की परम्परा रही है नये विचारों को स्थान देना।
@Indian Citizen
सबको साथ लेकर चलना होगा, कुलियों की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती है, इतने वर्षों से उनका सम्बन्ध रहा है।
@Apanatva
बहुत धन्यवाद आपका।
@संतोष त्रिवेदी
कई बार तो स्वतः ही यात्री अधिक पैसे दे देते हैं पर अधिकतर कुली इसे अपना अधिकार समझ लेते हैं।
@Patali-The-Village
ReplyDeleteबस यही प्रयास है, इस उपक्रम का।
@रंजन (Ranjan)
आधुनिक प्रयोगों का सुधारवाद रेलवे लागू तो करना चाहता है पर कुलियों का अस्तित्व हिलाये बिना। एक बार यदि हैण्डट्रॉलियों की आदत पड़ जाती है तो सुधार के प्रयास उन्ही के तरफ से होंगे।
@ZEAL
सकारात्मक विचार सदा ही कोई न कोई दिशा निकाल देते हैं।
@ajit gupta
बंगलोर में रैम्प भी है और लिफ्ट भी अतः ट्रॉलियों के आवागमन की कोई समस्या नहीं है। सीढ़ियों में समान लेकर चढ़ना सच में कठिन है।
@डॉ॰ मोनिका शर्मा
बहुत धन्यवाद आपका।
@अरुण चन्द्र रॉय
ReplyDeleteदोनों ही ओर से ज्यादती होती है, बड़े स्टेशनों पर संगठित होने के कारण यात्रियों को असुविधा हो जाती है।
@सतीश सक्सेना
विकास के पहिये सबको ही राहत दें।
@उन्मुक्त
यहाँ पर समुचित रास्ता भी बना दिया है, बंगलोर में लिफ्ट भी है।
@Udan Tashtari
बहुत धन्यवाद आपका।
@Shiv
प्रयास तो सतत होते रहने चाहिये, सफलता तो मिलेगी ही।
@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@नरेश सिह राठौड़
कई स्थानों पर स्थिति चिन्तनीय है।
@गिरधारी खंकरियाल
समुचित श्रम हो और उसका समुचित मूल्य मिले।
@VICHAAR SHOONYA
अब सैकड़ो वर्षों के बाद उन्हे स्टेशन से हटा देने भी उचित नहीं होगा। सुधार की प्रक्रिया निश्चय ही कोई सार्थक दिशा पायेगी।
@Kajal Kumar
स्वयं ही कुलियों में यह भाव आयेगा कि अधिक पैसे न लिया जाये।
@सदा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@अमित श्रीवास्तव
आपके सुझाव बहुत ही उपयोगी हैं, निश्चय ही लागू करने की प्रक्रिया चलती रहेगी।
@राज भाटिय़ा
आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ, यदि किसी को सहायता की आवश्यकता हो तो पहले बता देना उचित रहेगा।
@निशांत मिश्र - Nishant Mishra
मैं भी पहले अपना सामान लेकर चलता था पर अब परिवार में सबका सामान उठाना कठिन है। प्रयोगों का धाराशायी करने में हम भारतीय विशेषज्ञ हैं। मैं आशान्वित हूँ कि यही राह आगे तक जायेगी।
@ashish
सब वे है और लिफ्ट भी। यात्रियों को ट्रॉली देना बिना कुलियों की जीविका प्रभावित किये तो संभव नहीं दिखता है वर्तमान में।
@दीपक बाबा
ReplyDeleteयही प्रयास है।
@परावाणी : Aravind Pandey
बहुत धन्यवाद आपका।
@Navin C. Chaturvedi
आवश्यकता हम सबकी है, आपसी सहमति से ही सहयोग संभव है।
@रंजना
सब वे और लिफ्ट भी है, साथ ही साथ ट्रॉली पथ भी।
@Mired Mirage
सबका ही भला होगा इसमें।
@Puja Upadhyay
ReplyDeleteप्रयोग प्रारम्भ कर दिया है, सार्थक दिशा निकलेगी।
@mahendra srivastava
हमें उनकी आवश्यकता है, श्रम सार्थक हो।
@मदन शर्मा
बहुत धन्यवाद आपका।
@Dr. shyam gupta
यदि निश्चय कर लिया है कि लूटना है तो सम्भव नहीं होगा पर मानवीय हृदय को इतना कठोर भी नहीं समझना चाहिये।
@cmpershad
बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है वह तो।
@सुरेन्द्र सिंह " झंझट "
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@G Vishwanath
आपके सभी सुझावों पर सहमति, निसन्देह लागू करने की गति निर्धारित करनी होगी।
@shikha varshney
निष्कर्ष पर कुछ नहीं कह सकता हूँ पर वर्तमान में यही दिशा सर्वोत्तम लगती है।
@विष्णु बैरागी
बहुत धन्यवाद आपका। अन्य क्षेत्रों में भी यह प्रयास चलता रहेगा।
@मनोज कुमार
अधिक सामान हो तो पहिये वाले सूटकेस भी खीचे नहीं जा सकते हैं, इसमें 200 किलो तक का सामान उठाया जा सकता है।
सामान पहुँचाने के बाद, जो बनता हो दे दीजिये, ऐसा कहनेवाले कुली यदि कहीं हैं तो वह स्टेशन आदर्श होगा. चेन्नई में ट्रोली की सुविधा पहले से है और वहां के कुली यात्रियों (विशेषकर हिन्दीभाषी) के साथ कैसे पेश आते हैं, यह कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है. स्टेशन और उसके आसपास रहनेवाले दुकानदार, वाहन चालक, बोझ उठानेवाले कुली कितने इमानदार, व्यवहार कुशल और यात्रियों के साथ मैत्रीपूर्ण होते हैं, सभी जानते है. हाँ बुरी से बुरी जगह पर भी अच्छे लोग होते ही हैं. रेलवे स्टेशन इसका अपवाद नहीं हैं.
ReplyDelete@maheshwari Kaneri
ReplyDeleteनिश्चय ही आपका ब्लॉग पढ़ना सौभाग्य होगा मेरे लिये।
@प्रवीण शाह
निश्चय ही देर अवश्य हुयी है पर कभी न कभी तो प्रारम्भ करना ही था। यदि
व्यवस्था पारदर्शी रहेगी तो इस तरह के बिचौलिये भी नहीं आयेंगे।
@Rahul Singh
यह परिवर्तन सबके लिये सुखद रहे, यही प्रार्थना है।
@वन्दना अवस्थी दुबे
पहल अपने निष्कर्ष तक पहुँचे, उसी में सबका हित है।
@ प्रेम सरोवर
निश्चय ही आपकी पोस्ट पढ़ना अच्छा अनुभव है मेरे लिये।
@G.N.SHAW
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@honesty project democracy
हमें सतत ही उन स्थानों के बारे में सोचना होगा जहाँ पर उत्पन्न घर्षण से समाजिक व्यवहार क्षुब्ध होता है। वहीं पर ही हमारी ऊर्जा लगे।
@Ratan Singh Shekhawat
मानव हैं कुली भी। अतः उनके बारे में भी सोचना पड़ेगा।
@अजय कुमार झा
जब तक प्रयोग होते रहेंगे कोई न कोई दिशा निकलती रहेगी।
@सुशील बाकलीवाल
कम से कम परिस्थितियाँ तो ऐसी होगी कि वह अधिक पैसा देने को बाध्य नहीं कर पायेगा।
@चला बिहारी ब्लॉगर बनने
ReplyDeleteकहीं न कहीं से तो प्रारम्भ हो। और गमोँ को भी देखेंगे।
@संगीता स्वरुप ( गीत )
दोनों को ही आराम मिले, यही प्रयास है इस प्रयोग का।
@Poorviya
बहुत धन्यवाद आपके उत्साहवर्धन का।
@दिगम्बर नासवा
आशंका कुलियों को यही थी कि उनकी जीविका बंद हो जायेगी।
@महेन्द्र मिश्र
ट्रॉली आने से दोनों का ही श्रम कम हो जायेगा।
@M VERMA
ReplyDeleteदेर से ही सही पर प्रारम्भ कर दिया, यही संवेग बना रहे।
@Shilpa
अन्य स्थानों पर भी यह हो और सफल रहे, यही कामना है।
@रश्मि प्रभा...
कुलियों की मनमानी करने की प्रवृत्ति कम होनी चाहिये इस प्रयोग से।
@Vivek Jain
बहुत धन्यवाद आपका।
@डॉ.कविता वाचक्नवी Dr.Kavita Vachaknavee
वर्तमान समाजिक परिवेश में कुलियों के अस्तित्व को नकारना सम्भव नहीं है।
@Dinesh pareek
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@Gopal Mishra
बहुत धन्यवाद आपका।
@डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति
कई स्थानों पर कुली अधिक कमाते हैं, कई स्थानों पर भूखे रह जाते हैं।
@mahendra verma
कुलियों के प्रति संवेदना दिखानी होगी।
@muskan
बहुत धन्यवाद आपका।
@JHAROKHA
ReplyDeleteरेलवे की ओर से दोनों पक्षों को राहत देने का प्रयास है।
@ संतोष पाण्डेय
हम तो इसी आस में बैठे हैं कि सब सुधरेंगे।
सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं.....
ReplyDeleteअच्छी शुरुआत, लेकिन अगर उपलब्ध हो तो क्या लोग खुद ही ट्रालियां चलाना नहीं पसंद करेंगे?
ReplyDelete@संजय भास्कर
ReplyDeleteउठायें पर साधन और सुविधा के साथ।
@ Abhishek Ojha
वह तो आदर्श स्थिति है पर वर्तमान परिस्थितियों को नकारा नहीं जा सकता है।
शब्द कंजूसी सम्मान - http://girijeshrao.blogspot.com/2011/05/saturday-at-1240pm-girijesh-rao-poke.html
ReplyDeleteमिलने पर बधाई !
बेहद प्रासंगिक मुद्दे को आपने पोस्ट में उठाया है...साधुवाद.
ReplyDeleteहाँ भैया, इस बार देखा मैंने भी स्टेशन पे...आपने पहले इसके बारे में बताया था..बस इस बार इसका इस्तेमाल नहीं कर पाया..
ReplyDeleteखैर, ये एक अच्छी शुरुआत है..कम से कम लोगों को थोड़ी राहत मिलेगी ही..और कुलियों को भी
हैन्डट्रॉलियों का उपयोग सचमुच कारगर होगा । कुलियों को मुझे तो ज्यादा देने में परेशानी नही होती वह जो काम कर सकते हैं मै नही कर सकती सांस फूल जाती है । जो ठीक से मांगे उन्हें तब तक तो देना चाहिये जब तक कि ट्रॉलियों की व्यवस्था नही हो जाती । कई बार कुली, खास कर दिल्ली के एकदम अवास्तव मांग रखते हैं जैसे चार सूटकेस के ९०० रु. तब हम दूसरा ढूंढते है । महंगाई पहले बढती है और सरकार रेट बाद में बदलती है ।
ReplyDeleteकौन करेगा चाकरी कौन उठाये भार
ReplyDeleteखाने को देती नही कुलियों को सरकार
शुभकामनायें।
@ सतीश सक्सेना
ReplyDeleteजाकर पढ़ आये और आगे से सुधरेंगे।
@ Akanksha~आकांक्षा
रेलवे में कार्य करने से यह विषय बहुधा सामने आता है।
@ abhi
अभी संख्या कम होने से सबको समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है।
@ Mrs. Asha Joglekar
दिल्ली के बारे में कई परिचितों ने बताया है कि स्थिति खराब है।
@ निर्मला कपिला
जिनका अपना पेट भरा है,
उनको खबर कहाँ रहती है।
ट्राली के आने पर भी कुली की महत्ता कम न होगी...कुछ यात्रियों को सामान ट्राली पर रखने के लिए भी कुली की ज़रूरत होती है...कुली को शारीरिक श्रम कम करना पड़ॆगा..यह शुरुआत अच्छी है..
ReplyDeletea very good initiative... i wish the authorities success.
ReplyDelete@ मीनाक्षी
ReplyDeleteस्टेशनों पर कुलियों का अस्तित्व नकारना संभव नहीं है, उन्हे भी साथ लेकर चलना होगा।
@ Manoj K
बहुत धन्यवाद आपका।
very nice article you write this article in the meaningful way thanks for sharing this.
ReplyDeleteplz visit my website