यदि किसी को संशय हो कि कृष्ण की बांसुरी में क्या आकर्षण था तो उन्हें मेरे साथ होना था, उस सभागार में, जहाँ पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया अपनी बांसुरी के स्वरों से कृष्ण की आकर्षण-प्रमेय सिद्ध करने में लगे थे।
आलाप प्रारम्भ होता है और हृदय की अव्यवस्थित धड़कनों को स्थायित्व मिलने लगता है, आलाप प्रारम्भ होता है और मन के बहकते विचारों को दिशा मिलने लगती है। आँखें स्थिर होते होते बन्द हो जाती हैं, शरीर तनाव से निकल कर सहजता की ढलान में बहने लगता है। तानपुरे की आवृत्तियों के आधार में बांसुरी के स्वर कमलदल की तरह धीरे धीरे खिलने लगते है, वातावरण मुग्धता द्वारा हर लिया जाता है, न किसी की सुध, न किसी की परवाह, समय का वह क्षण सबका आलम्बन छोड़ बस स्वयं में ही जी लेना चाहता है। बीच में कोई नहीं आता है बस स्वरों का हृदय से सीधा संवाद जुड़ने लगता है, स्वरों का आरोह, अवरोह और साम्य हृदय को अपना तत्व प्रेषित कर निश्चिन्त हो जाता है, संचय का कोई प्रश्न नहीं, आनन्द अपनी पूरी जमा पूंजी उड़ाकर पहले अह्लादित और फिर उस हल्केपन की अवस्था में मगन हो जाना चाहता है।
बांसुरी के इस सम्मोहन को छू भर लेने से गोपियों का वह विश्वास मुखर होने लगता है जिसके अधिकार में उद्धव का निर्गुण ज्ञान अपना गर्व खोने लगता है, रत्नाकर की पंक्तियाँ उस अवस्था को सहजता से व्यक्त कर जाती हैं, प्रेम मद छाके पद परत कहाँ के कहाँ।
कल्पना कीजिये, जब वन के मद-गुंजित वातप्रवाह में बांसुरी के स्वर बहते होंगे, सारे पशु पक्षी अपना स्वभाव भूलकर सम्मोहन की स्थिति में उस स्वर के स्रोत की ओर बढ़ने लगते होंगे। मोहन का सम्मोहन, वेणुगोपाल का आकर्षण भला कौन नकार पाता होगा, शत्रु भी उस स्वर-भंवर में डूबते उतराते हुये अपनी मोक्ष-मृत्यु की संरचना गढ़ने लगते होंगे। गोप-ग्वालिनों का अह्लाद समय की सीमा लाँघ अनन्त में स्थिर हो जाता होगा। स्वरों का रुक जाना आनन्द के आकाश से गिर जाने जैसा होता होगा और कान्हा का द्वारका चले जाना तो असहनीय पीड़ा का चरम।
कृष्ण का आकर्षण समझने के लिये आपको उनके आकर्षण की भाषा समझनी होगी। पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया को सुनने से उस भाषा के स्वर और व्यंजन एक एक करके स्पष्ट होते गये। हृदय की एक एक परत खोलने की कला तो बांसुरी ही जानती है और बांसुरी का मर्म और धर्म अपने अन्दर समेटे पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया, आँख बन्द कर उँगलियों की थिरकन जब बांसुरी पर लहराती है तब हवा को ध्वनि मिल जाती है।
आधुनिकता के धुंधमय कोहरे में जब भारतीय शास्त्रीय संगीत का वृद्ध-सूर्य अपनी चिरयुवा बांसुरी का सम्मोहन बिखराता है, संगीत का आलोक दिखने लगता है, स्वतः, अनुभवजन्य। तब श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिये तर्क आवश्यक नहीं होते हैं, जो आनन्दमयी हो जाता है वही श्रेष्ठ हो जाता है
अन्त में जब राग पहाड़ी गूँजने लगा तो सारा सभागार नृत्यमय व उत्सवमय हो गया, बड़ी बांसुरी की गाम्भीर्य सुर लहरी के बाद हाथों में छोटी बाँसुरी ने स्थान ले लिया, स्वर चहुँ ओर थिरक रहे हैं, प्रारम्भ का शान्ति-सम्मोहन अब आनन्द-आरोहण में बदल चुका था।
कृष्णस्य आकर्षण-प्रमेयम्, इति सिद्धम्।
चौरसिया जी को एक बार लाईव सुना है...आज वो क्षण याद आ गये...
ReplyDeleteबहुत आभार आपका यादें ताजा कराने को.
बिलकुल सही कहा है आपने कि इस तरह के कार्यक्रम में आप मह्सूस कर सकते है परमात्मा को. किसी दूसरी दुनिया की सैर होती है.
ReplyDeleteशुभ प्रभात !
ReplyDeleteसंगीत उद्वेलित करता है इसमें तो कोई संदेह नहीं मगर इसका आनंद वही ले पता है जो इसका आनंद इसमें डूब कर ले सके !
बिल्किल ठीक लिखा है आपने |वैसे भी शास्त्रीय संगीत सुनने की नहीं,अनुभव करने की चीज़ है |पंडित हरी प्रसाद जी की बांसुरी हो ...और राग पहाड़ी हो ...दिव्य अनुभूति ...!!
ReplyDeleteश्रोताओं में निर्मल आनंद का संचार करना किसी भी संगीतज्ञ में यूँ ही नहीं आ जाता.उसने गहन रियाज किया होता है संगीत के हर सुर और ताल का.वह खुद डूब जाता है 'सत्-चित-आनंद'के भाव में जिसमें इतनी शक्ति है कि संगीत में उतर कर श्रोताओं कि भाव-समाधि तक लगवा दे.कृष्ण को तो स्वयं 'सत्-चित-आनंद' भाव का साक्षात अवतार ही माना गया है.फिर उनकी बांसुरी की धुन कितनी अलौकिक,अविस्मरणीय,और ह्रदय को सहज आकर्षण करती होगी कि मनुष्य तो मनुष्य, पशु पक्षी यहाँ तक की समस्त जड़ चेतन,पेड़,पत्थर,जमुना की जलधार सभी की भाव समाधि लग जाती होगी इसमें तनिक भी संदेह नहीं है. कवि रसखान तो ऐसे 'सत्-चित-आनंद' को कृष्ण रूप में ध्या कह उठते हैं
ReplyDelete"मानुष हो तो वही रसखान बसौं नित गोकुल गावँ के ग्वारन
जो खग हों तो बसेरौ नित कालंदी कूल कदम्ब की डारन"
ye soubhagy kai var mila insaan doosre lok me hee pahuch jata hai........
ReplyDeleteaap gour farmae to paenge instrumental music me ye magic hai.........ye shavdo ka mohtaz nahee.
bahut sunder anubhuri varnan.
हरिप्रसाद चौरसिया जी के बांसुरी वादन कृष्ण- सा ही मधुर है ...कोई शक नहीं ...
ReplyDelete"चांदनी" के गीत " तेरे मेरे होठों पे मीठे -मीठे गीत मितवा " में शिव कुमार शर्मा के साथ इनकी जुगलबंदी ने क्या धुन बनायी है ...
kamaal ka hai bhartiya shashtriya geet aur sangeet...
ReplyDeleteलाईव नहीं सुन पाये, लेकिन रिकार्डिंग तो सुन रखी हैं, मदहोश करने लायक।
ReplyDeleteआदरणीय हरिप्रसाद चौरसिया जी का बांसुरी वादन कई बार सुना है। बस आँखे बंद करिए और सुरों के साथ गहरे उतर जाईए। अलौकिक आनंद आता है।
ReplyDeleteआभार
बांसुरी का सुर कानों में , वह भी चौरसिया जी की वाह !सुन्दर अनुभूति होती है वैसे संगीत कोई भी अच्छा ही लगता है |
ReplyDeleteहरिप्रसाद चौरसिया को साक्षात् सुनना एक अद्भुत् आनंद लोक की यात्रा होती है।
ReplyDeleteमगर मुरली की तान सुनने को तरस गए श्रवण रंध्र .....एक आडियो /वीडियो लगाना था न ..
ReplyDeleteकृष्ण की मुरली की तान तो एक अनहद नाद थी समस्त चराचर को व्यामोहित कर देने वाली
अनुनादित करता हुआ पोस्ट का सुर.
ReplyDeleteअधरं मधुरं - वदनं मधुरं
ReplyDeleteमधुराधिपते रखिलं मधुरं
baansuri aur chaurasiya ji .... krishn ka aakarshan samjh me aa jata hai
ReplyDeleteहीरो फिल्म के संगीत की कामयाबी भी उनकी बांसुरी ही थी |
ReplyDeleteचौरसिया जी को मुरली बजाते सुनना भगवत आनंद की अनुभूति करता है .प्रमेय सिद्ध हुई और हम मंत्रमुग्ध हुए .
ReplyDeleteमधुर संगीत सदा ही मन में एक अलग तरह का भाव पैदा करता है |
ReplyDelete.
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शिल्पा
हरी प्रसाद....
ReplyDeleteवास्तव में ये मोहन मुरली उन्हें हरी के प्रसाद स्वरुप ही मिली है..
मुझे भी एक बार उन्हें साक्षात् सुनने का सौभाग्य मिला है..
बस यही लगा कि इसके बिना शायद जीवन में कुछ कमी ही रह जाती....
अभूतपूर्व,अद्वितीय,मंत्रमुग्ध....
कुछ ऐसा ही आकर्षण है उनकी मुरली में..
कृष्ण के सशरीर होने का एहसास उसी क्षण महसूस हुआ...
आपके लेख के लिए धन्यवाद...!!
chourasia jee ke dhuno ko aapne shabdo me vyakt kar diya...abhar!!
ReplyDeleteशास्त्रीय संगात भी भक्ति साधना है। सुन कर महसूस कर इन्सान िस मे डूब जाता है। अच्छी पोस्ट। शुभकामनायें।
ReplyDeleteभारतीय वाद्ययंत्र में जो मिठास और शांति प्रदान करने की शक्ति है वो आज के शॊर-शराबे में कहां जिसे लोग संगीत कहते है :)
ReplyDeleteसिर्फ महसूसने का सुख. आभार सहित...
ReplyDeleteसंगीत में कशिश ही ऐसी होती है कि दूसरी दुनिया में ले जाती है.
ReplyDeleteआपने इसे रिकोर्ड नही किया…………अगर किया था तो यहां लगाना चाहिये था।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बिल्कुल सही कहा है आपने इस आलेख में ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुन्दर... अति-सुन्दर...वांसुरी भी...वादन भी...वर्ण्य भाव भी... और क्यों न हो सौन्दर्य की सीमाहीन सीमा की --
ReplyDeleteकान्हा तेरी मुरली मन भरमाये।
कण कन ग्यान का अमरत बरसे, तन मन सरसाये।
यत्न किया था बचपन में की सीख सकूँ ठीक से बांसुरी बजाना।
ReplyDeleteचौरसिया जी को सुनना सचमुच सुखद है।
चौरसिया जी को एक बार लाईव सुना है...आज वो क्षण याद आ गये...
ReplyDeleteअब बांसुरी वादन कैसा लगता यह तो नहीं कह सकती पर आपके लेख ने ज़रूर मन मुदित कर दिया ...
ReplyDeleteयकीनन..चौरसियाजी का बाँसुरी वादन एक अलग ही दुनिया मे ले जाता है..दर्द निवारक...
ReplyDeleteचौरसिया जी की बांसुरी साधना तो मन भावन है किन्तु चौरसिया जी का उतराधिकारी कौन होगा अनुतरित है
ReplyDeleteजैसा चौरसियाजी का संगीत, वैसा है आपका वर्णन!
ReplyDeleteकाश हम आप जैसे लिख सकते थे!
हम भी कभी बाँसुरी बजाया करते थे पर इन महारथियों को सुनने के बाद लगता है हम तो केवल सीटी बजा रहे हैं!
कई साल पहले हमने इनको संगीत मंच पर सुना था।
देवेन्द्र मुर्देश्वर, प्रकाश वधेरा, रघुनाथ सेठ को भी मंच पर बजाते सुन चुका हूँ।
रधुनाथ सेठ से उनके घर जाकर मिला था, करीब चालीस साल पहले।
आजकल रोनु मज़ुमदार और प्रवीण गोदखिन्डी का प्रशंसक बन गया हूँ।
सभी माहिर हैं। पर कौन सर्वश्रेष्ठ है, यह निश्चय करने के लिए हम अयोग्य हैं।
कितना सरल वाद्य है यह बाँसुरी। शायद दुनाया में सबसे सस्ता वाद्य है यह।
केवल एक बाँस का टुकडा!
उसमे कुछ छेद कर लो, अधरों पर लगा लो, फ़ूँको, और देखो, कुशल और प्रतिभाशाली वादक क्या जादू करता है।
बिजली की कोई आवश्यकता नहीं। आसानी से उठाकर कहीं भी ले जाओ।
खडे खडे बजाओ या बैठे बैठे । या चलते फ़िरते बजाओ।
एक जमाना था जब इस वाद्य को शास्त्रीय संगीत के लिए अयोग्य माना जाता था।
पन्नलाल घोषजी ने इसे मान्यता दिला दी थी।
मेरी राय में बाँसुरी को देश का राष्ट्रीय वाद्य का स्थान दिया जाना चाहिए।
बहुत दिनों बाद टिप्पणी कर रहा हूँ। इस लंबी चुप्पी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। कारण ज्ञानजी के ब्लॉग पर बता दिया था।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
राधे राधे प्रवीण भाई| कान्हा की मुरली को राधा यूँ ही सौतन नहीं कहती थी| और जब चौरसिया जी के हाथों में हो बाँसुरी, तो भाई आनंद-घन नंद नंदन कृष्ण से साक्षात्कार क़ी पूरी पूरी गेरेंटी होती है|
ReplyDeleteहमें भी एक बार मुरली बजाने की झक चढी थी बचपन में, पर उसे अफोर्ड नहीं कर पाए। आपने इन पलों को पुन: याद दिलवा दिया।
ReplyDelete---------
देखिए ब्लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्वासी आज भी रत्नों की अंगूठी पहनते हैं।
अति-सुन्दर, संगीत में कशिश ही ऐसी होती है कि दूसरी दुनिया में ले जाती है|
ReplyDeleteपं. हरि प्रसाद चौरसिया जब बांसुरी बजाते हैं तो संगीत का व्याकरण और संगीत का गणित भी रूपाकार ग्रहण करने लगता है।
ReplyDeleteभारतीय शास्त्रीय संगीत को वृद्ध-सूर्य की उपमा देने से व्यथित हुआ हूं।....वह तो चिर युवा है।
चौरसिया जी को सुनना सचमुच सुखद है।
ReplyDeleteहरिप्रसाद चौरसिया जी को हम ने भी एक बार यहां सुना था, धन्यवाद
ReplyDeleteजी प्रवीण जी हरिप्रसाद चौरसिया जी का बाँसुरी वादन उनके सजीव तल्लीनता को सन्मुख देखते हुए सुनना अद्भुत अनुभूति है। एक बार , लगभग 20 वर्ष पूर्व , बनारस संकटमोचन संगीतोत्सव में मुझे उनके दर्शन व सुनने का सौभाग्य मिला था, किन्तु उसकी मधुर व आनंदमयी स्मृति आज भी मन में यथावत है।
ReplyDeleteहरिप्रसादजी जैसे व्यक्तित्व हमारे देश का गौरव हैं ...... आप भाग्यशाली हैं उन्हें लाइव सुन पाए ..... सच में उनकी बासुंरी मन को पहले उद्वेलित और फिर शांत कर देती है....... एक सुखद और दिव्य अनुभूति जो अलौकिक आनन्द दे जाये
ReplyDeleteपं. हरि प्रसाद चौरसिया जी जब बांसुरी बजाते हैं तो संगीत का व्याकरण और संगीत का गणित रूपाकार ग्रहण करने लगता है।
ReplyDeleteआभार इस सरस आलेख के लिए।
मुरली के स्वर की शब्द सरिता बहा दी आपने इस पोस्ट में...!
ReplyDeleteReally, how pleasant it would be to listen to the maestro live!!! And your beautiful description has made it even more charming.
ReplyDeleteहम होते तो... खैर आकी पोस्ट से महसूस करने की कोशिश कर रहे हैं.
ReplyDeleteकभी सुनने का मौका नहीं मिल पाया. :(
हरिप्रसाद चौरसिया जी के बांसुरी वादन के साथ शिव कुमार शर्मा जी का संतूर वादन...
ReplyDeleteकभी इस जुगलबंदी को सुनिएगा...दिव्यलोक की अनुभूति होगी...
जय हिंद...
चौरसिया जी तो जादूगर हैं बाँसुरी के
ReplyDeleteflute is the only musical instrument which when played causes resonance with all living and non living world, anyone simply gets tuned to its tune.a very musical presentation...
ReplyDeletemaine bhi gwalior tansen samaroh mein pandit ji ki bansuri suni thi...wo ehsaas hi adbhut tha.
ReplyDeleteजब पेड पर बैठी हुई कोयल की कुहुक सुनायी पड़ती है तो मन नाच उठता है, फिर भला बांसुरी की तान से तो मन झूमेंगा ही ना। आपको बधाई, जो आपने यह आनन्द लिया।
ReplyDeleteआँखें स्थिर होते होते बन्द हो जाती हैं, शरीर तनाव से निकल कर सहजता की ढलान में बहने लगता है। तानपुरे की आवृत्तियों के आधार में बांसुरी के स्वर कमलदल की तरह धीरे धीरे खिलने लगते है, वातावरण मुग्धता द्वारा हर लिया जाता है, न किसी की सुध, न किसी की परवाह.....
ReplyDeleteवाह ...वाह......
कितने संगीत प्रेमी हैं आप ......
आपका गया वो गीत आज भी कानों में रस घोल रहा है ......
बनारस की , बचपन की , बांसुरी की तान की याद ताज़ा हो गयी !
ReplyDeleteबहुत सुरीली पोस्ट....
ReplyDeleteहार्दिक बधाई...
Jitni sundar baansuri ki dhun hoti hai utna hi sundar varnan kiya hai aapne ... gopiyaan to yakeenan kho jaati hongi is murli ki taan sun ke ... ham bhi kho gaye aapka vaartalaap padh ke ....
ReplyDeletemurli ki dhun par sudh -budh hi kahan rahti .fuk de jo pran me uttejana wah kala hai gaan me ,jo kapit karke hila daale hridya dhun wo paayi maine gaan me .pandit ji ko sunna saubhagya ki baat hai .
ReplyDeleteहृदय की एक एक परत खोलने की कला तो बांसुरी ही जानती है और बांसुरी का मर्म और धर्म अपने अन्दर समेटे पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया, आँख बन्द कर उँगलियों की थिरकन जब बांसुरी पर लहराती है तब हवा को ध्वनि मिल जाती है।
ReplyDeleteलेख है या काव्य क्या शब्द क्या भाव और क्या बहाव । अति सुंदर ।
एक जादू है उनके बांसुरी वादन में।
ReplyDeleteसुमधुर पोस्ट.
ReplyDeleteमैं भाग्यशाली हूँ के मैंने अल्पायु से ही प्रख्यात पारंगत कलाकरों की कलासाधना को अपने समक्ष जीवंत रूप में देखा है और गुंजायमान होती हुई स्वरलहरियों ने मुझे न जाने कितनी ही बार विलोड़ित और आह्लादित कर दिया!
शरद पूर्णिमा के रात्रि को मुक्ताकाश मंच में भोपाल ताल के किनारे चौरसिया जी का बांसुरी वादन याद आ गया. ऐसी ही एक पूर्णिमा को शिव कुमार शर्मा जी का संतूर वादन भी सुना था.
सतीश जी ने सही कहा, शास्त्रीय संगीत का आनंद उठाने के लिए कुछ समझ और कुछ संस्कृति, दोनों चाहिए.
सर बहुत सुन्दर ! मुरली तो मुरली ही है !
ReplyDeletepraveen ji
ReplyDeletebahut hi sateek vivechan kiya hai aapne kanha ki murli ka.
ham to aapki post padhkar hi kanha ki murli ke ras me dub gaye .aapne to apne dil se ise mahsus kiya kiya .sach us waqt ki kalpna kar rahi hun ki jab aapne ise suna hoga to vastav me aap sab kuchh bhul kar kisi anant aanand purn duniya ki sair kar rahe honge.
kanha ki murli ke deewaane sabhi pashu -pakxi aur gopiyan yun hi nahi hui hongi .yah to unki murli ki taan ka sammohan hi tha jo sabko apna deewana bana leti thi .ab is soubhagy ko ham bhi pana chahte hain jo aapko mila.
bahut hi aanandpurn lekh
bahut bahut badhai
poonam
आनंद का , मनोवस्था का अनुमान लगा सकती हूँ...
ReplyDeleteसौभाग्यशाली हैं आप...
आँखें बंद हो और मन का कान मुरली की धुन को सुनने व महसूस करने को व्याकुल हो तो आनद ही आनंद है...क्योकि बांकी आँखें खुली होने पर तो चारो ओर आजकल ऐसी धुन सुनाई देती है जिससे आनंद तो दूर मन का कान परेशान होने लगता है...
ReplyDeleteआप काफी परिष्कृत रूचि से संपन्न प्रतीत होते हैं , वाह ! क्या बात है ! चैन की बासुरी ऐसे ही बजती रहे !
ReplyDeleteसच में लाइव सुनना एक रोमाचकारी अनुभव होता है मैंने भी पंडितजीजी को कालिदास मोहस्तव के दरमिय सुना था .... मदहोश करता है
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और भावपूर्ण। वैसे भी चौरसिया जी को सुनने का एक अपना ही सुखद अहसास है।
ReplyDeleteकृष्णस्य आकर्षण-प्रमेयम्, इति सिद्धम्
ReplyDeleteआपने शानदार तरीके से लिखा है.
दुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...
कृष्ण का आकर्षण समझने के लिये आपको उनके आकर्षण की भाषा समझनी होगी.....
ReplyDeletejai baba banaras.........
प्रवीण जी मेरे पास एक नोकिया ३११० में रिकार्डर में
ReplyDeleteरिकार्ड की गयी amr file है । मैं इसको amr प्लेयर
से mp3 और wav में कन्वर्ट भी कर चुका हूँ । अब
कृपया इसे ब्लाग में पोस्ट करने का तरीका बतायें ।
मेरा ई मेल - धन्यवाद ।
golu224@yahoo.com
फिलहाल तो मेरी अटेंडेंस लगा लीजिये... अभी जा रहा हूँ ट्रेन पकड़ने........ लौट कर मिलता हूँ.... आपको पढना बहुत अच्छा लगता है बस कुछ बिज़िनेस है.... इसीलिए आ नहीं पा रहा हूँ.... होप यू विल अंडरस्टैंड ............
ReplyDeleteफिलहाल तो मेरी अटेंडेंस लगा लीजिये... अभी जा रहा हूँ ट्रेन पकड़ने........ लौट कर मिलता हूँ.... आपको पढना बहुत अच्छा लगता है बस कुछ बिज़िनेस है.... इसीलिए आ नहीं पा रहा हूँ.... होप यू विल अंडरस्टैंड ............
ReplyDeleteएक स्वर्गिक आनंद!!!
ReplyDeleteइसमें दो राय नहीं कि हरिजी का बांसुरी वादन अद्भुत है.यह उनकी साधना का कमाल ही है कि इस उम्र में भी वे घंटों बांसुरी बजा लेते है. पंडितजी से कई बार मुलाकात का मौका मिला है.वे एक बेहद अच्छे इन्सान भी हैं, आपने उनके बांसुरी वादन का सारगर्भित वर्णन किया है. बधाई.
ReplyDeleteशास्त्रीय-संगीत की समझ ज़्यादा न होने के बावजूद बांसुरी-वादन मन को मुग्ध कर देता है,चौरसिया जी जैसे लोगों को सुनना बेहद दुर्लभ है !
ReplyDeleteसच्चा संगीत वही है जो दिल का दर्द फुर्र कर दे !
भाग्यशाली हैं वे जिन्हानें सामने बैठकर चौरसियाजी को सुना। एक किंवदन्ती को प्रस्तुति देते हुए देखना-सुनना वर्णनातीत है।
ReplyDelete@ Udan Tashtari
ReplyDeleteउन्हे सुनना अपने आप में एक अनुभव था।
@ रचना दीक्षित
जब अनुनाद हृदय से होता है तो सच में परमात्मा से निकटता का अनुभव होता है।
@ सतीश सक्सेना
आनन्द-निमग्ना होकर ही रसानुभूति होती है।
@ anupama's sukrity !
ऐसा ही कुछ अनुभव हुआ हमें।
@ Rakesh Kumar
आलौकिक अनुभूति देती है बांसुरी की तान।
@ Apanatva
ReplyDeleteबांसुरी के स्वर लहरियों को शब्दों की आवश्यकता ही नहीं।
@ वाणी गीत
यह गीत तो बहुत अच्छा लगता है।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
भारतीय शास्त्रीय संगीत में अध्यात्म झलकता है।
@ संजय @ मो सम कौन ?
शान्ति से बैठकर सुने, अलौकिक है।
@ ललित शर्मा
सच कहा आपने, यही अनुभूति होती है।
@ Sunil Kumar
ReplyDeleteयही आनन्द है उन्हे सुनने का।
@ मनोज कुमार
सच कहा आपने।
@ Arvind Mishra
रिकॉर्डिंग की अनुमति न थी, नहीं तो लगा देते।
@ Rahul Singh
बहुत धन्यवाद आपका।
@ दीपक बाबा
मुरलीधारी का यही आकर्षण है।
@ रश्मि प्रभा...
ReplyDeleteकृष्ण का मुरली-आकर्षण तो चौरसिया जी ही समझा सकते हैं।
@ नरेश सिह राठौड़
हाँ हमने भी देखी है।
@ ashish
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Shilpa
वही माधुर्य मुरली से टपकता है।
@ ***Punam***
हरि का उपहार ही है, तभी रमकर बजाते हैं।
@ Mukesh Kumar Sinha
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ निर्मला कपिला
भक्ति और प्रेम के सुरों को सरलता से व्यक्त करती है मुरली।
@ cmpershad
वही दिव्य शान्ति मिली वहाँ पर जाकर।
@ सुशील बाकलीवाल
बहुत धन्यवाद आपका।
@ shikha varshney
सच कहा आपने, वही अनुभव करना अच्छा लगता है।
@ वन्दना
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका, इस सम्मान के लिये।
@ सदा
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Dr. shyam gupta
असीमित, अपरिमित सौन्दर्य के प्रारम्भ क्षेत्र में पहुँचा देता है यह संगीत।
@ Avinash Chandra
हमसे तो सुर कभी निकले नहीं पर सुनना सदा ही अच्छा लगता है।
@ अरुण चन्द्र रॉय
वे स्मृतियों मधुर होंगी।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
ReplyDeleteसच कहा आपने, मन प्रसन्न हो गया था।
@ मीनाक्षी
शरीर तो अपनी हलचल भूल जाता है।
@ गिरधारी खंकरियाल
कई प्रतिभायें हैं जो संगीत साधना में निरत हैं।
@ G Vishwanath
इस पोस्ट का कुछ भाग सभागार से बाहर आते ही लिख लिया था। सेष स्मृति की ध्यानस्थ अवस्था में लिखा। आपकी बांसुरी की कुछ फाइलें हैं मेरे पास, सुनकर बहुत अच्छा लगा था। प्रवीण गोदखिण्डी का संगीत सुना है, बहुत प्रभावित किया है उसने भी। मुरलीधर की मुरली का आकर्षण अप्रतिम है।
आपको शीघ्र ही पूर्ण स्वास्थ्य लाभ हो।
@ Navin C. Chaturvedi
कृष्ण का आकर्षण गूँज रहा था सभागार में उस दिन।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
ReplyDeleteसीखने का मेरा प्रयास भी असफल ही रहा था।
@ Patali-The-Village
सच कहा आपने, ऐसा ही अनुभव होता है।
@ mahendra verma
आपको आहत किया है तो क्षमाप्रार्थी हूँ, भगवान करे कि वे सौ वर्षों से भी अधिक जियें पर वृद्ध सूर्य की लालिमा में भक्ति और प्रेम दोनों ही झलकता है।
@ संजय भास्कर
सच कहा आपने।
@ राज भाटिय़ा
अलौकिक अनुभव है वह।
@ देवेन्द्र
ReplyDeleteइस प्रस्तुति की स्मृति सदा ही मेरे पास रहेगी।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
देश की संस्कृति के संगीत पक्ष के सशक्त हस्ताक्षर हैं।
@ mahendra verma
संगीत का प्रभाव समझ में आने लगता है, मुरली की तानों में।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Gopal Mishra
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Abhishek Ojha
ReplyDeleteजब भी अवसर मिले तो अवश्य सुनियेगा।
@ Khushdeep Sehgal
यह जुगलबंदी अद्भुत लगी।
@ M VERMA
सच कहा आपने।
@ अमित श्रीवास्तव
हृदय की धड़कनों को अनुनादित कर जाती है मुरली।
@ pallavi trivedi
सच कहा, अलग ही अनुभव है यह।
@ ajit gupta
ReplyDeleteप्रकृति तत्वों का राग समाहित है मुरली में।
@ हरकीरत ' हीर'
संगीत मन को सुखद अनुभूति देता है, गाना भी बहुत सुहाता है।
@ अतुल प्रकाश त्रिवेदी
आभार आपका।
@ Dr (Miss) Sharad Singh
बहुत धन्यवाद आपका।
@ दिगम्बर नासवा
गोपियों का खिंचे चले जाना, मुरलीधारी की मुरली के आकर्षण के कारण ही होगा।
@ ज्योति सिंह
ReplyDeleteसच में सौभाग्य ही कहा जायेगा।
@ Mrs. Asha Joglekar
बहुत धन्यवाद आपका। जैसा अनुभव किया, वैसा ही व्यक्त कर दिया।
@ नीरज जाट जी
सच कहा आपने।
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
संगीत के इतना निकट रहना सच में परम भाग्य का विषय है।
@ G.N.SHAW
बहुत धन्यवाद आपका।
@ JHAROKHA
ReplyDeleteकान्हा की मुरली में सबको आकर्षित कर लेने का गुण था।
@ रंजना
बहुत धन्यवाद आपका।
@ honesty project democracy
शोर सुनने से कहीं अच्छा है कि मुरली की मधुर धुन में समय बिताया जाये।
@ अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Coral
आप वातावरण में खोने लगते हैं।
@ mahendra srivastava
ReplyDeleteबहुत सुखद अनुभव रहा है।
@ एम सिंह
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Poorviya
बहुत धन्यवाद आपका।
@ RAJEEV KUMAR KULSHRESTHA
डिवशेयर नामक सॉफ्टवेयर से आप लोड कर सकते हैं।
@ महफूज़ अली
आपकी उपस्थिति लगी है, अभी आप ट्रेन पकड़ लीजिये, बाद में बाते होंगी।
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ संतोष पाण्डेय
विद्या ददाति विनयम्।
@ संतोष त्रिवेदी
मुरली में हृदय को छू लेने वाले गुण हैं।
@ विष्णु बैरागी
सच कहा आपने कि वर्णन नहीं किया जा सकता है।
सुरेश दुबेजी की ईमेल से प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteबचपन की यादें आपने ताजा कर दिया। बात उन दिनों की है जब गाॅंव के कुछ बाॅंसुरी वादकों को सुनकर मेरा भी बाल मन डोल उठा। उस समय मैं छठवीं कक्षा का छात्र था। माॅं ने प्रयाग में माघ मेला देखने के लिए दो रूप्ये दिये कि जलेबी वगैरह खा लेना। परन्तु धुन तो बासुरी खरीदने की लगी थी। मेले में जाते ही एक बासुरी बजाता विक्रेता घूमता हुआ दिखायी दिया। लपक कर उसके पास पहॅुचा और उससे एक अच्छी सी बासुरी देने का अनुरोध किया। उसने कहा खुद ही बजाकर देख लो। मैंने कहा भइया हम अभी नौसिखिया हैं। वह समझ गया और एक मीडियम बासुरी दिया। उस समय उसकी कीमत 50 पैसे थी।
इसके बाद ही घर के बडों के साथ गंगा में डुबकी लगायी । मन तो लगा था कि गाॅंव के बाहर बावन बीघे के विशाल आम्रवन में बासुरी सीखने की । छोटा था, इसीलिए किसी ने लिफ्ट नहीं मारी। घर वाले उस समय बासुरी बजाना लोफरगीरी समझते थे। अतः गाय -भैंस चराने के बहाने बाग में जाकर घर वालों की निगाह बचाकर बासुरी का एकलव्य अभ्यास शुरू किया। माॅं शारदा की ऐसी कृपा हुई कि कुछ ही समय में गाॅंव के सर्वश्रेष्ठ बासुरी वादकों के बीच मैं चर्चा का विषय बन गया। फिर तो मैं अन्धों में काना राजा बन बैठा।
सावन के महीने में एक दिन मैं आम के पेंड़ पर बैठकर बासुरी बजा रहा था। कुछ ही समय बीते थे कि कई मयूर (मोर) आये और शान्त और निर्भय होकर कदाचित मेरी बासुरी की आवाज सुनते रहे। तभी एक अनुज साथी वहाॅं आकर जोर से चिल्लाया भईया ! देखो कितने मोर आ गये हैं। और पकड़ने को दौड़ा। अंततः सभी उड़ गये।
कुछ दिन बाद बाग के बीच बने सरोवर के किनारे बैठ कर जैसे ही बासुरी बजायी, अनेकों मोर बोलने लगे। तब लगा की बासुरी की आवाज मयूरों का अच्छी अथवा अजीब लगती होगी।
तब से लेकर 10वीं कक्षा तक बासुरी के सन्दर्भ मेरे साथ अनेक दिलचस्प घटनाएं घटती रहीं। एक दिन मैं नौकरी के समय छोटी सी कालोनी के मकान
में रात्रि लगभग 8 बजे बासुरी का अभ्यास कर रहा था। लगभग आधे घण्टे के बाद पड़ोस में आये मेहमान ने अचानक दरवाजा खटखटाया और कहाॅं भाई साब जरा बाहर आइये। मैं अपनी साधना में हुए विघ्न से बौखलाते हुए दरवाजा खोला और देखा कि कालोनी में पली अनेक गायें मेरे दरवाजे की सामने खड़ी हैं। सहसा विश्वास नही हुआ। परन्तु यथार्थ यही था।
कहने का तात्पर्य यह है कि हम जैसे नौसिखिये बासुरी वादक के साथ ऐसी घटनाएं हो सकती हैं। तो कान्हा की मुरली की धुन कैसी रही होगी , थोड़ा-थोड़ा अनुमान सहजता से लगाया जा सकता है। जहाॅं तक उनकी मुरली और आध्यात्मिकता का सम्बन्ध है वह तो छोटी मुॅंह और बड़ी बात होगी । और इसे समझना और अनुभूति करना पहॅुचे साधू-सन्तों के वश की बात है। परन्तु हम सहज बुद्धि के लोग भी बासुरी की स्वरलहरी सुनने के बाद इसके सम्मोहन से बच नही सकते। और यदि बासुरी सम्राट पण्डितजी बजा रहे हों तो क्या बात। खेद है कि उनको मैं लाइव नही सुन सका। और न ही कोई गुरू मुझे मिल पाये। बस यूॅं ही पिपिहिरी की तरह स्वान्तः सुखाय बंशी बजाता रहता हॅू और आत्मिक शान्ति एवं चैन की वंशी का सुखद अनुभव करता रहता हूॅं।
कभी मौका मिला तो आपको भी इसका अनुभव कराउॅंगा।
आपका
सुरेश दुबे, झाॅंसी।
very nice article you write this article in the meaningful way thanks for sharing this.
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