विवाह-पूर्व के प्रेमोद्गारों में एक अनकही सी कड़ी सेंसरशिप लगी रहती है। आप कितना भी उन्हें समझा लें कि यह रचना विशुद्ध कल्पनाशीलता का सुन्दरतम निष्कर्ष है पर आपका आश्वासन धरा का धरा रहता है और उस रचना के हर शब्दों में वह आकार ढूढ़ा जाता है जिसको हृदय में रखकर यह कविता लिखी गयी होगी।
इस संशयात्मक दृष्टिभरी प्रक्रिया में साहित्य की विशेष हानि होती है। जिन रचनाओं को उत्सुक प्रेमियों का हृदयगीत बन अनुनादित होना था, वे अपने अस्तित्व के घेरों और अंधेरों में विवादित हो पड़ी रहती हैं।
आज निर्भयात्मक उच्छ्वास ले उसे आपके सामने रख दे रहा हूँ। आपसे भी यही अनुरोध है कि प्रेम की सुन्दर अल्पना पर अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ा कर उसे कोई और रूप न दें, बस पूर्ण साहित्यिकता से बांचें।
मैने अपने जीवन के, सुन्दरतम स्वप्नों के रंग को,
तेरे कोरे कागज जैसे, आमन्त्रण में भरने को,
सरसायी उन आशाओं में, मैं उत्सुक था, उत्साहित था,
तू आयी भी, इठलायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी ।।१।।
क्यों मुक्त-पिपासा शब्दों का आकार नहीं ले पाती है,
ना जाने किस आशंका में, आकांक्षा कुढ़ती जाती है,
थी व्यक्त सदा मन-अभिलाषा, हर्षाये नेत्र-निवेदन से,
तू समझी भी, मुस्कायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी ।।२।।
है नहीं वाक् प्रतिभा मुझमें, ना ही शब्दों का चतुर चयन,
है नहीं सूझता, किस प्रकार से कह दूँ, हृद के स्पन्दन,
आँखों में था लिये हुये, आन्दोलित मन के आग्रह को,
आँखों से आँख मिलायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी ।।३।।
इस संशयात्मक दृष्टिभरी प्रक्रिया में साहित्य की विशेष हानि होती है।
ReplyDeleteहा हा!! कितना सही आंकलन है... :)
वैसे हम तो कल्पना के घोड़े नहीं दौड़ा रहे मगर जरा घर में संभलियेगा, मित्रवत सलाह से ज्यादा और क्या दूँ इस वक्त!! :)
रचना वाकई बहुत उम्दा है...गा भी देते जरा...आवाज के तो माशाल्लाह आप धनी हैं ही!!
कैशोर्य मनोभावों का कोमल चित्रण!
ReplyDeleteक्यों मुक्त-पिपासा शब्दों का आकार नहीं ले पाती है,ना जाने किस आशंका में, आकांक्षा कुढ़ती जाती है,थी व्यक्त सदा मन-अभिलाषा, हर्षाये नेत्र-निवेदन से,तू समझी भी, मुस्कायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी ।।
ReplyDeleteजीवन में बहुत सरे प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं .....
स्मृति के सरोवर में खिला सुंदर सरोज ......
काव्य प्रेमियों का मन आल्हादित करता हुआ ......!!
मनोभावों का सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteगौर-तलब है समीर जी की टिप्पणी... विशेषत: तीसरा वाक्य..
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteआशा
बहुत शानदार पंक्तियाँ लगीं। समीर जी की फ़रमाईश को हमारा भी समर्थन है, आप तो गाते भी अच्छा हैं, आपकी आवाज में सुनना और भी अच्छा लगता।
ReplyDeleteआपके अनुरोध का मान रखते हुये घोड़े अस्तबल में ही बांधे रखे हैं, वैसे ऐसी कल्पना निराकार भी हो सकती हैं? :))
प्रेम पाठ के प्रशिक्षुओं के काम आ सकती है.
ReplyDeleteशब्द आपके अभियक्ति बहुतो की .
ReplyDeleteइस संशयात्मक दृष्टिभरी प्रक्रिया में साहित्य की विशेष हानि होती है।...
ReplyDeleteसहमत हूँ ...रचनाक्रम को बाधित करने जैसी ही होती है यह प्रतिक्रिया ..
अल्पना पर कल्पना के घोड़े...बढ़िया है :)
गीत बेहद खूबसूरत है ...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती के साथ लिखा है.... सब खैरियत तो है? ;-)
ReplyDeletehmmmmmmmmmm
ReplyDeleteप्रवीण भाई आप भी मज़ाक अच्छा कर लेते हैं, शादीशुदा मर्दों की कहां होती है इतनी अच्छी किस्मत...
ReplyDeleteशादी से पहले...मैंने प्यार किया...
शादी के बाद...मैंने प्यार क्यों किया...
बाकी गुरुदेव समीर जी ने सब समझा ही दिया है....
जय हिंद...
मन के भावों को शब्दों में उतार दिया है आपने...एक शुभ चिन्तक तो यही कहेगा की मन के भावों को किसी भी परिस्थिति में असंतुलित ना होने दें हालाँकि ऐसा सलाह देना बहुत आसान है और करना बहुत मुश्किल ..इसलिए ये साहित्यिक सेफ्टी भाल्ब का प्रयोग जरूर करें...इससे साहित्य और इंसानी संवेदना का असली सयुक्त स्वर तो निकलता ही है साथ ही मन के भाव को असंतुलित होने से भी रोका जाता है....सच्चे मित्रों से थोडा फोन पर बात भी करें इससे भी मन हल्का होगा...ये जीवन है ..इस जीवन का यही है...यही है...यही है रंग रूप ....
ReplyDeleteक्यों मुक्त-पिपासा शब्दों का आकार नहीं ले पाती है,
ReplyDeleteना जाने किस आशंका में, आकांक्षा कुढ़ती जाती है,
थी व्यक्त सदा मन-अभिलाषा, हर्षाये नेत्र-निवेदन से,
तू समझी भी, मुस्कायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी
bahut khoob likha
Your poem is actually a very good literary piece. Very nice. Thanks for sharing.
ReplyDelete.
.
.
Shilpa
आपकी प्रेमाभिभूत इस अल्पना पर हम अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ा भी लेते पर वो तैयार ही नहीं हो रहे दौड़ने के लिए|
ReplyDeleteप्रवीण भाई, आपका गद्य तो पढ़ते ही रहते हैं यदा कदा| आपने पद्य भी सुंदर प्रस्तुत किया है|
बस सही है ना ये साहित्यिक टिप्पणी ?
हाहाहाहा !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बाकी तो समीर भाई ने आपको सलाह दे ही दी है भैया .....................
वाकई बड़ी बुरी स्थिति है मेरी कुछ बेहतरीन रचनाये अँधेरे में पड़ी हैं ....पता नहीं कोई क्या मतलब निकालेगा :-(
ReplyDeleteबढ़िया सुन्दर रचना के लिए आभार !
अब आपको देख हिम्मत करने की कोशिश करूंगा !शुभकामनायें ....
शीर्षक अब देखा ....गज़ब के साहसी हो !
ReplyDeleteआज घर में सावधान रहना :-)
यह तो बहुत अच्छा किया आपने प्रवीण जी ,कि साहित्य की हानि नहीं होने दी .पर अब तक चुप रह कर जितनी हानि कर चुके हैं उसे ब्याज सहित पूरी भी तो आपको करनी चाहिये -प्रतीक्षा रहेगी !
ReplyDeletesir!! main to apne blog ko shrimati se bacha kar rakhta hoon isliye...:)
ReplyDeleteaapki rachna ho aur wo umda kahlane layak na ho...ho nahi sakta..!
har baar ki tarah, ek shashakt rachna..
प्रेममयी कविता के लिए ऐसी भूमिका ....दोनों ही प्रभावित करते हैं.
ReplyDeleteउम्दा रचना ओर आपकी निर्भीकता के लिए बधाई.
ReplyDeleteहै नहीं वाक् प्रतिभा मुझमें, ना ही शब्दों का चतुर चयन,
ReplyDeleteहै नहीं सूझता, किस प्रकार से कह दूँ, हृद के स्पन्दन,
आँखों में था लिये हुये, आन्दोलित मन के आग्रह को,
आँखों से आँख मिलायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी
मनोभावों को सशक्त अभिव्यक्ति दी है। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
मनोभावों का सुन्दर चित्र॥
ReplyDeleteइसीलिये दूसरे की कल्पनाशक्ति का भी सम्मान किया जाता है !:)
ReplyDeleteहाय! क्या साहस है!
ReplyDelete[हमने तो कायरता में जीवन काट लिया! :) ]
आप की बात से सहमत हूं ....कुछ भी लिखिये वो व्यक्तिगत आक्षेप सा लोग करने लगते हैं ,जब कि वो दूसरे का भोगा और आपका समझा हुआ पल भी हो सकता है ...
ReplyDeleteबेहद स्नेहिल पंक्तियां लगी आपकी .....आभार !
अल्पना के लिए कपोल कल्पित भावनाओ के घोड़े सरपट दौड़े है . निर्भयता ने सृजन को नया आयाम दिया है .
ReplyDeleteएक अलग ही भाव-संस्र में ले जाती सुंदर कविता...
ReplyDeleteकविता पढकर चित्रण ना करे ये तो हो ही नहीं सकता | क्या बिना चित्रण के कोइ कविता की रचना हो सकती है ?
ReplyDeleteबिलकुल राष्ट्र कवि जैसी शैली. सुपरहिट लेखों की तरह आपकी कवितायें भी भावप्रवण, सुन्दर शब्द संयोजन . फिर से कविता लेखन पर विचार करें .
ReplyDeleteइस संशयात्मक दृष्टिभरी प्रक्रिया में साहित्य की विशेष हानि होती है।.
ReplyDeleteसही कहा है :)
वैसे सबकी सलाह में हमारी भी शामिल है ..गा भी दिया होता सुन्दर गीत.
sir यह आकार ,साकार से परे ...बिलकुल सही प्रस्तुति !
ReplyDeleteप्रवीण जी, कल्पना के घोड़ों पर किसका बस है.आपने तो मना किया,पर बाज नहीं आ रहें हैं
ReplyDeleteअब बता ही दीजिये न 'कौन थी वह,जिससे आपने
आँखों से आँख मिलायीं थी'.
वाकई, प्रेम की सुन्दर अल्पना...
ReplyDeleteSundar,mohak rachana!Kiske man ke bheetar kya chalta hai,kaun jaan pata hai?
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब कहा है आपने ..बेहतरीन ।
ReplyDelete......प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत है।
ReplyDeleteऔर प्रस्तावना के अनुसार ही बिना घोड़े दौडाए पूरी साहित्यिकता से बांचा गया है।
वैसे सचमुच, आप गा भी देते तो और अच्छा था। :)
शुभकामनाएँ
करिए अब इस रचना के साथ भी न्याय....
ReplyDeleteइशारा समझ रहे हैं न आप?.....
क्यों मुक्त-पिपासा शब्दों का आकार नहीं ले पाती है,
ReplyDeleteना जाने किस आशंका में, आकांक्षा कुढ़ती जाती है,
थी व्यक्त सदा मन-अभिलाषा, हर्षाये नेत्र-निवेदन से,
तू समझी भी, मुस्कायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी
--
मनोभावों का बहुत बढ़िया चित्रण किया है आपने!
है नहीं वाक् प्रतिभा मुझमें, ना ही शब्दों का चतुर चयन,
ReplyDeleteहै नहीं सूझता, किस प्रकार से कह दूँ, हृद के स्पन्दन,
आँखों में था लिये हुये, आन्दोलित मन के आग्रह को,
आँखों से आँख मिलायी भी, पर साथ छोड़ क्यों चली गयी
मनोभावों का कोमल चित्रण!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
हमे तो समझा लोगे पर घर में....:)
ReplyDeleteहै नहीं वाक् प्रतिभा मुझमें, ना ही शब्दों का चतुर चयन,
ReplyDeleteहै नहीं सूझता, किस प्रकार से कह दूँ, हृद के स्पन्दन।
‘उस समय‘ आपकी वाक् प्रतिभा भले ही मौन रही हो किंतु आज वह मुखर है, शब्दों का चतुर चयन भी कर रही है और हृद्-स्पंदन को अनावृत्त भी कर रही है।
उत्कृष्ट काव्य रचना के लिए बधाई।
प्रमाणपत्र -जिसके लिए भी आवश्यक हो !
ReplyDeleteमान गया और मानता हूँ कि यह कविता कवि की नितांत निस्पृह ,आइसोलेटेड(सम्बन्ध पृथक ) कल्पना प्रसून सृजन कर्म की फलश्रुति है -और यह विवाहपूर्व और उपरान्त की सापेक्षिकताओं से भी मुक्त है!
definitely 'she' will come back after feeling your feelings expressed thru "nice poem".
ReplyDeleteअरे बाबा आप तो खुद ही अपने पर शक करवा रहे हे इस अल्पना ओर कल्पना के उदारण दे कर:) समीर जी की बात पर ध्यान दे,
ReplyDeleteनिदा फाजली का एक शेर या आ गया
ReplyDeleteदुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाय तो मिटटी है खो जाए तो सोना है.
बिलकुल दुरुस्त फार्मा रहे हैं जनाब ! वही समय होता है जब कल्पनाशीलता चरम पर होती है,जब हकीकत आ जाती है,तब वह कल्पना चर लेती है !
ReplyDeleteकिशोरावस्था का क्या कहना....सारी शक्तियां अपने उफान पर होती हैं,कविता को यही ताकत अद्भुत साहित्य रचने की प्रेरणा देती है !
छा गए गुरू-आपके पोस्ट पर बराबर ही आता रहा हूं लेकिन इस बार आपके स्वप्निल हृदय का उच्छवास मन को आंदोलित कर गया। इस संबंध में, मैं अपनी कविता "हो जाते हैं क्यूं आद्र् नयन" का एक अंश प्रस्तुत कर रहा हूं,शायद यह भी आपके हृदय में आपके उदगार के साथ थोड़ी सी जगह पा जाए।
ReplyDelete"वे दिन भी बड़े ही स्नेहिल थे,
जब प्रेम सरोवर स्वत:उफनाता था।
उसके चिर फेनिल उच्छवासों से,
स्वप्निल मन भी जरा सकुचाता था।"
धन्यवाद।
ये तो कोटि-कोटि ह्दयों के उद्गार हैं। इस पर कॉपी-राइट लागू मत कर दीजिएगा।
ReplyDeleteआपकी इन पंक्तियों ने क्या किया यह, श्रीसूर्यभानु गुप्त के एक शेर से अनुमान लगाइएगा -
यादों की इक किताब में कुछ खत दबे मिले।
सूखे हुए दरख्त का चेहरा हरा हुआ।
क्या कहूं घोड़े तो बंधे हुए हैं :)
ReplyDeleteहै नहीं वाक् प्रतिभा मुझमें, ना ही शब्दों का चतुर चयन,
ReplyDeleteहै नहीं सूझता, किस प्रकार से कह दूँ, हृद के स्पन्दन
बहुत उम्दा रचना ...कोमल भावों को संजोये हुए
क्या बात कही है...:) :)
ReplyDeleteअब कविता के लिए -- बस दो स्माईली --> :-) :-)
बहुत सुंदर ढंग से आपने बताया
ReplyDeleteक्यों मुक्त-पिपासा शब्दों का आकार नहीं ले पाती है
ReplyDeleteना जाने किस आशंका में,आकांक्षा कुढ़ती जाती है,
थी व्यक्त सदा मन-अभिलाषा,हर्षाये नेत्र-निवेदन से
तू समझी भी,मुस्कायी भी,पर साथ छोड़ क्यों चली गयी
बहुत सुंदर भाव और शब्द संयोजन भी...
हकीकत तो हकीकत रहेगी और वह बयां करनी ही चाहिए, यह एक लेखक का कर्त्तव्य भी है पर जीने के लिए कुछ तो राहत मिलती है कल्पनालोक के जीवन में...इसलिए जो उसमें जीना चाहें तो उन्हें थोड़ी-बहुत छूट मिलनी चाहिए प्रवीण जी...ताकि ऊर्जा मिल सके...वैसे मैं वास्तविकता को उजागर करने की पक्षधर हूं...बशर्ते किसी को बहुत तकलीफ न दे...क्यों सत्य भी बहुत दुखदाई होता है...
सुन्दर गीत...पर ये संशय क्यूँ....हम्म... कुछ दाल में काला है तभी संदेह का डर होता है. :)
ReplyDeleteJust joking......अगर ऐसी हिचकिचाहट बनी रही तब तो हो गया सृजन
इस उम्र में ऐसी कल्पनाएं जन्म लेती ही हैं, चिन्ता ना करे। आज इन बातों में डर नहीं रह गया है। बिंदास लिखें, और भी रचना हो तो पोस्ट कर दें।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत |
ReplyDeleteपहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा | बहुत सुन्दर तरीके से अपने अपने मनोभाव को शब्दों में उतरा है....
ReplyDeleteफोन करके हालचाल लेने की जरूरत तो नहीं होगी।
ReplyDelete---------
भगवान के अवतारों से बचिए...
जीवन के निचोड़ से बनते हैं फ़लसफे़।
behtreen giti rachna.....maine ab tak ke blog-pathan me is chhand ka aisa shreshth kavyankan nahi dekha..... shatsh: badhai swikaren... wahwa...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव ... आभार
ReplyDeleteजिन रचनाओं को उत्सुक प्रेमियों का हृदयगीत बन अनुनादित होना था, वे अपने अस्तित्व के घेरों और अंधेरों में विवादित हो पड़ी रहती हैं।
ReplyDeleteबिलकुल... दुखद है पर होता यही है.....
acchhe udgaar hain...diary ke chand panno jaise...
ReplyDeleteLove is beyond words !
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeletebeautiful poem
ReplyDeleteपर साथ छोड़ क्यों चली गयी...........मन के भावों को बड़ी खूबसूरती के साथ आपने शब्दों में समेटा है . सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeletesundar abhivyakti...
ReplyDeleteaapne n jane kitanon ke man ki baat kah di hai apne shabdon mein.....!!
sundar abhivyakti...
ReplyDeleteaapne n jane kitanon ke man ki baat kah di hai apne shabdon mein.....!!
bahoot khoob
ReplyDeletepranam
जीवन में बहुत सरे प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं .....
ReplyDeleteस्मृति के सरोवर में खिला सुंदर सरोज ......
काव्य प्रेमियों का मन आल्हादित करता हुआ ......!!
iska ek audio bhi post kijiye janaaab
ReplyDeleteमनोभावों का सुन्दर चित्रण| धन्यवाद|
ReplyDeleteBahut hi lajawaab rachna hai ... maise pahle bhi aapko kaha tha ... aap is vidha ke bahut kamaal ka likh jaaate ahin ... jaldi jaldi kavita likha karen ...
ReplyDelete@ Udan Tashtari
ReplyDeleteगाने का अर्थ होगा, उस शपथपत्र पर हस्ताक्षर करना जिस पर लिखा होगा कि आ बैल मुझे मार।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
बहुधा मन में यही विचार आता है, जब कोई छोड़कर जाता है।
@ anupama's sukrity !
प्रश्न तो सदा ही वही रहता है, उत्तर और संकेतों में तारतम्य नहीं बैठता बस।
@ Ratan Singh Shekhawat
बहुत धन्यवाद आपका।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
हर हरकत में संशकित हैं अब तो।
@ आशा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ संजय @ मो सम कौन ?
प्रयास तो किया पर गाने के पहले ही गला रूँध जाता है।
@ Rahul Singh
नव-त्यक्तों का संगीत-उत्सव।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
हर मन कभी न कभी तो यह गाता है।
@ वाणी गीत
यह रचना अपना निर्वाण ढूढ़ रही थी अतः निर्भय होकर लिख दिया।
@ Shah Nawaz
ReplyDeleteलिखने के पहले तक तो थी खैरियत, कल किसने देखा है।
@ Apanatva
सब ठीक है अब तक।
@ खुशदीप सहगल
प्रेम यदि विवाह में न परणित हो तो, उसकी यादें मोहक बनी रहती हैं।
@ honesty project democracy
साहित्य सेफ्टी वाल्व सदा ही रहा है, मन से वहीं पर जाकर बतियाते हैं।
@ रश्मि प्रभा...
मन जब नहीं समझता है तो यही बह निकलता है।
@ shilpa
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Navin C. Chaturvedi
कल्पना में उतरने से कभी कभी साहित्य के भटकने की सम्भावना बनी रहती है।
@ सतीश सक्सेना
अँधेरे में पड़ी रचना को बाहर निकालने का साहस तो कर बैठे हैं, पता नहीं कब पहला मानसिक प्रहार होगा हमारे ऊपर।
@ प्रतिभा सक्सेना
ब्याज गिनने बैठेंगे और पुरानी बातों पर लिखेंगे तो नव महाभारत छिड़ जायेगा।
@ Mukesh Kumar Sinha
श्रीमतीजी ने कविता पढ़ तो ली है, प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है।
@ मीनाक्षी
ReplyDeleteइस कविता के लिये समुचित प्रस्तावना बनाना आवश्यक था।
@ रचना दीक्षित
शुभकामनाओं की अधिक आवश्यकता है।
@ निर्मला कपिला
कभी कभी वेदना की धूप के बाद साहित्य बरसता है।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद आपका।
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
बहुत धन्यवाद कल्पना को बचा कर रखने का।
@ ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
ReplyDeleteइस बार बच कर निकले तो आगे भी प्रयास करते रहेंगे।
@ nivedita
जाके पैर न पड़ी बिवाई, सो का जाने पीर पराई। समझिये कि मन व्यक्त हो गया।
@ ashish
निर्भयता ने इतिहास तो लिख दिया, भूगोल का क्या होगा, कुछ नहीं ज्ञात।
@ Dr (Miss) Sharad Singh
बहुत धन्यवाद आपका।
@ नरेश सिह राठौड़
आप तो मेरी श्रीमतीजी के लिये तर्क एकत्र कर रहे हैं।
@ मेरे भाव
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका, कविता लेखन निश्चय ही प्राथमिकताओं में आ गया है, आपके उत्साहवर्धन के बाद।
@ shikha varshney
हर दिल जो प्यार करेगा, वो गाना गायेगा। इस गीत में प्यार ही नहीं हो पाया।
@ G.N.SHAW
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Rakesh Kumar
इश्क छिपाये नहीं छिपता है।
@ सुशील बाकलीवाल
बहुत धन्यवाद आपका।
@ kshama
ReplyDeleteसच है, यदि आँखों का कहा सच हो जाता तो कविता क्यों लिखनी पड़ती।
@ सदा
बहुत धन्यवाद आपका।
@ संजय भास्कर
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Avinash Chandra
गाने का प्रयास करता हूँ तो यादों में उतरा जाता हूँ।
@ Archana
आप धुन सुझा दीजिये तो गा भी देंगे।
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Vivek Jain
बहुत धन्यवाद आपका।
@ cmpershad
घर में डर,
डर बाहर।
@ mahendra verma
अब प्रेम के पड़ाव से बहुत आगे भी तो आ गये हैं।
@ Arvind Mishra
आपका प्रणामपत्र कुछ और कह रहा है, कुछ और इंगित कर रहा है।
@ अमित श्रीवास्तव
ReplyDeleteएक संभालना कठिन है, कैसे भविष्य कटेगा तब।
@ राज भाटिय़ा
गाने का साहस हो ही नहीं रहा है।
@ संतोष पाण्डेय
सोने के कारण खोया हुआ सोना है।
@ संतोष त्रिवेदी
सारी शक्तियाँ उफान पर होती हैं, सबकी ही। धुंध तो अब जाकर हटी है।
@ प्रेम सरोवर
आपकी कविता में मैं अपने स्वरों के अंश पा गया, बहुत आभार आपका।
@ विष्णु बैरागी
ReplyDeleteकोई कॉपीराइट नहीं है, कितनी भी अच्छी हो जाये दुनिया, ये कविता नित बनती रहेगी।
@ Abhishek Ojha
वही घोड़े अब घर आ गये हैं, हमें दौड़ाये हुये हैं।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
सबसे कठिन कार्य होता है, उस समय अपने भाव कह देना।
@ abhi
महाराज, अभी चक्कर में पड़े नहीं हैं आप, जब पड़ेंगे तो इस कविता में 4 छंद और जोड़ देंगे।
@ babanpandey
बहुत धन्यवाद आपका।
@ वीना
ReplyDeleteमन के भाव बहुधा यही रहते हैं, शब्द दे देने से बस उनकी पीड़ा कम हो जाती है।
@ rashmi ravija
अब तो निर्भय हो कह दिया, संशय में साहित्य का विनाश न होने देंगे।
@ ajit gupta
अब धीरे धीरे साहस बढ़ाते हैं।
@ शोभना चौरे
बहुत धन्यवाद आपका।
@ S.N.Tiwari
बहुत धन्यवाद आपका, उत्साहवर्धन के लिये।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
ReplyDeleteअगर कुटे तो पोस्ट लिख देंगे।
@ योगेन्द्र मौदगिल
आपका आशीर्वाद मिल गया, साहस दिखाना सफल हो गया।
@ महेन्द्र मिश्र
बहुत धन्यवाद आपका।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
अब तो बाँध को खोल दिया है, बाढ़ तो आना ही है।
@ विजय रंजन
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ZEAL
ReplyDeleteभावों की गूँज शब्दों से कहीं अधिक होती है।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
बहुत धन्यवाद आपका।
@ sm
बहुत धन्यवाद आपका।
@ उपेन्द्र ' उपेन '
बहुत धन्यवाद आपका उत्साह बढ़ाने के लिये।।
@ ***Punam***
मन की हार इतना डुबाने वाली भी नहीं है कि उसे साहित्य में व्यक्त भी न किया जा सके।
@ सञ्जय झा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ honey sharma
अनुत्तरित प्रश्न रह रह याद आते हैं। कविता के रूप में संग्रहित भी हो जाते हैं। गीत गाने का प्रयास करूँगा।
@ Patali-The-Village
बहुत धन्यवाद आपका।
@ दिगम्बर नासवा
आपकी सलाह सर माथे, कविता पर समुचित ध्यान दिया जायेगा अब।
भावों ki सुंदर प्रस्तुति............
ReplyDelete@ रजनी मल्होत्रा नैय्यर
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।