वीडियो गेम के चहेतों के बारे में आपकी क्या अवधारणा है? एक बच्चा जिसको स्क्रीन पर लगातार आँख गड़ाये रहने से चश्मा लग गया है, या एक बच्चा जिसके अँगूठे कीपैड पर चलते रहने से उसकी बाहों से अधिक शक्तिशाली हो गये हैं, या एक बच्चा जिसकी मानसिक शक्तियाँ अनवरत निर्णय लेते रहने से उसकी शारीरिक क्षमताओं पर भारी पड़ने लगी हैं। मेरा बचपन वीडियो गेम के स्थान पर फुटबाल और तैराकी जैसे स्थूल खेलों में बीता है अतः वीडियो गेम के प्रभावों का व्यक्तिगत अनुभव मुझे कभी नहीं मिला। बचपन के अभावों को युवावस्था में पूरा करने का प्रयास किया तो सपनों में वही वीडियो गेम आने लगे। शीघ्र ही हमें पुनः स्थूल खेलों का आश्रय लेना पड़ा। अब बस कभी कभी केविट्रिक्स नामक वीडियो गेम खेल लेते हैं।
अपने बच्चों को वीडियो गेम में उलझा देखता हूँ तो मेरे मन की उलझन भी बढ़ने लगती है। कभी कम्प्यूटर के सामने, कभी टीवी के सामने, कभी आईपॉड के सामने और कुछ न मिले तो मोबाइल के सामने ही लगे रहते हैं दोनो। बालक टैंक और युद्ध वाले खेलों में जूझता है, बिटिया बार्बी के खेलों में उत्साहित रहती है। अभी तक विद्यालय खुले रहने से उन्हें मिलने वाला समय सीमित रहता था, पर अब परीक्षा समाप्त होने की प्रसन्नता और गीष्मावकाश होने के कारण समय की उपलब्धता, इसी उत्साह में दिन का सारा समय वीडियो गेम में डूबता हुआ दिखता है। कुछ समझ में नहीं आ रहा है, समझाने में तर्क ढीले पड़ रहे हैं और अधिक डाटने से अवकाश का आनन्द कम हो जाने की संभावना भी है।
भगवान ने सुन ली और समाधान भेज दिया। समस्या गहरी थी अतः मँहगा मार्ग भी बड़ा सुविधाजनक लगा।
काइनेक्ट एक ऐसा वीडियो गेम है जिसमें आप ही उस खेल के एक खिलाड़ी बन जाते हैं। एक सेंसर कैमरा आपकी गतिविधियों का त्रिविमीय चित्र सामने स्थिति स्क्रीन पर संप्रेषित कर देता है और आप उस वीडियो गेम के परिवेश का अंग बन जाते हैं। आप स्क्रीन से लगभग 8 फीट की दूरी पर रहते हैं और खेल में भाग लेने के लिये आपको उतना ही श्रम करना पड़ता है जितना कि वास्तविक खेल में। गति और दिशा, दोनों ही क्षेत्रों में पूर्ण तदात्म्य होने को कारण कुछ ही मिनटों में आपको लगने लगता है कि स्क्रीन में उपस्थित खिलाड़ी आप ही हैं। यह अनुभव ही खेल का उन्माद चरम पर पहुँचा देता है।
एथलेटिक्स, फुटबाल, बॉलीबाल, टेबल टेनिस, बॉक्सिंग, बाउलिंग, कार रेस, बोट रेस और ऐसे ही बहुत सारे खेल खेलने के बाद बस इतना ही कहा जा सकता है कि शरीर का श्रम वास्तविक खेलों जैसा ही होता है। रोचकता का स्तर बने रहने के साथ ही शरीर का समुचित व्यायाम ही इस खेलतंत्र की विशेषता है। बच्चों को खेलता देख हम भी अपना लोभ संवरण नहीं कर पाये और स्वयं को खिलाड़ी घोषित कर पहुँच गये। सामने सुपुत्र थे और उनका उत्साह बढ़ाती हमारी श्रीमतीजी, बिटिया परिवार में संतुलन लाने का प्रयास करती हमारी ओर थी। हम पूरी गम्भीरता से खेले और हार भी गये। हमारी बिटिया हमें सांत्वना देने के स्थान पर बहुत देर तक खेल की तकनीक समझाती रही। उत्साह में किये श्रम का पता तब चला जब सोने के एक घंटे पहले ही नींद आने लगी।
बच्चों की ऊर्जा ग्रीष्मावकाश में बहुत बढ़ जाती है। कॉलोनी के सभी बच्चों को व्यस्त रखने के लिये स्केटिंग, टेबल टेनिस, कैसियो और फ्रेन्च का विकल्प दिया गया है, पर आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि लगभग सभी बच्चे किसी एक में नहीं अपितु चारों अभिरुचियों में भाग ले रहे हैं। बताइये, हम तो काइनेक्ट में ही थक जाते हैं, बच्चे हैं कि थकते ही नहीं हैं।
आनन्दम्!
ReplyDeleteबिल्कुल नई और रोचक जानकारी । आभार...
ReplyDeleteबच्चों की उर्जा से कहाँ तक बराबरी करियेगा...जितना हो जा रहा है उतना ही काफी समझिये... :)
ReplyDeleteये पोस्ट पढ़ कर Dennis the Menace के एक कार्टून की याद आ गई जिसमें डैनिस की मां, डैनिस के पिता को कहती है कि -"यदि बेइज़्जत होने की इतनी ही इच्छा हो तो डैनिस के साथ वीडियो गेम खेल लो.."
ReplyDeleteकाइनेक्ट के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा.इसके विशेष कमरे आदि के लिए अलग खर्चा करना पड़ता होगा.
ReplyDeleteकाइनेक्ट के बारे में जानकारी देता हुआ रुचिकर लेख |
ReplyDeleteएक बहुत ही सुंदर और ज्ञानवर्धक आलेख के लिए बधाई। इस तरह के गेम के बारे में जानकारी नहीं थी। पता नहीं बच्चों की नज़र इस पर गई है या नहीं, या उनका डिमांड बस आने ही वाला है!
ReplyDeleteकाइनेक्ट के बारे में जानना अच्छा लगा और काफी रोचक भी ...आपका आभार
ReplyDeleteएक पंथ दो काज या कहिये बेस्ट आफ द बोथ वर्ल्ड्स ....मनोरंजन भी व्यायाम भी ....लेकिन कहीं यहाँ भी ला आफ डिमिनिशिंग रिटर्न न काम करने लगे ...?
ReplyDeleteबाकी तो कौस्तुभ ने रनिंग कमेंट्री सुना दी थी मुझे ..
हाँ इस वाक्य पर नारीवादी आप पर पिल पड़ सकते हैं -आगाह किये दे रहा हूँ -
"बालक टैंक और युद्ध वाले खेलों में जूझता है, बिटिया बार्बी के खेलों में उत्साहित रहती है।"
यह बिटिया का सहज चयन है या फिर परिवेश प्रभाव :) ?
समाधान तो अच्छा निकला..
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी | साथ में खर्च और कहाँ उपलब्ध है भी लिख देते तो मजा आ जाता |
ReplyDeleteपहली बार ही जाना इस गेम के बारे में ...
ReplyDeleteरोचक !
आदरणीय प्रवीण पाण्डेय जी
ReplyDeleteनमस्कार !
......बढ़िया जानकारी |
एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
क्या काइनेक्ट से ब्लॉगर-ब्लॉगर का खेल भी कनेक्ट किया जा सकता है...दे घूंसा, दे लात....
ReplyDeleteजय हिंद...
आपकी इस पोस्ट ने मेरा बड़ा नुकसान किया है :-(
ReplyDeleteखुशदीप सहगल जी वाला सॉफ्टवेर काइनेक्त पर कैसे लोड किया जाएगा ??
ReplyDeleteमाइक्रोसोफ्ट की रिकार्ड सेल होगी इंडिया में :-)
काश आज भी सभी बच्चों के पास एक गाँव हो जहाँ उनके दादा-दादी या नाना-नानी रहते हों। गर्मियों की छुट्टियों में अमराई के नीचे धमा-चौकड़ी करते हुए दिन बीत जाए और जब रात आए तो चाँद और तारों का रहस्य से मन की परते खोल ले।
ReplyDeleteभाई,ऐसी ही कुछ समस्या से मैं भी जूझ रहा हूँ.बेटा अंडॉइड फोन में मौजूद ढेर सारे 'खेल' खेलता और मिटाता रहता है,अपुन की समझ में शायद ही कोई 'गेम'आता हो पर वह तुरत शुरू हो जाता है....
ReplyDeleteआप का विकल्प अच्छा है,पर कितना महँगा और जगह घेरनेवाला है,यह भी बता दो !
फ़िलहाल 'किनेक्ट' से कनेक्ट होने की बधाई.इस पोस्ट के बाद उनका कुछ माल ज़रूर बिक जायेगा !
स्फूर्त बच्चे!!!
ReplyDeleteअच्छा रास्ता मिल गया है , बच्चे भी खुश विडियो गेम मिलने से और आप भी खुश उनके दौड़ने भागने से|
ReplyDelete.
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शिल्पा
अरे वाह अच्छी जानकारी दी काइनेक्ट के बारे में... चलिए और पता निकालते हैं इसके बारे में.... आपने उत्सुकता जो पैदा कर दी है... :-)
ReplyDeleteअभी तक तो यह न देखा था न सुना.
ReplyDeleteबिल्कुल नई और रोचक जानकारी । आभार.
ReplyDeleteमै रतन सिंह जी की बात से सहमत हूँ | वैसे अनुमानतः एक बात समझ में आती है की मेरे बजट से बाहर है |
ReplyDeletewaah... ye to badhiyaa hal hai kuch had tak
ReplyDeletepraveen ji
ReplyDeleteaapki uprokt baaten bilkul sach hain .vaise bhi yah ghar-ghar ki kahani bah chuki hai.
ab to lagta hai ki aisa na ho ki aane wale samay me bachcha seedhe computer v mobail se hi baat se hi gu -gan karna seekhe seekhne ki jarurat hi na rahe
kainaitet vidio game ke baare me jo aapne jaankaari di vah bahut hi sateek lagi.
is jaankaari purn post ke liye aapko bahut bahut bdhai v dhanyvaad
poonam
ये बढ़िया है , मस्तिस्क और शरीर दोनों का व्यायाम . धन्यवाद इस जानकारी के लिए .
ReplyDeleteयह तो बढ़िया है...इस खेल में बच्चा बन जाना निश्चित है.. :)
ReplyDeleteबच्चों को अगर थकान आ जाए तो फिर बच्चे कहाँ...रह गए...
ReplyDeleteचार एक्टिविटीज़ और जोड़ दें...उसमे भी उसी उत्साह से भाग लेंगे.
बहुत बढिया। अपने भीतर का भी बचपन जाग उठा है जी।
ReplyDelete---------
भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?
बहुत बढिया। अपने भीतर का भी बचपन जाग उठा है जी।
ReplyDelete---------
भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?
अब पढूं क्या?आपसे तो सुन ही लिया पूरा हाल विडियो गेम का..
ReplyDeleteखैर, आ गया था ब्लॉग पे तो पढ़ भी लिया ही :) :)
इसे लगवाने की पूरी जानकारी चाहिये भाई, यहां भी छुट्टियां हो गई हैं :)
ReplyDeleteसर आज के भाग दौड़ की नयी टेक में बच्चे कैसे पीछे रहते
ReplyDeleteबदलते समय और बदलते परिवेश में खेल का नया रूप है यह.. लेकिन बच्चो के साथ उठापटक और घोडा घोडा खेल का आनंद कुछ और ही है..
ReplyDeleteप्रवीणजी..
ReplyDeleteआपको धन्यवाद...
आपके लेख का विषय जीवन की रोज़मर्रा की ज़रूरतों और समस्याओं पर आधारित रहताहै
इस तरह के problems अब हर घर में देखने को मिल जाते हैं...!!
सार्थक लेख के लिए धन्यवाद...... !!
मेरी रचना पर अपने विचार देने के लिए शुक्रिया..
हम शायद ही कभी इंसानी तौर पर सोचते हैं कभी
...
बस अपने emotions को लेकर एकतरफा ही सोच बना लेते हैं..उसी हिसाब से बात करते हैं और उसी के हिसाब से
अपनी क्रिया-प्रतिक्रया भी प्रेषित करते हैं..!
हमारे हिसाब से जो हमें सही लगता है
बस वही हमारा वक्तव्य बन जाता है...!
अक्सर आप देखेंगें की लोग उसी topic पर बात करेंगे जो उनकी पसंदगी या नापसंदगी पर आधारित होगा
और अपनी उस बात को सही साबित करने के लिए वो तरह-तरह के logics देंगे
जबकि हर बात का दूसरा भी पहलू होता है जिसे वो पूरी तरह नाज़न्दाज़ कर जायेंगे..
क्योंकि वह उनके वक्तव्य के हिसाब से सही नहीं बैठेगा... जिन्दगी बड़ी मजेदार है..
यहाँ पूरी तरह न कुछ सही है न गलत...!!
शायद मैं कुछ ज्यादा लिख गयी hoon...!
लेकिन पढ़े-लिखे लोगों की ये मानसिकता मेरे बस के बाहर है...
पढ़ने के बाद इसे हटा दें क्योंकि ये मेरे विचार हैं ,किसी की बात पर प्रतिक्रया नहीं....
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ReplyDeleteबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति से सजा आलेख!
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी... इसके बारे में मुझे पता नहीं था...
ReplyDeleteखेलना-दौड़ने तक ठीक है... पर वो बाहर का मौसम, बारिश में फ़ुटबाल-कब्बडी-क्रिकेट... उनका क्या???
बिल्कुल नई और रोचक जानकारी । आभार|
ReplyDeletea kinetic post.....
ReplyDeleteएकदम सही तरीका है ये.हमें भी बहुत पसंद है.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी ...एक दिन खेला था टेबल टेनिस ... ५ पॉइंट बना कर आउट हो गए ...बताइए भला अपने ज़माने के टेबल टेनिस के खिलाड़ी ...यू० पी० के चैम्पियन ..सात साल के बच्चे से हार गए इस वीडियो गेम में :):)
ReplyDeleteबच्चों को व्यस्त रखने का अच्छा साधन है ..पर सबके लिए उपलब्ध नहीं हो सकता ...कुछ बच्चे तो हाथ में ही लेकर वीडियो गेम खेल पायेंगे ... और अधिकांश को तो वो भी नहीं मिल पाएगा ..
हाँ यह तो मैंने भी एक बुक स्टोर में देखा था कुछ दिनों पहले.. एक तरह से सही भी है.. खेल का खेल.. वीडियो गेम भी!
ReplyDeleteजी यह गेमे अब हर कंसोलो पर मिलती हे, ओर जब हम इसे खेलते हे तो पसीने भी बहुत आ जाते हे, ओर इसे खेल भी सभी सकते हे बडे बुढे.. ओर ज्यादा मंहगे भी नही यह सब, इसी बहाने बच्चो की कसरत भी अच्छी हो जाती हे, धन्यवाद इस सुंदर जानकारी के लिये
ReplyDeleteएक संवेदनशील आधुनिक पिता के चिंताओं को दूर करने वाला कह सकते हैं काईनेक्ट को...लेकिन पाण्डेय साहब खुले मैदानों में बच्चों के या अपने सहपाठियों के बीच कोई खेल खेलना इंसान के हर तरह के सार्थक प्रतिभा व सामाजिक व्यवहार के कमियों को दूर करने में तथा संवेदनशीलता को बढ़ाने में बरा सहायक होता है ...वास्तव में आज अपने बचपन के घंटों क्रिकेट,बेडमेंटन या कबड्डी के खेल को याद कर रोमांचित हो यह सोचने पर विवश होता हूँ की हम आज विकाश नहीं बल्कि नकली विकाश की ओर बढ़ें हैं..जो आने वाले समय में हम सबके के लिए तकलीफ देह होने वाला है....हम या हमारे बच्चे चाहकर भी ऐसे सामाजिक परिवेश की ओर बढ़ रहें हैं जहाँ लोगों का लोगों से मिलने की लालसा कम होती जा रही है जिसकी वजह से सामाजिक व्यवहार व सामाजिक परिवेश बुरी तरह प्रभावित हो रहा है..
ReplyDeleteवाह मजे हैं।
ReplyDeleteलेकिन वास्तविक रूप में खेले जाने वाले खेलों की जगह ये वीडियो गेम ले पायेंगे क्या?
काइनेक्ट के बारे में सुना था पर आपने विस्तार से समझाया ........ वैसे भी बच्चों की उर्जा की बराबरी करना टेक्नीकल चीज़ों की ही बस की बात रह गयी है.... :)
ReplyDeleteसमय के साथ समाधान भी निकल ही आते हैं
ReplyDelete-खोजनेवाला चाहिए !
सबसे आनन्ददायक है एक निर्विघ्न नींद निकाल लेना! :)
ReplyDeleteअच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
ReplyDeleteयहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
काइनेक्ट के बारे में जानकारी अच्छी लगी!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
हर बार आपकी पोस्ट एक नए तिलस्म के द्वार खोलती है। बच्चों इसके बारे में पूछना पड़ेगा।
ReplyDeleteप्रवीण जी ,
ReplyDeleteकाइनेक्ट के बारे मे जानकारी अच्छी लगी । बच्चे तो अब आइ.आइ.टी. में पहुंच गये हैं ,तो अपने लिये ही सीखते हैं :)
वैसे जब मां के साथ पिता भी बच्चों की रुचि में इतनी अभिरुचि लेते हैं तो बच्चे बहुत उन्नति करेंगे !
बच्चों को अशेष शुभकामनायें ....
अच्छी जानकारी... पर इसके भी साइद एफ़ेक्ट होंगे ना :)
ReplyDeleteकाइनेक्ट से बढ़िया कंनेक्ट किया. आभार.
ReplyDeleteमुझे भी वीडियो गेम खेलना बहुत पसंद है...
ReplyDeleteकाइनेक्ट के बारे में जानकर अच्छा लगा.
बहुत ज्ञान वर्धक और शिक्षा प्रद लेख प्रवीण भाई...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति प्रवीण जी। मुझे विशेष प्रसन्नता यह है कि आपके परिवार में इस नये प्रसन्नता-सर्जक-उपकरण की संस्थापना में अल्प योगदान ( बिजली का स्विच) मेरा भी हो पाया। हाहाहाहाहा । बहुत सुन्दर, अच्छा है बच्चे लोग गृष्मावकाश आनंद से मनाएँगे, उनको मेरी ओर से बधाई । मैने अपने ब्लॉग पर एक नयी रचना http://ddmishra.blogspot.com/2011/04/blog-post_17.html पोष्ट की है। अवश्य पधारियेगा।
ReplyDeleteवाह !..मस्त जानकारी प्रवीण जी ।
ReplyDeleteजो आपने शुरू में कहा बिलकुल सच है सभी बच्चों का सच में एक जैसा हाल है हर वक़्त विडियो , टी. वी गेम्स न ही कुछ पढने का शौक न ही बहार जाके कुछ खेलना | पेपर खत्म होने के बाद तो और भी बुरा हाल अब आपने इतनी खुबसूरत जानकारी दी तो थोड़ी राहत की सांस हम भी ले लेते हैं |
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत जानकारी शुक्रिया दोस्त |
वाह ... यह एक नई खबर ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअब तक घर के बहार उधम मची रहती थी अब सब टोली लेके चिन्मयी घर के अंदर आएगी ... ना रे बाबा :)
ReplyDeleteरोचक जानकारी !
बस इतनी सी .....
ज्ञानवर्धक जानकारी उत्सुकता पैदा हो गयी 'काईनैक्ट' के बारे में !
ReplyDeleteधन्यवाद प्रवीण जी ...पहली बार आपकी कुछ पोस्ट पढ़ा हूँ ....सुखद है आप जैसे लोंगों के संपर्क में रहना !!
रोचक जानकारी । आभार...
ReplyDeleteअभी मैंने खेला तो क्या देखा भी नहीं है. किन्तु बच्चों के पास है व वे इसका लगभग रोज उपयोग करते हैं. अगले महीने उनके घर जाने पर देखूंगी व खेलूंगी भी.
ReplyDeleteलगता है कि माता पिता कि प्राथना सुन ली गई है.
घुघूती बासूती
सरजी, आज पल्ला झाड़कर जा रहे हैं। आप तो खर्चा करवाने पर आमादा हैं:)
ReplyDeleteकीमत. वैसे हम तो कभी विडियो गेम खेल ही ना पाए. ये थोडा अलग है पर लगता नहीं है मैं खेलूँगा :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट
ReplyDeleteकाइनेक्ट के बारे में जानना अच्छा लगा और भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.
नकली घी-दूध से लेकर नकली हीरे-मोती तो प्रचलन में है लेकिन अब नकली खेल भी...हे भगवान।
ReplyDeleteVery interesting writeup. Thanks
ReplyDeleteVery interesting writeup. Thanks
ReplyDelete@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
ReplyDeleteसच में, एक नये तरह का आनन्द।
@ सुशील बाकलीवाल
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Udan Tashtari
सही कह रहे हैं, जब जब हारते हैं, बस यही लगता है।
@ Kajal Kumar
हम बस वही पिताजी समान हो गये हैं।
@ Rakesh Kumar
नहीं, बस टीवी के साथ में ही इसको लगा दीजिये, टीवी के सामने बस 5 फीट की जगह चाहिये।
@ anupama's sukrity !
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ मनोज कुमार
भारत में तो बच्चों को बहुत अधिक जानकारी नहीं है, घर पर जितने बच्चे आते हैं, सब आश्चर्यवत हो खेलते हैं।
@ : केवल राम :
खेलना तो और भी रोचक है।
@ Arvind Mishra
बिटिया अपने हारते पिता को अधिक सहारा देती है। कौस्तुभ को भी पूर्णानन्द मिला था।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
और अभी तक सटीक चल रहा है।
@ Ratan Singh Shekhawat
ReplyDeleteकुल मिलाकर 23000 का आता है, एक्स बाँक्स एक सीपीयू की तरह भी कार्य करता है।
@ वाणी गीत
खेलने से रोचकता और बढ़ जाती है।
@ संजय भास्कर
वीडियो गेम तो अपने आप में एक पूर्ण विषय है।
@ खुशदीप सहगल
यदि माइक्रोसॉफ्ट वालों को कहा जाये तो ऐसा खेल बनाया जा सकता है।
@ सतीश सक्सेना
एक बार इसमें रम जायेंगे तो नुकसान की भरपाई भी हो जायेगी।
@ सतीश सक्सेना
ReplyDeleteयह मार्केटिंग का विचार भेजते हैं।
@ ajit gupta
काश दादा दादी और नाना नानी साथ में रहते और दौड़ने के लिये बड़ा सा मैदान होता तो कभी न आती यह तकनीक।
@ संतोष त्रिवेदी
23000 मूल्य है और 5-6 फीट की खाली जगह हो टीवी के सामने। हर मोवाइल के खेल को समझकर खेल लेना इन बच्चों को बहुत ढंग से आता है।
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
हमें बहुत खराब लग रहा है हार के।
@ Shilpa
यही आकांक्षाओं का मिलन है।
@ Shah Nawaz
ReplyDeleteकहीं मिल जाये तो खेल अवश्य लीजियेगा, उत्सुकता अपने आप बढ़ जायेगी।
@ Rahul Singh
यह खेलतन्त्र सच में बहुत नया है।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद आपका।
@ नरेश सिह राठौड़
और वीडियो गेमों की तुलना में मँहगी अवश्य है पर अनुभव करने योग्य खेल तन्त्र बनाया है।
@ रश्मि प्रभा...
यही हल काम किया है हमारे यहाँ पर।
@ JHAROKHA
ReplyDeleteबच्चों का मानसिक विकास देखकर बहुधा आश्चर्य होने लगता है, उसी के लिये यह खेल लाया गया है।
@ ashish
सबका समुचित व्यायाम, मनोरंजन भी।
@ मीनाक्षी
हम बच्चे बने तभी खेल पाये।
@ rashmi ravija
हम बड़े समझते हैं कि हम बड़े हो गये, पर ऊर्जा में बहुत पीछे हैं बच्चों से।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
हम सबके अन्दर का बच्चा जागने के लिये तो बहाने भर ढूढ़ता है।
@ abhi
ReplyDeleteआप तो अनुभव करने घर आ जाइये।
@ वन्दना अवस्थी दुबे
23000 का है, टीवी के साथ में ही लगता है, बस टीवी से 5-6 फीट की दूरी पर रहें, हाथ पाँव चलाने के स्थान के साथ।
@ G.N.SHAW
बच्चे तकनीक के साथ साथ भाग रहे हैं।
@ अरुण चन्द्र रॉय
आपसे बात कर के उस पितृत्व प्यार का अनुभव हो गया था जो घोड़ा बनकर भी प्रसन्न रहता है।
@ ***Punam***
आपकी बात से मैं सहमत हूँ, स्वयं को व्यक्त करने की होड़ में हम कुछ ऐसा बाटें जो सबके हित में हो।
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ POOJA...
वह बारिश की फुहारों में खेलने का आनन्द कहाँ?
@ Patali-The-Village
बहुत धन्यवाद आपका।
@ अमित श्रीवास्तव
नामकरण तो Kinetic से ही हुआ है।
@ shikha varshney
तब एक बार खेलकर अवश्य देखिये।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
ReplyDeleteहाथ में लेकर वीडिओ गेम खेलने की बाध्यता और विधि से परे है यह खेल।
@ Pratik Maheshwari
एक अलग तरह का ही खेलतन्त्र है यह।
@ राज भाटिय़ा
बच्चों के साथ बड़ों की भी कसरत करा देता है यह खेल।
@ honesty project democracy
प्राकृतिक पर्यावरण में हमने जो लाभ पाया है, वह लाभ तो इससे नहीं मिल पायेगा, परन्तु परम्परागत वीडिओगेमों से कई गुना बेहतर है यह खेल।
@ अनूप शुक्ल
वास्तविक खेलों की बराबरी तो संभव ही नहीं।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
ReplyDeleteअब तो दर्शक बनकर देखते रहते हैं, बच्चों को खेलते।
@ प्रतिभा सक्सेना
समाधान तो दिखने लगता है जब समस्या सर के ऊपर से निकलने लगती है।
@ ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
नींद से बढ़कर तो कोई व्यायाम ही नहीं।
@ सारा सच
बहुत धन्यवाद आपका।
@ हरीश सिंह
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Vivek Jain
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
और इस तिलिस्म के राजा बच्चे ही हैं।
@ nivedita
वीडियो गेम की परम्परागत राह पर जाते हुये बच्चों के चिन्तित माता पिता के लिये वरदान है यह।
@ cmpershad
साइड एफेक्ट डूढ़ने पड़ेंगे।
@ रचना दीक्षित
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Dr (Miss) Sharad Singh
ReplyDeleteतब आप एक बार खेल कर अवश्य देखिये।
@ परावाणी : Aravind Pandey:
अनुभव का ज्ञान सबकुछ सिखा देता है।
@ देवेन्द्र
आपका योगदान न रहता तो संभवतः वह आनन्द न मिल पाता, बच्चों को नवीनता चाहिये। इसमें वह उपलब्ध है।
@ ZEAL
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Minakshi Pant
परम्परागत वीडियो गेम से बेहतर है यह खेल तन्त्र।
@ सदा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Coral
हाँ यह बात तो है, घर के अन्दर बच्चों का समूह हमेशा बना रहता है।
@ Anand Dwivedi
बहुत धन्यवाद आपका इस उत्साहवर्धन के लिये।
@ मेरे भाव
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Mired Mirage
आपको भी खेलने में बहुत आनन्द आयेगा।
@ संजय @ मो सम कौन ?
ReplyDeleteआप हमारे साथ खेल लीजियेगा, नयी तकनीक का स्वागत करें।
@ Abhishek Ojha
बहुत सरल तरीके से खेला जा सकता है यह खेल।
@ Sawai Singh Rajpurohit
बहुत धन्यवाद आपका। आपको भी शुभकामनायें।
@ mahendra verma
असली खेलों जैसा असली भी नहीं पर मिलावटी भी नहीं है। आनन्द व स्वाद बना रहता है।
@ Gopal Mishra
बहुत धन्यवाद आपका।
ये तो बहुत ही अच्छा हल निकाला आपने, बच्चों का शारीरिक व्यायाम भी हो जाएगा और वीडियो गेम का मोह भी बना रहेगा
ReplyDeleteरोचक जानकारी काइनेक्ट के बारे में
ReplyDeleteIs takneeki ko baazaar mein dekha to tha par socha ye bhi aam khelon ki tarah bachon ko kamre mein kaid kar degi .... par ab aapke aanklan se lagta hai jara gambheerta se sochna padega is taraf ....
ReplyDelete@ neelima sukhija arora
ReplyDeleteबिना मोह भंग किये अपना कर्तव्य निभाने का प्रयास कर रहा हूँ।
@ M VERMA
बहुत धन्यवाद आपका।
@ दिगम्बर नासवा
जितने समय कमरे में रहते हैं, उसका उपयोग हो जाता है इससे।