अमेरिका का प्रसंग आते ही हम भारतीयों के मन में एक भावभरी उत्कण्ठा जाग जाती है, सुख सुविधाओं का उद्यान, प्रतिभा का सम्मान, अस्तित्व युद्धों का अवसान, ऐश्वर्य का अभिराम, मानव आकांक्षाओं का निष्कर्ष धाम। एक कल्पनामयी डुबकी अमेरिका के विचारों में और लगता है कि मानो डिस्पिरिन मिल गयी हो, संघर्षों का सिरदर्द मिटाने के लिये, कुछ समय के लिये ही सही।
एक पूरा का पूरा समूह था आईआईटी में, जो येन केन प्रकारेण अमेरिका सरक लेने को आतुर था। उनकी भाव भंगिमा, भाषा, पहनावा आदि अमेरिका पहुँचने के पहले ही उसे समर्पित हो चुकी थी। भारत में बिताया जाने वाला शेष समय उन्हें अपने स्वप्नदेश जाने के पहले की तपस्या जैसा लगता था। अमेरिका की अद्भुत आकर्षण शक्ति का अनुभव हमें तभी हो गया था।
आज भी अमेरिका घूम आये नवप्रभावित युवाओं का उत्साह देखते ही बनता है, वहाँ तो यह है, वहाँ तो वह है, वहाँ सब कुछ है, आप अभी तक नहीं गये? सुन सुनकर ऊब चुके हैं अतः उस विषय पर नया प्रकरण प्रारम्भ होने के पहले ही मस्तिष्क की आवृत्ति उस बिन्दु पर नियत कर लेते हैं जिसके ऊपर से कोई भी प्रभावित करने वाला विचार मन में उतर न सके। आश्चर्य पर तब हुआ जब एक निकट सम्बन्धी ने स्तुति-स्वरों के विपरीत वास्तविक अमेरिका-कथा सुनायी।
बात उठी रेलवे के बारे में, मुझे अच्छा लगता है नये अनुप्रयोगों को जानना जिनके द्वारा यात्री सुविधाओं का विस्तार किया जा सके। बैठे बैठे कोई ऐसा तथ्य पता लग जाये जिससे कुछ और सुधार लाया जा सके, भारतीय रेलवे परिवेश में।
अमेरिका के कुछ गिने चुने नगरों की उपनगरीय सेवाओं को छोड़ दें तो शेष जगहों पर रेलवे की उपस्थिति नगण्य है। कम दूरी हो तो लोग अपनी कारों में जाते हैं, अधिक दूरी हो तो हवाई यात्रा करते हैं। रेलवे जहाँ पर भी है उसका उपयोग मूलतः माल ढोने में किया जाता है। लम्बी दूरी की ट्रेनों में और इन्टरसिटी ट्रेनों में 98% से अधिक अमेरिकियों ने अपने पैर भी न धरे होंगे।
पहले रेलवे, तब सड़क और अन्त में वायु की आधुनिक यातायात प्रणालियाँ अस्तित्व में आयीं। किसी भी देश के यातायात का मानचित्र देखें तो लम्बी दूरी की रेखायें रेलवे की होती हैं, रेलवे के बाद जो स्थान रिक्त रह जाता है उसमें सड़क यातायात की घनी रेखायें भरी होती हैं। वायु यातायात बहुत अधिक दूरी के लिये होता है और रेखाओं की संख्यायें कम होती हैं। यूरोप, जापान, चीन और भारत, हर देश में आपको यही अनुपात देखने को मिलेगा। प्रति यात्री किलोमीटर में लगी लागत के अनुसार भी देखा जाये तो रेलवे सर्वाधिक सस्ता साधन है, सड़क मध्यम और वायु सर्वाधिक मँहगा साधन है। पर्यावरण की भी दृष्टि से भी रेलवे सड़क से 6 गुना स्वच्छ माध्यम है। रेलवे यात्रा अधिक सुविधाजनक होती है, कम लागत लगती है, प्रदूषण कम करती है और यातायात के लिये सर्वोत्तम है। इन साधनों का अनुपात आपको उस देश की अर्थव्यवस्था की दिशा का आभास दे देगा।
यह सब होने के बाद भी अमेरिका का रेलतन्त्र मोटर निर्माताओं और हवाई कम्पनियों के षडयन्त्र की भेंट चढ़ गया। जब रेल कम्पनियों के बोर्ड में फोर्ड और जीएम मोटर्स के अध्यक्ष रहेंगे तो आप और क्या निष्कर्ष पायेंगे। बताते हैं कि पिछले 60 वर्षों से यही अमेरिका के विकास की दशा और दिशा है। यदा कदा यदि किसी मार्ग में यात्री रेलगाड़ियाँ चल भी रही हैं तो उन्हें मालगाड़ियाँ आगे नहीं निकलने देती हैं।
अब कारों का किलोमीटर भर लम्बा जमावड़ा आपको दिखे तो समझ लीजियेगा कि अमेरिका है, यदि हर कार लगभग छोटे ट्रक के बराबर के आकार की हो तो समझ लीजियेगा कि अमेरिका है, यदि हर गाड़ी में एक ही व्यक्ति बैठा हो तो समझ लीजियेगा कि अमेरिका है। कोई आश्चर्य नहीं होगा आपको यह जानकर कि विश्व के औसत से दस गुना और भारतीय औसत से डेढ़ सौ गुना पेट्रोल अमेरिका में उड़ा दिया जाता है। यदि वायु यातायात की बात करें तो भी यही ऐश्वर्य हमें अमेरिका में दिखायी पड़ता है। अब नीरज जाट या अन्तरसोहिल अमेरिका पहुँच जायें तो उन्हे संघर्ष करना पड़ जायेगा घूमने के लिये।
यह ऐश्वर्य यातायात में ही नहीं अपितु उनकी जीवन शैली में भी दृष्टिगत है। हर क्षेत्र में रेलवेतन्त्र की ही तरह मितव्ययता अनुपस्थित है। अब परीलोक में कंगाली दिखे तो परियों का क्या होगा, मेरे उन मित्रों का क्या होगा जो उन परीस्वप्नों की खोज में वहाँ पहुँच गये हैं? जियें, आप ऐश्वर्यमय जियें, जियें आप गतिमय जियें, हम भारतीय अपनी रेलगाड़ी में मगन हैं।
'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' जैसी स्थिति हमारी भी होती यदि अमेरिका की ऐश्वर्यपूर्ण जीवन शैली विश्व को प्रभावित नहीं करती। संसाधनों की सीमितता और उस पर आधारित सामरिक रणनीतियाँ विश्वपटल पर प्रधान हो गयी हैं। अमेरिका निवासियों को भी भान है इस स्थिति का, ओबामा प्रशासन भी ऐश्वर्यपूर्णता से निकलकर उन तन्त्रों को विकसित करने के लिये कटिबद्ध है जिससे संसाधनों की बचत की जा सके।
कुछ आप बढ़ें, कुछ हम बढ़ते हैं।
अरे आप भी कहाँ लग गये..अपनी रेलगाड़ी से मस्त क्या चीज हो सकती है यात्रा करने के लिए....
ReplyDelete:)
सुन्दर चिन्तन!!
बाप रे!!! ऐसा है क्या ??? अहा!!!...मजा आया...मै तो गई ही नहीं...बच गए...दौड़ने से...
ReplyDeleteसेम पिंच वाला मोबाईल कहीं गिर गया(गुम गया) वरना..रेलवे का एक और फ़ायदा आपको बताती...स्वाभाविक संगीत का अनुभव..
कहते हैं किसी भी देश का विकास कितना हुआ है इसका अंदाज़ा उसकी सड़कों और रेलवे को देखकर लगाया जा सकता है !अमेरिका में तो खाए-अघाये लोग ही रहते हैं,हो सकता है अगर वहाँ कार-गणना हो तो वह जन-गणना से ज़्यादा हो!
ReplyDeleteकमोबेश अमेरिका जैसे हालात भारत के सारे बड़े शहरों में भी होने वाले हैं,जहाँ सड़कों पर आदमी कम कारें ज़्यादा दिखती हैं !
निश्चित रूप से रेलवे की पहुँच सुगम और उसमें सफर कहीं आरामदायक है.
आपके इस पोस्ट को पढ़कर तिन बात कहूँगा---
ReplyDelete1 - भारतीय रेल इस देश की धड़कन है खासकर तब जब जिस जगह पर पहुँचने में किसी भी सस्ते से सस्ते साधन का खर्चा भी 10 रुपया हो और रेलवे सिर्फ 4 रुपया में ये सेवा दे रही हो...और भारत जैसे देश जिसमें लोग ज्यादातर लोग अभाव में जी रहे हों ये बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है....आप अपने आप पर गर्व कर सकते हैं की आप देश की धड़कन को चलाने जैसे सेवा से जुड़े हैं....
2 -अमेरिका के लोगों को हमारे देश से मानवीय कल्याण ,इंसानियत,परोपकार ,त्याग तथा विकाश को कैसे असल मानवीय उत्त्थान से जोड़ा जाय की शिक्षा लेने की जरूरत है...लेकिन दुर्भाग्य से हमारे युवा अमेरिका शिक्षा के लिए जाते हैं और आज हालत ये है की इस देश के उच्च संवेधानिक पदों पे बैठे जितने भी भ्रष्ट व कुकर्मी हैं उनमे से ज्यादातर हार्वर्ड से पढ़े हुये हैं...और जिनकी वजह से हमारा देश इंसानियत को खोने के कगार पर पहुँच चुका है....
3 -मैं इस पक्ष में हूँ की आज किसी भी सरकारी परियोजना में किसी भी धनकुबेर जो धनपशु से भी बदतर बन चुके हैं को किसी भी सरकारी बोर्ड या सरकारी सलाहकार समिति में कोई जगह नहीं दी जानी चाहिये....इन धनपशुओं ने इंसान को पशु बन्ने को मजबूर कर दिया है....
आपकी ये पोस्ट असल ऐश्वर्यपूर्ण सोच से भरी हुयी है....
पहले रेलवे, तब सड़क और अन्त में वायु की आधुनिक यातायात प्रणालियाँ अस्तित्व में आयीं। किसी भी देश के यातायात का मानचित्र देखें तो लम्बी दूरी की रेखायें रेलवे की होती हैं, रेलवे के बाद जो स्थान रिक्त रह जाता है उसमें सड़क यातायात की घनी रेखायें भरी होती हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दे रहा है आपका लेख.
रेलवे के प्रति ,देश के प्रति आपकी आस्था देख कर बहुत अच्छा लगा .
शुभकामनायें.
मुझे तो हिंदुस्तान से ज्यादा ऐश्वर्य कहीं नहीं दीखता। रेल-यात्रा ही सबसे ज्यादा लुभाती है अभी भी ।
ReplyDeleteकोई कुछ भी कहे हमारी नजर में तो अपना भारत महान !!
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट है! बधाई!
ReplyDeleteदूसरों का खून चूसकर अपने लिए ऐश्वर्य ढूंढते हैं यह लोग... पेट्रोल और प्रकृति दोनों को नुक्सान पहुंचा रहे हैं... लेकिन इनको कुछ कहने वाला कौन है??? सभी तो नौकर है इनके...
ReplyDeleteप्रवीण भाई,
ReplyDeleteजेनेरेटर से चलने वाले जुगाड़ और अमेरिका भेज दिए जाएं...
जय हिंद...
बहुत कम संख्या में ही सही लेकिन अमेरिकन अब अपरिग्रह की ओर उन्मुख हो रहे हैं क्योंकि सुधी अमेरिकन्स अब अति से उकता चुके हैं.
ReplyDeleteइंटरनेट पर आपको कार फ्री सोसायटी और कार फ्री मूवमेंट पर बहुत जानकारी मिलेगी.
देखें http://en.wikipedia.org/wiki/Car-free_movement
sirf sasta nahi suvidha ke drishtikon se bhi Railway behtar hai:)
ReplyDeleteप्रति व्यक्ति आय की तरह प्रति व्यक्ति द्वारा घेरने (occupy)वाला स्थान, चाहे वह यात्रा के लिए हो या प्रवास-निवास के लिए, किस तेजी से बढ़ रहा है, इसके आंकड़े तलाशने का प्रयास होना चाहिए.
ReplyDeleteमुझे इन बातों के बारे में मालूम नहीं था जो आपने लिखी,उसके लिए थैंक्स .
ReplyDelete.
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शिल्पा
खाने में बड़ा मोटावाला हॉट डॉग, बर्गर दिखे और साथ ही शरीर के साथ अक्ल भी मोटी दिखे तो समझ लीजिये कि अमेरिका है ! :)
ReplyDeleteरेलगाड़ी में सफ़र करने का जो आनंद है, वो ये फिरंगी क्या जानें? भाई हमने तो रेलगाड़ी में इतने दोस्त बनाए हैं और यही वायुयान की बात करें तो सारे पैसे वाले ऐसे नाक-भौं सिकोड़ के बैठते हैं कि बात करने से आग ही लग जाएगी..
ReplyDeleteपर वही बात है ना.. इन फिरंगियों या फिरंगी बन्ने की कोशिश में लगे देसियों को यह बात समझ नहीं आएगी और वो अपनी ख़ुशी को यूँ ही पैसों में उड़ाते रहेंगे..
अच्छा, आप रेल-विभाग में हैं इसीलिये !
ReplyDeleteये रेल और कार का प्रश्न आर्थिक संपन्नता का प्रश्न है .अब खुली बाजा़र-व्यवस्था है आर्थिक स्थिति डाँवाडोल है ,पेट्रोल मँहगा होता जा रहा है ,
तो उसके हिसाब से चलना ही पड़ेगा .
एक बात और भारत से तीन गुनी धरती(संसाधन भी) और वहाँ से एक तिहाई लोग ,वे भी पढ़े-लिखे ,नियमों को माननेवाले ,ईमानदारी से काम करनेवाले अपने देश पर अभिमान करनेवाले (काश,ये चार गुण हमारे यहाँ भी होते !),हां, थ्रो-अवे कल्चर है पर जिसे कोई कमी न रही हो वह समझता भी तो समय आने पर ही है .
गर्व होता है भारतीय रेलवे पर
ReplyDeleteप्रणाम
ओबामा प्रशासन भी ऐश्वर्यपूर्णता से निकलकर उन तन्त्रों को विकसित करने के लिये कटिबद्ध है जिससे संसाधनों की बचत की जा सके।
ReplyDeleteयदी ऐसा ही है तो फिर हम कहाँ पीछे हुए ?
आपकी बात से सहमत.
ReplyDeleteलेकिन भारत में रेल कुव्यवस्थाओं का शिकार. रेल सबसे अच्छा साधन है. दिक्कते हैं कि स्टाफ नहीं है और जो है उनमें से अधिकतर बाकी सरकारी नौकरों की तरह. अभी भी रेल वह गति नहीं पकड़ सकी जो पकड़ना चाहिये था. लखनऊ से दिल्ली तक की लगभग ५८० किमी की यात्रा में ९-९.५ घण्टे! रेल की समस्या है समय पर न चलना, गंदगी रहना, जनरल डिब्बे में तो पैर रखने की जगह नहीं मिलती आजकल. कई जगह जनरल बोगियां रोज बेची जाती हैं.
कुछ लोगों को अमेरिका को गरियाने की आदत है (आप अपने लिये इन "लोगों" में मत गिनियेगा), जो वहां की अच्छाइयां हैं, उनसे तो कोई सीख लेते नहीं, बुराइयों पर टीका-टिप्पणी करने के लिये कलम तोड़ देते हैं.
हम सबसे बड़े लोकतन्त्र का दावा करते हैं, किन्तु क्या अमेरिकी लोकतन्त्र के वाशिन्दों की तरह अपने अधिकारों और कर्तव्यों का पालन कर पाते हैं. क्या हमारे यहां के लोकतन्त्र के कर्णधार इस देश के आम नागरिक को वह सारी चीजें दे पा रहे हैं जो संविधान की प्रस्तावना में निहित हैं.
परसों एक फैसला आया कि क्रिकेटर गगनदीप की हत्या के आरोपी लचर चार्जशीट के चलते बरी. कभी अमेरिका में इस तरह की बात सुनी है? कुछ वर्ष पहले एक सिख की हत्या कर दी कुछ अमेरिकियों ने ९/११ के बाद. अपराधी पकड़े गये और डेढ़ वर्ष के अन्दर सजा हो गयी. हमारे यहां खुल्लम खुल्ला मौज करते हैं. इसलिये बेशक अमेरिकी समाज में व्याप्त बुराइयों की खूब आलोचना कीजिये, लेकिन हर बात में सिर्फ और सिर्फ अमेरिका होने के कारण आलोचना करना उचित नहीं.
अब वापस आपके लेख की तरफ. जो जहां का होगा हित तो वहीं के साधेगा, बिल्कुल हमारे लोकतन्त्र के कर्णधारों की तरह, अगर फोर्ड बाबा रेल बोर्ड में होंगे तो ऐसा कुछ क्यों करेंगे जिससे कि उनकी कारों की बिक्री कम हो.
भारतीय रेल जिन्दाबाद....
गोदियाल साहब ने सही लिखा है - अमेरिकी खाने में खूब आगे हैं और हमें बताते हैं कि हमारे कारण मंहगाई बढ़ी है...
ReplyDeleteमैनहट्टन में कारों की लम्बी धक्का धुक्की से अच्छी है अपनी छुक छुक गाड़ी . अपनी जो है . बुलेट वाली का इंतजार कर रहे है .
ReplyDeleteसही कहा....जिस देश को उगे हुए अभी ४०० वर्ष भी पूरे नहीं हुए उसके रहन-सहन , विचार, व्यवहार, एश्वर्य-मस्ती का २०००० वर्ष पुराने मंजे हुए देश से क्या तुलना....
ReplyDelete---और फ़िर एश्वर्य राय तो भारत में ही है..
--अमेरिकी प्रवासी भारतीय कवि-कैलाश्नाथ तिवारी की कविता है---
यहां आदमी बहुत थोडे हैं
फ़िर भी न जाने क्यों ,
एक दूसरे से मुंह मोडे हैं । और...
कैसी थी माधुर्य प्रीति, पल पल के उस जीवन में।
भटक गया हूं आज, मशीनी चट्टानों के वन में ॥
और वहीं स्थित..देवेन्द्र नारायण लिखते हैं--
अमरीका में हमको आये अपने ऊपर हांसी ।
भारत में हम साहब थे ,अमरीका में चपरासी ॥
अमेरिका की विकास संस्कृति की समीक्षा सहज रूप से समेत दी है
ReplyDeleteभारतीय रेल का कोई मुकाबला नहीं ...जनता को सफाई का ध्यान रखना चाहिए ...और सरकार को अच्छी व्यवस्था का ..लंबी दूरी वाली यात्रा में कभी कभी खाना बहुत खराब मिलता है ..
ReplyDeleteवैसे जो आराम भारत में है वो अमरीका में नहीं ..
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
भारतीय रेल की यात्रा आनन्ददायक है ...संगीता जी की बात से सहमत .... आपकी इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteबढ़िया चिंतन...सार्थक आलेख
ReplyDeleteमुझे तो रेल की यात्रा ही पसन्द आती है...
ReplyDeleteबेहतरीन लेख के लिये बधाई।
bat to pate ki kahi, lekin duniya ke sabhi deshon ki antrik jarurate ek dusre se samaanta nhi rakhti, maslan.. american time ko tabajjoh dete hain, unke liye time ki kimat he, aur aggar apni india ki bat kare to yaha time hi time he, lekin jisse bhi puchho kahega, yar time hi nhi milta, bahut bg hun... baise jaankari uttam he!...
ReplyDeleteऔर भी बहुत कुछ है भारत में जो अमरीका में नहीं.
ReplyDeleteअपनी तो रेलगाड़ी बहुत मस्त है.
और भी बहुत कुछ है भारत में जो अमरीका में नहीं.
ReplyDeleteअपनी तो रेलगाड़ी बहुत मस्त है.
आपका लेख और सभी कमेंट पड़ने के बाद .... भारत और अमेरिका दोनो को देखने के बाद .... इतना तो ज़रूर कहूँगा की ये सच है की भारतिया रेलवे अपने आप में एक ही उदाहरण है पुर विश्व में ... परंतु राष्ट्रीय चरित्र (व्यक्तिगत चरित्र की बात नही कर रहा) और देश पर गर्व करने वाले अगर उनसे आधे भी अपने देश में हो जाएँ तो भारत उस मुकाम पर होगा जहाँ सब देखना चाहते हैं ...
ReplyDeletepraveen ji
ReplyDeletebahut khoob,bahut hi badhiya prasang aapne likh hai .main sntishh ji ki baat se purntaya sahmat hun.
sach ahi ki hamare railway se sugam aur suvidha purn aur kai yatayat nahi hai.yah bhi sach hai ki eir bhi logo ko videshi aakarshhan puri tarah se prabhavit kar raha hai
bahut hi badhiya prastuti
badhai ke saath
poonam
प्रवीण भाई, मेरी एक पुस्तक आयी है - "सोने का पिंजर --- अमेरिका और मैं"। कभी अवसर मिला तो आपको प्रेषित करूंगी। रेल सेवा के अभाव में अमेरिका में आप घर में बन्दी हो जाते हैं, बस सहारा है तो केवल स्वयं की गाडी का। अमेरिका या विदेश आज प्रतिष्ठा का विषय बन गया है, असल में देखा जाए तो ये सारी संघर्ष स्थलियां हैं।
ReplyDeleteअपना हिन्दुस्तान बहुत अच्छा है , बाहर देशों में जो भी है कहीं ना कहीं भारत का योगदान जरूर है
ReplyDeleteहाँ मुझे भी आश्चर्य हुआ था -जबकि कितने यूरोपीय देशों में रेल सेवा बहुत उन्नत है -मेगलेव ट्रेनें चल रही हैं !
ReplyDeleteभारतीय रेल का कोई जवाब नहीं.. मुझे जब भी कहीं जाना होता है सबसे पहले ट्रेन टाइम टेबल देखता हूँ.. अगर रेल ना हों तो फिर कोई और साधन. ट्रेन में सफर करना ज़्यादा आरामदेह और सुविधाजनक लगता है.
ReplyDeleteप्रवीण भाई ..बस सुन्दर ही सुन्दर ..
ReplyDeleteशब्द, भाव, चिंतन , मनन, सुन्दर सुखद ललाम..
निश्चित रूप से रेलवे की पहुँच सुगम और उसमें सफर कहीं आरामदायक है|
ReplyDeleteआपको ताजा उदाहरन देती हूँ अभी विश्वकप देखने मे रे देवर जो अमरीका(पिछले १५ साल से वहन रहते है ) से आये थे मुंबई के बाद यहाँ बेंगलोर आये मुझसे मिलने तो उनका कहना था की बेकार ही लोग यू .एस ,यू एस करते रहते है उससे अच्छा तो बेंगलोर एअरपोर्ट से होटल आना लगा (हालाँकि उस दिन उगादी की छुट्टी थी और उन्होंने ओल्ड एयर पोर्ट रोड का ट्रेफिक नहीं देखा था )|
ReplyDeleteये भी तो उतना ही सच है जब तक हम बाहर नहीं जाते हमे घर की कीमत पता नही चलती |फिर रेलगाड़ी की सवारी की तो बात ही क्या ?
आपको ताजा उदाहरन देती हूँ अभी विश्वकप देखने मे रे देवर जो अमरीका(पिछले १५ साल से वहन रहते है ) से आये थे मुंबई के बाद यहाँ बेंगलोर आये मुझसे मिलने तो उनका कहना था की बेकार ही लोग यू .एस ,यू एस करते रहते है उससे अच्छा तो बेंगलोर एअरपोर्ट से होटल आना लगा (हालाँकि उस दिन उगादी की छुट्टी थी और उन्होंने ओल्ड एयर पोर्ट रोड का ट्रेफिक नहीं देखा था )|
ReplyDeleteये भी तो उतना ही सच है जब तक हम बाहर नहीं जाते हमे घर की कीमत पता नही चलती |फिर रेलगाड़ी की सवारी की तो बात ही क्या ?
अमरीकी लोग कार में अकेले तो होते ही हैं, घर-परिवार के बीच भी नितांत अकेले ही होते हैं।
ReplyDeleteभारतीय रेल का हर डिब्बा एक परिवार है और पूरी गाड़ी एक दौड़ता हुआ गांव।
कड़कड़ाती सर्दी, बर्फ़बारी, तूफ़ानी वर्षा में पेट्रोल पंप पर काम करने या सड़क के बर्फ़ को साफ़ करते लोग कभी भारत आकर नहीं कहेंगे कि वे इन परिस्थितियों से जूझ रहे थे। बस, गुणगाण करेंगे और अपनी इज़्ज़त ढांपते रहेंगे:)
ReplyDeleteअपनी थाली से अधिक घी दूसरे की थाली में नजर आता है.इसी सोच ने अमरीका को स्वर्गलोक बना रक्खा है. क्या रेल ,क्या संस्कार,तीज त्यौहार ,रिश्ते नाते,सहजता,सरलता आदि में अमेरिका कभी मुकाबला कर पायेगा हमारे महान देश का.
ReplyDeleteअपने देश में क्या है क्या क्या कहूं बस इतना ही कहती हूँ की भारत के बाहर जीवन नहीं है...... जीवन के रंग नहीं हैं और निसंदेह रेलगाड़ी भी नहीं है.....
ReplyDeleteइसे कहते हैं - घर का जोगी जोगडा, आन गॉंव का सिध्द।
ReplyDeleteहमारी रेल, रेल नहीं, मौसी है।
Greetings from USA! Your blog is really cool.
ReplyDeleteAre you living in India?
You are welcomed to visit me at:
http://blog.sina.com.cn/usstamps
Thanks!
@ अमेरिका का रेलतन्त्र मोटर निर्माताओं और हवाई कम्पनियों के षडयन्त्र की भेंट चढ़ गया।
ReplyDeleteएकदम सही कहा आपने। रेल ही नहीं, नगर परिवहन में भी अधिकांश नगर पिछडे हुए ही हैं। अर्थतंत्र की हालत खराब होने पर अब देश का ध्यान इस दिशा में जा रहा है।
अजी, छोड़िये उनको...अपनी बात ही कुछ और है :)
ReplyDeleteअमेरिका की परिवहन व्यवस्था पर बहुत अच्छी तरह लिखा आपने ...ये हद से ज्यादा अघाए लोग दूसरों के हक़ को दबाये बैठे हैं ...तेल उत्पादक देशों पर इनकी तिरछी नजर का कारण यही परिवहन व्यवस्था तो नहीं है कही !
ReplyDeleteमेरा भारत भारत महान है लेकिन इंडिया .....|
ReplyDeleteबहुत ही गहरा अध्ययन है प्रवीण भाई
ReplyDeleteअच्छा लगा आप को पढ़ कर
रेलवे का सफर सस्ते के साथ साथ कुछ आत्मीय सा भी लगता है, पता नहीं क्यों .... बाकि ....
ReplyDelete@सुख सुविधाओं का उद्यान, प्रतिभा का सम्मान, अस्तित्व युद्धों का अवसान, ऐश्वर्य का अभिराम, मानव आकांक्षाओं का निष्कर्ष धाम।
बिलकुल मेरे मन की बात लिख दी आपने.
रोचक संस्मरण .
ReplyDeletein India, railway provides best facilities . i too have experienced the comfort in trains...
ReplyDeleteand as far as personal vehicle is concerned ,even we prefer to buy one just to avoid discomfort and enjoy luxury...
दूर के ढोल ....
ReplyDeleteरेलगाड़ी के सफर सा सफर और कौन ...
चकाचौंध में कुछ नहीं सूझता ! वहाँ हर तस्वीर पैसे के फ्रेम में मढ़ कर देखी जाती है ,यहाँ तस्वीर को फ्रेम कराने के लिए पैसे नहीं होते फिर भी सारी विषमताओं के बावजूद रेलवे और दूसरे क्षत्रों में जो भी तरक्की हुई है उसका ज़वाब नहीं !
ReplyDeleteभारतीय रेल का विस्तार भारत के विकास की कहानी का अति महत्वपूर्ण हिस्सा है !
Yah bat to sahee hai. Ralil ke conenectivity kafee Kharab hai. Ghanton bad ke hote hain . Rail yatra iseese behad ubaoo ho jatee hai. sleeper coach ke paise bahut jyada hain itane ki hawaee yatra jyada sastee hai. Car companiyan kyun kar rail ko Suwidha janak banane dengee . america men to apni kar ho ek nahee char ho tabhee car co aur petrol co ke ware nyare hain. Par yadi aapko change nahee karna to saf suthari aur achchee wyawastha hai. seats reclining aur hawaee jahaj se bhee kafee aramdyak hote ehain.
ReplyDeletesundar...gyanvardhak.......
ReplyDeleteऐसा ऐश्वर्य, ऐसी गति उन्हें मुबारक हो। हम भले और हमारी रेलवे भली।
ReplyDeleteआज ही गावं से अपने जिले झुंझुनू का सफर अपनी मस्त छुक छुक गाड़ी से करके आया हूँ | आपके विचार अह्मसे मिलते है ......धन्यवाद जी
ReplyDeleteअपने देश की बात ही अलग है दोस्त और जो हमारे पास है वो किसी और के पास बिल्कुल नहीं फिर चाहिए वो भारतीय रेल ही क्यु न हो | इस लेख से आपका देश के प्रति प्यार भी बखूबी दर्शाता है |
ReplyDeleteसुन्दर चर्चा |
प्रवीण जी, अब तो वक्त बदल चुका है, ऐश्वर्य तो वहाँ है अब जिस देश में स्वयें ऐश्वर्या जी बिराजमान हैं।रही बात ऊर्जा के अपव्यय की तो इसे ऐश्वर्य तो नहीं,विश्व पर आत्मश्लाघा का एक प्रदर्शन और अत्याचार अवश्य कह सकते हैं।पर एक तथ्य की प्रशंसा किये नहीं रह सकते कि इतने उच्च स्तर पर मोटर-वाहन के उपयोग के बावजूद वहाँ के शहरों की स्वच्छता और वहाँ का प्रकृतिक सौन्दर्य भारत और कई मायनों मे यूरोपिय देशों का तुलना में कई गुना अच्छा और सुव्यवस्थित है ।
ReplyDeleteआखिर आपने साबित कर ही दिया कि हमारी रेल सबसे बढ़िया है.
ReplyDeleteसुन्दर चिन्तन!!
ReplyDeleteअपना देश कई मामलों में बाहर से अच्छा लगता है ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteहमें तो पैरासिटामोल मिल गई .....!!
ReplyDelete@ Udan Tashtari
ReplyDeleteरेलगाड़ी व्यक्ति के लिये सुविधाजनक है, देश के लिये भी।
@ Archana
संगीत बहुत सुनने को मिल जाता है रेल यात्राओं में।
@ संतोष त्रिवेदी
बड़े शहर भी इसी ऐश्वर्य की चपेट में आ रहे हैं।
@ honesty project democracy
अमेरिका के अनुभव के बाद अब भारत में वह गलती नहीं होगी।
@ anupama's sukrity !
रेलवे के प्रति यातायात का झुकाव संसाधनों और पर्यावरण के साथ न्याय है।
@ ZEAL
ReplyDeleteरेल का समग्र ऐश्वर्य अन्य माध्यमों से कहीं अधिक है।
@ Ratan Singh Shekhawat
कम से कम यातायात की दिशा तो ठीक ही है।
@ अनूप शुक्ल
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Shah Nawaz
यही तो ऐश्वर्य है।
@ खुशदीप सहगल
जुगाड़ नहीं, वहाँ तो हर वस्तु नयी चाहिये।
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
ReplyDeleteसच कहा आपने, समझदार लोग तो इस व्यर्थ की ऐश्वर्यता को छोड़ना चाहेंगे।
@ Mukesh Kumar Sinha
रेलवे तो लागत के हिसाब से सबसे सस्ता साधन है।
@ राहुल सिंह
वहाँ पर व्यक्तियों का घनत्व सबसे कम है।
@ Shilpa
यह तथ्य सबको प्रभावित करने वाले हैं।
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
मोटावाला हॉट डॉग, बर्गर दिखे, चलिये इसको भी पहचान पत्र मान लेते हैं।
@ Pratik Maheshwari
ReplyDeleteरेलगाड़ी की बात ही अलग है, उसमें हर तरफ से बचत ही बचत है।
@ प्रतिभा सक्सेना
उनके अच्छे गुण हमें स्वीकार करना होगा पर यह अपव्यय की मानसिकता नहीं।
@ अन्तर सोहिल
बहुत धन्यवाद आपका।
@ सुशील बाकलीवाल
ओबामा प्रशासन जाग रहा है पर ऐश्वर्य का खुमार उतरने में समय लगेगा।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
उनकी ऐश्वर्यमयी जीवनशैली हम पचा नहीं पायेंगे पर उनके गुण तो सीखने चाहिये।
@ ashish
ReplyDeleteसब गाड़ी में चलेंगे तो जैम लगेगे ही। स्थान की भी बचत होती है ट्रेन में।
@ Dr. shyam gupta
सारी की सारी पंक्तियाँ उस ऐश्वर्यमयी जीवनशैली की पीड़ा को व्यक्त करती हैं।
@ गिरधारी खंकरियाल
बहुत धन्यवाद आपका।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
घर में भी बहुत कुछ करना है, पर ऐश्वर्यमयी जीवन शैली तो नहीं आयातित करनी है।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद आपका इस सम्मान के लिये।
@ सदा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ rashmi ravija
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Dr (Miss) Sharad Singh
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Khare A
देश देश भिन्न होते हैं पर अपव्ययता तो किसी भी देश को स्वीकार नहीं होगा।
@ shikha varshney
भारत में हम अभी भी मितव्ययता पर जोर देते हैं।
@ दिगम्बर नासवा
ReplyDeleteपूरे राष्ट्रीय चरित्र में अमेरिका का अनुशासन अनुकरणीय है।
@ JHAROKHA
रेलवे सुगम और सुविधापूर्ण है, उसकी अनुपस्थिति अमेरिका की जीवनशैली के बारे में बताती है।
@ ajit gupta
जब इतनी बंदिशें हो जायें तब तो संघर्ष हो गया।
@ दीप
भारत का योगदान अमेरिका में है पर इस ऐश्वर्य में नहीं।
@ Arvind Mishra
यूरोप इस माध्यम में बड़ा समुनन्त है, केवल अमेरिका अलग है।
@ Manoj K
ReplyDeleteमेरा भी पहला विकल्प रेल ही रहता है।
@ परावाणी : Aravind Pandey:
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Patali-The-Village
और यही माध्यम अनुपस्थित है वहाँ की जीवन शैली से।
@ शोभना चौरे
हम जब बिना वहाँ के बारे में जाने धारणायें बना लेते हैं तब समस्या होती है।
@ mahendra verma
इतने ऐश्वर्य में भी उनका एकांत मुखर है।
@ cmpershad
ReplyDeleteजो गुण स्वीकार करने योग्य हैं, उन्हे स्वीकार कर लेना चाहिये।
@ Rakesh Kumar
हर देश के सुन्दर बिन्दु स्वीकार करने चाहिये।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
भारत में अपने हिस्से की कमियाँ है जो दूर करनी हैं।
@ विष्णु बैरागी
रेल से विशेष प्रेम है अब तो।
@ tongchen@seattle
बहुत धन्यवाद है आपका।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
ReplyDeleteअब अर्थव्यवस्था खराब होने पर मितव्ययता पर ध्यान जा रहा है।
@ abhi
सच है, हम अलग हैं।
@ वाणी गीत
संभवतः यही कारण है अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के।
@ नरेश सिह राठौड़
इंडिया अमेरिका का अनुसरण कर रहा है।
@ Navin C. Chaturvedi
बहुत धन्यवाद आपका।
@ दीपक बाबा
ReplyDeleteयह सब होने के बाद भी यह अपव्यय स्वीकार नहीं होना चाहिये।
@ मेरे भाव
बहुत धन्यवाद आपका।
@ akshay raj
लम्बी दूरी में सड़क असुविधाजनक और वायुयान मँहगा है।
@ M VERMA
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ
रेलवे के रूप में बहुत ही सुलभ साधन है देश में।
@ Mrs. Asha Joglekar
ReplyDeleteहम रेल में और सुधार कर लें तो इससे अधिक सुलभ साधन और कोई नहीं होगा।
@ Ankur jain
बहुत धन्यवाद आपका।
@ संजय @ मो सम कौन ?
हमें हमारी रेल ही सुहाती है।
@ तरुण भारतीय
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Minakshi Pant
मितव्ययता को अपनना होगा, संसाधनों की कमी जो है।
@ देवेन्द्र
ReplyDeleteप्राकृतिक सौन्दर्य है पर जनसंख्या का दबाव भी नहीं है। हमारे विकास में कहीं कमी अवश्य रह गयी है।
@ संतोष पाण्डेय
रेल सर्वोत्तम साधन है, हर दृष्टि से, यदि दूरी अधिक हो तो।
@ संजय कुमार चौरसिया
बहुत धन्यवाद आपका।
@ सतीश सक्सेना
पर अभी बहुत कुछ सीखना भी है।
@ हरकीरत ' हीर'
हाँ, इतनी अच्छी बातें कर हम थोड़ा बहक लेते हैं।
फोर्ड और जीएम मोटर्स के मालिकों का ट्रेन बोर्ड के अध्यक्ष पर होने से रेल सिस्टम का भला नहीं होने का एंगल कुछ कम जम रहा है... अमरीका में दूरियां इतनी अधिक है कि मुझे लगता है कि वहां रेल शायद अधिक महंगा साधन साबित होता...
ReplyDeleteकुछ कुछ जो मुझे जानकारी है वह यह कि न्यूयार्क में मैट्रो की वही स्थिति है जो दिल्ली में है... यानि वह मैट्रो सिटी की धड़कन है...
पिछले एक महीने में दो मैट्रो शहरों में घूमा हूं.. दिल्ली की मैट्रो और मुम्बई की लोकल... इनके बिना तो इन शहरों और शहरवासियों के सुगम यातायात की कल्पना भी नहीं की जा सकती...
सार्थक चिंतन...
@ सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi
ReplyDeleteदोनों बातों से सहमत हूँ कि वहाँ दूरियाँ अधिक है और व्यस्त जीवनशैली है। मध्यम दूरियों के लिये रेल से उपयुक्त और कम लागत का कोई साधन नहीं है। यूरोप व चीन के रेलतन्त्र संभवतः यह बिन्दु और स्पष्ट कर सकें। तेज गति की रेलें वायुयान से कम मँहगी हैं।
Indian Railways ke bina aam hindustani kabhi aagge nhi badh pata...chote-chote gaon se nikalkar bade-badesehron tak jaana Rail ne hi sambahv kiya hai..
ReplyDelete@ Gopal Mishra
ReplyDeleteयदि देखा जाये तो न जाने कितने ही ऐसे नगर हैं जो केवल भारतीय रेलवे के कारण अपने नगरीय अस्तित्व में आये। यातायात है वहाँ पर तो विकास की संभावनायें हैं।
पाण्डेय जी,
ReplyDeleteजब मैं किसी पैसेंजर ट्रेन में बैठता हूं और कोई स्टेशन आता है तो उसके बोर्ड का फोटो खींचने के बाद क्या सुकून मिलता है, लाजवाब होता है। जब भी कभी रेल सफर करके आता हूं तो अगले दिन तक भी शरीर से रेल की गंध नहीं निकलती। मध्य प्रदेश या राजस्थान का मेरा अनुभव है कि रेलवे स्टेशन होटल के कमरे से भी सुरक्षित जगह है रात बिताने के लिये। जहां दो आदमी पडे सो रहे हों, उन्ही के पास अपनी भी चादर बिछाकर पड जाओ, सुबह को बिल्कुल सही सलामत उठते हैं। अमेरिका में ये सुविधाएं कहां।
@ नीरज जाट जी
ReplyDeleteजिस सुगमता से भारत में एक कोने से दूसरे कोने में लोग पहुँच जाते हैं, उसके लिये अमेरिका में बहुत धन खर्च करना पड़ जायेगा। कारण केवल रेलवे ही है।