2.4.11

जीतता हुआ विश्वास

पहले ही स्पष्ट कर दूँ कि इस समय मैं किसी दबाव में नहीं हूँ और निष्पक्षमना हो अपने भाव व्यक्त कर रहा हूँ। यह विषय अब अत्यन्त महत्वपूर्ण हो चला है, घर में भी, बाहर भी और जब नित इसे देख रहा हूँ तो बिन कहे रहा भी नहीं जा रहा है।

विकास की आपाधापी में हम कई ओर से घिर गये हैं। प्राकृतिक परिवेश की अनुपस्थिति हमें कई ऐसी प्रक्रियाओं से दूर ले गयी है जो स्वतः ही हो जाया करती थीं और संभवतः इसी कारण उन पर समुचित विचार विमर्श हुआ ही नहीं। कूड़ा-प्रबन्धन भी एक ऐसा ही विषय है।

प्राकृतिक परिवेश में वस्तुओं का उत्पादन और उपयोग लगभग एक ही स्थान पर होता है, लाने ले जाने के लिये विशेष उपक्रमों की आवश्यकता नहीं पड़ती है, उससे सम्बन्धित कूड़ा बनने से बच जाता है। जैविक खाद्य पदार्थों के उपयोग के बाद उन्हें पहले तो पशुओं को दे दिया जाता है और शेष बचने पर खुले स्थान पर डाल दिया जाता जहाँ प्रकृति के कारक पुनः उसे मिट्टीसम बना देते हैं। जैविक-चक्र चलता रहता है, जीवन पल्लवित होता रहता है, कूड़ा-प्रबन्धन भी हो जाता है, सहज और सरल विधि से।

नगरीय परिवेश में हमें, न तो इतना स्थान मिलता है और न ही इतना समय, जिसमें हम कूड़ा-प्रबन्धन जैसे तुच्छ विषय के बारे में सोच सकें। पहले तो अपना कूड़ा निकट के किसी स्थान पर फेंककर अपना घर साफ कर लेते हैं, कहीं और पर कूड़ा पड़ा देख नाक मुँह सिकोड़ लेते हैं, अव्यवस्था के लिये नगरपालिका को अपशब्द प्रेषित कर देते हैं और कुछ संवेदनात्मक चर्चायें कर विषय की उपस्थिति को स्वीकार कर लेते हैं। कूड़ा फिर भी ज्यों का त्यों पड़ा रहता है।

नगरीय कूड़े में जैविक तत्व लगभग 70% होता है, जैविक कूड़े में लगभग 60% पानी होता है, यही दो तत्व कूड़े में सड़न व दुर्गन्ध उत्पन्न करते हैं। यदि हम स्थानीय स्तर पर कूड़ा-प्रबन्धन करें तो मात्र 30% अजैविक कूड़े को ही समेटना पड़ेगा और शेष बचा जैविक कूड़ा खाद में परिवर्तित हो जायेगा, बिना सड़न या दुर्गन्ध के। बात सरल तो है पर समय और लगन मांगती है।

दो वर्ष पहले जब श्रीमतीजी ने इस विषय में रुचि लेनी प्रारम्भ की तो लगा था कि शीघ्र ही कूड़े का सम्मान मन से उतर जायेगा और पुनः कूड़ा वैसे ही पड़ा रहेगा, त्यक्त, दुर्गन्धपूर्ण। किन्तु अब लग रहा है कि रुचि लगन में बदल गयी है, कूड़ा खाद में और प्रथम-श्रम उत्साह बनकर छलकने लगा है।

घर में कूड़ा अलग अलग पात्रों में डाला जाता है, जैविक कूड़ा एक टैंक में डाला जाता है, इस टैंक को मंथन कहते हैं क्योंकि इसमें उसे हिलाने की सुविधा होती है। बीच बीच में इसमें सूखी पत्तियाँ, यदा कदा लकड़ी का बुरादा और एक एक्टीवेटर जैव-रसायन भी डाला जाता है। कूड़ा डालने के बाद मंथन का ढक्कन बन्द कर देते हैं। दिन में एक बार इसे घुमाना भी पड़ता है। पूरा भर जाने के बाद इसे दूसरे पात्र में डालकर चालीस दिन के लिये छोड़ दिया जाता है जो हमें तैयार खाद के रूप में प्राप्त हो जाता है।
विस्तृत रासायनिक प्रक्रिया में न जाकर बस इतना समझ लिया जाये कि बंद टैंक से किसी प्रकार की गन्ध नहीं आती है और कम्पोस्टिंग की प्रक्रिया अधिक गतिशील हो जाती है। बार बार हिलाने से सब जगह हवा पहुँच जाती है और जैव रसायन विघटन को और सरलता से कर सकते हैं। हरी सब्जियों में उपस्थित नाइट्रोजन और सूखी पत्तियों और बुरादे में उपस्थित फॉस्फोरस मिलकर खाद का निर्माण करती हैं।

इस खाद का उपयोग श्रीमतीजी अपनी मूल अभिरुचि बागवानी के लिये करती हैं। जब उन्होने उस खाद के प्रयोग से उत्पन्न पुष्प गुलदस्तों में सजाये तब मुझे लगा कि किस तरह थोड़ी लगन से अपने परिवेश को सुरभिमय किया जा सकता है। मन प्रसन्न तब और हो गया जब इस कार्य से जुड़ी बड़ी संस्था डेली डम्प ने उनके प्रयासों की सराहना की और उन्हें इस कार्य के लिये अनुकरणीय व्यक्तियों में शामिल कर लिया।

यही जीतता हुआ विश्वास है। 

105 comments:

  1. अनुकणीय है ,श्रीमती प्रवीण पांडेय बधाई की पात्र हैं .किन्तु नगर के घरों में लोगों को इतनी भी सुविधायें मिलनी मुश्किल हैं .
    हाँ, अपार्टमेंट्स में ऐसी-सामूहिक- योजना होने लगे तो कितना अच्छा हो !

    ReplyDelete
  2. Anonymous2/4/11 05:46

    सबसे पहले....आपकी पत्नी बहुत प्यारी है.उनकी मुस्कान,चेहरे का सलोनापन और बुद्धिमत्ता उन्हें और खूबसूरत बना रहा है.उनके काम की मुक्त कंठ से सराहना करती हूँ.मैं आज ही 'इन्हें' कहूँगी वे ऐसे दो पात्र बनवाए.अरे मेरे यहाँ तो पीछे काफी खाली जमीं पड़ी है जिसमे हमने एक छोटा सा गार्डन बना रखा है.
    यदि हम भी ऐसा कर लेते हैं तो जैविक खाद के लिए परेशान नही होना पडेगा.है ना?
    थेंक्स इस पोस्ट के लिए.मुझे वो पोस्ट ज्यादा अच्छी और सार्थक लगती है जो 'कुछ' दे जाए.अब क्या करू?ऐसिच हूँ मैं तो -हर चीज,हर बात में फायदा ढूँढती हूँ. हा हा हा भाभी को प्यार.

    ReplyDelete
  3. वाह............बहुत खूबसूरत......--क्या?
    -----विचार....कार्य....फ़ूल...निष्पक्ष मन.....और श्रीमती जी...........शुक्रिया..
    --जीतता हुआ विश्वास/आत्मविश्वास....

    ReplyDelete
  4. chalo kisi na kisi bahaane aapne shrimati ji se bhi bhent karaa di !
    shrimati ji is prabandhan karya me aapse bhi badhkar nikli , aap net ka kuda-karkat sambhalte ho par ghar ke kude ka prabandhan vaakai adbhut, prashansniya aur anukarniya hai .
    aapjaisa kaam to ham jaise nithalle bhi kar rahe hain aur apne-aap ko us biradari me zabariya shamil kar lete hain par vastav me asli kaam to mrs. pandey kar rahi hain aur aapse alag pahchan ke saath !
    vaiseab jamkar likho , blogging par bhi khatra nahin rahega !

    ReplyDelete
  5. सच में जीतता विश्वास और अनुकरणीय व्यक्तित्व......बधाई श्रीमती पाण्डेय को .....
    और आभार आपका उनसे मिलवाने के लिए....

    ReplyDelete
  6. Her passion is admirable. Accolades for Shraddha ji !!!

    ReplyDelete
  7. वाह! बहुत खूब! बधाई हो आपकी श्रीमतीजी को! उनकी मुस्कान हमेशा ऐसे ही खिली रहे।

    ReplyDelete
  8. अनुकरणीय।
    पात्र का प्रबंध न हो रहा हो तो तत्काल एक गढ्ढा खोदकर उसमें प्लॉस्टिक के अतिरिक्त शेष कूड़े को डाला जा सकता है। दो-चार दिन में लकड़ी से हिला दिया जाय तो भी काम चल जाय। केचुए निकल आयेंगे और खाद तैयार हो जायेगी।

    ReplyDelete
  9. भाभी जी को प्रणाम!
    हर घर में कम से कम एक महिला भाभी जैसी हो तो ... घर घर फूलों से भर जाएँ।

    ReplyDelete
  10. वाह...सुबह मन प्रसन्न हो गया...
    भाभी जी को मिलने पे बधाई देते हैं :)

    ReplyDelete
  11. मैंने तो ऐसे पदार्थों को गड्ढ़ा कर उसमें डालना प्रारम्भ किया था. आखिर गांव में पड़ने वाला घूरा भी तो हमारे वेस्ट मैनेजमेन्ट का ही तो एक प्राचीन रूप है. आप दोनों लोगों के लिये बधाई....

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर और अनुकरणीय है| आम के आम, गुठली के दाम| सफाई की सफाई, खाद की खाद|

    ReplyDelete
  13. वाके‍ई में यह अनुकरणीय है।

    ReplyDelete
  14. इसी तरह हरे-भरे हों सब गुलशन.

    ReplyDelete

  15. कमाल कर दिया इन्होने ... :-)

    यह अनुकरणीय उदाहरण अगर कुछ और महिलायें शुरू कर दें तो पर्यावरण का कितना भला हो !

    बहरहाल इस महत्वपूर्ण विषय पर जागरूकता फ़ैलाने का श्रेय उन्हें ही जाएगा ! आपके परिवार के बारे में जानकार अच्छा लगा !
    संस्कार बोलते हैं !

    हार्दिक शुभकामनायें श्रद्धा जी को !

    ReplyDelete
  16. प्रेरक पोस्ट।
    ज़िन्दगी बेकार करी रूठने मनाने को
    चाहते तो बहुत कुछ था कर जाने को

    ReplyDelete
  17. श्रीमती पाण्डेय जी तक हमारी बधाई पहुँचाईयेगा सर। रचनात्मक कार्य कर रही हैं।

    ReplyDelete
  18. सर..मैडम ने बहुत ही सराहनीय कदम उठाया है ! मेरे तरफ से उन्हें धन्यवाद कहे ! घरेलु स्तर पर सभी ऐसा करे तो ..बहुत ही अच्छा होगा !

    ReplyDelete
  19. वाह शानदार व प्रेरक प्रयास ....मिला तो हूँ इनसे लेकिन इतने गुण है इस बहन जी में यह आज पता चला आपके इस पोस्ट से.....वास्तव में अच्छी चीजों से खूबसूरती तो कोई भी पैदा करले लेकिन अनुपयोगी चीजों को खूबसूरती से प्रयोग करना ही महान कार्य है....आपका आभार की आपने एक बेहद महत्वपूर्ण कार्य को अपने पोस्ट के जरिये प्रचारित व प्रसारित किया....ऐसे कार्यों को हर किसी के सामने लाने से ऐसे उपयोगी कार्यों का प्रचार और प्रसार होता है .......आज कूड़ा प्रबंधन हमारे देश की प्रमुख समस्या बन चुका है.....मैंने अपने श्रीमती जी को भी आपके इस पोस्ट के जरिये बहन जी (श्रद्धा जी )से मिलवा दिया ,वो भी इस कार्य से प्रभावित हुयी है....और उन्होंने भी शुभकामनायें और बधाई दी है इस महान कार्य के लिए श्रद्धा जी को ...

    ReplyDelete
  20. बस पतियों की यही बात बुरी लगती है कि अपनी पत्‍नी का नाम नहीं लिखेंगे बस श्रीमतीजी कह कर कर्तव्‍य को पूरा कर लिया। अरे भाई श्रद्धा पाण्‍डे को श्रद्धा के साथ लिखो ना। कूडे से खाद बनाने का विचार बहुत अच्‍छा है, कई बार सोचा था और एक बार तो गड्डा भी खुद गया लेकिन आगे कुछ नहीं हो पाया। श्रद्धा के गार्डन के लिए हमारी ढेर सारी शुभकामनाए। प्रवीण जी बुरा तो नहीं मान गए ना, मेरे टोकने का?

    ReplyDelete
  21. भाभीश्री जी की लगन से तैयार सुरभिमय वातावरण...

    तो ये है आपके भी खिले-खिले रहने का राज़़...

    चश्मेबद्दूर...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  22. "पहले ही स्पष्ट कर दूँ कि इस समय मैं किसी दबाव में नहीं हूँ और निष्पक्षमना हो अपने भाव व्यक्त कर रहा हूँ "

    पहले तो मुझे लगा कि हमारे प्रवीण पाण्डेय साहब पर ऐसा कौन सा बाह्य दबाब आ गया, जिसका उन्हें इसतरह खंडन करना पड़ रहा है, लेकिन जब लेख पढ़ते हुए वस्तुस्थिति पता चली तो हम भी सहज हो गए कि इसमें कौन सी नई बात है :)

    खैर, मजाक एक तरफ, मगर निश्चित तौर पर भाभीजी का यह सार्तःक प्रयास सराहनीय है और यही शिक्षा के सर्वोतम उपयोगो में एक उपयोग भी है, मेरी तरफ से बधाई और शुभकामनाये !

    ReplyDelete
  23. भाभी जी का प्रयास प्रशंसनीय है, हमें प्रकृति कितना कुछ देती है इस तरह के सामूहिक प्रयास से हम भी प्रकति के विकास में कुछ ना कुछ दायित्व निभा सकते हैं...

    ReplyDelete
  24. Anonymous2/4/11 10:37

    मिसेज़ पांडेय को मेरी तरफ से शुभकामनाएं! बहुत ही प्रशंसनीय काम है, लोग सिर्फ कहते है और उन्होंने आगे बढकर इसको साकार किया |
    .
    .
    .
    शिल्पा

    ReplyDelete
  25. sikhne....samjhne.....aur karne jaisi
    prerna...

    pranam.

    ReplyDelete
  26. श्रीमती श्रद्धा पाण्डेय जी को हार्दिक बधाई . प्रयास जारी रखे

    ReplyDelete
  27. कचरा प्रबंधन आज की सबसे बड़ी जरुरत और इसका कम्पोस्ट बना लेना सबसे सिंपल काम . मै एक संस्था"परिवर्तन " का सदस्य हूँ जो इस काम में लगी हुई है . श्रीमती पाण्डेय को इस अनुकरणीय कार्य के लिए साधुवाद .

    ReplyDelete
  28. aapki patni kee abhiruchi aur karya ... unko badhaai

    ReplyDelete
  29. भाभी जी और उनकी टीम को बधाई!

    कूड़े से सुगन्ध की यह यात्रा जीवन के और आयामों में भी फैले।

    ReplyDelete
  30. वाह ...बहुत खूब ..एक सार्थक प्रयास और सफलता में खिले फूल ..बहुत-बहुत बधाई के साथ शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete
  31. श्रीमती श्रद्धा पाण्डेय जी को बधाई -उल्लेखनीय यह है कि वे ब्लॉगर नहीं हैं ..
    समय के सार्थक और समाजोपयोगी उपयोग को प्रतिबद्ध हैं!
    उनकी लैंडस्केपिंग के प्रति समर्पित रूचि से तो मैं पहले से ही परिचित था और
    अब उनके इस नए अभियान से अवगत हुआ!
    पुनः बधाई और आपका आभार यह बताने के लिए !

    ReplyDelete
  32. जीतता हुआ विश्‍वास श्रीमती जी के चेहरे पर झलक रहा है। हम ऐसी युक्तियां यहां वहां पढ़ते जरूर रहते हैं लेकिन अपनाते बहुत ही कम लोग हैं। बधाई आपको कि आपके परिवार में इसे अंजाम दिया गया।
    *
    प्रवीण जी एक शिकायत है श्रीमती जी का पक्‍के तौर पर एक नाम भी होगा। अच्‍छा होता कि आप उनका नाम भी देते। वे अपने नाम से जो उनकी असली पहचान है,पुकारे जाने की हकदार हैं।

    ReplyDelete
  33. बहुत ही बढ़िया और अनुकरणीय काम है.
    मैं भी प्रयास करता हूँ अपने छोटे से स्तर पर ही इसे शुरू कर सकूं.
    कचरा कम निकालने की आदत तो विकसित कर ली है. इसके लिए संसाधनों पर कम निर्भरता ज़रूरी है. घर में यथासंभव कागज़ की बचत और प्लास्टिक/पन्नी की कटौती करता हूँ. बायो कचरा अलग ही रखा जाता है.

    ReplyDelete
  34. बधाई हो श्रद्धा जी को! उनकी मुस्कान हमेशा ऐसे ही खिली रहे। इसे कहते हैं ब्यूटी विद ब्रेन्।

    ReplyDelete
  35. मिसेज़ पांडेय को मेरी तरफ से शुभकामनाएं! बहुत ही प्रशंसनीय काम...
    और आभार आपका उनसे मिलवाने के लिए....

    ReplyDelete
  36. मैं किसी दबाव में नहीं हूँ और निष्पक्षमना हो अपने भाव व्यक्त कर रहा हूँ। ..... यह मैं बाहोशो हवास कह रहा हूं और यह कहने के आज्ञा श्रीमती जी से मिल चुकी है :)

    ReplyDelete
  37. कूड़ा-प्रबन्धन बुनियादी मसला है फिर भी किसी का ध्यान नहीं जाता है...श्रीमती पाण्डेय बधाई पात्र हैं उन्होंने न केवल ध्यान दिया अपितु कर के दिखाया और आदर्श प्रस्तुत किया।
    बहुत ही प्रशंसनीय काम...हार्दिक बधाई.

    और उनसे मिलवाने के लिए आपको हार्दिक आभार ....
    (श्रीमती पाण्डेय के नाम से भी तो परिचय कराइए.)

    ReplyDelete
  38. सभी के लिये अनुकरणीय जानकारी । आभार...

    ReplyDelete
  39. कचरा प्रबंधन पर प्रेरणादायी आलेख। पढ़ने के बाद हर आदमी इस कार्य की जरूरत महसूस करेगा और उसमें इस विषय को लेकर जागृति आएगी।

    सरकार सफाई पर जितना खर्च करती है, उसका एक हिस्‍सा कचरा प्रबंधन के बारे में लोगों को जागरूक और प्रोत्‍साहित करने पर व्‍यय करती तो शायद बेहतर नतीजे निकलते।

    ReplyDelete
  40. बहुत अच्छा लगता है अपनी कल्पना को यूँ साकार होते देख कर ....जीत की यह खूबसूरत मुस्कान बस ऐसी ही बनी रहे... श्रद्धा को ढेरों शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  41. ...एक अच्छे कार्य के लिये..--मि पान्डे सचमुच बधाई की हकदार हैं...

    ReplyDelete
  42. बहुत सुन्दर अभियान ... बधाई

    ReplyDelete
  43. amit srivastava2/4/11 19:06

    your smile proves, how she can bend line into curves,she deserves salutations.

    ReplyDelete
  44. पे्ररक और अनुकरणीय पोस्‍ट है। श्रध्‍दाजी का अकूत अभिनन्‍दन। अभिवादन भी।

    विश्‍वास ही जीतता है और हर जीत, विश्‍वास में वृध्दि करती है। शर्त यही है कि 'श्रध्‍दा भाव' से काम किया जाए।

    ReplyDelete
  45. congrats di...great work for natural cause it feels good to see that you are doing so nice thing...we all are proud of you..!!!

    ReplyDelete
  46. अनुकरणीय कार्य है क्योंकि यह सिर्फ प्रयास नहीं है...श्रद्धाजी को बहुत बधाई !

    ...इतने बड़े स्तर पर तो नहीं , मगर पुराने खाली मटकों में सूखी पत्तियां, सब्जियों के छिलके आदि जमा कर कुछ कोशिश मैं भी करती रहती हूँ ...
    इसी प्रकार दो छोटी मटकियाँ सिर्फ चाय पत्ती के लिए बना रखी हैं ...इससे गुलाब के लिए बहुत अच्छी खाद बन जाती है...!

    ReplyDelete
  47. श्रद्धाजी को बहुत बधाई. हर एक को पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए योगदान करना ही पड़ेगा.

    ReplyDelete
  48. नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  49. अनुकरणीय।
    बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  50. प्रवीण भाई ,
    आपकी पोस्ट पढ तो कल ही ली थी सराहने आज आयी हूं ।
    भाभीजी की सोच और कार्य वाकई सराहनीय है ,अपने काम से सन्तुष्टि तो उनकी मुस्कान में स्पष्ट दिख रही है ।उनका नाम भी बता दीजिये ।
    आपकी स्पष्टवादिता भी अच्छी लगी ।
    आभार ....

    ReplyDelete
  51. दिन मैं सूरज गायब हो सकता है

    रोशनी नही

    दिल टू सटकता है

    दोस्ती नही

    आप टिप्पणी करना भूल सकते हो

    हम नही

    हम से टॉस कोई भी जीत सकता है

    पर मैच नही

    चक दे इंडिया हम ही जीत गए

    भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ और आपको एवं आपके परिवार को हिंदी नया साल(नवसंवत्सर२०६८ )की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!

    आपका स्वागत है

    121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया

    ReplyDelete
  52. बहुत बढ़िया...

    हमारे यहाँ तो खैर गार्बेज वैसे भी सरकारी तौर पर तीन अलग अलग तरीके से कलेक्ट होता है:


    काम्पोस्ट- रीसाईकल-अदर गार्बेज.

    अच्छा लगा जानकर इस तरह आर्गेनिक खाद के बनाने के लिए जानकर...अन्य लोगों को यथा संभव अनुपालन करना चाहिये.

    ReplyDelete
  53. अनुकरणीय और प्रेरणादायक कार्य

    ReplyDelete
  54. हमारे यहां तो फंडा बिल्कुल साफ है ...आप कैसी भी कूड़ेबाजी कर लें, सरकार की मोटर सब तरह के कूड़े को एक साथ मिला कर ले जाती है जी

    ReplyDelete
  55. Anonymous3/4/11 20:58

    सृजन, कर्ता को सदा तृप्ति-शिखर पर ले जाता है.
    श्रेष्ठ पवित्र प्रकृति - सेवा.

    ReplyDelete
  56. श्रीमती पाण्डेय जी से जो प्रेरणा मिली सो मिली आपसे भी चउचक प्रेरणा मिल रही है...
    घंटो उन्मुक्त ब्लॉगिंग करने के लिए एकाध ऐसी वार प्रूफ पोस्ट जरूर डालनी चाहिए ब्लॉगरों को!

    ReplyDelete
  57. achchhe karyon kee srahna krna bhi bhut achchha kary hai aap kon sadhuvad
    aap ne meri rchna ko sneh diya bhut 2 hardik aabhar
    dr.vedvyathit@gmail.com

    ReplyDelete
  58. @ प्रतिभा सक्सेना
    आठ-दस मिलकर एक टैंक और पात्र ले सकते हैं, एपार्टमेन्ट में स्थानाभाव के कारण यह और भी प्रभावी है। कूड़े को गाड़ियों से ढोने से कहीं अच्छा है उससे खाद बना लेना।

    @ इंदु पुरी गोस्वामी
    आप उन्हें भाभी न कहें, आपसे छोटी हैं वह। कूड़ा प्रबन्धन में बहुत अधिक कार्य करने की आवश्यकता नहीं है, बस नियमित रहना होता है। खाद बहुत अच्छे स्तर की रहती है।

    @ Archana
    जब कार्य निष्कर्ष देने लगे तो आत्मविश्वास बढ़ जाता है।

    @ संतोष त्रिवेदी
    अपने अपने कार्य में सब व्यस्त रहें, कूड़ा प्रबन्धन हम नहीं कर सकते, ब्लॉगिंग में श्रीमतीजी का मन नहीं लगता है।

    @ डॉ॰ मोनिका शर्मा
    यही विश्वास पल्लवित होता रहे, जीवन में। बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  59. @ ZEAL
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ अनूप शुक्ल
    हम तो अपने को बचाये रहते हैं, कहीं ब्लॉगिंग को कूड़ा समझकर उसकी खाद न बना दें।

    @ देवेन्द्र पाण्डेय
    बंद टैंक का प्रयोग गन्ध से बचने के लिये किया जाता है और प्रक्रिया को शीघ्र करने के लिये किया जाता है।

    @ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
    महिलाओं को यह कार्य स्थानीय स्तर पर करने की पहल करनी होगी और हमें हर सम्भव सहायता करनी होगी।

    @ abhi
    आप दो बार से कह तो रहे हैं पर आ नहीं रहे हैं।

    ReplyDelete
  60. @ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
    गाँव में स्थान की उपलब्धता के कारण यह कार्य स्वतः होता रहता था, नगरों में यह विकट समस्या है।

    @ Patali-The-Village
    सच में, प्रकृति का एक कण भी व्यर्थ नहीं है।

    @ मनोज कुमार
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ राहुल सिंह
    थोड़ा सा ही प्रयास, वह भी स्थानीय स्तर में।

    @ सतीश सक्सेना
    प्रारम्भ में मैं तो बहुत उत्साहित नहीं था, पर लगन देख कर धैर्य रखा। धैर्य अब रंग दिखा रहा है।

    ReplyDelete
  61. @ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
    कुछ कर गुजरने की चाह होनी चाहिये, और क्या है जिन्दगी?

    @ संजय @ मो सम कौन ?
    आपकी बधाईयाँ प्रेषित कर दी हैं, बहुत धन्यवाद आपका।

    @ G.N.SHAW ( B.TECH )
    स्थानीय स्तर पर छोटे पात्र से भी प्रारम्भ किया जा सकता है।

    @ honesty project democracy
    आपकी शुभकामनायें प्रेषित कर दी हैं। यह कार्य नगरों का वातावरण प्राकृतिक बनाने में बहुत उपयोगी होने वाला है।

    @ ajit gupta
    मेरा ध्यान ही नहीं गया था, वैसे जी का सम्बोधन तो लगाया था। अभी चित्र के साथ में नाम लिख दिया है। एक बार प्रयास करें, नियमित रहें, खाद बनेगी।

    ReplyDelete
  62. @ खुशदीप सहगल
    बंगलोर तो वैसे भी पुष्पों का प्रदेश है, उस पर भी घर में और पुष्प। बहुत धन्यवाद आपका।

    @ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
    बहुधा प्रशंसा दबाव में करनी पड़ती है, इस विषय को उससे अलग रखने के लिये खण्डन करना पड़ा। प्रयास छोटा है, स्थानीय है पर प्रसन्नता देता है।

    @ Shah Nawaz
    प्रकृति की विधियों को अपनाना होगा, बहुत अपराध कर चुके हैं, हम अभी तक।

    @ Shilpa
    कभी कभी कर दिखाने से कई शब्द लिखे जाने से बच जाते हैं।

    @ सञ्जय झा
    बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  63. @ गिरधारी खंकरियाल
    मैं भी यही प्रार्थना करूँगा कि यह प्रयास बना रहे।

    @ ashish
    खाद बना देना है निष्कर्ष है, प्रकृति भी वही करती है। अब नगरों में भी प्राकृतिक विधियों को अपनाना पड़ेगा।

    @ रश्मि प्रभा...
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ सम्वेदना के स्वर
    कूड़े के निष्कर्ष भी सुरभिमय हो सकते है, बस लगन चाहिये। बहुत धन्यवाद आपका।

    @ सदा
    बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  64. @ Arvind Mishra
    बताइये, हम ब्लॉगर केवल शब्दों के महल बनाते रहते हैं, कुछ कर दिखाने का अवसर हम ब्लॉगरों को है ही नही, ब्लॉग के माध्यम से। जब आप आये थे, इस अभियान की रूप रेखा बन रही थी।

    @ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ राजेश उत्‍साही
    क्षमा चाहता हूँ कि नाम नहीं दे पाया था, अब दे दिया है। किसी कार्य को बताने से अच्छा है, उसे कर दिखाया जाये।

    @ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
    छोटे स्तर पर ही सही, प्रारम्भ कर दें। आपका तो घर कॉलोनी के परिवेश में है, वहाँ पर निसन्देह सफल रहेगा।

    @ वन्दना
    बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  65. @ neelima sukhija arora
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ cmpershad
    आज्ञा मिलने के बाद ही लिख रहा हूँ।

    @ Dr (Miss) Sharad Singh
    काम को कर दिखाना ही उसकी सार्थकता है, नाम न बता पाना मेरी मूर्खता। नाम लिख दिया है अब।

    @ सुशील बाकलीवाल
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Ashok Pandey
    सरकार बहुत खर्च करती है पर यदि थोड़ा सा सबका सहयोग रहे तो वही कार्य बड़ी सरलता से किया जा सकता है।

    ReplyDelete
  66. @ मीनाक्षी
    बहुत धन्यवाद आपके उत्साहवर्धन का।

    @ Dr. shyam gupta
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Chinmayee
    बहुत धन्यवाद आपका, चिन्मयीजी।

    @ amit srivastava
    मुस्कान के पीछे श्रम की स्मित रेखायें होती हैं।

    @ विष्णु बैरागी
    विश्वास जीतता है, बस धैर्य मांगता है। बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  67. @ prerna
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ वाणी गीत
    सच में, चाय की पत्ती गुलाब के लिये सर्वोत्तम है।

    @ रचना दीक्षित
    पर्यावरण प्राकृतिक विधियों से ही सुरक्षित रखा जा सकता है।

    @ Patali-The-Village
    आपको भी हार्दिक शुभकामनायें।

    @ Avinash Chandra
    बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  68. @ nivedita
    नाम न लिख पाने की भूल हुयी जो अब सुधार ली है। सन्तुष्टि सुखद मुस्कान देती है।

    @ Sawai Singh Rajpurohit
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Udan Tashtari
    सरकारी तौर यदि प्राकृतिक विधियों को अपना लें तो नगरीय जीवन और सुखमय हो जायेगा।

    @ Ratan Singh Shekhawat
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ उन्मुक्त
    बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  69. @ Kajal Kumar
    सरकारी तन्त्र तो हर कूड़े को एक ही तरह से फेकता है।

    @ परावाणी : Aravind Pandey:
    प्रकृति की विधियों को तो अपनाना ही पड़ेगा।

    @ देवेन्द्र पाण्डेय
    यह पोस्ट डालने के बाद ब्लॉगिंग पर प्रहार नहीं किये जायेंगे।

    @ vedvyathit
    अच्छे कार्य मन को प्रसन्नता देते हैं।

    ReplyDelete
  70. प्रकृति के Eco-System से खिलवाड़ करने की परेशानियाँ धीरे-धीरे समझ में आने लगी हैं.जीना है तो कोई न कोई नया इको-सिस्टम बनाना ही होगा.जहाँ चाह वहाँ राह को चरितार्थ करने हेतु शुभ कामनाएं.

    ReplyDelete
  71. अरे वाह!!!! श्रद्धा जी ने तो कमाल कर दिखाया!! बहुत ही बढ़िया. कैसे लोग कहते हैं महिलाएं दमित हैं, महिलाएं शोषित हैं, पता नहीं क्या क्या हैं महिलायें......उन्हें नहीं दिखता कि महिलायें श्रद्धा हैं, महिलायें छवि हैं, और भी पता नहीं क्या क्या हैं महिलायें.......????

    ReplyDelete
  72. बहुत बहुत बधाई श्रद्धा जी को...
    अनुकरणीय है..प्रयास उनका
    उनकी मेहनत यूँ ही नए नए रंग के फूलों में दिखते रहें....

    ReplyDelete
  73. सराहनीय और अनुकरणीय कार्य किया है श्रद्धाजी ने...

    ReplyDelete
  74. यह लगातार दूसरी पोस्ट है जिसमे आपने सराहनीय रिपोर्टिंग की है, वह भी एक खास अंदाज़ में. बढ़िया. श्रध्दाजी जी को बधाई.

    ReplyDelete
  75. Thanks you Praveen pandey ji to visit my blog vivj2000.blogspot.com regularly. Also your blog is really nice and very informative.

    ReplyDelete
  76. @ अरुण कुमार निगम
    प्राकृतिक परिवेश से छेड़छाड़ की है तो समुचित विकल्प भी ढूढ़ने होंगे।

    @ वन्दना अवस्थी दुबे
    यदि निश्चय कर लें तो क्या नहीं कर सकती हैं?

    @ rashmi ravija
    निश्चय ही, पुष्पों के रूप में फल दिखायी पड़ता है।

    @ ***Punam***
    बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  77. @ संतोष पाण्डेय
    मैं तो निष्ठापूर्वक अपना पारिवारिक धर्म निभा रहा हूँ, पता नहीं रिपोर्टिंग कब हो गयी, अब सावधान रहना होगा।

    @ Vivek Jain
    बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  78. आप सभी को नवसंवत्सर तथा नवरात्रि पर्व की मंगलकामनाएं.

    ReplyDelete
  79. वाह लाजबाब - जीतता विश्वास, अनुकरणीय व्यक्तित्व, श्रीमती पाण्डेय और फूल. .....
    आभार आपका उनसे मिलवाने के लिए.

    ReplyDelete
  80. सच में जीतता विश्वास और अनुकरणीय व्यक्तित्व......बधाई श्रीमती पाण्डेय को .....
    और आभार आपका उनसे मिलवाने के लिए....

    ReplyDelete
  81. @ Vijai Mathur
    आपको भी बहुत बहुत बधाई।

    @ shikha varshney
    यह विश्वास पल्लवित होता रहे।

    @ अरुण चन्द्र रॉय
    बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  82. आप दबाब में नहीं या निष्पक्षमना हैं यह तो नहीं कह सकता ,परन्तु जो भी आपने प्रस्तुत किया है
    शानदार ,जानकारीपूर्ण और अनुकरणीय हैं.आपकी श्रीमती जी को सत् सत् नमन. उनकी मोहक मुस्कान से आप दबाब में न आयें यह हो नहीं सकता. नवसंवत्सर पर आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ.

    ReplyDelete
  83. बहुत अनुकरणीय विचार. नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  84. श्रद्धा जी को उन इस सद्कार्य के लिये बहुत बहुत बधाई
    उन्होंने सच अपने घर को फूलों से और अपने प्यार से सुवासित कर रखा है
    आप दोनों को शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  85. @ Rakesh Kumar
    आप दबाव में रहें तब भी खण्डन तो करना ही पड़ेगा।इन प्रयासों की प्रशंसा तो बिना दबाव के भी करनी चाहिये।

    @ Kailash C Sharma
    बहुत धन्यवाद इस उत्साहवर्धन का।

    @ इस्मत ज़ैदी
    सुरभिमय वातावरण और लगन की महत्ता, दोनों ही मिल गये।

    ReplyDelete
  86. अले वाह, आंटी जी ने तो कमाल कर दिया...अब तो हम भी कुछ सीखेंगें.

    ReplyDelete
  87. @ Akshita (Pakhi)
    आपको भी सीखना चाहिये, बहुत अच्छा रहेगा आपके लिये।

    ReplyDelete
  88. अनुकरणीय और प्रशंसनीय उद्यम।

    ReplyDelete
  89. @ mahendra verma
    बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  90. वाह प्रवीन जी बहुत बढ़िया काम कर रही हैं श्रध्दा जी -
    आप दोनों को मेरी बधाई .....!
    आपकी पोस्ट भी बहुत ही बढ़िया है -
    प्रेरणादायक है

    ReplyDelete
  91. @ anupama's sukrity !
    बहुत धन्यवाद आपका, यह विश्वास सदा जीतता रहे।

    ReplyDelete
  92. bahut khub!...sarahniye kaam kar rahi hai Mrs. Praveen pande ji

    ReplyDelete
  93. @ zindagi-uniquewoman.blogspot.com
    बहुत धन्यवाद आपके उत्साहवर्धन का।

    ReplyDelete
  94. बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने....धन्यवाद।

    ReplyDelete
  95. @ Er. सत्यम शिवम
    उपयोग में लाने से यही प्रयास आनन्द देते हैं।

    ReplyDelete
  96. कथनी वाले तो बहुत मिले है लेकिन करनी वालो से आज परिचय हो गया | इस अभियान को जारी रखिये

    ReplyDelete
  97. @ नरेश सिह राठौड़
    अभियान को बनाये रखना विश्वास का स्थायीकरण है।

    ReplyDelete
  98. @ varsha
    बहुत धन्यवाद आपका।

    ReplyDelete
  99. आदरणीय प्रवीण जी नमस्कार
    श्रद्धा जी के इस कार्य के बारे में अंजू को बताया। उन्होंने बधाई भेजी है और आपका हार्दिक धन्यवाद इस पोस्ट के लिये।
    मेरा घर बहुत छोटा है फिर भी गमले आदि में छोटे पौधे लगाने के लिये, अंजू ने कुछ जानकारी चाही है। बतायेंगे तो आभार होगा।
    टैंक या मंथन मिट्टी के हैं, लकडी के हैं या प्लास्टिक के भी काम में लिये जा सकते हैं। क्या छोटे साईज जैसे कनस्तर को भी इस कार्य के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
    एक्टिवेटर जैव रसायन का क्या नाम है, बाजार से खरीदने के लिये।
    लकडी का बुरादा और रसायन किस अनुपात में डाला जाये।
    antar.sohil@gmail.com
    प्रणाम

    ReplyDelete
  100. Anonymous26/7/11 19:40

    Mama and Mami, ye message hum hindi mein likhna chaahte the lekin humko pata nahin ki apne laptop pe devnagri script kaise laayein. Isliye ab phonetic hindi mein hi padhiye. Aapka blog padh kar bahut achcha laga. Bharat ke baahar logon mein bahut jaagrukta hai safai ko le ke. Log ek baar apna ghar bhale hi ganda rakh lein lekin common spaces (parks, roads etc) mein kachra fenkne ko bahut hi galat maana jaata hai. Yahaan log teen dabbo mein kachra daalte hain - food waste, recyclable waste (paper, glass, plastic) aur general waste. Inko uthaane ke liye teen alag gaadiyan aati hain. Isse jin log ke ghar chhote hain wo bhi apna kachra khud hi alag alag karke paryawaran ki taraf apna daayitva poora kar paate hain. Bharat mein log apna kitchen, poojaghar aur ghar chamka ke rakhte hain lekin apne ghar se nikle kachre ki koi accountability nahin hai. Apne ghar ke baahar ki safaai ko bahut hi neech kaam maana jaata hai aur jaisa ki aapne kaha log moonh sikod ke bach kar nikalna behtar samajhte hain. Aaplogon ke is initiative se bahut logon ko prerna mili hogi. In fact, mami ne to ek example set kar diya ki apne ghar se nikalne waale kachre se deal karne mein koi sharam nahin hai, balki shaan hai. Kachre ke prati logon ki soch ko badal daalne ki kshamta rakhne waali uplabdhi par aapko badhaai.
    - Sachee

    ReplyDelete
  101. इतनी महत्त्वपूर्ण पोस्ट आज पढ़ने का सौभाग्य मिला .... श्रद्धा जी नि: संदेह प्रशंसनीय प्रयास कर रही हैं ...

    ReplyDelete