एक बार शतरंज खेलते समय यह विचार उभरा कि यदि वास्तविक जीवन के समकक्ष इस खेल में भी चमचों का स्थान होता तो उन्हें कहाँ बिठाया जाता, उनकी क्या शक्तियाँ होतीं और उनकी चाल क्या होती? बड़ा ही सहज प्रश्न है और इस तथ्य को खेल के आविष्कारकों ने सोचा भी नहीं। संभवतः उस समय किसी भी क्षेत्र में इतने चमचे न होते होंगे और यदि होते भी होंगे तो उनका प्रभाव क्षेत्र इतना व्यापक न होता होगा। धीरे धीरे विस्तार इतना व्यापक हो गया है कि बिना उनके किसी भी क्षेत्र में ज्ञान का प्रादुर्भाव होना संभव ही नहीं। बिना उनके कुछ भी होना आश्चर्यवत ही देखा जाता है।
राजा को शह लगते ही सारे चमचों को बोर्ड से हटा लेने का प्रावधान हो, बचाव की शक्ति प्रमुख मोहरों को ही रहे। मात बचाने के प्रयास में निकट आये सारे मोहरों को बचाव होते ही अपना स्थान छोड़ना होगा और चमचों को उनका स्थान समुचित और सादर सौंपना होगा। शान्ति के समय में राजा से निकटता का अधिकार केवल चमचों को ही हो। वास्तविक जीवन परिस्थितियों को शतरंज में उतारने के प्रयास में शतरंज का खेल गूढ़तम हो जायेगा, आनन्द आयेगा और कुछ सीखने को मिलेगा।
चमचों ने पूरा सामाजिक परिदृश्य बदल दिया है। अधिकारों के प्रवाह का नियन्त्रण अब सीधा नहीं रह गया है, जगह जगह पर बाँध बन गये हैं, जितनी बड़ी नदी, उतने बड़े बाँध, प्रवाह रोक कर बिजली पैदा की जा रही है, बेहिसाब। बाँधों के आसपास के खेत लहलहा रहे हैं। दूर क्षेत्रों में न बिजली पहुँची है और न ही पानी, सब बाँधों ने रोक लिया है।
शतरंज और समाज तो निश्चय नहीं कर पा रहे हैं कि चमचों को कहाँ स्थान मिले पर चमचों को अपने स्थान के बारे में कोई संशय नहीं है। अपने स्वामी को अपने हृदय में बसाये कहीं भी किसी के भी विरुद्ध गरल वमन करने में सक्षम चमचे, उस हर समय वहाँ पाये जाते हैं, जहाँ जहाँ स्वामी पर कोई आँच सी संभावना दिखती है। पहले तो कुछ भी बोल देते हैं और बिना विषय के भी एक सदी पहले के प्रसंगों का संदर्भ दे देते हैं। संवाद स्पष्ट सा है, अर्थ आपको समझ आये न आये, भावनाओं को समझो।
लोकतन्त्र के किसी मनीषी ने इस प्रजाति के बारे में कल्पना तक भी नहीं की होगी और अब स्थिति यह आ गयी है कि इन्हें लोकतन्त्र का पाँचवा स्तम्भ समझा जा रहा है।
क्या कहा, क्या ऐसा नहीं है, ध्यान से देखना होगा।
पास जाकर ध्यान से अवलोकन होता है, स्तम्भ और आधार के बीच हवा है।
अरे, यह स्तम्भ तो लटका हुआ है लोकतन्त्र में, यही इसका स्थान और स्वरूप है।
और चमचों की बीच खेल में पाला बदलने वाली बात को भी ध्यान में रखना पडेगा। पता चला राजा सोच रहा है कि आराम के चमचों से घिरा मजे में है लेकिन पलक झपकते ही शह और मात हो गयी (राजा शब्द पर विशेष ध्यान न दिया जाये ;) )
ReplyDeleteबहुत अच्छे,परंतु एक बात यह भी दीगर है कि इस प्रजाति के लोग बहुत तीक्ष्ण बुद्धि के होते हैं ,ये लोग वही बोलते हैं जो इनका हाकिम सुनना चाहता है ,और तो और ये between the lines पढ़ भी लेते हैं और सुन भी लेते हैं और कभी कभी ऐसा feel good कराते हैं कि पूरी की पूरी सरकार ढह जाती है । बहुत अच्छा प्रसंग छेड़ा है आपने ,सामयिक भी और कण कण में व्याप्त भी ।अच्छा अगर कोई चमचा आपका लेख पढ़ता तब टिप्पणी कुछ यूं देता "एकदम लल्लन टाप लिखा है साहिब आपने ,पढने वाले बिलबिला जाएंगे साहिब"।
ReplyDeleteलोकतन्त्र के किसी मनीषी ने इस प्रजाति के बारे में कल्पना तक भी नहीं की होगी और अब स्थिति यह आ गयी है कि इन्हें लोकतन्त्र का पाँचवा स्तम्भ समझा जा रहा है।
ReplyDeleteNi:shank!!Bada sashakt aalekh hai!
चमचों का महत्व स्वीकारने के लिये हमारी तरफ़ से आभार स्वीकार करें। चमचागिरी वह चाबी है जिससे हर ताला खुल सकता है। हमने भी जबसे जीवन में इस तथ्य को आत्मसात किया है, ’मौजां ही मौजां’ हो रही हैं।
ReplyDeleteबहुत गहन चमचा चिन्तन...आपको तो भारत सरकार के थिंक टैंक का मनोनीत सदस्य बना देना चाहिये. :)
ReplyDeleteहोली मुबारक: अतः बुरा न मानो!!
लोकतंत्र में ही नहीं बल्कि चमचे तो प्रबंधन में भी अपना पूरा दखल रखते है | राजनैतिक पार्टी हो,सरकारी,अर्धसरकारी या निजी कार्यालय हो,कारखाना हो चमचों का दबदबा हर कहीं है |
ReplyDeleteरोचक, संदर्भों से जोड़ कर पढ़ने में और भी सार्थक.
ReplyDeleteलोकतंत्र का पांचवा स्तंभ ,वाह! क्या बात है .
ReplyDeleteहोली की आपको और सभी ब्लोगर जन को हार्दिक शुभ कामनाएँ .
वाह वाह...रात भर दोस्त के साथ जगा रहा और ऐसे ही कुछ चमचों की बातें करता रहा(कॉलेज के दिनों की) और अभी सुबह सुबह एक 'टाईट', 'मस्त' पोस्ट :) :)
ReplyDeleteचमचे तो चमचे हैं जी, जहाँ भगोना होगा पहुँच जाएंगे, माल हिलाने।
ReplyDeleteऐसा अत्युत्तम चिंतन बगैर चमचा बने संभव?
ReplyDelete:-)
चमचों के साथ ये बड़ी नाइंसाफ़ी है...बरसों तक आकाओं की शान में कसीदे पढ़ते पढ़ते इनकी जीभें गज भर की होकर बाहर लटकने लगती हैं, फिर भी इनकी प्रोन्नति कड़छों के रूप में नहीं की जाती...
ReplyDeleteतन रंग लो जी आज मन रंग लो,
तन रंग लो,
खेलो,खेलो उमंग भरे रंग,
प्यार के ले लो...
खुशियों के रंगों से आपकी होली सराबोर रहे...
जय हिंद...
चाटुकारिता अब हर तंत्र का महतवपूर्ण अंग है , ये पांचवा स्तम्भ हो ना हो लेकिन चाटुकार लोग अच्छे खासे स्तम्भ को गिराने का माद्दा रखते है . .
ReplyDelete"राजा के मोहरे मारने का अधिकार चमचों का होता है ..."
ReplyDeleteबिलकुल सही याद दिलाया आपने ..
आपका शतरंजी बोर्ड और इसमें बैठे अद्रश्य चमचे पसंद आये ! आज आपने, अपने चमचों की होली खराब कर दी है आज उन्हें नींद नहीं आएगी :-) कहीं ऐसा भी राजा होता है ??
यह फोटो बड़ा प्यारा लगाया है, ऐसे सुदर्शन और मख्खनी चेहरे ....
सुभान अल्लाह ..
खुदा महफूज़ रक्खे हर बला से हर बला से...
:-)
कर्छों को भी समायोजित करने का कोई उपाय सुझा देते तो ..:)
ReplyDeleteआपको होली की बहुत बहुत शुभकामनायें !
निश्चय ही काबिल लोग अब अपने उन्नत दिमाग का उपयोग चमचागिरी के लिए कर रहें हैं.......ये किसी भी सभ्य समाज के लिए खतरनाक है.......लेकिन इसके मूल कारण को देखें तो आपको पता चलेगा की ज्यों-ज्यों सत्य,न्याय और ईमानदारी की कब्र खुदी है चमचों का विकाश उसी तेजी से हुआ है........बरे अरबपति और भ्रष्ट मंत्री के गठजोर से इस देश में एक ऐसे धनपशु समाज का प्रभावी समाज बन चुका है की उसे चमचों के रूप में पूरी फौज की जरूरत परती है ,आज PR कम्पनी ,इवेंट मेनेजमेंट ,लाबीईस्ट इत्यादि चमचों के फौज के उन्नत नाम हैं.......इसमें बरे-बरे पत्रकार,राजनेता,अधिकारी व समाजसेवी भी शामिल होते हैं.......
ReplyDeleteकिसी की ईमानदारी व संतुलित कार्यप्रणाली,व्यक्तिगत गुणवत्ता और उसकी इंसानी सहायता के सोच को देखकर तारीफ या आदर में हार्दिक आभार प्रगट करना चमचागिरी है या नहीं इस विषय में मैं भी असमंजस की स्थिति में हूँ ....? क्योकि ऐसा करने से मैं भी अपने आपको नहीं रोक पाता हूँ....
बन्धु चमचा राखिये, बिन चमचा सब सून
ReplyDeleteचमचा गर नहिं मिल सके, ले लें इक स्पून
ले लें इक स्पून, काम जो चमचा आवे
लगा लीजिये शर्त, नहीं दूजा कर पावे
कह दानव कविराय, कढ़ाई थाली कढ़छा
रह जाते सब नीचे, मुंह तक जाता चमचा..
और ऐसे राजा जो चमचों के साथ खेलेंगे तो खेल में चमचों की चलती से राजा की मात HOGI!!
ReplyDeleteहमें तो वर्तमान परिदृष्य में सिवाय इन चमचों के कुछ दिखाई ही नही दे रहा है. अगर कोई बुरा ना माने तो मुझे यह कहने में कोई शर्म नही आयेगी कि हमारे तथाकथित चार स्तंभ तो कभी के ढह गये और अब हम सिर्फ़ इस बचे हुये पांचवें चमचा स्तंभ के सहारे ही जिंदा हैं.
ReplyDeleteहोली पर्व की घणी रामराम.
और ऐसे राजा जो चमचों के साथ खेलेंगे तो खेल में चमचों की चलती से राजा की मात होगी!!
ReplyDeleteभजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
ReplyDeleteमन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥
होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...होली की शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteआप को होली की हार्दिक शुभकामनाएं । ठाकुरजी श्रीराधामुकुंदबिहारी आप के जीवन में अपनी कृपा का रंग हमेशा बरसाते रहें।
ReplyDeleteभईया,चमचे बिना कोई स्थान पाए अपना काम बखूबी अंजाम देते हैं,तभी वो डिमांड में हैं !
ReplyDeleteबहरहाल ,आप को होली की ज़बरदस्त शुभकामनाएँ !
ज़बरदस्त चमचा विश्लेषण है...... कई सारे पक्ष सामने रहे दिए आपने इस पांचवे स्तंभ के ......रंग पर्व की मंगलकामनाएं
ReplyDeleteहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
ReplyDeleteआइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।
कलयुग यानि चमचायुग
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाये
आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteसुन्दर...पेश है एक त्रिपदा अगीत...
ReplyDeleteचमचों के मजे देख हमने,
आस्था को किनारे रख दिया;
दिया क्यों जलायें हमीं भला ॥
.
ReplyDelete.
.
चमचा विहीन राजा अकल्पनीय है, सो, एवरी 'राजा' गेट्स द् 'चमचा्ज' ही डिजर्वस्... There is no exception to this rule !
...
चमचों की प्रजाति अति प्राचीन है. आपने उनकी इतनी छवियाँ दे कर होली के रंग भर दिए हैं. होली की बधाइयाँ.
ReplyDeleteचम्चातंत्र के शोध के लिए बधाई पूरा साहित्य विकसित किया जा सकता है . होली की शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपको होली की शुभकामनायें .....हैप्पी होली....
ReplyDeleteशतरंज और चमचों का समीकरण दिलचस्प लगा...
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं !
chamcha binaa sab suna :)
ReplyDeletehappy Holi .
chamchon ka sthaan vishisht hai... holi ki shubhkamnayen
ReplyDeleteकितनी बदनसीब थे उस समय के राजा, जब शतरंज का अविष्कार हुआ था. उस समय चमचे नहीं हुआ करते थे (और आज राजा नहीं होते, बस ढक्कन होते हैं).
ReplyDeleteचकित करता चमचा चिंतन।
ReplyDeleteहोली की अशेष शुभकामनाएं।
maan gaye ustad kya kataksh kiya hai....maja aa gaya padh ke....why dont u send this to some newspaper editors..but ek problem hai wahan bhi to chamche honge :)
ReplyDeleteभूल जा झूठी दुनियादारी के रंग....
ReplyDeleteहोली की रंगीन मस्ती, दारू, भंग के संग...
ऐसी बरसे की वो 'बाबा' भी रह जाए दंग..
होली की शुभकामनाएं.
आपको होली की शुभकामनायें .....happy holi
ReplyDeleteपर चमचो के बिना इस कलयुग में निभेगा कैसे ? यही पाचव स्तम्भ तो पे तो पूरी राजनीती का भर रहाता है .....
ReplyDeleteआपको होली कि शुभकामनाये ......
बहुत बढिया ...
ReplyDeleteहोली की शुभकामनायें.....
चमचे के बिना राजनीती की बिसात तो अधूरी ही रहती है..... होली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteरंगों के पावन पर्व होली के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ...
ReplyDeleteशतरंज और चमचों का समीकरण दिलचस्प लगा|
ReplyDeleteहोली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
१.हर चमचे की तमन्ना होती है कि वह भी आगे बढ़े, राजा बने। शतरंज के खेल में भी प्यादे आगे बढ़ते हुये राजा बनते हैं। अत: आपका यह चिंतन सही नहीं लगता कि शतरंज के खेल में चमचे नहीं होते।
ReplyDelete२. चमचे तो हमेशा रहते होंगे लेकिन यह राजा पर है कि वह चमचों पर कितना आश्रित रहता है। आमतौर पर चमचों की मात्रा और गुणात्मकता राजा की क्षमताओं और काबिलियत के व्य्त्कमानुपाती होती है।
चमचे वास्तविक परिस्थितियों व परिवेश में इतना भ्रम व आक्षेप उत्पन्न कर देते हैं कि सच का सूर्य कई बार इस भ्रम के काले मेघ के पीछे छुप जाता है और कुछ का कुछ निर्णय हो जाता है जो सबसे दुर्भाग्य-पूर्ण स्थिति होती है। अति सुन्दर लेख हेतु अभिनंदन।
ReplyDeleteहा हा हा... गज़ब का लिखा है... हाय राम चमचो का है ज़माना... :-)
ReplyDeleteआपको परिवार सहित होली की बहुत-बहुत मुबारकबाद... हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रवीण पाण्डेय जी आपको और आपके परिवार को होली की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं.
आप को सपरिवार होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..होली की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteजो चमचों का मोहताज हो , उसे राजा नहीं कहते।
ReplyDeleteपांचवां स्तम्भ की कोई जगह निश्चित नहीं होती |
ReplyDeleteमुझे लगता है कि शतरंज में जो कैस्लिंग होती है, वह चमचागिरी ही है। कुछ खास गोटियों से घिरा राजा तब अपने को सुरक्षित महसूस करता है, और चमचा रूपी क़श्ती उसका घर ले लेता है।
ReplyDeleteहैप्पी होली।
बहुत सही कहा आपने...
ReplyDeleteयदि यह संशोधन हो सके तो शतरंज का खेल और भी मजेदार हो जाएगा...!!
केवल राजा को ही चमचों की सुविधा क्यों हो...भैया,मंत्री बेचारे को क्यों छोड़ दिया..
और सेनापति ने क्या गुस्ताखी कर डाली जो उसे चमचे न मिलेंगे....चमचों की तो सभी
को ज़रुरत होती है...हाँ,पद के अनुसार उनके साइज़ फर्क हो सकते है...!!
यह रिवाज़ तो सदियों से चला आ रहा है हाँ,आजकल उनका नामकरण चमचा हो गया है...वैसे चमचे होते बड़े सुन्दर-सुन्दर हैं,कुछ सोने के,कुछ चांदी के,कुछ पीतल के,स्टील
और लोहे के भी मिलने लगे हैं,बस पदवी का फर्क होने से उनके आकार,प्रकार और स्वभाव में थोडा अंतर आ जाता है...किसी-किसी को देख कर हमें भी कोफ़्त होती है कि काश ये चमचा हमारे भी पास होता ...राजनीति हो,सरकारी कार्यालय,निजी कार्यालय हो,सभी जगह चमचों की महत्ता है और तो और हर परिवार में भी ऐसे ही दो-एक चमचों की जरूरत होती है,इधर की बात उधर करने के लिए...!!
वैसे सफल इंसान वही मन जाता है जिसके आगे-पीछे ढेर सारे चमचे हों....!!
चलिए...हम सब चमचा खोजें.......!!
बहुत सुन्दर लेख.....!
सुन्दर कटाक्ष भी.....!!
होली की देर सारी शुभकामनाएं !!
मुझे लगता है ,प्राचीन काल में भक्त हुआ करते थे ,मध्य काल में भगत और उनकी भागवत चर्चा आज के चमचों में समा गई !
ReplyDeleteहोली की आपको और सभी ब्लोगर जन को हार्दिक शुभ कामनाएँ .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
होली में चेहरा हुआ, नीला, पीला-लाल।
श्यामल-गोरे गाल भी, हो गये लालम-लाल।१।
महके-चहके अंग हैं, उलझे-उलझे बाल।
होली के त्यौहार पर, बहकी-बहकी चाल।२।
हुलियारे करतें फिरें, चारों ओर धमाल।
होली के इस दिवस पर, हो न कोई बबाल।३।
कीचड़-कालिख छोड़कर, खेलो रंग-गुलाल।
टेसू से महका हुआ, रंग बसन्ती डाल।४।
--
रंगों के पर्व होली की सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
रंगों की चलाई है हमने पिचकारी
ReplyDeleteरहे ने कोई झोली खाली
हमने हर झोली रंगने की
आज है कसम खाली
होली की रंग भरी शुभकामनाएँ
आदरणीय प्रवीण पाण्डेय जी
ReplyDeleteरंग भरा स्नेह भरा अभिवादन !
चमचों का स्थान … ! अब शतरंज खेलने बैठते ही आपकी याद अवश्य आया करेगी :)
बहुत रोचक और मनभावन है आपका आलेख … पढ़ कर आनन्द आ गया । आपको पढ़ना हमेशा ही मुझे अच्छा लगता है । आपके रूप भी विविध हैं … क्या बात है !
आपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई !
♥ होली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !♥
होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
होली पर चमचों के बारे में सोच कर बडा अच्छा काम किया किंतु गुजिया तो हात से ही खािये चमचों से नही । अच्छा हुआ शतरंज पर चमटों का स्थान ना हुआ
ReplyDeleteवैसे भी तो सभी हाथी घोडे ऊँट वजीर चमचे ही होते हैं न हुए तो.....।
होली की शुभकामना....
ReplyDeleteकुछ को चमचा बने रहने में आनंद आता है तो किसी को बनाने में ...लेकिन जो राजा चमचों से घिरा हो उसका पतन होना लाज़मी है ...
ReplyDeleteहोली की शुभकामनायें
वाह ... क्या बात ज़ाई ...बहुत सही कहा है आपने ... शतरंज के इस खेल को नया दृष्टिकोण दिया है ......
ReplyDeleteआपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....
चमचों से याद आ गयी फिल्म चाची 420 में ओम पुरी के किरदार की. वह हर बात में अपने मोबाइल की सौगंध खाता है..
ReplyDeleteहर जगह यत्र तत्र सर्वत्र व्याप्त हैं चमचे..
आपको पूरे परिवार सहित होली की बहुत-बहुत शूभकामनाएँ.......jai baba banaras....
ReplyDeleteसमय मिले तो ये पोस्ट जरूर देखें.
ReplyDelete"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"
लिक http://sawaisinghrajprohit.blogspot.com/2011/03/blog-post.html
आपका कीमती सुझाव और मार्गदर्शन अगली पोस्ट को और अच्छा बनाने में मेरी मदद करेंगे! धन्यवाद…..
आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteजय हो।
ReplyDeleteसदा आनंदा रहैं यहि द्वारे!
अरे भैया, चाल चलने के पहले ही राजा की मौत हो जाती :) चेक :)
ReplyDeleteक्या बात है.
ReplyDeleteआपको होली की रंगारंग शुभकामनाये!!
जहाँ भी नेतृत्व कमजोर होगा, वहां चमचों का बोलबाला होगा. जहाँ भी खीर जैसे व्यंजन होंगे, वहां चम्मच की आवश्यकता पड़ेगी ही. चमचो से बचना तभी संभव है जब खीर खाने का लोभ संवरण हो सके.
ReplyDeleteचमचों के कारण होने वाली दुर्दशा के सैकड़ों उदहारण है मगर ये वो लत है जो छूटती नहीं ...
ReplyDeleteपर्व की बहुत शुभकामनायें !
आपकी यह पोस्ट पढ कर, अपने गॉंव के लुहार के यहॉं का, बरसों पहले का एक चित्र सामने आ गया। लोहे के भरपूर गोलाई वाले एक टुकडे को काट रहा था और काटते समय, आरी पर बार-बार ठण्डा पानी डाल रहा था। पूछा तो उसने समझाया - आरी के लागातर चलने से गर्मी पैदा होती है जिससे काटने में तकलीफ होती है। इस तकलीफ से बचने के लिए वह ठण्डा पानी डाल रहा है। याने, गर्मी से बचते हुए या गर्मी उपजने की क्रिया को षून्य प्राय: करते हुए वह लोहे क पिण्ड को काट रहा था।
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट बिलकुल वैसी ही लगी - पूरे ठण्डेपन से लोहे को काट देना। अद्भुत व्यंजनावाली पोस्ट है यह।
एक बहुत ही जोरदार वाक्य दिया है आपे। बिलकुल किसी नीतिकथा के निष्कर्ष की तहर - ''नियम तब यह भी बनेगा कि वह स्थान बनाने के लिये अपने राजा के मोहरे मारने का अधिकार चमचों को रहेगा।''
पाण्डेय जी, चमचे तो आदिकाल से अपनी होली खेलते रहे हैं। इनकी महिमा भी अनन्त है। इनका तो हमेशा ही बोलबाला रहा है। बोचारे रहीम कवि इस प्रजाति से सबसे दुखी रहे। शतरंज के संदर्भ में इसकी तुलना उस प्यादे से किया है, जो प्रमोट होकर फ़रजी (वज़ीर) बन जाता है-
ReplyDelete"प्यादा से फ़रजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय।"
आपको परिवार सहित होली की हार्दिक बधाई और मंगलमयी शुभकामनाएँ।
sunder vyang.
ReplyDeleteजो शतरंज खेल रहे हैं वे चमचे ही तो खेल रहे हैं। उन्हीं के हाथ में है राजा और रानी।
ReplyDeleteजो शतरंज खेल रहे हैं वे चमचे ही तो खेल रहे हैं। उन्हीं के हाथ में है राजा और रानी।
ReplyDeleteजो शतरंज खेल रहे हैं वे चमचे ही तो खेल रहे हैं। उन्हीं के हाथ में है राजा और रानी।
ReplyDeletekya khoob udhere hain 'chamchon' ko..
ReplyDeletefagunaste.
@ Neeraj Rohilla
ReplyDeleteपाला बदलते समय नहीं लगता है इन चमचों को, विपत्ति आते ही सहज भाव से कट लेते हैं और दूसरी जगह व्यस्त होते हुये से प्रतीत होते हैं। राजा शब्द को असंदर्भों में न लिया जाय।
@ amit-nivedita
अपनी बड़ाई सुनना तो सबको अच्छा लगता है पर चाटुकारों की तो समझ सबको हो, फील गुड करवाते करवाते हम लोगों को अन्दर से खोखला कर देते हैं ये श्रीमान। देश का भी यही हाल है।
@ kshama
इतना महत्वपूर्ण हो गया है यह स्तम्भ कि और स्तम्भ इसके ही सहारे में जी रहे हैं।
@ संजय @ मो सम कौन ?
कभी कभी ये ताले नहीं, जी के जंजाले हो जाते हैं, इनको साथ ढोते रहना विवशता होने लगती है।
@ Udan Tashtari
हमारा थिंक टैंक तो रह रहकर लीक करता रहता है।
@ Ratan Singh Shekhawat
ReplyDeleteइन्ही का दबदबा है,
हमारी यही सजा है।
@ Rahul Singh
बहुत धन्यवाद आपका
@ Rakesh Kumar
कभी कभी लगता है कि केवल इसी सहारे टिका है लोकतन्त्र।
@ abhi
आपकी तरंगें हमें भी मिल जाती हैं। कुछ पोस्ट अवश्य लिखें चमचा चर्चा पर।
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
भगोना का अभिन्न अंग बन गये हैं चमचा, छूटते ही नहीं।
@ प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
ReplyDeleteस्वयं तो नहीं पर उनका सत्संग तो मिलता ही रहता है।
@ खुशदीप सहगल
यह सच कहा आपने, जो भी हो ये रहते चमचे ही हैं, कभी स्वतन्त्र नहीं हो पाते हैं।
@ ashish
देखिये न कितने स्तम्भ ढह गये हैं, इनकी महत्कृपा से।
@ सतीश सक्सेना
जो बेचारा कार्य करता है, उसे भी हल्के से निपटा देते हैं, ये चमचे। होली की रंगारंग शुभकामनायें आपको।
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
खुमारी खुरचने का कार्य भी किसी को करना ही पड़ेगा।
@ honesty project democracy
ReplyDeleteहाँ, जब सक्षमजन भी यह राह अपना लें तो समाज के लिये वह भयानक हो जाता है। चमचागिरी ने सार्थक प्रशंसा को भी दूषित कर दिया है।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
सही बात कही, कितना प्रयास करते हैं और लोग, मजा उड़ाता है चमचा।
@ Murari Pareek
तभी देखिये न कि राजा की क्या हालत हो गयी है।
@ ताऊ रामपुरिया
लग यही रहा कि यही एकल स्तंभ सभी तन्त्रों को सम्हाले हुये है।
@ जी.के. अवधिया
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ सदा
ReplyDeleteआपको भी होली की शुभकामनायें।
@ अमित शर्मा
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ संतोष त्रिवेदी
यही तो प्रयास है कि उनकी अदृश्यता को सबके सामने लाया जाये।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
पक्ष विपक्ष सभी टिके हैं, इस स्तम्भ पर।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Deepak Saini
ReplyDeleteकलियुग की गति का कारण यह रहेगा, यह शास्त्र भी निश्चय रूप से नहीं बता पाये थे।
@ रवीन्द्र प्रभात
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Dr. shyam gupta
हमारा तो दिल जलता है, इनके कारनामें देख।
@ प्रवीण शाह
तब उनका निर्वाण वाक्य उनके चमचे ही लिखते हैं।
@ Bhushan
प्राचीन तो हो पर गौरव के नये आयाम अभी छू पायी है।
@ गिरधारी खंकरियाल
ReplyDeleteशोध करें, प्रतिशोध करें,
हँस टाले या फिर क्रोध करें।
@ चैतन्य शर्मा
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Dr (Miss) Sharad Singh
राजनीति दोनों में भीतर तक समाहित है।
@ shikha varshney
दिल्ली हो या पूना,
चमचा बिन सब सूना।
@ रश्मि प्रभा...
अतिविशिष्टों के विशिष्टजन हैं ये।
@ Kajal Kumar
ReplyDeleteचमचों से ढके जाने पर ही ढक्कन हो गये हैं।
@ mahendra verma
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Gopal Mishra
हजम हो जाये तो भेज दें, पर क्या करें बहुत कमजोर होती है चमचों की पाचन शक्ति।
@ दीपक बाबा
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Chinmayee
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Coral
ReplyDeleteबिना इनके निभता भी नहीं और कुछ हिलता भी नहीं।
@ nivedita
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ उपेन्द्र ' उपेन '
और उनके संग ही राजनीति की बिसात मंजूरी है, नहीं तो मजबूरी है।
@ महेन्द्र मिश्र
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Patali-The-Village
समीकरण बड़े गहन धनात्मक पक्ष समेटे है आजकल।
@ अनूप शुक्ल
ReplyDeleteपर आजकल तो एक बार चमचा बन गया, कुछ भी बन जाये, राजा नहीं समझा जाता है। चमचों का भार राजा की गति को बाधित करता है।
@ देवेन्द्र
सच तो रहता ही नहीं है, तब सत्य इनके वाक्यों में आकर बस जाता है, जो ये बोलें, वही सत्य है।
@ Shah Nawaz
हाय राम चमचो का है ज़माना
बिन उनके बजे न कोई गाना
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ संजय भास्कर
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ राज भाटिय़ा
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Kailash C Sharma
ReplyDeleteआपको भी होली की शुभकामनायें।
@ ZEAL
आजकल तो राजा को भी राजा नहीं मानते।
@ शोभना चौरे
वह तो मौका देखकर अपनी जगह बना लेता है।
@ मनोज कुमार
इसे आदर कहते हैं, राजा के आते ही सब स्थान दे देते हैं, पर चमचों की बात ही निराली है।
@ ***Punam***
वाह, सबके अपने चमचे और चमचागत सम्बन्ध। तभी तो इतनी जटिलतायें आती जा रही हैं जीवन में।
@ प्रतिभा सक्सेना
ReplyDeleteभक्तों ने कभी अपने आराध्य को पटखनी नहीं दिलायी, चमचे वह भी करने में सक्षम हैं।
@ अरुण चन्द्र रॉय
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ कविता रावत
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ क्षितिजा ....
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ राजकुमार ग्वालानी
ReplyDeleteआपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार
जब शतरंज को राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा हो तो चमचों का स्थान तो बनता ही है।
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Mrs. Asha Joglekar
शतरंज में चमचों का स्थान होने से और मोहरे भी लालायित रहते राजा से निकटता के लिये।
@ Rajesh Kumar 'Nachiketa'
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
सलाहकार सब चाहते हैं पर जो चमचों से प्रभावित हो जाता है, वह डूब जाता है।
@ दिगम्बर नासवा
ReplyDeleteराजनीति के दृष्टिकोण को शतरंज में उतारने का विचार भर है।
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Manoj K
चाची 420 का चरित्र बिल्कुल ठीक बैठता है, चमचों के लिये। इनसे ही जगत गुलजार है आजकल तो।
@ Poorviya
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ Sawai SIingh Rajpurohit
आपको भी होली की शुभकामनायें। आपका ब्लॉग देख लिया है।
@ Babli
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ sidheshwer
ReplyDeleteआपको भी होली की शुभकामनायें।
@ cmpershad
चमचों के सहारे रहेगा तो यही हाल होगा राजा का।
@ सुलभ
आपको भी होली की शुभकामनायें।
@ संतोष पाण्डेय
लोभ रहा तो चमचों का प्रभाव बढ़ जायेगा।
@ वाणी गीत
इस लत ने राजा को जेलों में डाल दिया है।
@ विष्णु बैरागी
ReplyDeleteयही हो रहा है, चमचों को अपना अस्तित्व बढ़ाने के लिये अपने मोहरों को मारने में भी कोई मलाल नहीं।
@ आचार्य परशुराम राय
चमचा साहित्य बड़ा रोचक है, प्यादा मारते समय वजीर हो जाता है।
@ मेरे भाव
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ajit gupta
राजनीति की करुण कहानी।
@ सञ्जय झा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका। यत्र तत्र सर्वत्र व्याप्त हैं ये।
प्रवीन जी ! बड़ा अच्छा ज्ञान वर्धन किया आपने ! हम भारतीय बड़ी गहरी नींद सोते हैं ! हमे पता नही चलता है ,जो जूतों के पास रहते है ,दिमाग तक कैसे पहुच जाते है,और कैसे कैसे कांड कर बैठते है !
ReplyDeleteलोकतंत्र के 'पाँचवे स्तम्भ' का अदभुत विश्लेषण !
ReplyDeleteशायद 'चमचा' प्रजाति की व्युत्पत्ति मानव (अ)सभ्यता की व्युत्पत्ति से कम पुरानी नहीं होगी. ये अलग बात है कि शतरंज की के मोहरों के बीच ये कहीं नज़र नही आते पर इनके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता.
ReplyDelete@ usha rai
ReplyDeleteजिनका दिमाग गुटनों में होता है, उनके दिमाग में चमचे चरणों के माध्यम से ही घुस जाते हैं।
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत धन्यवाद आपका।
@ M VERMA
यदि शतरंज में नहीं थे वे तो हम यही मान कर चलते हैं कि ये उस समय भी नहीं होते होंगे।
चमचा पुराण और शतरंज, क्या कोम्बीनेशन है |
ReplyDelete@ नरेश सिह राठौड़
ReplyDeleteदोनो ही सत्ता से सम्बन्धित हैं।