आज एक बड़े ही व्यस्त और व्यवस्थित मित्र की डायरी देखने को मिली, व्यक्तिगत नहीं, प्रशासनिक। व्यवस्थित इतने कि हर कार्य अपनी डायरी में लिख लेते हैं। उनकी काली जिल्द वाली भरकम डायरी को गहनता से देखें तो पता चल जायेगा कि किस दिन कितने कार्य करने के लिये उन्होंने सोचा था, कितने नये कार्य और आये, किस तात्कालिक कार्य ने दिन भर का सारा समय व्यर्थ कर दिया और अन्ततः कितने कार्य हो पाये। किस पर समय निवेश हुआ और तत्पश्चात क्या शेष रहा। एक साथ कार्य करने के कारण मुझे उन कार्यों के संदर्भों को समझने के लिये विशेष प्रयास नहीं करना पड़ा, इस तथ्य ने पूरे अवलोकन को और भी रोचक बना दिया।
बड़ा अच्छा होता कि एक नियत कार्य रहता हम सबका तो ऐसे न जाने कितने खाते लिखे जाने से बच जाते। हमारे मित्रजी के भाग्य में भला वह सुख कहाँ? उसी डायरी में बीच बीच में कुछ पारिवारिक कार्य भी थे, राशन इत्यादि ले आने के, अब पारिवारिक कार्यों के लिये एक और डायरी तो नहीं रखी जा सकती है। उन आवश्यक विवशताओं पर ध्यान न देकर हमने उस विषय को महिमामण्डित होने से बचा लिया।
स्मृति पर यदि अधिक विश्वास होता तो डायरी की आवश्कता न पड़ती, पर बहुधा कार्यों और निर्देशों की बहुतायत को सम्हालना हमारे बस में नहीं होता है। जिनका जीवन कार्यवृत्त जितना फैलता जाता है, उनके लिये कार्यों को लिख लेना उतना ही आवश्यक हो जाता है। नगरीय जीवन में ग्रामीण जीवन से अधिक जटिलता होती है, हमें तो सूची न दी जाये तो मॉल से सौंफ की जगह जीरा व जीरा की जगह अजवायन घर आ जायेगी।
दिन भर के न हुये कार्यों को अगले पृष्ठ पर तो उतारना ही होगा, अब यदि इतनी बार किसी कार्य को लिखें तो वैसे ही स्मृति में बना रहेगा वह कार्य। हर प्रभात में एक नयी सूची कार्यों की, हर रात में न पूरे हो पाये कार्यों की उदासी और कारण व कारक पर क्षोभ, सफलता का समुचित श्रेय भी। यदि कार्य कुछ बढ़ता है तो हम और उत्साहित होते हैं उसे अगले दिन सर्वप्रथम करने के लिये। बड़े कार्यों को मान मिलता है, समय व ध्यान भी अधिक मिलता है।
परिस्थितियाँ किसी कार्य को जीवित रखती हैं, कर्म उस कार्य में गति बनाये रखता है। काली डायरी में न जाने कितने कार्यों का उद्गम, विस्तार व अन्त था। कितने ही कार्य परिचित हो जाते हैं, उनका जीवन काल लम्बा जो होता है।
इसके पहले कि कार्य मुझसे बाते करने लगते, मैंने डायरी वापस कर दी, कार्यों की यह यात्रा, पृष्ठ दर पृष्ठ चलती ही रहेगी।
हम सब भी किसी कार्य की भाँति ही ईश्वर की डायरी में विद्यमान है, हमारे निरर्थक होने का क्षोभ तो उसको भी होता होगा, नित्य ही वह हमें पिछले दिन के पृष्ठ से उठाकर नये पर रख देता है, बिना किसी गति के, बस जड़वत।
क्या हम जैसे थे, वैसे ही उठाकर रख दिये गये हैं, अगले दिन के लिये? क्या हम कुछ विकसित हुये उस दिन? हमें ढोने की पीड़ा प्रकृति को भी होती होगी।
अगले पृष्ठ पर उत्साह के साथ चलें, प्रगति के साथ चलें, सार्थकता के साथ चलें, डायरी को भी प्रसन्नता दें।
है तो उत्तम विचार..मगर हम यह सब कार्यक्रम एम एस प्रोजेक्ट पर शिफ्ट कर चुके हैं...अपने आप पेन्डिंग आगे बढ़ाता चलता है... कम से कम अपराध बोध कम रहता है. फिर एक कार्य से जुड़े दूसरे कार्य की नई डेड लाईन..न हो सकने वाले या दूसरों पर टाल कम्पलिटेड की केटेगरी आदि भी बहुत सुकून देती है///
ReplyDeleteसलाह: आप भी अजमा कर देखें एम एस प्रोजेक्ट की वर्सटिलिटी.. :)
क्या हम जैसे थे, वैसे ही उठाकर रख दिये गये हैं, अगले दिन के लिये? क्या हम कुछ विकसित हुये उस दिन? हमें ढोने की पीड़ा प्रकृति को भी होती होगी।
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जितने विचारणीय प्रश्न हैं..... उतने ही अर्थपूर्ण भी.....
इनमे जीवन दर्शन छुपा है स्वयं को पाने का ..... आगे बढ़ने का और हर दिन खुद को गढ़ने का.....
बहुत कोशिश के बाद भी मै अपने रोज़ के काम नोट नही कर पाता . और फ़िर सब काम पेंडिग हो जाते है एक काम ही रहता है मेरा पेंडिग कामो को समेटना .कितनी अच्छी आदत है आपके मित्र की आज से ही कोशिश करता है .आज से ही नही अभी से .....
ReplyDeleteमैंने इस प्रकार व्यवस्थित होने के बारे में कई बार सोचा और कभी शुरू भी किया पर ज्यादा दिन साध नहीं सका. थोडा-बहुत तो सभी को व्यवस्थित होना चाहिए पर घोर व्यवस्था भी आतंकित करने लगती है.
ReplyDeleteयात्रा चलती रहे, निर्बाध. राह के कंटकों और अवरोधों से निपटने की शक्ति बनी रहे, और क्या चाहिए. मनुष्य रूप में जन्म होने के तो बहुत विकट प्रयोजन हैं.
हम तो एक अदालत में मुकदमों की डायरी रखते हैं जो छह माह आगे तक के असाइनमेंट नोट करती है। फिर भी बहुत सी चीजें बच रहती हैं जिन्हें स्मृति के माध्यम से ही निपटाना होता है। पर गड़बड़ होती रहती है, लगभग रोज ही। कई बार कोशिश की कि एक और डायरी काम में ली जाए। कुछ दिन/माह यह करते भी रहते हैं लेकिन फिर वह बंद हो लेती है।
ReplyDeleteडायरी भी एक रोचक बवाल है। लिखो तो आफ़त न लिखो तो आफ़त!
ReplyDeleteहम सब भी किसी कार्य की भाँति ही ईश्वर की डायरी में विद्यमान है, हमारे निरर्थक होने का क्षोभ तो उसको भी होता होगा...
ReplyDeleteगंभीर दर्शन ... सार्थक चिंतन !
आपके मित्र ने कार्यों की अधिकता के बीच एक बड़ा कार्य और जोड़ लिया दिनचर्या में - डायरी लिखने का।
ReplyDeleteकम से कम मेरे लिए तो यह इतना बड़ा कार्य है कि अनेक बार प्रयास करने के बाद भी दो-चार दिन से आगे नहीं बढ़ा पाया। अब इसे प्रायः असम्भव मान चुका हूँ। जैसे-तैसे काम चल जाता है। मोबाइल में कुछ जरूरी कार्यों का अनुस्मारक (reminder)जरूर लगा लेता हूँ।
घरेलू कार्यों को भूलना सम्भव नहीं है। श्रीमती जी जो सतर्क हैं।
आगे बढ़ते रहने का नाम ही जीवन है ।
ReplyDeleteकभी-कभी डायरी लिखना अति आवश्यक हो जाता है ,खासकर उन जगहों पर जहाँ काम अव्यवस्थित रूप में हो और उसे सुधारने की जिम्मेवारी आपकी हो ,कई लोग विषम परिस्थितियों के बोझ से भी डायरी लेखन का सहारा लेते हैं ........डायरी लेखन जैसे विषय को भी आपने अपनी रोचक लेखन शैली से प्रभावी और प्रेरक बना दिया इस पोस्ट के जरिये.....
ReplyDeleteकाम नोट करने वाली डायरी के भी अपने ही मज़े हैं. इससे पता चलता है कि कितने काम नाहक करने से बच गए हम (जिन्हें न करने के बावजूद जिनकी महत्ता स्वत: समाप्त हो गई) , वर्ना बिना बात ही उन्हें भी निपटा देते तो समय की हानी हो गई होती :)
ReplyDeleteहमें तो अक्सर दगा देती अपनी याददाश्त पर ही भरोसा बना हुआ है.
ReplyDeleteहम सब भी किसी कार्य की भाँति ही ईश्वर की डायरी में विद्यमान है, हमारे निरर्थक होने का क्षोभ तो उसको भी होता होगा, नित्य ही वह हमें पिछले दिन के पृष्ठ से उठाकर नये पर रख देता है, बिना किसी गति के, बस जड़वत।
ReplyDeleteaisa kabhi socha nahi... sahi anumaan lagaya aapne
हम आगे जरूर बढ़े हैं, मशीनीकरण भी हुआ है, लेकिन इससे हमारा अस्तित्व खोता जा रहा है. समाज में जटिलतायें बढ़ती जा रही हैं, लेकिन आवश्यक भी हैं.
ReplyDelete
ReplyDeleteमैं तो सूची होने पर भी, सौंफ , जीरा और अजवायन की पहचान में हर बार गलती करता हूँ !
यह महिलायें गज़ब की नज़र और पहचानने की क्षमता रखती हैं :-))
सही है भाई, सबका यही हाल है.
ReplyDeletehamari diary to sirf pure din ke kharch ka byora matra ban kar rah gaya hai........:)
ReplyDeletehamari diary to sirf pure din ke kharch ka byora matra ban kar rah gaya hai........:)
ReplyDeleteबहुत सही ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteजीवन अपने आप में एक डायरी है |
ReplyDelete"काली डायरी" शब्द इतने अच्छे विचारों को कुछ संदेहास्पद बना रहा है :)
ReplyDeleteवैसे ,मैं तो अब डायरी नहीं लिखता , क्योंकि मेरे एक पंजाबी गुरूजी थे वो कह गए की काम का फ़िक्र करो और फिक्र का जिक्र करों, बस ! :) :)
सच डायरी कई बार आवश्यक चीजों को भूल जाने से बचा लेती. जरूरी बातें डायरी में नोट करना बहुत ही अच्छी आदत है. सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteडायरी के माध्यम से बहुत गहरी बात कह गये
ReplyDeleteशुभकामनाये
किसी विद्वान ने कहा था कि डायरी लेखन ऐसा ही है जैसे प्रेमपत्र लेखन। लेकिन रोजमर्रा की डायरी लिखना वाकयी में आपकी पोल भी खोलता है कि सारा दिन बेकार ही जाया किया।
ReplyDeleteडायरी लेखन जैसे विषय को भी आपने अपनी रोचक लेखन शैली से प्रभावी बना दिया
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
एक असरकारी सरकारी डायरी हम भी लिखते हैं -सच्ची डायरी के कैनवास से जिन्दगी काफी बड़ी होती गयी है इसलिए निजी नहीं !
ReplyDeleteआत्मावलोकन एवं कार्य के प्रति संवेदनशील बनने के लिए डायरी लेखन या सूचिबधता आवश्यक है
ReplyDeleteडायरी पढ़ कर एक नया विश्लेषण ले कर आये हैं ...
ReplyDeleteक्या हम जैसे थे, वैसे ही उठाकर रख दिये गये हैं, अगले दिन के लिये? क्या हम कुछ विकसित हुये उस दिन? हमें ढोने की पीड़ा प्रकृति को भी होती होगी।
अगले पृष्ठ पर उत्साह के साथ चलें, प्रगति के साथ चलें, सार्थकता के साथ चलें, डायरी को भी प्रसन्नता दें..
आत्मावलोकन करवाता अच्छा लेख
यहाँ भी कैरी फॉरवर्ड चलता रहता है डायरी में , अबाध गति से , पिछले १८ सालो से .एम् एस प्रोजेक्ट भी साथ में लगा रहता है . घरेलु सामान के लिए घर पर रख ली है डायरी .
ReplyDeleteअगले पृष्ठ पर उत्साह के साथ चलें, प्रगति के साथ चलें, सार्थकता के साथ चलें, डायरी को भी प्रसन्नता दें।....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक....संदेशपरक चिन्तन है...
काश ! ऐसा कर पाना आसान होता...हमेशा पेन्डिंग की स्थिति आ खड़ी होती है और प्रायः डेड लाईन पर खड़े हो कर घोर मानतिक दबाव में ही काम पूरे हो पाते हैं।
किसी भी रुप में कार्यसूचि सही मेमोरी में रहना आवश्यक है और आधुनिक साधनों की तो जानने वाले ही जाने किन्तु डायरी प्रथा सभीके लिये समान रुप से उपयोगी रही है ।
ReplyDeleteडायरी प्रथा सभीके लिये समान रुप से उपयोगी रही है| मगर मेरे लिए तो यह इतना बड़ा कार्य है कि अनेक बार प्रयास करने के बाद भी दो-चार दिन से आगे नहीं बढ़ा पाया।
ReplyDelete"हम सब भी किसी कार्य की भाँति ही ईश्वर की डायरी में विद्यमान है, हमारे निरर्थक होने का क्षोभ तो उसको भी होता होगा, नित्य ही वह हमें पिछले दिन के पृष्ठ से उठाकर नये पर रख देता है, बिना किसी गति के, बस जड़वत।".... एक आध्यात्मिक प्रश्न जिसे यदि समझ लें हम तो विश्व व्यवस्थित हो जाये...
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
हम सोचते तो जरूर हैं कि बीते हुए कल से आज बेहतर किया है और आने वाले कल में आज से बेहतर ही करेंगे ,पर हो पाता है कि नहीं पता ....
ReplyDeleteबचपन में अपुन को भी डायरी-लेखन का शौक था,इस बहाने प्रचुर मात्रा में डायरी-साहित्य की रचना हो गई.शुरू-शुरू में 'लोन-तेल-लकड़ी' का भी हिसाब रखता था,फिर यह सोचकर बंद कर दिया कि बेकार में ही पढ़कर 'टेंसनीयायेंगे !
ReplyDeleteबहरहाल ,पुरानी स्म्रतियों को ताज़ा रखने के लिए तो डायरी-लेखन ठीक है,पर हिसाब-किताब के लिए नहीं. अब फ़ोन नम्बर के लिए भी डायरी कम प्रयुक्त की जा रही है !
हाँ,पढ़े-लिखे लगने के लिए हाथ में एकठो डायरी अच्छी लगती है !
कभी हम भी डायरी लिखा करते थे. अब तो वर्षों से छूटा हुआ है. पर इस तरह से कभी नहीं लिखा.
ReplyDeleteमुझे बचपन मे आदत थी डायरी लिखने की, लेकिन पता नही कब छुट गई, वैसे अच्छा ही हुआ, अब मेरी डायरी मेरा दिल हे, जिस मे कुछ भी पेंडिंग नही रहता, साथ साथ मै लिखता जाता हुं सब जो मेरे अपने, बेगाने, मुझे देते हे, ओर जो मै उन्हे देता हू,जब दिल चाहे एक एक शव्द को पढ लेता हुं. धन्यवाद
ReplyDeleteसच कहूँ तो यूं पंक्तिबद्धता मुझे कभी पसंद नहीं थी... और न ही है...
ReplyDeleteप्रशासनिक तो दूर मेरी व्यक्तिगत डायरी ने भी न जाने कब मुझे करीब महसूस किया होगा...
सिर्फ कुछ खास पल है जो उसमे लिखे हैं... बस...
और डायरी में रहना या किसी और को रखना शायद यही दर्शाता हो कि आपको कुछ लोगों को, बातों को याद करने के लिए उनका आपकी नज़र में होना ज़रूरी है...
शायद वो "जड़वत" होना या किसी और को "जड़वत" करना अच्छा नहीं लगता...
डायरी लिखना? कोई एक दिन तो है नहीं ,जो लिख डालें- रोज़-रोज़ का एक झंझट .इतने में तो कोई काम ही कर डालें .
ReplyDeleteकहीं यह डायरी दुर्योधन की तो नहीं जिसमें से शिव भाई यदाकदा अपनी पोस्ट में चेपते रहते हैं :)
ReplyDeleteलेखा जोखा में ही जीवन का आधा समय व्यतीत हो जायगा |
ReplyDeleteहमने भी कई बार ऐसे लोगो से प्रे रित होकर डायरी शुरू की पर जो काम लिखते वो ही नहीं हो पाते बाकि सब हो जाते |
लेखा जोखा में ही जीवन का आधा समय व्यतीत हो जायगा |
ReplyDeleteहमने भी कई बार ऐसे लोगो से प्रे रित होकर डायरी शुरू की पर जो काम लिखते वो ही नहीं हो पाते बाकि सब हो जाते |
बधाई प्रवीण जी, यह डायरी तो सार्वजानिक कर दी। अब हम सब को आपके व्यक्तिगत जीवन की डायरी के खुलासे का इंतजार .........!!!
ReplyDelete"हम सब भी किसी कार्य की भाँति ही ईश्वर की डायरी में विद्यमान है, हमारे निरर्थक होने का क्षोभ तो उसको भी होता होगा, नित्य ही वह हमें पिछले दिन के पृष्ठ से उठाकर नये पर रख देता है, बिना किसी गति के, बस जड़वत। " सर बहुत ही सार्थक..हमारी डायरी मिट या फट सकती है ..पर उसकी डायरी ..के खेल निराले .
ReplyDeleteव्यवस्थित और अनुशाषित जीवन का अपना आनंद है.
ReplyDeleteसर्वथा अमूर्त विषय पर सुन्दर मूर्तन प्रस्तुति जो सन्देश देती है कि विषय तलाश करने के लिए कहीं दूर देखने की आवश्यकता नहीं। विषय तो हमारे आसपास प्रचुरता से बिखरे पडे हैं। बस, दृष्टि चाहिए।
ReplyDeleteलेखकीय सन्दर्भों में मैं व्यक्तिगत स्तर पर आपसे अत्यधिक अपेक्षाऍं पाले बैठा हूँ।
सही है ,,,गहरा अवलोकन.
ReplyDeleteहमें ढोने की पीड़ा ही तो है जो प्रकृति को सुनामी, भूचाल जैसी प्रतिक्रियायें करने को मजबूर करती है।
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteअनूप जी ने सही कहा। लेकिन मुझे लगता है फायदे अधिक हैं। लेकिन ये काम हमेशा हो नही पाता। आजकल आप काफी चिन्तन करने लगे हैं हर पोस्ट मे कुछ सार्थक सूत्र होते हैं। आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteसुंदर..!!!
ReplyDeletesarthak vachan...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख..डायरी का रखना ऑफिस कार्य के लिये तो एक आवश्यक मज़बूरी है, वर्ना सभी लंबित कार्यों पर नज़र नहीं रखी जा सकती. होली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeletegatiman hone hi jiwan mein gati hai. gatisheelta hi jiwan ko jiwant banaye rakhti hai. gatisheel rachna.
ReplyDelete@ Udan Tashtari
ReplyDeleteआपकी सलाह पर एम एस प्रोजेक्ट अपना रहे हैं।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
दिन में कुछ न कर पाने में वैसा ही बोध ईश्वर को भी होता होगा। कार्य को यथावत आगे जाते देख यह समझ में आता है।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
छूट गये कार्यों को समेटना बहुत बड़ा कार्य हो गया है इस भागती दुनिया में।
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
बहुत अधिक व्यवस्थित हो कभी नहीं जी पाया, बस एक आवारगी बनी रही, थोड़ा बहुत कार्य लिख लेते हैं, जिससे की भूल न जायें।
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
कई डायरी हो जाने पर संयोजन की समस्या बहुत बड़ी हो जाती है।
@ अनूप शुक्ल
ReplyDeleteडायरी न लिखने के बारे में लिखना भी आफत और डायरी लिखने बारे में न लिखना भी।
@ वाणी गीत
कार्यों को ऐसे ही आगे बढ़ता देखता हूँ तो यही अपने साथ भी होता हुआ लगता है।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
इतने कार्य होते जाते हैं विभिन्न कालखण्डों के कि मात्र स्मृति के आधार पर सम्हालना कठिन हो जाता है। लिख लेने से भूलते तो नहीं हैं, जब कभी डायरी देखिये, याद आ जाते हैं।
@ ZEAL
आगे बढ़ती जाती डायरी भी जीवन का ही प्रतीक है।
@ honesty project democracy
जहाँ पर आप के ऊपर पूरा उत्तरदायित्व हो तो आपका कार्य और गुरुतर होता जाता है, आपको अपनी विधि ढूढ़नी पड़ती है जिससे आप उन सारे कार्यों के साथ समुचित न्याय कर सकें। डायरी लेखन उसी कड़ी का हिस्सा है।
@ Kajal Kumar
ReplyDeleteबहुत बार कोई एक काम जो उस दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है, कालान्तर में न होने के बाद भी अपना महत्व खो देता है। सच कहा, ऐसा बहुत ज्ञान प्राप्त होता है।
@ Rahul Singh
दगा तो हमें भी बहुत दिया है पर साथ उससे अधिक दिया है।
@ रश्मि प्रभा...
यदि नया दिन भी पुराने की भाँति हो तो यही अनुभव होगा हमें।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
मानव को इसी मशीनीकरण की काट आधुनिक मशीनों से करनी पड़ रही है। हम भी मशीनवत होते जा रहे हैं इस दिशा में।
@ सतीश सक्सेना
अब तो हम इन तीनों को आँख बन्द कर पहचान सकते हैं, क्योंकि एक मँगाया जाये तो तीनों ले आते हैं।
@ satyendra
ReplyDeleteसभी डायरीवत है और डायरीयुत भी।
@ Mukesh Kumar Sinha
तब तो आपका टर्नओवर बहुत अधिक हो गया होगा।
@ सदा
बहुत धन्यवाद आपका।
@ नीरज बसलियाल
और हर दिन एक पन्ना।
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
अधिकतर डायरी काली ही देखी हैं, उसमें कालेधन जैसा कुछ नहीं।
@ उपेन्द्र ' उपेन '
ReplyDeleteहर कार्य को लिख लेने की आदत से सारे कार्य देर सबेर हो ही जाते हैं।
@ Deepak Saini
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ajit gupta
सच कहा, कई बार मुझे लगा कि क्यों लिख गये यह बात डायरी में, किसी के पढ़ने में आ गया तो कैसा लगेगा।
@ संजय भास्कर
डायरी लेखन कर के उसके बारे में रोचक लिख पाना कठिन होता है।
@ Arvind Mishra
कुछ बातें भुलाने के लिये नहीं लिखी, बातें याद रहीं। कुछ बातें याद करने के लिये लिखी, भूल गये कि कहाँ लिखा था।
@ गिरधारी खंकरियाल
ReplyDeleteआपसे पूर्णतया सहमत, यदि अपने कार्यकलाप लिखते रहें आप तो गहराई आ जाती है दृष्टि में।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
डायरी लिखने में और पढ़ने में आत्मावलोकन हो ही जाता है।
@ ashish
एम एस प्रोजेक्ट के साथ दोस्ती करनी पड़ेगी, लगता है।
@ Dr (Miss) Sharad Singh
मानसिक दबाव में ही काम होते दीखते हैं आजकल, जब दिखता है कि कल तक कार्य पूरा होना है तो न जाने कहाँ से ऊर्जा आ जाती है स्वयं ही।
@ सुशील बाकलीवाल
आधुनिक उपकरणों ने तो तरह तरह के एलार्म लगाकर सब कुछ दिमाग में ठूँस दिया है। कार्य पर तभी हो पाता है जब मन की शान्ति बनी रहती है।
@ Patali-The-Village
ReplyDeleteडायरी में लिखना ही सर्वकठिन कार्य है।
@ अरुण चन्द्र रॉय
विश्व में दुर्जन हुये कार्य को भी मिटाने में लगे हुये हैं।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद आपका, इस सम्मान के लिये।।
@ nivedita
प्रयास तो हमारा भी यही रहता है कि आने वाला कल अच्छा हो।
@ संतोष त्रिवेदी
हिसाब किताब के लिये डायरी का उपयोग कभी नहीं किया, स्मृति को नवीन रखने के लिये लिखते रहे हैं।
@ Manpreet Kaur
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ सोमेश सक्सेना
पुरानी यादों को नवीन करने का सरल उपाय है डायरी लिखता और उसे पढ़ना।
@ राज भाटिय़ा
दिल भी आपका डायरी की तरह ही बड़ा है।
@ POOJA...
जीवन गतिमान है, गतिमान रहे। स्वच्छन्दता अनुशासन नकार देती है, पर लिखकर स्वच्छन्द होना अच्छा है स्वच्छन्दता में किसी कार्य को भूल जाने से।
@ प्रतिभा सक्सेना
डायरी लिखना अनुशासन में एक और कड़ी जोड़ देता है, बहुतों को यूँ बँधना पसन्द नहीं।
@ cmpershad
ReplyDeleteशिवजी वाली दुर्योधन की डायरी यदि मिल जाये तो आनन्द ही आ जाये।
@ शोभना चौरे
कई कार्य सरीखे डायरी लेखन भी अधूरा पड़ा है।
@ इलाहाबादी अडडा
व्यक्तिगत डायरी में बहुत नप जायेंगे।
@ G.N.SHAW ( B.TECH )
उसकी डायरी के सत्य बड़ी समझ वाले हैं।
@ संतोष पाण्डेय
प्रारम्भ में कम प्रयास कर लेने से आगे उसी कार्य को करने के लिये अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता है। प्रारम्भ का प्रयास भला है।
@ विष्णु बैरागी
ReplyDeleteआपकी अपेक्षा को आदेश मान कर लगा हूँ लेखन में।
@ shikha varshney
बहुत धन्यवाद आपका।
@ संजय @ मो सम कौन ?
हमें ढोने की पीड़ा ही तो है जो प्रकृति को सुनामी, भूचाल जैसी प्रतिक्रियायें करने को मजबूर करती है।
वह जब हमें झेल नहीं पाती तो संकेत दे जाती है।
@ muskan
आपको भी बहुत बहुत शुभकामनायें।
@ निर्मला कपिला
लाभ बहुत अधिक हैं डायरी लेखन के अतः लिखते रहते हैं।
@ Priyankaabhilaashi
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ amit-nivedita
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Kailash C Sharma
हम कम्प्यूटर में ही सब रखते हैं और मोबाइल से समन्वय भी करते रहते हैं, तब भी कई बार फँस जाते हैं।
@ मेरे भाव
यदि गति बनी रहे, कार्य प्रसन्न रहें।
dairy me saheji gayi baate bahut kaam ki hoti hai ,holi ki badhai .
ReplyDeleteक्या हम जैसे थे, वैसे ही उठाकर रख दिये गये हैं, अगले दिन के लिये? क्या हम कुछ विकसित हुये उस दिन? हमें ढोने की पीड़ा प्रकृति को भी होती होगी।....
ReplyDeleteशायद... और जब यह पन्ने खत्म हों जाएँ तब..नया जीवन नयी डायरी
Holee kee dheron shubhkamnayen!
ReplyDelete@ ज्योति सिंह
ReplyDeleteडायरी में सहेजी हुयी बातें आगे भी बहुत काम की होती हैं, कितनी बार मुझे भी ऐसे ही सूत्र मिले हैं।
@ Manoj K
नया वर्ष, नया जीवन, नयी डायरी, कई वर्षों तक यूँ ही, अनवरत।
@ kshama
आपको भी बधाईयाँ।
रंग-पर्व पर हार्दिक बधाई.
ReplyDelete@ वन्दना अवस्थी दुबे
ReplyDeleteआपको भी बहुत बहुत बधाई।