भूल हो गयी मुझसे, जो कबाड़खाने की यह पोस्ट सुन ली। पिछले पाँच दिनों से उसका मूल्य चुका रहा हूँ, 'ओरे नील दोरिया' न जाने कितनी बार सुन चुका हूँ, सम्मोहन है कि बढ़ता ही जा रहा है। शान्त, मधुर स्वर लहरी जब गायिका के कण्ठ से गूँजती है, हृदय की धड़कन उसकी गति में अनुनादित होने लगती है, शरीर प्रयास करना बन्द कर देता है, आँखें बन्द हो जाती हैं, पूरा अस्तित्व डूब जाता है, बस डूब जाता है, न जाने कहाँ, किस विश्व में।
सचेत स्थिति में वापस आता हूँ तो रोचकता बढ़ती है, इण्टरनेट टटोलता हूँ, ऑर्नब और मित्रों से पहचान होती है, तीस-चालीस गाने सुन जाता हूँ, कर्णप्रिय, मधुर, एक विशेष सुखद अनुभव। जीवन के कुछ वर्ष बांग्लाभाषियों के बीच बिताने के कारण, उन गीतों का हल्का हल्का सा अर्थ मन में उतरता है और शेष भर जाता है संगीत, ऊपर तक। संगीत की भाषा शब्दों की भाषा को अपनी गोद में छिपा लेती है, कोमल ममत्वपूर्ण परिवेश, आपका मानसिक स्तर उठता जाता है भाषा, राज्य, देश, विश्व की कृत्रिम परिधियों से परे, जहाँ कोई आवश्यकता नहीं किसी भी माध्यम की, तदात्म्य स्थापित हो जाता है ईश्वर की मौलिक कृतियों से।
ऑर्नब और मित्रों की सांस्कृतिक शिक्षा शान्तिनिकेतन में हुयी, रबीन्द्र संगीत का स्पष्ट और व्यापक प्रभाव उनके गीतों में व्याप्त है। बांग्ला सामाजिक परिवेश का संगीत प्रेम और संगीत शिक्षा के लिये शान्तिनिकेतन का परिवेश। मैकाले की शिक्षा पद्धति से मन उचटना और शान्तिनिकेतन की स्थापना। गुरुदेव का प्रयोग देश, संस्कृति और समाज के प्रति। साहित्य, संगीत, कला की उन्नत साधना और तीनों में एकल सिद्धहस्तता, शैलीगत। गुरुदेव की तीनों विधाओं में उपस्थिति, जहाँ एक ओर वहाँ की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग है, वहीं दूसरी ओर विश्व-पटल पर बांग्ला-गौरव का सशक्त हस्ताक्षर भी है।
वैसे तो संगीत का यह उत्कृष्ट निरूपण सकल विश्व की धरोहर है पर एक भारतीय का सीना और चौड़ा हो जाता, विशेषकर उस समय जब हमारी शिक्षा पद्धति हमारी सांस्कृतिक और बौद्धिक उपलब्धियों को हीन मानने लगी है। मुझे तो रह रह कर यह संगीत श्रेष्ठतम लग रहा है, वर्तमान में, भले ही इसे पूर्वनियत पश्चिमी मानकों पर विशेष न पाया जाये, ग्रैमी व ऑस्कर के लिये।
आप भी डूबिये, पर जब बाहर निकलियेगा, अवश्य बतायें कि हृदय के किन किन कक्षों को अनुनादित कर गया यह गीत?
पुनः सुन लें, नीली नदी के प्रति व्यक्त भाव
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बहुत सुंदर गीत ...... कमाल की कशिश है..... ऐसे गीत अस्तित्व के डूब जाने के लिए ही होते है.... ऑर्नब और उनके मित्रों के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा .... एक भारतीय हूँ सो गर्व तो महसूस हो ही रहा है......
ReplyDelete-----------------
ऐसा ही एक गीत काफी समय पहले नर्मदा नदी के प्रति व्यक्त भावों से संजोया गया था .....आज तक उससे सम्मोहित हूँ...... अनगिनत बार सुन चुकी हूँ.... आप शायद सुन चुके होंगें ...अगर नहीं तो एक बार इसे भी सुनें .... उम्मीद है आपको अच्छा लगेगा.....
http://www.youtube.com/watch?v=89D-4-ztyIM&feature=related
मधुर संगीत सुनवाया आपने ....बांगला न जानते हुए भी स्वर और धुन का आनंद लिया ! आभार आपका
ReplyDeleteबांग्ला भाषियो को संगीत के प्रति रूचि का एक उदाहरण मैने तब देखा मेरे पडोसी एक डाक्टर और उनका पूरा परिवार संगीत के प्रति इतना समर्पित है कि रोज़ ही सब मिल कर रवीन्द्र संगीत का गायन करते है
ReplyDeleteभावातीत ..दिक् काल से कहीं दूर ले जाता गीत संगीत !
ReplyDeleteइस संगीतमय प्रस्तुति और जानकारी के लिए आभार !
आह!! डूब गये!
ReplyDeleteबंगला साहित्य और संगीत तो अद्भुत है, इस का सानी नहीं। आभार।
ReplyDeleteसंगीत का जादू. ओ नोदी रे कोथाय तोमार देश ओ नोदी कोथाय तोमार देश.
ReplyDeletekhboobsurat geet! madhur sangeet!
ReplyDeleteबोल तो समझ नही आये पर संगीत बहुत कर्ण प्रिय है
ReplyDeleteसर जी लगता है आजकल आप कोलकता का लुफ्त उठा रहे है ,भांड (मिटटी का वर्तन ) पर चाय की चुस्कियां लेते लेते ! :) वैसे बंगाली बहुत ज्यादा तो नहीं आती लेकिन समझ लगभग लेता हूँ क्योंकि अपने ज्यादातर कुलीग बंगाली ही है ! वाकई मधुर गीत है, थोड़ा उदासी भरा भी !
ReplyDeleteबंगाली परिवार संगीत,नृत्य,साहित्य एवं माछेर मुंडी की चाहत हमेशा रखते हैं।
ReplyDeleteआभार
madhur sangeet
ReplyDeleteaap apni prastooti se geet ko aur samohak bana dala hai........
ReplyDeletepranam.
इस सुंदर गीत की ध्वनि आत्मा को छूती है ....
ReplyDeleteइस संगीतमय प्रस्तुति के लिए बधाई!
वाह ...बहुत ही सुन्दर पोस्ट और इस मधुर गीत की प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeleteवाह, इस गीत में तो अद्भुत आकर्षण है- मन, हृदय और आत्मा की गहराइयों को झंकृत कर गया यह।
ReplyDeleteबाउल संगीत के हृदयस्पर्शी स्वर और पश्चिमी वाद्य यंत्रों की सुसंगति इसे विशिष्ट बना रही है।
यह गीत प्रमाणित करता है कि संगीत देश,जाति और भाषा से निर्बंध है।
इस गीत को सुनने का अवसर प्रदान करने के लिए आपका आभार, प्रवीण जी।
इस मधुर संगीत कों सुनवाने के लिए आपका ह्रदय से आभार।
ReplyDeleteआज आपका ब्लॉग देखा.मधुर संगीत....अच्छा लगा यहाँ आना.वसन्तोत्सव की बधाईयाँ.
ReplyDeleteरवीन्द्र संगीत की मधुरता मन मोह लेती है...
ReplyDeleteकविगुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर को शत-शत नमन।
ReplyDeleteउनका यह गीत मेरे लिए सूत्र वाक्य है -
यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे
तबे एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे!
यदि केऊ कथा ना कोय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि सबाई थाके मुख फिराय, सबाई करे भय-
तबे परान खुले
ओ, तुई मुख फूटे तोर मनेर कथा एकला बोलो रे!
यदि सबाई फिरे जाय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि गहन पथे जाबार काले केऊ फिरे न जाय-
तबे पथेर काँटा
ओ, तुई रक्तमाला चरन तले एकला दलो रे!
यदि आलो ना घरे, ओरे, ओरे, ओ अभागा-
यदि झड़ बादले आधार राते दुयार देय धरे-
तबे वज्रानले
आपुन बुकेर पांजर जालियेनिये एकला जलो रे!
सुन्दर....मांझी गीत....
ReplyDeleteवैसे तो संगीत का यह उत्कृष्ट निरूपण सकल विश्व की धरोहर है पर एक भारतीय का सीना और चौड़ा हो जाता, विशेषकर उस समय जब हमारी शिक्षा पद्धति हमारी सांस्कृतिक और बौद्धिक उपलब्धियों को हीन मानने लगी है।
ReplyDeletebahut achchha laga sir.bengoli aur rabindra nath tagore ki annanth geet hum kabhi nahi bhul sakate.
वाकई बहुत सुमधुर गीत है ..वैसे भी बँगला भाषा की अपनी अलग ही मिठास है.
ReplyDeletemadhur sangeet...........:)
ReplyDeleteसंगीत का जादू सिर चढ कर ही बोलता है, और सचमुच बोला, भाशा की दीवारों के बावजूद।
ReplyDelete---------
समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।
मै अजीत गुप्ता जी की बात से सहमत हूँ बंगला साहित्य और संगीत का सानी नहीं। एस डी बर्मन साहब को भी जब सुनते है तो डूब जाते है | आपके इस गीत में भाषा मेरे लिए थोड़ी बाधा जरूर बनी लेकिन गीत में मधुरता है |
ReplyDeleteकिसी और लोक की यात्रा करवाता गीत, बचपन से कालेज तक का समय कोलकाता में बीता है. आपकी पोस्ट पढकर आज फ़िर से वहां पहुंच गया हूं. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर गीत ..कवि रविन्द्र नाथ टैगोर का शांति निकेतन और उनकी कवितायेँ ..एक आलौकिक आनंद का एहसास ...बहुत सुंदर
ReplyDeleteबंगला भाषा में काफी मधुरता है. रविन्द्र संगीत सच एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है . संदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteवाकई बेहतरीन है। सुनवाने का आभार।
ReplyDeleteकल है तेदीिवेय्र डे मुबारक हो आपको एक दिन पहले
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Happy Teddy Vear Day
net मुर्दानी हालत में है...इसलिए अभी aapka likha padha bhar है...
ReplyDeleteyah tanik swasth हो le तो sunne aati hun...
इस मधुर संगीत कों सुनवाने के लिए आपका ह्रदय से आभार।
ReplyDeleteसंगीतमय प्रस्तुति और जानकारी के लिए आभार !
ReplyDeleteबंगाल की मिट्टी ने सिखायाहै कि यह एक परम्परा है, एक जीवन शैली!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर संगीत ओर गीत भी,बगंला समझ तो नही आती लेकिन इस गीत का मर्म समझ मे आ गया, धन्यवाद
ReplyDeleteजाल में कुछ दिक्कत है.. बाद में देख-सुन पाऊंगा.
ReplyDeleteवास्तव में, गीत में बंगाल के जादू जैसा सम्मोहन है.कुछ चीजे दिमाग से समझने के बजाय दिल से महसूस करने के लिए होती है.यह गीत उन्ही में से एक है.आभार.
ReplyDeleteरविन्द्र संगीत तो बात ही क्या है ...शान्तिनिकेतन ने एक से एक प्रतिभाशाली कलाकार दिए हैं ..गुरुदेव की छाया तले गुण निखर ही आते हैं ...
ReplyDeleteमनोज जी द्वारा प्रेषित गुरुदेव का लिखा गया गीत
यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे
तबे एकला चलो रे।
जाने कितनों की प्रेरणा है !
निस्संदेह बेहतरीन विधा है।
ReplyDeletesunder geet k liye badhai sweekar karen
ReplyDeleteसच्चे दोस्त किस्मत वालों को मिलते हैं।
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
आँखें भर गयी प्रवीन जी !! बहुत बहुत धन्यवाद ! ..आभार !
ReplyDeleteis post par kahne ko kafi kuchh hai aaj mere paas magar waqt nahi ,phir tippani me itna kaha bhi nahi jaa sakta ,aeta aamaar desh ,aami bhalo baasi ,main isi shahar ki hoon bangla bhasha mujhe behad pasand hai hamaare yahan sabhi iska upyog karte hai hamare parivaar me kai log shaanti nikentan me apni siksha ko poori kar chuke hai ,wahan ke paridhan mujhe behad pasand hai aur baangla geet ,cinema bhi .yahan geet sunkar apnepan ka ahsaas jaag utha .bahut bahut achchha .
ReplyDeleteबहुत आनन्ददायक अनुभव रहा ,इस गीत को सुनना .
ReplyDeleteआपका आभार !
तन-मन में सरसराहट और मदहोशी भर देता है यह संगीत,अर्थ भले न समझ आ रहे हों,पर भावों को महसूसा जा सकता है !
ReplyDeleteअच्छे प्रयास और अच्छे कर्म को आज ऑस्कर की जरूरत नहीं बल्कि उसे हर गांव हर गली मोहल्ले में आप जैसे लोगों के द्वारा इसी तरह सम्मानित और प्रोत्साहित किये जाने की जरूरत है........असल सम्मान और सहायता के अभाव में ही हमारी उत्कृष्ट सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहरों के प्रति लोगों का लगाव कम होता जा रहा है.......बाजारवाद को नैतिकता नहीं बल्कि अनैतिकता का आधार चाहिए जबकि इंसानियत को नैतिक सहारे के बिना जिन्दा रखा ही नहीं जा सकता.......? रेलवे ने समय समय पर भारतीय सामाजिक सरोकार और संस्कृति को जिन्दा करने का सार्थक प्रयास हमेसा किया है और कर रहा है .......जरूरत इस बात की है इस देश में सामाजिक कल्याण मंत्रालय और ग्रामीण विकाश मंत्रालय भी ईमानदारी से इस दिशा में कुछ करे....?
ReplyDeleteखूब भालो प्रवीण जी...
ReplyDeleteतुमी जानी न की अमी ये गीत कितनो भालो लागे छे...
धोन्यवाद...
और रोबिन्दो शंगीत... आहा अहह हा...
bahut pyara sangeet.
ReplyDeleteaabhar..
सुंदर गीत और बहुत रोचक जानकारी से भरी पोस्ट
ReplyDelete@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
ReplyDeleteरेवा पर गीत सुना, लहरों की ताल पर सृजित गीत है, आनन्द आ गया। नदियों पर बनाये गीत जलतरंग की तरह बजते हैं।
@ सतीश सक्सेना
संगीत स्वयं में एक भाषा है जो बहुधा बड़ी स्पष्ट होती है।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
पूरा का पूरा समाज संस्कृति के पक्षों में पूर्ण रुचि लेता है।
@ Arvind Mishra
इस लय में तो बस बह जाने का मन करता है।
@ Udan Tashtari
बाहर भी आईये नहीं तो लाभ अधिक हो जायेगा।
@ ajit gupta
ReplyDeleteयह सदियों का सतत प्रयास है।
@ Rahul Singh
सर चढ़कर बोलता है यह जादू बंगाल में।
@ SEPO
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Deepak Saini
बोल तो मुझे भी पूरे समझ में नहीं आये पर संगीत से भाव समझ में आ गये।
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
मैं तो बंगलोर में हूँ, इण्टरनेट से आप कहीं भी पहुँच सकते हैं। विरह गीत है यह, नदी के द्वारा संदेश भेजा जा रहा है इसमें।
@ ललित शर्मा
ReplyDeleteयही संगीत प्रेम मधुरतम हो रहा है।
@ Sonal Rastogi
बहुत धन्यवाद आपका।
@ सञ्जय झा
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Dr (Miss) Sharad Singh
संगीत हृदय को छू जाता है।
@ सदा
बहुत धन्यवाद आपका।
@ mahendra verma
ReplyDeleteबाउल संगीत गाँव गाँव में जाकर ऊँचे स्वर में गाया जाता है, बड़ी लयबद्ध रचना होती है यह। सुनने के साथ संस्कृति का ज्ञान होता
है।
@ ZEAL
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Meenu Khare
आपको भी बसन्तोत्सव की बधाईयाँ।
@ rashmi ravija
यह अपने आप में एक अनुभव है।
@ मनोज कुमार
रबीन्द्रनाथ टैगोर का एकला चलो न जाने कितने उत्साहों का उद्गम है।
@ Dr. shyam gupta
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ G.N.SHAW
बहुत बड़ा योगदान है इस एक महान व्यक्तित्व का, कला, संगीत और साहित्य में।
@ shikha varshney
आरोह व अवरोह में बस मन अटक जाता है।
@ Mukesh Kumar Sinha
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
संगीत की भाषा, भाषा के संगीत से अधिक मधुर होती है।
@ नरेश सिह राठौड़
ReplyDeleteएस डी बर्मन साहब के गीतों में बांग्ला संगीत की मिठास व्याप्त है।
@ ताऊ रामपुरिया
कोलकाता की याद ताजा हो गया।
@ : केवल राम :
सच में एक आलौकिक आनन्द की अनुभूति है यह।
@ उपेन्द्र ' उपेन '
एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर के नाम, यह शाम।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
बहुत धन्यवाद आपका।
@ रंजना
ReplyDeleteसुनियेगा, तभी अनुभूति हो सकेगी।
@ Patali-The-Village
मुझे जो सुख मिला, उसे बाटना आवश्यक था।
@ संजय भास्कर
बहुत धन्यवाद आपका।
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
संगीत वहाँ की जीवन शैली में जुड़ा हुआ है।
@ राज भाटिय़ा
धुन और लय, इस गीत की पीड़ा व्यक्त कर देती है।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
ReplyDeleteपर सुनियेगा अवश्य।
@ संतोष पाण्डेय
सच कहा आपने, बंगाल के जादू सा सम्मोहन है।
@ वाणी गीत
शान्तिनिकेतन का सांस्कृतिक योगदान अतुलनीय है।
@ satyendra...
सुनकर ही पता लगता है कितनी मधुरता है इसमें।
@ amrendra "amar"
बहुत धन्यवाद आपका।
@ usha rai
ReplyDeleteशब्द जब संगीत में ढल जाते हैं, भाव प्रधान हो जाते हैं।
@ ज्योति सिंह
आपका अनुभव तो निकट का है, आपसे यह आशा रहेगी कि शान्तिनिकेतन पर कोई पोस्ट लिखें।
@ प्रतिभा सक्सेना
बहुत धन्यवाद आपका।
@ संतोष त्रिवेदी
संगीत स्वयं में सक्षम है, भाव संप्रेषित करने में।
@ honesty project democracy
जनमानस में उस संगीत की गूँज ही उसके लिये ऑस्कर है। भारतीय रेलवे ने उस गूँज का देशव्यापी बना दिया है।
@ POOJA...
ReplyDeleteआपको यह संगीत अच्छा लगा तो लेखक के सुर को सुर मिल गये। मुझे यह गीत इतना अधिक लगा कि पोस्ट लिखना ही पड़ी।
@ सुरेन्द्र सिंह " झंझट "
बहुत धन्यवाद आपका।
@ anupama's sukrity !
बहुत धन्यवाद आपका।
bahut khub. mujhe bangla ke shabdo ki bahut adhik samajh nahi ha. par geet to karn priye hai. aabhar.sanskritik exp hamre yaha v aai thi par main dekh nahi paya tha.
ReplyDeleteslow speed ke kaaran sangeet to nahi sn paaya lekin aalekh me tathya aur abhivyakti bahut ahhi lagi/...........
ReplyDeleteसंगीत नादमय होता है। उसके आनन्द के लिये भाषा ज्ञान आवश्यक नहीं। हार्दिक स्तर पर सम्मिलन भाषा की अपेक्षा नहीं रखता। साधुवाद।
ReplyDeleteएक निवेदन-
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
@ musaffir
ReplyDeleteहमारी सांस्कृतिक धरोहर अति वृहद है, केवल उस पर गर्व होने लगे, आनन्ग गंगा बह जायेगी।
@ CS Devendra K Sharma "Man without Brain"
संगीत सुन लेने से यही आनन्द द्विगणित हो जायेगा।
@ वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर
सच कहा आपने, संगीत की कोई भाषा नहीं होती। वृक्ष संरक्षण पर सार्थक संदेश।
डूबना तो है, लेकिन अभी नहीं, घर जाने के बाद...ऑफिस में सुन नहीं सकता हूँ न :)
ReplyDelete@ abhi
ReplyDeleteडूबकर बाहर निकलियेगा तब बताइये कि कैसा लगा?
avashya pravin ji ,prayas karoongi .shukriya aapka dil se .
ReplyDelete@ ज्योति सिंह
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ ज्योति सिंह
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।