मैं न कभी उद्वेगों को समझा पाया,
मैं न कभी एक निश्चित चाह बना पाया,
जब देखा जीवन को जलते, बस पानी लेकर दौड़ गया,
था जितना बचता साध लिया, और शेष प्रज्जवलित छोड़ गया,
जीवन को संचय का कोरा घट, नहीं बना मैं सकता हूँ,
सज्जनता से जीवित होता, झूठे भावों से थकता हूँ।
पर एक प्रार्थना ईश्वर से कर लेता होकर द्वन्दरहित,
जीवन की रचना स्वस्थ रहे, यद्यपि हो जाये रंगरहित,
जो था अच्छा बचा रहे,
जो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ।
अच्छे और सच्चे के बचने के लिये मन के बच्चे का बचना जरूरी है।
ReplyDeleteमन की मासूमियत ,सहजता ,उछाह उजास ही तो जीवन की जीवन्तता है ... जीवन भर यह भाव स्पंदित रहे -कवि अभिलाषा से तादात्म्य है !
ReplyDeleteजो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की आपाधापी में,
मन का बच्चा बचा रहे।
--
सभी को यही अर्चना करनी चाहिए!
----मन बच्चा बना रहे...सारे द्वन्द्व ही समाप्त हो जांय...
ReplyDeleteवो कागज़ की कश्ती
वो नदिया का पानी...
जीवन की यह आपाधापी,
ReplyDeleteमन का बच्चा बचा रहे ।
मन में विशुद्ध भाव रखने के लिए बच्चा बनना ही उचित है.
जो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ...
आमीन !
.
बहुत सही मांग है....
ReplyDeleteबच्चे मन के सच्चे.....
''जीवन की रचना स्वस्थ रहे, यद्यपि हो जाये रंगरहित'' ऐसा कैसे हो सकता है, रंग तो बच्चे की आंखें भर लेंगी फिर क्यों न जीवन को रंगीन मानें, झूठा ही सही.
ReplyDeleteजो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ।
हाँ सही कहा आपने क्योकि बच्चे मन के सच्चे ....
ज्यों-ज्यों इनकी उम्र बढे मन पर पाप का मैल चढ़े......
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति मन के द्वन्द को काबू में रखकर संतुलित रखने की प्रेरणा देती हुयी....
जीवन की रचना स्वस्थ रहे ...यद्यपि हो जाये रंगहीन ...
ReplyDeleteजो था अच्छा बचा रहे,जो था सच्चा बचा रहे,जीवन की यह आपाधापी,मन का बच्चा बचा रहे ।
शुभ विचार .. आमीन !
जो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ।
bahut zaruri hai...
हमेशा ही मन में एक बच्चा रहता है बस इसका बचना ज़रूरी है ...आमीन
ReplyDeleteसच्चे जीवन का तिलक,
ReplyDeleteहर माथे पर रचा रहे !
मानवता बच जाए ग़र,
मन का बच्चा बचा रहे!
tabhi to ye balak bara nahi hona chahta.......
ReplyDeletepranam.
मन का बच्चा बचा रहे ।
ReplyDeleteबस यही सबसे ज़रूरी है
सभी को यही अर्चना करनी चाहिए!
ReplyDeleteअच्छे और सच्चे के बचने के लिये मन के बच्चे का बचना जरूरी है।
अच्छे लगे सच्चे मन के उदगार.
ReplyDeleteजो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ।
जीवन इसी का नाम है ...हम बच्चे बने रहें ..और दूसरों के लिए ख़ुशी का कारण बनते रहें ...आपका आभार
जीवन को संचय का कोरा घट, नहीं बना मैं सकता हूँ,
ReplyDeleteसज्जनता से जीवित होता, झूठे भावों से थकता हूँ।
कितने सुन्दर शब्द दिये हैं आपने…………भाव प्रधान रहे हैं।
बेहतरीन। उम्मीद करता हूं कि बचा रहेगा।
ReplyDeletedil toh baccha hai ji! haha
ReplyDeleteमन का बच्चा बचा रहे ।
ReplyDeleteबस यही सबसे ज़रूरी है
जो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ।
बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में ...।
बच्चे ही सच्चे होते है , रामकृष्ण परम हंस भी जीवन भर बचपना लेकर जीते रहे . उसी में सरलता है
ReplyDeleteमन के बचने के लिए बच्चे का बचना जरूरी है :)
ReplyDeleteजो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे
आमीन ......
dil to bachcha hai jee...:)
ReplyDeleteyaad aa gaya...!!
kash hamari soch bhi aisee hi bani rahe..!
जो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ।ाज की दुनिया मे यही तो बचना मुश्किल है\ फिर भी कोशिश जारी रहनी चाहिये। सुन्दर रचना। बधाई।
जब देखा जीवन को जलते, बस पानी लेकर दौड़ गया,
ReplyDeleteथा जितना बचता साध लिया, और शेष प्रज्जवलित छोड़ गया,
जीवन को संचय का कोरा घट, नहीं बना मैं सकता हूँ,
सज्जनता से जीवित होता, झूठे भावों से थकता हूँ।
यानी कि आज के युग के हिसाब से आपने सारे काम उलटे किये :) बेहद ह्रदय स्पर्शी पंक्तियाँ
जब देखा जीवन को जलते, बस पानी लेकर दौड़ गया,
ReplyDeleteथा जितना बचता साध लिया, और शेष प्रज्जवलित छोड़ गया,...
बहुत मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ...भाव और ओज का बहुत सुन्दर सामंजस्य..अगर मन का बच्चा बचा रहे तो फिर जीवन में खुशी के लिए और क्या चाहिए..
मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा,
ReplyDeleteबड़ों की देखकर दुनिया, बड़ा होने से डरता है!
सहमत हे जी आप की इस सुंदर कविता से, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत ख्याल है..........
ReplyDeleteजो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ।
ईश्वर करे, ऐसा ही हो...
जीवन की आपाधापी में,
ReplyDeleteमन का बच्चा बचा रहे।
bahut achchhi baat kahi aapne
these two lines are saying too many things .
i wish we all will remain child by heart always
मन का बच्चा बचा रहे ......!
ReplyDeleteइस लाइन पर एक पूरा किताब लिखी जा सकती है ! आप मर्मज्ञ हैं इश्वर आपके मन को ऐसा ही बनाये रखे ! शुभकामनायें !
बहुत खूब,
ReplyDeleteबच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे...
जाहिर है, बच्चा बना रहना सम्भव नहीं। बच्चा बना रह ही नहीं सकता। प्रकृति ने ही व्यवस्था कर दी है। यदि मन बच्चा बना रहे और बच्चा ही बना रहे तो सारे संकट दूर हो जाऍं। बच्चा ही कह सकता है - राजा नंगा है।
ReplyDeleteआपकी मनोकामना हम सबको फलीभूत हो। आमीन।
The loss of one's innocence is a turning point in our life.
ReplyDeleteभोलापन, न केवल मन का बल्कि दिल का और आतमा का, जब हम खोते हैं, तब हम अपना बचपन खोते हैं
G Vishwanath
जीवन की आपाधापी में ..मन का बच्चा बचा रहे ... कितना सुन्दर वर्णन है एक सुन्दर सरल जीवन के लिए... बहुत खूब... सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteजीवन की रचना स्वस्थ रहे, यद्यपि हो जाये रंगरहित
ReplyDelete>
>
आपकी प्रार्थना में मैं भी शरीक हूं:)
मन का बच्चा बचा रहे बस और कुछ नहीं ....
ReplyDeleteमुझे लगता है मेरे अन्दर अभी मन का बच्चा बचा है ............कब तक पता नही
ReplyDeleteकविता अभिधेयात्मक एवं व्यंजनात्मक शक्तियों को लिए हुए है।
ReplyDeleteजब महात्माजी अपने शिष्यों के साथ वापिस जा रहे थे शिष्यों के मन में उथल पुथल थी की गुरूजी ने ऐसा आशीर्वाद क्यों दिया ?तब उन्होंने बड़ी विनम्रता दे पूछा ?गुरुवर जिन्होंने अच्छा आचारण किया छिन्न भिन्न का और जिन्होंने खराब आचरण किया उन्हें स्थायी रहने का आशीर्वाद क्यों ?
ReplyDeleteतब महात्माजी ने कहा -
जो लोग अच्छे है वो जहाँ भी जायेगे अपनी सच्चरित्रता फैलायेंगे और सुन्दर संसार बनायेगे |इसलिए छिन्न भिन्न होना है |और जो लड़ाई झगड़ा करते है वो एक ही जगह रहे वही कटे मरे तो ठीक है |अपनी बुराइयाँ आगे न फैलाये |
जो था अच्छा बचा रहे,जो था सच्चा बचा रह
आपकी प्रार्थना पढ़कर मुझे यः बोध कथा स्मरण हो आई |
जो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ...
आमीन....
सादर,
डोरोथी.
nice creation...:)
ReplyDeleteदिल को छू लेने और बस जाने वाली कविता.इसे पढ़ते हुए एक दुआ होठो पर आती है क़ि सृजन इतना अच्छा, बचा रहे.
ReplyDeleteमन की निश्चलता के लिए बच्चा बनना ही उचित है.
ReplyDeleteबचपनके बारे में क्या कहना जी.....मेरी एक रचना का एक अंश है.....
ReplyDelete"जब फिरते थे इठलाते से,माटी,कचरे को अंग लगाये,सारी चिंताएं लेकर,जाने क्यूँ आया ये यौवन?
भूले नहीं हैं बचपन के दिन !"
बचपन अनमोल विरासत है,अफ़सोस उसे हम बचाकर रख नहीं सकते ,याद रखने के सिवा !
अगर मन का बच्चा बचा रहे तो फिर जीवन में खुशी के लिए और क्या चाहिए|
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति|
बहुत पहले बीबीसी पर ‘बाल-सभा’ में एक कविता सुनी थी जो यह पोस्ट पढ़ने के बाद मन गुनगुनाने लगा
ReplyDeleteअच्छा होना अच्छा है
लगता इसमें दाम नही
अच्छा बनते जाने से
अच्छा कोई काम नहीं
:)
जीवन की यह आपाधापी,
ReplyDeleteमन का बच्चा बचा रहे ।
बस यही कामना है....सुन्दर अभिव्यक्ति
जब देखा जीवन को जलते, बस पानी लेकर दौड़ गया,
ReplyDeleteआपके हाथों में पानी है इतना क्या कम है .....
'मन का बच्चा बचा रहे .'
ReplyDeleteआमीन !
आमीन, बहुत ही सुन्दर व सही कविता.
ReplyDeleteदिक्कत यही है की हम जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं, वैसे वैसे हमारे अन्दर का बच्चा मरने लगता है या हम खुद ही उसे मरने लगते हैं, लेकिन सच यही है कि
"जो था अच्छा बचा रहे,
जो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की आपाधापी में,
मन का बच्चा बचा रहे।"
एकदम सच्ची पंक्ति है यह.
अपने साथ ही दूसरो का मन भी बच्चा बना रहे यही सच्चापन है ।
ReplyDeleteसबके मन का बच्चा चिरायु हो ....
जब तक बच्चा है, बचा है..
ReplyDeleteबचा रहेगा..
ReplyDeleteअब सभी ब्लागों का लेखा जोखा BLOG WORLD.COM पर आरम्भ हो
ReplyDeleteचुका है । यदि आपका ब्लाग अभी तक नही जुङा । तो कृपया ब्लाग एड्रेस
या URL और ब्लाग का नाम कमेट में पोस्ट करें ।
http://blogworld-rajeev.blogspot.com
SEARCHOFTRUTH-RAJEEV.blogspot.com
man mein satyanishta ka mangal prabhat
ReplyDeleteprarthna ke liye uthe sarthak
shabd haath
bahdaee
praveen ji
ReplyDeletebaht hi badhiya avam sarthak post .bilkul sach kaha aapne-
जो था अच्छा बचा रहे,
जो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे
bachhe to nishhl man ke bhole v pyaare hote hain .agar aaj insaan man se bachh hi bana rahe to shayad duniya ka naksha kuchh aur hi hoga..
bahut hi sundar prastuti====
poonam
जीवन की यह आपाधापी,
ReplyDeleteमन का बच्चा बचा रहे ।
बस यही कामना है....सुन्दर अभिव्यक्ति
वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए
ReplyDeleteकुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ
very true...innocence and nascency must be preserved..
ReplyDeleteदिल तो बच्चा है जी...
ReplyDeleteजो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ।
sunder rachna k liye badhai
इस बात को आजतक न जाने कितने लोगों ने कही होगी,पर आपके कहने का अंदाज और असर निराला है...सीधे मन तक पहुँचता है और इसका अंग बन जाता है...
ReplyDeleteईश्वर आपकी अभिलाषा पूर्ण करें...
ReplyDeleteइस प्रकार की प्रार्थना कभी कभी ही पढ़ने को मिलती है |
ReplyDeleteपर एक प्रार्थना ईश्वर से कर लेता होकर द्वन्दरहित,
ReplyDeleteजीवन की रचना स्वस्थ रहे, यद्यपि हो जाये रंगरहित
द्वन्द्वरहित प्रार्थना फलीभूत हो।
@ संजय @ मो सम कौन ?
ReplyDeleteमन के बच्चे को खटकता रहता है कुछ भी गलत होना, यही आधार रहेगा जिससे अच्छाई बची रहेगी।
@ Arvind Mishra
आस है जो मन में बचे रहने की, मेरे और आप सबके, उसी से विश्व में कोमल भावों का संचार संभव है।
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
यही अर्चना करेंगे सब तो न जाने कितना अच्छापन बच जायेगा सबके हृदय में, एक दूसरे के प्रति।
@ Dr. shyam gupta
बच्चा द्वन्द में सच्चाई देखता हैं, हम वयस्क चतुराई।
@ रचना दीक्षित
मन की निर्मलता बनाये रखने के लिये बालक सा उत्साह आवश्यक होता है, बस वही बचा रहे।
@ ZEAL
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Rajesh Kumar 'Nachiketa'
काश वह कोमलपन जीवनपर्यन्त बना रहे।
@ Rahul Singh
बच्चों को तो सब रंगीन लगता है, पर जब स्वास्थ्य और रंग की बात आयेगी, स्वास्थ्य पहले चुना जायेगा।
@ honesty project democracy
उम्र के साथ साथ स्वार्थ का न जाने कितना मैल चढ़ जाता है, पर उसे हटाकर अन्दर देखें तो अभी भी एक भोला बच्चा छिपा होगा।
@ वाणी गीत
बहुत धन्यवाद आपका, काश जीवन सरल हो जाये।
@ रश्मि प्रभा...
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
वही हमको टोकता रहता है, अपने बच्चों की तरह।
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ, मानवता का प्रश्न है।
@ सञ्जय झा
तथाकथित बड़े होने में हमें भी डर ही लगता है।
@ Kajal Kumar
काश आप सबकी प्रार्थना सुन ली जाये।
@ Deepak Saini
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ ashish
बहुत धन्यवाद आपका।
@ : केवल राम :
बच्चे सबको प्रसन्नता देते हैं, मन का बच्चा निसन्देह प्रसन्नता ही देगा।
@ वन्दना
भावों में शरीर को प्रभावित करने की क्षमता होती है।
@ satyendra
बहुत धन्यवाद आपका।
@ SEPO
ReplyDeleteउसे बचाये रखना होगा।
@ neelima sukhija arora
वह बचा रहे तो मानवता बची रहेगी।
@ सदा
बहुत धन्यवाद आपका।
@ गिरधारी खंकरियाल
सरलता बच्चों का गुण, मानसिक प्रदूषण से कोसों दूर।
@ डॉ महेश सिन्हा
मन का बच्चा बचा रहे, तभी हम छोटे छोटे सुखों का आनन्द ले पायेंगे।
@ shikha varshney
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Mukesh Kumar Sinha
सरलता का आनन्द बच्चा बने रहने में है।
@ निर्मला कपिला
जीवन में यह सरलता दुर्लभ रहनी चाहिये।
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
काम उल्टे कर रहे हैं पर फल सीधा साधा मिल रहा है।
@ Kailash C Sharma
छोटी बातों की खुशी केवल बच्चा ही उठा पाता है।
@ सम्वेदना के स्वर
ReplyDeleteसच में बड़ा होने से डर लगता है।
@ राज भाटिय़ा
बहुत धन्यवाद आपका।
@ उपेन्द्र ' उपेन '
बहुत धन्यवाद आपका।
@ सुशील बाकलीवाल
हम सबकी अर्चना स्वीकार हो जाये।
@ "पलाश"
वही जीवन की उपलब्धि होगी।
@ सतीश सक्सेना
ReplyDeleteआप ही वह पुस्तक लिखने के सर्वाधिक योग्य हैं। आप ही लिखें, आपका अनुभव हम सबके काम आयेगा।
@ सोमेश सक्सेना
यही डर लगता है कि यदि ये हम जैसे हो गये तो कितना अहित हो जायेगा।
@ विष्णु बैरागी
सच कहा आपने, बच्चा सरल भी होता है, साहसी भी। वही कह सकता है कि राजा नंगा है।
@ G Vishwanath
अब उस सरलता में लौट पाना रह रह कर कठिन होता जा रहा है, प्रयास करता हूँ तो अपना वर्तमान देखकर आँखे नम हो जाती हैं।
@ डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति
जीवन जितना सरल हो उतना अच्छा होता है।
@ cmpershad
ReplyDeleteसमवेत स्वर और भी शक्ति लिये होंगे।
@ Sunil Kumar
यही सरलता साध्य हो, बस।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
बचाये रखिये, सबको उसकी दृष्टि चाहिये, घटनाओं को समझने के लिये।
@ मनोज कुमार
बहुत धन्यवाद आपका। मेरे तो मन से बह गयी यह प्रार्थना।
@ शोभना चौरे
बहुत धन्यवाद आपका, यह कथा बाटने के लिये।
@ Dorothy
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Gopal Mishra
बहुत धन्यवाद आपका।
@ संतोष पाण्डेय
मन का बच्चा बचा रहेगा तो सृजन में सरलता बनी रहेगी नहीं तो शब्दजाल में उलझ जाने का क्रम निकल ही आता है।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
निश्छल मन, सरल जीवन, लक्ष्य पर प्रतिबद्धता, और क्या चाहिये।
@ संतोष त्रिवेदी
बहुत सुन्दर रचना, न जाने क्यों आया यौवन।
@ Patali-The-Village
ReplyDeleteतभी खुशी बनी रहेगी निश्छल निर्मल।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
अच्छे बनते रहना होगा
बच्चा बनते रहना होगा।
@ rashmi ravija
बहुत धन्यवाद आपका।
@ हरकीरत ' हीर'
हाथों का पानी कितनी अग्नि बुझा सकता है?
@ प्रतिभा सक्सेना
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Sanjeet Tripathi
ReplyDeleteबच्चा तो सदा ही सच बोलता है, हम ही उसे चुप करा कर बैठा देते हैं, बार बार।
@ nivedita
मन का बच्चा उम्रभर साथ रहे, यही प्रार्थना है।
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
बच्चा ही बचे बस।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
बहुत धन्यवाद आपका।
@ RAJEEV KUMAR KULSHRESTHA
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Ashok Vyas
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका, सबकी प्रार्थना बल पाये।
@ JHAROKHA
जब घर में बच्चे आता है, माहौल हल्का और आनन्दमय हो जाता है, वही हाल मन के बच्चे के साथ भी होता है।
@ संजय भास्कर
बहुत धन्यवाद आपका।
@ amit-nivedita
वही हम सबका प्रयास हो, चतुराई से कुछ नहीं मिलेगा।
@ Akanksha~आकांक्षा
दिल तो बच्चा है जी...
बस वही बच्चा बचा रहे।
@ amrendra "amar"
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ रंजना
सरल बात तो सरलता से ही मन से निकली है, बच्चे बने रहने की वाणी जटिल कैसे हो।
@ नरेश सिह राठौड़
पर मन सदा ही करता रहता है जब निर्मलता में होता है।
@ mahendra verma
जीवन चिन्तन दूषित न हो स्वार्थतिक्तता से।
बहुत ही निर्मल और सशक्त प्रार्थना, शायद ऐसी ही प्रार्थनाएं ईश्वर सुनता है जो बाल मन से की गई हों, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
पर एक प्रार्थना ईश्वर से कर लेता होकर द्वन्दरहित,जीवन की रचना स्वस्थ रहे, यद्यपि हो जाये रंगरहित,
ReplyDeleteजो था अच्छा बचा रहे,जो था सच्चा बचा रहे,जीवन की यह आपाधापी,मन का बच्चा बचा रहे ।.......
मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।
@ ताऊ रामपुरिया
ReplyDeleteसरलता की प्रार्थना सरल मन से न की जाये तो उसका कोई अर्थ नहीं। बच्चों की तो भगवान सुनता ही है।
@ Dr Varsha Singh
बहुत धन्यवाद प्रोत्साहन का।
जो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ।
....aaj isi kee samaj ko shakht jarurat hai.... bahut sundar
@ कविता रावत
ReplyDeleteसमाज के हर स्तर पर जो विष घुल गया है, उसे केवल मन का बच्चा ही बचा सकता है, निर्मल और निश्छल।
आज बस यही दुआ, आमीन!
ReplyDeleteमासूम अभिव्यक्ति...माँ सरस्वती का आशीर्वाद आप पर बना रहे.
ReplyDelete@ Avinash Chandra
ReplyDeleteआपका स्वर भी इसी प्रार्थना को मिले।
@ शब्द-साहित्य
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .अच्छा लगा....
ReplyDeleteजीवन को जीवटता से जीने में सतत अभ्यासरत होने की झलक मिलती है,इस रचना में |
ReplyDeleteजो था अच्छा बचा रहे,
ReplyDeleteजो था सच्चा बचा रहे,
जीवन की यह आपाधापी,
मन का बच्चा बचा रहे ।
बहुत ही सुन्दर भाव.
@ वर्ज्य नारी स्वर
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ sunil purohit
जब मन को बचाये रखने का प्रयास होगा, आनन्द और सततता बनी रहेगी जीवन में।
@ अभिषेक मिश्र
बहुत धन्यवाद आपका।
रिचर्ड फिलिप्स फाइनमेन भौतिक शास्त्र में नोबेल पुरुस्कार विजेता हैं। वे २०वीं शताब्दि के दूसरे भाग में सबसे जाने माने वैज्ञानिक रहे हैं। उनकी गोद ली पुत्री ने कुछ समय पहले Don’t you have time to think नाम से उन्हें भेजे पत्र एवं उनके जवाबों का संकलन निकाला है। यह एक बेहतरीन पुस्तक है। पढ़ने से लगता है वे इतना कुछ कर पाये क्योंकि जीवन भर बच्चों की उत्सुकता को रख पाये।
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत बात कही आपने सच मै दोस्त अपने अन्दर के बच्चे को हमेशा जिन्दा रखना चाहिए वही तो हर वक़्त आगे बड़ते रहने और हमे जीने का होंसला देती है !
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत बात खुबसुरत अंदाज़ मै सुनना अच्छा लगा !
@ उन्मुक्त
ReplyDeleteबिना बच्चों सी उत्सुकता रखे जीवन में कुछ नया नहीं दिख पाता है। मन का यह रूप बचा रहे।
@ Minakshi Pant
जीवन को गम्भीर बना देने से जीवन का आनन्द चला जाता है, बालकों सा अल्हड़पन बना रहे।
पर एक प्रार्थना ईश्वर से कर लेता होकर द्वन्दरहित,जीवन की रचना स्वस्थ रहे, यद्यपि हो जाये रंगरहित,
ReplyDeleteजो था अच्छा बचा रहे,जो था सच्चा बचा रहे,जीवन की यह आपाधापी,मन का बच्चा बचा रहे ।
आपके इतने कोमल और शुद्ध भाव बहुत अच्छे लगे -
बहुत सुंदर रचना है .
कविताओं पर टिप्पणी करना मेरे लिए सबसे कठिन है...केवल खूबसूरत बोल के निकलना भी नहीं चाहता :)
ReplyDelete@ anupama's sukrity !
ReplyDeleteभावों की कोमलता शीघ्र ही बह निकलती है यदि बाहर का वातावरण देख नयन द्रवित होने लगें।
@ abhi
मन का बच्चा बचा रहे तब तो।