कभी तानपुरा देखा है? किसी भी संगीत समारोह में, मंच के दोनों ओर, पार्श्व में स्तंभ से खड़े दो वाद्य यन्त्र, साथ में चेहरे पर सपाट सा भाव लिये धीरे धीरे उस पर ऊँगलियाँ फिराते दो वादक। जब तबला, बाँसुरी, हारमोनियम, सरोद आदि वाद्य यन्त्र, सुर-ताल के साथ किये सफल प्रदर्शन का उत्साह एक दूसरे के साथ बाटते हैं, तानपुरे निस्पृह भाव से अपने कार्य में लगे रहते हैं। कभी भी तानपुरे के लिये तालियाँ बजते नहीं सुनी। कभी कभी तो लगता था कि परम्पराओं की बाध्यता में हमने मंच के दोनों ओर दो निर्जीव स्तम्भ खड़े कर रखे हैं, जिनके न होने पर मंचों का आकार कम किया जा सकता था। इस विषय में मेरा ज्ञानबोध अपूर्ण निकला, जब तानपुरे के बारे में जाना, कुछ अपनों सा लगा उसका भी जीवन।
इलेक्ट्रॉनिक तानपुरे ने उत्सुकता को एक नयी दिशा दे दी। यह उनके संगीत के लिये बंगलोर की देन थी। तानपुरे की उपयोगिता पर एक सारगर्भित चर्चा छेड़ते हुये उन्होने जो बताया, प्रयोगसहित, उसे यथावत प्रस्तुत कर रहा हूँ।
बाँसुरी में सुरों के आरोह व अवरोह के मध्य कहाँ पर आकर स्थिर होना है, इसके लिये एक ध्वनि-आधार आवश्यक होता है। वह न होने की स्थिति में स्वरों को भटकने से रोकना अत्यधिक कठिन हो जाता है। जिस आधार पर बाँसुरी बज रही थी, उस आधार पर तानपुरे का नॉब घुमाने पर वातावरण में एक अनुनाद का अनुभव हुआ जो संकेत था कि आप आधार पर वापस आ चुके हैं। यही सिद्धान्त गायकी में भी प्रयुक्त होता है। मुझसे भी उस आधार पर गाने के स्वर स्थिर करने को कहा गया, जब कानों में स्वर गूँजने लगा तब लगा कि यही संयोजन की स्थिति है। थोड़ा सा ऊपर व नीचे करने में कर्कशता उत्पन्न होती है और पता लग जाता है कि स्वरों से भटकाव हो गया है।
हम सबके व्यक्तित्व में एक तानपुरा बसता है, जो एक आधार बनाता है, एक दृष्टिकोण बनाता है, घटनाओं और व्यक्तित्वों को समझने का। उत्थान-पतन, लाभ-हानि आदि द्वन्दों से भरा है हम सबका जीवन पर इन सबके बीच जो विश्राम की निर्द्वन्द स्थिति आती है, वही हमारे तानपुरे की आवृत्ति है। व्यक्तिगत सम्बन्धों में उत्पन्न कर्कशता, जीवन को उन स्वरों में ले जाने के कारण होती है, जो औरों के व्यक्तित्व के तानपुरे के साथ संयोजित नहीं हो पाते हैं। परम्परा को नव विचार नहीं सुहाता, ऊर्जान्वित यौवन को शैथिल्य नहीं सुहाता, सब चाहते हैं कि विश्व के स्वर उनके तानपुरे की आवृत्ति में रहें।
किसी व्यक्ति के लिये उसके संस्कार ही तानपुरा है, जीवन के सुर उसके ही आसपास घूमते हैं। किसी समाज के लिये उसकी संस्कृति और जनसामान्य की जीवनशैली ही तानपुरा है। किसी देश के लिये शान्ति, विकास और समृद्धि की आस ही तानपुरा है। अमेरिका की व्यक्तिगत कर्मशीलता, जापान का पारिवारिक अनुशासन, भारत का सामाजिक अध्यात्म ऐसे ही तानपुरे हैं जिसका आधार ले वहाँ के जीवन-गीत निर्मित होते हैं। आप भारत में अमेरिका या अमेरिका में जापान के मूल्य नहीं खोज सकते।
आप माने न माने, आपका जीवन समाज के तानपुरे को बल देता है और उससे प्रभावित भी होता है। आपका हलचलविहीन जीवन भले ही आपको भला न लगे पर वह हर समय उस तानपुरे का सृजन कर रहा होता है जिसकी आवृत्ति पर आने वाली पीढ़ियाँ सुर मिलायेंगी। हमारे पूर्वज जिनका नाम इतिहास की पुस्तकों में नहीं है, हमारे वयोवृद्ध जो उत्पादकता के मानकों पर शून्य हैं, वे जनसामान्य जिनका जीवन विशेष की श्रेणी में नहीं आता है, सबने वह आधार निर्माण किये हैं जिस पर हम अपने उत्थानों के स्वर सजाते रहते हैं।
अगली बार किसी समारोह में तानपुरों को देखें, स्तम्भवत, उमंगविहीन, तो मन में उनके प्रति अकर्मण्यता के भाव न लायें। वे आधार तैयार कर रहे हैं उन आवृत्तियों का जिन पर श्रेष्ठ मंचीय प्रदर्शन निर्भर करता है।
उन तानपुरों से कितना मिलता जुलता है, हम सबका जीवन।
जीवन का एक आयाम ऐसा भी हो सकता है कभी नहीं सोचा था....
ReplyDeleteध्यानाकर्षण के लिए धन्यवाद....
विज्ञान भे है और इसमें जीवन-दर्शन भी है......
गणतंत्र दिवस की शुभकामना....
राजेश
भारतीय शब्दयोग के साधकों को शुरू में स्थिर बैठ कर तानपूरा बजाने और तन्मययता का अभ्यास कराया जाता है. इससे मन में एकाग्रता आती है.
ReplyDeleteआपका आलेख पढ़ कर ज्ञान बढ़ा है. आभार.
किसी समाज के लिये उसकी संस्कृति और किसी देश के लिये शान्ति, विकास और समृद्धि की आस ही तानपुरा है। अमेरिका की व्यक्तिगत कर्मशीलता, जापान का पारिवारिक अनुशासन, भारत का सामाजिक अध्यात्म ऐसे ही तानपुरे हैं जिसका आधार ले वहाँ के जीवन-गीत निर्मित होते हैं। आप भारत में अमेरिका या अमेरिका में जापान के मूल्य नहीं खोज सकते।
ReplyDelete--------------------
आपका सूक्ष्म अवलोकन और फिर उसका शाब्दिक अवतरण कमाल का होता है..... बहुत सुंदर
सचमुच तानपुरों से बहुत मिलता जुलता है हमारा जीवन......
तानपुरे का स्वर चिंतन करके बुद्ध ने परम तत्व को प्राप्त कर लिया।
ReplyDeleteआभार
तानपूरे और उसके दर्शन पर पहली बार जाना ..आभार ..
ReplyDeleteमगर आज का तो एक ही स्वर -तिरंगा ऊँचा रहे हमारा
किसी व्यक्ति के लिये उसके संस्कार ही तानपुरा है, जीवन के सुर उसके ही आसपास घूमते हैं।
ReplyDeleteतानपुरे के माध्यम से अध्यातमिक चर्चा का आनन्द आ गया.
वैसे जब आप से कहा गया गाने को, तो क्या आपने रिकार्ड भी किया? जरा सुनवाईये तो!!
तानपुरे क बारे में बहुत कुछ जानने को मिला..
ReplyDeleteशास्त्रीय संगीत में तानपुरा और बैन्ड में बडा भोपू यह तो फ़ीलर है.
ReplyDeleteगज़ब की पोस्ट
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आलेख !
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ....
ReplyDeleteयूँ तो हम जमीन पर भी बैठ सकते हैं, लेकिन आसन बिछा कर बैठना कुछ और है। चित्र बहुत बड़ी दीवार पर बनाने के पहले जहाँ तक बनाना है वहाँ तक उसे सफेद पोत दिया जाए तो बात कुछ और है। मकान तो जमीन पर खड़ा किया जा सकता है लेकिन नींव बना कर खड़ा करें तो बात कुछ और है।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सन्दर्भ पर आधारित प्रस्तुती.....दुःख तो इसी बात का है की आज लोग इस महान देश में भ्रष्टाचार और बेईमानी का तानपुरा शर्मनाक तरीके से बजा कर इस देश और समाज के वातावरण को दूषित करने पे तुले हैं .......भ्रष्टाचार इंसानियत,सत्य और न्याय को खाने पे तुली है.....जरूरत है की इस विषम परिस्थितियों के भीच भी हमसब मिलकर एक ऐसी तानपुरा बजाएं जिससे इंसानियत की गीत निकले और शर्मनाक स्तर का भ्रष्टाचार का शोर दूर हो..... आभार आपका इस शानदार पोस्ट के लिए
ReplyDeleteतानपुरे के बारे मे पहली बार इतनी सुन्दर जानकारी मिली। धन्यवाद। आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteसंगीत का प्रेमी हूँ मगर 'टेक्निकल'ज्ञान से वंचित !
ReplyDeleteआपने तानपूरे पर जानकारी दी, साधुवाद !
रोचक सूचना।
ReplyDeleteबेंगळूरु में Radel Systems नाम की कंपनी ये electronic तानपुरे बनाकर बेचती है।
इस कंपनी का मालिक मेरे घर के पास ही रहता है और उनकी दुकान जयनगर में है।
इन से मैं भी कम से कम तीन ऐसे यंत्र खरीद चुका हूँ, एक मेरे बेटे के लिए, (जो शास्त्रीय संगीत में रुचि रखता है और अच्छा गाता भी है) और बाकी मेरे रिश्तेदारों के लिए जो मुम्बई और चेन्नै से मंगवाए थे।
बाँसुरी लिए, संतोषजी बडे अच्छे लग रहे हैं।
उनसे परिचय कराने के लिए धन्यवाद।
किस अखबार से जुडे हुए है? राजस्थान पत्रिका? या दक्षिन भारत?
जहाँ तक मैं जानता हूँ यही दो अखबार हैं, हिन्दी में, जो यहाँ बेंगळूरु से प्रकाशित होते हैं।
काश आप उनकी बाँसुरी वादन का एक अंश जोड देते।
हम सुनने के लिए बहुत उत्सुक हैं।
उनके ब्लॉग साइट पर अभी अभी जाकर आया हूँ और पढने के लिए bookmark कर लिया हूँ ।
यदि अपने साइट पर वे नियमित रूप से लिखने के साथ साथ, बाँसुरी के धुन भी पेश करते हैं, तो हमें ब्लॉग जगत में भटकते भटकते, रुकने के लिए एक और अड्डा मिल जाएगा। उनका पर्मानेन्ट पाठक और सुनने वाला श्रोता बनने के लिए तैयार हूँ। अच्छा लेख और साथ साथ मधुर संगीत! हम ब्लॉग श्रोताओं को और क्या चाहिए?
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
सुन्दर आलेख है
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर आप को ढेरों शुभकामनाये
तानपुरा का अपना एक अलग महत्व है तानपुरा के बगैर कोई भी साज़ अधूरा है ....वाद्य चाहे कोई भी बजे लेकिन तानपुरा को बजाना आवश्यक है ..........तानपुरा यानी नीव का पत्थर .
ReplyDeleteआदरणीय प्रवीण पाण्डेय जी
ReplyDeleteसादर प्रणाम
आपके बहुत संजीदा विषय पर बहुत गंभीरता से प्रकाश डाला है ....जीवन से जुड़े हुए संदर्भों पर आप बहुत अच्छा प्रकाश डालते हैं ...तानपुरा के माध्यम से भी आपने यह साबित कर दिया .....बहुत दिनों से नेट काम नहीं कर रहा है ...ब्लॉग से दुरी बन गयी है ....आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
arre maine toh kabhi suna he nhi tha electronic tanpura. aapne toh tasveer he dikha di. waaah!
ReplyDeletebahut acchi post, mazza a gya dekh ke
गणतंत्र दिवस की आपको भी हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति, आपको भी गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभ्काम्नाये !
ReplyDeleteपाण्डेय साहब, पहले भी कई बार कहा है कि चीजों के नेपथ्य में जाकर उनकी जीवन और जीवन दर्शन में उपयोगिता आप बखूबी पकड़ते हैं। उस नजरिये से रुबरू करवाने के लिये शुक्रिया।
ReplyDeleteगहन चिंतन..गणतंत्र की हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteआपने वाक़ई एकस्वस्थ विचार को पूरा तान कर अगली पीढी तक पहुँचा दिया है!! इसका आधा भी तानपूरा बज जाये तो एक पूरी पीढी सुधर जाएगी, संगीतमय हो जायेगी!!
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई !
ReplyDeletehttp://hamarbilaspur.blogspot.com/2011/01/blog-post_5712.html
जिंदगी कभी लय, कभी ताल तो कभी तानपूरा भी. पिछले महीनों में राजेश गनोदवाले जी का तानपूरे पर पठनीय लेख इण्डिया टुडे में प्रकाशित, चर्चित और प्रशंसित हुआ था.
ReplyDeleteवाह तानपुरा., व्यक्ति ,जीवन और व्यक्तित्व
ReplyDeleteगहन चिंतन.
ज्ञानवर्धक पोस्ट..
तानपुरे पर ज्ञानवर्द्धक आलेख हेतु आभार.
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
तानपुरा पर बहुत ही सुंदर प्रस्तुति. ...... गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई
ReplyDeleteशास्त्रीय संगीत एक अत्यंत प्रिय विषय है मेरा। तानपुरा एक अति-आवश्यक लेकिन किंचित उपेक्षित वाद्य है। उसके बारे में और उसके समरूप जीवन के बारे में आपने जो बताया, उस के लिए आभार स्वीकारें।
ReplyDeleteस्मृतियाँ चमक जाती हैं।
यहाँ पंडित भीमसेन जोशी जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करूँ, चलेगा न?
पहली दफा इस ब्लॉग को पढ़ रही हूँ , पहली दो पोस्ट्स को पढ़कर ही बहुत अच्छा लगा, खास तौर पर आपकी लेखन शैली ने बहुत ही प्रभावित किया है, अब से नियमित रूप से इस ब्लॉग को पढने का प्रयास किया करुँगी|
ReplyDelete.
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शिल्पा
electroni taanpoora... pahli baar dekha.. dhanyavaad...
ReplyDeletesir aakhari wakya ka raag hi nirala laga.aap ko gantantra diwas ki badhayi.
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
ReplyDeleteHappy Republic Day.........Jai HIND
तान्प्रा और जीवन ..गहन और सूक्ष्म दृष्टि से विवेचन किया ...विचारणीय पोस्ट ..आभार
ReplyDeleteआपका जीवन समाज के तानपुरे को बल देता है...
ReplyDeleteअपना जीवन तो पूरा तान के सोने में बीता जी :)
प्रवीन जी अभी तक तो जुबां से ...
ReplyDelete'ताल मिले नदी के जल में 'ही नहीं उतरा और अब आप तान्रुरा लिए आ गए .....
अब ये भी बजा कर दिखाते तो मज़ा आता न .....?
बहुत सुंदर पोस्ट है. मन में गूंज रही है.
ReplyDeleteतानपूरा बजा चुका हूं. ताल वाद्यों को छोड़कर सभी वाद्ययंत्रों को प्रयास करने पर बजा सकता हूं.
तानपुरे पर ज्ञानवर्द्धक आलेख हेतु आभार|
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की शुभकामना|
बहुत सुंदर लेख, तान पुरे के बारे विस्तरित जानकारी धन्यवाद
ReplyDeleteप्रवीन जी ... निशब्द कर दिया आपके लेख ने आज .... मैंने खुद शास्त्रीय संगीत सीखा है ५ साल ... तो तानपुरे की एहमियत समझ सकती हूँ .... आपने उसे कैसे जीवन के साथ जोड़ा है वो प्रशंसनीय है.....किसी ने सही कहा है ... 'जहां न पहुंचे रवि वहाँ पहुंचे कवी '.... बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteउपयोगी आलेख!
ReplyDeleteगणतन्त्र दिवस की 62वीं वर्षगाँठ पर
आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
आपके ब्लॉग मै आने का बहुत दिनों से सोच रही थी आज आने का मोका मिला और आते ही संगीत की स्वर लहरियों को देख कर दिल खुश हो गया शायद संगीत से बेहद प्यार होने की वजह से एसा अच्छा अनुभव हुआ !बहुत सुन्दर जानकारी दी आपने धन्यवाद !
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई !
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं
ReplyDeleteयह भी देखे
भारतीय गणतन्त्र का संकल्प
नमन.
ReplyDeleteप्रत्येक राष्ट्र के अपने मूल्य और सिद्धांत हैं , जो हर दुसरे राष्ट्र में स्थापित नहीं किये जा सकते ...सही कहा
ReplyDeleteतानपुरे की लय पर जीवन की लयात्मकता की तुलना ...वाकई अद्भुत समय है ...एक नवीन दृष्टि दी आपने !
तानपूरा के बारे में उत्तम जानकारी प्रस्तुत करने के लिए आभार .
ReplyDeleteउपयोगी आलेख!
ReplyDeleteगणतन्त्र दिवस की 62वीं वर्षगाँठ पर
आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
अद्भुत सुर लय तान का जीवन से समन्वय....साधुवाद....
ReplyDelete---दिनेश जी के निम्न गहन-वाक्यों का भावार्थ समझ नहीं आया---
" यूँ तो हम जमीन पर भी बैठ सकते हैं, लेकिन आसन बिछा कर बैठना कुछ और है। चित्र बहुत बड़ी दीवार पर बनाने के पहले जहाँ तक बनाना है वहाँ तक उसे सफेद पोत दिया जाए तो बात कुछ और है। मकान तो जमीन पर खड़ा किया जा सकता है लेकिन नींव बना कर खड़ा करें तो बात कुछ और है।"
वाह ...तानपुरा को माध्यम बना इतना सुन्दर सशक्त लेखन ...बेहतरीन ।
ReplyDeleteतानपुरे की तान के साथ जीवन का फलसफा बहुत अच्छा लगा |
ReplyDeleteतानपुरा बजाते अपनी माताजी को मंत्रमुग्ध होते देखा है . सुर लहरी जीवन के हर प्रकोष्ठ झंकृत करती है और मै तानपुरे की तान पर आपकी जीवन दर्शन भरे इस आलेख पर मंत्रमुग्ध हूँ .
ReplyDeleteकिसी व्यक्ति के लिये उसके संस्कार ही तानपुरा है, जीवन के सुर उसके ही आसपास घूमते हैं। किसी समाज के लिये उसकी संस्कृति और जनसामान्य की जीवनशैली ही तानपुरा है। किसी देश के लिये शान्ति, विकास और समृद्धि की आस ही तानपुरा है।
ReplyDeletevismit hun main ... kitne prakhar drishtikon hain ...
तानपुरे के बहाने सार्थक चिंतन...बांसुरी के ऑडियो की भी अपेक्षा थी...अगली बार शायद सुनने को मिले
ReplyDeleteWELL....APKE TANPURE KA PATH NE SAH-ASTITWA KI BARI ACHHI VYAKHYA DI HAI.
ReplyDeletePRANAM.
दार्शनिक अंदाज मनमोह लेता है।
ReplyDeleteजीवन के सुर ताल को तानपूरे में गूँथ दिया !
ReplyDeleteसंतोष जी से अगली बार मिलूँगा तो बाँसुरी अवश्य सुनूगा
आपकी पोस्ट पढ कर किसी का कहा याद आ गया कि सुन्दरता वस्तु में नहीं, देखनेवाले की ऑंख में होती है।
ReplyDeleteतानपूरा तो सैंकडों बार देखा है। दो-एक बार उसके तार भी छेडे हैं। किन्तु जीवन से उसका कोई साम्य हो सकता है - यह पहली ही बार जाना।
सही कहा है। नजर-नजर का फर्क है और यही बात साबित करती है आपकी यह ललित पोस्ट।
मजा आया।
kaafi acchi post hain
ReplyDeletechk out my blog also
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
एक एक शब्द मानस पटल पर उतर जैसे मन मस्तिष्क को तृप्ति देता गया...
ReplyDeleteक्या कहूँ इन सुन्दर अकाट्य विचारों पर...
@ Rajesh Kumar 'Nachiketa'
ReplyDeleteतानपुरे का अस्तित्व जीवन में अनुभव तब होता है जब कोई अटपटा कार्य किये जाने से ही मन में कर्कशता का अनुभव होने लगता है।
@ Bhushan
ध्यान का इससे उत्तम साधन संभवतः नहीं होगा संगीत में। एक आवृत्ति में स्थिर हो जाना।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
अमेरिका में ठीक लगने वाले कार्य यहाँ अटपटे लगने लगते हैं, वही अन्य देशों के लिये भी सच है। सबके तानपुरे अलग अलग है।
@ ललित शर्मा
बुद्धत्व का उद्भव छिपा है तानपुरे में।
@ Arvind Mishra
आज तानपुरा भी देशभक्ति की आवृत्ति में स्थित है।
@ Udan Tashtari
ReplyDeleteतानपुरे का स्वर कान में पड़ते ही मन आध्यात्मिक स्थिति में पहुँच जाता है।
@ Vivek Rastogi
आप तो बाँसुरी सुनने भी आ सकते हैं।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
बड़ा भोंपू भी स्वर संयमित करता है बैण्ड बाजे में।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ZEAL
बहुत धन्यवाद आपका।
@ महेन्द्र मिश्र
ReplyDeleteआपको भी शुभकामनायें।
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
सुदृढ़ गायन के लिये तानपुरे के स्वरों की नींव आवश्यक है।
@ honesty project democracy
आपने ईमानदारी का तानपुरा बजा रखा है, भ्रष्टाचारियों के स्वर कर्कश लगने लगे हैं।
@ निर्मला कपिला
तानपुरे का स्वर भी बहुत सुन्दर है।
@ संतोष त्रिवेदी
संगीत के रस में ज्ञान का काम, हम तो ज्ञान में ही उलझ गये।
@ G Vishwanath
ReplyDeleteसबसे पहला इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा, सुना है बंगलोर में ही आया था। अब अकेले बैठकर स्वरसंधान किया जा सकता है। संतोषजी से प्रर्थना करता हूँ कि बाँसुरी वादन के कुछ अंश लगाऊँगा। आपके बाँसुरी वादन के ट्रैक भी लगाने हैं, ब्लॉग में।
@ Coral
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ana
संगीत के ऊँचे भवनों के लिये गहरी नींव आवश्यक है।
@ : केवल राम :
जीवन का तत्व दिख ही जाता है संगीत में।
@ SEPO
इससे संगीत साधना एकांत में भी की जा सकती है।
@ Sawai Singh Raj.
ReplyDeleteआपको भी बहुत शुभकामनायें।
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
बहुत धन्यवाद आपका।
@ संजय @ मो सम कौन ?
तानपुरा सदा ही दृष्टि में आता रहा है, उसके विषय का सच में जानकर मुझे अच्छा लगा, वही आपसे भी बाँटा।
@ Kailash C Sharma
बहुत धन्यवाद आपका।
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
यदि देश के सुन सांस्कृतिक तानपुरे के अनुसार बजने लगे तो देश सुधर जायेगा।
@ mukes agrawal
ReplyDeleteआपको भी बधाई हो।
@ Rahul Singh
वह लेख अब पढ़ते हैं, तानपुरे के बारे में।
@ shikha varshney
तभी तो दिवंगत भीमसेन जोशी गाते रहे कि मिले सुर मेरा तुम्हारा। उनको श्रद्धांजलि।
@ सुशील बाकलीवाल
बहुत धन्यवाद आपका।
@ उपेन्द्र ' उपेन '
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Avinash Chandra
ReplyDeleteसंभवतः भीमसेन जोशी के निधन से तानपुरा भी स्तब्ध है। उनके योगदान को शतशत नमन।
@ Shilpa
आपका स्वागत और बहुत बहुत धन्यवाद।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
इसके स्वर भी वैसे ही मौलिक हैं।
@ G.N.SHAW
हम सबके सुर अन्य तानपुरों से मिले रहें।
@ संजय भास्कर
आपको भी बहुत बधाईयाँ।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
ReplyDeleteजीवन के संगीत में सुरों का महत्व तो है ही।
@ cmpershad
बड़ा आनन्दमयी है आपका तानपुरा।
@ हरकीरत ' हीर'
संगीतमयी जीवन में यही आनन्द बना रहे।
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
तब तो बहुत पास से देखा है आपने तानपुरे का जीवन।
@ Patali-The-Village
बहुत धन्यवाद आपका।
@ राज भाटिय़ा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ क्षितिजा ....
तानपुरे ने तो सम्मोहित कर लिया था। वह गूँज अब तक कानों में गूँज रही है।
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
आपको भी बहुत शुभकामनायें।
@ Minakshi Pant
स्वागत है आपका, बहुत धन्यवाद।
@ "पलाश"
आपको भी बधाई।
@ santoshpandey
ReplyDeleteआपकी बाँसुरी के स्वर याद आ रहे हैं।
@ वाणी गीत
हमें अपने राष्ट्र की आवृत्ति प्रगति मार्ग में स्थिर करनी होगी।
@ अशोक बजाज
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Mithilesh dubey
बहुत धन्यवाद और बधाई।
@ Dr. shyam gupta
तानपुरे का उपयोग संगीत की नींव का निर्माण करता है।
बहुत सुंदर लेखन.विषय-वस्तु के साथ लेखन कौशल भी पसंद आया.तानपुरे जैसी चीज़ पर भी इतनी वृहद विवेचना लिखी जा सकती है यह देख कर सुखद आश्चर्य हुआ.
ReplyDelete@ sada
ReplyDeleteसंगीत को जीवन में देखने का प्रयास भर है, यह लेख।
@ anshumala
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ashish
तानपुरे सुनते सुनते ध्यान की स्थिति आ जाती है।
@ रश्मि प्रभा...
कोई भी कार्य करने के पहले संस्कार से मिलान कर देखता है यह मन।
@ rashmi ravija
मैं प्रार्थना करूँगा कि अब ऑडियो भी लगायें सन्तोष जी।
@ sanjay jha
ReplyDeleteतानपुरे की आवृत्ति में सारे वाद्ययन्त्र मिलकर बजते हैं। हम सब भी इसी तरह मिलकर बजें देश के विकास में।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
हम तो जीवन संगीत में डूब गये थे, यह दर्शन तो स्वयं ही आ गया।
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ
जीवन संगीतमयी है।
@ विष्णु बैरागी
तानपुरे के साथ सबको सुर मिलाते देख, देश के लिये वह प्रयास दिख गये जो व्याप्त कर्कशता को दूर कर सकते हैं।
@ chirag
बहुत धन्यवाद आपका।
@ रंजना
ReplyDeleteजीवन का आधार संगीत के आधार के जैसा ही है।
@ Meenu Khare
तानपुरा तो संगीत का आधार है, उसी से जीवन का आधार निकल आया।
तानपुरा और दर्शन का सुन्दर समन्वय शब्द सयोजन के साथ |
ReplyDeleteउन तानपुरों से कितना मिलता जुलता है, हम सबका जीवन......
ReplyDeleteगहन दृष्टि. अनूप अवलोकन. आभार
@ शोभना चौरे
ReplyDeleteतानपुरे के स्वरों में जिस ध्यान में डूबना होता है, दर्शन स्वयं आ जाता है।
@ मेरे भाव
तभी तो कहा जाता है कि हम सबके स्वर मिलें।
भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा का ही दूसरा नाम तानपूरा है। सभी प्रकार के शास्त्रीय वादन और गायन में तानपूरे का प्रयोग अनिवार्य है।
ReplyDeleteतानपूरे को प्रतीक के रूप में लेकर आपने व्यक्ति और समाज के चिंतन प्रवाह रूपी तानपूरे की विषद और गूढ़ विवेचना की है आपने।
प्रवीण जी, आपका लेखन मुझे प्रभावित करता है।
उच्च स्तरीय चिंतन से उपजे इस आलेख के लिए बधाई।
@ mahendra verma
ReplyDeleteजिस प्रकार तानपुरा संगीत का आधार निश्चित करता है, संस्कार और जीवन शैली जीवन का आधार निश्चित करते हैं। संभवतः यही संयोग दोनों को एक साथ ले आया।
तान्पुरा और जीवन ... दोनो में एकरूपता है ...
ReplyDeleteये आपकी खूबी है विषय को प्रभावी तरह से उठा कर जीवन के गूड़ रहस्यों तक ले जाते हैं ....
@ दिगम्बर नासवा
ReplyDeleteजीवन और तानपुरे, दोनों में संगीत है और प्रवाह है। यही समानता उभर आयी संभवतः।
पता नहीं कैसे आपकी ये पोस्ट पहले नहीं पढ़ी .बहुत रोचक है .तानपुरा तो आधारस्तंभ है संगीत का .उससे उपजे स्वर ही गायक के हृदय के तार झंकृत कर देते हैं और उसी आधार पर पूरा सुरीला संगीत उत्पन्न होता है .जहाँ तक मुझे ज्ञात है राग का नाम भूपाली है भोपाली नहीं कृपया सुधार कर लीजियेगा .
ReplyDelete@ anupama's sukrity !
ReplyDeleteतानपुरा तो स्तम्भ है संगीत का। राग का नाम भूपाली है, ठीक कर लिया है।
आप छोटी छोटी चीजों को जीवन दर्शन से जोड़ कर देख लेते है|
ReplyDelete@ नरेश सिह राठौड़
ReplyDeleteतानपुरा तो जीवन का आधार है, इसी प्रकार हमारे संस्कार भी हमारी निर्णय प्रक्रिया के आधार हैं।