किसी स्थान की प्रसिद्धि जिस कारण से होती है, वह कारण ही सबके मन में कौंधता है, जब भी उस स्थान का उल्लेख होता है। यदि पहली बार सुना हो उस स्थान का नाम, तो हो सकता है कि कुछ भी न कौंधे। आपके सामाजिक या व्यावसायिक सन्दर्भों में उस स्थान की प्रसिद्धि के भिन्न भिन्न कारण भी हो सकते हैं। आपको अनेकों सन्दर्भों के एक ऐसे स्थान पर ले चलता हूँ, जो संभवतः आपने पहले न सुने हों, मेरी ही तरह।
रेलवे पृष्ठभूमि में, बरुआ सागर का उल्लेख आने का अर्थ है, उन पत्थरों की खदानें जिन के ऊपर पटरियाँ बिछा कर टनों भारी ट्रेनें धड़धड़ाती हुयी दौड़ती हैं। बहुत दिनों तक वही चित्र उभरकर आता रहा उस स्थान का, कठोर चट्टानों से भरा एक स्थान, रेलपथों का कठोर आधार। किसी भी विषय या स्थान को एक ही सत्य से परिभाषित कर देना उसके साथ घोर अन्याय होता अतः अन्य कोमल पक्षों का वर्णन कर लेखकीय धर्म का निर्वाह करना आवश्यक है।
स्टेशन की सीमाओं से बाहर पग धरते ही, अन्य पक्ष उद्घाटित होते गये, एक के बाद एक। सन 860 में बलुआ पत्थरों से निर्मित "जराई का मठ" प्रतिहार स्थापत्य कला का एक सुन्दर उदाहरण है, खजुराहो के मन्दिरों के पूर्ववर्ती, एक लघु स्वरूप में पूर्वाभास।
बड़े क्षेत्र में फैले कम्पनी बाग के पेड़ों को देखकर, प्रकृति के सम्मोहन में बँधे से बढ़े बरुआ सागर किले की ओर। तीन शताब्दियों पहले राजा उदित सिंह के द्वारा बनवाया किला, लगभग 50-60 मीटर की चढ़ाई के बाद आया मुख्य द्वार। 1744 में मराठों और बुन्देलों के बीच इसी क्षेत्र के आसपास युद्ध हुआ था। किले के द्वार से पूरा क्षेत्र हरी चादर ओढ़े, विश्राम करता हुआ योगी सा लग रहा था।
किले के ऊपर पहुँचकर जो दृश्य देखा, उसे सम्मोहन की पूर्णता कहा जा सकता है। एक विस्तृत झील, जल से लबालब भरी, चलती हवा के संग सिहरन व्यक्त कर बतियाती, झील के बीच बना टापू रहस्यों के निमन्त्रण लिये। तभी हवा का एक झोंका आता है, ठंडा, झील का आमन्त्रण लिये हुये, बस आँख बंद कर दोनों हाथ उठा उस शीतलता को समेट लेने का मन करता है, गहरी साँसों में जितना भी अन्दर ले सकूँ। किले के सबसे ऊपरी कक्ष में यही अनुभव घनीभूत हो जाता है और बस मन करता रहता है कि यहीं पर बैठे रहा जाये, जब तक अनुभव तृप्त न हो जाये।
यही कारण रहा होगा, बरुआ सागर को झाँसी की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का। जब ग्रीष्म में सारा बुन्देलखण्ड अग्नि में धधकता होगा, रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के विरुद्ध उमड़ी क्रोध की अग्नि को यहीं पर योजनाओं का रूप देती होंगी। स्थानीय निवासियों ने बताया कि किस तरह रानी और उनकी सशस्त्र दासियाँ बैठती थीं इस कक्ष के आसपास।
बहुत लोगों को यह तथ्य ज्ञात न हो कि प्रसिद्ध गीतकार इन्दीवर बरुआ सागर के ही निवासी थे। इस झील का एक महत योगदान रहा है कई दार्शनिक और सौन्दर्यपरक गीतों के सृजन में। सफर, उपकार, पूरब और पश्चिम, सरस्वतीचन्द्र जैसी फिल्मों के गीत लिखने वाले इन्दीवर का जो गीत मुझे सर्वाधिक अभिभूत करता है, स्थानीय निवासी बताते हैं कि वह इसी झील के किनारे बैठकर लिखा गया।
ओह रे ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में......
छोटे से इस गीत में न जाने कितने गहरे भाव छिपे हैं। यह स्थान उन गहरे भावों को बाहर निकाल लेने की क्षमता में डूबा हुआ है, आपको बस खो जाना है झील के विस्तार में, झील की गहराई में। यदि यहाँ पर आ कवि की कविता न फूट जाये तो शब्द आश्चर्य में पड़ जायेंगे।
यह भी बताया गया कि एक पूर्व मुख्यमन्त्री इस प्राकृतिक मुग्धता को समेट लेने बहुधा आते थे। 1982 के एशियाड की कैनोइंग प्रतियोगिताओं के लिये इस झील को भी संभावितों की सूची में रखा गया था।
स्थापत्य, इतिहास, साहित्य और पर्यटन के इतने सुन्दर स्थल को देश के ज्ञान में न ला पाने के लिये पता नहीं किसका दोष है, पर एक बार घूम लेने के बाद आप अपने निर्णय को दोष नहीं देंगे, यह मेरा विश्वास है।
हम उत्तर दक्षिण के बीच कितनी बार निकल जाते हैं, बिना रुके। एक बार झाँसी उतर कर घूम आईये बरुआ सागर, बस 24 किमी है, दिनभर में हो जायेगा।
झील पर बैठकर गाया गीत
'जरई का मठ' नाम से लगी तस्वीर बदल गई जान पड़ती है. यह सुंदर मंदिर, विशेषकर मंदिर का प्रवेश द्वार, भारतीय कला का अनुपम उदाहरण है.
ReplyDeleteपास ही ओरछा में 'राम राजा' हैं, जहां प्रसाद स्वरूप पान की गिलौरी और इत्र-फुलेल दिया जाता है.
पांडेय साहब,
ReplyDeleteऐसी lesser known जगहें हमें बहुत आकर्षित करती हैं, विशलिस्ट में जोड़ लिया है ’बरूआ सागर’ भ्रमण।
उम्मीद है ये आपके झांसी पोस्टिंग के समय के चित्र होंगे, क्या अब भी ये झील ऐसी ही पानी से लबालब होगी?
चित्रों के साथ सजी हुई सुन्दर पोस्ट के लिए आभार!
ReplyDelete--
अरे वाह!
आपका स्वर तो बहुत मधुर है!
बड़ा मनोरम दृष्य है।
ReplyDeleteबरुआ के बारे में पहली बार पढ़ी इतनी बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteप्राचीन स्थापत्य और प्रकृति में हमेशा एक सम्मोहन होता है। बरूआ सागर का नाम तो बचपन से सुनते आ रहा हूँ पर पता न था कि इतनी सुंदर जगह है। अब जाना पड़ेगा।
ReplyDeleteअच्छी सुधि दिलाई आपने ...जब हम १९८० के उत्तरार्ध में झांसी में नियुक्त थे तो सपरिवार वहां जाना हुआ था ...ठंडी हवा के झोंकों की सिहरन आज भी हो उठती है ......
ReplyDeleteअब तो आप गायन प्रोफेसन में भी दक्ष हो चले हैं !
यह स्थान इतने करीब है पर इसके बारे में नहीं सुना. झाँसी भी कई बार गए पर इसका ज़िक्र नहीं आया. इसका मतलब यह वाकई देखने लायक स्थल है.
ReplyDeleteएक और गीत! बहुत सुन्दर!:)
..मगर बस वही झील के किनारे ही गुनगुनायियेगा ...मैंने उसकी गहराई मापी है ....नर भक्षी भी होती हैं ये झीलें ! :)
ReplyDeleteचित्र(दृष्य),श्रव्य(गीत)और भाव (कथ्य)तीनों की उपस्थिति !- वाह प्रवीण जी, प्रभाव की गहनता को क्या कहूँ !
ReplyDeleteविस्तृत विवरण और सुंदर चित्र के साथ ही पोस्ट से मेल खाता मधुर गीत भी .. बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट !!
ReplyDeleteयह मेरा पसंदीदा गीत है !बड़े दिन बाद सुना .....शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteअब तो झांसी जाना ही पड़ेगा। सही है कि यात्रा करें और वहाँ के सांस्कृतिक गौरव की बात नहीं की जाए तो बेकार है। इन्दीवर जी को भी हमारा नमन।
ReplyDeleteबरुआ सागर के बारे में विशिष्ट जानकारी मिली ...चित्र और गीत दोनों ही बहुत मनभावन
ReplyDeleteइस जगह के बारे में बिल्कुल जानकारी नहीं थी......सुंदर चित्र और जीवंत विवरण बहुत अच्छा लगा.....
ReplyDeleteबरुआ सागर के बारे में सचित्र जानकारी पहली बार प्राप्त हुई । इस भावपूर्ण मधुर गीत की प्रस्तुति के साथ बधाई आपको.
ReplyDeleteखूबसूरत है यह जगह.. राहुल जी ने ओरछा के बारे में बताकर और पुण्य का काम किया है.
ReplyDeleteबरुआ सागर पर बढिया और भावमयी जानकारी, आभार
ReplyDeleteजल्द ही जाना पडेगा
प्रणाम
यह प्यारा गीत सुनाने के लिये धन्यवाद
ReplyDeletelekhan to hai hi bemisaal.... jheel ke kinare geet bahut achha laga
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, हमें भी सैर करा दी !
ReplyDeleteपांडेय जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट !!
मधुर गीत की प्रस्तुति के साथ बधाई आपको
सचित्र प्रस्तुति के साथ यह सुन्दर आलेख और मनमोहक गीत इस बेहतरीन पोस्ट के लिये बधाई ।
ReplyDeleteबहुत ही मनमोहक तस्वीरों से सजी पोस्ट...किले से झील का अवलोकन अवश्य ही अनुपम होगा...शब्दों द्वारा हमने भी आनंद ले लिया.
ReplyDeleteसचित्र प्रस्तुति मेरी यादों को ताज़ा कर गई. आभार.... उन यादों को और उनसे जुड़ी कुछ और यादों को ताजा करने के लिए
ReplyDeleteचित्र देखकर ही उनमे खो गयी तो लग रहा है अगर वहाँ पहुँच जाऊँ तो आपका कहना सच हो जायेगा……………बेहद सुन्दर प्रस्तुतिकरण्।
ReplyDeleteये गाना बहुत दिनो बाद सुना है आपकी आवाज़ भी बहुत बढिया है………आभार्।
ReplyDeletebadhiyaa
ReplyDeleteओह...आनंद आ गया...
ReplyDeleteविवरण और गीत/स्वर सब हृदयहारी...
ग्वालियर जाने पर यहाँ जाने की अवश्य चेष्टा करुँगी...
आभार आपका जानकारी देने के लिए..हम तो पूर्णतः अनभिज्ञ थे...
बरुवा सागर की सैर बिना रेल गाड़ी के हो गयी . धन्यबाद
ReplyDeleteसार्थक और सराहनीय जानकारी देती पोस्ट साथ ही एक अच्छा संगीत सुनवाने के लिए धन्यवाद और आभार.....
ReplyDeleteयहाँ तो जाना ही होगा, आपका धन्यवाद।
ReplyDeleteलेखन, गति और चीरता सभी बहुत पसंद आए।
नाम तो सुना है बरुआ सागर का. काश कभी मौका भी मिल जाये देखने का वैसे आपने भी काफी दिखा दिया :) झील तो वाकई मन मोहक लग रही है.
ReplyDeleteआपने संस्मरण में इतनी रोचकता भर दी कि अब तो जाना ही पड़ेगा.
ReplyDeleteबरुआ सागर को कुशलता से कैमरे में क़ैद किया है आपने ... अच्छा लगा नये स्थान के बारे में कुछ जान कर ...
ReplyDeletegood words... nice blog dear friend
ReplyDeleteMusic Bol
Lyrics Mantra
बहुत ही रोचक जानकारी ...... कभी मौका मिला तो जरूर देखना चाहूँगा . गीत बहुत अच्छा लगा......
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
इस जगह के बारे में पहली बार सुना
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों से सजी बढ़िया जानकारी मिली
आपका गाना भी पसंद आया
आभार
बेहद सुन्दर आलेख. बरुआ सागर का क्षेत्र बहुत ही रमणीय है. जैसा राहुल सिंह जी ने कहा है, जराई का मठ का चित्र वास्तव में बदल गया है. मैं हमेशा इस मंदिर के पास गाडी रोका करता. महीने में एकाध बार जाना ही होता था. मैं आपको एक बहुत ही पुराना चित्र भेज रहा हूँ. गढ़ कुडार के लिए भी वहां से रास्ता जाता है.
ReplyDeleteडिस्कवरी का आनंद देती पोस्ट!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर मनोरम स्थान की जानकारी दी है .. फोटो बढ़िया लगे ....
ReplyDeleteसब्से अच्छा तो मुझे मधुर गीत लगा जो मैने सुना
ReplyDeleteइन्दीवर का यह गीत तो वाक़ई अमर है. कई साल पहले एक बार भरपूर गर्मी में झांसी गया था, विश्वास नहीं होता कि झांसी जैसी तपती जगह के बगल इस तरह का स्वर्ग भी बसता है. बरुआ सागर मेरे लिए सुखद जानकारी है.
ReplyDeleteवाह मनमोहक चित्रो के संग अति सुंदर विवरण, कभी किस्मत मे हुआ तो देखेगे, धन्यवाद
ReplyDeleteझीलों का आकर्षण कुछ ऐसा ही होता है !
ReplyDeleteजगह बहुत मनोरम जान पड़ती है. अब जब आपने इतनी तारीफ कर ही दी तो घूम आयेंगे, आप साथ होंगे ना ??
ReplyDeleteहमनें भी पहली बार ही सुना इस जगह के बारे में.....कभी मौका मिला तो ज़रूर जायेंगे...
ReplyDeleteविस्तृत विवरण और सुंदर चित्र के साथ, बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट !!
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिली. अच्छा गाते हैं आप.
ReplyDeleteबरुआ सागर के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteपहली बार इस के बारे में सुन रहा हूँ।
आशा करता हूँ कि कभी वहाँ जाने का अवसर मिलेगा।
आपका गाना सुनना भी अच्छा लगा। पुराना गाना है जो पहली बार १९६७-६८ में शायद सुना था। इस गाने को हम बाँसुरी पर बजाया करते थे और आज आपको सुनकर हमारा भी mood बन गया। अभ्यास छूट गया है और इस उम्र में साँस भी रुक जाती है फ़िर भी हमने कोशिश की है।
यदि रुचि हो तो सुन लीजिए, पर अधिक अपेक्षा न रखें। हम कलाकार नहीं हैं
http://www.aviary.com/artists/G%20Vishwanath/creations/ohre_taal_mile
धुन की सुनवाई में थोडा सा समय लग सकता है। कृपया थोडा इन्तजार कीजिए
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
‘कोमल पक्षों का वर्णन कर लेखकीय धर्म का निर्वाह करना आवश्यक है।’
ReplyDeleteकोमल पक्षों की पथरीली धरती उकेरने के लिए आभार॥ सुंदर चित्र के लिए बधाई॥
बहुत अच्छा लगा बरुआ सागर के बारे में जानकर |गीत अभी खुल नहीं रहा |
ReplyDeleteरोचक और मनोहर वर्णन. झील की तरह. एक बात और, आप गाते भी बढियां हैं.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी। अच्छा गाते भी हैं आप। अच्छा गाते हैं।
ReplyDeleteबरुआ सागर के बारे में सुन्दर सचित्र जानकारी और मनमोहक गीत के लिए आभार
ReplyDeleteआप बेंगलुरु से झॉंसी कैसे पहुँच गए।
ReplyDeleteसुन्दर, काव्यात्मक और कलात्मक जानकारी और सदैव की तरह ही सुन्दर चित्र भी।
मेरे सबसे प्रिय गीत की रचना झांसी से महज 24 किमी दूर ! आपकी इस पोस्ट ने मन प्रसन्न कर दिया।...धन्यवाद।
ReplyDeleteसुन्दर संस्मरण.. और गीत भी.. इतिहास को महसूस करवाते हैं आप...
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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सुन्दर 'बरूआ सागर', सुन्दर वर्णन और अति सुन्दर चित्र भी...
एक पाठक को और क्या चाहिय़े...
...
प्राकृतिक सौंदर्य का उतनी ही मासूमियत से मनोहारी वणॆन पढ़ने को मिला।
ReplyDeletebahuit khooburat thi tasveerain
ReplyDeleteअरे वाह, मजा आ गया पढकर। और हॉं, आपकी आवाज में भी दम है।
ReplyDelete---------
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
achchhi jankari aur manmohak chtron ka samanjasy bahut priy laga .
ReplyDeletesir next plan jarur karunga.very good.post.
ReplyDeleteक्या स्वप्न भी सच्चे होतें है ?...भाग-५.,यह महानायक अमिताभ बच्चन के जुबानी.
पर्यटन के केंद्र न जाने ऐसे ही कितने हैं जो पारखी-नज़रों से बचे हुए हैं !गोवा के बाद बरुआसागर का चित्र खींचकर आपने लहालोट कर दिया.
ReplyDeleteस्वर तो माशाअल्लाह अच्छा है आपका.आपको सुनना भी सुखद लगता है !
ओये होए. ....
ReplyDeleteप्रवीन जी मेरा पसंदीदा गीत .....
गया मगर डूब कर नहीं .....
फिर भी पहला प्रयास और बहुत उम्दा .....
बहुत सुन्दर पोस्ट...अच्छा लगा यहाँ आकर.
ReplyDeletevibhor ho gayaa hun main yahaan aakar .....sach men aayaa hotaa to naa jaane kyaa hotaa....
ReplyDeleteरोचक और मनोहर वर्णन|
ReplyDelete@ Rahul Singh
ReplyDeleteजरई के मठ का चित्र लिया था पर मिला नहीं, पोस्ट पर सुब्रमण्यमजी द्वारा प्रदत्त चित्र लगा दिया है। यह स्थापत्य खजुराहो के मंदिरों के पहले का है। ओरछा का तो विस्तृत इतिहास है।
@ संजय @ मो सम कौन ?
हाँ, लगभग एक वर्ष पहले के चित्र हैं पर कुछ दिन पहले किसी कार्यवश झाँसी जाने से संदर्भ याद आ गये। इस वर्ष भी पानी बरसा है, ताल में पानी होना चाहिये।
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
बहुत धन्यवाद, स्थान का महत्व आपके शब्दों और स्वरों में प्राण भर देता है।
@ मनोज कुमार
बस वहाँ बैठे रहने का मन करता है।
@ Ratan Singh Shekhawat
घूमने से आनन्द और बढ़ जायेगा।
@ सोमेश सक्सेना
ReplyDeleteप्राचीन स्थापत्य और प्रकृति में हमेशा एक सम्मोहन होता है। सच कहा आपने, स्थापत्य के माध्यम से उस समय की जीवन शैली और विचार-शैली समझ में आती है।
@ Arvind Mishra
उस समय तो यह ताल अपने पूर्ण सौन्दर्य में होगा। वहाँ बैठकर आनन्द आ जाता है, हवा के झोकों से। हर दिल जो प्यार करेगा, वह गाना गायेगा। हाँ, झील के किनारे ही बैठकर गायेंगे, अन्दर नहीं उतरेंगे। वैसे गहराई कितनी है?
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
आपके दोनों पड़ावों के मध्य में ही है, यह स्थान। कभी झाँसी में उतरकर जा सकते हैं वहाँ। सुन्दर स्थान देखकर स्वर निकल ही आते हैं।
@ प्रतिभा सक्सेना
बहुत धन्यवाद आपका। तीनों उपस्थित अवश्य हैं फिर भी बहुत कुछ रह गया है।
@ संगीता पुरी
स्थान पर जायेंगी तो उतना ही आनन्द आयेगा।
@ सतीश सक्सेना
ReplyDeleteपहली बार सुनकर ही इस गीत के प्यार में पड़ गये थे।
@ ajit gupta
एक बार तो उस परिवेश को देखना बनता है।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
बहुत धन्यवाद आपका।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
जब तक मैंने नहीं देखा था, कल्पना नहीं की थी कि इतना मनभावन होगा।
@ सुशील बाकलीवाल
बहुत धन्यवाद आपका।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
ReplyDeleteहमारे इतिहासविद इस पर और प्रकाश डाल सकते हैं।
@ अन्तर सोहिल
आप योजना बनाईये, सारी व्यवस्थायें मैं करवा दूँगा।
धन्यवाद देकर आप और गीत गाने के लिये उकसा रहे हैं मुझे।
@ रश्मि प्रभा...
प्राकृतिक परिवेश आपसे सुन्दर निकाल लेता है।
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
साक्षात घूमने का आनन्द अलग ही है।
@ संजय भास्कर
बहुत धन्यवाद आपका। गीत तो अब गाते ही रहेंगे, प्रशंसा का मोल तो आपको चुकाना ही पड़ेगा।
@ sada
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ rashmi ravija
शब्दों में शीतल हवाओं की सिहरन कहाँ से लायेंगे।
@ रचना दीक्षित
आप अपनी यादों पर भी पोस्ट लिख डालें।
@ वन्दना
पहँच कर देखिये, कविता स्वयं ही बन जायेगी। मन को मनाने के लिये गाना पड़ता है।
@ Sonal Rastogi
बहुत धन्यवाद आपका।
@ रंजना
ReplyDeleteग्वालियर, झाँसी, ओरछा, बरुआ सागर और खजुराहो, ये सब एक बार में ही देख सकते हैं।
@ गिरधारी खंकरियाल
पर तन-गाड़ी वहाँ ले जाईये नहीं तो मन-गाड़ी मानेगी नहीं।
@ honesty project democracy
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Avinash Chandra
कवि हृदय को वहाँ और भी आनन्द आता है।
@ shikha varshney
जब हवा चलती है और झील काँपती है तो, बरबस आपका मुँह खुला का खुला रह जायेगा।
@ मेरे भाव
ReplyDeleteतब घूम अवश्य आईये, एक बार।
@ दिगम्बर नासवा
भारत में इतनी सुन्दरता है, दुर्भाग्य ही कहेंगे कि ऐसे स्थान लोगों को ज्ञात ही नहीं हैं।
@ Harman
बहुत धन्यवाद आपका।
@ उपेन्द्र ' उपेन '
अधिक प्रयास नहीं करना पड़ेगा, बस एक दिन चाहिये झाँसी में।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद आपका इस सम्मान के लिये।
@ क्रिएटिव मंच-Creative Manch
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका। अब एक बार घूम भी आयें।
@ P.N. Subramanian
चित्र खटक मुझे भी रहा था। मैंने चित्र लिया था पर पता न जाने कहाँ गया, पोस्ट के लिये इण्टरनेट से देखना पड़ा। अब आपका चित्र लगा कर पोस्ट को पूर्णता मिल गयी है। बहुत धन्यवाद आपका।
@ सम्वेदना के स्वर
पहली बार का आनन्द डिस्कवरी से कहीं अधिक है।
@ महेन्द्र मिश्र
आप तो रात्रिभर की यात्रा से पहुँच सकते हैं वहाँ पर।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
यह गीत इसलिये गाया कि मुझे बहुत ही अच्छा लगता है यह गीत।
@ Kajal Kumar
ReplyDeleteझाँसी में गीष्म में आग बरसती है पर यहाँ पर आकर बहुत अच्छा लगता है। इतना सुन्दर गीत तो यहीं पर ही लिखा जा सकता है।
@ राज भाटिय़ा
किस्मत होगी और शीघ्र होगी, आप बस अगली भारत यात्रा की तिथि बता दें।
@ hempandey
झीलों की स्थिरता व गहराई आकर्षित करती हैं।
@ Manoj K
आ जायेगें। अभी तो बंगलोर में हैं।
@ shekhar suman
आ जायें, व्यवस्थायें हो जायेंगी।
@ Sunil Kumar
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Abhishek Ojha
बहुत धन्यवाद आपका। गायन प्रयास लगा रहेगा, अब तो।
@ G Vishwanath
आपकी पिछली दो धुनें सुनकर मुग्ध था, अब यह तीसरी मुग्धतम। जब गीत लिखा गया या गाया गया तब जन्म नहीं हुआ था मेरा, पर गीत सुनकर लगा कि मेरे लिये ही लिखा गया था यह गीत।
@ cmpershad
धरती भले ही पथरीली थी पर झील तो शीतल निकली।
@ शोभना चौरे
गीत बाद में भी सुन लीजियेगा। महत्व तो इस स्थान का है. यहाँ यह गीत उदय हुआ।
@ santosh pandey
ReplyDeleteहमारा गाना न झील की तरह स्थिर होता है और न गहरा ही। पहाड़ी नदी की तरह ही स्वर निकल पाते हैं।
@ अनूप शुक्ल
गाने पर अधिकार है, अच्छे पर नहीं।
@ ashish
बहुत धन्यवाद आपका।
@ विष्णु बैरागी
अभी भी बंगलोर में हैं। कार्यवश जाना हुआ था, तब संदर्भ याद आ गये।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
अब हो आयें वहाँ पर और अनुभव करें उन शब्दों का उद्भव।
@ अरुण चन्द्र रॉय
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका। साहित्य संगीत कला और इतिहास आपस में गुँथे हुये हैं।
@ प्रवीण शाह
पर आप सा पाठक भी तो चाहिये।
@ satyendra
प्रकृति की कोमलता, न जाने कितनों को कवि बना देती है।
@ SEPO
साक्षात में तो यह सौन्दर्य और बढ़ जायेगा।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
यही दम और बंधक-श्रोताओं के कारण गा लेते हैं।
@ सुरेन्द्र सिंह " झंझट "
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ G.N.SHAW
बहुत धन्यवाद आपका।
@ बैसवारी
पर्यटन विभाग के प्रयास होते यह स्थान भी तर जाता। हमसे जो सम्भव है अनुभव बाँटना, वह बाँट लेते हैं।
@ हरकीरत ' हीर'
अब अगली बार पूरा डूब कर गायेंगे।
@ Amit Kumar
बहुत धन्यवाद आपका।
@ राजीव थेपड़ा
ReplyDeleteएक बार साक्षात घूम आईये. आनन्द आयेगा।
@ Patali-The-Village
ऐसी जगहों पर ही कवितायें फूटती हैं।
सही कहा ऐसी बहुत सारी जगहें होती हैं जिन पर हम जीवन भर गुजरते रहते हैं, पर आसपास की चीजों को पीछे छोड़ जाते हैं... हम भी कई बार निकले हैं झांसी से.. पर इसका तो पता भी नहीं था... अब पता चला है..
ReplyDeleteबहुत ही दिनों बाद यह गाना सुना... वाह मजा आ गया..
बरुआ सागर की जानकारी के लिए धन्यवाद!
ReplyDelete@ Vivek Rastogi
ReplyDeleteइस बार झाँसी से निकलियेगा तो कदम वहाँ के लिये बढ़ा दीजियेगा। सूचित कर सकें तो व्यवस्था भी करा दी जायेगी।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
अब इस जानकारी को जीवन्त सत्य में बदल लें।
प्रिय प्रवीण जी
ReplyDeleteकई दिन पहले आपका गीत सुन कर गया था … बधाई बकाया रह गई थी ।
हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं और मंगलकामनाएं स्वीकार करें!
…अभी पुनः सुनने के लिए हेड्फोन टटोल रहा हूं …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
@ Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका, गीत गाते रहने से मन हल्का बना रहता है।
प्रवीण जी नमस्कार!
ReplyDeleteआपने इतना अच्छा वर्णन किया है कि हम इस झील को देखने अवश्य जायेंगे।
आपका स्वर बहुत मधुर है।
धन्यवाद।
@ रेखा शुक्ला
ReplyDeleteऔर मुझे पूरा विश्वास है कि वहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता आपका मन मोह लेगी।