जब भी हिन्दी कीबोर्ड का विषय उठता है, कई लोगों के भावनात्मक घाव हरे हो जाते हैं। इस फलते फूलते हिन्दी ब्लॉग जगत में कुछ छूटा छूटा सा लगने लगता है। चाह कर भी वह एकांगी संतुष्टि नहीं मिल पाती है कि हम हिन्दी टंकण में पूर्णतया आत्मनिर्भर व सहज हैं।
अपनी अभिव्यक्तियों से मन गुदगुदाने में सिद्धहस्त अशोक चक्रधर जी भी जब वर्धा में यही प्रश्न लेकर बैठ जायें तो यह बात और गहराने लगती है। किसी भी व्यक्ति के लिये मन में जगे भाव सब तक पहुँचाने के लिये लेखन ही एक मात्र राह है। डायरी में लिखकर रख लेना रचना का निष्कर्ष नहीं है। संप्रेषण के लिये उस रचना को हिन्दी कीबोर्ड से होकर जाना ही होगा। ब्लॉग का विस्तृत परिक्षेत्र, मनभावों की उड़ानों में डूबी रचनायें, इण्टरनेट पर प्रतीक्षारत आपके पाठकों का संसार, बस खटकता है तो हिन्दी कीबोर्डों का लँगड़ापन।
यही एक शब्द है जिसको इण्टरनेट में सर्वाधिक खंगाला है मैंने। लगभग 10 वर्ष पहले, सीडैक के लीप सॉफ्टवेयर को उपयोग में लाकर प्रथम बार अपनी रचनाओं को डिजिटल रूप में समेटना प्रारम्भ किया था। स्क्रीन पर आये कीबोर्ड से एक एक अक्षर को चुनने की श्रमसाधक प्रक्रिया। लगन थी, आत्मीयता थी, श्रम नहीं खला। लगभग दो वर्ष पहले हिन्दी ब्लॉग के बराह स्वरूप के माध्यम से हिन्दी का पुनः टंकण सीखा, अंग्रेजी अक्षरों की वैशाखियों के सहारे, पुनः श्रम और त्रुटियाँ, गति अत्यन्त मन्द। चिन्तन-गति के सम्मुख लेखन-गति नतमस्तक, व्यास उपस्थित पर गणेश की प्रतीक्षा। चाह कर भी, न जाने कितने ब्लॉगों को पढ़कर टिप्पणी न दे पाया, कितने विचार आधे अधूरे रूप ले पड़े रहे। तब आया गूगल ट्रांसइटरेशन, टंकण के साथ शब्द-विकल्पों की उपलब्धता ने त्रुटियों को तो कम कर दिया पर श्रम और गति वही रहे।
चार प्रमुख आधार हैं कीबोर्ड का प्रारूप निर्धारित करने के, प्रयास न्यूनतम हो, गति अधिकतम हो, त्रुटियाँ न्यूनतम हों और सीखने में सरलतम हो। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु 6 मानदण्ड हैं जिनको अलग अलग गणितीय महत्व देकर, उनके योगांक को प्रारूप की गुणवत्ता का सूचक माना जाता है। यह 6 मापदण्ड हैं, सारी उँगलियों में बराबर का कार्य वितरण, शिफ्ट आदि कुंजी का कम से कम प्रयोग, दोनों हाथों का बारी बारी से प्रयोग, एक हाथ की ऊँगलियों का बारी बारी से प्रयोग, दो लगातार कुंजी के बीच कम दूरी और दो लगातार कुंजियों के बीच सही दिशा। शोधपत्र यह सिद्ध करता है कि एक श्रेष्ठतर कार्यदक्ष हिन्दी कीबोर्ड की परिकल्पना संभव है, अशोक चक्रधर जी से सहमत होते हुये।
आप में से बहुतों को लगेगा कि अभी जिस विधि से हिन्दी टाइप कर रहे हैं, वही सुविधाजनक है। यदि आप वर्तमान में देवनागरी इन्स्क्रिप्ट से नहीं टाइप कर रहे हैं तो आप टंकण के चारों प्रमुख आधारों पर औंधे मुँह गिरने के लिये तैयार रहिये।
हमें चिन्ता है, यदि आपकी चिन्तन-गति लेखन वहन न कर पाये, यदि आप की टिप्पणियाँ समयाभाव में सब तक पहुँच न पायें, यदि 20% अधिक गति से टाइप न कर पाने की स्थिति में आपकी हर पाँचवी पुस्तक या ब्लॉग दिन का सबेरा न देख पाये।
हमारी चिन्ताओं को अपने प्रयासों से ढक लें, साहित्य संवर्धन में एक शब्द का भी योगदान कम न हो आपकी ओर से। लँगड़े उपायों को छोड़कर देवनागरी इन्स्क्रिप्ट से टाइपिंग प्रारम्भ कर दें, स्टीकर हम भिजवा देंगे, अशोक चक्रधर जी के नाम पर।
एर हिंदी सेवी की कलम से निकला अच्छा आलेख. मेरी किस्मत अच्छी थी कि मैंने भी आपकी तरह आई-लीप पर सीखा, परंतु एक सरदार जी ने मुझे कहा था कि इंस्क्रिप्ट का-बोर्ड ही सीखना क्योंकि यह आसान है और आगे चल कर इसका बहुत प्रचलन होगा होगा. बारह वर्ष हो गए इस बात को. आज सुखी हूँ.
ReplyDeleteइसी का एक और पक्ष है. मैं एक अमेरिकन मित्र से अंग्रेज़ी में पत्राचार करता हूँ. वह एक मिनट में ही बहुत सारी बातें तुरत लिख कर भेज देता है. उनके यहाँ सुविधा है कि बोलो और कंप्यूटर टाईप कर देगा. हमारे यहाँ भी सी-डेक ने ऐसा एक सॉफटवेयर 'श्रुतलेखन बनाया' है. सुना है कि उसकी पर्फार्मेंस 'ठीक ही' है. उसका आऊटपुट यूनीकोड में है.
हम तो १९९० से हिन्दी टाइप कर रहे हैं। तब अक्षर हुआ करता था, फिर लीप ऑफिस आया। रेमिंगटन - गोदरेज आदि की बोर्ड से भी प्रयास किया। पर जब से बरह (www.baraha.com) से काम चलाना शुरु किया है काम काफ़ी आसान और और गति तीव्र हो गई है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteफ़ुरसत में आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के साथ
गंभीर टिप्पणी तो बाद में हो जाएगी अभी कुछ हास्य रंग
ReplyDeleteBhushan जी की टिप्पणी में सरदार जी और बारह का संगम दिखा। मुस्कुराहट तैरी कि वर्ष के बारह माह, घड़ी के बारह अंक, दर्जन के बारह की तरह ऐसी स्वप्नदृष्टता कि बारह वर्ष पहले ही....!!!
शानदार वैज्ञानिक विश्लेषण। अशोक चक्रधर जी की वार्ता मैंने सुनी थी। एक स्थान पर उनकी बात मौलिक रूप से अलग मिली। आपने छः मापदंडों की बात की जिसमें पहला है- सारी उँगलियों में बराबर का कार्य। इससे सहमत होना मुश्किल है। कहते हैं हाथ की सभी उंगलियाँ बराबर नहीं होती। सबकी क्षमता अलग-अलग है। तर्जनी सबसे अधिक दक्ष और चपल होती है जबकि अंगूठा सर्वाधिक बलवान। अनामिका अंगूठी से सजने में आगे है लेकिन काम में पीछे, सबसे आलसी है। कनिष्ठिका की पहुँच थोड़ी कम होती है क्यों कि लम्बाई कम है। माध्यिका सबसे लंबी होते हुए भी मध्यम स्तर की कार्यदक्ष है। इसलिए इन सबको कार्यविभाजन इनकी दक्षता के अनुपात में हो तो निवल परिणाम उत्तम होगा।
ReplyDeleteअशोक चक्रधर के अनुसार इन्स्क्रिप्ट में जिन अक्षरों का प्रयोग अधिक होता है उन्हें तर्जनी के हवाले नहीं किया गया। बल्कि देवनागरी वर्णमाला का वर्ग-समूह प्रायः एक साथ रखा गया है।
शेष ५ मापदण्ड इन्स्क्रिप्ट पर खरे होंगे ऐसी आशा है। वितरण, शिफ्ट आदि कुंजी का कम से कम प्रयोग, दोनों हाथों का बारी बारी से प्रयोग, एक हाथ की ऊँगलियों का बारी बारी से प्रयोग, दो लगातार कुंजी के बीच कम दूरी और दो लगातार कुंजियों के बीच सही दिशा।
मुझे तो ज्ञानजी ने ‘बारहा’ की डोर थमा दी और मैं कुल तीन अंगुलियों से ठकठकाता जा रहा हूँ। मेरे काम भर की गति मिल जाती है। क्योंकि सोचने (व्यास) की गति शायद उतनी तेज न हो। अलबत्ता मैंने भी कई लोगों को ‘ट्रांसलिटरेशन’का औंजार थमाकर वाहवाही लूटी है।
कुछ तो ऐसे रेडीमेड कीबोर्ड भी देखने में आते हैं, शायद श्री लिपि के. क्या यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि अपनी पसंद के कीबोर्ड वाले सिस्टम बाजार में आने लगेंगे, मुझे लगता है कि इस दिशा में, इस तरह मुझसे आगे तक कोई न कोई जरूर सोच चुका होगा, लेकिन इसके उत्पादन को शायद अभी व्यावहारिक/लाभप्रद नहीं माना गया हो.
ReplyDeleteएक छोटा सा सुधार जब हम फर्स्ट इयर में थे तब प्रियेंद्र ग्रेजुएट हुए थे. मेरे हिसाब से पेपर उसी समय का होगा (पेपर के टाइटल से भी २००३ ही लग रहा है). वो प्रोफ़ेसर नहीं हैं और स्टैनफोर्ड से मास्टर्स करने के बाद फिलहाल गूगल में कार्यरत हैं. और कल्यानमय देब को तो को नहीं जानत है जग में :)
ReplyDeleteप्रवीन जी सबसे पहले तो आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ....
ReplyDeleteबाकी हिंदी किबोर्ड के बारे में क्या कहूं ... मेरे लिए तो वो किसी puzzle की तरह हो जायेगा ...
आप से सहमत। मैं भी शुरू-शुरू में बहुत परेशान था। अब हिंदी की बोर्ड पर लिखने का अच्छा अभ्यास हो गया है और कोई परेशानी भी नहीं। काश दो वर्ष पहले यह पोस्ट पढ़ी होती। नये ब्लॉगरों के लिए अत्यंत उपयोगी जानकारी देती इस पोस्ट के लिए आभार।
ReplyDeleteमैं तो गूगल त्रान्सलिटरेशन और बराह दोनों प्रयोग करता हूं--
ReplyDelete---गूगल की कमी है उसके लिये सदा इन्टर्नेट व विद्युत उपलब्धता चाहिये..और प्रिन्टिन्ग गति घटती बढती रहती है...
---बराह में कुछ हिन्दी शब्द शुद्ध अवस्था में प्रिन्ट नहीं होते--जैसे विग्यान-ग्यान , द्वन्द्व...मात्र..
---क्या यह कीबोर्ड दोनोण कमियों से मुक्त है?
आप से सहमत। मैं भी शुरू-शुरू में बहुत परेशान था।
ReplyDelete@
ReplyDeleteमैंने बारहा का प्रयोग नहीं किया है लेकिन जहाँ तक मेरी जानकारी है बारहा IME में ‘ज्ञ’ लिखने के लिए
j~ja लिखें
किन्तु आप इसे देख लें शायद अधिक सहायता मिले
कृत्रिम घेरों से परे जाकर श्रेष्ठ तक पहुँचने का मन-हठ, देवनागरी इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड तक ले गया। पूर्ण शोध के बाद यही निष्कर्ष निकला कि हिन्दी टंकण का निर्वाण इसी में है।
ReplyDeleteआपने सही कहा. इसी बात को मद्देनजर रखते हुए एक आलेख पहले लिखा था - आइए, इनस्क्रिप्ट सीखें
तो यदि वास्तव में हिंदी टाइपिंग हेतु सीरियस हैं तो यहाँ दिए वीडियो ट्यूटोरियल को भी अवश्य देखें -
इनस्क्रिप्ट वीडियो ट्यूटोरियल
भूषण जी ने 'श्रुतलेखन' की बात कही. न्ग्रेजी में तो अहि, हिंदी की जानकारी नहीं थी. हम जैसों के लिए अच्छा रहेगा.
ReplyDeleteप्रारम्भ में ८-१० माह तक गूगल ट्रांसलिट्रेशन के सहारे रहे, फ़िर बारहा पर आये. कोई समस्या नहीं आई अब तक, दो वर्ष हो चुके इस पर.
ReplyDeleteबाप रे बाप ....
ReplyDeleteआप भी कहाँ कहाँ घुस जाते हो प्रवीण भाई . बेचारे मातहत !
मैं व्यवाहारिक रूप से कम्पोसिंग के लिए रेमिन्तन (remington) कि-बोर्ड इस्तेमाल करता था........ यहाँ इनस्क्रिप्ट में बहुत दिक्कत हुई ........ एक दिन गूगल टाइपिंग का सॉफ्टवेर डाल दिया........ नीचे टास्क बार पर ओप्शन रहता है EN OR HI का....... दिक्कत तो बहुत रहती है पर काफी राहत है - टाइपिंग में.
ReplyDeleteaapake saare blog ekatthe padh dale. typing na aane ke karan pratikriya nahin likh pata. aap likhate rahen ham sab padhate rahenge.
ReplyDeleteहमारी चिन्ताओं को अपने प्रयासों से ढक लें, साहित्य संवर्धन में एक शब्द का भी योगदान कम न हो> वाहक्यादृष्टिहै। अत्यंत महत्वपूर्ण ब्लाग।
ReplyDeleteaapse sahmat hoon
ReplyDeleteबहुत सुंदर सुंदर जानकारी दी आप ने मै आज तक सिर्फ़ baraha ७,५ ही इस्तेमाल कर रहा हुं जो काफ़ी आसान लगा, लेकिन दिक्कत हे इस मे काफ़ी शव्द लिखे नही जाते जेसे चंदर बिंदू, या फ़िर ज्ञ कुछ दिन पहले मैने जब नया लेपटाप लिया तो baraha १०,२ इंस्टाल किया, लेकिन यह पैसे मांग रहा था, तो मैने फ़िर baraha ८ किया, जिस से सारे शब्द लिख लेता था, लेकिन यहां भी कठानाई हुयी, मेरा की बोर्ड जर्मन मे हे, ओर कुछ अक्षर अलग जगह हे जेसे Z की जगह Y ओर Y की जगह Z हे, फ़िर लिखने मै मुश्किल हो , फ़िर मैने वापिस baraha ७,५ कर लिया सब ठीक हे लेकिन अब भी चंदर बिंदू, ओर ज्ञ नही लिखा जाता, पाबला जी ने बताया, यही पहले समीर जी ने बताया था
ReplyDeleteबारहा IME में ‘ज्ञ’ लिखने के लिए
j~ja लिखें , लेकिन हम नही कामयाब हुये जी
आपकी बात से पूर्णतः सहमत , जरुरत है देवनागरी स्क्रिप्ट वाली की बोर्ड की .
ReplyDelete@ राज भाटिया जी
ReplyDeleteजैसा कि दिखाया गया है
ज्ञ
लिखने के लिए
बारहा में
%
का इस्तेमाल होता है
और
ँ
के लिए X
का उपयोग होता है
हम तो 15 वर्ष से कम्प्यूटर के की-बोर्ड का ही प्रयोग कर रहे हैं। पेन तो प्रवास के समय ही काम आता है। प्रारम्भ से ही ट्रेडीशनल हिन्दी में ही लिखते रहे हैं। इस कारण अब आईएमई सेटअप ने हमें यूनिकोड में भी हिन्दी रेमिंग्टन की सुविधा दे दी है। बस कठिनाई आ रही है लेपटॉप पर, जिसमें 2007 डला है और आईएमई सेटअप कुछ नए प्रकार में है। बाकि डेस्कटॉप में तो कोई कठिनाई नहीं है।
ReplyDeleteअपने विद्यार्थी जीवन में 1975-76 में मैं ने रेमिंग्टन टाइपिंग मशीन पर हिन्दी टाइपिंग सीखी थी। वह कभी काम न आई। 2004 में जब कम्प्यूटर खरीदा तो फिर से रेमिंग्टन की बोर्ड पर कृतिदेव में टाइप करने लगा। जब 2007 में ब्लागीरी शुरू की तो हिन्दी आएमई का सहारा लिया। लेकिन आनंद नहीं आया। फिर मुझे आसान हिन्दी टाइपिंग ट्यूटर मिला, तो दिसंबर में केवल 7 दिनों के अभ्यास में इनस्क्रिप्ट की बोर्ड पर टाइपिंग आ गई। एक माह में ही गति भी बन गई।
ReplyDeleteहिन्दी टाइप करने के लिए इनस्क्रिप्ट सर्वोत्कृष्ठ है कोई भी किसी भी उम्र में, 70 वर्ष की उम्र में भी इस में टाइपिंग सीख सकता है। इस का कोई जवाब नहीं।
अभी तो गुगुल ट्रांसलीटेटर में ही हाथ जमा रखा है...रोमन में देवनागरी टाईप करने का एक तरह से ब्लाइंड अभ्यास भी हो गया है...लेकिन मुझे बड़ा अखरता है जब नेट चुस्त नहीं होता..लगता है ऑफ लाइन लिखने की सहूलियत यदि मिल जाती तो भले रोमन में ही लिखना पड़ता ,खुश हो लेती..आज तक जितने भी ऑफ लाइन टूल आजमाए,कोई गूगल सा नहीं लगा..
ReplyDeleteहम तो आँख निहोरे हैं ही,कि हिन्दी लेखन के लिए उपयुक्त की बोर्ड/सुविधा मिले.. गुनी जन उपाय निकाल ही लेंगे लग पड़े तो...फिर उनका आभार व्यक्त कर हम तो रम लेंगे..
अच्छी जानकारी है... देखते है कोशिश करके इसे भी . वैसे अभी तक तो वर्ड मे रेमिंगटन और नेट पर गूगल ट्रांस्लेसन का सहारा ही था. आभार
ReplyDeleteबढिया जानकारी।
ReplyDelete@ रंजना जी
ReplyDeleteमुझे बड़ा अखरता है जब नेट चुस्त नहीं होता..लगता है ऑफ लाइन लिखने की सहूलियत यदि मिल जाती तो भले रोमन में ही लिखना पड़ता ,खुश हो लेती..
आप जैसे कई साथियों के लिए एक पोस्ट सवा साल पहले लिखी थी, आप भी देखिए वह पोस्ट
ठीक कहा आपने .बाकी तो पाता नहीं पर १९९७ में कुछ समय हिंदी कीबोर्ड पर काम किया था एक टीवी चैनल में.वो इतना बुरा नहीं था थोड़ी प्रेक्टिस के बाद आसान ही था .परन्तु बारहा में बहुत ही परेशानी होती है.
ReplyDelete... views, expressions all useful ... i agree with post !!
ReplyDelete"कृत्रिम घेरों से परे जाकर श्रेष्ठ तक पहुँचने का मन-हठ, देवनागरी इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड तक ले गया। पूर्ण शोध के बाद यही निष्कर्ष निकला कि हिन्दी टंकण का निर्वाण इसी में है।"
ReplyDeleteबिलकुल यही हमारी भी कहानी है। कभी विद्यार्थी जीवन में रेमिंगटन सीखा था कभी प्रयोग न आने से भूल गये, फिर नेट पर आये तो पहले कई फोनेटिक औजार आजमाये और बरह का प्रयोग काफी समय जारी रखा लेकिन दिल में हमेशा एक बात खटकती थी कि इसमें पूरा मजा नहीं आ रहा। इन्स्क्रिप्ट के बारे में सुनते रहते थे कि ये बैस्ट है, काफी समय तक अर्जुन की तरह असमंजस में रहे कि क्या करें फिर निश्चय कर इन्स्क्रिप्ट सीख ही लिया। आज लगता है कि यदि इन्स्क्रिप्ट फॉर्मूला वन रेस की कार है तो फोनेटिक साइकिल।
सिर्फ निश्चय करने की बात है फिर इन्स्क्रिप्ट सीखना हद से हद एक हफ्ते से ज्यादा का काम नहीं।
दुविधा में पड़े अर्जुन का यह लेख भी पढ़ें:
इन्स्क्रिप्ट प्रयोगकर्ताओं से कुछ प्रश्न
हमने भी २००० से पहले Leap से ही शुरू किया था।
ReplyDeleteफ़िर बरहा आजमाया।
Baraha के माध्यम से हम तो आसानी से टाइप कर लेते हैं क्योंकि अंग्रेज़ी में हम Touch Typing करते हैं और अंग्रेज़ी में गति है ७० से ८० शब्द प्रति मिनट।
Inscript Keyboard भी आजामाया था। शुरू में गति बहुत कम थी पर आगे चलकर सुधर गई पर हमारा अनुभव यह रहा के ४० साल से अंग्रेजी में टाइप करते करते हम अंग्रेजी keyboard के प्रयोग में इतने सक्षम हो गए हैं कि अब बदलना मुश्किल है। Inscript Keyboard से मेरा honeymoon एक दो महीने तक चला।
फ़िर मुझे लगा, के जितना भी कोशिश करूँ हम बरहा Transliteration के माध्यम से जो गति प्राप्त कर चुके हैं, कभी Inscript से वह गति प्राप्त नहीं करेंगे।
यह तो केवल मेरा अनुभव है। मानता हूँ कि नवागुन्तों को, Inscript का ही प्रयोग करना चाहिए। अवश्य किसी भी Transliteration keyboard से बेहतर है।
दो महीने के अभ्यास के बाद मुझे किसी sticker की जरूरत भी नहीं महसूस हुई। अब भी कभी कभी inscript keyboard का प्रयोग करता हूँ पर केवल लगु टिप्पणी के लिए।
अंग्रेजी में Voice recognition उपब्ध है, imperfect ही सही। हम बोलकर कंप्यूटर से टाइप करवा सकते हैं और बाद में यहाँ वहाँ edit करके काम चला सकते हैं।
क्या कभी हिन्दी में Voice recognition संभव होगा?
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
मैं तो अभी एपिक नाम के ब्राउजर का उपयोग करता हूँ....हाँ उसके लिए हमेशा इंटरनेट चाहिए ...लेकिन barha मुझे समझ में ही नहीं आता और उससे कहीं ज्यादा टंकण गति मुझे इसमें प्राप्त होती है....
ReplyDeleteशायद हिंदी में लिखने की इस समस्या कोई स्थायी हल नहीं है....
कीबोर्ड को लेकर खींचातानी क्यों ? अशोक चक्रधर जी ने सही कहा है कि जो कम्प्य़ूटर चलाता है वह अंग्रेज़ी से अभ्यस्त है और हमें उसका लाभ उठाना ही चाहिए। हमें अंग्रेज़ी से भय खाने की ज़रूरत नहीं बल्कि उसके साथ चलते हुए अपनी भाषा को आगे बढ़ाना चाहिए। जब अंग्रेज़ी कीबोर्ड से दोनों भाषाओं का संप्रेषण सरलता से हो रहा है तो हिचक कैसी?
ReplyDeleteज्ञ सीख लिया पढकर पाबला जी की टिप्पणी को . बराह का इस्तेमाल कर रहा हूं सहज लगता है . लेकिन एक कमी है अब लिखने मे अन्ग्रेजी की स्पेलिन्ग गलत लिखने लगा हूं .कई a ज्यादा लग जाते है .
ReplyDeleteपहले टाइप मशीन पर टाइप कर लेते थे हिन्दी . अब भूल गये
अपन तो1980 में रेमिंग्टन कीबोर्ड पर सीखे हुए हैं। बीच में 90 से लेकर 2000 तक टाइप करने का कोई काम नहीं पड़ा सो भूल भी गए थे। जब दुबारा शुरू किया तो कुछ दिन दिक्कत हुई। फिर स्टिकर का सहारा लेकर सब कुछ याद आ गया। पिछले दो साल से लैपटाप पर काम कर रहा हूं। अब तो कुंजी देखने की जरूरत भी नहीं पड़ती। रेमिंग्टन ही आसान लगता है। सीधे देवनागरी में ही लिखते हैं अपन तो।
ReplyDelete*
बहरहाल आपका शोधपूर्ण लेख उपयोगी है।
पूरी पोस्ट पढी। कुछ भी समझ में नहीं आया।
ReplyDelete1963 में टाइपिंग सीखनी पडी थी। रेमिंगटन की- बोर्ड से सीखा। कुल दो अंगुलियों से टाइप करना सीखा था। आज तक दो अंगुलियों से ही काम चल रहा है। आज भी देख-देख कर टाइप करता हूँ। की-बोर्ड पर हिन्दी के स्टीकर चिपका रखे हैं। की-बोर्ड रेमिंगटन का ही है। गति भी ठीक ठीक ही है। मेरा काम बढिया चल रहा है।
ब्लॉग लेखन के लिए कृतिदेव-10 में टाइप करता हूँ और रविजी (श्री रवि रतलामी) द्वारा प्रदत्त परिवर्तक से उसे यूनीकोड में बदल लेता हूँ। ब्लॉगों पर टिप्पणी करने के लिए हिन्दी इण्डिक आईएमई-1 भी रविजी ने ही उपलब्ध कराया हुआ है। उसी की सहायता से टिप्पणियॉं सीधे ही टाइप करता हूँ।
ऐसी पोस्टें पढकर सीखने की इच्छा मन में उठती हैं किन्तु हिम्मत नहीं होती। सो, मैं तो ऐसा ही हूँ और ऐसा ही ठीक हूँ।
आखिरी उम्र में क्या खाक मुसलमॉं होंगे।
काफ़ी पहले मतलब कि १२ वर्ष पहले रेमिंग्टन में लिखते थे, फ़िर रेमिंग्टन में लिखना छूटा और बराह में लिखने लगे अब बराह में ही अच्छी रफ़्तार हो गई है लिखने की इसलिये अब वापिस से रेमिंग्टन सीखने की इच्छा नहीं है, पर हाँ अगर रेमिंग्टन पता हो तो बराह के न होने की स्थिती में भी टाईप कर सकते हैं।
ReplyDeleteआपने यह जो हिन्दी वर्णमाला का ले-आउट दिया है इसे मैं 1998 से (मंगल फ़ांट नाम से)प्रयोग में ला रही हूँ कभी कोई कठिनाई नहीं हुई . और यहाँ (अमेरिका में )रह कर 20 -25 लोगों से तो इसकी सिफ़ारिश कर ,प्रयोग बढ़ाने में सहायक रही हूँ .वे सब भी इससे संतुष्ट हैं .अंग्रेज़ी के की-कोर्ड का ही हम लोग प्रयोग करते हैं -बहुत जल्दी याद होता है .मेरे 9 वर्षीय पोते ने एक दिन में इससे हिन्दी टाइप करना सीख लिया था .
ReplyDeleteआपकी सलाह बहुत अच्छी है .
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteहिंदी के तथाकथित सेवक हम भी हैं,मोबाइल पर तो नोकिया के आलावा हर जगह गड्ढे नज़र आते हैं.
ReplyDeleteकंप्यूटर पर तो कुछ दिनों से epic browser को डाउनलोड करके काम चला रहे हैं,की-बोर्ड के बारे में तो आप जैसे तकनीकी ही जानें !
हिंदी टाइपिंग को प्रेरित करता लेख ।आभार ।
ReplyDeleteवैज्ञानिक विश्लेषण ... पर अपने समझ के ऊपर हो कर निकल गया ... ये तो नज़र आता है की इसी की बोर्ड के सहारे चलते रहे तो बहुत कुछ खो देंगे समय के साथ साथ ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteपर अपन तो रेमिंग्टन के मुरीद हैं शुरू से।
---------
पति को वश में करने का उपाय।
@विष्णु बैरागी,
ReplyDeleteविष्णु जी केवल टिप्पणियाँ ही नहीं इण्डिक आइऍमई से आप ब्लॉग भी सीधे ही यूनिकोड में लिख सकते हैं। पहले कृतिदेव में लिखकर फिर उसे यूनिकोड में बदलने का झंझटिया काम क्यों करते हैं?
प्रिन्टिंग प्रेस की लाईन में रहकर श्रीलिपी में हिन्दी की बोर्ड जिस प्रकार से चलता था इंडिक में शिप्ट होने के बाद भी करीब करीब वही की बोर्ड चलता है इसलिये बिना किसी स्टीकर के सोचने की गति से हिन्दी टाईप कर लेता हूँ । अलबत्ता प्रोफेशनल टाईपिंग कभी नहीं सीखी इसलिये सिर्फ दो अंगुलियों से ही टाईप करता हूँ ।
ReplyDeleteएक ही कमी खटकती है और वह है इसमें मैं आज तक चंद्रकार ॅ को सही तरीके से अक्षर के उपर सेट नहीं कर पाया हूँ ।
जी मैं तो गूगल इंडिक का प्रयोग करती हूँ.अभी तक तो कोई समस्या नही आई.फिर भी यह कीबोर्ड tri करूंगी .शायद कुछ बेहतरी हो.
ReplyDeleteप्रवीण भाई, कैसे हो।आपके बिना मेरा पोस्ट अधूरा रहता है।नमस्कार।
ReplyDeleteनई-नई बातें..हमें भी तो सीखनी हैं.
ReplyDeleteआलस का आनन्द अलग ही है। हम तो यूनिकोड के अवतरण तक कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखने से बचते रहे।
ReplyDeleteप्रवीण ,
ReplyDeleteहम तो सीधे सीधे ब्लॉग पे या गूगल ट्रांसलेट पे टाइप करते हैं | अभी गूगल ने बहुत आसान और अच्छा कर दिया है सब, और आपकी पोस्ट के सामयिक महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता |
बहुत धन्यवाद , इस पोस्ट के लिए
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे ....... अगर ऐसा होता है तो हिंदी भाषा को समृद्ध करने के प्रयास को भी बल मिलेगा ....बहुत जानकारी पोस्ट ....
ReplyDeleteहम भी ट्राई करते हैं...
ReplyDeleteजानकारी हिंदी टंकण की उपयोगी है
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी . हिंदी साहित्य प्रेमियों और ब्लोगर्स के लिए सहेजने लायक पोस्ट. शुभकामना .
ReplyDeleteउपयोगी आलेख ।
ReplyDeleteआभार।
जो अशोक भाई की पीड़ा है वह अधिकांश की है । आपने इस दिशा मे सार्थक पहल की , प्रशंसनीय है ।
ReplyDeleteभाई मैं तो अभी भी एक वेबसाइट http://kaulonline.com/uninagari/inscript/ खोलता हूं, उसी पर जाकर टाइप करता हूं। मुझे लोगों ने तमाम सुविधाएं बताईं, जैसे गूगल कनवर्टर आदि, लेकिन मुझे यही तरीका आसान लगता है। ये वेबसाइट सामान्यतया जब मैं नेट पर हिंदी में कुछ पोस्ट करता हूं तो खुली ही रहती है।
ReplyDeleteकम्प्यूटर के मामले में तो हिंदी की स्थिति ऐसी लगती है जैसे कोइ हजार लाख लोगों की आंचलिक सी भाषा हो.
ReplyDeleteमुझे अब तक उपयोग किए साधनों में तख्ती सबसे अधिक पसंद है. बस कमी है तो यह की उसे लिखकर कॉपी पेस्ट करना पड़ता है. सो टिपियाने के लिए इसका उपयोग नहीं कर पाती.
घुघूती बासूती
बहुत सुंदर सुंदर जानकारी....
ReplyDeleteदेव-नागरी के सम्बन्ध में आपने बहुत सुंदर जानकारी दी , धन्यवाद .
ReplyDeleteवाकई, इन्स्क्रिप्ट ही है सबसे अच्छा कीबोर्ड.
ReplyDeleteबारहा की इतनी तारीफ सुनी लोगों से, इन्स्क्रिप्ट के आगे तो वो कुछ भी नहीं है. जब लोग झंझट वाले बारहा से काम चला सकते हैं तो इन्स्क्रिप्ट सीखने से क्यों झिझकते हैं?
itni badhiya jankari k lie dhanyavad....
ReplyDeletepoonam
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने हिन्दी की बोर्ड के बारे में सबको अपने-अपने अनुभव याद हो आये ..बधाई ।
ReplyDelete@ Bhushan
ReplyDeleteइंस्क्रिप्ट ही सर्वश्रेष्ठ लेखन टूल है, वर्तमान में। इसमें दूसरी भाषा के ऊपर निर्भरता शून्य हो जाती है और हिन्दी का गुण, कि जैसा बोला जाये वैसा ही लिखा जाये, अपनी सहजता प्रस्तुत कर देता है। संभवतः अभ्यास ही एक तत्व है जिससे सिद्धहस्तता पायी जा सकती है, इस लेखन में। श्रुतलेखन अभी प्रयोग में नहीं ला पाये हैं पर रोचक लग रहा है।
@ मनोज कुमार
आपने दो दशक देख लिये हैं। पहले की तुलना में बरह से निश्चय ही सरलता आयी होगी पर अंग्रेजी के सहारे हिन्दी टंकण विचारात्मक गतिरोध तो पैदा ही करता होगा।
मुझे तो हिंदी टाइपिंग में अभी भी मुश्किल होती है !
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
@ बी एस पाबला
ReplyDeleteमहान स्वप्नदृष्टाओं की भविष्यवाणी आज भी काम आ रही है, 12 वर्ष के बाद। बरह का उपयोग करने में वैशाखियों की आवश्यकता होती है, जो सोचा जाये, जैसे बोला जाये, वैसे ही टाइप किया जाये। कीबोर्ड में देवनागरी वर्ण होने का यही लाभ है कि वही टाइप किया जाता है, नेट हो, न हो।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
जब तक इन्स्क्रिप्ट नहीं मिला था, बराह ही सहारा था, पर अब वह व्यर्थ लगता है, कॉपी कर के पेस्ट करने में। पहला मापदण्ड ऊँगलियों का क्षमतानुसार प्रयोग ही है। तर्जनी का अधिकतम व कनिष्ठा का न्यूनतम प्रयोग हो। आपकी व्यास गति निश्चय छलकती होगी, इन्स्क्रिप्ट अपना लें।
@ Rahul Singh
सभी भाषाओं के लिये एक मानक कीबोर्ड निर्धारित हैं और हम हैं कि अभी तक प्रयोग पर प्रयोग कर रहे हैं, उससे भी शर्मनाक है कि अंग्रेजी से चिपके हुये हैं। हिन्दी सेवा इससे अधिक क्या हो सकती है कि बिना अंग्रेजी के सहारे हम हिन्दी टंकण में सक्षम हो सकें।
@ अभिषेक ओझा
जो मॉडल प्रस्तुत किया है पेपर में, पर्याप्त है एक मानक कीबोर्ड बनाने में। सीडैक ने तो इन्स्क्रिप्ट को मानक मान ही रखा है। डॉ कल्याण देब जी ने जब आईआईटी आये थे, उसी समय उनके साथ एक प्रोजेक्ट किया तआ।
@ क्षितिजा ....
आपको भी नववर्ष की शुभकामनायें। इन्स्क्रिप्ट अपना लें बिना किसी पहेली माने, निश्चय मानिये आप तेज लिख पायेंगी।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
ReplyDeleteगति से लिखने के लिये ही कीबोर्ड बदलने का उपक्रम करता रहा, अब संतुष्टि है।
@ Dr. shyam gupta
यह कीबोर्ड आपके कुंजियों से सीधे वही टाइप करता है जो आपको दिखता है या जो आप सोचते हैं, मन में उसे अंग्रेजी में बदलने जैसा कोई कष्ट नहीं।
@ संजय भास्कर
प्रारम्भ में अभ्यास होने तक थोड़ा समय जाता है पर अब कोई समस्या नहीं है और गति भी द्रुत है।
@ Raviratlami
आपकी पोस्ट देखकर बस यही लगा कि न पहले ही उसे पढ़ लिया। हो सकता अभी तक जितना लिख पाया, उससे दुगना लिख पाता।
@ P.N. Subramanian
हिन्दी वाले श्रुतलेखन को प्रयोग में लाकर देखना पड़ेगा।
@ Ghost Buster
ReplyDeleteअब इंस्क्रिप्ट अपना लें, गति बढ़ जायेगी।
@ सतीश सक्सेना
इतनी मेहनत हम कर लेते हैं जिससे की मातहतों को निष्कर्ष बताना ही शेष रहता है।
@ दीपक बाबा
हिन्दी से अंग्रेजी में जाने में केवल एल्ट और शिफ्ट एक साथ दबाने से भाषा बदल जाती है, बहुत ही सुविधाजनक है यह टाइपिंग।
@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
एक बार कीबोर्ड पर स्टीकर लगा लें, जो लिखना होगा वही टाइप करें।
@ ANIL YADAV
अपने अनुभवों से यदि औरों को लाभ मिले तो अवश्य बाटे जायें।
@ संजय कुमार चौरसिया
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ राज भाटिय़ा
इंस्क्रिप्ट अपना लें, कोई समस्या नहीं आयेगी। जो दिखेगा, वही लिखेगा।
@ ashish
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ajit gupta
2007 में भाषा में यह सुविधा है, लैपटॉप में भी, जाकर चुन लें। रेमिंगटन बोर्ड है कि नहीं, यह देखना पड़ेगा।
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
हिन्दी टाइप करने के लिए इनस्क्रिप्ट सर्वोत्कृष्ठ है कोई भी किसी भी उम्र में, 70 वर्ष की उम्र में भी इस में टाइपिंग सीख सकता है। इस का कोई जवाब नहीं।
आपसे पूर्णतया सहमत।
@ रंजना
ReplyDeleteआप निश्चय ही इन्स्क्रिप्ट अपनायें, थोड़ा अभ्यास कर लें तब कोई भी समस्या नहीं रहेगी, कभी भी। वेब के अतिरिक्त भी हर जगह ठीक से हिन्दी लिख पायेंगीं।
@ उपेन्द्र ' उपेन '
निश्चय ही निराश नहीं होंगे, इसे अपना कर।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद आपका।
@ shikha varshney
आप भी तब इंस्क्रिप्ट अपनायें, अधर में न रहें।
@ 'uday' ने कहा…
बहुत धन्यवाद सहमति का।
@ ePandit
ReplyDeleteआपका लेख सबसे पहले पढ़ा, आपने सारी दुविधाओं को एक सम्यक दिशा दी है। आपका लेख सभी ब्लॉगरों को पढ़ना आवश्यक है। एक दो हफ्ते का समय लगता है उसके बाद तो घोड़ा भागता रहता है। सबसे यही प्रार्थना है कि इंस्क्रिप्ट सीख लें।
@ G Vishwanath
अंग्रेजी में टाइप करने की गति कभी नहीं रही, कभी अधिक लिखा ही नहीं। हिन्दी में इसीलिये ट्रांसइटरेशन से कोई लाभ नहीं हुआ। एक वर्ण के लिये दो बार टाइप करना अखरता है। अपना नाम लिखने में दुगना प्रयास करना पड़ता है। स्टीकर चिपकाने से गति और भी तेज होती जा रही है, दिन प्रतिदिन।
@ shekhar suman
स्थायी हल इंस्क्रिप्ट में ही है, बस दो हफ्ते का अभ्यास समय चाहिये।
@ cmpershad
अंग्रेजी के माध्यम से किसी हिन्दी शब्द को सोचना और एक हिन्दी वर्ण के लिये दो अंग्रेजी वर्णों की कुंजियाँ दबाना चार गुना श्रम करवा देता है। आप जितना लिख सकते हैं, उसका एक चौथाई लिखने में ही सफल हो सकते हैं। अंग्रेजी से डर नहीं है, अधिक श्रम करना अखरता है।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
आपके लिये इन्स्क्रिप्ट में ही टाइप करना निर्वाण है।
मैनुअल रेमिंगटन टाइपराइटर के बाद DOS के ज़माने में माइक्रोसोफ़्ट का 'अक्षर' साफ़्टवेयर आया फिर बाद में लीप का हिन्दी साफ़्टवेयर, ये दोनों भी रेमिंगटन फ़ार्मेट में उपलब्ध थे.
ReplyDeleteयूनिकोड के कारण इधर-उधर हाथ-पैर मारे, रवि रतलामी जी का आभारी हूं कि उन्होंने रूपांतर से परिचय करवाया कि लीप का माल यूनीकोड में बदला जा सके. लेकिन उसके बाद से कैफ़े-हिन्दी का दामन पकड़ लिया. कुछ कुछ सीमाएं हैं पर character-map से काम चल जाता है...रेमिंगटन स्टाइल है, आफ़लाइन काम करता है, एम.एस.वर्ड में भी Akshar Unicode Font के माध्यम से लिख देता है, मुफ़्त है...और क्या चाहिये. हो सकता है कभी इसमें मात्राओं की समस्या सुलझा ली जाए :)
दुनिया बहुत हसीन है, कोई शिकायत नहीं :)
@ राजेश उत्साही
ReplyDeleteआपका तो पहले से ही कीबोर्ड का अभ्यास काम आ रहा है, पर नये ब्लॉगरों के लिये इंस्क्रिप्ट की संस्तुति मैं करूँगा। सीखने में आसान है, गति है और त्रुटियाँ भी न्यूनतम हैं।
@ विष्णु बैरागी
आप तीन विधियों से कैसे टाइप करते हैं। एक विधि ही अपनाना सरल होगा जो कि ओएस में सम्मलित हो। वही सबमें उपयोग में आयेगी, सीखने की कोई उम्र नहीं होती है।
@ Vivek Rastogi
एक वर्ण के स्थान पर कई वर्ण टाइप करने में तो गति कम होनी ही है।
@ प्रतिभा सक्सेना
बहुत धन्यवाद, बच्चों को तो बराह सिखाना बहुत मुश्किल हो जायेगा। हम भी इसी को प्रचारित करने में लगे हैं, हिन्दी हिताय।
@ Patali-The-Village
बहुत धन्यवाद आपका।
@ बैसवारी
ReplyDeleteमोबाइल पर एक अलग पोस्ट लिख रहे हैं। इन्स्क्रिप्ट अपना लें, कोई समस्या नहीं रहेगी, प्रयास तो करें।
@ amit-nivedita
बहुत धन्यवाद, पर लिखना प्रारम्भ करें।
@ दिगम्बर नासवा
अब समय नहीं खोना है, जरा भी। आपकी हर पाँचवी पोस्ट आनी ही चाहिये, टाइपिंग क्यों बाधक बने।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
बहुत अच्छा है, गति अधिक रहे, बराह में वह बात नहीं आ पाती होगी संभवतः।
@ ePandit
एक ही विधि रहे, हर जगह, उसी में गति है।
@ सुशील बाकलीवाल
ReplyDeleteयदि सोचने की गति से लिखा जा सके, तो आनन्द ही आ जाये।
@ Meenu Khare
आप प्रयास करें, गति अवश्य बढ़ेगी।
@ प्रेम सरोवर
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Akshita (Pakhi)
आप तो अभी से सीखना प्रारम्भ कर दो।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
आलस्य को अलसाने दें अब, आप इन्स्क्रिप्ट सीखना प्रारम्भ करें।
@ नीरज बसलियाल
ReplyDeleteनीरज जी, यदि आपको लम्बा और अधिक लिखना है तो सर्वश्रेष्ठ विधि ही अपनायें। हमें तो आपसे वह हर पाँचवी पुस्तक लिखवानी है जो आप धीमी टंकण गति के कारण नहीं लिख पायेंगे।
@ रचना दीक्षित
बहुत धन्यवाद आपका।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
बहुत धन्यवाद, तो आपने प्रारम्भ कर दिया कि नहीं, इन्स्क्रिप्ट में लिखना।
@ Akanksha~आकांक्षा
गति बढ़ने पर आप अधिक लिखेंगी और लाभ मेरा होगा।
@ गिरधारी खंकरियाल
बहुत धन्यवाद आपका, बस प्रारम्भ कर दीजिये।
@ मेरे भाव
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ ZEAL
बहुत धन्यवाद आपका।
@ अरुणेश मिश्र
वह भी चाहते हैं सब अधिक से अधिक लिख पायें।
@ satyendra...
हर प्रोग्राम में और हर समय टाइप कर पाने के लिये इन्स्क्रिप्ट में टाइप करना प्रारम्भ कर दें।
@ Mired Mirage
सीधे जहाँ लिखना हो, वहीं पर ही लिखने में सक्षम है इन्स्क्रिप्ट, क्योंकि ओएस का अंग है यह। वैशाखियों के सहारे टाइप करने और कॉपी पेस्ट में बहुत समय व्यर्थ होता है।
@ Sunil Kumar
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ अशोक बजाज
यदि किसी को भी थोड़ा सा भी लाभ हो सके तो बड़ी प्रसन्नता होगी मुझे।
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
मेरी गति तो लगभग दुगनी हो गयी है।
@ JHAROKHA
बहुत धन्यवाद आपका।
@ sada
बहुत धन्यवाद, अनुभव बाटने से लाभ विकसित होते हैं।
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ
ReplyDeleteआप इन्स्क्रिप्ट सीखना आज से ही प्रारम्भ कर दें, दो सप्ताह में गति आ जायेगी।
@ Kajal Kumar
आप सीमाओं में बँध कर क्यों लिखें।
बढिया जानकारी।
ReplyDeleteजानकारी के लिए धन्यवाद ! नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteab to aisi aadat pad chuki hai QWERTY ki kisi aur key-board pa abhyast hona mushkil hai :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर सुंदर जानकारी दी आप ने
ReplyDeleteashok ji jitna umda likhte hai utna hi bolte bhi hai ,aapki rachna me kai kaam ki baate samne aai jinhe padhkar khushi hui .
ReplyDeleteमैं बाराह या लीप के जरिये पचास शब्द के आस पास टाइप कर लेता हूं और यह मेरे लिये पर्याप्त है. रोमन वाला आप्शन ही ठीक है...
ReplyDelete@ deepak saini
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ usha rai
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Gopal Mishra
अपनी आदतों से बाहर आना कठिन होता है, सुविधा से परे गति है।
@ Mithilesh dubey
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ज्योति सिंह
हिन्दी के मूर्धन्य रचनाकारों की पीड़ा इस माध्यम से व्यक्त भर की है।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
ReplyDeleteरोमन में गति आधी से भी कम हो जाती है क्योंकि एक वर्ण के लिये दो से अधिक कुंजी दबानी पड़ती हैं और प्रोसेसिंग अंग्रेजी भाषा में होने से समय और श्रम अधिक लगता है मस्तिष्क का।
प्रवीण ,
ReplyDeleteटाइपिंग में भी बड़ा मजा आता है यार, कभी कभी टाइपिंग में देर लगती है , लेकिन अक्सर उससे थोड़ा और सोचने का टाइम मिल जाता है | जितनी देर तक टाइपिंग करता रहता हूँ , कहानी का हैंगओवर बना रहता है |
एक बात और, अक्सर टाइपिंग में कोई जरूरी शब्द टाइप नहीं होता, तो वो शब्द बदल देता हूँ | इससे कहानी में एक नयापन सा आ जाता है, हालाँकि ऐसा जरूरी नहीं कि हो ही :) |
जो बात महत्वपूर्ण है, वो ये कि टाइपिंग का हौवा हमारे विषय पर हावी न हो | ऐसा न हो कि हम लिखना चाहते हैं, टोपिक भी हमारे दिमाग में चल रहा है , लेकिन टाइपिंग की सतत समस्या से हमारा ध्यान भटककर अब टाइपिंग पर चला गया है | इसलिए तकनीक की तरफ लोगों को थोड़ा जागरूक तो होना ही चाहिए | जिसमे उनकी मदद करके आप अच्छा काम कर रहे हैं |
@ नीरज बसलियाल
ReplyDeleteटाइप करते समय विचार बहुत तेजी से आते हैं, टाइपिंग में थोड़ी देर होने से विचार और परिष्कृत हो जाते हैं। इन्स्क्रिप्ट में टाइप करने से शब्द नहीं बदलने पड़ेगें।
'inscript'...?? kuch naya se shabd hai ... hahaha... koi baat nahi aapne bola hai to pata karti hoon kya hai .. dhanyawaad
ReplyDelete@ क्षितिजा ....
ReplyDeleteयह हिन्दी कीबोर्ड का सीडैक द्वारा प्रामाणिक ले आउट है और विन्डो में एक विकल्प के रूप में उपस्थित भी है। बस आपको अपने कीबोर्ड में स्टीकर लगाने पड़ेंगे जिससे आपकी गति शीघ्र ही आ जाये।
काफी देर से आया । मोबाईल में हिंदी लिखने के लिये ढूंढ रहा था । वैसे तो कृतिदेव में अच्छी स्पीड थी । फरवरी में ब्लाग के लिये रतलामी जी के कनवरटर से मैटर बदला पर उसमें इतनी खामियां थी कि उन्हे सुधारने में टाइपिंग से ज्यादा समय लगता । तभी एक साइट मिली तब से आठ महीने से ज्यादा हो गये । डर है कि सीखने में इतना समय लगेगा तब तक लेखन मंद हो जायेगा और अपने को हर दूसरे दिन पोस्ट लिखने का है ताकि मैटर पूरा हो सके । वैसे अब गूगल आई एम ई ब्लाग और फेसबुक आदि में काम आ रही है उसमें भी थोडा थोडा काम चला रहा हूं
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