आप पढ़ना प्रारम्भ करें, उसके पहले ही मैं आपको पूर्वाग्रह से मुक्त कर देना चाहता हूँ। आप इसमें अपनी कथा ढूढ़ने का प्रयास न करें और मेरे सुखों की संवेदनाओं को पूर्ण रस लेकर पढ़ें। किसी भी प्रकार की परिस्थितिजन्य समानता संयोगमात्र ही है।
मायके जाना एक सामाजिक सत्य है और एक वर्ष में बार बार जाना उस सत्य की प्राण प्रतिष्ठा। पति महत्वपूर्ण है पर बिना मायके जाये सब अपूर्ण है। कहते हैं वियोगी श्रंगार रस, संयोगी श्रंगार रस से अधिक रसदायक होता है, बस इस सत्य को रह रह कर सिद्ध करने का प्रयास भर है, मायके जाना। कृष्ण के द्वारिका चले जाने का बदला सारी नारियाँ कलियुग में इस रूप में और इस मात्रा में लेंगी, यदि इसका जरा भी भान होता तो कृष्ण दयावश गोकुल में ही बस गये होते। अब जो बीत गयी, सो बीत गयी।
पुरुष हृदय कठोर होता है, नारी मन कोमल। यह सीधा सा तथ्य हमारे पूर्वज सोच लिये होते तो कभी भी उल्टे नियम नहीं बनाते और तब विवाह के पश्चात लड़के को लड़की के घर रहना पड़ता। तब मायके जाने की समस्या भी कम होती, वर्ष में बस एक बार जाने से काम चल जाता और बार बार नये बहाने बनाने में बुद्धि भी नहीं लगानी पड़ती। अपने घर में बिटिया को मान मिलता और दहेज की समस्या भी नहीं होती। लड़की को भी नये घर के सबके स्वादानुसार खाना बनाना न सीखना पड़ता। यदि खाना बनाना भी न आता तब भी कोई समस्या नहीं थी, माँ और बहनें तो होती ही सहयोग के लिये हैं। सास-बहू की खटपट के कितने ही दुखद अध्याय लिखे जाने से बच जाते। कोई बात नहीं, ऐतिहासिक भूलें कैसी भी हो, अब परम्परायें बन चुकी हैं, निर्वाह तो करना ही पड़ेगा।
विवाह करते समय यह आवश्यक है कि लड़की कोई न कोई पढ़ाई करती रहे, अपने मायके के विश्वविद्यालय में। इससे जब कभी भी मन हो, मायके आने की स्वतन्त्रता और अवसर मिलता रहेगा, पढ़ाई जैसा महत्वपूर्ण विषय जो है। विवाह के बाद मायके पक्ष के अन्य सम्बन्ध और प्रगाढ़ हो जाते हैं। चचेरे-ममेरे-मौसेरे रिश्तों की तीन-चार पर्तें जीवन्त हो जाती हैं, बिना उनके उत्सवों में जाये काम नहीं चलेगा, चाहे अन्नप्राशन ही क्यों न हो। विवाह आदि महत उत्सवों के चारों अवसरों पर जाना बनता है, कहीं बुरा मान गये तो।
बच्चे आदि होने के बाद, उनके पालन सम्बन्धी विषयों पर विशेष सलाह लेने का क्रम मायके जाने का योग बनाता रहता है। दो बच्चों में लगभग 7 वर्ष इस प्रकार निकल जाते हैं। अब इतनी बार आने जाने में बच्चों को भी नानी का घर सुहाने लगता है, मान लिया आपकी तो इच्छा नहीं है पर बच्चों का क्या करें, उनके लिये ही चले जाते हैं।
इस दौड़ धूप से थोड़ी बहुत स्थिरता यदि मिल पाती है तो उसमें विद्यालयों के अनुशासन का विशेष योगदान है। यदि उपस्थिति का इतना महत्व न दिया जाता तो मायके में एक ट्यूटर रख बच्चों की पढ़ाई की भरपाई तो की ही जा सकती थी। छुट्टियाँ होने के तीन दिन पहले से ही पैकिंग प्रारम्भ हो जाती है जिससे कि बिना समय व्यर्थ किये हुये प्रस्थान किया जा सके और अधिकतम समय ननिहाल में मिल सके बच्चों को।
मायके के संदर्भों में बुद्धि को कल्पना के विस्तृत आयाम मिल ही जाते हैं, जहाँ चाह, वहाँ राह। श्रीमतीजी की बुद्धि का विकास और पति की तपस्या, यह दो सुदृढ़ पहलू हैं, मायकेगमन के।
समय की उपलब्धता और निरीक्षणों की अधिकता में प्रशासनिक कार्य गति पकड़ लेता है, आत्मसंतुष्टि का एक और अध्याय। लम्बी यात्राओं में नये विचार और लेखन, फलस्वरूप यह पोस्ट।
पोस्ट की पूर्वतरंगों से करुणामयी हो, श्रीमतीजी 20 दिन के स्थान पर 15 दिनों में ही वापस आ गयी हैं, कल, वर्ष के अन्तिम क्षणों में। मायके जाने के सुख को पुनः एक बार विश्राम और अगले एक वर्ष तक मायके न जाने के वचन जैसी कुछ उद्घोषणा। "कोई मैके को दे दो संदेश, पिया का घर प्यारा लगे।"
अब यह पोस्ट डालने की इच्छा तो नहीं रही पर जब लिख ही ली है तो सुख बाँट लेते हैं।
वाह वाह वाह वाह......(दिल में हाय हाय हाय) आया था नए साल की बधाई देने। पर पता चला कि आप तो पहले से ही काफी सुखी हो गए हैं (भाभाजी पढ़ती होंगी ब्लॉग, इसलिए लिखनी पढ़ती है ऐसी दुखी बातें सुखी अंदाज में).....तो क्या शुभकामनाए दें आपको....फिर भी चलो दे ही देते हैं शुभकामनाएं. कि आपकी इच्छा पूरी हो दिली....
ReplyDeleteकितने कष्ट पाकर भी परंपराओं को जीवित रख रहे हैं हम आप, फ़िर भी कठोर हृदय कहलाते हैं:)
ReplyDeleteरिमोट फ़िर से छिन गया(टी.वी. का), संवेदना ही व्यक्त कर सकते हैं।
नववर्ष की आपको व आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें।
रिश्तों को मजबूत करता मायके गमन, गमनागमन, पुरागमन और नये साल की तरह मुबारक आगमन.
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......
ReplyDelete:) :)
ReplyDeleteमजेदार पोस्ट है जी।
वैसे एक बात तो अब तय मानी जायगी।
श्रीमती जी लोग जब भी बाहर होती हैं तो पतियों की चिन्तन धारा स्वत:स्फूर्त 'बरतन माँजने की कला' और 'क्या खायें क्या बनाये' जैसे विषयों की ओर बहने लगती है।
मसलन, जब सिंक में सुबह का रखा हुआ जूठा बरतन शाम तक यूं ही बिना माँजे पड़ा रहे तो उन जूठे बरतनों को देख पति महोदय अपनी सारी दबंगई भूल दबंग का ही फिल्मी गीत गुनगुनाने हुए कह उठेंगे -
ताकते रहते तुझको साँझ सवेरे.....
और बरतन हैं कि वह भी पति से बतियाते हुए साथ देंगे.....
पहले पहल तुझे देखा तो दिल मेरा
धड़का हाए धड़का धड़का हाए ...
जल जल उठा हूँ मैं :)
मुझे तो लगता है जिन पत्नियों को लगता है कि उनके पति में साहित्यिक या रचनात्मक गुण कम हैं उन्हें कुछ दिन मायके चले जाना चाहिये....क्योंकि ऐसे ही वक्त में कविताएं और तमाम क्रियेटिव तत्व पतियों में सक्रिय हो जाते हैं और बदले में आती है एक ऐसी ही अदद मोहक पोस्ट :)
राप्चिक पोस्ट है जी, एकदम राप्चिक :)
बहुत बढ़िया ...."पुरुष हृदय कठोर होता है, नारी मन कोमल" आपने बहुत सच्चाई से मायके जाने की परम्परा का विश्लेष्ण किया है ...
ReplyDeleteनव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें
कृष्ण के द्वारिका चले जाने का बदला सारी नारियाँ कलियुग में इस रूप में और इस मात्रा में लेंगी, ..
ReplyDelete:):)
सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
ReplyDeleteयह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...
जय हिंद...
सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।
ReplyDeleteसर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु॥
सब लोग कठिनाइयों को पार करें। सब लोग कल्याण को देखें। सब लोग अपनी इच्छित वस्तुओं को प्राप्त करें। सब लोग सर्वत्र आनन्दित हों
सर्वSपि सुखिनः संतु सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥
सभी सुखी हों। सब नीरोग हों। सब मंगलों का दर्शन करें। कोई भी दुखी न हो।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं!
साल ग्यारह आ गया है!
मजेदार पोस्ट।
ReplyDeleteनव वर्ष 2011 की अशेष शुभकामनाओं के साथ। सादर।
साल मे इस तरह के सुख कितना सुखी करते है हम लोगो को इसका वर्णन व्यर्थ है .
ReplyDeleteनया साल आपको मुबारक हो .
पत्नी का मायका गमन . पति के घर जमाई पन , दोनों अवस्थाओ पर आपकी नजर से पढ़ा . वियोग श्रृंगार रस में पगी हुई रचना अच्छी लगी . मुझे कृष्ण के मथुरा जाने पर गोपियो द्वारा उलाहना दिये जाने वाले निम्न दोहे की याद दिला गयी . नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये .
ReplyDelete"मंदिर अरध अवधि बदी हमसो, हरि आहार चली जात
ग्रह नक्षत्र वेद जोरि अर्ध करि ताई बनत अब खात"
सुखबाँटने के लिए धन्यवाद!
ReplyDelete--
नववर्ष आपको मंगलमय हो!
--
झट से यहाँ पोस्ट लाने के लिए फट से क्लिक कोड अपने ब्लॉग पर लगाएं! http://blogsmanch.blogspot.com/
भाभी के आ जाने से नववर्ष का समारोह तगड़ा हो गया है। बधाई!
ReplyDeleteमायके की एक शादी में पत्नी जी दो सप्ताह पहले चली गईं। हम शादी कर के लौटने लगे तो हम ने साथ चलने को बोला तो कहने लगीं हम दो दिन बाद आएंगे। हमें घर याद आया। कई दिनों की धूल से भरा।
हम ने तुरंत कहा -कोई बात नहीं प्रिये! तुम हमारे साथ नहीं चल रही। अब हम ही तुम्हारे साथ चलेंगे।
तभिए हमने राजा जनक को संदेसा भेज कर सपरिवार अवधपुरी बुलाय लिया था।:)
ReplyDeleteनूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत ही खूबसूरती के साथ आपने मायके जाने का सुख वर्णित किया है। अजी यह तो आप लोगों के लिए स्वतंत्रता दिवस हैं तो मनाइए शान से। नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteश्रीमती जी का मायका प्रस्थान ही एक ऐसा सुख है जिसकी हमें लम्बे अरसे से प्राप्ति नहीं हुई. मायका और ससुराल एक ही शहर में होने से भी कुछ व्यावहारिक समस्याएँ उपजती हैं जिनका वर्णन करने के लिए शायद एक पोस्ट लिखनी पड़ेगी.
ReplyDeleteवैसे श्रीमती जी लोंगों की अनुपस्थिती भी ज्यादा बुरी नहीं रहती है क्योंकि डायरी फटाफट दर्द भारी कविताओं से भरने लगती है जो पूरे साल धीरे धीरे पोस्ट करते रहो..... नववर्ष की आपको व आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteनया साल शुभा-शुभ हो, खुशियों से लबा-लब हो
ReplyDeleteन हो तेरा, न हो मेरा, जो हो वो हम सबका हो !!
वियोग के बाद मधुर मिलन, नव वर्ष की पूर्व संध्या पर, असीम हर्ष और उल्लास प्राप्त हुआ होगा और ऐसा पूरे वर्ष भर उल्लास और हर्ष बना रहे ऐसी मेरी कामना है नव वर्ष पुनः मंगलमय हो
ReplyDeleteवियोग के बाद मधुर मिलन, नव वर्ष की पूर्व संध्या पर, असीम हर्ष और उल्लास प्राप्त हुआ होगा और ऐसा पूरे वर्ष भर उल्लास और हर्ष बना रहे ऐसी मेरी कामना है नव वर्ष पुनः मंगलमय हो
ReplyDeleteek badi si muskaan aa gyi aaj ki ye post padhte hi...
ReplyDeletenaye saal ki hardik shubhkamnaye...
yun hi haste hasate rahiye...
हम तो इसके मुरीद हैं... बार-बार जाओ, हजार बार जाओ, तुम अपने मैके, डार्लिंग....
ReplyDeleteइस दौड़ धूप से थोड़ी बहुत स्थिरता यदि मिल पाती है तो उसमें विद्यालयों के अनुशासन का विशेष योगदान है। यदि उपस्थिति का इतना महत्व न दिया जाता तो मायके में एक ट्यूटर रख बच्चों की पढ़ाई की भरपाई तो की ही जा सकती थी
ReplyDeleteविद्यालय कुछ तो काम आते हैं ...
मायके से लौटना सुखद है या दुखद यह तो आप स्वयं ही जाने पर नए साल की पोस्ट बहुत बढ़िया है ...
पूरे परिवार को नव वर्ष की शुभकामनाएँ ..
वाह वाह क्या बात है फिर तो 2-2 सुख एक साथ मिल गये…………पत्नी भी आ गयी और नया साल भी
ReplyDeleteआपको तथा आपके पूरे परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आद.प्रवीन जी,
ReplyDeleteनए वर्ष की शुरुआत आपने अच्छी पोस्ट से किया है !
आपको सपरिवार नव वर्ष की अनंत मंगलकामनाएं !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
अच्छी पोस्ट. नववर्ष की मंगलकामनाएँ.
ReplyDeleteमायके जाने का सुख----- एक साथ दो जने भोगते है !
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मेरी और मेरे परिवार की और से एक सुन्दर, सुखमय और समृद्ध नए साल की हार्दिक शुभकामना ! भगवान् से प्रार्थना है कि नया साल आप सबके लिए अच्छे स्वास्थ्य, खुशी और शान्ति से परिपूर्ण हो !!
नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteपल पल करके दिन बीता दिन दिन करके साल।
नया साल लाए खुशी सबको करे निहाल॥
अरे वाह!! क्या खूब सुख गिनाएं हैं. कुछ हम भी गिना दें क्या? :)
ReplyDeleteनये वर्ष की अनन्त-असीम शुभकामनाएं.
प्रवीण जी!
ReplyDeleteनववर्ष की पूर्व संध्या परजो आपके साथ हुआ है उसमें हमें बराबर का शरीक समझें!
और आपके आदेशानुसार हम इस कथा को अपनी व्यथा कतई नहीं मानते.व्यथा भी क्या कुछ भी नहीं मानते जी!(ऐसा सीना ठोंककर कहने की अग्रिम अनुमति ले रखी है हमने.
.
नववर्ष मंगलमय हो!!
aapko padhkar man prasnn ho uthta hai kamaal ka likhte hai aur ye panktiyaan kya kahne -
ReplyDeleteकृष्ण के द्वारिका चले जाने का बदला सारी नारियाँ कलियुग में इस रूप में और इस मात्रा में लेंगी, यदि इसका जरा भी भान होता तो कृष्ण दयावश गोकुल में ही बस गये होते। अब जो बीत गयी, सो बीत गयी।
is khoobsurat rachna ke saath nav barsh ki badhiyaan .
आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ....
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को नव वर्ष की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपके तेल के कुएं की कामना के बाद ब्लाग पर आना नहीं हो पाया :) आज आया तो बाक़ी पोस्टें भी साथ ही जीम लीं. अच्छा लगा पढ़ कर. विषेशकर आपकी दो पोस्टें, महाजन जी व फिल्मी साहित्य के बारे में पढ़कर मुझे तो बस इतना ही कहना है कि ... रचनात्मकता शायद सहज नहीं होती इसीलिए असहजता इसका अभिन्न अंग है भले ही वह व्यक्ति के परिपेक्ष्य में हो या परिस्थितियों के...
ReplyDeleteवाह ....बहुत ही सुन्दर लेखन ...।
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ।
बाऊ जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
हमने तो इसे एक नसीहत के तौर पे पढ़ लिया है, मसलन क्या-क्या पैंतरे अपनाए जा सकते हैं नेता प्रतिपक्ष के द्वारा मायके जाने के लिए!? भविष्य में शायद काम आ जाए! हा हा हा...
आपके अहसानमंद हैं के जो इसे हमसे बांटा.
आशीष
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हमहूँ छोड़के सारी दुनिया पागल!!!
वाह वाह क्या बात है
ReplyDeleteआपको नये वर्ष की शुभकामनायें।
पढना शुरू ही किया था कि होठों पर डेढ़ इंच मुस्कान खिंच आयी .और सम्पूर्ण पोस्ट पारायण तक बिना ढील खिंची ही रही ...डर है की होठों का यह स्थायी भाव /रूप ही हो न जाए -क्योकि रह रह कर मायका महात्म्य याद हो आ रहा है !
ReplyDeleteसर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः।
ReplyDeleteसर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े .
नव - वर्ष २०११ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
वाह... बहुत खूब...
ReplyDeleteचलिए अच्छा है मुझे ये सब पहले से पता चल गया... आपकी एक-एक बात ध्यान रहेगी... और कोशिश करूँगीं की भविष्य कुछ ख़ास ही हो...
नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
vaaaaaaaaaaaaaaaaaah ji maja aa gaya aaj to apki post padh kar aur naya saal aur sukhmay ho gaya exactly maayke jaisa sukhmay. ha.ha.ha.
ReplyDelete:):):):)
nav varsh ki haardik shubhkaamnaayen.
नए वर्ष की आपको भी बधाई।
ReplyDeleteगरम जेब हो और मुंह में मिठाई॥
रहें आप ही टाप लंबोदरों में-
चले आपकी यूँ खिलाई - पिलाई॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
रोचक पोस्ट। पढते समय लगता है, आप सामने बैठ कर यह सब कह रहे हैं।
ReplyDeleteमैंने शायद पहले कहा है - आपके ललित निबन्ध संग्रह की प्रतीक्षा रहेगी। इस नेक काम में देर न करें।
अरे शीर्षक देखकर हम तो समझे थे कि आप अपने मायके जाने के सुख के बारे में लिखेंगे ।
ReplyDeleteवेसै इस बात पर भी विचार करिए कि पत्नी का ही मायका क्यों होता है पति का क्यों नहीं।
चलिए ये भी अच्छा ही हुआ कि श्रीमती जी नए साल से एक दिन पहले ही आ गईं,वरना आपके कहते एक साल बाद आईं हैं1
*
आपको,श्रीमती जी को और बच्चों को 21 का 11 मुबारक हो।
आपको नया साल बहुत-बहुत मुबारक हो
ReplyDeleteहम तो तरस गये शुभा के मायके जाने के लिये। शायद ही वह कभी मायके गयी हो।
ReplyDelete:) क्या दर्द है...वाह :)
ReplyDeleteचलिए अच्छा है भाभी जी आ गयीं एक दिन पहले ही वरना तो महाराज आप उनके याद में ही मर रहे होते :)
अफ़सोस कर रहा हूँ कि यह सुख मुझे क्यों नहीं मिला। एक बार कोशिश की थी अकेले रहने की तो मामला उल्टा पड़ गया था। तब यह कविता निकल पड़ी थी:
ReplyDeleteघर खाली है निपट अकेले पड़े हुए है।
बीबी-बच्चे गाँव गये हैं, अड़े हुए हैं॥
मस्त रहा ब्लॉगिंग में, सबने करली कुट्टी।
विकट नतीजे लेकर आयी मेरी छुट्टी॥
बिटिया ने जब छुट्टी का सन्देश सुनाया।
नानी के घर जाने का अरमान बताया॥
मैने सोचा, चलो भली ये गाँव की मिट्टी।
विकट नतीजे लेकर आयी मेरी छुट्टी॥
सोचा था एकान्त रहेगा खूब लिखेंगे।
इतने सारे नये - पुराने ब्लॉग पढ़ेंगे॥
भर लेंगे गीतों, लेखों से अपनी किट्टी।
विकट नतीजे लेकर आयी मेरी छुट्टी॥
बैठे-बैठे बीत गये दिन खाली घर में।
लिख ना पाया, अटक गये लो गीत अधर में॥
बात हुई क्या, गुम क्यों है अब सिट्टी-पिट्टी?
विकट नतीजे लेकर आयी मेरी छुट्टी॥
ना बेटे का हँसना, रोना या चिल्लाना।
ना बेटी का होमवर्क है हमें कराना॥
नाहक हुई पलीद यहाँ जी मेरी मिट्टी।
विकट नतीजे लेकर आयी मेरी छुट्टी॥
सोच रहा हूँ, गाँव चलूँ, उनको ले आऊँ।
वहाँ दशहरा के दंगल में दाँव लगाऊँ ॥
सुनो चिठेरों लेता हूँ कुछदिन की छुट्टी।
विकट नतीजे लेकर आयी मेरी छुट्टी॥
(सिद्धार्थ)
http://satyarthmitra.blogspot.com/2008/10/blog-post_07.html
मज़ेदार और एक हद तक दार्शनिक पोस्ट। आपके चिन्तन वाला समाज भी कतिपय मातृसत्ताक व्यवस्थाओं वाले समाजों में है।
ReplyDeleteनया साल मुबारक हो
वाह!!!!! क्या अदा है....धन्य हो....
ReplyDelete"मायका भी कभी ससुराल था या ससुराल भी कभी मायका था"॥बहुत अच्छा लेख। बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteNaya saal bahut mubarak ho!
ReplyDeleteआपकी अति उत्तम रचना कल के साप्ताहिक चर्चा मंच पर सुशोभित हो रही है । कल (3-1-20211) के चर्चा मंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
ReplyDeletehttp://charchamanch.uchcharan.com
पत्नी का मायके जाना मतलब मेरे लिए १५ अगस्त जैसा स्वतंत्रता दिवस!
ReplyDeleteवाह केवल अपनी सोचते हो। मायके वाले कहाँ जायें? वो बेचारे एक साल तक इन्तज़ार करते रहते हैं कि कब उनके जिगर का टुकडा उनके पास आये। अच्छा तो लडकियाँ ऐसे सोचती हैं कि पिया का घर प्यारा लगे । तभी मेरी बेटियाँ 31 की बजाये 30 को ही चली गयी। चलो आपको एक पोस्ट लिखने का अवसर मिल गया लेकिन मुझे 8-9 दिन नेट से दूर रहना पडा। यही फर्क है। आपको सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeletewaah kitne khushi se sukh ginaye :)
ReplyDeletenav varsh kee shubhkamnaye.
इस सुख कि हार्दिक बधाई
ReplyDelete,,,नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये
सदा सुखी रहिए - अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
ReplyDeleteश्रीमतीजी 20 दिन के स्थान पर 15 दिनों में ही वापस आ गयी हैं
ReplyDeleteआपकी आजादी के 5दिन कम हो गये, जानकर अफसोस हुआ :)
प्रणाम
नववर्ष की शुभकामनायें।
ReplyDeleteहिन्दुस्तानी पुरुष धन्यवाद के पात्र हैं , वर्ष में कम से कम एक बार तो sanctioned है मायका-यात्रा।
ReplyDeleteवाह प्रवीण भाई वाह...
ReplyDeleterishton की shiddat tabhi mahsoos होती है ... मज़ा aaya padh कर ....
ReplyDeletePraveen जी ....आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष मंगलमय हो ..
man ko bandhkar rakhta hai lekh ka akarshan.
ReplyDeleteumda lekh/vyang.
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteप्रवीण भाई, छा गये आप। आपको यह सुख पुन: प्राप्त हो, यही कामना है।
---------
मिल गया खुशियों का ठिकाना।
पत्नी का मायके जाना ..इतनी रोचक पोस्ट लिखवा गया..
ReplyDeleteअनजाने में भी पति का भला ही कर जाती हैं, पत्नियां...:)
@ boletobindas
ReplyDeleteमायके जाना उनका नहीं छूटना है, प्रसन्न रहना हमें सीखना ही होगा। बहुत अधिक प्रसन्त भी नहीं होना है, नहीं तो दुख और बढ़ जायेगा।
@ मो सम कौन ?
सच कहा आपने, रिमोट छिन चुका है। अब तो ब्लॉगिंग का ही सहारा है।
@ Rahul Singh
रिश्तों को खींच कर परीक्षण करने जैसा है यह मायके जाने का क्रम। खींच खींच कर मजबूत तो होना ही है।
@ संजय भास्कर
आपको भी नव वर्ष की शुभकामनायें।
@ सतीश पंचम
आपकी पोस्ट से प्रेरित थी, आँसू ढलने का व्यथा। ताकते रहते हैं हम न जाने क्या क्या, साँझ सबेरे। पत्नियाँ बहुत ही समझदार हैं जो पतिदेव की साहित्यिक प्रतिभा उभारने के लिये मायके चली जाती हैं।
बहुत ही सुंदर............
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...
*काव्य- कल्पना*:- दर्पण से परिचय
*गद्य-सर्जना*:-जीवन की परिभाषा…..( आत्मदर्शन)
@ : केवल राम :
ReplyDeleteपरम्परा का स्रोत कोई और तथ्य रहा होगा, यदि मन की कठोरता आधार रही होती, निष्कर्ष कुछ और होते।
@ वाणी गीत
सच ही है, बदला लिया ही जा रहा है।
@ खुशदीप सहगल
आपको भी नव वर्ष की शुभकामनायें।
@ मनोज कुमार
बहुत धन्यवाद औऱ नव वर्ष की शुभ कामनायें।
@ प्रेम सरोवर
बहुत धन्यवाद आपका।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
ReplyDeleteइस प्रकार का सुख प्रत्येक को मिलता है, बिना अपवाद के।
@ ashish
जमाईपन का आनन्द तो बिरले ही उठाते हैं और जीवन भर उठाये रहते हैं। गोपियों की उलाहना बहुत ही सशक्त है।
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
बहुत धन्यवाद आपका।
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
मायके में नारीमन को न जाने क्या क्या हो जाता है, रह रह कर बदलने लगता है, भावनात्मक कारणों से।
@ ललित शर्मा
बहुत अच्छा किया, हमने संदेशाे का भी अधिकार उन्हे ही दे रखा है।
@ ajit gupta
ReplyDeleteस्वतन्त्रता संग्राम के बाद ही तो स्वतन्त्रता दिवस देखने का अधिकार मिला।
@ निशांत मिश्र - Nishant Mishra
आपका कष्ट हम समझ सकते हैं, आपकी पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी।
@ उपेन्द्र ' उपेन '
साहित्यक उत्पादकता का मानक है मायके जाना।
@ 'उदय'
आपको भी बहुत शुभकामनायें।
@ गिरधारी खंकरियाल
पहले घर में कितनी शान्ति थी, अब वो आ गयी हैं।
@ शुभम जैन
ReplyDeleteसुख और पीड़ा के सहभागियों को बरबस ही आनन्द आ जाता है।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
मर्यादावश तो एक बार हम भी कह ही देते हैं रुक जाने को।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
विद्यालयों के भन्द होने और खुलने के बीच का समय ही उनके मायके जाने का समय है। सुख-दुख तब भी था, अब भी है।
@ वन्दना
सुखों में इस कदर डूबे हैं कि साँस नहीं ले पा रहे हैं।
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Bhushan
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
और साथ रहने का दुख भी।
@ जी.के. अवधिया
आपको भी शुभकामनायें।
@ वन्दना अवस्थी दुबे
आपकी पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी, हो सकता है कुछ और ज्ञानचक्षु खुल जायें।
@ सम्वेदना के स्वर
व्यथा की कथा और कथा का आनन्द, दोनों का ही आनन्द उठा रहे हैं।
@ ज्योति सिंह
ReplyDeleteपता नहीं पर लगता है गोपियों की भी साहित्यिक प्रतिभा उद्धव पर बरसी थी, यह है वियोग की शक्ति।
@ महेन्द्र मिश्र
आपको भी नववर्ष की शुभकामनायें।
@ Rajpurohit
आपको भी नववर्ष की शुभकामनायें।
@ Kajal Kumar
रचना की असहजता संभवतः उसे उसके पाठक से जोड़ देती है। सहजता तब उसे सही दिशा में बहा कर ले जाती है।
@ sada
बहुत धन्यवाद आपका।
@ आशीष/ ਆਸ਼ੀਸ਼ / ASHISH
ReplyDeleteइस खेल में आप कितनी भी तैयारी कर लें, आपको हारना ही है। मायके के नाम पर बुद्धि सृजनात्मकता का चरम छूने लगती है।
@ संजय भास्कर
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Arvind Mishra
आपके चेहरे पर मुस्कान बहुत अच्छी लगती है, उसे बनाये रखने के लिये औऱ भी लिखना पड़ेगा।
@ अशोक बजाज
आपको भी नये वर्ष की बधाई।
@ POOJA...
कुछ यहाँ से सीख लीजिये और कुछ संरचना स्वयं कीजियेगा। उसका भी अपना अलग सुख है।
@ अनामिका की सदायें ......
ReplyDeleteमायके का अनुराग नारीमन अह्लादित कर देता है।
@ डॉ० डंडा लखनवी
आपको भी नववर्ष की शुभकामनायें।
@ विष्णु बैरागी
जब लेखन में लालित्य आयेगा तब ललित निबन्ध लिखेंगे, अभी तो छलित निबन्ध लिख रहे हैं।
@ राजेश उत्साही
मायका तो घर जमाई पति का होता है, एक साल बच गया।
@ फ़िरदौस ख़ान
आपको भी नये वर्ष की शुभकामनायें।
@ उन्मुक्त
ReplyDeleteहमें तो लगता है कि आपसे अधिक भाग्यशाली कोई नहीं, कम से कम होटलों में तो नहीं खाना पड़ता है।
@ abhi
अभी तो आप प्रसन्न हो लीजिये, कल आपकी बारी आयेगी तो हम 50 पैसे का टिकट लगा आपकी पिक्चर दिखायेंगे।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
साहित्यिक लाभ तो आपको हुआ ही, पर अन्त की पंक्तियों ने इस व्यंग का सत्य खोल दिया है।
@ अजित वडनेरकर
मातृसत्तात्मक परिवारों को इस संदर्भ में विश्लेषित करना होगा।
@ Dr. shyam gupta
बहुत धन्यवाद आपका।
@ amit-nivedita
ReplyDeleteएक ही घर कभी मायका बन जाता है और कभी ससुराल।
@ kshama
आपको भी शुभकामनायें।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद इस सम्मान के लिये।
@ satyendra...
आपको भी स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें।
@ निर्मला कपिला
लड़कियाँ तो घर का गहना होती हैं, घर आती हैं तो आपके भी मुखमण्डल में ऊर्जा आ जाती है। कोई बात नहीं, हम होटलों में खा लेंगे।
@ shikha varshney
ReplyDeleteआप भी इस सुख का लाभ उठायें, हम लोग तो आप लोगों को प्रसन्न देखकर ही खुश हो लेते हैं।
@ bilaspur property market
आपको भी यही सुख मिले।
@ खबरों की दुनियाँ
बहुत धन्यवाद आपका।
@ अन्तर सोहिल
पर आपको किसने कहा कि जीवन में केवल सुख होते हैं।
@ Poorviya
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ZEAL
ReplyDeleteधन्यवाद और अश्रुवाद के पात्र हैं। एक बार जाने में वह सुख कहाँ।
@ दुधवा लाइव
बहुत धन्यवाद आपका।
@ दिगम्बर नासवा
रिश्तों को निभाना, इसीलिये मायके जा कर आना।
@ सुरेन्द्र सिंह " झंझट "
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
एक वर्ष का वचन है, उससे पहले भी मिल सकता है।
@ rashmi ravija
ReplyDeleteजानकर तो भला ही भला करती हैं। अन्जाने में भी हो जाता है।
@ Er. सत्यम शिवम
बहुत धन्यवाद आपका।
क्षमा कीजिए, देर से पहुँचा।
ReplyDeleteहम ने यह सुख (बीवी का मायके जाना) कभी भी अनुभव नहीं किया।
जी नहीं, यह न समझिए के बीवी मुझसे इतना प्यार करती है कि मायके जाने के बारे में सोचती भी नहीं।
बात यह है कि ससुर जी का कोई बेटा नहीं है, चार बेटियाँ हैं और ज्यादातर हमारे घर में ही हमारे ही साथ रहते हैं।
सास बहु का झगडा तो आम बात है पर हमारे यहाँ तो माँ-बेटी के बीच रोज रोज की नोंक झोंक किसी टीवी सीरयल से कम मनोरंजक नहीं है। हमें हस्तक्षेप करके घर में शान्ति लानी पडती है। कभी लिखेंगे इस विषय पर।
नव वर्ष के अवसर पर शुभकामनाएं।
जी विश्वनाथ
प्रवीण जी आप की लेखन प्रक्रिया बहुत प्रखर है,बहुत सुन्दर लगता है आप के ब्लॉग पर आ के
ReplyDeleteशुभ कामना सहित दीपांकर पाण्डेय
http://deep2087.blogspot
आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की अनंत मंगलकामनाएं
ReplyDeletepraveen ji
ReplyDeleteaaj to maja hi aa gaya aapki post padh kar . hansi hai ki rukne ka naam hi nahi le rahi hai ,aise me sach maniye ghar par akeli hun aur thhaka lagane ka man kar raha hai .is samy yadi internet se camara juda hota to shayad aap meri hansi dekh paate .koi baat nahi bas hanste huye hi aapko itni badhiya prastuti ke liye badhai de rahi hun.---(:)
poonam
कोई भी बात/पक्ष छूटी नहीं आपसे...स्वयं एक स्त्री होते हुए भी आपकी इस पोस्ट का जो रस लिया है मैंने न...कह नहीं सकती..
ReplyDeleteगजब गजब लिखा है..एकदम लाजवाब !!!
BAHUT SUNDAR GAATHA SIR.
ReplyDelete@ G Vishwanath
ReplyDeleteमायके जाने का सुख भले न मिले पर झगड़े निपटाने का सुख तो मिल ही रहा है। टीवी सीरियल का आनन्द ले रहे हैं, कुछ ब्लॉग में भी प्रवाहित करें।
@ दीप
बहुत धन्यवाद आपका।
@ mukes agrawal
आपको भी नये वर्ष की शुभकामनायें।
@ JHAROKHA
मायके जाना सदियों से चला आ रहा है, सबको ही इस सुख का आनन्द मिल जाता है। पुरुषों को थोड़ा कष्ट भी मिलता है पर कोमल नारीमन के लिये इतना तो किया जा सकता है।
@ रंजना
ReplyDeleteमायके गमन का मैं पुरुष-पक्ष हा रख पाया हूँ, और कोई भी युक्ति होती हो तो पाठकों को बताई जा सकती हैं।
@ G.N.SHAW
बहुत धन्यवाद आपका।
लाजवाब पोस्ट...एक सांस में पढ़ गया...आपकी लेखन क्षमता को नमन...
ReplyDeleteनीरज
वाह नया साल नया व्यंग छा गये आप तो . वैसे हम लोगों का बस चले तो हर महीने आप लोगों को १५ अगस्त और २६ जनवरी का का मज़ा लेनें दें पर यहाँ तो माजरा होता ही उल्टा है मन मन भावे मुड़िया हिलावे
ReplyDelete@ नीरज गोस्वामी
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ रचना दीक्षित
मैंने तो अपना पक्ष रखा है, मुझे यह भी ज्ञात है कि आप लोगों के तूरीण में और भी तीर हैं।
मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट लिखने के बधाई !
ReplyDeleteढिन्चक पोस्ट है प्रवीण जी… मजा आ गया…
ReplyDeletemaja aa gaya!!!
ReplyDelete@ अशोक बजाज
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद उत्साहवर्धन का।
@ Suresh Chiplunkar
सदियों से इन प्रकरणों का आनन्द लूट रहे हैं, हम भारतवासी।
@ Gopal Mishra
चलिये, लिखना सार्थक हो गया।
आप की यह पोस्ट दार्शिकनिकता से ीगी हुई है, बन्धु बहुत खूब...
ReplyDelete@ कृष्ण
ReplyDeleteमन की अकह वेदना बहुधा दार्शनिकता में व्यक्त होती है।
पत्नी के मायके जाने का इंतज़ार हमें भी रहता है ताकि इसी बहाने कुछ दिन की बेफ़िक्री तो नसीब हो !
ReplyDeleteपर थोड़े सुख के बदले बड़े दुःख भी महसूसने पड़ते हैं,खाने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है.पत्नी का घर से बाहर रहना थोड़े दिन ही अच्छा लगता है !
@ बैसवारी
ReplyDeleteकेवल दो दिन का आनन्द रहता है, उसके बाद कमी खलने लगती है।