कई बार घोर कर्मवादी मनुष्य भाग्य को किंचित भी श्रेय नहीं देते हैं, न किसी सुख के लिये और न किसी दुख के लिये भी। बहुत चाहा कि उनके पौरुषेय चिन्तन से प्रभावित होकर स्वयं को ही अपना स्वामी मान लें। दो तीन दिन तक तो कृत्रिम चिन्तन चढ़ा रहता हैं, पर असहायता की पहली ही बारिश में वह रंग उतर जाता है और तब स्वयं से अधिक भाग्य पर विश्वास होने लगता है।
कोई तो कारण रहा होगा कि हमारे पास तेल का कुआँ न हुआ, जन्म के समय एक तिकोनी चढ्ढी ही मिली पहनने को। जीवन के कितने मोड़ लाज छिपाते छिपाते पार किये। तेल का कुआँ होता तो, उफ, क्यों न हुआ तेल का कुआँ?
कारों में रुचि नहीं है, नहीं तो यही आह बड़ी लम्बी होती और कुओँ की आवश्यकता बहुवचन में पहुँच जाती।
भारत में जन्म के लिये लाइसेन्स काटने के पहले भगवान को ज्ञात तो अवश्य होगा कि यह तड़पेगा बहुत। मन और मस्तिष्क तो बहुत तेज चलेंगे पर साथ देने के लिये कुछ और न रहेगा। थोड़े दिन बाद स्वतः ही सबसे हार मान जायेगा और भाग्य पर विश्वास करने लगेगा। मरने के पहले लोक, परलोक, सन्तोष की बड़ी बड़ी बातें करेगा पर अगले जन्म के लिये भारत देश नहीं, अरब देश का टिकट माँगेगा।
अब देखिये यहाँ पर कुछ सार्थक पाने में जीवन का तेल निकल आता हैं और हमारे अरबी बान्धव थोड़ा तेल निकाल निकाल कर जीवन भर सब कुछ पाते रहते हैं। हम लोग बरेली के बाज़ार में झुमका ढूढ़ने में एक पूरा गाना बना देते हैं और किसी शेख ने खालिस चाँदी की कार बनवायी है अपने बरेली के बाज़ार जाने के लिये। वहाँ जन्म लेने वालों के बच्चों के मन में परीक्षा का भूत कभी नहीं मँडराता होगा। एक तेल के कुआँ न होने से न जाने हमारे विद्यार्थियों को मन्दिरों में कितनी प्रार्थनायें और बजरंग बली को कितनी हनुमान चालीसा चढ़ानी पड़ती हैं। किसी को अरब में पैदा किया, हमें अरबों के बीच छोड़ दिया।
हमारे भी जलवे होते, क्या होता जो अधिक न पढ़ पाते। अधिक पढ़ लेने से बुद्धिभ्रम हो जाते हैं। तब एकांगी चाह रहती, जिस किसी की भी चाह रहती।
क्या भगवन, किसी को कुयेँ में तेल दिया, किसी को गाल में तिल दिया और हमें भाग्य में ताला। यह तो अन्याय हुआ प्रभु, अब तो ताली बजाना छोड़ भाग्य की ताली फेंक दो, सब ब्लॉगर बन्धु हँस रहे हैं।
चलिये आप सहमत नहीं हो रहे हैं तो मान लेते हैं कि भाग्य नहीं होता है।
पर उसे जो भी कह लें, होता बड़ा विचित्र है, उफ, तेल का कुआँ न हुआ।
गुड मोर्निंग सर !
ReplyDeleteकिश्तों पर ट्राई करो...दिलचस्प लेख !
कुँए तो सब को दिए हैं ईश्वर ने किसी को तेल के तो किसी को पेट के... पेट के कुँए तेल के कुँए से कहीं ज्यादा गहरे और अथाह हैं
ReplyDeleteक्या करना तेल के कुएँ का ,वह भरा रहता पर दिल का कुआँ सूखा पड़ा रहता !
ReplyDelete... bahut badhiyaa ... chintan se ot-prot lekh ... bilkul nayaa andaaj !!!
ReplyDeleteसंतोष धन के आगे सब धन धूरि समान है ,भारतीय ज्ञानी जन पहले ही कह गए हैं ....
ReplyDeleteमुझे लगता है भौतिकता के प्रति एक निस्पृह भाव ही एक श्रेष्ठ जीवन दर्शन है ...कम स कम मैं इसी विचारधारा का अनुगामी हूँ ..
......और यह अध्ययन मनन से प्राप्त होता है ,तेल के कुएं की ताक झाँक से नहीं ...
आपकी व्यंगात्मक शैली ने रचना के हुस्न में चार चांद लगा दिए हैं। बेहद रोचक और मार्मिक व्यंग्य है।
ReplyDeleteरोचक अंदाज़ में लिखी बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteहर राह में दिख रहे थे श्रीमतीजी के आग्नेय नेत्र। आग्नेय नेत्रों को केवल स्वर्ण-आभूषणों से ही द्रवित किया जा सकता था।
ReplyDelete10 वर्ष बाद "सैमसंग गैलेक्सी टैब" और 37000 के स्वर्णाभूषणों की कीमत की तुलना करेंगे .. तब समझ में आएगी श्रीमतीजी की दूरदर्शिता!!
सरकार,
ReplyDeleteछा गये आज तो।
तेल का कुंआ होता तो क्या गारंटी है कुंओं के लिये न तरसते?
बहुत से कुंए होते तो फ़िर ....?
चरस बोने का नया तरीका ईजाद किया है आज तो आपने:)
हम तो दोबारा इच्छानुसार जन्म हो तो यहीं जन्म लेना चाहेंगे।
ha ha ha ha ......
ReplyDeleteye lekhan ka andaz bahut bhaya .........
shaandaar lekh
ReplyDeleteजरा उन्हें तलाशें जो ये भाग्य लिख रहे हैं।
ReplyDeleteप्रवीण जी आज तो निर्मल आनन्द आ गया। एक हमारे मित्र हैं कहते हैं कि पत्नियां लाखों के जेवर खरीदती हैं लेकिन बेचारा पति ढंग का चश्मा नहीं खरीदता। ऐसे ही अब मोबाइल भी उसमें जुड़ जाएगा। खरीद डालिए जी, दो तौले की चैन ही बेचनी पड़ेगी ना। तैल का कुआँ ना सही मन का तो है। पुन: बधाई।
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति ....संगीता पुरी जी की बात से सहमत ....:):)
ReplyDeleteतेल का कुआँ होता भी तो फिर इच्छा होती कि कुआँ ..कुएँ बन जाते ...
बस यही तो कमीरह गई!
ReplyDeleteअच्छा आलेख!
आह... @संगीता जी-बात आपकी ठीक है, लेकिन जो आनन्द सामसुंग गैलेक्सी टैब दस साल तक प्रवीन जी को देगा, श्रीमती जी के गहने नहीं दे पायेंगे. :)
ReplyDeleteइस देश में भी जिनके पास तेल के कुए हैं, उनकी क्षुधा भी कहाँ शांत हुयी है, प्रवीण भाई!
ReplyDeleteअच्छा आलेख!
ReplyDeleteहाहा , आनंद आ गया . तेल देखा था और तेल की धार के बारे में सुना था , लेकिन आज जो अपने सुनाया उसको पढ़कर भ्रष्टाचारी लोगों का तेल निकल आएगा शर्म से .अपुन भी तिल से तेल निकालने की जुगत करते रहे है .
ReplyDelete---तेते पैर पसारिये जेती लम्बी सौरि......
ReplyDelete.....सब मिलजायगा...अपने पास ही..
.....अब सौरि लम्बी मिल जाती तो ....
same to same 23 हज़ार में OlivePad मिल रहा है
ReplyDeleteविचारणीय दिलचस्प लेख के लिए बधाई
ReplyDeleteखरीदारी ओ भी थानेदार के सामने ना बाबा ना . प्रस्तुतिकरण की सौम्यता के लिए बधाई
ReplyDeleteअगले जन्म के लिये भारत देश नहीं, अरब देश का टिकट माँगेगा।
ReplyDeleteधांसू लिखा है जनाब..
अगले जन्म के लिये भारत देश नहीं, अरब देश का टिकट माँगेगा।
ReplyDeleteधांसू लिखा है जनाब..
अरे बाबा जितना हे उस मे ही सब्र करे, इस से बढ कर कोई सुख नही, इच्छाऎ तो हमारी भी बहुत होती हे, ओर किस्तो मे भी चीज ले ले, लेकिन फ़िर ध्यान आता हे कि बच्चे हमे देख रहे हे, वो भी हमारे मार्ग दर्शन पर चल कर जिन्दगी भर किस्ते ही भरेगे, इस लिये जो हे जितना हे उसी मै खुश रहो ओर बच्चो को शिक्षा भी मिलती हे, बहुत सुंदर बाते कही आप ने अपने लेख मे, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा मजेदार पोस्ट है | मेरी मानिये तो तेल के कुए के बारे में अफसोस करना छोडिये सैमसंग वालो को एक पत्र लिख दीजिये की वो अपने महगे मोबाईल भारत में किस्तों में भी दे बिक्री बढ़ जाएगी | सुना है की अब तो गहने भी किस्तों में मिलते है | यदि लगे की ये तो कर्ज जैसे होंगे तो महान विद्वान विचारक चार्वाक जी को याद कर लीजियेगा और संतोष से दोस्ती से तो हमेशा बचियेगा :)
ReplyDeleteतेल के कुएं वालों ने हीरे जवाहरातों से जड़ा ४० फीट का क्रिसमस ट्री लगाया है ..
ReplyDeleteहम तो यही कह सकते हैं ..हाय तेल का कुआं न हुआ.:)
वैसे एक सलाह है स्वर्ण नहीं एक खूबसूरत शाम और डिनर से भी शायद काम बन जाये :)
पोस्ट बहुत देर से पढ़ी क्षमा प्रार्थी हूँ | आपका लिखा एक एक शब्द बहुत कुछ कह रहा है | व्यंग्य रूपी शैली में मानवीय भावनाओं का बखान कर डाला है |इच्छाओं का कोइ अंत नहीं है ये सब जानते है लेकिन इच्छा करना सबके हाथ में नहीं होता ये तो स्वभाविक प्रक्रिया है |
ReplyDeleteसचमुच बडा प्यारा है मोबाईल। तेल का कुआं वाला विचार सुंदर है।
ReplyDelete---------
छुई-मुई सी नाज़ुक...
कुँवर बच्चों के बचपन को बचालो।
37000 से 28000 पर तो कब का आ गया...बस इंतज़ार...और थोड़ा इंतज़ार...:)
ReplyDeleteऔर प्रेमचंद जी से आगे तो बढिए....स्वर्णाभूषण अब इतने प्रिय नहीं रहे..शायद डायमंड पे बात बन जाए... हा.. हा (जस्ट जोकिंग...अब औरतों की पसंद में आमूल-चूल परिवर्तन आ गया है, आप बेहतर जानते होंगे )
"मूल्य 37000 रु मात्र। पूरे जोड़ घटाने कर डाले, कि कहीं से कोई तो राह निकले, पर हर राह में दिख रहे थे श्रीमतीजी के आग्नेय नेत्र। आग्नेय नेत्रों को केवल स्वर्ण-आभूषणों से ही द्रवित किया जा सकता था। इस दुगने खर्च के विचार मात्र से आशाओं ने सर झुका लिया और आह निकली, उफ, तेल का कुआँ न हुआ।"
ReplyDeleteHa-ha, aapkee peedaa Samajh saktaa hoon.
खर्च के मामले में बीवियाँ अधिक समझदार होती हैं। पर भाग्य का रोना भी बीवियाँ ही ज्यादा रोती हैं।
ReplyDeleteदिलचस्प पोस्ट...
बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteदिल का कूँअ भरा हुया है क्या ये कम है? जिन लोगों के कूँयें धन से भरे होते हैं उनके दिल खाली होते हैं। बस इतना ही काफी है-- काश्! हमारा कूँअँ प्रेम प्यार सच्चाई से भरा रहे। लेकिन मोबाईल की तस्वीर देख कर हमे भी पतिदेव के तेवर नज़र आ रहे हैं काश?-------- हा हा हा ।
ReplyDeleteतेल के कुँए तो नहीं पर जमीन में गड़ा धन पाने के ख़्वाब हमने भी बहुत देखे.
ReplyDeleteबचपन में एक तंत्र की किताब हाथ लग गयी थी जिसमें एक सुरमा बनाने की विधि दी थी. विधि को पढ़ते ही पसीने छूटने लगते थे. बताया गया था की उसे किसी ख़ास नक्षत्र में लगा लेने पर ज़मीन में गड़ा धन साफ़ दिखने लगता.
सैमसंग गैलेक्सी टैब का पोस्टर देखकर हमने भी इसके बारे में खोजना चाह. अच्छा हुआ आप ही यहाँ पर भाव बता दिए. इतने में तो बढ़िया लैपटौप या आइपैड आता है. हमारी तो श्रीमती जी चाहती भी है की हम बढ़िया फोन ले लें पर हम ही अड़े हुए हैं कि ज़माने को दिखायेगे हम भी कितने सादे व्यक्ति हैं.
कोई बात नहीं. इस जन्म में तो नहीं पर अगले जन्म में हम चाहेंगे कि आपके पास तेल के एक नहीं बल्कि सैंकड़ों कुँए हों... पर वे कुँए अमेरिका में ही हों क्योंकि वहीं वे सुरक्षित रहेंगे.
तब तक तेल के पुए खाइए और कुँए को बिसराइये.
अरे अरे अरे ....... आपने तो नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया.......
ReplyDelete"काश हमारा भी तेल का कुंवा होता"
संगीता पुरीजी से सहमत।
ReplyDeleteथोडा इन्तजार कीजिए।
दो साल पहले मैंने ३६०००/- में Nokia Communicator E90 खरीदा था।
The novelty wore off in just 10 days!
अब वह केवल एक महंगा और भारी भरकम मोबाइल फ़ोन बन गया है।
इसके कुछ ही दिनों बाद मैंने ASUS Ee PC खरीदी थी।
दाम १६०००/-, सात इन्च का सक्रीन साइज़, बिना हार्ड डिस्क का।
लिनक्स operating system, Atom processor.
एक महीने का honeymoon चला था उस gadget के साथ।
अब वही gadget show case की शोभा बढा रही है।
आजकल वही मिनि पी सी, ५०००/- में उपलब्ध है और खरीदने वाले नहीं मिल रहे हैं।
इससे पहले भी कई बार कह चुका हूँ:
Buy gold and land today.
Better if you had already bought it yesterday.
Even better if you had bought it day before yesterday.
Buy electronic goods tomorrow.
Better if you buy it day after tomorrow.
Better still if you can somehow do without it and not buy at all.
शुभकामानाएं
जी विश्वनाथ
अधिक पढ़ लेने से बुद्धिभ्रम हो जाते हैं। :)
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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"भारत में जन्म के लिये लाइसेन्स काटने के पहले भगवान को ज्ञात तो अवश्य होगा कि यह तड़पेगा बहुत। मन और मस्तिष्क तो बहुत तेज चलेंगे पर साथ देने के लिये कुछ और न रहेगा। थोड़े दिन बाद स्वतः ही सबसे हार मान जायेगा और भाग्य पर विश्वास करने लगेगा। मरने के पहले लोक, परलोक, सन्तोष की बड़ी बड़ी बातें करेगा पर अगले जन्म के लिये भारत देश नहीं, अरब देश का टिकट माँगेगा।
अब देखिये यहाँ पर कुछ सार्थक पाने में जीवन का तेल निकल आता हैं और हमारे अरबी बान्धव थोड़ा तेल निकाल निकाल कर जीवन भर सब कुछ पाते रहते हैं।"
मैं तो यही मना रहा हूँ कि कोई धर्मप्रचारक बंधु इसी पर अपनी अगली पोस्ट न बना लें... शीर्षक भी दिमाग में आ रहा है... " अगले जनम में अरब में पैदा होना चाहते हैं, ब्राह्मण कुल में जन्मे रेलवे के सबसे बड़े अफसर प्रवीण पान्डेय !!!"... ;)
...
मजेदार पोस्ट, मजेदार टिप्पणियाँ...वाह मजा ही मजा।
ReplyDelete..वैसे मध्यम वर्गीय परिवार की सारी उम्र हाय! कहने में ही बीत जाती है। पहले कमेंट्री सुनने के लिेए ट्रांजिस्टर के लिए तरसे, फिर टीवी के दीवाने हुए अब मोबाईल, कम्प्यूटर, लैपटाप से आगे निकल कर शंकर मोबाईल ...उफ! तेल का कुआँ न हुआ .
तेल का कुँआ भी कोई गारंटी नहीं दे पाएगा। हम तो बस अब संतोष पर अवलंबित रहने लगे हैं। जय हो...।
ReplyDeleteकिसी को कुयेँ में तेल दिया, किसी को गाल में तिल दिया हमें दिया सोने की चिड़िया जैसा हिन्दुस्तान. जिसको बार बात लूटा गया पहले घेरों ने आज अपनों ने. दिया तो हमें भी था ,हम ही संभल नहीं पाई
ReplyDeleteबातें चाहे जितनी कर लें हम संतोष धन की, लेकिन ये अफ़सोस तो सभी को एक दिन होता है कि हम किसी धनकुबेर के यहाँ क्यों ना पैदा हुए.
ReplyDeleteमैं तो ये मानती हूँ कि किसी काम को करने के अगर शुरू के पचास प्रतिशत अगर कर्म के होते हैं, तो बाद के पचास प्रतिशत भाग्य के.
इस पोस्ट में आपकी शैली बहुत ही अच्छी लगी. एकदम नयी-नयी सी.
आई-पैड देख के आइये, और मन डोलेगा :)
ReplyDeleteइस बार के चर्चा मंच पर आपके लिये कुछ विशेष
ReplyDeleteआकर्षण है तो एक बार आइये जरूर और देखिये
क्या आपको ये आकर्षण बांध पाया ……………
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
वैसे तो चाहत की कोई सीमा नहीं होती और आजकल चाहतें भी एक-एक करके बदलती और बढ़ती जाती हैं!
ReplyDeleteआपकी चाहत पूरी न हो पाने का मलाल है तो अपनी galaxy s लेकर भी कुछ अधूरा रह जाने की कसक.
शायद यही ललक है जो हमें जीवन के प्रति आशा की झलक दिखाती है.
कुओं के चक्कर में ना ही पड़ो तो अच्छा है हाँ,ललक पर ताला मत डालना !
ये सच में अन्याय है ... तेल के कूँवे की बहुत महत्ता है ... हम तो रोज़ रोज़ देखते हैं दुबई में ... चाहे पेट्रोल यहाँ भी मंहगा होता जा रहा है ... पर कूँवे तो हैं ...
ReplyDeleteबेहद रोचक और मार्मिक व्यंग्य है। बधाई|
ReplyDeleteमुझ को न होने दिया होनी ने
ReplyDeleteन होता मैं तो खुदा होता :)
अगर तेल का कुआ होता तो बर्चू जैसे पर निगाह टिकती .तब भी एक आह निकलती बुर्नेई के सुलतान क्यो ना हुये .
ReplyDeleteअपना तो एक फ़न्डा है अगर पसंद है और जेब बोझ उठा सकती है तो इंतजार नही करते .
किस मॉल में देखा था ये बताइए....जुगाड़ लगाते हैं कुछ...या कहिये तो उठवा लें आपके लिए...और जैसा रश्मि दी ने कहा कुछ डाइमंड भी उठवा लें क्या :) हुक्म तो दीजिए आप...
ReplyDeleteइन्टरनेट से दूर था तो आपकी गोवा वाली पोस्ट भी पढ़ लिया...
मैं नहीं गया गोवा लेकिन जाना है..कब पता नहीं :(
ललित गद्य का सुन्दर नमूना। लगता है, कुछ लुप्त हो ब्रहीं लेखन विधाऍं लॉग के जरिए लौट रही हैं। आपने बडी उम्मीदें बँधईं हैं इस पोस्ट से।
ReplyDeleteमैं आपके ललित गछ्य संग्रह का पूर्वानुमान कर रहा हूँ। हार्दिक शुभ-कामनाऍं और अग्रिम बधाइयॉं।
sarth aursundar prastuti....
ReplyDeleteप्रवीण सर,
ReplyDeleteआग्नेय नेत्रों के बावजूद ब्लागिंग जारी है, आपके साहस को सलाम और शुभकामनाएं
बड़ी देर हो गई आने में.. दरसल जितना उस कुँए से निकलने की कोशिश करता उतना फिसलता जा रहा था... इत्तफाक से मैं उन अरबों में भी रह आया हूँ और इन अरबों में तो अपना जनम और मौत का लेखा है..
ReplyDeleteआज तो आपका लेख/संस्मरण/आपबीती पढकर मज़ा आ गया. आपकी लेखनी के कायल तो हम कब से हैं, आज तो लगा जैसे प्रवाह रुकने वाला नहीं है... ग्रेट प्रवीण जी! दिल खुश हो गया... एक आम भारतीय की व्यथा का यथार्थ चित्रण... वैसे तेल के कुँए यहाँ भी हैं, वेल ऑफ द हाउस!!
बहुत गज़ब!! आनन्द आ गया- उफ, तेल का कुआँ न हुआ।
ReplyDeleteदिलचस्प मजेदार लेखन!!
सुन्दर व्यंग्य, यथार्थवादी सलाहें!
ReplyDeletebahut accha lekh!
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
ReplyDeleteव्यग्य के तेवर के साथ आम आदमी की व्यथा की गाथा झलक रही है !
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
nice topic...
ReplyDeletemere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
तेल की धार देखूं या इस व्यंग्यालेख रूपी तलवार की धार देखूं...क्या देखूं?
ReplyDelete@ सतीश सक्सेना
ReplyDeleteजब तक पूरी किश्तें अदा नहीं हो जाती हैं, वह आनन्द आ नहीं पाता है। किश्तों पर नहीं अब रिश्तों पर ध्यान दे रहे हैं।
@ पद्म सिंह
पेट के कुयें जहाँ भूख के हैं वहीं दूसरी ओर धन पा लेने के हैं। कितना भी प्रयास हो जाये, भरते ही नहीं।
@ प्रतिभा सक्सेना
सच है, दिल का कुआँ भरा रहे। दुनिया भर को प्यार लुटाने के बाद भी कम न पड़े।
@ 'उदय'
मन की पीड़ा व्यंग बनकर निकल जाये, वही उचित है। अपने ऊपर हँसने से अच्छी कोई औषधि नहीं इच्छा-सर्प की।
@ Arvind Mishra
हम तो यह देखने निकले हैं कि किन किन विषयों से दूर रहना है भविष्य में।
@ मनोज कुमार
ReplyDeleteव्यंग का दूसरा पक्ष था इस टेबलेट में हिन्दी का न होना। पीड़ा की मात्रा कम हो गयी उससे।
@ ZEAL
बहुत धन्यवाद आपका।
@ संगीता पुरी
बडी विचित्र परिस्थितियों में खड़ा कर देती है जिन्दगी। हर नयी चीज, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक लेने के पहले श्रीमतीजी को उत्कोच स्वरूप कुछ न कुछ देना पड़ता है। हम तो अपनी वस्तु लगातार उपयोग में लाते रहते हैं, श्रीमती जी की अल्मारियों में बन्द रहती है।
@ मो सम कौन ?
मन का मान भी रखना था तो व्यक्त कर दी पीड़ा। जन्म तो हम भी यहीं लेना चाहेंगे, चाहे मनुष्य बने या जानवर, बस रसखान के काव्य पर आधारित।
@ Apanatva
बहुत धन्यवाद आपका।
@ रश्मि प्रभा...
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
उन्ही को मानते हैं और उन्ही से माँगते हैं। जो दे दें, या न दें।
@ ajit gupta
आपका प्रस्ताव विस्फोटक है पर पूछते हैं कि जेवर बेच कर सैमसंग लाया जा सकेगा क्या?
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
आभूषणों की आर्थिक उपयोगिता तो रहेगी ही, भले ही उपयोग में न आयें। लैपटॉप भले ही नित उपयोग में आयें पर वापसी का कोई मूल्य नहीं।
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
यदि यह रहता तो कहीं पहाड़ों में बैठ साहित्य सृजन में लगे होते।
sngeeta ji ki tippni the best ! vyngay me rochkta sman prvah se bh rhi ho tbhi uska mrm pkd me aata hai is ksauti pr apki post bhut shi utri hai .shubhkamnayen .
ReplyDelete@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
ReplyDeleteआपकी बात से पूर्णतया सहमत। हम तो अपना मोबाइल व लैपटॉप का मूल्य नित्य वसूलते हैं, श्रीमतीजी उसे वर्ष में दो या तीन बार पहनती होंगी।
@ सम्वेदना के स्वर
सही बात कह रहे हैं आप, भगवान ने जिन्हें तेल के कुयें दिये, उन्हें सन्तोष करना नहीं सिखाया।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद।
@ ashish
घर के अर्थशास्त्र को निचोड़कर जितना भी निकल आये, उतना ही खरीद लेता हूँ।
@ Dr. shyam gupta
तभी तो मन मसोस कर रह गये।
@ Kajal Kumar
ReplyDeleteचलिये आप वाला भी कोशिश कर के देखते हैं पर हिन्दी तो दोनो में ही नहीं है।
@ संजय भास्कर
हमारे लिये तो बेचारणीय लेख है यह।
@ गिरधारी खंकरियाल
बिना गृह मन्त्रालय की प्रशासनिक सहमति के कुछ भी नहीं खरीदा जा सकता है।
@ Manoj K
अगले जन्म के पहले दोनों देशों का फीडबैक ले लिया जायेगा, हो सकता है कि भारत बहुत आगे निकल जाये तब।
@ राज भाटिय़ा
आपकी सलाह सर माथे। अभी नहीं खरीद रहे हैं तभी, बाद में ही लेंगे या नहीं ही लेंगे।
bhabhi ka darr ki wajah se mobile ke lag gaye parr
ReplyDeletebhabhi ke darr se mobile ke lag gaye parr,
ReplyDeletegr8 1
@ anshumala
ReplyDeleteचार्वाक के समय सबसे मँहगी चीज थी घी, तो वही लिख गये। अब ता ऋणं कृत्वा टेबलेट लिखेत में तो बहुत मँहगा हो जायेगा दर्शन। ऋण बिना ही खरीदेंगे।
@ shikha varshney
आपकी सलाह अपना लेते पर श्रीमतीजी मायके प्रस्थान कर चुकी हैं।
@ नरेश सिह राठौड़
कम से कम इच्छा दबायी नहीं, व्यक्त कर डाली है।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
तेल का कुँआ विचार बन कर ही रहे, व्यवहार न बन जाये, यही ईश्वर से प्रार्थना है।
@ rashmi ravija
दाम कम होने तक की सलाह तो ठीक थी पर होरों की सलाह तो न दीजिये, नहीं तो एक की बचत दूसरे में खर्च करनी पड़ेगी।
@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
ReplyDeleteपीड़ा समझ कर उसका मार्ग भी निकालें।
@ सोमेश सक्सेना
खर्च और भाग्य, दोनों ही मामलों में अधिक समझदार होती हैं नारियाँ।
@ फ़िरदौस ख़ान
बहुत धन्यवाद आपका।
@ निर्मला कपिला
दिल का कुआँ भरा है, तेल का खाली रहे तो रहे। आप कहें तो चित्र हटा लेते हैं।
@ hindizen.com
ReplyDeleteबचपन में यही एक मार्ग दिखता था, सारी समस्याओं का, गड़ा हुआ धन मिल जाना। तरीके खूब मिले, गड़ा धन नहीं मिला।
सैमसंग गैलैक्सी पकड़ने में एक अलग ही अनुभव होता है। 7 इंच की स्क्रीन में सिमटा सूचनाओं का अम्बार। कुछ खटका तो बस उसका मूल्य।
अब श्रीमती जी स्वयं ही खरीदवाना चाहती हैं तो क्यों त्याग रहे हैं वह अवसर, ले डालिये शीघ्र ही।
चाणक्य कहते हैं कि अच्छे राज्य या अच्छे धन में एक का निर्धारण करना हो तो, अच्छा राज्य चुनना चाहिये। तब तो अमेरिका ही ठीक रहेगा।
@ दीपक बाबा
ReplyDeleteभगवान करे सारे विवाहितों को तेल के कुयें मिल जायें।
@ G Vishwanath
आपके अनुभव से निश्चय ही सीख लेने का मन है पर दिल है कि मानता नहीं। हमने भी सारे के सारे मोबाइल तभी खरीदे हैं जब ये अपने उच्चतम मूल्य पर थे।
@ Saurabh
सच है, जब बुद्धि रहेगी तभी न रहेगा बुद्धिभ्रम।
@ प्रवीण शाह
बताइये, हमने आर्थिक पक्ष ही सोचा, धार्मिक व सांस्कृतिक पक्ष सोचा ही नहीं। पर चलिये इससे विश्व बन्धुत्व ही बढ़ेगा।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
सच है,
मध्यम जीवन, हाय तुम्हारी यही कहानी,
मिले किसी को तेल, तुम्हे अँसुअन का पानी।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
ReplyDeleteतेल के कुयें भी अरबिया गारन्टी ही दे पायेंगे, अपने जैसी जीवन शैली की।
@ एस.एम.मासूम
सच कहा, बड़ा दर्द है इस तथ्य में। सैकड़ों वर्षों तक की लूट जमा है यूरोप में। पहले पुरुषार्थ किया होता तो तेल के कुयें सपनों में न आते।
@ mukti
बिन मेहनत का धन नाश करता है यदि सही दिशा न मिले। मेहनत से कमाया धन व्यर्थ न करने की मानसिकता रहती है कर्मठ व्यक्तियों की। यह सब सिद्धान्त पर मन नहीं समझता है, पगला है।
@ अभिषेक ओझा
आईपैड देख आये हैं, उस पर इतना मन नहीं डोला। 10 इंच की स्लेट पकड़ने में कष्ट होता है, हाथों को।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद आपका, इस सम्मान के लिये।
@ संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI
ReplyDeleteजीवन की चाहत और मिलने वाली राहत में कशमकश चल रही है, दोनो ही एक दूसरे पर हावी होना चाहती हैं। राहत हार मानकर दम तोड़ती है, बस चाहत बनी रहती है।
@ दिगम्बर नासवा
तेल का दाम बढ़ जाने से और भी महत्वपूर्ण हो गये हैं, तेल के कुयें।
@ Patali-The-Village
बहुत धन्यवाद आपका।
@ cmpershad
पीड़ा का चरम व्यक्त कर दिया आपने।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
सिद्धान्त तो अपना भी वही है पर क्या करें दुगना खर्च उठाने में समस्या आ जाती है।
@ abhi
ReplyDeleteमन्त्री मॉल, रिलायन्स टाइम आउट और सैमसंग स्टोर। इतनी साहसिक सलाह ने अभिभूत कर दिया। बाहर खिलाने वाला आइडिया ट्राई करके देखते हैं।
@ विष्णु बैरागी
मन विचलित पर गद्य ललित है,
मन जीवन से अधिक ज्वलित है।
@ Er. सत्यम शिवम
बहुत धन्यवाद आपका।
@ इलाहाबादी अडडा
प्राथमिकी तो दर्ज करानी ही पड़ेगी, सो करा दी।
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
आप तो दोनों अरबों के ज्ञाता हैं, आप भारतीय व्यथा को सही समझ सकते हैं। इस दुख में बहे तो बहुत पर सारा उतार न पाये। भारत में तो ऐसे अवसर और मिलेंगे।
@ Udan Tashtari
ReplyDeleteबहुत से स्वर अनुनादित हो रहे हैं, अब तो, भगवान अवश्य सुनेंगे।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
बहुत धन्यवाद आपका।
@ SEPO
बहुत धन्यवाद आपका।
@ खबरों की दुनियाँ
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ
हम सबकी यही मिलती जुलती कहानी है।
@ Harman
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद।
@ mahendra verma
हमारी व्यथा भी देखिये।
@ RAJWANT RAJ
आप लोगों की इस राय से श्रीमतीजी को बहुत लाभ होने वाला है भविष्य में।
@ Abhishek
डर नहीं पर, चलाना तो है घर।
बहुत ही अच्छा पोस्ट। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteव्यग्य के साथ आम आदमी की व्यथा, दिलचस्प लेख
ReplyDeleteहम्म्म्म... अब आया समझ में कि मैं blackberry क्यूं नहीं ले सकती... तेल का कुआं जो नहीं है...
ReplyDeleteआपका लेख पढ़कर तो बस एक आह-सी निकली मन से, और आवाज़ आयी... "काश"
@ प्रेम सरोवर
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Sunil Kumar
आम आदमियों की खास ख्वाहिशें।
@ POOJA...
आपकी भी इच्छा पूरी हो।
आपके पोस्टों में शब्दों की बाजीगरी और अर्थों की गूढता देख बस मन ठिठके रह जाया करता है...
ReplyDeleteअब कहूँ तो क्या कहूँ...
ऐसे ही लाजवाब लिखते रहें सदा सदा...शुभकामनाएं...
@ रंजना
ReplyDeleteन बाजीगरी है, न जादू है, बस मन उलीच कर रख देने की प्रक्रिया में निरत हूँ।
अगले जन्म के लिए हम भी एक तेल के कुएं की अर्जी डाल ही देते हैं...अच्छा हुआ आपने थोडा पहले चेता दिया. प्रोसस्सिंग में भी टाइम लगेगा.
ReplyDelete@ Puja Upadhyay
ReplyDeleteसुना है कि वेटलिस्ट बहुत लम्बी है।
आपको पढ़ना हमेशा रुचिकर होता है। इलैक्ट्रॉनिक गैजेट्स के प्रति प्यार रखने वालों का दर्द बखूबी उजागर किया आपने।
ReplyDeleteवैसे इस टैबलेट में हिन्दी समर्थन न होना शायद आपके दर्द को थोड़ा कम कर देगा। आपको एवं अन्य सभी को मैं सलाह दूँगा कि ऍण्ड्रॉइड ३.० (हनीकॉम्ब) आने तक रुकें। दो कारण - एक तो सुन रहे हैं कि उसमें शायद हिन्दी समर्थन होगा दूसरा वह संस्करण खासकर टैबलेट पीसी के लिये तैयार किया जा रहा है जबकि मौजूदा संस्करण मोबाइल फोन के लिये हैं जो कि टैबलेट के लिये भी इस्तेमाल किये जा रहे हैं।
वैसे हमें भी काफी समय से टैबलेट लेने की इच्छा होती है पर महंगी कीमत और हिन्दी समर्थन न होने से इरादा ठण्डा पड़ जाता है। कभी हिन्दी समर्थन आने और कीमत २०००० तक की रेंज में आने पर सोचेंगे।
@ ePandit
ReplyDeleteमैं भी बड़ी व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रहा हूँ हिन्दी सपोर्ट की। देखते हैं कि सबसे पहले कौन कर पाता है।
तेल का कुआँ... अद्भुत विचार. आज आपके ब्लॉग की भरपूर छानबीन की. बहुत सारा तेल मिला हमें, अपने दीपक को जलता रखने के लिए. सोच को नयी दिशा मिलती सी लग रही है. हो सकता है कि ज़्यादा आयु न हो इस नयी दिशा की भी और ये पुनः दिग्भ्रम (मिड लाइफ क्राइसिस) की भेंट चढ़ जाए.
ReplyDeleteसाधुवाद तो बनता है आपके विचारों के लिए. नमन स्वीकार करें.