पर्यटन एक विशुद्ध मानसिक अनुभव है। मन में धारणा बन जाती है कि हमारे सुख की कोई न कोई कुंजी उस स्थान पर छिपी होगी जो वहाँ जाने से मिल जायेगी। अब तो घूमने जाना ही है, सब जाते हैं। अब अकेले जाकर क्या करेंगे, सपत्नीक जाना चाहिये। अभी बच्चे छोटे हैं, नैपकिन बदलने में ही पूरा समय चला जायेगा। अब बच्चों का विद्यालय छूट जायेगा, पढ़ाई कैसे छोड़ सकते हैं। अब छुट्टी के समय वहाँ बड़ी भीड़ हो जाती है, वह स्थान उतना आनन्ददायक नहीं रहता है। कुछ नहीं तो कार्यालय में कार्य निकल आता है।
एक सहयोगी अधिकारी की विदेश यात्रा के कारण अतिरिक्त भार से लादे गये हम छुट्टी की माँग न कर पाये । बच्चों की छुट्टियाँ भी समाप्तप्राय थीं। "आपकी कैसी नौकरी है", यह सुनने का मन बना चुके थे, तभी ईश्वर कृपादृष्टि बरसा देते हैं और हम बच्चों का विद्यालय खुलने के मात्र चार दिन पहले स्वयं को गोवा जाने वाली ट्रेन में बैठा पाते हैं।
सीधी ट्रेन पहले निकल जाने के कारण हम पहले हुबली पहुँचे। वहाँ से गोवा के लिये जिस ट्रेन में बैठे, वह दिन में थी। पश्चिमी घाट को चीर कर निकलती ट्रेन, दोनों ओर बड़ी बड़ी पहाड़ियाँ, 37 किमी की दूरी में ही 1200 मीटर की ऊँचाई खोती पटरियाँ, बीच में दूधसागर का जलप्रपात, कई माह तक बादलों से आच्छादित रहने वाला कैसल रॉक का स्टेशन और हरी परत से लपेटा गया हमारी खिड़की का दृश्यपटल, सभी हमारी यात्रा को सफल बनाने के लिये ईश्वर के ही आदेशों का पालन कर रहे थे।
मानसून पूर्ण कर्तव्य निभा कर विदा ले चुका है। छुटपुट बादल अब अपना कार्य समेट कर पर्यटकों को आने का निमन्त्रण दे रहे हैं, सागर की शीतलता को छील कर उतार लाती पवन हल्की सिरहन ले आती है। पर्यटन की योजनायें बनने लगी हैं। मैं जितना अधिक घूमता हूँ, उतनी अधिक मेरी धारणा बल पा रही है कि हमारे बांग्लाभाषी मानुष ही सबसे उत्साही पर्यटक हैं। वैष्णोदेवी से लेकर कन्याकुमारी तक, जहाँ कहीं भी गया, सदैव ही उनको सपरिवार और सामूहिक घूमने में व्यस्त देखा।
सभी स्थानों को छूकर दौड़ने भागने से घूमने का आनन्द जाता रहता है अतः समय और रुचि लेकर ही स्थानों को देखा। पुराने चर्चों व संग्रहालयों में जाकर अपने पर्यटक धर्म का निर्वाह करने के बाद चार और कार्य किये। ये थे पैरासेलिंग, स्पीड बोटिंग, क्रूज़ और बिग फुट के दर्शन। पैरासेलिंग में बोट में लगी रस्सी के सहारे पैराशूट ऊपर उठता है, बहुत ही सधे हुये ढंग से, बिना झटके के। एक ऊँचाई पर पहुँच कर नीचे के दृश्य सम्मोहनकारी लगते हैं। सबको ही यह अनुभव लेने की सलाह है। स्पीड बोटिंग में लहरों के ऊपर से हवा में उठकर जब बोट पानी में सपाट गिरती है, मन धक्क से रह जाता है। समुद्र की सतह पर टकराने की ध्वनि इतनी कठोर होगी, यह नहीं सोचा था। क्रूज़ में गोवा की उत्श्रंखलता का चित्रण नृत्य व संगीत के माध्यम से हुआ। सूत्रधार ने चेताया कि बिना नाचे आपको क्रूज़ का आनन्द नहीं मिलेगा। हम सबने भी सूत्रधार को निराश नहीं किया। बिग फुट गोवा की संस्कृति, इतिहास व रहन सहन का सुन्दर प्रस्तुतीकरण है।
पाँच नगरीय आबादियों के अतिरिक्त पूरा गोवा प्रकृति की विस्तृत गोद में बच्चे जैसा खेलता हुआ लगता है । भगवान करे इस बच्चे को आधुनिकता की नज़र न लगे।
सुबह सुबह जल्दी उठकर 50 मीटर की दूरी पर स्थित कोल्वा बीच पर निकल जाते थे। विस्तार व एकान्त में लहरों की अठखेलियाँ हमें खेलने को आमन्त्रित करती थीं। हम लहरों से खेलने लगते, पर समय बीतते यह लगने लगता कि लहरें अभी भी उतनी ही उत्साहित हैं जितनी 2 घंटे पहले। गम्भीर सागर किनारों पर आकर पृथ्वी को छूने के लिये मगन हो नाचने लगता है। 26 बीचों में फैला गोवा का सौन्दर्य आपको आमन्त्रित कर रहा है।
अब सोचना कैसा? गो गोवा।
अब सोचना कैसा? गो गोवा।
जब मै गोआ गया था तब ५ वे क्लास मे पढता था .उस समय गोआ यह वाला गोआ नही था . उसके बाद से गोआ के पास से लौट आये लेकिन गोआ ना पहुचपाये .सही भी है मां बाप के साथ ही घुमना आसान रहता है
ReplyDeleteजल्दी जाते हैं गोवा...सुन्दर वृतांत एवं तस्वीरें.
ReplyDeleteबढ़िया विवरण रहा।
ReplyDeleteअपने इन अनुभवों पर और भी पोस्टें लिखिये वरना तो केवल अब तक जो कुछ हल्का फुल्का पढ़ा है गोवा के बारे में वहां सिर्फ गोवा बीचेस और बीयर आदि के बारे में ही ज्यादातर पढ़ने में आया है याकि सुना है।
एक विशुद्ध पर्यटना लेख के तौर पर कम ही पढ़ने मिला है गोवा के बारे में।
अब तो गोवा जाने की उत्कंठा और भी प्रबल हो चली है ।
ReplyDeleteबच्चों को बहुत मजा आता है और बड़े भी बच्चे बन जाते हैं।
बांग्लाभाषियों का विश्लेषण मुझे भी सही ही लगता है।
सुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया लगा गोवा भ्रमण का विवरण
ReplyDeleteआपके इस यात्रा संस्मरण में से भावनाऒं का ऐसा सैलाव उठा कि कई पल रुक कर उन गोवा सागर तट और लहरों को निहारने पर विवश कर गया। शिल्प के वैशिष्ट से यात्रा-वृत्तांत असाधारण हो गया है। वृत्तांत और इसका वर्णन आपकी लेखनी की रोचकता, आपकी सूक्ष्म, सघन दृष्टि और आपके काव्यात्मक विवरण से जीवंत हो उठा है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआज की कविता का अभिव्यंजना कौशल
आपकी पोस्ट की रचनात्मक सौम्यता को देखते हुए इसे आज के चर्चा मंमच पर सजाया गया है!
ReplyDeletehttp://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/369.html
घुमी-घुमी फोटुवा खींचावे ला ....
ReplyDeleteजिया तड़पावे ला हमार।
...खाली स्थान में क्या भरें यह निर्भर करता है कि कौन कह रहा है। पत्नी को लेकर गए हैं वरना पत्नी कहती...बैइमनवां। मित्र कह सकते हैं..प्रविनवां आदि।
...गोवा घूमने की बहुत इच्छा है। अवसर ही नहीं मिल रहा है।
सुंदर यात्रा संस्मरण. गोवा की खूबसूरती तो वाकई ही काबिले तारीफ़ है ही.
ReplyDelete... ye hui na koi baat ... bahut sundar !!!
ReplyDeleteसो आखिर आपको भी घूमने का समय मिल ही गया...
ReplyDeleteयकीनन सबसे अधिक आनंद गुडिया ने लिए होगा ..पापा की उंगली पकडे " my papa is great " का भरोसा लिए इन बच्चों के साथ का फोटो देख मज़ा आ गया प्रवीण भाई ! सुंदर यादगार क्षणों के लिए हार्दिक बधाई !
घूमने निकलने पर टिक करने वाली सूची न हो, तो वह देख पाते हैं, जो आम तौर पर संभव नहीं होता.
ReplyDeleteआप सही कह रहे हैं कि पर्यटक स्थलों को छूकर नहीं वहाँ टिककर आनन्द लेना चाहिए। हम भी एक साहित्यिक दल को लेकर गोवा कार्यक्रम करने गए थे। लेकिन अब लगता है कभी परिवार के साथ जाना चाहिए।
ReplyDeleteलगता है अब जाना ही पडेगा। सुन्दर सचित्र वर्णन। धन्यवाद।
ReplyDeleteगोवा की मस्ती और अल्हड समुद्र से कई बार परिचय हुआ है , आपकी संस्तुति पर एक बार फिर जाने का मन हो रहा है . वैसे एक बाद एकदम सही की बांग्ला भाषी लोग सबसे बड़े घुमक्कड़ होते है ऐसे मेरा भी अनुभव है .
ReplyDeleteगो-आ का टूर मजेदार रहा...
ReplyDeleteहम ज़्यादा पर्यटन का आनंद तो नहीं उठा पाए पर आपके गोवा-वर्णन ने ज़रूर रोमांचित कर दिया है !
ReplyDeleteहम रश्क करें भी तो क्यों नहीं !
aaj se soch rahe , pune me rahkar nahi gaye ab tak... ab phir kahungi bachchon ko ... chalo goa
ReplyDelete......सुंदर यात्रा संस्मरण
ReplyDeleteहमने कई दफे प्लान बनाया गोवा जाने का.. कभी Execute नहीं हो सका.. अभी कुछ मित्र अमेरिका से आने वाले हैं, सो एक नया प्लान अभी भी तैयार है.. उनके साथ सेल्फ ड्राइव पर कार लेकर चेन्नई टू गोवा का.. देखिये इसका क्या होता है?
ReplyDeleteवैसे बिटिया बहुत आनंदित दिख रही है फोटो में.. :)
मेरा बस चले तो हर छुट्टी GOA में ही बिताऊं .. ज़िन्दगी सांस लेती है वहां ..बिना आडम्बर आप आराम से रह सकते है ...ना सोने का समय ना जागने की जल्दी .... अगर देर रात भी निकलते है तो भी हर लम्हा जी सकते है
ReplyDeleteघूमने का समय मिल ही गया...गोवा घूमने का अपना ही मज़ा है. मैं जा चुकी हूँ सो आपकी बात से सहमत हूँ
ReplyDeleteवाह...लाजवाब वर्णन !!!
ReplyDeleteसचमुच आपने इतने सुन्दर और रोमांचक ढंग से विवरण दिया है कि जो न गया होगा ,जाने को उत्कंठित हो जाएगा...
गोवा और मस्ती एक दुसरे के पर्याय है |
ReplyDeleteमनोहारी एवं सजीव वर्णन ने हमें भी गोवा के दर्शन कर दिए .
ReplyDeleteगोवा का तो जबाब ही नहीं .और बंगाली सबसे ज्यादा घुमक्कड होते हैं यह बात १००% सही है.
ReplyDeleteतस्वीरें बहुत सुन्दर हैं.
बहुत ही रोचक वृत्तांत...तस्वीरें और भी ख़ूबसूरत
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दरता से व्यक्त किया है आपने गोवा यात्रा को ...।
ReplyDeleteरोचकता से लिखा वृतांत ...वैसे हम तो बहुत साल पहले गोवा घूम चुके हैं ....
ReplyDeleteबंगाली सबसे अच्छे पर्यटक होते हैं ...सूक्ष्म अवलोकन
बहुत ही जीवन्त चित्रण किया है।
ReplyDeletehmmm..............goa jana hi parega!! aapne jo itna pyara darshan sabdo se karwa diya............wiase photos acchchhhe hain....!!
ReplyDeleteमुझे आपसे जलन हो रही है। थोडे में पूरी बात कहने का कौशल कोई आपसे सीखे। 'ऑन लाइन' प्रशिक्षण की व्यवस्था हो तो बताईएगा।
ReplyDeleteयात्रा वर्णन गोवा की ही तरह मनोहरी है - गोवा यात्रा के लिए प्रेरित करनेवाला।
.
ReplyDeleteप्रवीण जी ,
इसी वर्ष ३ अप्रैल से ६ अप्रैल , सोंक्रांत [ थाईलैंड की होली ] के अवसर पर हम लोग भी ' फुकेत [ phuket] गए थे , जहाँ क्रूज़ द्वारा [पहली बार] , "phi-phi आइलैंड" तथा open boat द्वारा " James bond Island " गए थे । लगभग ऐसे की चित्र हमारे पास हैं। आपकी पोस्ट ने phuket की यादें ताजा कर दीं।
आभार।
.
प्रवीण जी , सारे चित्र बहुत ही खूबसूरत है .......सुंदर यात्रा संस्मरण.
ReplyDeleteमज़ा आ गया.. एक बार फिर घूम आया..
ReplyDelete‘पर्यटन एक विशुद्ध मानसिक अनुभव है।’
ReplyDeleteऔर ... उस पर लिखना मानसिक हलचल :)
जरुर जायेगे जी अगले साल २०११ मै हमारा यही का प्रोगराम हे, धन्यवाद इस सुंदर जानकारी के लिये
ReplyDeletepraveen ji aapne to hame gova ki puri sair hi kara di .ham bhi aapke sath ghar baithe goa pahunch gaye.khair ,aapki goa yatra to bahut hi sukhad rahi haogi.bhai .
ReplyDelete,parivaar ke sath ghumne ka aanand kuchh aur hi hota hai.
chitro ko dekh kar bhi aanand aaya.
poonam
कई साल पहले इत्तेफ़ाक से हमें अकेले गोआ जाने का मौका मिला था।
ReplyDeleteपर हम तो केवल हवाई अड्डे पर फ़ंसे रहे थे।
मुम्बई से बेंगलौर की उडान थी और तकनीकी खराबी के कारण हमारी उडान अचानक गोआ की ओर divert हुई थी। हम तो विमान में ही बैठे रहे थे।
गोआ का Bird's eye view ही हमारे भाग्य में लिखा था।
पत्नि को बुलाकर दिखाया आपकी ली हुई गोआ की तसवीरें ।
मुसीबत में फ़ंस गया।
कहने लगी "आप तो हमें कहीं घुमाने ले ही नहीं जाते!।
कितनी नाईंसाफ़ी है!
अभी अभी उनके साथ हैदराबाद घूमकर वापस आया हूँ।
पर कहाँ हैदराबाद और कहाँ गोआ?
अब गोआ जाने का प्रोग्राम बनाना ही पडेगा।
आपका यह ब्लॉग पोस्ट हमारे लिए महँगा पड रहा है!
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
अति सुन्दर!
ReplyDeleteमेरे विचार में यदि आप भारतीय हैं तो कम से कम एक बार गोवा जरूर जाना चाहिए. यह एक अद्भुत अनुभव है, उन्मुक्त परिवेश, धवल समुद्र तट और लहरें जैसे अन्दर आने का निमंत्रण देती हैं. यादें ताज़ा हो आयीं!
और हाँ बांग्ला मानुष के बारे में आपका कथन एकदम सही है.
गोवा की सबसे अच्छी बात है वहा के साफ सुथरा बीच और अब भी वहा बीच का बिल्कुल प्राकृतिक रूप में होना | पूरे गोवा में आप को हर जगह प्रकृति का खूबसूरती नजर आएगी एक पर्यटक स्थल होने के बाद भी कोई व्यावसायिक करण कंकरीट के जंगल नहीं उगे है | जबकि वैष्णव देवी जैसे तीर्थ स्थल में भी पहले और अब में जमीन आसमान का अंतर आ गया है |
ReplyDeleteगोवा, अंडमान और राजस्थान
ReplyDeleteहमी अस्त-ओ हमी अस्त-ओ हमी अस्त
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
ReplyDeleteयह तो घोर आश्चर्य है, विवाह के 16 वर्ष हो गये फिर भी आप गोवा नहीं गये? माँ और पिता ने आप को घुमाया है तो आपका भी कर्तव्य बनता है अपने बच्चों को घुमाने का।
@ Udan Tashtari
अभी भारत में हैं, निपटा दीजिये। कनाडा जाकर तो बहुत याद आयेगा गोवा।
@ सतीश पंचम
गोवा पहले इसीलिये ही प्रसिद्ध रहा है, बीयर और बीचेज़। प्रकृति का सौन्दर्य पग पग में बिखरा पड़ा है वहाँ पर। लहरों को सतत देखते रहना कितनी प्रेरणा भर जाता है, ज्ञात नहीं हो पाता है हमें।
@ Vivek Rastogi
मुम्बई में रह कर तो देख ही लेना था, चलिये अब बंगलोर से ही योजना बनाते हैं।
@ Ratan Singh Shekhawat
बस राजस्थान जैसी रेत मिलेगी, पर गीली सी।
@ मनोज कुमार
ReplyDeleteइस आनन्द की निष्पत्ति आपकी गोवा यात्रा में ही हो। साहित्य को प्रकृति का सानिध्य मिल जाये तो सृजन ही सृजन।
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
इस सम्मान का बहुत धन्यवाद। पर्यटन के स्थूल दृश्यों को शब्द सम्हाल नहीं पाते हैं और पता नहीं कितना कुछ लिखने से छूट जाता है।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
उस रिक्त स्थान में कुछ भी भर दें पर अपने जीवनकाल में गोवा-भ्रमण की रिक्तता न रखें।
@ रचना दीक्षित
बहुत धन्यवाद, शीघ्र घूम आयें आप भी।
@ 'उदय'
बहुत धन्यवाद आपका।
@ सतीश सक्सेना
ReplyDeleteनयी जगहों पर घूमने का असली आनन्द बच्चों को ही आता है। इतने उत्साह में डूब जाते हैं बच्चे कि नींद में भी कहीं न कहीं जाने के लिये बोलते रहते हैं।
@ Rahul Singh
घूमने के पहले टिक करने वाली सूची अवश्य फाड़ कर फेंक दें, घूमने का आनन्द आ जायेगा।
@ ajit gupta
जब लहरों के सामने 5-6 घंटे बैठेंगी तब कहीं जाकर मित्रता हो पायेगी उनसे।
@ निर्मला कपिला
पहाड़ों से निकली नदी अन्ततः सागर में ही मिलती है।
@ ashish
हर बार नया आनन्द देता है गोवा। यह मेरी तीसरी यात्रा थी।
@ संजय भास्कर
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
मेरे लियो तो गो और आ नहीं हुआ, हम तो 4 दिन बिता कर आये हैं।
@ संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI
तब गोवा आपकी प्रतीक्षा में है, आप जाकर आनन्द उठा लें।
@ रश्मि प्रभा...
पुणे से तो और भी पास में है गोवा, अब जाकर शीघ्र ही घूम आइये।
@ PD
अगर कृपा कर सकें तो बंगलोर में विश्राम कर लीजियेगा, हमारे घर में।
@ Sonal Rastogi
ReplyDeleteगोवा के वातावरण में मस्ती रची बसी है। बस आपकी मानसिक तन्मयता होनी चाहिये उसमें रचने बसने की।
@ रचना दीक्षित
खींच खींच कर समय निकालना पड़ा पर अन्ततः समय निकल ही आया।
@ रंजना
आनन्ददायिनी यात्राओं का उद्देश्य औरों को लुभाना भी होता है।
@ नरेश सिह राठौड़
यह वहाँ जाकर ही देखा जा सकता है।
@ गिरधारी खंकरियाल
पहाड़ों की ऊँचाई में रहने में रहने वालों के लिये समुद्र की विशालता एक नया आयाम लेकर आती है।
@ shikha varshney
ReplyDeleteमुझे तो हर स्थान पर बंगालीजन दिखायी पड़े, समूह में, पूर्ण आनन्द उठाते हुये।
@ rashmi ravija
बहुत धन्यवाद आपका।
@ sada
बहुत धन्यवाद आपका।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
घूमने में अतिव्यस्त न हो जायें तो रोचकता बनी रहती है। जल्दबाजी में बड़ा विचित्र होता है पर्यटन।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Mukesh Kumar Sinha
ReplyDeleteपर्यटन का विवरण से कहीं अधिक रोचक है साक्षात दर्शन।
@ विष्णु बैरागी
बहुत कुछ और भी था जो पोस्ट की विवशतावश नहीं डाल पाया। आप लपरिवार घूम आईये, मेरा लिखना सार्थक हो जायेगा।
@ ZEAL
कहते हैं कि थाईलैण्ड के बीच और भी रमणीक हैं।
@ उपेन्द्र ' उपेन '
बहुत धन्यवाद आपका।
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
पुरानी स्मृतियाँ जो हरी हो गयीं उस पर एक पोस्ट अवश्य लिखें आप।
@ cmpershad
ReplyDeleteयह मानसिक विश्राम की अवस्था थी। मन प्रसन्न हो गया।
@ राज भाटिय़ा
क्यों न गोवा मे ब्लॉगर मंडली रमायी जाये।
@ JHAROKHA
परिवार के साथ घूमने से बच्चों की प्रसन्नता में पर्यटन का सुख घनीभूत हो जाता है।
@ G Vishwanath
एक बार घूम आने के बाद जो आनन्द आयेगा, आप हमें साधुवाद ही देंगे। शुभस्य शीघ्रम्।
@ Saurabh
विदेशी पर्यटन से अभिभूत जनों का भारत का सौन्दर्य यदि न दिखे तो प्रारम्भ गोवा से किया जा सकता है।
@ anshumala
ReplyDeleteवहाँ के निवासियों ने कंक्रीट को बढ़ने ही नहीं दिया है वहाँ पर। यह एक शुभ संकेत है सुन्दर भविष्य का।
@ Kajal Kumar
सच कह रहे हैं, बड़ा ही सौन्दर्य भरा है अपने देश में।
क्या गोवा में स्वयं पैराग्लाइडिंग की या फिर औरों को करते देखा?
ReplyDeleteacchee lagee aapkee ye post samay samay par parivar baccho ke sath aise vacation lena jeevan me roz kee dincharya me nav sanchar karta hai.
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया संस्मरण ...क्रूज में बच्चों का घूमना और पैराग्लाडिंग का आनंद .... पढ़कर आनंद आ गया .... अब मैं भी चलता हूँ बरगी डेम में क्रूंज का मजा लेने ...
ReplyDeletelekh padhkar laga ham hi goa ghoom aaye hain.
ReplyDeletesundar yatra sanamaran...
ReplyDeletesath me sundar chitra...
mantrmugdh kar diya.
sundar yatra sanamaran...
ReplyDeletesath me sundar chitra...
mantrmugdh kar diya.
चाह तो कबसे है, पर देखों पूरी कब हो पाती है।
ReplyDelete---------
प्रेत साधने वाले।
रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्या?
गोवा सचमुच नैसर्गिक सौन्दर्य का खजाना है ,आपने निश्चित ही खूब आनंद उठाया होगा !
ReplyDeleteसुन्दर यात्रा वृतांत. सचमुच ऐसा ही है गोवा.इतने सुन्दर और साफ़ समुद्री तट कि उन्हे छोड़ने का मन ही न करे. बढिया तस्वीरें.
ReplyDeleteअच्छी रही गोआ की ट्रिप -लेकिन इतनी कम भी नहीं रही होगी ,जितनी आपने समेट दी है .अभी जी नहीं भरा !
ReplyDelete@ उन्मुक्त
ReplyDeleteपैराग्लाइडिंग स्वयं की पर यह चित्र बालक का है।
@ Apanatva
थोड़े समय अन्तराल में घूमते रहने से परिवार में भी एक नयापन बना रहता है।
@ महेन्द्र मिश्र
गोवा के क्रूज़ में वहाँ की मस्ती भरी संस्कृति झलकती है जिसमें पुर्तगाल का प्रभाव बहुत अधिक है।
@ मेरे भाव
तब तो यात्रा वृत्तान्त लिखना सफल हो गया।
@ सुरेन्द्र सिंह " झंझट "
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
ReplyDeleteयदि चाह है तो राह भी शीघ्र निकल ही आयेगी।
@ Arvind Mishra
वहाँ पर सबसे अच्छा पक्ष यह है कि कंक्रीट के जंगल को बढ़ने ही नहीं दिया है।
@ वन्दना अवस्थी दुबे
वहाँ पर जाकर घंटों बैठे रहने का मन करता है।
@ प्रतिभा सक्सेना
इस यात्रा में बहुत कुछ बताने योग्य और है पर पोस्टीय विवशताओं के कारण नहीं बता पाया।
उपयोगी जानकारी देने के लिए धन्यवाद!
ReplyDelete-डॉ० डंडा लखनवी
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ReplyDeleteआपका अच्छा ब्लौग भी वहां शामिल है.
भाई हम तो गोवा घूम आये हैं...बड़ा मज़ा आया था...
ReplyDeleteएक बार फिर यादें ताज़ा करा दीं...
धन्यवाद,,,
देर से आने के लिए माफ़ी चाहूँगा...लेकिन मेरे पुराने ब्लॉग हैक होने के कारण दोबारा ब्लॉग ढूँढने पड़ रहे हैं....
itane sare comment dekhkar lagta hai mai jo kuchh kahunga vo bat aap tak nahin pahunch payegi...fir bhi kahunga....goa kee behtarin jankaree ke saath aapne enjoy kiya..dil to mera bhi karta hai ki ek bar goa ho hi aanu par abhi waqt lagega.....badhiya blog aur kehan andaz hai apka..
ReplyDeleteवाह , गोवा में मस्ती..हम भी जायेंगे.
ReplyDeleteसुंदर यात्रा संस्मरण. गोवा की खूबसूरती तो वाकई ही काबिले तारीफ़ है ही.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विवरण और चित्रो के तो क्या कहने!!!
ReplyDeleteहम आज तक गोवा नही गये , मगर आज आपके ब्लाग के माध्यम से गोआ भ्रमण कर लिया । बहुत मनमोहक तस्वीरे है ।
ReplyDelete@ डॉ० डंडा लखनवी
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद।
@ हिंदीब्लॉगजगत
यह सम्मान देने के लिये आभार।
@ shekhar suman
आप भी संस्मरण लिखें, हमारी भी यादें ताज़ा हो जायेंगी तब।
@ चन्दन कुमार
यदि मन में इच्छा हो तो बस गोवा पहुँच जाइये।
@ Akshita (Pakhi)
आपको तो गोवा में बहुत आनन्द आयेगा। मेरे बच्चों को भी आया।
@ डॉ० डंडा लखनवी
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद।
@ हिंदीब्लॉगजगत
यह सम्मान देने के लिये आभार।
@ shekhar suman
आप भी संस्मरण लिखें, हमारी भी यादें ताज़ा हो जायेंगी तब।
@ चन्दन कुमार
यदि मन में इच्छा हो तो बस गोवा पहुँच जाइये।
@ Akshita (Pakhi)
आपको तो गोवा में बहुत आनन्द आयेगा। मेरे बच्चों को भी आया।
@ संजय कुमार चौरसिया
ReplyDeleteगोवा की ख्याति पर और कारणों से अधिक होती है।
@ M VERMA
बहुत धन्यवाद आपका।
जल्द ही going goa.. मुम्बई कि बीच देखी तो गोवा घूमने का भी मन बना, उस वक्त तो मुश्किल था पर वक्त निकाल कर जायेंगे ज़रूर
ReplyDeleteफ़ोटो अच्छी हैं, खास कर हवा में तैरने वाली :)
इस बार के चर्चा मंच पर आपके लिये कुछ विशेष
ReplyDeleteआकर्षण है तो एक बार आइये जरूर और देखिये
क्या आपको ये आकर्षण बांध पाया ……………
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
ReplyDelete@ "पलाश"
ReplyDeleteतब निश्चय ही गोवा जाकर घूम आईये। प्रकृति में रमने वालों के लिये एक सुन्दर स्थान है गोवा।
@ Manoj K
मुम्बई के बीच भेल पूरी और पावभाजी के लिये ही अच्छे हैं, लहरों से खेलने का आनन्द तो गोवा में ही मिलेगा आपको।
@ वन्दना
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
@ खबरों की दुनियाँ
बहुत धन्यवाद आपका।
गोवा दो बार गयी हूँ...एक बार पापा मम्मी और छोटे भाई के साथ...आपके जैसी वाली फैमिली फोटो हमारी भी है, उस समय 9th में पढ़ती थी. फिर दूसरी बार अभी कुछ दिन पहले गयी थी.
ReplyDeleteदोनों बार चूँकि बस से गयी तो आप जैसी सम्मोहक यात्रा का आनंद बचा रह गया...अगली बार जाउंगी तो पक्का ट्रेन से जाउंगी. पैरासेलिंग भी नहीं की...अगली बार पक्का.
यात्रा के बारे में एक और अनुभव है मेरा जो कि पापा से मिला है...यात्रा करने बैंकर भी बहुत जाते हैं. चूँकि हर चार साल में छुटियाँ भी हो जाती हैं और बैंक ट्रेन, बस या फ्लाईट का किराया देता है तो घूमना आसान भी हो जाता है. हमारे हर बार के टूर पर, हर शहर में पापा के कोई न कोई मित्र बन जाते थे.
@ Puja Upadhyay
ReplyDeleteमेरी तीसरी यात्रा थी, दो बार मित्रों के साथ पर पहली बार परिवार के साथ। बच्चों को आनन्द में देखकर मन आह्लादित हो जाता है, लहरों के साथ खेलते देखकर।
प्रवीण जी संवेदनाओं के लिए धन्यवाद । मायके जाने के बारे मैं आपका रोचक लेख पढ़ा हंसी भी बहुत आयी एकबार तो लगा कि शरद जोशी जी को पढ़ रही हूं । आपके ब्लॉगर जगत में मेरी अबी नयी एंट्री है. मेरे सहयोगी और मित्र खुशदीप जी के माध्यम से आप सबसे परिचयहुआ बहुत अच्छा लगा . नववर्षमंगलमय हो -- सर्जना
ReplyDeleteबहुत खूब, गोवा का वर्णन और तस्वीरें जानदार हैं. मैं भी वहाँ दो बार जा चूका हूँ. आपके साथ फिर हो आया.
ReplyDelete@ -सर्जना शर्मा-
ReplyDeleteआपको भी नव वर्ष की शुभकामनायें। शरद जोशी जी के लेखन की थोड़ी सी भी महक आ जाये तो धन्य हो जाऊँगा।
@ सोमेश सक्सेना
गोवा का आनन्द अप्रतिम है।